कल एक सवाल पूछा था...कई लोगों ने इसे पढ़ा, समझने की कोशिश की. वक़्त निकाला,और जबाब भी दिया. सबका शुक्रिया...सौरभ,राज जी, महफूज़ को लगा, अपने कॉलेज के सहपाठी ,जो पहला प्रेमी भी था, उसी से शादी करेगी...क्यूंकि पहला प्यार भुलाना मुश्किल होता है. पर सौरभ ने कहा ये कलयुग है वो भाभी के भाई से शादी करेगी. राज जी ने भी बाद में विचार बदल दिए और उन्हें लगा बिजनेसमैन से शादी करेगी.
वाणी, संगीता जी,अनीता जी,प्रवीण जी, अजय जी, का विचार था
शादी भाभी के भाई से होगी. उन्हें लगा...वह एक लेखक है...मानसिक स्तर समान है, रिश्तेदार भी है..घरवालों को पसंद है..इसलिए उसी से शादी करेगी
सतीश जी ,वंदना,शिखा,रवि धवन जी ,समीर जी, दीपक मशाल,एम वर्मा जी , पंकज उपाध्याय .अंतर सोहिल ,इन लोगों को लगा कि अब उसमे व्यावहारिकता आ गयी है और बिजनेसमैन ही एक बेहतर जीवन साथी हो सकता है.
माधव, खुशदीप भाई, रंगनाथ जी ,अरविन्द मिश्र जी, शेफाली, PD, उदय जी , राजेन्द्र मीणा...ये लोग तय नहीं कर पाए कि लता को किसे पसंद करना चाहिए. ये लोग वह पुस्तक पढ़कर जानना चाहते थे कि लता ने किस से शादी की पर शायद इन्होने संजीत जी के कमेंट्स नहीं पढ़े. उन्होंने Suitable Boy के हिंदी अनुवाद "एक भला सा लड़का " का जिक्र किया है और कमेन्ट में भी जिक्र कर दिया है कि लता, 'हरेश' यानि बिजनेसमैन को जीवनसाथी के रूप में पसंद करती है. और उसी से शादी करती है.
वैसे रवि धवन जी ने सही कहा कि आपके सवाल में ही जबाब छुपा है. अगर लता, अपने पुराने प्रेमी से या उस लेखक से शादी करती तो कोई कन्फ्यूज़न ही नहीं होता. पर चलिए आपलोगों की टिप्पणियों से
कुछ तो समझ में आया कि क्या कारण हो सकते हैं.
सबसे पहले दीपक मशाल ने कहा, "अब विक्रम सेठ लिखेंगे तो कुछ तो ऐसा होगा जो औरों से हटके होगा."
शिखा,रवि धवन जी को लगा कि वह कर्मठ है..काम के प्रति अपनी जिम्मेवारी समझता है,इसलिए लता ने उसे चुना.
शिखा का कहना है, "राईटर लोग हर किसी को पसंद नहीं होते :) थोड़े सेल्फ सेंटर्ड से होते हैं :) और वो भी फैमस और अवार्ड विन्निंग "..(हम्म्म्म ये सवालिया निशान तो सारे लेखकों पर लग गया अब :) ) अंतर सोहिल का भी कहना है, "वैचारिक समानता होने के बावजूद वो लता को समय नहीं दे पायेगा और कुछ उसमें अपनी सफलताओं का अहम भाव भी रहेगा। लता खुश नही रह पायेगी।" पंकज उपाध्याय के अनुसार ," ’बडा’ और ’अवार्ड विनिग’ है तो हो सकता है कि नाम के लिये शब्दो को परोसता हो.. लेखक लोग बंधना भी नही चाहते, थोडे स्वछंद किस्म के होते हैं.. आज़ाद ख्याल वाले"
BTW कहीं यही वजह तो नहीं कि विक्रम सेठ अब तक कुंवारे हैं..:)
समीर जी का कहना था...वो जुझारू बिजनेसमैन है ,थोड़ा अनकल्चर्ड है,पर उसे सुधारा जा सकता है. अंतर सोहिल का तर्क है कि विधवा माँ की पसंद है,और 1950 की कहानी है तब की मानसिकता ऐसी ही होती थी.पंकज उपाध्याय का कहना था कि लड़का कर्मठ है और वेल मैनर्ड भी नहीं..तो उसे मैनर्स सिखाने का मौका मिले शायद इसलिए लता उस से शादी करे(क्या सोच है, नई उम्र की :)...Hope, पंकज सब कुछ सीखे सिखाये होंगे..और कुछ सिखाने की गुंजाईश ना रखें ,तब उन्हें विश्वास हो जायेगा कि लड़की ने उन्हें कुछ सिखाने के लिए उनसे शादी नहीं की है :))
इस उपन्यास का फलक तो बहुत व्यापक है...अपने में भारत के एक महत्वपूर्ण दौर का इतिहास समेटे हुए. पर इसका अंत बहुत ही रोचक है.
