दुनिया में नए नए लोगों से मुलाक़ात होती है . कुछ
लोगों से आपके विचार मिलते हैं ,आपकी दोस्ती होती है फिर दोनों अपने अपने
काम में उलझ जाते हैं ,दोस्ती की डोर इलास्टिक सी खींच जाती है पर टूटती
नहीं और जब एक झटके से एक सिरा छूट जाता है, तब दूसरा सिरा थामे रहने वाले
को इतनी गहरी चोट लगती है कि उम्रभर उस से उबरना असंभव हो जाता है.
ऐसा ही कुछ अपने अज़ीज़ मित्र प्रसिद्द मनोविज्ञानिक 'डॉ. कौसर अब्बासी 'के जाने के बाद महसूस हो रहा है, जिन्हें नियति के क्रूर हाथों ने चालीस बसंत भी नहीं देखने दिए और एक मैसिव हार्ट अटैक देकर हम सबसे दूर कर दिया .
करीब सात वर्ष पहले मैंने ऑर्कुट पर एक कम्युनिटी ज्वाइन की थी, 'BOOK LOVERS COMMUNITY '. ..उस कम्युनिटी में लोग अपनी पढ़ी किताबों पर अपने विचार रखते. एक एक पुस्तक पर दिनों चर्चा चला करती थी .वहीँ डॉ. कौसर से किताबों पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ .उन्होंने मुझे Brida और Many Lives Many Masters किताब पढने की सलाह दी. मैंने सीधा कह दिया, "मैं इस तरह की किताबें नहीं पढ़ती" फिर भी उन्होंने बहुत समझाकर कहा, "पढ़ कर देखिये रिग्रेट नहीं करेंगी " .और सचमुच अफ़सोस नहीं हुआ. मैंने भी कई लोगो को उस किताब को पढने की सलाह दी .मेरे ब्लॉग की एक पाठिका ने तो हाल में बताया कि उसने वो किताब पढ़कर फेसबुक पर ' Brian Weiss ' के fans की एक कम्य्नुनिटी भी ज्वाइन की और Brian Weiss से एक बार चैट भी की (और हमें पता भी नहीं ऐसी कोई कम्युनिटी भी है ). किताबों पर काफी बातें हुईं और कौसर और मैं अच्छे दोस्त बन गए .
उन्ही दिनों मेरे बेटे टीनेज में प्रवेश कर रहे थे और उनकी बदलती आदतें , उनके tantrums से मैं अक्सर दुखी और परेशान होकर कौसर से जिक्र करती. दोस्त होने के नाते सहानुभूति के दो शब्द की अपेक्षा रखती थी, पर वो सीधा कहते ,"सॉरी मैम...आइ विल आलवेज़ बी विद चिल्ड्रेन " और दस मिनट में ही उनकी बातों से मुझे बच्चों के नज़रिए से चीज़ों को देखने में मदद मिलती और मन शांत हो जाता .कभी मैं कह भी देती , "आप मेरे दोस्त हैं या बच्चों के?.हमेशा उनका पक्ष लेते हैं " वे कहते ,"दोस्त तो आपका ही हूँ, इसीलिए चाहता हूँ ,बच्चों और आप के बीच दूरी न आये और वे आपको कभी गलत न समझें " मेरे बेटों से मेरे मित्रवत व्यवहार का बहुत सारा श्रेय डॉ .कौसर को जाता है. उन्होंने मेरे बेटों से भी बात की थी और कहा था," मेरा नंबर सेव कर लो, जब कभी मम्मी डांटे,मुझसे शिकायत करना " मैं उनका ट्रिक समझ गयी थी, वे चाहते थे कि जब भी कभी उन्हें ऐसा लगे कि मम्मी-पापा से कोई बात शेयर नहीं कर सकते, उनसे बात कर लें और साथ ही ये कोशिश भी कर गए थे कि वे माता-पिता से सब शेयर करें ,बेटे बहुत खुश थे क्यूंकि उन्होंने, उन्हें Hi buddy कहकर संबोधित किया था और खुद को अंकल कहने से मना कर दिया था .
