अपनी जुली न जूलिया की पोस्ट का लिंक जब मैंने buzz पर डाला तो अविनाश जी और प्रवीण जी के ये कमेंट्स मिले
अविनाश वाचस्पति - एक ऐसी फिल्म भी बतलाएं जिसमें नायक को हिन्दी ब्लॉगर दिखलाएं
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - अविनाश जी की जिज्ञासा को हमारा भी वोट ! और मन यह सोचने पर मजबूर हो गया कि अगर सचमुच हिंदी पुरुष ब्लोगर पर फिल्म बनायी जाये तो??. और मेरी कल्पना के घोड़े दौड़ने लगे.वैसे भी अब दौड़ते घोड़ों की पहुँच बस कल्पना तक ही रह गयी है..रेसकोर्स में भी तो अच्छी नस्ल वाले घोड़े ही दौड़ते हैं. बाकी सब तो कल्पना में ही दौड़ कर शौक पूरा कर लेते हैं.
खैर तो कल्पना कीजिये कि ये एक पुरुष ब्लोगर पर बनी फिल्म है. उसे ब्लॉग के बारे में अखबार से या अपने मित्र से पता चलता है.घर आता है,लैपटॉप खोलता है. ब्लॉग बना डालता है. पत्नी बच्चों को डांटती है, पापा काम कर रहें हैं शोर मत करो. और पत्नी,बच्चे सब दूसरे कमरे में चले जाते हैं.
सुबह भी वे अपना लैपटॉप खोलते हैं. चाय वही आ जाती है. ब्रेकफास्ट वहीँ आ जाता है. तैयार होकर ऑफिस जाते हैं. वहाँ जब थोड़े खाली हों,अपना ब्लॉग खोल लिया.या किसी मीटिंग में गए, बोरिंग लगी तो मोबाईल पर कोई पोस्ट खोल ली.
ऑफिस से आए वही रूटीन, चाय, नाश्ता, खाना ,ब्लॉग्गिंग . लीजिये फिल्म ख़त्म. कोई रोचक मोड़, जद्दोजहद, परेशानी, उल्लास टेंशन हुई?? नहीं. तो फिल्म ४ मिनट की तो नहीं बन सकती .हाँ पुरुष ब्लोगर कहेंगे ,महिलाओं को क्या पता, हमें कितनी टेंशन होती है. ई.एम. आई. भरना है, इतने सारे बिल भरने हैं..हम यह सब सोचते रहते हैं अब इस सोच को तो परदे पर प्रदर्शित नहीं कर सकते ना. अब ब्लॉग्गिंग पर फिल्म है तो...हीरो हीरोइन को ड्रीम सिक्वेंस में बगीचे में ...बारिश में गाना गाते भी तो नहीं दिखा सकते.
अब यही देखिये किसी हिंदी महिला ब्लॉगर पर बनी फिल्म. अगर वह गृहणी है तो बच्चों से ,देवर से या पति से उसे ब्लॉग के बारे में पता चलता है. बड़े उत्साह से जाती है. जरा हेल्प करो,ना...अभी रुको जरा ये काम कर लूँ.उनके लिए ,अच्छी चीज़ें खाने को बनाती है, किसी चीज़ की जरूरत हो दौड़ कर ला देती है. सौ अहसान जताते हुए वे ब्लॉग बनाने में हेल्प करते हैं.
सुबह उठती है..जल्दी जल्दी बच्चों को स्कूल भेजती है. बीच में थोड़ा सा वक़्त मिले तो कंप्यूटर खोल लेती है. एक पोस्ट पढ़ी नहीं कि पतिदेव की आवाज़ आ गयी..चाय देना..चाय देकर आती है..कमेन्ट टाइप करती है कि कामवाली आ जाती है. उसे थोड़ा निर्देश दिया ..फिर आकर कमेन्ट पोस्ट कर, कंप्यूटर बंद कर दिया.
फिर घर के काम निबटा, पति को ऑफिस भेज .कम्प्यूटर पर आ जाती है. जबकि घर के सौ काम राह देख रहें होते हैं. कपड़े समेटना है,डस्टिंग करनी है.वगैरह वगैरह. एक पोस्ट लिखी जा रही है. और एक नज़र घड़ी पर है. बच्चों को बस स्टॉप से लाना है. पोस्ट पूरा किया पब्लिश बटन प्रेस किया.और कंप्यूटर बंद. बच्चों को खाना खिलाया, उनकी बातें सुनी. बाकी काम समेटे . बच्चों को पढने बिठाया फिर वापस कंप्यूटर. अपनी पोस्ट पे कमेन्ट पढ़े...दूसरों की पोस्ट पढ़ी, कमेन्ट किए. बैकग्राउंड में बच्चों का झगडा, उनका बार बार कुछ पूछना क्यूंकि ममी कम्प्युटर पर है. बच्चों को तो undivided attention चाहिए. जानबूझकर पूछेंगे, जरा ये बता दो..जरा ये समझा दो. रोना धोना सब. बच्चे अगर थोड़े बड़े हैं तो उन्हें भी उसी वक़्त कम्प्यूटर चाहिए क्यूंकि स्कूल का कोई प्रोजेक्ट तैयार करना है. इनके बीच ब्लॉग्गिंग चलती रहती है.
जो महिला ब्लोग्गेर्स ऑफिस जाती हैं. वे तो घर से ऑनलाइन होने की सोच भी नहीं पातीं. कभी कभार कोई विशेष पोस्ट लिखनी हो तो देर रात गए जागना होता है. पर दूसरे दिन सुबह उठकर ऑफिस जाने के पहले काम ख़त्म करने की चिंता हर घड़ी माथे पर सवार. ऑफिस से भी पुरुषों की तरह वे बेख़ौफ़ ऑनलाइन नहीं हो पातीं. कलीग्स या जूनियर थोड़ी कटाक्ष कर ही जाते हैं. बीच में लंच टाइम में एक पोस्ट लिख कर डाल दी. और उस पर मिले कमेन्ट दूसरे दिन लंच टाईम पर पढ़े .दूसरों की पोस्ट पढने और कमेन्ट करने का वक़्त तो मिल ही नहीं पाता.
इन सबके साथ, रिश्तेदारों का आगमन, बच्चों की बीमारी, डॉक्टर का चक्कर, बच्चों का बर्थडे ,तीज-त्योहार, घर मे पार्टियों की तैयारी, रिश्तेदारों के सैकड़ों फोन और उलाहने, जब से ब्लॉग्गिंग शुरू किया है,तुम्हारे पास तो टाइम ही नहीं.
तो इसलिए बनायी जाती है महिला ब्लोगरों पर कोई फिल्म. क्यूंकि इतने सारे रंग हैं उनके जीवन में.जिन्हें फ़िल्मी कैनवास पर बखूबी उतरा जा सकता है.