मुंबई से बाहर जाने पर अगर यहाँ की कोई चीज़ मैं बड़ी शिद्दत से मिस करती हूँ तो वो है...यहाँ के अखबार. TOI तो हर जगह मिल जाता है...पर उसके सप्लीमेंट्स और मुंबई मिरर, मिड डे , डी. एन. ए. ये सब नहीं मिलते..और रोचक...जानकारीपूर्ण ख़बरें तो उनमे ही होती हैं...TOI के मेन न्यूजपेपर में जो ख़बरें छपती हैं, वह सब दिन भर विभिन्न चैनलों पर दिखाई जाती हैं.
अखबार से जुड़ी कुछ रोचक यादें भी है. बचपन में पापा की सख्त हिदयात थी कि हम तीनो भाई बहन रोज अखबार जरूर पढ़ें और अंग्रेजी के पांच शब्द अंडरलाइन करके रखें फिर उनके अर्थ डिक्शनरी से देखकर कॉपी में लिखें. इतना सा काम हमें पहाड़ सा लगता. शाम को पापा के आने से पहले हमें होश आता.फिर हम भाई बहन में झगडे होते...'मुझे दो पेपर...पहले मुझे दो'. कभी कभी हम बिना पढ़े ही अंडरलाइन कर देते और पेपर को ऐसे क्रश कर देते कि लगता पढ़ा है, हमने.(काश, मेरे बच्चे ना पढ़ें ये सब :) ).
पर अखबार पढने की लत जो बचपन में पड़ी...कहाँ जाती है.कहते भी हैं...Old habit dies hard सो .घर के सैकड़ों काम के बीच में 'न्यूजपेपर ब्रेक' चलता ही रहता है. और उनमे पढ़ी कोई रोचक या महत्वपूर्ण खबर यहाँ भी बाँट लेती हूँ. ऐसे ही कल' मिड डे' में डॉ. शाकिर हुसैन जो भारत के टॉप न्युरोफिजिशियन हैं का इंटरव्यू पढ़ा. और अपने देश के लाखों युवजनों का चेहरा आँखों के सामने घूम गया जो हाथों में छुपाये उस छोटे से उपकरण में लगातार कुछ ना कुछ बुदबुदाता ही रहता है. विज्ञापनों में ऋतिक रोशन को फोन पर स्क्रिप्ट सुनते देख और आमिर खान को पूरी रात अपनी गर्लफ्रेंड से बातें करते देख...इनका उत्साह और बढ़ता ही है,कम नहीं होता. और उन्हें ही क्यूँ दोष दें...हम, आप, सब इसके शिकार हैं. पर जितनी जल्दी असलियत से वाकिफ हो जाएँ और इसपर गंभीरता से विचार करें,उतना ही अच्छा
वैसे हम सबों को थोड़ा अंदाजा तो है ही कि देर तक मोबाईल फोन यूज़ करने के घातक परिणाम हो सकते हैं .पर डा.शाकिर हुसैन ने काफी बारीकी से इस पर प्रकाश डाला.
पिछले हफ्ते WHO ने एक रिपोर्ट जारी की कि electromagnetic radiation जो हमारे सेल फोन से निकलती है हमारे ब्रेन के neuro-circuitry में शॉर्ट सर्किट उत्पन्न कर सकती है.
सेल फोन एक तरह की एनर्जी उत्पन्न करती है और इसी तरह की एनर्जी का उपयोग विभिन्न मेडिकल उपकरणों में भी किया जाता है जो कैंसर टिशू को ख़त्म करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. हालांकि फोन से निकलती एनर्जी बहुत ही कम फ्रीक्वेंसी की होती है ,इसलिए यह बहुत धीरे धेरे नष्ट करती है. पर इस से नुक्सान होता जरूर है .इसलिए ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने पर ब्रेन के कोमल टिशू के नष्ट होने का पूरा खतरा है.
Brain tissues अति कोमल होते हैं इसलिए इनपर जल्दी असर होने का खतरा भी रहता है. radio waves के एक्स्पोजर से इनमे ट्यूमर बन सकता है. दो तरह के growths हो सकते हैं...एक तो meningioma जो ब्रेन को ढके रहने वाली झिल्ली में हो सकती है. पर वह इतनी खतरनाक नहीं है.लेकिन दूसरे तरह की growth को glioma कहते हैं जिसमे कैंसर के कीटाणु होते हैं.और वह जानलेवा साबित हो सकता है. इसलिए सेलफोन का देर तक इस्तेमाल ज़िन्दगी के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है.
