राजेश,शशि, नवनीत,निखिल और मैं |
ऐसी नौबत तो खैर नहीं आई, कभी ...(और अब क्या आएगी )
पर कई बार कार,बस, और प्लेन की यात्रा भी किन्ही ना किन्ही वजह से यादगार बन गयी है...एक बार इन्ही दिनों मैं गोवा में थी...हर साल ये दिन जरूर याद आ जाते हैं. मुंबई से पास होने की वजह से कई बार गोवा जाना हुआ है.(वैसे राज़ ये है कि Three men in my house को यही destination ज्यादा पसंद है...एकदम इन्फोर्मल सा वातावरण , shorts में काम चल जाता है ....ज्यादा कपड़े नहीं पहनने पड़ते..और समंदर का आकर्षण तो है ही )
वंदना अवस्थी दुबे ,प्रवीण पाण्डेय जी और भी कई लोगो के संस्मरण पढ़े हैं,गोवा से सम्बंधित.
पर मेरी सलाह है किसी को गोवा जाना हो तो क्रिसमस के आस-पास ही प्लान करे. मौसम खुशनुमा होता है. सैलानियों की चहल -पहल होती है और हवाओं में ही एक रवानगी होती है. मेरी सबसे यादगार गोवा-यात्रा क्रिसमस के दौरान वाली ही है.
इसलिए भी कि बस की यात्रा भी बहुत रोमांचक रही...एक सीमा तक भयावह भी.
हमलोग तीन परिवार ने स्लीपर बस से गोवा जाने का प्लान किया. स्लीपर बस में ट्रेन की तरह ऊपर वाली सीट गिरा दें तो दोनों तरफ की सीट मिलकर एक बड़ा सा चौरस बेड बन जाता है. साइड बर्थ भी था ट्रेन की तरह ही. सफ़र बहुत मजे में कट रहा था. सब लोग... बिहारी,मराठी, और बंगाली व्यंजनों का आनंद लेते हुए...कभी कार्ड खेलते तो कभी अन्त्याक्षरी जमती. बच्चे भी अपने ग्रुप में मगन थे. बिलकुल पिकनिक जैसा माहौल. ग्यारह के करीब हमलोग सोने गए.
मैने अपने लिए साइड बर्थ चुनी {औरत त्याग की मूरत....:( } .लेकिन ये पता नहीं था ट्रेन और बस की साइड बर्थ में इतना फर्क है. बस, तेज रफ़्तार से घाटियों के बीच से गुजर रही थी..बार-बार टर्न लेती और मुझे लगता...मैं, अब गिरी की तब गिरी .नींद आनी तो दूर, पलकें तक नहीं झपक रही थी. पास वाले हैंडल को जोर से पकड़ रखा था कि कहीं गिर ना जाऊं. वरना पूरी यात्रा में मेरा मजाक बनता रहता. वैसे ही हिचकोले खाते रास्ता तय हो रहा था...और अचानक अजीब सी गड़गडाहट सी आवाज़ हुई बस के इंजिन से...और तेजी से किनारे की तरफ जाती बस अचानक रुक गयी. सबलोग इस आवाज़ से जाग गए. ड्राइवर ने बताया कुछ खराबी आ गयी है और किसी तरह उसने बस रोकी है. जब हमारे ग्रुप के पुरुषों ने उतर कर देखा तो पाया,बस का सामने वाला एक पहिया रास्ते के बिलकुल किनारे था और नीचे गहरी खाई थी. बस, कुछ इंचो से नीचे लुढ़कने से बची थी .
रात के दो बज रहे थे. सुबह होने में काफी वक्त था. उस पर से निखिल वैद्य ने नीचे उतर कर देखा और कहा कि 'बस' एक पीपल के पेड़ के नीचे रुकी हुई है. और आज अमावस्या है. पीपल के पेड़ पर भूत रहते हैं. शशि और रेखा की हालत तो वैसे ही खराब हो गयी. वो तो मुझे भूत से डर नहीं लगता,वरना खिड़की के पास मेरा ही बेड था. अचानक पीछे से एक गाड़ी बस से कुछ इंच की दूरी से निकली. तब सबका ध्यान गया कि हमारी 'बस', पतली सी सड़क पर तिरछी होकर रुकी थी. और उसकी हेडलाईट,टेल-लाईट सब खराब हो चुके थे . अगर अँधेरे में किसी दूसरी गाड़ी से पीछे से जरा सा भी धक्का लगता तो बस गहरी खाई में चली जाती. इन पुरुषों को एक उपाय सूझा. इनलोगों ने हमारे पर्स से छोटा आईना लिया और बस के पीछे जाकर खड़े हो गए. जहाँ किसी गाड़ी की आवाज़ आती ये लोग शीशा चमकाते,दूसरी गाड़ी की हेडलाईट पड़ते ही शीशा चमक उठता और उन्हें हमारी बस का पता चल जाता. पूरी रात,नवनीत (मेरे पतिदेव) ,निखिल और राजेश, और बस के ड्राइवर,कंडक्टर भी बारी-बारी से शीशा चमकाते रहे.
