आने वाले दिन बहुत ही व्यस्तता भरे हैं... पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेवारियों के अलावा कहानी की अगली किस्त पोस्ट करनी है...आकाशवाणी से भी एक कहानी की फरमाइश है और डेड लाइन है..२६ मार्च (एक महीना पहले ही उनलोगों ने बता दिया था...पर तब तो लगता है..अभी बहुत समय है..कहानी की रूप-रेखा तैयार है पर फिर भी 9 में मिनट उसे फिट तो करना बाकी ही है ) फिर भी .एक विषय इतना मन में इतना उथल-पुथल मचा रहा है कि उस पर लिखे बिना किसी और विषय पर लिखने से उंगलियाँ इनकार कर दे रही हैं.
अनुरूप ने पहले दिन ये भी आरोप लगाया कि सागरिका ने उसपर कई बार हमले किए...तस्वीरों में सागरिका ना तो इतनी शक्तिशाली दिखती हैं और ना अनुरूप पिद्दी से. जरूर दोनों बहस करते हुए आमने-सामने आए होंगें और हो सकता है दोनों ने ही एक दूसरे पर हमले किए हों. हाँ, यहाँ सागरिका सर झुकाकर चुप नहीं बैठी होंगी पर यह तो ऐसा ही हुआ कि किसी को धकेलते हुए दीवार तक ले जाओ..फिर वह बचाव के लिए कुछ करे तो उसे मानसिक रोगी घोषित कर दो.
"नहीं मैडम खाना तो खा चुकी है"
"तो ज़रुर उसके बच्चे से अलग किया होगा"
" तो क्या करे ,सारे दिन बच्चे के पास ही बैठी रहेगी तो फिर आप लोगो को घूमने कौन ले जायेगा |
देखा मैंने कहा न ज़रुर कोई तकलीफ़ होगी तभी वो चिल्ला रही है उसके बच्चे से उसे अलग करोगे तो क्या वोचिल्लाएगी नहीं |
शायद सबकी नज़र नॉर्वे में एक भारतीय दंपत्ति के बच्चों के कस्टडी की लड़ाई पर बनी हुई है. जहाँ आठ महीने पहले अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य के तीन वर्षीय बेटे 'अभिज्ञान' और एक वर्षीय बेटी ' ऐश्वर्या ' को अपने माता-पिता के संरक्षण से लेकर फ़ॉस्टर केयर में दे दिया गया था. टी.वी. अखबारों में इस केस के बहुत चर्चे रहे...भारतीय सरकार ने भी इस केस में रूचि ली और विदेश मंत्रालय के दो अधिकारी इस समस्या को सुलझाने नॉर्वे सरकार से बातचीत करने नॉर्वे जाने वाले थे. पर उन्हें अपनी यात्रा कैंसिल करनी पड़ी क्यूंकि दो दिन पहले...अनुरूप भट्टाचार्य ने मिडिया से यह कहा कि उनकी पत्नी मानसिक रोगी है और उसपर हमला किया है. वे अपनी पत्नी से अलग होना चाहते हैं. एक दिन बाद ही वे अपने बयान से पलट गए और कहा कि ' वे बहुत मानसिक तनाव में थे इसलिए ऐसा कह डाला...पति-पत्नी में कोई मतभेद नहीं है"
यानि कि मानसिक तनाव हुआ...नाराज़गी हुई तो पत्नी को पागल करार दे दिया??. अखबारों में ये ख़बरें भी आ रही हैं कि पत्नी सचमुच डिप्रेशन में है. तो ऐसी स्थिति में कौन सी महिला डिप्रेशन में नहीं होगी? वो विदेश में है जहाँ उसके पास उसके अपने करीबी लोग नहीं हैं जिनसे अपना दुख-दर्द बाँट सके. पिछले आठ महीने से उसके दुधमुहें बच्चे उस से अलग हैं. उसके बाद से ही अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है कि बच्चे उसे मिलेंगे या नहीं? टी.वी. ..अखबारों से बातचीत में बार-बार उन्हीं बातों का दुहराव कि कैसे उस से बच्चे ले लिए गए....यह सब उसे मानसिक तनाव नहीं देगा?
