१९४२ में द्वीतीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया था.पूरे विश्व में तबाही मची हुई थी. हर देश युद्ध से किसी ना किसी प्रकार प्रभावितथा. उस वक्त भारत आज़ाद नहीं हुआ था और भारतीय सेना, अंग्रेजों कीमदद कर रही थी. बर्मा में भारतीय सेना तैनात थी और जापानियों के दांत खट्टे कर रहीथी. बर्मा के एक बहुत ही महत्वपूर्ण चौकी ‘पगोडा हिल’ पर जापानियों ने कब्जा कर लिया था. एक नौजवान कैप्टन ‘सैम ’मानेकशॉ' अपनी बटालियन ‘राइफल कंपनी’ की अगुवाई करतेहुए ‘पगोडा हिल’ की तरफ बढ़ रहेथे. हिल के ऊपर से जापानी अंधाधुंध गोलिया दाग रहे थे . मानेकशा ने अपने सैनिकोंको चट्टानों की आड़ लेते हुए ऊपर की तरफ गोलियां चलाते हुए आगे बढने का आदेश दिया.खुद भी वे सबसे आगे बहादुरी से ऊपर की तरफ गोलिया दागते और चीते की सी फुर्ती सेचट्टानों के पीछे छुप जाते. राइफल कंपनी के कई सैनिक शहीद हो गए थे. बचे हुए कुछसैनिकों के साथ मानेकशा चोटी पर पहुंच गए और अब दोनों तरफ के सैनिक आमने -सामने थे. सैम मानेकशॉ अपनी रायफल सेएक जापानी को निशाना बना रहे थे तभी दूसरी तरफ से एक दुसरे जापानी ने आकर उनपरगोलियों की बरसात कर दी. मानेकशा ने पलट कर उसे भी मार गिराया पर खुद भी गिर पड़े, उनके पेट में 9 गोलियां लगी थीं. लेकिन पगोडा हिल पर फतह हासिल कर ली थी.
ज्यादातर जापानी सैनिक मारे गए थे .जो एकाध बचे थे,वे पीठ दिखा भाग खड़े हुए थे. सैम मानेकशॉ के शरीर से जगह जगह से खून बह रहा था, गोलियों ने उनके फेफड़े, किडनी, लीवर सबको डैमेज कर दिया था. पर उनके चेहरे पर जीत की मुस्कान थी .मेजर जनरल ‘डी. टी. कोवान’ जो देहरादून मिलिट्री अकादमी में उनके कंपनी कमांडर भी रह चुके थे ‘पगोडा हिल’ पर कब्जे कीखबर सुनते ही दौड़ते हुए, उन्हें बधाईदेने आये .पर मानेकशा को इस बुरी तरह जख्मी देखकर चिंतित हो गए. वे ,मानेकशा की वीरता के लिए उन्हें ‘मिलिट्री क्रॉस’ पदक दिलवाना चाहते थे. पर मानेकशा की हालत देख. .उन्हें लगा, अब सैम का बचना मुश्किल है . इस पदक के लिए नियम था कि यह पदक सिर्फजीवित मिलिट्री ऑफिसर को ही मिलता है. ‘डी. टी. कोवान’ ने कुछ सोचा और झट अपना मेडल उतार कर सैम मानेकशा की वर्दी पर लगा करअपने जूनियर को एक कड़क सैल्यूट दिया. मानेकशा ने भी बेहोशी से मुंदती आँखों को ज़रासा खोल अपने दाहिने हाथ को माथे से लगा,उनके सैल्यूट काजबाब दिया.
