हिंदी का एक बहुप्रचलित शब्द मुझे पसंद नहीं आता. हालांकि अधिकाँश लोग मेरी सोच से इत्तफाक नहीं रखेंगे .वैसे भी नहीं रखते ,इसलिए चिंता की बात नहीं...:)
लेकिन अक्सर ये शब्द खटकता है और फिर मुझे लगा, अपने मन की ब्लॉग पर उंडेल देना चाहिए. शायद कोई और मेरी तरह ही सोचता हो , और न भी सोचे क्या फर्क पड़ता है, पर मैं तो ऐसा ही सोचती हूँ.
वो शब्द है ' अर्द्धांगिनी ,वामांगिनी ' जो पत्नी के लिए प्रयुक्त होता है.
अर्द्धांगिनी ,यानी पति का आधा अंग .
वामांगिनी यानि पति का बायाँ अंग .
हालांकि यह शब्द प्यार और सम्मान का ही सूचक है कि पत्नी तो पति का आधा अंग है, या बायाँ अंग है.
लेकिन पत्नी आधा अंग क्यूँ है? उसका अलग अस्तित्व है. वो एक स्वतंत्र शख्सियत की मालकिन है.
हम अपने बाएं अंग को हमेशा देखते -सराहते तो नहीं हैं. उस से बस काम लेते हैं या फिर उसमें चोट लगे, वो काम न करे तो उसकी दवा दारु करते हैं कि वह सुचारू रूप से काम करने लगे .
बायाँ अंग भी मस्तिष्क से ही संचालित होता है यानी बायाँ अंग वही करेगा जो पति का मस्तिष्क आदेश करेगा.
यह सुनने में कुछ अजीब सा लगता है पर है तो सच ही.
होता भी यही है.
अधिकाँश मामलो में पति का आदेश मानना ही होता है या, उनके मन की करनी ही होती है. फैसले पर आखिरी मुहर अक्सर उनकी ही होती है.
जब इस शब्द की संरचना की गयी होगी तो उस वक़्त की सामाजिक व्यवस्था अलग थी. पत्नी के लिए पति ही सबकुछ होता था .हमारे पौराणिक कथाओं में भी है यही लिखा होता है, पार्वती जी ने इतनी तपस्या की, तब उन्हें शिव जी मिले. या अमुक देवी ने या राजकुमारी इतने व्रत रखे तो मनचाहा वर मिला. स्त्री का एकमात्र ध्येय होता था ,एक अच्छे पति को पा लेना .( गांवों-कस्बों में आज भी स्थिति बदली है क्या ?? )
जीविकोपार्जन पति ही करता था. चाहे शिकार करना, अन्न उपजाना या व्यापार करना हो , स्त्री बस उसके घर और बच्चों को संभालती थी .उसका कोई अलग अस्तित्व नहीं होता था .यही वजह थी कि अगर पति की मृत्यु हो जाए तो फिर स्त्री का अस्तित्व भी विलीन हो जाता था . कुछ प्रदेशो में तो सती प्रथा थी. जहाँ नहीं भी थी , वहां पति की मृत्यु के बाद विधवाओं का जीवन कैसा होता था, ये सबको ज्ञात है. उनके जीवन से सारे रंग हर लिए जाते थे .वे बस एक छाया बनकर जीवित रहती थीं.
अगर पत्नी के जीवित रहते भी पति उस से विमुख होकर किसी दूसरे के प्यार में पड़ जाए तो पत्नी मरणासन्न हो जाती थी. रविन्द्रनाथ टैगोरे का एक उपन्यास है ,' चोखेर बाली '
सौ साल पहले ही लिखा गया है ..उसमे पति एक दूसरी स्त्री से प्रेम करने लगता है तो उसकी पत्नी की जीवन में कोई रंग नहीं बचता .वह मरणतुल्य हो जाती है. उस वक़्त पति के बिना किसी स्त्री के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जाती थी. इसीलिए यह अर्द्धांगिनी, वामांगिनी जैसे शब्द सही थे .