लता और हरेश की शादी,बनारस में होती है क्यूंकि उसका पैतृक आवास वहीँ था. शादी के बाद के रात की पहली सुबह है. हरेश, खिडकी के पास जाता है और खिड़की से उसे एक बस्ती नज़र आती है जहाँ जानवरों की खाल धोई, सुखाई जाती है. और चमड़े का व्यापार किया जाता है वह 'लता' से कहता है ,' मैं जरा उस बस्ती का एक चक्कर लगा कर आता हूँ' और नई नवेली दुल्हन को अकेला छोड़ वह कर्मयोगी काम पर निकल जाता है.
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चलिए मेरा अंदाजा तो सही निकला :)
जवाब देंहटाएंhamara andaza to galat ho gaya.
जवाब देंहटाएंविचार बदलने का लाभ हुआ, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजय हो!! जीत गये..अब इनाम लाओ!!
जवाब देंहटाएंबनारस ?कब ?? :)
जवाब देंहटाएं@ समीर जी,
जवाब देंहटाएंआपने चीटिंग की...:)
आपने जरूर संजीत जी के कमेंट्स देख लिए होंगे...आपके कमेंट्स उसके बाद थे :)
मैंने अपने पहले आए प्रत्येक कमेंट को लाइन बाइ लाइन पढ़ा था। :-)
जवाब देंहटाएंमैंने आपका और सबका ध्यान इस बात की ओर दिलाना चाहा कि पुस्तक-चर्चा का आपका यह तरीका काफी मजेदार है। इस तरह से साहित्य को और भी लोकप्रिय बनाया जा सकता है।
अभी मैंने लीला सेठ की जीवनी की समीक्षा की है। मजेदार बात है कि विक्रम के उपन्यास के कई चरित्रों की प्रेरणा वहाँ साक्षात मौजूद है। खास तौर पर वह अध्याय जिसका नाम लीला सेठ से अ सूटेबल ब्वाय रखा है इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इसलिए लीला सेठ की आत्मकथा आन बैलेंस (हिन्दी में-घर और अदालत) को पढ़ना इस विक्रम और उनकी किताब को समझने के लिए उपयोगी हो सकता है। मैं कोशिश करूंगा कि लीला सेठ की किताब के कुछ मजेदार अंश आपके सामने रखुं। बस थोड़ा समय समय लग सकता है।
जवाब तो गलत हुआ....पर ये तरीका पसंद आया....
जवाब देंहटाएंविक्रम सेठ को चूना लगा दिया आपने दी.. अब जब सबको क्लाइमैक्स ही पता चल गया तो कौन खरीदेगा बुक को?? :)
जवाब देंहटाएं@दीपक,
जवाब देंहटाएंवैसे भी कौन खरीदने जा रहा था..:) मैने तो शायद थोड़ी जिज्ञासा बढ़ा ही दी है. इतनी मोटी ग्रन्थ जैसी पुस्तक...मैं बाकायदा डाइनिंग टेबल पर सीधी बैठकर पढ़ती थी...सब चिढाते थे...लगता है कोई इम्तहान है क्यूंकि रात के २ बजे तक पढ़ा करती थी...तब जाकर ख़त्म हुई. इतना समय निकाल सके, तभी कोई पढने की सोचे.