मानेकशा के अर्दली सिपाही शेर सिंह ने उन्हें अपने कंधे पर उठाया औरदौड़ते हुए कैम्प में इलाज के लिए ले गए .वहाँ, डॉक्टर नेउन्हें फर्स्ट एड देकर ‘पेगु’ के अस्पताल में रेफर कर दिया . पहाड़ियों का ऊंचा नीचा, झाड़ियों से भरा दुर्गम रास्ता, जीप हिचकोलेखाती आगे बढ़ रही थी. मानेकशा का सर सिपाही शेर सिंह की गोद में था. शेर सिंहउन्हें बीच बीच में पानी पिलाता और जगाने की कोशिश करते हुए कहता, ‘साब आप शेर दा पुत्तर हो, ये गोलियां आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं. आँखें खोलो साब. आपको अभी बहुतसारे जंग फतह करने हैं. “ मानेकशा जरा सीआँखें खोल मुस्करा देते अस्पताल तक जाने में ३६ घंटे लग गये. अस्पताल पहुँच कर शेर सिंह नेउन्हें बेड पर लिटाया और भागते हुए डॉक्टरको बुलाने चले गए. ऑस्ट्रेलियन डॉक्टर ने जब सुना कि उनके पेट में 9 गोलियां लगीहैं और ३६ घंटे बीत चुके हैं तो उन्हें देखने से इनकार कर दिया. कहा, ‘अब टुमारा शाब नई बच शकता उसपर टाईम वेष्ट करनेका कोई फायडा नई ,इतने टाईम मेंमैं दूशरा सोल्जर्स को डेक लेगा “ शेर सिंह उनकारास्ता रोक कर घुटने के बल बैठ गया , “नई डॉक्टर आपकोमेरे शाब को देखना ही पडेगा. मेरा शाब बहुत बहादुर है. उसको कुछ नहीं हो सकता.उसको बस थोड़ा इलाज की जरूरत है. “ शेर सिंह कीजिद के आगे डॉक्टर को मानेकशा को देखने जाना ही पड़ा. उसी वक्त सैम को ज़रा सा होशआया और डॉक्टर ने उनसे पूछा....” टुमको क्या हुआयंगमैन?“ ऐसी घायल अवस्था में भी सैम ने मुस्करा कर कहा, “ कुछ नहीं बस एक शैतान गधे ने लात मार दी “ डॉक्टर हैरान रह गए , ऐसी हालत मेंभी कोई मजाक कर सकता है. उन्होंने हंस कर कहा, ‘टुमारा सेन्सऑफ ह्यूमर तो कमाल का है, अब तो टुमकोबचाना ही पड़ेगा “ डॉक्टर नेगोलियां निकालीं, उनकी छोटी आंतके कुछ हिस्से काट दिए. घावों को स्टिच करके उन्हें ‘रंगून’ के बड़े अस्पतालमें भेज दिया.
सैम बिस्तर पर पड़े , खिड़की से कुछबच्चों को खेलते देख रहे थे .उन्हें अपने बचपन की याद आ गई वे भी ऐसे ही अपनेदोस्तों के साथ खेला करते थे ..बॉल अक्सर झाड़ियों में चली जाती और जब सारे बच्चे बॉल ढूंढ रहे होते, वे भागकर अपने पिता की क्लिनिक में पहुँच जाते. कानों में आला लगाए, मरीजों दवाइयां देते,उनकी मरहमपट्टीकरते पिता, सैम को कोईदेवदूत सरीखे लगते. सैम ने सोच लिया, वे भी बड़े होकरडॉक्टर बनेंगे .पिता ने कहा, ‘वे अच्छेनम्बरों से पास होंगे तो उन्हें मेडिकल पढने लन्दन भेज देंगे.” सैम ने सीनियर कैम्ब्रिज में टॉप किया. पांच विषयों में डिस्टिंक्शनलाया. पर पिता को पन्द्रह वर्ष की उम्र में बेटे को अकेले विदेश भेजना गवारानहीं हुआ. पिता ने वादा किया कि सैम के अठारह के होते ही उन्हें मेडिकल पढने लंदनभेज देंगे. लेकिन सैम का उत्साह से भरा किशोर मन बुझ गया. उन्हें अंदाजा नहीं था , ईश्वर ने इस से कहीं बड़ा काम उनके लिए सोच रखा है. सिर्फ कुछ मरीजोंकी जिंदगी बचाना उनकी तकदीर में नहीं था बल्कि देश की तकदीर बदलने में वे सहायकहोने वाले थे. डॉक्टर बनकर कुछ ही बच्चों के जन्म का निरिक्षण कर पाते जबकि उनकीदेखरेख में एक नया राष्ट्र जन्म लेने वाला था. और नियति ने उनकी नजरों के सामने अखबार के पन्नों पर छपा एक विज्ञापनरख दिया. विज्ञापन में था कि देहरादून मेंपहली भारतीय सेना अकादमी में एडमिशन के लिए परीक्षा होने वाली है. सैम ने माँ सेदिल्ली जाने के लिए पैसे मांगे . माँ उन्हें इस तरह चुप और उदास देखकर परेशान थीं.उन्होंने झट से रूपये निकाल कर दे दिए कि दिल्ली जाकर बच्चे का मन बहल जाएगा.
