बचपन में एक कहानी सुनी थी जिसमे एक राक्षस को देखकर सारे मनुष्य छुप जाते थे पर राक्षस को उनकी गंध आती थी और वो 'मानुस गंध...मानुस गंध' कहता हुआ उन्हें ढूँढने की कोशिश करता रहता था. जब से ब्लॉग बनाया है...मुझे भी जैसे हमेशा कहानी की गंध आती रहती है...{अब यहाँ सिर्फ गंध वाली समानता ही देखी जाए :)}किसी ने कहीं किसी घटना का जिक्र किया और मैने उसमे छुपी कहानी(आलेख,संस्मरण ) देख कर अपनी फरमाइश रख दी..'मुझे लिख भेजिए' .इस क्रम में...ममता कुमार, इंदिरा शेट्टी, जया मेनन और जी.जी. शेख मेरे आग्रह पर मेरे ब्लॉग पर लिख चुके हैं. अभी पिछली पोस्ट पर युवा कवि अविनाश चन्द्र जी ने सरहद पार की एक प्रेम कथा का जिक्र किया मैने आदतवश तड़ से फरमाइश कर दी और उन्होंने उसे झट से पूरा कर दिया. शुक्रिया अविनाश :)
शुक्रिया ममता भाभी का भी..जिन्होंने मुझे ब्लॉग बनने के लिए सिर्फ प्रोत्साहित ही नहीं किया बल्कि पहली पोस्ट से लेकर अब तक मेरी सारी पोस्ट पढ़ी भी है.पर उन्हें दुखांत प्रकरण या दुखांत कहानियाँ पसंद नहीं हैं...हमेशा की तरह पिछली पोस्ट पर भी उन्होंने हैप्पी एंडिंग वाले आलेख की डिमांड की और इस पोस्ट का ख्याल अंकुरित हुआ.
तो सबसे पहले अविनाश जी की सीमा पार वाले नॉन ग्लैमरस वीर ज़ारा की कहानी. जिसे उनके वरिष्ठ सहकर्मी ने उन्हें सुनायी थी.
मुझे साल एकदम सही से याद नहीं, २००४ या २००५ की बात है (यानि जब मैं नया नया कॉलेज गया रहा होऊंगा)।
जिस कंपनी में मैं काम करता हूँ उसके business clients दुनिया में हर जगह हैं और जिस ख़ास client के लिए हमारी division काम करती है उसके तब एशिया में २ पार्टनर हुआ करते थे - एक हम और एक पाकिस्तानी कंपनी।
जिस कंपनी में मैं काम करता हूँ उसके business clients दुनिया में हर जगह हैं और जिस ख़ास client के लिए हमारी division काम करती है उसके तब एशिया में २ पार्टनर हुआ करते थे - एक हम और एक पाकिस्तानी कंपनी।
तो पाकिस्तान से उनका एक पूरा ग्रुप ताजमहल देखने आया था, यहाँ से भी १२-१५ लोग गए थे - फ्रेशर टाइप के जिन्हें थोडा समय मिल जाता है, शुरुआत में। मेरे वर्तमान सहकर्मी नितिन भी जाने वालों में से एक थे और वहाँ उनकी ठीक-ठाक पहचान आसिफ नाम के लड़के से हो गई जो लगभग उसी technology पर काम करता था और दोनों एक दूसरे के नाम से पहले से हल्का-फुल्का परिचित थे। जैसा कि होता है, वापसी के समय दोनों ने numbers exchange किये - डेस्क का land-line नंबर, अविश्वास एक कारण हो सकता है - मैंने पूछा नहीं।
offices में एक एरिया में एक फ़ोन होना आम बात है, जिससे ३-४ लोग उसी से काम चला सकें। हाँ, senior लोगों को individual फ़ोन ही मिलते थे।
नितिन जब भी आसिफ को फ़ोन करते हमेशा एक लड़की उठाया करती, फ़ोन उसी के करीब रखा रहता हो शायद। मामूली औपचारिक अभिवादन के बाद फ़ोन आसिफ के पास चला जाता।
धीरे-धीरे फ़ोन, ऑरकुट, chat-rooms, yahoo messenger (तब तक facebook ज्यादा प्रचलित नहीं था ) के सहारे इनके सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए।
नितिन जब भी आसिफ को फ़ोन करते हमेशा एक लड़की उठाया करती, फ़ोन उसी के करीब रखा रहता हो शायद। मामूली औपचारिक अभिवादन के बाद फ़ोन आसिफ के पास चला जाता।