कुछ दिन पहले बच्चों के नाना-नानी यानि कि सागरिका के माता-पिता ने दिल्ली में नॉर्वे के एम्बेसी के सामने प्रदर्शन भी किए थे और तब खबर यह थी कि बच्चे नाना-नानी को सौंपे जाएंगे. फिर खबर ये आई कि बच्चे अपने चाचा यानि अनुरूप के भाई को सौंपे जाएंगे. हो सकता है..सागरिका चाहती हों..बच्चे उनके माता-पिता को सौंपे जाएँ. और सागरिका का कहना है कि उनसे कहा जा रहा है..वे एक एग्रीमेंट पर साइन कर दें कि बच्चों के चाचा ही उनके गार्जियन होंगें. सागरिका के इनकार करने पर अनुरूप ने उन्हें धमकी दी...घर से निकल जाने को कहा. और फिर मिडिया में सागरिका को मानसिक रोगी करार दिया. जबकि सागरिका और उसके पिता का कहना है ...सागरिका पर उसके पति अक्सर हाथ उठाते रहे हैं.
अगर ये आरोप-प्रत्यारोपों की बात जाने भी दें. इतनी दूर से भी इतना तो समझ में आता है...कि वो औरत गहरे मानसिक तनाव में रहती होगी. भारत में नौकर-कामवालियों की सुविधा के बावजूद भी तीन साल और एक साल के बच्चों की देख-रेख में कितनी परेशानियां आती हैं. ये उस उम्र के बच्चों की माँ ही समझती है. जबकि यहाँ रिश्तेदारों का भी सहारा होता है. बच्चों को पालने के साथ-साथ पड़ोसियों..सहेलियों..से गप-शप भी होती है..अपने अनुभव भी बांटे जाते हैं...जिस से निश्चय ही स्ट्रेस से मुक्ति मिलती है. पर विदेश में ऐसा माहौल मिलना मुश्किल है. और उस पर से तीन वर्षीय अभिज्ञान autism का शिकार है. माँ को यह स्वीकारने में ही बरसों लग जाते हैं कि भगवान ने उनके बच्चे के साथ ही ऐसा क्यूँ किया?? अगर किसी माँ को सिर्फ एक बच्चे की ही देखभाल करनी हो जो विकलांग हो फिर भी सहेलियों- रिश्तेदारों की सहायता-सहानुभूति के बावजूद माँ चरम तनाव का शिकार हो जाती है. जबकि यहाँ सागरिका को ऐसे असंवेदनशील माहौल में अभिज्ञान के साथ एक वर्षीय ऐश्वर्या की भी देखभाल करनी पड़ रही थी.
इन सबके साथ एक अवस्था होती है post partum depression की जिसे भारत में कोई तवज्जो नहीं दी जाती. पर शरीर चाहे अमरीकी हो ब्रिटिश हो या भारतीय...उसे दर्द का अहसास तो एक सा ही होता है. कहते हैं प्रसव के बाद एक महिला ,महीनो तक डिप्रेशन की शिकार रह सकती है. शायद हमारी पिछली पीढ़ी इस बात को ज्यादा अच्छी तरह समझती थी और तभी...प्रसव के बाद, चालीस दिनों तक स्त्री को गृह-कार्य.. उसके झंझटों से अलग रखा जाता था. उसे बढ़िया खानपान दिया जता था...उसके शरीर मालिश की जाती थी...यानि कि उसकी अच्छी तरह देखभाल की जाती थी. परन्तु आज की स्थिति से सब अवगत हैं. हॉस्पिटल से घर आते ही स्त्रियाँ काम-काज में लग जाती हैं. सागरिका की भी बेटी एक साल की ही थी. निशचय ही ऐसी प्रतिकूल परस्थितियों में वो post partum depression से भी गुजर रही होगी. कोई super woman या कहें super human being ही ऐसी प्रतिकूल परिस्थितयों में भी बिलकुल सामान्य रह सकता है. पर बिना औरत की स्थिति को समझे उसे मानसिक रोगी घोषित कर देना बहुत आसान है.