मिलिट्री एकेडमी से ट्रेनिंग कर वे सेकेण्ड लेफ्टिनेंट बने और फिरकैप्टन के रूप में बर्मा में उनकी पोस्टिंग हुई. जहां उन्होंने अपनी जान दांव पर लगा, वीरता के झंडे गाड़ दिए. जब स्वतन्त्रता मिली और भारत का विभाजन हुआ तो सैम मानेकशा के सामनेबड़ी दुविधा आ गई . वे पारसी थे और पारसी लोगों के लिए दोनों देशों के द्वार खुलेहुए थे. अब तक पूरा देश एक था.. लाहौर से बंबई, कलकत्ता सेढाका हर जगह बेख़ौफ़ आया जाया करते थे. हर शहर में उनके मित्र थे . अब उसी देश को दोटुकड़ों में बंटता देख उनका कलेजा फट रहा था. अब वे एक देश में रहना क़ुबूल करें तोदूसरा देश उनके लिए अजनबी हो जाएगा . सैम मानेकशा गोरखा रेजिमेंट से जुड़े हुए थे.सेना के भी दो भाग हो गए थे और गोरखा रेजिमेंट भी दो भागों में बंट गया था . इसरेजिमेंट में उनके प्राण बसते थे .वे बड़े जोश से कहते थे, “ अगर कोई सिपाही कहता है कि वो मौत से नहीं डरतातो फिर या तो वो झूठ बोल रहा होता है या फिर वो गोरखा है.” वे खुद को पारसी नहीं गोरखा कहते थे. उनका प्रचलित नाम “सैम बहादुर “ भी गोरखारेजिमेंट की ही देन था. सैम अपने सिपाहियों से दोस्ताना व्यवहार रखते थे. उनकी बीच जाकर बैठ जाते. उनके साथ हंसी मजाक करते . कभी उनकी मेस में चले जाते ,साथ खाना खाते .
एक बार यूँ ही उन्होंने एक सिपाही से पूछा, “ तुम्हारा क्या नाम है ? “
“तेज बहादुर “
“तुम्हारे चीफका क्या नाम है ? “
वह सैनिक घबरा गया . हडबडाते हुए उसने कहा, “सैम बहादुर “
मानेकशा ठहाका लगाकर हंस पड़े , ‘हाँ एकदम सही कहा .मैं गोरखा ही हूँ .मेरा नाम ‘सैम बहादुर’ ही होना चाहिए.” और तब से सबलोगउन्हें प्यार से ‘सैम बहादुर’ ही कहने लगे.बंटवारे के बाद इस रेजिमेंट के कुछ सैनिकों से उनकी दूरी हो जायेगी ,यह बात उन्हें कचोट रही थी. सैम मानेकशा का बचपन अमृतसर में गुजरा था, पढ़ाई नैनीताल और देहरादून में हुई थी. उनकी पत्नी सीलू भी अमृतसर कीथीं. भारत उनके दिल के ज्यादा करीब था और उन्होंने अपने दिल की सुन, भारत में रहने का फैसला किया .वे अपना गम भुलाकर देश की सेवा में जुट गए. उन दिनों हर तरफ मार काटमची हुई थी. दंगे हो रहे थे . दोनों देशों के बीच लकीरें खिंच गईं थीं और लकीरोंके पार, अपना सबकुछछोडकर लुटे-पिटे से लोग चले आ रहे थे. सबके चेहरे से मुस्कान गायब थी, चेहरा ग़मगीन था और आँखों में आंसू भरे हुए थे. लोग अपना घर,जमीन,धन सब छोडकरआये थे. कुछ लोगों के परिवार भी बिछड़ गए थे.