डॉ.कौसर अपने काम में निष्णात थे , पूरे हफ्ते नागपुर में पेशेंट देखते और अक्सर सन्डे को मुंबई से किसी पेशेंट के लिए बुलावा आ जाता . हाल में ही उन्होंने बहुत ही बड़ा और ख़ूबसूरत क्लिनिक बनवाया था , और मैंने उसकी फोटो देख ,पेशेंट के वेटिंग रूम वाली फोटो पर मजाक में कमेन्ट किया था , ' इन कुर्सियों पर किसी को न बैठना पड़े " बुरा माने बिना उन्होंने एक स्माइली चिपका दी थी .इसके साथ ही नागपुर की हर सामाजिक गतिविधियों में शामिल होते थे . कितने समारोहों के चीफ गेस्ट , कही झंडा फहराने जाना , कहीं क्विज़ कम्पीटीशन कंडक्ट करना, अक्सर प्रोग्राम होस्ट करना ,कॉन्फ्रेंस में भाग लेना , कभी आमलोगों के लिए वर्कशॉप कभी जेल के कैदियों के लिए वर्कशॉप . समारोह में तिलक लगा कर उनका स्वागत किया जाता . दूसरे धर्म के होते हुए भी तिलका लगवाते हुए ,हमेशा उनका दाहिना हाथ सर पर होता . वे दूसरे धर्म का सिर्फ सम्मान ही नहीं करते थे बल्कि उसके रिवाज का भी ध्यान रखते थे .
ऐसा ही कुछ अपने अज़ीज़ मित्र प्रसिद्द मनोविज्ञानिक 'डॉ. कौसर अब्बासी 'के जाने के बाद महसूस हो रहा है, जिन्हें नियति के क्रूर हाथों ने चालीस बसंत भी नहीं देखने दिए और एक मैसिव हार्ट अटैक देकर हम सबसे दूर कर दिया .
करीब सात वर्ष पहले मैंने ऑर्कुट पर एक कम्युनिटी ज्वाइन की थी, 'BOOK LOVERS COMMUNITY '. ..उस कम्युनिटी में लोग अपनी पढ़ी किताबों पर अपने विचार रखते. एक एक पुस्तक पर दिनों चर्चा चला करती थी .वहीँ डॉ. कौसर से किताबों पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ .उन्होंने मुझे Brida और Many Lives Many Masters किताब पढने की सलाह दी. मैंने सीधा कह दिया, "मैं इस तरह की किताबें नहीं पढ़ती" फिर भी उन्होंने बहुत समझाकर कहा, "पढ़ कर देखिये रिग्रेट नहीं करेंगी " .और सचमुच अफ़सोस नहीं हुआ. मैंने भी कई लोगो को उस किताब को पढने की सलाह दी .मेरे ब्लॉग की एक पाठिका ने तो हाल में बताया कि उसने वो किताब पढ़कर फेसबुक पर ' Brian Weiss ' के fans की एक कम्य्नुनिटी भी ज्वाइन की और Brian Weiss से एक बार चैट भी की (और हमें पता भी नहीं ऐसी कोई कम्युनिटी भी है ). किताबों पर काफी बातें हुईं और कौसर और मैं अच्छे दोस्त बन गए .
