गुरुवार, 27 जून 2013

मुस्कुराने का कर्ज़

आज Zee tv पर एक सीरियल या कहें रियलिटी शो देख रही थी Connected HUM TUM ...ये वही शो है ,जो मुझे भी ऑफर हुई  थी और मैंने मना कर दिया था {अब ये बताने से क्यूँ चूकें हम :)} खैर, हमें अपने निर्णय पर अफ़सोस  तो पहले भी नहीं था और अब ये शो देखकर तो जैसे एक सुकून की सांस ले ली ,यूँ कैमरे का हर वक़्त अपनी ज़िन्दगी में झाँक कर देखना मंजूर नहीं था, मुझे . वैसे, जैसा मुझे बार बार आश्वस्त करने की कोशिश की थी उन्होंने... सच में इस शो में कोई मिर्च मिसाले नहीं हैं बल्कि औरतों के मन में क्या चलता रहता है ,वे क्या सोचती हैं, उनकी ज़िन्दगी क्या है ,किसी सिचुएशन पर कैसे रिएक्ट करती हैं...यही सब है. 

साथ में इस शो के होस्ट 'अभय देओल ' पुरुषों के व्यक्तित्व का भी विश्लेषण करते जाते हैं.  एक मजेदार बात कही उन्होंने कि "पुरुषों की 'सेलेक्टिव हियरिंग पावर' होती है यानी अगर उनसे तीन वाक्य कहा जाए तो वे उसमें से दो शब्द अपने मतलब का या अपने मन से चुन कर बस उसी पर प्रतिक्रया देंगे " और उसी शो में से कुछ दृश्य रीपीट कर वे, इसे दिखाते भी हैं .खैर ये उस शो के होस्ट का कहना है, गलत भी हो सकता है सही भी...हमें स्त्री-पुरुष के विवाद में नहीं पड़ना ..आज देखा और याद रह गया सो जिक्र कर दिया (अब ब्लॉग तो है ही इसीलिए ) 

मैं, इस शो के विषय में नहीं..पर इस शो के बहाने कुछ और चर्चा करना चाहती थी . इस शो की एक प्रतिभागी पल्लवी बर्मन है . सुन्दर है...स्मार्ट है..एक कंपनी में ऊँचे पद पर काम करती है. (और बहुत मेहनत से काम करती है ,अक्सर रात के दस बज जाते हैं, काम ख़त्म करते ) शो की शुरुआत में वो एक चहकती हुई, ज़िन्दगी से भरपूर लड़की थी जो अपने प्रेम विवाह  को लेकर बहुत उत्साहित थी. हर वक़्त मुस्कुराती रहती थी और अपनी शादी के लिए  जेवर, लहंगे, कपड़े की ही शॉपिंग में व्यस्त रहती.

अब शादी हो गयी है . रोज ऑफिस से घर आते वक़्त गिल्ट महसूस करती है कि 'रात के दस बज गए, बाकी सबलोग घर पर आ गए हैं ,मुझे आज भी देर हो गयी .' 

पति अक्सर देर रात तक अपने दोस्तों और उनकी पत्नियों के साथ पार्टी में शरीक होता है, वीकेंड्स पर लोनावाला, खोपोली ,फार्महाउस पर  जाता है और पल्लवी से पूछे बिना, उसकी तरफ से भी 'हाँ' कर देता है. सारे दिन ऑफिस में थकी पल्लवी मन न होते  हुए भी पति के साथ देर रात पार्टी में जाती है कि कहीं उसे बुरा न लगे .

पति और ससुर का बिजनेस है ...घर  में ऐशो आराम की चीज़ें , नौकर चाकर सब हैं .फिर भी वो घर की थोड़ी साफ़-सफाई करती है और पूरे वक़्त कोशिश में लगी रहती है कि कोई ये न कह दे कि वो नौकरी के चक्कर में घर का अच्छी  तरह ध्यान नहीं रख रही. ससुर को खुश करने के लिए उनके बर्थडे पर एक शानदार पार्टी का आयोजन करती है, सबको आमंत्रित कर लेती है . ढेर सारी शॉपिंग करती है ,पर जन्मदिन वाले दिन की सुबह ससुर बताते हैं कि ,वे कल रात डॉक्टर के पास गए थे और डॉक्टर ने उन्हें परहेज करने के लिए कहा  है. पार्टी कैंसल हो जाती है .