सेना की जिम्मेवारी बढ़ गई थी. सेनाउन्हें फिर से बसाने, शांति बहालकरने में पूरी तरह लगी हुई थी. मिलिट्री ऑपरेशन के डायरेक्टरके पद पर होने की वजह से सैम मानेकशा खासे व्यस्त हो गए थे. कभी कश्मीर में सरउठाये कबाइलियों का दमन करने के लिए उनकी पुकार होती तो कभी कलकत्ता में नोआखालीमें हो रहे दंगो को शांत करने के लिए उन्हें बुलाया जाता. कश्मीर में कबाइलियों काआतंक बढ़ता जा रहा था . वहाँ के राजा हरिसिंह भारत से सहायता तो मांग रहे थे परभारत में विलय होने क कागज़ पर हस्ताक्षर करने में देर कर रहे थे . पंडित नेहरूसैनिक कार्यवाई को लेकर असमंजस में थे. आखिर सरदार पटेल ने स्थिति सम्भाली, राजा हरिसिंह से भारत में शामिल होने के कागज़ पर दस्तखत कराये , नेहरु को समझाया और मानेकशासे कश्मीर में को शांति स्थापित करने के लिए प्रयास करने लिए कहा . मानेकशाअभी कश्मीर में काम कर ही रहे थे किकलकत्ता में दंगे शुरू हो गए. ब्रिटिश कमांडर इन चीफ ने आकर कहा कि “सरदार पटेल आपको कलकत्ता में बुला रहे हैं. आपको ले जाने के लिए एकप्लेन तैयार खड़ा है.” कलकत्ता मेंसरदार पटेल के साथ कलकत्ता के मुख्यमंत्री वी.सी. रॉय खड़े थे . उन्होंने मानेकशासे सीधा पूछा, “मुझे कोई बहस नहीं, कोई टालमटोल नहीं सिर्फ सीधा जबाब चाहिए ...अगरमैं सेना को सिचुएशन सौंप दूँ तो आप हमारे कितने बंगालियों को मारेंगे और कितने दिनों में शांति कायम हो जाएगी?” सैम मानेकशा की रगों में जवान खून उबाल मार रहा था .वे नेताओं की तरह घुमा फिरा कर बात करना नहींजानते थे . वे साफ़ साफ़ बोलने के लिए बदनामथे ,उन्हें मुँहफट भी कहा जाता था .मानेकशा बोले, “शायद सौ लोग की जान जा सकती है और एक महीने मेंशांति लागू हो जायेगी.” सरदार पटेल नेवी सी राय की तरफ मुड़ कर कहा, ‘दंगे में तोहजारों मर रहे हैं, ये सिर्फ सौ कीबात कर रहे हैं. “.फिर मानेकशा से बोले, “ “ठीक है ...आपकार्यवाई शुरू कीजिये.” मानेकशा नेपूरे कलकत्ता के कोने कोने में अपने जवान तैनात किये. खुद दिन रात हर महल्ले कादौरा करते. लोगों से मिलते , उनकीपरेशानियां सुनते, उन्हें समझाते.लोगों के घरों में राशन पहुँचवाते, बच्चों के लिए दूध भिजवाते. बीमार को पूरी सुरक्षा के साथ अस्पताल लेजाते. इस तरह आम लोगों को उनपर भरोसा हुआऔर बिना किसी खून खराबे के कुछ ही दिनों में पूरी तरह शांति बहाल हो गई.. बाद मेंसरदार पटेल ने मानेकशा को बुला कर गुजराती में कहा, ‘ “तमे साचो नहींबोलो ? तमे बोल्यो एक सो बंगालीयो ना मारसो पण एक बी नईमारयो “(तुमने सच नहींकहा था ? एक सौ बंगालीको मारोगे पर एक को भी नहीं मारा )फिर पास बुलाकर, ‘वेलडन...थैंक्यू’ कहकर उनकी पीठ थपथपाई .