उन्ही दिनों मेरे बेटे टीनेज में प्रवेश कर रहे थे और उनकी बदलती आदतें , उनके tantrums से मैं अक्सर दुखी और परेशान होकर कौसर से जिक्र करती. दोस्त होने के नाते सहानुभूति के दो शब्द की अपेक्षा रखती थी, पर वो सीधा कहते ,"सॉरी मैम...आइ विल आलवेज़ बी विद चिल्ड्रेन " और दस मिनट में ही उनकी बातों से मुझे बच्चों के नज़रिए से चीज़ों को देखने में मदद मिलती और मन शांत हो जाता .कभी मैं कह भी देती , "आप मेरे दोस्त हैं या बच्चों के?.हमेशा उनका पक्ष लेते हैं " वे कहते ,"दोस्त तो आपका ही हूँ, इसीलिए चाहता हूँ ,बच्चों और आप के बीच दूरी न आये और वे आपको कभी गलत न समझें " मेरे बेटों से मेरे मित्रवत व्यवहार का बहुत सारा श्रेय डॉ .कौसर को जाता है. उन्होंने मेरे बेटों से भी बात की थी और कहा था," मेरा नंबर सेव कर लो, जब कभी मम्मी डांटे,मुझसे शिकायत करना " मैं उनका ट्रिक समझ गयी थी, वे चाहते थे कि जब भी कभी उन्हें ऐसा लगे कि मम्मी-पापा से कोई बात शेयर नहीं कर सकते, उनसे बात कर लें और साथ ही ये कोशिश भी कर गए थे कि वे माता-पिता से सब शेयर करें ,बेटे बहुत खुश थे क्यूंकि उन्होंने, उन्हें Hi buddy कहकर संबोधित किया था और खुद को अंकल कहने से मना कर दिया था .
डॉ.कौसर अपने काम में निष्णात थे , पूरे हफ्ते नागपुर में पेशेंट देखते और अक्सर सन्डे को मुंबई से किसी पेशेंट के लिए बुलावा आ जाता . हाल में ही उन्होंने बहुत ही बड़ा और ख़ूबसूरत क्लिनिक बनवाया था , और मैंने उसकी फोटो देख ,पेशेंट के वेटिंग रूम वाली फोटो पर मजाक में कमेन्ट किया था , ' इन कुर्सियों पर किसी को न बैठना पड़े " बुरा माने बिना उन्होंने एक स्माइली चिपका दी थी .इसके साथ ही नागपुर की हर सामाजिक गतिविधियों में शामिल होते थे . कितने समारोहों के चीफ गेस्ट , कही झंडा फहराने जाना , कहीं क्विज़ कम्पीटीशन कंडक्ट करना, अक्सर प्रोग्राम होस्ट करना ,कॉन्फ्रेंस में भाग लेना , कभी आमलोगों के लिए वर्कशॉप कभी जेल के कैदियों के लिए वर्कशॉप . समारोह में तिलक लगा कर उनका स्वागत किया जाता . दूसरे धर्म के होते हुए भी तिलका लगवाते हुए ,हमेशा उनका दाहिना हाथ सर पर होता . वे दूसरे धर्म का सिर्फ सम्मान ही नहीं करते थे बल्कि उसके रिवाज का भी ध्यान रखते थे .
इन सबके बीच विदेश से भी किसी कॉन्फ्रेंस में पेपर पढने के लिए बुलावा आ
जाता. अखबारों के लिए आलेख लिखते. टी.वी पर सलाह देते . मानसिक बीमारी को
अक्सर लोग पागलपन समझ लेते हैं . डॉ. कौसर इस धारणा के
निर्मूलन के लिए कटिबद्ध थे ,इस से सम्बंधित ढेरों आलेख अखबार में लिखते ,हाल में ही TOI में उनका आलेख आया
था social stigma is main hurdle in treating schizophrenia , इतना
सारा काम वे कर लेते थे मानो जैसे उनके लिए दिन में चौबीस नहीं बहत्तर घंटे होते थे .