पल्लवी के पति और ससुर ,पल्लवी से अपनी नौकरी छोड़, उनका बिजनेस ज्वाइन करने के लिए कहते हैं. पल्लवी दुविधा में है कि अपनी नौकरी छोड़े या नहीं? पति उसके तुरंत 'हाँ' न कहने से नाराज़ है, और कहता है 'वो पैसों के पीछे भाग  रही है ' दोनों में तनाव बढ़ता जा रहा है, और अब हर वक़्त पल्लवी की आँखें आंसू भरी होती हैं.

ये हंसती- मुस्कुराती पल्लवी के जीवन को क्या हो गया ? और ये सिर्फ अकेली पल्लवी की ही कहानी नहीं है. मैं अपने बच्चों को लेकर एक डॉक्टर के पास जाती थी. वो डॉक्टर भी बहुत खुशमिजाज़ थी. हर वक़्त कलफ लगी कॉटन की कड़क साड़ी पहने अपनी  उजली हंसी के साथ मिलती.  कुछ दिनों बाद उसकी शादी हुई...वो थकी थकी सी बुझी बुझी सी रहने लगी. चेहरे की  उदासी ,उसके कपड़ों तक फ़ैल गयी थी. कभी कभी बुझी सी मुस्कान लिए कह भी देती.."शादी नहीं करनी चाहिए " उसे क्या परेशानी थी ,यह तो नहीं पता पर कुछ तो था, जिसने उसकी हंसी  गुम कर दी. 

पर इन सब परेशानी की वजह क्या ये खुद नहीं  है? क्यूँ ये अपने को सुपरवुमैन समझती  हैं? क्यूँ इस कोशिश में रहती हैं कि वे खुद को एक अच्छी बहू,एक अच्छी गृहणी, एक अच्छी पत्नी , एक अच्छी माँ साबित करें . जबकि उनके पास भी वही दो हाथ,दो पैर और दिन के चौबीस घंटे होते हैं. क्यूँ वे सबको खुश रखना चाहती हैं और नहीं रख पातीं तो फिर उदास रहने लगती हैं. 

वैसे नए परिवेश, नए घर, नए व्यक्ति के साथ ज़िन्दगी शुरू करने में कुछ समझौते तो करने ही पड़ेंगे ,पर ये समझौते ऐसे तो न हों कि इनकी हंसी ख़ुशी ही उसकी भेंट चढ़ जाए . पर लगता है, अगली दो तीन पीढ़ी की स्त्रियों को ये कुर्बानी देनी ही पड़ेगी. आज भी किसी भी स्त्री से सबसे पहले एक अच्छी  गृहणी, बहू , पत्नी, माँ बनने की ही अपेक्षा  की जाती है .इसके साथ ही वो एक सफल डॉक्टर, इंजिनियर, टीचर, अफसर  हो तो सोने पर सुहागा. वरना 'खरा सोना' तो उनका 'घरेलूपन' ही है. 

 कई बार सुनने में आता है, इतनी सफल  डॉक्टर/टीचर/अफसर  है पर सास-ससुर को देखते ही सर पर पल्लू रख कर पैर छूती है. पति से पूछे बगैर कोई काम नहीं करती, त्योहारों पर पकवान  खुद बनाती है ...आदि आदि . बड़ों को इज्जत देना , घर की  देखभाल करना प्रशंसनीय  है ..पर इस बात को इतना महत्व दिया जाता है कि उसके तले उनका दुसरा और असली रूप गौण हो जाता है. और अगर स्त्रियाँ ये सब न करें तो सुनने को मिलेगा, क्या फायदा  इस पढ़ाई-लिखाई का,अफसरी का ..घर पर तो ध्यान ही नहीं देती . 
यही वजह है कि आजकल की नौकरीपेशा महिलायें इस कदर पिस रही हैं. हर मोर्चे पर खुद को अव्वल साबित करने के चक्कर में उनका वजूद टुकड़े टुकड़े हुआ जा रहा है.
बस, अब आने वाली पीढियां उनका हाल देख यही तय करें कि अपनी ज़िन्दगी, वे अपनी मर्जी, अपनी ख़ुशी से जियेंगी , उन्हें किसी के सामने खुद को साबित करने की जरूरत नहीं है. उनके  पास भी सबकी तरह दो हाथ ,दो पैर और एक दिमाग है और वो दिमाग किसी मायने में कम नहीं है...अपने चौबीस घंटे वे  कैसे बिताएं ,ये वे खुद तय करेंगी. उनके होठों की मुस्कराहट कोई कर्ज़ नहीं , जिसे वे किस्तों में चुकाती रहें .