पर फूलों के साथ काँटों का रिश्ता हमेशा से रहा है. अगर कुछ लोग उनकीतारीफों के पुल बाँध रहे थे तो कुछ लोग उन पुलों को धराशायी करने में भी जुटे हुएथे. मानेकशा का इतनी लगन और मेहनत से काम करना और बड़े नेताओं का उनपर अटूट विश्वासकुछ अधिकारियों से देखा नहीं जा रहा था. उन दिलजले लोगों ने मंत्रियों के कान भरनेशुरू कर दिए. सैम मानेकशा किसी के भी मुंह पर सीधे शब्दों में अपनी बात रखते जोअधिकारियों को नागवार गुजरता. वे लोग चमचागिरी के आदी थे. जूनियर्स उनकी झूठीतारीफ करें, हर बात में हाँमें हाँ मिलाये. उनके बोदे चुटकुलों पर छ्तफाड़ ठहाके लगाएं. उनके हर निर्णय कोआँखें मूँद कर सपोर्ट करें. यह सब मानेकशा से नहीं होता और वे मंत्रियों ,उच्च अधिकारियों के बैड बुक्स में आ गए. समय समय पर कही गई उनकी बातोंको तोड़-मरोड़ कर उनके विरुद्ध इन्क्वायरी बिठा दी गई. उसमें कोई भी सिरियस चार्जनहीं था ,कुछ बड़ीहास्यास्पद सी बातें थीं.
अभी इन्क्वायरी चल ही रही थी कि १९६२ में चीन ने भारत परआक्रमण कर दिया .नेहरु समेत सभी लोग चकित रह गए. भारत युद्ध के लिए बिलकुल भीतैयार नहीं था. ईर्ष्यावश मानेकशा को युद्ध की गतिविधियों से दूर रखा गया. जब कईमोर्चों पर भारत की हार होने लगी तो सैम मानेकशा के विरुद्ध आरोपों को खारिज करउन्हें युद्ध की कमान सौंपी गई. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. भारत के एक बड़े भू भाग पर चीन ने कब्जा कर लिया था.चीन की जीत पर पकिस्तान इतराया और उसने भी सोचा, वह भी भारत को मात दे सकता है. पाकिस्तान अपनी अंदरूनी समस्याओं सेजूझ रहा था. उसके पास शक्तिशाली नेतृत्व नहीं था. वहाँ के लोगों को अपने नेताओं परभरोसा नहीं था . रोजमर्रा की चीजें नहीं मिल रही थीं. लोग भूखे थे, बेरोजगार थे .अपनी सरकार से बेहतर सुविधाओं की मांग कर रहे थे .और इन सबसे लोगों का ध्यानहटाने के लिए पाकिस्तान ने सोचा, ‘भारत पर आक्रमणकर देगा तो सारी जनता का ध्यान युद्ध की तरफ हो जाएगा. उनमें देशभक्ति का जोश उबालमारने लगेगा और रोज की असुविधाओं से उनका ध्यान हट जायेगा”
पर इस बार भारत की सेना सम्भल चुकी थी और अब उनके पास सैम मानेकशाजैसे सैन्य अधिकारी का साथ भी था. उनके और दूसरे जाबांज ऑफिसर्स के प्रयासों सेभारत इस युद्ध में विजयी रहा. पाकिस्तान के पास अमरीका से खरीदे आधुनिक पैटन टैंकथे. भारत के पास वही द्वितीय विश्व युद्ध के समय के पुराने टैंक थे. पर मशीन सेज्यादा मशीन चलाने वाले पर कोई भी जीत निर्भर करती है. हमारे पास साहस से भरे तेजदिमाग वाले वीर ऑफिसर थे. जिन्होंने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया. पाकिस्तान में उथल पुथल जारी थी. 1970 में आम चुनाव हुए और पूर्वीपाकिस्तान के शेख मुजिबुर्र्रह्मान की ‘आवामी लीग’ ने बहुमत हासिल किया. यह पश्चिमी पाकिस्तान के रहनुमाओं को कैसे बर्दाश्तहोता और उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए.पाकिस्तानी सेना ने आम लोगों पर लूट-पाट, बलात्कार, कत्ल शुरू कर दिए. आम लोग जान बचाने के लिए भारत से लगी सीमा वाले गाँवों में भाग कर आने लगे. बहुत दुखद स्थिति थी. रोज हजारों लोग अपना घर बार, सामान सब कुछ छोड़कर सिर्फ जान बचाने के लिए भारत की सीमा में दाखिलहोने लगे.