सुबह हुई तो देखा,हमलोग बीच जंगल में हैं. काफी दूर एक छोटी सी चाय की दुकान मिली. वहाँ हमलोगों ने उनलोगों से बहुत ही महंगे दामो में पानी खरीद कर एक-एक ग्लास पानी से किसी तरह ब्रश किया और चाय पी. वैसे वे बेचारे भी काफी दूर से पानी ढो कर लाते थे. .बच्चों की तो मस्ती शुरू हो गयी,...वे वहीँ धमाचौकड़ी मचाने लगे.. कभी पेड़ पर चढ़ते..कभी पत्थरों के पीछे छुपते. हमलोगों को गोवा पहुँचने की टेंशन के साथ ,बच्चो पर भी ध्यान रखना पड़ रहा था.
पीछे से आती गाड़ियों से लिफ्ट माँगने का सिलिसला शुरू हुआ. बाकी लोग तो दो-दो ,तीन-तीन के ग्रुप में थे. उन्हें आनेवाली गाड़ियों में जगह मिल गयी.पर हमारा बारह लोगो का ग्रुप था. इतनी जगह तो किसी भी गाड़ी में नहीं थी.फिर कंडक्टर को पैसे देकर आगे भेजा...और उस से कोई सुमो या मिनी बस किराए पर लाने को कहा गया. तब तक गाड़ी के इंतज़ार में हम भी जंगल में मंगल मनाते रहे.
एक बार गाड़ी आ जाने पर शाम तक हमलोग गोवा पहुँच गए. होटल की बुकिंग तो पहले से ही कर रखी थी. इतनी थकान के बावजूद, हमलोग फ्रेश होकर तुरंत ही बीच की तरफ निकल लिए.
क्रिसमस में गोवा की रौनक देखते ही बनती है .हर घर के बाहर रंग-बिरंगी बत्तियों की झालर, और बड़ा सा स्टार लगा हुआ था.वहाँ की हवा में ही कुछ ऐसी उमंग और ऐसा उछाह था कि कुछ ही घंटो बाद पूरे ग्रुप ने एकमत से निश्चय किया कि क्रिसमस ही नहीं न्यू इयर भी गोवा में ही मनाएंगे . इन दिनों विदेशी सैलानियों का हुजूम भी गोवा का रुख करता है. हालांकि यह भी पढ़ा कहीं कि गोवा आना सबसे सस्ता पड़ता है उन्हें, इसीलिए वहाँ के निम्न और मध्य वर्ग गोवा का रूख करते हैं.
वहाँ देखा ,हर होटल के सामने एक शेड बना एक्स्ट्रा चेयर्स लगा कर होटल का एक्सटेंशन कर दिया गया था. ऐसी ही एक जगह ,एक विदेशी महिला को चाय के ग्लास में 'पाव' डुबो कर खाते देखा. चारो तरफ ,म्युज़िक बजता रहता है...और लोग सड़को पर ही डांस करने लगते हैं. कई विदेशी महिलाएँ अकेली भी आई थीं. और लोकल लड़के उनके लिए गाइड का काम कर रहे थे. देखा मैने, वे उनके साथ ही समंदर में जातीं, होटल में साथ बैठ खाना भी खातीं. रेत पर बियर की बॉटल भी शेयर करतीं. कुछ भी एन्जॉय करने को एक साथी तो होना ही चाहिए,चाहे वो अजनबी...गोअन गाइड ही क्यूँ ना हो.
बियर तो गोवा में शायद पानी की तरह बहती है. मेल-फिमेल का कोई विभेद नहीं. किसी पुरुष ने एक बियर ऑर्डर की नहीं कि वेटर दो ग्लास लेकर हाज़िर हो जायेगा.एक कपल शायद हनीमून के लिए आया था. लड़की अपने पीले रंग के सिंथेटिक सूट और दो लम्बी चोटियों में लगे लाल मोटे रबर-बैंड के साथ लगता था, किसी यू.पी या बिहार के गाँव से सीधी उठ कर आ गयी थी.पर जिस आत्मविश्वास के साथ वो बियर सिप कर रही थी,वो मुझे हैरान कर दे रहा था.
