आज Zee tv पर एक सीरियल या कहें रियलिटी शो देख रही थी Connected HUM TUM ...ये वही शो है ,जो मुझे भी ऑफर हुई थी और मैंने मना कर दिया था {अब ये बताने से क्यूँ चूकें हम :)} खैर, हमें अपने निर्णय पर अफ़सोस तो पहले भी नहीं था और अब ये शो देखकर तो जैसे एक सुकून की सांस ले ली ,यूँ कैमरे का हर वक़्त अपनी ज़िन्दगी में झाँक कर देखना मंजूर नहीं था, मुझे . वैसे, जैसा मुझे बार बार आश्वस्त करने की कोशिश की थी उन्होंने... सच में इस शो में कोई मिर्च मिसाले नहीं हैं बल्कि औरतों के मन में क्या चलता रहता है ,वे क्या सोचती हैं, उनकी ज़िन्दगी क्या है ,किसी सिचुएशन पर कैसे रिएक्ट करती हैं...यही सब है.
साथ में इस शो के होस्ट 'अभय देओल ' पुरुषों के व्यक्तित्व का भी विश्लेषण करते जाते हैं. एक मजेदार बात कही उन्होंने कि "पुरुषों की 'सेलेक्टिव हियरिंग पावर' होती है यानी अगर उनसे तीन वाक्य कहा जाए तो वे उसमें से दो शब्द अपने मतलब का या अपने मन से चुन कर बस उसी पर प्रतिक्रया देंगे " और उसी शो में से कुछ दृश्य रीपीट कर वे, इसे दिखाते भी हैं .खैर ये उस शो के होस्ट का कहना है, गलत भी हो सकता है सही भी...हमें स्त्री-पुरुष के विवाद में नहीं पड़ना ..आज देखा और याद रह गया सो जिक्र कर दिया (अब ब्लॉग तो है ही इसीलिए )
मैं, इस शो के विषय में नहीं..पर इस शो के बहाने कुछ और चर्चा करना चाहती थी . इस शो की एक प्रतिभागी पल्लवी बर्मन है . सुन्दर है...स्मार्ट है..एक कंपनी में ऊँचे पद पर काम करती है. (और बहुत मेहनत से काम करती है ,अक्सर रात के दस बज जाते हैं, काम ख़त्म करते ) शो की शुरुआत में वो एक चहकती हुई, ज़िन्दगी से भरपूर लड़की थी जो अपने प्रेम विवाह को लेकर बहुत उत्साहित थी. हर वक़्त मुस्कुराती रहती थी और अपनी शादी के लिए जेवर, लहंगे, कपड़े की ही शॉपिंग में व्यस्त रहती.
अब शादी हो गयी है . रोज ऑफिस से घर आते वक़्त गिल्ट महसूस करती है कि 'रात के दस बज गए, बाकी सबलोग घर पर आ गए हैं ,मुझे आज भी देर हो गयी .'
पति अक्सर देर रात तक अपने दोस्तों और उनकी पत्नियों के साथ पार्टी में शरीक होता है, वीकेंड्स पर लोनावाला, खोपोली ,फार्महाउस पर जाता है और पल्लवी से पूछे बिना, उसकी तरफ से भी 'हाँ' कर देता है. सारे दिन ऑफिस में थकी पल्लवी मन न होते हुए भी पति के साथ देर रात पार्टी में जाती है कि कहीं उसे बुरा न लगे .
पति और ससुर का बिजनेस है ...घर में ऐशो आराम की चीज़ें , नौकर चाकर सब हैं .फिर भी वो घर की थोड़ी साफ़-सफाई करती है और पूरे वक़्त कोशिश में लगी रहती है कि कोई ये न कह दे कि वो नौकरी के चक्कर में घर का अच्छी तरह ध्यान नहीं रख रही. ससुर को खुश करने के लिए उनके बर्थडे पर एक शानदार पार्टी का आयोजन करती है, सबको आमंत्रित कर लेती है . ढेर सारी शॉपिंग करती है ,पर जन्मदिन वाले दिन की सुबह ससुर बताते हैं कि ,वे कल रात डॉक्टर के पास गए थे और डॉक्टर ने उन्हें परहेज करने के लिए कहा है. पार्टी कैंसल हो जाती है .