पर इतने काम के बीच भी अपने दस साल के बेटे 'अमान' के स्कूल के स्पोर्ट्स डे, एनुअल डे ,उसका कोई फंक्शन ,मकर संक्रांति को उसके साथ छत पर पतंग उडाना ..उसके हॉकी मैच देखने जाना ,अपनी पत्नी भावना के साथ वैकेशन पर जाना , उनके साथ पिकनिक ,पार्टी अटेंड करना ...नहीं टालते .फेसबुक पर उनकी इन सारी गतिविधियों की ढेर सारी फ़ोटोज़ हैं , (जिनकी तरफ देखना भी अब मुश्किल लगता है ) बिलकुल हाल की एक पार्टी की बड़ी प्यारी सी फोटो है, अपनी पत्नी डॉ. भावना को घुटनों के बल बैठ कर फूल देकर प्रपोज़ कर रहे हैं . जबकि असलियत अचनाक ही प्रपोज़ कर दिया था . डॉ. भावना ने बताया था . एक दिन वे कौसर के क्लिनिक आयी थीं और डॉ. कौसर .ने मुझसे चैट करवाई थी.पर उन दिनों भावना की टाइपिंग स्पीड ज्यादा नहीं थी और उन्होंने मुझसे फोन पर बात करना बेहतर समझा...फोन नंबर एक्सचेंज हुए और लम्बी बात हुई. (कौसर पेशेंट देखने चले गए थे ) उन्होंने अपनी शादी का किस्सा सुनाया . भावना और कौसर मेडिकल कॉलेज में साथ पढ़ते थे और बेस्ट फ्रेंड्स थे . धीरे -धीरे कौसर को अहसास होने लगा कि भावना से अच्छी जीवनसंगिनी उन्हें नहीं मिलेगी. उन्होंने प्रपोज़ किया पर भावना ने रिफ्युज़ कर दिया . कौसर ने उनके इनकार का सम्मान किया , क्यूंकि उन्हें पता था एक हिन्दू लड़की का किसी मुस्लिम लड़के से शादी का निर्णय कितना मुश्किल है. पर दोस्ती कायम रखी और कुछ महीनों बाद भावना ने स्वीकार कर लिया . इस नवम्बर में उनकी शादी को बारह साल हो जाते . क्या डॉ. कौसर को ये अहसास था कि उनके पास समय कम है, इसीलिए शायद जो ज़िन्दगी लोग अस्सी बरस में भी नहीं जी पाते, डॉ. कौसर ने चालीस से भी कम उम्र में जी ली.
एक दिन डॉ. कौसर पत्नीश्री के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी लेकर बैठे थे पर नेट पर टाइम पास कर रहे थे .मेरे पूछ्ने पर बताया कि ,"एक बच्चे ने इसी वक़्त दुनिया में आना तय कर लिया है, इमरजेंसी आ गयी है , इसलिए भावना को उसके स्वागत के लिए हॉस्पिटल जाना पड़ा ." मैंने थोड़ी खिंचाई की , "अच्छा है , साइकियाट्रिस्ट को कभी इमरजेंसी कॉल्स नहीं आते " कौसर तो हंस कर टाल गए पर शायद ईश्वर को मेरी यह बात नहीं जमी ,और मुझे सच्चाई से रु ब रू करवा दिया . थोड़ी देर में ही कौसर ने कहा , "एक इमरजेंसी है..सुसाइड केस है, जाना पड़ेगा " दो घंटे में वे वापस भी आ गए और बताया कि 'एक लड़की ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था और कलाई की नस काटने की धमकी दे रही थी ." फिर इन्होने बात की और आधे घंटे के अन्दर उसने दरवाजा खोल दिया. मुझे आश्चर्य हुआ..'ऐसा क्या कहा आपने ??" उन्होंने भी हंस कर कहा, ""इसी की तो पढ़ाई की है ..ट्रेनिंग ली है...वो सुसाइड से ज्यादा अटेंशन सीकर बिहेवियर था " यह बता कर वे तो कुछ पढने -लिखने में लग गए पर मैं देर तक सोचती रही ,क्या बात की होगी ,क्या कहा होगा...जो लड़की मान गयी "