सरदर्द, इसका सबसे पहला और आम लक्षण है, मिर्गी, पैरालिसिस, हाथ पैरों में कमजोरी भी बेन ट्यूमर के ही लक्षण हैं. अगर ग्रोथ मस्तिष्क के पिछले भाग में है तो कुछ भी निगलने में, आँखों पर असर और शारीरिक संतुलन पर भी असर पड़ता है. अगर सर दर्द के साथ उलटी भी हो तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए.
भारत में इसके इलाज की बेहतर सुविधा उपलब्ध है. डॉक्टर एक gamma knife का इस्तेमाल करते हैं. कैंसर के टिशू को ख़त्म करने के लिए. दूसरी तकनीक भी इस्तेमाल की जाती है,जिसमे ट्यूमर को खून का प्रवाह रोक दिया जाती है जिस से ट्यूमर का ग्रोथ रुक जाता है .
सबसे ज्यादा खतरा नवयुवकों को है जो ज्यादा से ज्यादा देर तक सेलफोन पर ही अपने सहकर्मी ,दोस्त ,रिश्तेदार,परिवारजन से बातें करते हैं.
सेलफोन आज के युग की अनिवार्यता है. फिर भी कुछ सीमाएं खुद ही बनानी होंगी. दो साल तक अगर रोज दो घंटे, सेल फोन का इस्तेमाल किया जाए तो खतरा बढ़ जाता है.इसलिए भले ही ये घीसी पीटी बात लगे पर सच है Prevention is better than cure .
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यह पोस्ट सभी के लिये सन्ग्रहणीय है और मोबाइल से हम मुक्त तो नही हो सकते पर सिर्फ़ जरूरी उपयोग से हानि को कम किया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंअति सर्वत: वर्जयेत
बहुत अच्छी जानकारी है...मैंने भी अभी २-४ दीं पहले ही इसके बारे में समाचार - पत्र में पढ़ा था....पर तुम्हारा प्रस्तुतिकरण बहुत गज़ब का है .. :):)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट है काफी जानकारी वाली ,,,,सच में कुछ कुछ सुनते तो हम भी काफी दिन से मगर मोबायल का उपयोग बंद करने या कम करने के प्रति इतने सचेत नहीं हुए,, जितन आज आप की पोस्ट पढ़ पढ़ कर हुए आज से ही कोशिश जारी है की मोबायल का प्रयोग कम किया जाये
जवाब देंहटाएंधन्यबाद
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
चलिए वैसे भी मुझे मोबाइल फोन से एक नफरत सी हो गयी है कुछ महीनो से....अब तो और कम प्रयोग करेंगे ;)
जवाब देंहटाएंवैसे भी अब ई मोबाइल जब भी बजता है न मुझे irritation होने लगती है... :P
बहुत उपयोगी जानकारी जुटाई है रश्मि जी ।
जवाब देंहटाएंबेशक एक एक शब्द सही है ।
अब नौज़वानों को कैसे समझाया जाये ?
यही समझ में नहीं आता ।
आप की बात से सहमत है, ओर मै बहुत ही कम फ़ोन करता हुं(मोबाईल)
जवाब देंहटाएंbahut badhiya jankari di hai.......jab shuru mein mobile chale the tab bhi isi prakar ki jankari paper mein aayi thi......sahi hai soch samajh ka rhi use karna chahiye........ati sabhi ki buri hoti hai.
जवाब देंहटाएंएक दिलचस्प घटना याद हो आई आपकी पोस्ट पढ कर ,
जवाब देंहटाएंदो नवयुवक मोबाईल खरीदने गए ...फ़ोन विक्रेता से पूछा ..नेट चलता है , एफ़ एम है , कैमरा है , एम पी थ्री , गेम्स , , और जाने क्या क्या ..
विक्रेता ने कहा , हां सब कुछ है जी सब कुछ है ..और चाहो तो आप कभी कभी इससे बात भी कर सकते हो । बस समझ जाईये कि .कितना और कैसा उपयोग हो रहा है मोबाईल का ।
post aur usme chhipa gyaan...dono hi dimaag me bhar liya...par padhte padhte hi teen baar mobile pe phone aaya ...wo bhi urgent...:D
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट है ..काफी जानकारी सहित ..मैने भी मोबाइल के गंभीर परिणाम के बारे में काफी पढ़ा है ..ये भी कि इसे शर्ट या पैंट कि जेब में नहीं रखना चाहिए
जवाब देंहटाएंखतरा तो है मगर रास्ता क्या है ?