अनुरूप ने पहले दिन ये भी आरोप लगाया कि सागरिका ने उसपर कई बार हमले किए...तस्वीरों में सागरिका ना तो इतनी शक्तिशाली दिखती हैं और ना अनुरूप पिद्दी से. जरूर दोनों बहस करते हुए आमने-सामने आए होंगें और हो सकता है दोनों ने ही एक दूसरे पर हमले किए हों. हाँ, यहाँ सागरिका सर झुकाकर चुप नहीं बैठी होंगी पर यह तो ऐसा ही हुआ कि किसी को धकेलते हुए दीवार तक ले जाओ..फिर वह बचाव के लिए कुछ करे तो उसे मानसिक रोगी घोषित कर दो.
खैर यहाँ अनुरूप भी कम मानसिक तनाव में नहीं हैं और शायद आवेश में सागरिका को सबक सिखाने की सोच मिडिया में पति-पत्नी के बीच तनाव की बात कह गए. अगले दिन ही अपनी बात से मुकर भी गए पर इस क्रम में अपनी और भारत सरकार की सारी मेहनत पर पानी फेर गए. नॉर्वे ने कस्टडी केस की सुनवाई बंद कर दी और अब तो उनके पास कारण भी है कि बच्चों के माता-पिता में आपसी सौहार्द नहीं है और ऐसे माहौल में बच्चों का विकास सही तरह से नहीं हो सकता.
हालांकि बच्चों के माता-पिता की ऐसी मानसिक स्थिति तक पहुंचाने के जिम्मेवार नॉर्वे सरकार की CWS ( child welfare services ) ही है. एक अमेरिकन अखबार ने सही ही कहा है...'Norway Drives the Parents Crazy'. उन्हें इस पहलू को भी ध्यान में रखना चाहिए. क्या नॉर्वे के दूसरे दम्पत्तियों के बीच आपसी तनाव नहीं होते? इस दंपत्ति का तनाव इस चरम अवस्था तक पहुँच गया कि मिडिया तक बात पहुँच गयी.
नॉर्वे के ही एक पत्रकार का एक आलेख पढ़ा जिसमे उन्होंने लिखा है कि 'नॉर्वे में बच्चों के हित की रक्षा के कानून बहुत कड़े हैं परन्तु नॉर्वे सरकार की गलती ये है कि वे विदेशियों को इस क़ानून से सही तरीके से अवगत नहीं कराते. यही वजह है कि बहुत सारे विदेशी बच्चे नॉर्वे में 'फॉस्टर केयर' में दे दिए जाते हैं. करीब बीस रशियन बच्चे भी फ़ॉस्टर केयर में है. एक लड़का ८ वर्ष पूर्व माँ से छीन लिया गया और माँ को जबरदस्ती उसके स्वदेश वापस भेज दिया गया. नॉर्वे में रह रही ही एक विदेशी महिला दो साल से अपने बेटे से नहीं मिल पाई है.
बस प्रार्थना है की अनुरूप-सागरिका के साथ ऐसा ना हो. शायद उन्हें अपने बच्चे वापस मिल जाएँ. वे भारत लौट आएँ तो अनुकूल परिस्थितियों में अपने देश के माहौल .अपने करीबियों के बीच रहकर उनके आपसे रिश्ते भी सुधर जाएँ और बच्चों को भी अपने माता-पिता वापस मिल जाएँ.