पल्लवी के पति और ससुर ,पल्लवी से अपनी नौकरी छोड़, उनका बिजनेस ज्वाइन करने के लिए कहते हैं. पल्लवी दुविधा में है कि अपनी नौकरी छोड़े या नहीं? पति उसके तुरंत 'हाँ' न कहने से नाराज़ है, और कहता है 'वो पैसों के पीछे भाग रही है ' दोनों में तनाव बढ़ता जा रहा है, और अब हर वक़्त पल्लवी की आँखें आंसू भरी होती हैं.
ये हंसती- मुस्कुराती पल्लवी के जीवन को क्या हो गया ? और ये सिर्फ अकेली पल्लवी की ही कहानी नहीं है. मैं अपने बच्चों को लेकर एक डॉक्टर के पास जाती थी. वो डॉक्टर भी बहुत खुशमिजाज़ थी. हर वक़्त कलफ लगी कॉटन की कड़क साड़ी पहने अपनी उजली हंसी के साथ मिलती. कुछ दिनों बाद उसकी शादी हुई...वो थकी थकी सी बुझी बुझी सी रहने लगी. चेहरे की उदासी ,उसके कपड़ों तक फ़ैल गयी थी. कभी कभी बुझी सी मुस्कान लिए कह भी देती.."शादी नहीं करनी चाहिए " उसे क्या परेशानी थी ,यह तो नहीं पता पर कुछ तो था, जिसने उसकी हंसी गुम कर दी.
पर इन सब परेशानी की वजह क्या ये खुद नहीं है? क्यूँ ये अपने को सुपरवुमैन समझती हैं? क्यूँ इस कोशिश में रहती हैं कि वे खुद को एक अच्छी बहू,एक अच्छी गृहणी, एक अच्छी पत्नी , एक अच्छी माँ साबित करें . जबकि उनके पास भी वही दो हाथ,दो पैर और दिन के चौबीस घंटे होते हैं. क्यूँ वे सबको खुश रखना चाहती हैं और नहीं रख पातीं तो फिर उदास रहने लगती हैं.
वैसे नए परिवेश, नए घर, नए व्यक्ति के साथ ज़िन्दगी शुरू करने में कुछ समझौते तो करने ही पड़ेंगे ,पर ये समझौते ऐसे तो न हों कि इनकी हंसी ख़ुशी ही उसकी भेंट चढ़ जाए . पर लगता है, अगली दो तीन पीढ़ी की स्त्रियों को ये कुर्बानी देनी ही पड़ेगी. आज भी किसी भी स्त्री से सबसे पहले एक अच्छी गृहणी, बहू , पत्नी, माँ बनने की ही अपेक्षा की जाती है .इसके साथ ही वो एक सफल डॉक्टर, इंजिनियर, टीचर, अफसर हो तो सोने पर सुहागा. वरना 'खरा सोना' तो उनका 'घरेलूपन' ही है.
कई बार सुनने में आता है, इतनी सफल डॉक्टर/टीचर/अफसर है पर सास-ससुर को देखते ही सर पर पल्लू रख कर पैर छूती है. पति से पूछे बगैर कोई काम नहीं करती, त्योहारों पर पकवान खुद बनाती है ...आदि आदि . बड़ों को इज्जत देना , घर की देखभाल करना प्रशंसनीय है ..पर इस बात को इतना महत्व दिया जाता है कि उसके तले उनका दुसरा और असली रूप गौण हो जाता है. और अगर स्त्रियाँ ये सब न करें तो सुनने को मिलेगा, क्या फायदा इस पढ़ाई-लिखाई का,अफसरी का ..घर पर तो ध्यान ही नहीं देती .
यही वजह है कि आजकल की नौकरीपेशा महिलायें इस कदर पिस रही हैं. हर मोर्चे पर खुद को अव्वल साबित करने के चक्कर में उनका वजूद टुकड़े टुकड़े हुआ जा रहा है.
बस, अब आने वाली पीढियां उनका हाल देख यही तय करें कि अपनी ज़िन्दगी, वे अपनी मर्जी, अपनी ख़ुशी से जियेंगी , उन्हें किसी के सामने खुद को साबित करने की जरूरत नहीं है. उनके पास भी सबकी तरह दो हाथ ,दो पैर और एक दिमाग है और वो दिमाग किसी मायने में कम नहीं है...अपने चौबीस घंटे वे कैसे बिताएं ,ये वे खुद तय करेंगी. उनके होठों की मुस्कराहट कोई कर्ज़ नहीं , जिसे वे किस्तों में चुकाती रहें .