पर बात करने का हुनर तो उनका ऐसा था जो एक बार मिले वो दोस्त बने बिना न रह सके , बातों बातों में वे इतनी कोट करने लायक बातें बोल जाते थे कि मैं कभी कभी कह देती..'ये सब याद कर रखा है..या आपका खुद का है ??" और वे अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहते .."सब मिला जुला है..बातों का ही तो खाते हैं, भाई ". यह उनका तकिया कलाम था . इन सात वर्षों की दोस्ती में कभी डॉ. कौसर से मेरी कोई अनबन ,कोई मनमुटाव नहीं हुआ . पर शायद एक मैं ही ऐसी नहीं थी, उनके दोस्त भी उनके बारे में यही कहते थे , सब उनकी जिंदादिली , उनके उदार ह्रदय की ही बात करते थे .एक बार उनके दोस्त ने उनके बारे में लिखा था ," I know this animal since last 17 years....and never saw him getting angry.. Very genuine person and very approachable!!! I can find him whenever i need him.. Always willing to help! और मैंने उसे पढ़ उनसे पूछ लिया था , "क्या आपको सचमुच कभी गुस्सा नहीं आता ." और उन्होंने कहा , "बिलकुल आता है..getting angry is normal but when n where that is important ' शायद यही फौलो करते होंगे ,इसीलिए किसी को उनके गुस्से से परेशानी नहीं होती होगी .
पर इतने काम के बीच भी अपने दस साल के बेटे 'अमान' के स्कूल के स्पोर्ट्स डे, एनुअल डे ,उसका कोई फंक्शन ,मकर संक्रांति को उसके साथ छत पर पतंग उडाना ..उसके हॉकी मैच देखने जाना ,अपनी पत्नी भावना के साथ वैकेशन पर जाना , उनके साथ पिकनिक ,पार्टी अटेंड करना ...नहीं टालते .फेसबुक पर उनकी इन सारी गतिविधियों की ढेर सारी फ़ोटोज़ हैं , (जिनकी तरफ देखना भी अब मुश्किल लगता है ) बिलकुल हाल की एक पार्टी की बड़ी प्यारी सी फोटो है, अपनी पत्नी डॉ. भावना को घुटनों के बल बैठ कर फूल देकर प्रपोज़ कर रहे हैं . जबकि असलियत अचनाक ही प्रपोज़ कर दिया था . डॉ. भावना ने बताया था . एक दिन वे कौसर के क्लिनिक आयी थीं और डॉ. कौसर .ने मुझसे चैट करवाई थी.पर उन दिनों भावना की टाइपिंग स्पीड ज्यादा नहीं थी और उन्होंने मुझसे फोन पर बात करना बेहतर समझा...फोन नंबर एक्सचेंज हुए और लम्बी बात हुई. (कौसर पेशेंट देखने चले गए थे ) उन्होंने अपनी शादी का किस्सा सुनाया . भावना और कौसर मेडिकल कॉलेज में साथ पढ़ते थे और बेस्ट फ्रेंड्स थे . धीरे -धीरे कौसर को अहसास होने लगा कि भावना से अच्छी जीवनसंगिनी उन्हें नहीं मिलेगी. उन्होंने प्रपोज़ किया पर भावना ने रिफ्युज़ कर दिया . कौसर ने उनके इनकार का सम्मान किया , क्यूंकि उन्हें पता था एक हिन्दू लड़की का किसी मुस्लिम लड़के से शादी का निर्णय कितना मुश्किल है. पर दोस्ती कायम रखी और कुछ महीनों बाद भावना ने स्वीकार कर लिया . इस नवम्बर में उनकी शादी को बारह साल हो जाते . क्या डॉ. कौसर को ये अहसास था कि उनके पास समय कम है, इसीलिए शायद जो ज़िन्दगी लोग अस्सी बरस में भी नहीं जी पाते, डॉ. कौसर ने चालीस से भी कम उम्र में जी ली.