जवाब देंहटाएंखतरे की घंटी है सावधान हो जाएं
जवाब देंहटाएंवैसे काफी बातें मुझे पहले से पता थीं दी... और कई सारी संभावनाओं के बारे में मैंने खुद से भी सोचा था लेकिन अब यह सिद्ध हो चुका है.. लोगों को जागरूक करती एक बेहतरीन और सार्थक पोस्ट के लिए आभार.. अब मोबाइल देख कर यही गाना याद आ रहा है कि- '' बच के रहना रे बाबा बच के रहना रे....''
जवाब देंहटाएं@अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंरास्ता यही है कि सीमित प्रयोग करें..
@दीपक
सही कहा दीपक...अधिकाँश बातें पता नहीं कितनी बार सुन चुके हैं हम..पर वही बार बार दुहराने से कुछ तो असर पड़ता है..
बहुत अच्छी पोस्ट. मैने भी मोबाइल से होने वाले इन खतरों के बारे में पढा है रश्मि , लेकिन आज मोबाइल ठीक भोजन की तरह हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है. फिर भी इसके अनावश्यक इस्तेमाल से तो बचना ही चाहिये.
जवाब देंहटाएंhmm kafi saargarbhit post, lekin aaj ke samay ko dekhte hue jab har koi mobile par hi nirbharhai, logo ko is bare me jarur sochna chahiye ki ve kitna aur kaisa upyog kar rahe hain mobile ka. vaise sach kah to dusro ke liye kuchh kahne se pahle mujhe khud hi dekhna hoga ki mai kitne ghante de raha hu mobile talk ko.....
जवाब देंहटाएंshukriya is jankari bhari post ke liye..
सुविधाओ को सावधानी से उपयोग न किया जाये तो खतरे तो हैं ही
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंवैसे अगर मोबाइल को दो दिन दूर कर दे तो पायेगें हमने कुछ नहीं खोया...
जवाब देंहटाएंजब तक कोई सेफ न कहे अनसेफ मानो..
काफ़ी अच्छी जानकारी एक जगह रखी है आपने.. एक चीज़ मै और जोडना चाहूगा अभी कामनवेल्थ गेम्स के लिये उन जगहो से दिल्ली सरकार ने कई टावर हटाने का निर्णय लिया है... वो कहती है कि टावर क रेडियेशन मानक से बहुत ज्यादा है और इसलिये वो टावर तक बन्द कर देना चाहते है..
जवाब देंहटाएंइस बात को पढकर मै सोच रहा था विदेशी खिलाडियो के लिये टावर तक बन्द किये जा रहे है और भारतीय जनता तो उन्हे कबसे झेल रही है.. उनके लिये कुछ भी नही.. सख्ती से मानक तो फ़ालो करवा ही सकते थे..
an intelligent post...
बहुत बढ़िया जानकारी दी है, लेकिन बिज़नस से जुड़े लोगों के लिए ये मजबूरी होती है. फिर भी इससे सतर्क तो ही जायेंगे. वैसे मैं बताऊँ ये जागरूकता तब आती है जब अपने आसपास किसी को इंसान ग्रसित होते देख लेता है. नहीं तो ये नसीहतें अपने ही पास रखो, कुछ नहीं होता सब कहने कि बातें है? जिअसे जुमले ही सुनाई देते हैं.
जवाब देंहटाएं@पंकज
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा पंकज,सरकार को अपनी जनता का ख़याल पहले रखना चाहिए और सख्ती से ऐसे कदम पहले ही उठाने चाहिए....लेकिन जनता जागरूक होने के बावजूद क्यूँ अपने स्वास्थ्य के प्रति इतनी लापरवाह है,समझ से परे है...मुंबई में कई बिल्डिंग्स अपनी टेरेस के ऊपर टावर लगाने की अनुमति दे देती हैं. इसकी एवज में कंपनी उन्हें एक मोटी रकम देती है जिस रकम से अक्सर वे अपनी बिल्डिंग का रंग रोगन करवाते हैं .इस तरह बिल्डिंग तो चमक उठती है पर उसमे रहने वालों का स्वास्थ्य अंदर ही अंदर खोखला होने लगता है...इस से खुद बिल्डिंग वाले ही बेखबर रहना चाहते हैं.