धीरे-धीरे फ़ोन, ऑरकुट, chat-rooms, yahoo messenger (तब तक facebook ज्यादा प्रचलित नहीं था ) के सहारे इनके सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए।
दोनों ने एक दो बार एक दूसरे को वाघा पर जा कर देखा भी। ये मुझे भी फ़िल्मी लगता है।
२००९ तक (तब मुझे नौकरी करते साल भर हो चुका था) दोनों ने शादी करना तय किया और लड़के के घर वाले तो जैसे तैसे मान गए (उसने यही कहा है) पर लड़की के पिता जो की वहाँ की आर्मी में general है (वो जनरैल कहतीं हैं) को तो बिलकुल नहीं मानना था। वापस कभी पाकिस्तान न आने की शर्त पर, सम्बन्ध तोड़ देने की शर्त पर उन्होंने उसे जाने दिया और दिसम्बर २०१० में दोनों ने शादी कर ली।
२००९ तक (तब मुझे नौकरी करते साल भर हो चुका था) दोनों ने शादी करना तय किया और लड़के के घर वाले तो जैसे तैसे मान गए (उसने यही कहा है) पर लड़की के पिता जो की वहाँ की आर्मी में general है (वो जनरैल कहतीं हैं) को तो बिलकुल नहीं मानना था। वापस कभी पाकिस्तान न आने की शर्त पर, सम्बन्ध तोड़ देने की शर्त पर उन्होंने उसे जाने दिया और दिसम्बर २०१० में दोनों ने शादी कर ली।
उन्हें हर १५ दिन में ढेरों दफ्तर के चक्कर लगाने पड़ते हैं, दिल्ली छोड़ के जाने पहले भी बहुत जगह applications डालतीं हैं।
एक बार (reception dinner पर) हम भी मिले थे उनसे।
उनकी हिंदी और उर्दू दोनों ही निहायत ख़राब है (अंग्रेज़ी-पंजाबी बेशक ठीक है) पर वो बॉलीवुड के गाने अच्छे गा लेती हैं। इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त कदम रस्ते.....:)
एक बार (reception dinner पर) हम भी मिले थे उनसे।
उनकी हिंदी और उर्दू दोनों ही निहायत ख़राब है (अंग्रेज़ी-पंजाबी बेशक ठीक है) पर वो बॉलीवुड के गाने अच्छे गा लेती हैं। इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त कदम रस्ते.....:)
दुआ है, उनका प्रेम यूँ ही परवान चढ़ता रहे...जिंदगी की राह में और कठिनाइयां ना आएँ..और जीवन खुशहाल बना रहे.
किसी रोमांचकारी फिल्म सा वाकया
अक्सर युवा मित्र अपनी समस्याएं रखते रहते हैं..और मैं भी agony aunt का अवतरण धारण कर उसे सुलझाने की पूरी कोशिश करती हूँ. पर नीलाभ की समस्या बड़ी अजीबोगरीब थी. उसने कहा 'मेरी शादी की पहली वर्षगाँठ आ रही है..पर समझ नहीं आ रहा किस दिन मनाऊं?' मेरे चौंकने पर वो हंसा और फिर बोला..'मैने अब तक बताया नहीं कि मेरी तीन बार शादी हुई है " मैं कुछ कहती इसके पहले ही उसने जोड़ दिया.."एक ही लड़की से तीन बार..."
और आगे जो उसने बताया वो किसी थ्रिलर से कम नहीं था.
नीलाभ और महेश बचपन से ही बेस्ट फ्रेंड्स हैं. उनका एक दूसरे के घर आना-जाना भी था. महेश की एक छोटी बहन मीना है...पर नीलाभ उस से ज्यादा बातें नहीं करता था. एक बार महेश बीमार था...उसका हाल पूछने के लिए नीलाभ ने फोन किया. महेश सो रहा था...फोन छोटी बहन ने उठाया...और इन दोनों ने देर तक बातें की...और दोनों के बीच प्रेम का अंकुर प्रस्फुटित होने लगा.. महेश को इनके रिश्ते से कोई एतराज नहीं था. उसके माता-पिता भी नीलाभ के साथ मीना के घूमने-फिरने से मना नहीं करते थे. गरबा हो या न्यू इयर पार्टी...नीलाभ देर रात मीना को उसके घर छोड़ता.