पर अब धीरे धीरे स्त्रियाँ अपनी पहचान भी बना रही हैं. अब वे सिर्फ पति का आधा अंग नहीं हैं. बल्कि अपने सम्पूर्ण अंग की स्वामिनी हैं ,जिनके पास अपना मस्तिष्क भी है.जिस से वे काम भी लेती हैं .
फिर उन्हें पति की अर्धांगिनी ही क्यूँ समझा जाए ??
फिर उन्हें पति की अर्धांगिनी ही क्यूँ समझा जाए ??
मैं तो पहले भी इस शब्द का प्रयोग नहीं करती थी .पत्नी शब्द ही मुझे ज्यादा उपयुक्त लगता है.
सटीक प्रश्न और उदाहरण दिए हैं आपने !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रचना
हटाएंमैं तो उन्हें पूर्णागिनी मानता हूँ । अब आधा आधा भी क्या जीना ।
जवाब देंहटाएंवो अब आपकी मर्जी :)
हटाएंबात तो सही है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंदोनों मिलकर पूर्ण हों सार्थकता इसी में है.....
जवाब देंहटाएंबिलकुल
हटाएंशिव और शक्ति का मिला जुला रूप है अर्धांगिनी . इस शब्द पर पहले भी काफी बहस हो चुकी है , कई लोग उत्त्मार्ध कहना पसंद करते हैं .
जवाब देंहटाएंहम तो कहते हैं की कुछ भी कहो क्या , अब ईश्वर या देवी को किसी भी नाम से पुकारो , भावना अच्छी हो :)
@इस शब्द पर पहले भी काफी बहस हो चुकी है .
हटाएंअच्छा ,हमने नहीं पढ़ा वरना कुछ तो शंका का निवारण हो गया होता .
रश्मि जी,
जवाब देंहटाएंबात तो आपकी बिल्कुल सही है कि ये महिलाओं का महत्तव कम करता है वर्ना पुरुषों के लिए भी अर्द्धांगिना जैसा कोई शब्द होता।मुझे भी ये शब्द पसंद नहीं और कभी प्रयोग भी नहीं किया।ऐसे शब्दों को अब बदलना चाहिए ।पर किस किसको बदलें। किसी न किसी अर्थ में पति स्वामी या हजबैंड जैसे शब्दों का अर्थ भी मालिक ही होता है।वैसे पत्नी शब्द का अर्थ भी मालकिन होता हो तो पता नहीं पर विवाह में कोई किसीका मालिक मालकिन रहे ही क्यों।
पति का शब्दार्थ पति ही होता है , हाँ ! अब स्वामी, परमेश्वर प्रयुक्त करें या उसे इस रूप में देखें तो उनकी मर्जी.
हटाएंहमने तो बस अपनी नापसंदगी बतायी .और उसके कारण भी गिना दिए :)
रश्मि जी,
हटाएंअब ये कहना ही पडेगा कि पति का शाब्दिक अर्थ पति ही होता है।नहीं तो पति शब्द तो मालिक के अर्थ में ही प्रयोग किया जाता है।करोडपति अरबपति का क्या अर्थ है?लंकापति से क्या मतलब निकलता है?और दक्षिण भारत में तो शायद अभी भी स्वामी शब्द प्रयोग किया जाता है।हाँ ये जरूर है कि पति शब्द को सुनकर अब वो मालिक वाला भाव नहीं आता इसलिए चलता है और फिर पत्नी शब्द इसका विलोम है ही ।वैसे मैंने कहा था किसी न किसी अर्थ में ऐसा होता है सामान्य तौर पर नहीं।
हम्म सही कहा आपने ,करोडपति, अरबपति की तर्ज पर देखा जाए तब तो पति का अर्थ मालिक ही होगा .