लाभदायक जानकारी
जवाब देंहटाएंआपको बधाई इतनी अच्छी जानकारीपूर्ण पोस्ट के लिए। कुछ जोड़ना है, दुहराव के ख़तरे के बावजूद -
जवाब देंहटाएं1-मोबाइल टॉवरों से लगातार उपजता रेडिएशन भी जीवन पर दुष्प्रभाव डालता है। शाहरुख़ की "माई नेम इज़ ख़ान" में बहुत सट्ल तरीक़े से इसका इशारा किया गया है कि - "मोबाइल रेडिएशन से हनी-बीज़् (मधु-मक्खियाँ) मर जाती हैं" ये बात वो कम-दिमाग़ सा नज़र आने वाला शख़्स दोहराता है, मगर समझने की बात ये है कि ये नासमझी की बात नहीं है। मधुमक्खियों की स्पेशीज़ को ख़तरा एक पूरी श्रृंखला की मौत बन सकता है, ख़ासकर शहद नाम के जैव उत्पाद की।
2- मोबाइल का देर तक प्रयोग सर्वाइकल स्पॉण्डलाइटिस के मरीज़ बढ़ा रहा है, यह अब एक अनुभूत तथ्य है। इस बीमारी का भी "सहन करना" और "नियमित व्यायाम" के अतिरिक्त कोई पूरा और आसान इलाज नहीं है।
3- मोबाइल का देर तक प्रयोग मानसिक व्यग्रता, अनिद्रा और उच्च रक्तचाप को बढ़ावा देता है। इस में से अनिद्रा से मानव मस्तिष्क में स्वत: बनने वाला एक हार्मोन "डोपामाइन" का बनना और स्राव घट जाता है जो मनुष्य को उच्च रक्तचाप बढ़ने और डिप्रेशन में ले जाने का सीधा और सरल उपाय बन जाता है। इस अवसाद की अवस्था को यदि समय रहते न थामा जाय तो यह मनोविकृतियों का कारण भी बन जाता है, बहुधा।
इसी "डोपामाइन" की कमी को पूरा करने के लिए जो दवाएँ दी जाती हैं, वे लती बनाती हैं, ड्रग्स के शिकार की तरह और अति के मामले में ये माइकल जैक्सन (या एक और महिला हॉलीवुड स्टार - जो नाम मुझे अभी याद नहीं आ रहा), या आसपास देखें तो परवीन बाबी जैसी त्रासदी को जन्म देता है। बात मोबाइल से हट कर जब नशीली ड्रग्स तक पहुँच ही गयी है तो एक ज़िक़्र और -
"डोपामाइन" की शारीरिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए उसका नैसर्गिक उत्पादन बहुत ज़रूरी है और यह केवल पर्याप्त नींद लेने से ही बनता है, और हँसने से यह प्रक्रिया और भी उत्प्रेरित होती है।
सो हँसिए जनाब :))
:)
अच्छी जानकारी है...
जवाब देंहटाएंउपयोगी पोस्ट..
Hi..
जवाब देंहटाएंJab yah post padhi thi turant hi tippani post karni chahi thi, par en wakt par net chala gaya aur meri tippani post na ho payi..
Aapke aalekh ki vishayvastu aur tathyaparak jaankari prashansneeya hai..
Main to mobile se hi net tak prayog karta hun.. Es radiation ke slow poison ka asar to khair mujh par bhi ho hi raha hoga..
Ab main bhi es se thoda door rahne ka prayatn karunga..
DEEPAK..
एक बात तो है, आजकल आपकी कलम , स्वास्थ्य और सामाजिक विषयों पर र्केंद्रित है जो अनुकर्णीय है,हर तकनीक के अपने फायदे और नुकसान होते है. जानकारी भारी पोस्ट के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंमोबाइल के इतने नुकसान तो हमें पता नहीं थे ...मगर हमें कोई खतरा नहीं
जवाब देंहटाएंहम तो इतने आलसी कि लैंड लाईन का उपयोग भी बहुत कम करते हैं ...
थोड़ी देर से पढ़ा पोस्ट को मगर इसका भी अपना लुत्फ़ है ...कमेन्ट से कई जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं ...आजकल अनियमित हूँ ...कारण तुम्हे पता ही है इसलिए नाराज नहीं होना ..!!
@आशीष भाई ,यह आप जैसे कला पारखियों का आशीष है की हम भी कभी पूछ लिए जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंअगर मेरा लिखा आपको अच्छा लगता है तो यह वह उस असीम सत्ता की मेहरबानी और हमारे श्रम का सार्थक होना है .
स्नेह बनाए रखेगें !
सुना है आप बनाराव्स से गुजरे हैं -इस नाचीज को बताया नहीं !
please give your email:
arvind mishra
drarvind3@gmail.com
अब तक तो नहीं सुना कि मोबाइल की वज़ह से किसी को ऐसा हुआ हो ... ?
जवाब देंहटाएंये तो सच है की आज के technological era में मोबईल एक जरुरत हो गया है, पर हमें जरुरत जगहों पर ही इसका use करना चाहिए तभी हम safe रह सकते है
जवाब देंहटाएं