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अक्सर मेरे एक ब्लॉग का मूड दूसरे ब्लॉग पर भी परिलक्षित होता है, 'मन का पाखी' पर कहानी ने कुछ गंभीर मोड़ लिया तो बैलेंस करने को यहाँ कुछ हल्का फुल्का लिखना पड़ा.यहाँ निरुपमा के बहाने लड़कियों के प्रति माता-पिता की उदासीनता के विषय में लिखा तो मन इतना खिन्न हो गया कि एक हफ्ते तक ,कहानी की अगली किस्त नहीं लिख पायी...(ढेर सारी शिकायतें भी सुननी पड़ीं :)) अब वहाँ कहानी एक सुखद मोड़ पर समाप्त हो गयी है, तो कुछ गंभीर लिख, मूड बिगाड़ने का मन नहीं हो रहा....
अपने कॉलेज के दिनों में ही वो लम्बी कहानी लिखी थी और उन्ही दिनों...उन्हीं पन्नो के बीच 'जावेद अख्तर' की ये नज़्म भी कहीं से नोट की थी,जो मुझे काफी पसंद थी...सोचा आपलोगों को भी पढवा दी जाए और जिन लोगों ने पढ़ रखी हो,उन्हें उसकी याद दिला दी जाए
नज़्म
मैं भूल जाऊं तुम्हे
अब यही मुनासिब है .
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हकीकत हो
कोई ख्वाब नहीं.
यहाँ तो दिल का ये आलम है ,क्या कहूँ
कमबख्त !!
भुला ना पाया ये, वो सिलसिला
जो था ही नहीं
वो इक ख़याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात
जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त
जो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब
जो कभी हुआ ही नहीं.
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ऐसा नहीं दी.. कहानी ने मन भारी किया था पर सुखान्त ने हल्का भी कर दिया था. ये नज़्म जगजीत साब की आवाज़ में सुन रखी है.. कुछ साल पहले ले जाती है जब भी सुनता हूँ अब. ये एक खरा सच है कि अगर हम किसी संगीत या सुगंध से किसी विशेष हालत में परिचित होते हैं तो आजीवन जब भी वो सुगंध या संगीत फिर सुनते हैं, पहले वाले हालत बरबस ही याद आ जाते हैं.. आभार..
जवाब देंहटाएंवो कॉलेज की लम्बी कहनी कब पोस्ट हो रही है?
जवाब देंहटाएंजावेद जी की नज़्म तो बस क्या बात है...
यहाँ पढवाने का शुक्रिया
कहानी की बात पर मै अभी तो चुप :( ही रहूगा...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी नज़्म है यह.. जावेद अख्तर की है, ये पता नही था.. आनन्द आ गया फ़िर से पढकर..
और क्या क्या नोट किया था? वो सब भी पढवाईये :)
बहुत प्यारी नज़्म है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
अरे क्या बात कही है ...हम लेखक लोग होते ही मूडी हैं :).
जवाब देंहटाएंऔर जावेद साहब का तो क्या कहना ..उनकी तो मैं बड़ी वाली AC हूँ.:)
परिवेश चेतना पर प्रभाव डालता रहता है , लेखक
जवाब देंहटाएंमन उससे कट के नहीं रह सकता !
यह नज़्म पढ़ते हुए मोमिन की गजल का
स्मृतिजन्य मीठा अहसास बार बार छूता रहा --
'' मुझे सब है याद ज़रा ज़रा तुम्हें याद हो कि न याद हो '' !
इतनी खूबसूरत नज़्म पढवाने के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंVery Good.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस सुंदर नज्म के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर नज़्म पढ़वाने का आभार.