एक दिन डॉ. कौसर पत्नीश्री के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी लेकर बैठे थे पर नेट पर टाइम पास कर रहे थे .मेरे पूछ्ने पर बताया कि ,"एक बच्चे ने इसी वक़्त दुनिया में आना तय कर लिया है, इमरजेंसी आ गयी है , इसलिए भावना को उसके स्वागत के लिए हॉस्पिटल जाना पड़ा ." मैंने थोड़ी खिंचाई की , "अच्छा है , साइकियाट्रिस्ट को कभी इमरजेंसी कॉल्स नहीं आते " कौसर तो हंस कर टाल गए पर शायद ईश्वर को मेरी यह बात नहीं जमी ,और मुझे सच्चाई से रु ब रू करवा दिया . थोड़ी देर में ही कौसर ने कहा , "एक इमरजेंसी है..सुसाइड केस है, जाना पड़ेगा " दो घंटे में वे वापस भी आ गए और बताया कि 'एक लड़की ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था और कलाई की नस काटने की धमकी दे रही थी ." फिर इन्होने बात की और आधे घंटे के अन्दर उसने दरवाजा खोल दिया. मुझे आश्चर्य हुआ..'ऐसा क्या कहा आपने ??" उन्होंने भी हंस कर कहा, ""इसी की तो पढ़ाई की है ..ट्रेनिंग ली है...वो सुसाइड से ज्यादा अटेंशन सीकर बिहेवियर था " यह बता कर वे तो कुछ पढने -लिखने में लग गए पर मैं देर तक सोचती रही ,क्या बात की होगी ,क्या कहा होगा...जो लड़की मान गयी "
पर बात करने का हुनर तो उनका ऐसा था जो एक बार मिले वो दोस्त बने बिना न रह सके , बातों बातों में वे इतनी कोट करने लायक बातें बोल जाते थे कि मैं कभी कभी कह देती..'ये सब याद कर रखा है..या आपका खुद का है ??" और वे अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहते .."सब मिला जुला है..बातों का ही तो खाते हैं, भाई ". यह उनका तकिया कलाम था . इन सात वर्षों की दोस्ती में कभी डॉ. कौसर से मेरी कोई अनबन ,कोई मनमुटाव नहीं हुआ . पर शायद एक मैं ही ऐसी नहीं थी, उनके दोस्त भी उनके बारे में यही कहते थे , सब उनकी जिंदादिली , उनके उदार ह्रदय की ही बात करते थे .एक बार उनके दोस्त ने उनके बारे में लिखा था ," I know this animal since last 17 years....and never saw him getting angry.. Very genuine person and very approachable!!! I can find him whenever i need him.. Always willing to help! और मैंने उसे पढ़ उनसे पूछ लिया था , "क्या आपको सचमुच कभी गुस्सा नहीं आता ." और उन्होंने कहा , "बिलकुल आता है..getting angry is normal but when n where that is important ' शायद यही फौलो करते होंगे ,इसीलिए किसी को उनके गुस्से से परेशानी नहीं होती होगी .
जब मैंने ब्लॉग बनाया ,शायद इसकी सबसे ज्यादा ख़ुशी डॉ. कौसर को हुई थी. वे मेरे सिर्फ होम मेकर होने से बहुत नाखुश थे . अक्सर कहते ,"आपमें इतना पोटेंशियल है ,आप समाज को बहुत कुछ दे सकती हैं " मैं कह देती, " बेटों का पालन-पोषण कर दो अच्छे नागरिक तो दिए समाज को " और वे तुरंत कहते, "एक अच्छा नागरिक समाज से छीनकर ??...ये तो घाटे का सौदा हुआ ...तीन लोग कंट्रीब्यूट कर सकते थे " इसीलिए मुझे फिर से लिखते देख वे बहुत खुश होते थे . दसवीं के बाद ही हिंदी पढने-लिखने से नाता टूट गया था उनका, फिर भी डॉ. कौसर ने मेरे ब्लॉग के पोस्ट पढ़े , ब्लॉग पर डाली मेरी पहली नॉवेल भी पढ़ी ,और अपने अंदाज़ में एक पंक्ति में ही पूरा सार समेट दिया ," take off and landing was perfect and journey was beautiful too " मैं उनसे कभी मिली नहीं थी , उनकी रिश्तेदार नहीं थी ,कोई बहुत पुरानी बचपन की दोस्ती भी नहीं थी और न नॉवेल ही कोई मास्टरपीस था पर उन्हें किसी का भी उत्साह बढाने , उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देने का जूनून था,उन्हें .फेसबुक पर भी अक्सर मेरे , स्टेटस ,मेरी पोस्ट के लिंक से ब्लॉग पर जाकर पोस्ट पढ़ लेते और दो लाइन में इन्बौक्स में मेसेज जरूर छोड़ देते.