गुरुवार, 20 जून 2013

ख़ूबसूरत होने की सज़ा

ओमर बोरकन अल गाला 
यह खबर तो पुरानी हो गयी है, पर इसी खबर के बहाने कुछ लिखना चाह  रही थी, पर आजकल समय ज़रा रूठा रूठा सा है, हमसे और हमें उसे मनाने का भी समय नहीं मिल रहा :(
 खैर वैसे भी बहुत लोगों को इस खबर की खबर भी नहीं होगी. क्यूंकि यह  खबर बीस बाईस वर्ष की अंग्रेजीदां लड़कियों के बीच ज्यादा मशहूर हुई . 
"ओमर बोरकन अल गाला " का नाम अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर बहुत  प्रसिद्द हुआ .वे विशव के 'पोस्टर बॉय' बन गए . जब उन्हें "Jenadrivah Heritage & Cultural Festival in Riyadh. " में भाग लेने से रोक दिया गया .(  मीनाक्षी जी एवं दिगंबर नासवा जी जरूर अवगत होंगे इस खबर से ) 
पर उन्हें क्यूँ नहीं भाग लेने दिया गया ?? क्यूंकि वे बहुत ज्यादा ख़ूबसूरत हैं . हालांकि अगर वे इस फेस्टिवल में भाग ले ही लेते तो क्या हो जाता ? क्या लड़कियां/औरतें उनपर अटैक कर देतीं ??(वो भी सऊदी में ??)
पर इस तरह उस फेस्टिवल से निकाले जाने पर उन्हें फायदा ही  हुआ. नेट पर यह खबर आग की तरह फैली और वे रातों रात स्टार बन गए ...धडाधड उनकी तस्वीरें डाउनलोड की जाने लगीं. You tube पर उनके इंटरव्यू को लाखों हिट्स मिले. उनका एक फेसबुक पेज भी बन गया जिसे वन मिलियन लोगों ने लाइक किया . उन्हें स्त्रियों की प्रगति से सम्बंधित एक कैलेण्डर के लिए साइन कर लिया गया ,एक फिल्म में काम करने का मौक़ा मिल गया और जन्मदिन पर एक अनाम प्रशंसिका ने बिना सामने आये ,एक मर्सिडीज़ भी गिफ्ट कर दी. 

खैर यहाँ तो ख़ूबसूरत होने की सज़ा  एक वरदान ही साबित हुई. पर अक्सर ऐसा नहीं होता. सुन्दरता एक अभिशाप ही बन जाती है. या फिर कहें सुन्दरता एक दुधारी तलवार की तरह है. लोगों का अटेंशन ..उनकी प्रशंसा भी खूब मिलती है पर लोग प्रशंसा के साथ थोड़ी इर्ष्या का भी  मिला-जुला भाव रखते हैं. लेकिन  उसके दिल का हाल कोई नहीं जानता. 

मेरे हॉस्टल में एक बहुत ही सुन्दर लड़की थी . हम सब छुट्टियों में घर जाने को उत्सुक होते पर वो खुश तो होती साथ ही थोड़ी दुखी भी. कारण ??...उसकी जॉइंट फैमिली थी. एक तो वह बहुत सुन्दर थी, दूसरे  उसके  पिता उसे हॉस्टल में रखकर पढ़ा रहे थे. उसके  चाचा  की लडकियां, पूरे समय उसपर व्यंग्य  करती रहतीं, "अरे तुम्हे क्या तैयार होना है..तुम तो ऐसे ही अच्छी  लगोगी.." कपड़े चुनते वक्त भी उसकी बारी बाद में आती.."तुम पर तो कुछ भी अच्छा लगेगा ...हमें सोचना पड़ता है " वो कहती , "हर वक्त खुद को नीचा दिखाना पड़ता है....उनलोगों को खुश करने की कोशिश करनी पड़ती है, यह दिखाना पड़ता है कि हम तो कुछ भी नहीं."