जवाब देंहटाएं@पंकज,
जवाब देंहटाएंहमलोग बड़े बोरिंग लोग थे...सब कुछ नोट किया हुआ पढवाने लगी,ना तो एक परिंदा भी नहीं फटकेगा मेरे ब्लॉग पे...ब्लॉग बंद करवाना है क्या....हा हा हा
@ संगीता जी,
आप बच के कहाँ जाएँगी...भूत (कॉलेज के ज़माने का लिखा )...वर्त्तमान (जो रेडियो के लिए लिख रही हूँ ) भविष्य (जो लिखूंगी जरूर :) )...सब झेलना पड़ेगा
@ महफूज़ सर,
जवाब देंहटाएंVery good के साथ स्टार नहीं दिया...:)
आपकी डायरी चोरी करनी पडेगी. अपने पास जो कुछ है भेजे मै है. भेजा ओन अपुन ओन - भेजा डाउन अपुन डाउन.
जवाब देंहटाएंजावेद अख्तर की 'वो कमरा' कविता बहुत पसंद है मुझे। आपके पास हो तो कभी लगाएं। मेरे पास उनका संग्रह 'तरकश' अब नहीं रहा वरना मैं स्वयं लगाता।
जवाब देंहटाएंइसे बहुत पहले शायद जगजीत सिंह की आवज़ में सुना था…आपने याद दिला दी…
जवाब देंहटाएंbahut sundar nazm padhwaa di ..
जवाब देंहटाएंbhai hame bhi intezaar kar rahe hain ab ..college ke sansmaran ka...
hamari taraf se bhi VERY GOOD with lots of STARS...
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्कार...
जवाब देंहटाएंनज़्म बड़ी ही सुन्दर लेकर,
तुम फिर से अब आये हो...
अभि-शची सा प्यार लिए जो...
भाव वही फिर लाये हो...
नज़्म बहुत ही सुन्दर है...
नज़्म पर नज़्म कहने का मन हो आया है... फिर कभी सही॥
दीपक...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअच्छा किया आपने जो इतनी खूबसूरत नज्म पढवा दिया. उम्मीद है जावेद साहेब फतवों को झेल लेंगे. मुझे कोई नज्म तो नहीं जयशंकर प्रसाद कि दो पंक्तिया याद आ गयी .
जवाब देंहटाएं''मानस सागर के तट पर क्यों लोल लहर कि घातें, कल कल ध्वनि से है कहती कुछ विस्मृत बीती बाते.'
'बस गयी एक बस्ती है स्मृतियों कि इसी ह्रदय में, नक्षत्र लोक फैला है जैसे इस नील निलय में.'' काश मेरे पास भी कोई डायरी होती .
जावेद साहब की एक बेहद उम्दा नज़्म है यह !! बहुत बहुत आभार बहुत सी यादे ताज़ा करवाने के लिए !!
जवाब देंहटाएंमुझे है याद वो सब
जवाब देंहटाएंजो कभी हुआ ही नहीं....
waah !
अति सुन्दर । आभार ।
जवाब देंहटाएंGOOD *
जवाब देंहटाएंखूबसूरत नज़्म ... जावेद जी की नजमें अक्सर दूसरी दुनिया में ले जाती हैं ....
जवाब देंहटाएंआप की डायरी खुलने की प्रतीक्षा है .....
उम्दा अभिव्यक्ति ,सुन्दर सी नज्म ! आभार !
जवाब देंहटाएंजावेद जी की नज्म सुनाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपसंद बहुत अच्छी लगी, यही हाल होता है शायरों का पाता नहीं जो हो न उसकी कल्पना में अश्क बहा बैठते हैं और जो देखा नहीं उसको सभी को शब्द चित्रों से दिखा देते हैं तभी तो वो होते हैं दुनियाँ से इतर .
कभी कभी मन में आता है कि कचरा ही नहीं उत्कृष्टता के फूल भी आये हैं हिन्दी ब्लॉगरी में।
जवाब देंहटाएंऔर आपको पढ़ कर वह भाव पुख्ता होता है।
क्या बात है ...
जवाब देंहटाएंनज़्म पढवाई जा रही है और वो भी जावेद अख्तर जी की ...
वो एक रब्त
जो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब
जो कभी हुआ ही नहीं. ...
वल्लाह ....!!