पर मीना के माता-पिता उसकी शादी कहीं और तय करने लगे. जब मीना ने नीलाभ से शादी की इच्छा जताई तो माता-पिता का तर्क था..."नीलाभ मराठी है..और हम सिन्धी..ये शादी नहीं हो सकती." जब नीलाभ के यह कहने पर 'फिर आपने हमें साथ घूमने-फिरने की इजाज़त क्यूँ दी?' उनका अजीबोगरीब तर्क था.."मीना तुम्हारे साथ सुरक्षित रहती...हमें तुम पर भरोसा था...तुमसे दोस्ती नहीं होती तो शायद किसी और लड़के से उसकी दोस्ती हो जाती और वो हमें पसंद नहीं था"
मीना का भाई महेश इन दोनों की शादी के पक्ष में था पर वो विदेश चला गया था..वहाँ से फोन से अपने माता-पिता को नाकाम समझाने की कोशिश करता रहता. मीना के माता-पिता किसी तरह नहीं माने और एक जगह मीना की बात पक्की कर दी. इतवार को लड़के वाले मीना के घर आने वाले थे. मीना ने ये बात नीलाभ को बतायी और शनिवार की रात नीलाभ फुल स्लीव की शर्ट और पैंट पहनकर तैयार हो गया .उसकी माँ ने पूछा भी...इतनी रात को फौर्मल्स पहनकर कहाँ जा रहे हो ? अब क्या कहता.शरीफ बनकर लड़की का हाथ मांगने जा रहा हूँ...:)
नीलाभ उनके घर पर जाकर सोफे पर जम गया...कि 'आपलोग जबतक हमारी शादी के लिए हाँ नहीं कहेंगे...मैं यहाँ से नहीं उठूँगा.' मीना भी अपने माता-पिता को मनाने की कोशिश करने लगी. पर उसके पैरेंट्स की एक ही रट थी...'हमारी जाति एक नहीं है..ये शादी नहीं हो सकती' नीलाभ के माता-पिता बहुत सीधे-सादे, आदर्शों वाले थे. अगर वो मीना को भगाकर घर ले आता तो वे कभी उसे घर में रहने की आज्ञा नहीं देते. नीलाभ ने इन सबकी चर्चा अपने मामाजी से की थी . वे मुंबई के पास ही एक गाँव में रहते थे. उन्होंने कहा था...'अगर कोई समस्या हो तो लड़की को लेकर मेरे घर आ जाना' यहाँ बात ना बनती देख...नीलाभ ..घर के बाहर मामा को मोबाइल से फोन करने गया...कि 'लगता है लड़की को लेकर आना होगा' पर वो जैसे ही घर से बाहर निकला.मीना के पैरेंट्स ने दरवाज़ा बंद कर दिया. काफी देर घंटी बजाता रहा...आखिर मीना ने किसी तरह दरवाज़ा खोल दिया..फिर से पैरेंट्स को मनाने का दौर शुरू हो गया. अब मीना की माँ चीखने चिल्लाने लगीं और कहा..'अगर तुम दोनों शादी करोगे तो मैं खुद को चाक़ू मार लूंगी' वे चाकू लाने किचन में गयीं...पीछे से उनके पति उन्हें रोकने गए. और इसी बीच नीलाभ ने कहा..'यही मौका है'..और वो मीना का हाथ पकड़ बाहर की तरफ भाग लिया...पीछे-पीछे उसके माता-पिता भी दौड़ते हुए आए. पर ये लोग सीढियां उतरते हुए...गेट पारकर कार में जा बैठे. मुड कर देखा तो मीना की माँ चिल्ला रही थीं..पर नीलाभ गाड़ी स्टार्ट कर दूर निकल गया.
रात के एक बज रहे थे और ये संयोग ही था कि वाचमैन ने उस दिन गेट नहीं बंद किया था वरना बारह बजे सोसायटी के गेट बंद कर दिए जाते थे. अब नीलाभ को चिंता हुई कि अकेले लड़की को लेकर इतनी रात में अकेले गाँव की तरफ जाना ठीक नहीं. उसने अपने एक कजिन को साथ चलने के लिए फोन किया जिसका घर रास्ते में पड़ता था. और ये भी कहा कि एक चप्पल लेते आना.क्यूंकि मीना नंगे पैर ही भागी थी.
और एक साधारण से टी शर्ट-ट्रैक पैंट और नौ नंबर की चप्पल में नीलाभ अपनी होने वाली दुल्हन को लेकर सुबह के चार बजे अपने मामा के घर पहुंचा. दूसरे दिन ही मंदिर में इन दोनों की शादी करा दी गयी. अब नीलाभ के पैरेंट्स को खबर की गयी. नीलाभ की माँ ने कहा बिना समाज के सामने उनकी शादी किए वो लड़की को अपने घर में नहीं रख सकतीं. मीना को एक रिश्तेदार के घर ठहराया गया....जल्दी से शादी की तैयारियाँ की गयीं और मराठी रस्मों से उनकी शादी कर दी गयी. अब मीना के पैरेंट्स को भी इनकी शादी स्वीकारनी पड़ी . पर उनका भी कहना था हमें भी अपने समाज में मुहँ दिखाना है...लिहाजा तीसरी बार उनकी सिन्धी ढंग से शादी हुई.