बंगाल, त्रिपुरा, असम के मुख्यमंत्री परेशान हो गए. उन्होंने उस समय की प्रधानमन्त्रीइंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखी. और इस पलायन को रोकने के लिए कुछ करने को कहा. एक हीउपाय था ,भारतीय सेनाभेजकर पाकिस्तानी सेना को जुल्म ढाने से रोक दिया जाए. इस सूरत में युद्ध होना निश्चितही था.अप्रैल 1971 को इंदिरा गांधी ने अपने कैबिनेट की मीटिंग बुलाई और ‘सेना प्रमुख सैम मानेकशा’ को भी बुलाया.मानेकशा से पाकिस्तान पर आक्रमण के लिए कहा पर सैम मानेकशा ने बिलकुल इनकार करदिया .उन्होंने कहा, “इस वक्त हमारीसेना युद्ध के लिए बिलकुल तैयार नहीं है. कुछ ही दिनों में मॉनसून आने वाला है.बांगला देश की मिटटी दलदल सी बन जाएगी ,उसमें हमारेटैंक धंस जायेंगे .बारिश के समय वहाँ की नदियाँ छोटे मोटे समुद्र का रूप ले लेतीहैं. एक छोर से दूसरा छोर नहीं दिखता .ऐसेमें हम सही तरीके से युद्ध नहीं कर पायेंगे . अभी पंजाब के खेतों में फसल लगी हुईहै. सारी फसल रौंदी जाएगी और हमारी मूवमेंट पर भी असर पड़ेगा .इस वजह से इन सारीतैयारियों के लिए मेरी सेना को वक्त चाहिए “ रक्षा मंत्री जगजीवन राम जो सैम नहीं कह पाते थे ने भी जोर देकर कहा, ‘” साम मान भी जाओ, युद्ध के लिएतैयार हो जाओ “ पर मानेकशा ने हाथ जोड़ लिए. जब सबलोग मीटिंग से जाने लगे तो इंदिरागांधी ने मानेकशा को रुकने के लिए कहा. मानेकशा ने सबके जाने के बाद कहा, “इस से पहले कि आप कुछ कहें .मैं इस्तीफा देने केलिए तैयार हूँ. मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य खराब होने का कोई भी बहाना बना दूँगा.पर इस वक्त मैं युद्ध के पक्ष में बिलकुल नहीं हूँ. १९६२ की तरह हमलोग बुरी तरहहार जायेंगे “ इंदिरा गांधी ने कहा, “नहीं आपकाइस्तीफा नहीं चाहिए. मुझे ये बताइये कि आपको युद्ध की तैयारी के लिए कितना वक्तचाहिए ?” मानेकशा ने कहा, “देश के कोने कोने से अपने सैनिकों को इकट्ठाकरने, युद्ध का प्लान बनाने उन्हें प्लान समझाने, सैनिकों को बौर्डर पर तैनात करने में मुझे चार-पांच महीने लग जायेंगे.और युद्ध की तैयारी के बाद मैं आपको भारत की जीत की पूरी गारंटी देता हूँ. “ इंदिरा गांधीने हामी भरी और मानेकशा युद्ध की तैयारी में लग गए.