एक सहेली है, जिसे कॉलेज में ब्यूटी क्वीन  कहा जाता था . अभी वो बी.ए. में ही थी, पर उसकी माँ को सुनना पड़ता ," आपको क्या फ़िक्र करनी...बेटी तो आपकी सुन्दर है...घर बैठे रिश्ता आ जायेगा " और जब उसने बी. ए. कर लिया तो माता-पिता को कोई जल्दी नहीं थी पर पूरे महल्ले के पेट में दर्द , "आपकी बेटी तो इतनी सुन्दर है इसकी शादी क्यूँ नहीं हो रही??" 

शादी के बाद के भी उसके अनुभव बहुत अच्छे नहीं रहे. ससुराल में ननदें खफा कि 'भाभी उनसे ज्यादा  रूपवती  है '. उसके हर काम में मीन मेख निकाली जाती और ताना दिया जाता  कि 'केवल रूप से क्या होता है' पति भी थोड़े शक्की निकले, वह देवरों से पति के  के दोस्तों से खुलकर हंस-बोल नहीं पाती थी. कोई भी उस से बात करता तो उसके पति को लगता, "उस व्यक्ति के मन में उनकी पत्नी के लिए कुछ  और भावनाएं हैं " अक्सर कहा जाता है कि "सांवली लड़कियों की किस्मत बहुत अच्छी  होती है, उनके पति उन्हें बहुत प्यार करते हैं." मेरी उस सहेली ने इस कथन पर बहुत सोच विचार कर के ये निष्कर्ष निकाला कि ये सच होता है पर इसके पीछे कारण ये है कि "पति ऐसी पत्नियों के लिए बहुत प्रोटेक्टिव होते हैं . उन्हें हमेशा ख्याल रहता है,उनकी पत्नी साधारण शक्ल-सूरत वाली है, उसे कोई कुछ न कह दे ,इसलिए उसके लिए ढाल बने खड़े रहते हैं .खुद ही तारीफ़ करते हैं. जबकि सुन्दर स्त्री के पति को मालूम है कि उनकी पत्नी को तो सबकी प्रशंसा ही मिलने वाली है ,इसलिए वे अक्सर उसकी आलोचना करते ही पाए जाते हैं. (अब ये उसके निजी विचार हैं , और मैंने इतना मनन  नहीं किया है,इस पर ) 
पर उसक बातों में सच्चाई झलकती है.

एक और बहुत ही ख़ूबसूरत सहेली है, उसके पति साल में आठ महीने शिप पर रहते हैं. ज्यादातर पारिवारिक समारोह या दोस्तों की पार्टी , उसे अकेले ही अटेंड करनी पड़ती हैं. पर वह इच्छा होने पर भी ज्यादा सजती संवरती  नहीं. साधारण से कपड़े पहनती है, और  पार्टी में या किसी समारोह में अपने हमउम्र वालों से ज्यादा बातें नहीं करती,अक्सर बच्चों के बीच बैठी रहती  है. महिलायें खुले मन से नहीं मिलतीं और अगर  पुरुषों  से बात करती है तो उनकी पत्नियां असुरक्षित महसूस करने लगती हैं. 

और यह सब सदियों से चला आ रहा है. एक मेरे पहचान की महिला हैं , उम्र की  ढलान पर हैं पर पता चलता है कि अपने जमाने में बहुत  ख़ूबसूरत रहीं होंगी. जब भी कोई गेट टुगेदर होता है , इस बात का जिक्र करना कभी नहीं भूलतीं कि उनके पति उन्हें गहरे रंग के कपड़े नहीं पहनने देते थे कि कहीं वे और ज्यादा ख़ूबसूरत न लगने लगें हमेशा हलके, उदास रंग की साड़ियाँ ही लाते थे .जब उनकी बेटियाँ बड़ी हो गयीं तो पिता से जिद कर माँ के लिए  गहरे रंग की साड़ियाँ  लाने लगीं. उन्हें छत  पर जाने, बालकनी से झाँकने की इजाज़त नहीं थी. जबकि उनके पति बहुत पढ़े-लिखे और यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर थे (अब रिटायर हो गए हैं )