इन सारी बातों ने मुझे अपने बचपन की एक घटना याद दिला दी. तब मैं स्कूल में थी. मेरी एक सहेली थी मीता . उसकी माँ एक हंसमुख महिला थीं. पड़ोसियों से.. हम बच्चों से बहुत ही प्यार से बात करती थीं. पिता कड़क स्वभाव के लगते थे. बच्चों से ज्यादा बात नहीं करते थे. पर तब अक्सर सारे पिता ऐसे ही होते थे..घर में कम और बाहर ज्यादा बातें किया करते थे. इसलिए हमें कुछ अलग सा नहीं लगता .
एक दिन हम उसके घर के पास ही खेल रहे थे कि उसके घर से ऊँची-ऊँची आवाजें सुनाई देने लगीं. मीता ..उसका छोटा भाई और हम कुछ बच्चे बाहर दरवाजे के पास दुबक कर सुनने लगे. मीता के नाना-नानी आए हुए थे . उसकी माँ जोर-जोर से ऊँची आवाज़ में बोल रही थीं.." ये इतना मारते-पीटते हैं...आपलोग कभी कुछ नहीं कहते..वगैरह वगैरह.." मीता के पिता गरज रहे थे, "ये पागल हो गयी है..कुछ भी बोलती है..इसे पागलखाने में भर्ती कराना पड़ेगा " मुझे लगा...उसके नाना-नानी उनका विरोध करेंगें...पर शब्दशः तो नहीं याद पर दोनों अपनी बेटी को ही दोषी ठहरा रहे थे कि "उसे गुस्सा क्यूँ दिलाती हो..आदि..आदि "...मीता की माँ के मन में शायद बहुत दिनों का गुबार जमा था..वे बोलती जा रही थीं...इस पर उसके माता-पिता भी उसके पति के सुर में सुर मिलाने लगे कि ऐसे बोलोगी तो सचमुच तुम्हे पागलखाने में भर्ती कराना पड़ेगा" ये सुनते ही...मीता और उसका छोटा भाई दौड़ कर अंदर जाकर माँ से लिपट कर रोने लगे. उसकी माँ उन्हें लेकर भीतर चली गयीं. सब शांत हो गया. हम बच्चे लौट आए. कुछ दिनों बाद उसके नाना-नानी चले गए और मीता की माँ हमसे वैसे ही प्यार से पेश आती रहीं.
कभी कभी कॉलोनी की महिलाओं की खुस-फुस कानों में पड़ जाती कि बेचारी के मायके वाले ही साथ नहीं देते तो वो क्या करे ..पर वे दिन अपनी दुनिया में ही मगन रहने वाले थे .हम सब भूल गए. इतने दिनों बाद आज ये घटना याद आ गयी कि अगर स्त्री प्रतिकार करे...विरोध करे तो उसे झट से पागल घोषित कर दो.
अभी हाल में ही राजस्थान गई थी तो वहा जा कर ऊंट की सवारी तो करनी ही थी , मेरे बैठने के बाद जब पति देव अपने ऊंट पे बैठने लगे तो वो जोर जोर से चिल्लाने लगी और दोनों ऊँटो के मालिक हाथों से उसका मुंह बंद करने लगे जब मैंने कहा की ये क्यों चिल्ला रही
"औरत है न इसलिए ज्यादा चिल्लाती है "
निश्चित रूप से ये सुनने के बाद मेरे अंदर की औरत या कह लीजिये नारीवाद को जागना ही था | मैंने भी जवाब दिया की "औरत यू ही नहीं चिल्लाती है ज़रुर कोई तकलीफ़ होगी तभी चिल्ला रही है , क्या भूखी है " "नहीं मैडम खाना तो खा चुकी है"
"तो ज़रुर उसके बच्चे से अलग किया होगा"
" तो क्या करे ,सारे दिन बच्चे के पास ही बैठी रहेगी तो फिर आप लोगो को घूमने कौन ले जायेगा |
देखा मैंने कहा न ज़रुर कोई तकलीफ़ होगी तभी वो चिल्ला रही है उसके बच्चे से उसे अलग करोगे तो क्या वोचिल्लाएगी नहीं |