मानेकशा यह भी चाहते थे किभारत की शांतिप्रिय देश की छवि को कोई ठेस ना पहुंचे . पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी सेना को भारत की मदद मिल ही रही थी. उनकी योजना थी कि इन सबसे त्रस्त होकरपाकिस्तान खुद ही आक्रमण कर दे. मानेकशा ने दिसम्बर में अपनी सेना की पूरी तैयारी की सूचना इंदिरागांधी को दी. मानेकशा खुद लद्दाख से लेकर पूरे बौर्डर पर जाकर सैनिकों से मिलते औरकहते, “हमने आपको ट्रेनिंग दी, हथियार दिए अब आप अपने देश को जीत दिला दो “ सारे जवान सबसे बड़े अफसर को अपने पास देखकर जोश से भर जाते. जब इंदिरा गांधी ने पूछा, “अब हम युद्ध केलिए तैयार हैं ? “ मानेकशा नेअपने बेलौस अंदाज में कहा, “येस, वी आर रेडी स्वीटी’ इंदिरा गांधी उनकीबात करने के तरीके से वाकिफ थीं. उन्होंने बिलकुल बुरा नहीं माना और नज़रंदाज़ करदिया .3 दिसम्बर 1971 को लड़ाई शुरू हुई और सिर्फ 13 दिनों में मानेकशा केनेतृत्व में भारतीय सेना ने,पाकिस्तानीसेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.पाकिस्तानी सेना बुरी तरह हार रही थी. मानेकशा को पता था, अब वे लोग सरेंडर कर देंगे . उन्होंने पहले ही समर्पण के कागज़ात तैयारकरवा लिए थे. मानेकशा ने जनरल जगजीत सिंहअरोड़ा से कहा, “ इट्स अ बिग डे इन योर लाइफ. टेक योर वाइफ विदयू.” सैम मानेकशा के मन में औरतों के लिए बहुत इज्जतथी. प्रधान मंत्री और सेनाप्रमुख दोनों काएक दूसरे पर भरोसा बहुत जरूरी है. तभी कोई देश आगे बढ़ता है. पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी के साथ 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने सरेंडरकर दिया. एक नए देश ‘बांग्ला देश’ का उदय हुआ.
पर मानेकशा को बंदी बनाये गए ,पाक्सितानी सैनिकों की ज्यादा चिंता थी. वे उन्हें लेकर भारत आये.उनके आराम का पूरा ख्याल रखा. भारतीय सैनिक टेंट लगाकर सोते थे. जबकि बंदी बनायेगए पाकिस्तानी सैनिक उनके पक्के बैरक में सोते थे. मानेकशा कैम्प में जाकर सभी से मिलते. पाकिस्तानी सूबेदार से पूछते , ‘बिस्तर में खटमल तो नहीं है. मच्छरदानी है ना. “ फिर उनके किचन में जाकर खुदखाना खा कर देखते कि खाना ठीक बना है या नहीं. साफ़ सफाई करने वाले से हाथ मिलानेको हाथ बढाया तो उस सफाईकर्मी ने मना कर दिया. मानेकशा ने कहा, ‘क्यूँ कोई नाराजगी है...हाथ क्यूँ नहीं मिलाओगे ?’ उसने हाथ मिलाया जब वे सबसे मिलकर जाने लगे तोपाकिस्तानी सूबेदार ने कहा, ‘गुस्ताखी माफ़हो हुजुर तो कुछ पूछूँ ? ‘ मानेकशाने कहा,, ‘आप हमारेमेहमान हैं कुछ भी पूछ सकते हैं. उसने कहा, “अब मुझे पता चलगया कि हिन्दुस्तानी फ़ौज क्यूँ जीती. आप खुद जाकर सिपाहियों से मिल रहे हैं. उनकेआराम का ख्याल रख रहे हैं. उनका खाना चखकर देख रहे हैं. हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता. सेना के अफसर अपने आपको नवाबजादे समझतेहैं.” मानेकशा को ये ख्याल था कि ये पाकिस्तानी अपने गाँव जायेंगे . वहाँखटिया पर बैठेंगे, हुक्का पियेंगे. अपने गाँव वालों को युद्ध के किस्से सुनायेंगे .तब वोहमारे बारे में कहेंगे कि हिन्दुस्तान के लोग बुरे नहीं हैं ,उन्होंने हमारा ख्याल रखा. उनके मन में हमारे लिए नफरत का जलजला नहींहोगा.जब वे रिटायरमेंट के बाद पाकिस्तान गए तो पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी पगड़ीउतार कर उनके पैरों पर रख दी और उन्हें अपने भाइयों के साथ इतना बढ़िया सुलूक करनेके लिए दिलो जान से शुक्रिया कहा.
१९७२ में उन्हें पद्मविभूषण दिया गया. १९७३ में उन्हें ;फील्ड मार्शल’ की उपाधि दीगई. वे जीवनपर्यन्त भारत के फील्ड मार्शल रहे. एक सार्थक भरी पूरी जिंदगी जीने के बाद 27 जून 2008 को उन्होंने अपनीआँखें सदा के लिए मूँद लीं