@ रंगनाथ जी,
जवाब देंहटाएंसॉरी..सच में आपने ये कहा था कि "किसी पुस्तक की ऐसी चर्चा करना बेहतरीन आइडिया है।"...मैने लिखते वक़्त सोचा था...उसे उद्धृत करने का...फिर भूल गयी...पर एक फायदा ये हुआ कि आपकी सुपरिचित एक लाईना टिप्पणी की जगह इतनी लम्बी टिप्पणी देखने को मिल गयी :) :)
hmmmmmmmmmmmm.....सही जवाब न?
जवाब देंहटाएंदेखा मेरा अंदाजा ठीक निकला न ...:) आखिरकार हम भी लेखकों को कुछ - कुछ पहचानने लगे हैं :)
जवाब देंहटाएंबेचारी लता ....इस जुझारू बिजनेसमैन को कब तक सिखा पाएगी कि दुनिया चमड़े के अलावा भी बहुत कुछ है ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारी ऐसी और पोस्ट का इन्तजार रहेगा ...!!
पुस्तक चर्चा का यह तरीका काफी रोचक है.
जवाब देंहटाएंबेचारी लता!! वाणी जी की बात को ही मेरी बात समझे.. :)
जवाब देंहटाएं"Hope, पंकज सब कुछ सीखे सिखाये होंगे..और कुछ सिखाने की गुंजाईश ना रखें ,तब उन्हें विश्वास हो जायेगा कि लड़की ने उन्हें कुछ सिखाने के लिए उनसे शादी नहीं की है :))"
ना जी :).. कुछ सुधरने की गुन्ज़ाईश तो रखनी ही चाहिये कि वो अपनी कसम दे और बोले कि उसके लिये ऎसा करना छोड दो तो छोडा जा सके... इसलिये कुछ बुराईया रखना तो वाज़िब है.. :) और इसीलिये मैने तो पूरा खजाना छोड रखा है.. अब देखना ये है कि कौन होती है वो ’बेचारी’ :)
हम्म गाँव की यात्रा के कारण मै सवाल जवाब का हिस्सा नहीं बन पाया , उसका मुझे अफ़सोस है लेकिन आज जब मैंने ब्लॉग ओपन किया तो देखा की सभी लोगों ने तमाम तुक्के मारे है , कुछ सही. कुछ सही से थोड़े दूर ., वैसे मै अब सही जवाब दे सकता हूँ.वैसे भी सेठ लोग अच्छी लडकियों की शादी सेठ में ही कराएँगे ना? चुकी मै लेखक नहीं हूँ इसलिए सीधा सीधा सोचता हूँ
जवाब देंहटाएंhanji, ham apna inaam lene aa gaye hain, bataiye kidhar hai?
जवाब देंहटाएंहेलो। शुक्र है मेरा अनुमान ठीक रहा।
जवाब देंहटाएंहाँ .....कई बार तुक्के भी गलत हो जाते हैं...... मैंने एक जनरल बात कही थी....क्या पता था कि विक्रम सेठ..... बात ही बदल देगा .... वैसे कल से कमेन्ट देने की कोशिश कर रहा हूँ..... आपके ब्लॉग पर कमेन्ट ही नहीं पोस्ट हो रहा था.... अब जा कर हुआ है....
जवाब देंहटाएंलीजिये हम तो देर से आये ....वर्ना कोई न कोई सत्ता तो हम भी लगा ही लेते .....!!
जवाब देंहटाएंkya likha jaay, tumne ye tareeka achchha khoja aur isase kuchh sahitya ki jaanakari bhi mil gayi.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है ऐसी पुस्तक समीक्षायें अगर साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने लगें तो लोग पुस्तक समीक्षा भी पढ़ने लगेंगे । BTW मैने ऐसी शुरुआत कर दी है .. आप भी भेजिये पत्रिकाओं में .. वहाँ के लोगों को भी तो पता चले, है कोई.....
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