हटाएंअर्धांगिनी शब्द जब गढ़ा गया होगा तो एक यूनिट की तरह पति-पत्नी के रिश्ते को देखकर गढ़ा गया होगा, जिस समय यह गढ़ा गया होगा, उस समय पत्नी के सम्मान के लिए गढ़ा गया होगा ताकि वह पुरुष की बराबरी के स्तर को महसूस कर सके। अब सचमुच इसकी जरूरत नहीं रह गई है। बैरागी जी के ब्लाग में इसके लिए उत्तमार्ध शब्द यूज होता है जो मुझे नया सा लगता है।
जवाब देंहटाएंउत्तमार्ध को better half के अनुवाद के रूप में प्रयोग किया जाता है . हंसी मजाक में ठीक है पर गंभीर तौर पर 'पत्नी' शब्द ही सटीक है.
हटाएंसही जवाब ..
जवाब देंहटाएं:)
शुक्रिया
हटाएंआधी आबादी शब्द के बारे में क्या खयाल है। भारत में माना जाता है कि पुरुष और स्त्री एक युगल है और विवाह के बाद एक इकाई बन जाते हैं। इसलिए आधा शिव और आधी पार्वती। इसमें दोनों ही आधे हैं, ना पुरुष का अस्तित्व पूर्ण है और ना ही स्त्री का। जब दोनों मिलेंगे तभी वे पूर्ण होंगे।
जवाब देंहटाएंआदर्श रूप तो यही है,पर अफ़सोस कि ज्यादातर लोग ऐसा समझते नहीं .
हटाएंdono ke ho tabhi sampurn hai //accha likha aapne
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंआधा आधा बाट के रखेंगे तो न जाने क्या हाल होगा, हम भी पूरा ही समर्पण कर चुके हैं..
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंपहले तो ये साफ होना चाहिए की इस शब्द का वास्तविक मतलब क्या है , पति का आधा अंग , या पत्नी के बिना पति अधुरा है उसे मिला कर ही वो पूरा होता है या उसके शरीर का वाम अंग जो भले उलटा अंग हो किन्तु शरीर को पूर्ण कहलाने के लिए वो भी जरुरी है । जब तक सही अर्थ नहीं पता चलता है कहना मुश्किल है । वैसे एक बात ये भी है की इन शब्दों का अर्थ कुछ भी हो उनका निजी जीवन में कोई मायने नहीं है , न तो उनके बिना जीवन अधुरा कोई समझाता है और न ही उनको कोई उतना महत्व देता है और जिन स्त्रियों ने अपना अस्तित्व बना लिया है वो इन शब्दों से मतलब ही नहीं रखती है , कुछ ज्यादा ही विद्वान् होने का भ्रम पाले या खास दिखने की चाह वाले लोग ही आज इन शब्दों का प्रयोग करते है , सीधा साधा पत्नी कहा जाना ठीक लगता है ।
जवाब देंहटाएंसच है, इस शब्द के प्रयोग से या प्रयोग न करने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
हटाएंबस यह एक ख्याल था और वह भी इसलिए आया क्यूंकि आज भी अधिकतर स्त्रियों के स्वतंत्र अस्तित्व को मान्यता नहीं दी जाती.
प्राचीन काल से अगर पत्नियों को पति के अधीन नहीं समझा जाता . पतियों को स्वामी या परमेश्वर का दर्जा नहीं दिया जाता तो इस शब्द को भी महज एक शब्द बल्कि एक दुसरे के पूरक के रूप में स्वीकार करना आसान होता.
एक मजेदार वैज्ञानिक तथ्य बताता हूँ. शरीर के बाएं भाग को दिमाग का दाहिना भाग संचालित करता है, और दाहिने भाग को दिमाग का बायाँ भाग.