कोई व्यक्ति भी दस मिनट भी उनसे बातें करने के बाद ,अपने को गुणों का खान समझने लगता ,इतने positive vibes मिलते ,थे उनसे. . अपनी, अपनी फ्रेंड्स की , समाज से सम्बंधित कई उलझनों के बारे में उनसे चर्चा की है और उन्होने हमेशा ध्यान से सुन कर हल सुझाए . दोस्तों के लिए वे बस एक फोन कॉल की दूरी पर थे, कितने भी व्यस्त हों कॉल बैक जरूर करते थे , मेल का रिप्लाई जरूर करते थे ,चाहे पार्किंग लॉट में गाडी खड़ी कर मेल भेजना पड़े .
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पर क्या कभी ये सब मैंने उनसे कहा ? नहीं ,हम जरूरत ही नहीं समझते . जब लोग हमारे आस-पास होते हैं तो बस खिंचाई , नोंक झोंक...चिढाना-खिझाना यही सब चलता है ...उनके चले जाने के बाद लगता है...कितना कुछ रह गया, कहना ...काश कहा होता .
मैं जब भी किसी फिल्म, किताब या व्यक्ति के बारे में लिखती हूँ, तो उनकी नेगेटिव साइड जरूर ढूंढती हूँ. पर मुझे कोशिशों के बाद भी डॉ. कौसर के विषय में कुछ नहीं मिल रहा . इसलिए नहीं कि वे मेरे दोस्त थे..इसलिए नहीं कि वे अब हमारे बीच नहीं हैं ...बस कुछ लोग होते ही ऐसे हैं. ..उनकी FB वॉल देखकर ऐसा लग रहा है, दोस्तों ने अपने दिल निकाल कर रख दिए हैं...सब इतना मिस कर रहे हैं, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है . 'डॉ. भावना' और 'अमान' से बढ़कर हमारा दुःख नहीं है ...पर उनके चले जाने का दर्द हम सबको भी उतना ही महसूस हो रहा है .
एक बार बातों के दरम्यान उन्होंने मुझसे पूछा था, मेरे लिए दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है ?
मैने क्या जबाब दिया मुझे नहीं याद पर डॉ. कौसर का जबाब याद है , "I love to make people happy
anyone
anywhere
if i make a crying one smile i really love it. सबके चहरे पर स्माइल लाने वाला ..इतने चेहरों को रुला कर चला गया...अब इन चेहरों पर कौन लायेगा स्माइल??.... कैसे आएगी कोई स्माइल ??पर हमें अपने आंसू पोंछकर मुस्कराना ही होगा...अपना दुःख पीना ही होगा ... कौसर के लिए ...वे किसी को भी दुखी नहीं देख सकते थे .आप जहाँ भी हैं ,जिस जहां में हैं डॉ. कौसर, हमेशा खुश रहें . हम अपने दुःख से आपको दुखी नहीं होने देंगे ...अलविदा डॉक्टर . डॉ. कौसर के जीवन की कुछ और झलकियाँ ,जिनमें अब और तस्वीरें नहीं जुड़ेंगी