ऐश्वर्या राय को कोई पसंद करे या न करें पर उनकी खूबसूरती को कोई नकार नहीं सकता. कई बार जब टी.वी. पर फ़िल्मी पार्टियों  की झलकी दिखाई जाती थी उसमे बाकी हिरोइन्स तो एक ग्रुप बना कर आपस में हंसती बोलतीं नज़र आतीं थीं . ऐश्वर्या के साथ होते मोटे मोटे बदसूरत निर्माता .(आम तौर पर ऐसा मैं नहीं लिखती पर इस वक़्त यही लिखने का मन हो रहा है )(शादी के बाद तो खैर ऐश्वर्या को  अपने पति और ससुर की कम्पनी मिल जाती  है ) करण जौहर के शो "कॉफ़ी विद करण' में भी..अक्सर दो स्टार एक साथ आते  हैं, दीपिका- सोनम, रानी- प्रियंका ....शाहरुख़ -काजोल 'हेमा मालिनी -जीनत अमान' पर खबर थी कि ऐश्वर्या के साथ आने को कोई तैयार नहीं हुआ. ऐश्वर्या के साथ कोई स्टार नहीं आया ...बल्कि उनके साथ थे 'संजय लीला भंसाली '. 

एक उलझन  इन सुन्दर बालाओं के साथ यह भी है, कोई उनसे सच्ची दोस्ती या सच्चा प्रेम करे ,तब भी ये विश्वास नहीं कर पातीं कि उक्त व्यक्ति सचमुच अपनी भावनाओं के लिए ईमानदार है या सिर्फ उनकी खूबसूरती देख  उनकी तरफ आकृष्ट है.

यदा कदा विदेशी ख़ूबसूरत बालाओं के मन का दर्द भी पढने को मिला, वे कहती हैं, "Then there is the judgment that if a woman is beautiful she is dumb.But the bad side is that allot of people have the idea that you are stupid, self obsessed or conceited. Which is not true. "

एक ख़ूबसूरत लड़की जब चौदह पंद्रह साल की थी ,उसे इतने unwanted attention  मिले कि वो घबरा ही गयी, लोगों की हरकतों से घबराकर  वह डिप्रेशन में चली गयी .वो कहती है ," .  After that I went from 115 pounds to 145 in about 6 weeks ... Size 4 to size 14. It was a big change. All of a sudden I saw how superficial people were. Men were not nearly as nice to me. However, I found that girls liked me a whole lot more and when boys did give me their attention it was for what came out of my mouth not how I looked. I was this bigger person until about 18. It was an unconscious protection. Basically I just couldn't handle the attention and feel safe and secure with it. It was very hard to not be able to attract the boys I was interested in - no dates for school dances or really anything until 17 but it kept me safe - no more advances from creepy older men,  there were perks to being protected by fat and acne.

एक मॉडल ने कहा , "Most other people who work in the fashion industry (and there are exceptions, of course) treat these girls not only as if they have no brain, but as if they have no feelings."

ये सुन्दरता की देवियाँ भले ही लगें पर अन्दर से एक आम इंसान ही होती हैं. उन्हें भी सबके साथ मिलजुलकर हंसने बोलने  का मन  होता है .  बेफिक्र होकर  एक सामान्य सी ज़िन्दगी बिताने का मन होता है ,पर उन्हें अपने आस-पास के लोगों के प्रति,अपने व्यवहार के  प्रति चौकन्ना रहना पड़ता है. ये सुन्दरता उनके लिए वरदान कम अभिशाप ज्यादा बन जाती  है.

शुक्रवार, 14 जून 2013

आज पढने के बदले सुन लें कहानी

जब BIG FM 92.7  पर 'याद शहर' प्रोग्राम शुरू हुआ था तो एक ब्लॉगर  मित्र ने इसके विषय में बताया था .और मझसे कहा था 'आप कहानियाँ लिखती हैं यहाँ कहानी भेज सकती हैं ' पर मैंने प्रोग्राम सुना भी नहीं था और  मेरी कुछ समझ में नहीं आया . फिर ये प्रोग्राम काफी हिट हुआ . You Tube पर सारी प्रसारित कहानियाँ अपलोड की गयीं . 