गोवा की प्राकृतिक सुन्दरता के बारे में तो इतना लिखा जा चुका है कि नया क्या लिखूं...हाँ, वहाँ एक बहुत ही सुन्दर जलप्रपात है "दूधसागर" वहाँ बहुत कम लोग जाते हैं. पर उस जलप्रपात तक पहुँचने कि यात्रा बहुत ही रोमांचक है....आधी दूरी तक एक वाहन ...फिर उसके बाद खुली हुई जीप और फिर पैदल ही काफी दूरी तय करनी पड़ती है......जिसमे लकड़ी के पुल भी पार करने होते हैं. झरने के आनंद से ज्यादा उस यात्रा का आनंद उठाने के लिए जाना चाहिए.
क्रिसमस के दौरान रिवर क्रूज़ की रौनक भी थोड़ी सी ज्यादा थी. मांडवी नदी पर तैरता छोटा सा जहाज , रंग बिरंगी रोशनी में नहाया हुआ था और डेक पर बड़े, बूढे,बच्चे सब तेज संगीत पर थिरक रहे थे. सैंटा क्लॉज़ का ड्रेस पहने व्यक्ति किसी को बैठने ही नही दे रहा था. हमारे ग्रुप पर कुछ ख़ास ही मेहरबान था.और ग्रुप के बाकी सबलोग मुझपर मेहरबान थे. वो दिन ही कुछ ऐसा था. मेरे बर्थडे पर मुझे क्वीन या प्रिंसेस की तरह फील करवा आराम से बैठे रहने देना चाहिए था.पर जरा सा सबकी नज़र बचा कर सांस लेने बैठती ..और कोई ना कोई उठा ही देता .
बर्थडे का जिक्र आ ही गया. सोचा था लास्ट इयर की सरप्राइज़ पर तो पोस्ट लिख ही डाली थी. उसके पहले मिले सरप्राईज्स पर भी एक पोस्ट लिखी थी. इस बार ब्लॉग पर जिक्र नहीं करुँगी {रहेगा ही क्या, नया करने को ...:)} पर कुछ नई और मजेदार बातें हो ही गईं. एक तो बेटे ने अपने फेसबुक का स्टेटस लगा दिया, " टुडे इज माइ मॉम्स बर्थडे " और उसके छः सौ फ्रेंड्स में से छुट्टियों में ज्यादातर ऑनलाइन रहते हैं.....दिन भर उसका फोन ,FB के अपडेट्स से टुनटुनाता रहा, . मेरे फोन ने भी अच्छी संगत दी.:)
कुछ फोन कॉल्स ने भी चौंका दिया. सुदूर कश्मीर की घाटियों और सात समंदर पार से ब्लॉगर मित्र के कॉल्स ,एक्स्पेक्ट नहीं किए थे . ब्लॉग, इमेल, फेसबुक, एस.एम.एस से तो बधाइयां मिली हीं...अब जिन्हें नहीं पता था. ये पोस्ट पढ़ कर दे डालेंगे :). ऐसे ही थोड़े ना कहते हैं.. .ये दिल मांगे मोर
पर मजेदार रहा..मेरी फ्रेंड्स का गिफ्ट. उनलोगों ने मुझे एक किलो प्याज ,गिफ्ट किया. अब इस पर हंसू या रोऊँ..समझ में नहीं आया...(रोना तो पड़ेगा ही छीलते हुए )
दरअसल कुछ ही दिनों पहले ऐसे ही, मैने फोन पर थोड़ी शान बघारी,"पता है, मैं प्याज डालकर सब्जी बना रही हूँ"
"कितनी रिच हो ना..".राजी मेनन का जबाब था
"और क्या... हम नॉर्थ इंडियंस तो बिना प्याज के कुछ भी नहीं बनाते."..थोड़ा और रौब जमाया
और इनलोगों ने मुझे प्याज गिफ्ट करना तय कर लिया. मैने कहा था, गिफ्ट करते हुए फोटो भी लूंगी और ब्लॉग पर लिख दूंगी...वे और खुश हो गयीं..."हाँ, सब सोचेंगे .... कितना थॉटफुल गिफ्ट दिया है,हमने" .पर गप-शप में फोटो लेना ही भूल गयी...हाँ , प्याज की फोटो जरूर ले ली :) आधा किलो प्याज पहले से ही पड़ा था घर में यानि कि डेढ़ किलो प्याज मेरे घर में हैं....Thanx friends for making me feel like a queen :)
आप सबो का नव वर्ष ,हर्षोल्लास से भरा मंगलमय हो..नव-वर्ष की असीम शुभकामनाएं