अब सब लोग खुश हैं और उनकी गोद में एक साल का एक बेटा भी है. अपनी पत्नी से काफी सोच-विचार के बाद मंदिर में की गयी पहली शादी वाली तारीख को ही नीलाभ ने शादी की वर्षगाँठ के रूप में मनाना निश्चय किया .
एक प्रेरक प्रेम-कथा
शैलेन्द्र बिलकुल हैपी-गो-लकी टाइप का लड़का है. जिंदगी से भरपूर. अपने परिवार के बहुत करीब है..अपनी बहन की बिटिया में तो उसकी जान बसती है. शायद ही दुनिया की कोई मशहूर किताब या मशहूर फिल्म उसने नहीं देखी हो. पर वो अपना ज्ञान किसी पर बघारता नहीं बल्कि दूसरों की बात ज्यादा ध्यान से सुनता है.उसकी बड़ी जल्दी किसी से दोस्ती हो जाती और उस दोस्ती को वो निभाता भी है.
उसकी एक चैट फ्रेंड थी कनु जो सिंगापुर में नौकरी करती थी. कनु की तबियत थोड़ी नासाज़ रहने लगी और वो सिंगापुर की नौकरी छोड़कर मुंबई आ गयी. उसे भयंकर एलर्जी हो गयी थी. उसे अनाज, दूध हर चीज़ से एलर्जी थी. सिर्फ चुनिन्दा फल और सब्जियां ही खा सकती थी. उसकी त्वचा की परत उतरने लगी थी. सूख कर काँटा हो गयी थी. सिर्फ मुलायम सूती कपड़े ही पहन पाती थी. बाहर आना-जाना बंद हो गया था. घर में कैद होकर रह गयी थी. इस दौरान उसका सबसे बड़ा संबल शैलेन्द्र था. वो उस से चैट करता...फोन पर बात कर के उसका मन लगाए रहता. कई बार छुट्टी लेकर हैदराबाद से मुंबई उस से मिलने भी आया.
कनु का बड़े से बड़े डॉक्टर का इलाज चल रहा था. पर कोई फायदा नहीं हो रहा था. उसके पूरे शरीर,.चेहरे तक की त्वचा की परत रुखी होका उतरती रहती. कोई मलहम दवा .फायदा नहीं कर रहा था. इसी तरह एक साल गुजर गए.और एक दिन शैलेन्द्र ने उसे प्रपोज़ कर दिया. कनु और उसके के माता-पिता भी अचंभित रह गए. कनु आईना भी देखने से घबराती थी. पर शैलेन्द्र का निश्चय पक्का था कि शादी तो कनु से ही करनी है. इसके छः महीने बाद...सारे दूसरे इलाज़ छोड़कर कनु ने नैचुरोपैथी अपनाया और उस से उसे फायदा होने लगा. अब शैलेन्द्र की जिद कि उसे सगाई करनी है. शादी भले ही कनु के पूरी तरह ठीक होने के बाद करे..पर सगाई अभी करनी है.
शैलेन्द्र तेलुगु और कनु कन्नड़...शैलेन्द्र दो भाइयों में बड़ा था उसके माता-पिता के भी उसकी शादी को लेकर कुछ अरमान थे पर उन्होंने अपने बेटे की इच्छा को सहर्ष स्वीकृति दे दी. कनु ना तो अपनी सगाई में रेशमी साड़ी ही नहीं पहन पायी...ना ही कोई जेवर. और शैलेन्द्र उसे अंगूठी भी नहीं पहना सका..क्यूंकि उस वक़्त भी उसे किसी भी मेटल से एलर्जी थी. शैलेन्द्र ने अपनी सगाई की फोटो मुझे भेजी थी.....कनु के नाक-नक्श बहुत सुन्दर थे..पर कई जगह से त्वचा रूखी होकर उखड़ी हुई थी. मेरे मुहँ से निकल ही गया.." she is lucky " पर शैलेन्द्र ने तुरंत जोर देकर कहा... "No I am lucky to hv her in my life. She is a gem of a person "
एक साल बाद कनु के पूरी तरह ठीक हो जाने पर उनकी शादी हो गयी. कनु ने हैदराबाद में एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी कर ली..और अभी तीन महीने पहले वे प्यारे से बेटे के माता-पिता बन गए हैं.