'अनु सिंह चौधरी' से मुलाक़ात हुई और उन्होंने भी इस प्रोग्राम की चर्चा की और मुझसे कहानियाँ  भेजने के लिए कहा . तब मुझे ख्याल आया कि वे मित्र इसी प्रोग्राम के विषय में बात कर रहे थे . मेरी एक फ्रेंड भी ये प्रोग्राम बड़े शौक से सुनती है . कहानी  और उसके बीच बीच में कहानी  के कथ्य पर आधारित बजते दिलकश गाने उसे बहुत पसंद है. उसने भी बहुत उकसाया .

पर किसी भी प्रोग्राम में समय की सीमा  होती है . कहानी की भी शब्द सीमा निर्धारित होती है. और मैं कितना लम्बा लिखती  हूँ, ये मेरे पाठक जानते ही हैं . :) .शब्द सीमा में बंध कर लिखना  ,मेरे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. और यहाँ कहानी  को छः भागों  में बांटना होता है, खैर खुद को डांट-डपट कर ये चुनौती भी स्वीकारी .कहानी भेज दी . उन्हें पसंद आयी  

पर एक मुश्किल पार्ट और है .इस प्रोग्राम के लिए कहानियां  लिखने वालों की एक बैठक होती है.जिसे मंडली कहते हैं. वहाँ लोग बारी बारी से अपनी  कहानियाँ पढ़ते हैं और फिर बाक़ी सब उस कहानी पर अपनी बेबाक राय देते हैं. और मुझसे चाहे जितनी कहानियां लिखवा लें ,किसी कहानी के दोष गुण बतलाना ,उसपर अपने विचार देना मेरे लिए बहुत कठिन  होता है. पर वहाँ, हर कहानी पर आपसे विचार पूछे ही जाते हैं...और बताना ही होता है  :( वहाँ 'सुन्दर प्रस्तुति'...'ख़ूबसूरत लेखन ' कह कर बचा नहीं जा सकता :)

आकाशवाणी पर मैं भी कहानियाँ पढ़ती हूँ .पर वहाँ समय सीमा और भी कम है .और आकाशवाणी में मुझसे कभी कुछ कहा नहीं  गया पर मैंने खुद के लिए ही अलिखित नियम बना लिये हैं वहाँ  मैं सिर्फ सामाजिक सरोकार से जुड़ी कहानियां ही पढ़ती हूँ . पर यहाँ तो इस प्रोग्राम में कहा ही जाता है , '92.7. BIG FM पर आप सुन रहे हैं "प्यार  के किस्से  यादो का इडियट बॉक्स विद निलेश मिश्रा ' यानि  अपनी कल्पना के घोड़े के लगाम को खुला छोड़ दीजिये पर हाँ, रोचक दौड़ होनी चाहिए ये तो पहली शर्त है ही. 

दो कहानियों को अब तक निलेश जी अपनी आवाज़ दे चुके हैं. और उनकी आवाज़ ,उनके पढने के अंदाज के कितने फैन हैं यह तो फेसबुक पर याद शहर के पेज पर एक नज़र डाल कर ही पता चल जाता है. कहानी में जैसे जान  आ जाती है और अपनी कहानी ही नयी सी लगने लगती है. 

ब्लॉग पर अपना देखा -लिखा-पढ़ा-छापा  सब कुछ सहेज कर रखने की आदत है. 
सो ये दोनों लिंक भी सहेज लिए . (आगे भी डालती रहूंगी ) फेसबुक पर तो मित्रो ने सुन ही ली है (जिन्होंने सुनना चाहा होगा )

और उन ब्लॉग दोस्तों के लिए ख़ास, जो मेरी लम्बी कहानियाँ पढने से घबराते  हैं....वे यहाँ सुन सकते हैं, यानि कि रश्मि रविजा की कहानी से बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन है :) :)

अनकहा सच 



पहचान तो थी 

फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

यह संयोग है कि मैंने कल फ़िल्म " The Wife " देखी और उसके बाद ही स्त्री दर्पण पर कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग सुनी ,जिसमें सुधा अरोड़ा, मध...