जवाब देंहटाएंयह बात हमें पता है, PD :)
हटाएंकल chat में एक बाला ने भी यही बात कही थी :)
अच्छा है तुमने ये सवाल नहीं किया कि फिर तो बाईं तरफ का मस्तिष्क दाए अंग को संचालित करता है...वरना जबाब हमारे पास उसका भी है :)
जब शादी हो जाएगी तब आपसे यह सवाल पूछेंगे. अभी तो रहने ही दीजिये. ;-)
हटाएंआमीन !! बस अब जल्दी से जल्दी फेरे लो ...इसलिए नहीं कि सवाल पूछ सको :)
हटाएंरश्मि, मुझे लगता है कि अर्द्धान्गिनी शब्द का प्रयोग स्त्री को आधा नहीं दिखाते, बल्कि पुरुष के अधूरेपन को प्रकट करते हैं. इस पत्नी के इस समानार्थी शब्द से साबित होता है कि स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है. किसी के आधे अंग को निष्क्रिय कर दिया जाये तो ऐसा व्यक्ति लकवाग्रस्त ही कहा जायेगा न? अपंग की श्रेणी होगी उसकी. वही महत्व वामांगिनी का भी है. वामा का अर्थ होता है स्त्री. वामांगिनी यानि लक्ष्मी, सरस्वती, स्त्री, या पत्नी. दूसरी तरफ़ वाम का अर्थ होता है बायां. अब यहां दोनों अर्थ लगाये जा सकते हैं. बायां अंग और स्त्री द्वारा अंगीकृत. जैसा कि वाणी ने भी ज़िक्र किया है, शिव और शक्ति का मिश्रित रूप है अर्धांगिनी का. स्त्री-पुरुष दोनों के सामंजस्य के बिना न तो सृष्ट सम्भव है, न जीवन. एक जन्मदाता है तो दूसरा जीवनप्रदाता. ये सही है कि स्त्री अपने आप में अलग इकाई है और पूर्णतया सक्षम इकाई है. शायद इसीलिये स्त्री ने कभी पति के लिये अर्धांग शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. उसे आधा अंग चाहिये ही नहीं.
जवाब देंहटाएंअगर पति के लिए भी 'अर्द्धांग ' शब्द प्रयुक्त होता फिर ऐसे सवाल ही नहीं उठते मन में.
हटाएं@ एक जन्मदाता है तो दूसरा जीवनप्रदाता.
जन्मदाता तो जरूर एक ही है पर दूसरा हमेशा जीवनप्रदाता नहीं रह जाता . सिर्फ स्वामी बनकर रहना चाहता है.
अब जीवनप्रदाता के रोल आपस में गड्डमड्ड होने लगे हैं,इसीलिए इस तरह के विचार सर उठाते हैं. मेरी कामवाली बाई बिलकुल भी पढ़ी लिखी नहीं है, नारी शस्त्रीकरण, फेमिनिज्म नहीं जानती. और संयोग देखो, ऐन 'वूमेंस डे' के दिन ही मुझसे कह रही है, "बच्चों को जन्म मैंने दिया है, उन्हें खिलाती-पिलाती, पढ़ाती-लिखाती मैं हूँ. पर हर जगह इसके पिता का नाम क्यूँ लिखना पड़ता है ? "
अपने तीन छोटे बच्चों को गाँव से लेकर आयी थी, झाडू-बर्तन करके तीनो को पढाया लिखाया है. बेटी दसवीं पास कर एक कारखाने में काम करती है.बड़ा बेटा बारहवीं और छोटा दसवीं के इम्तहान दे रहा है.
पिता गाँव में ही हैं, कभी कभार आते हैं दंगा-फसाद कर ,पैसे ऐंठ कर चले जाते हैं.
I guess she is not aware that mother's name is equally being used with full fledged rights w.e.f. 2005 amendments . In all government forms mother's name column is provided . May be due laziness or lack of knowledge few offices /institutes have not updated the papers that they must do . Make her aware about this change .
हटाएंरश्मि, हमारा देश आज भी बहुसंख्यक गांवों का देश है. ऐसा देश जहां आज भी साक्षरता अभियान चलाने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में सैकड़ों साल से चला आ रहा पुरुष वर्चस्व एकदम खत्म नहीं हो सकता हां, जो शिक्षित हैं, वे खुद बराबरी हासिल कर रहे हैं और दूसरों को समझाइश दे रहे हैं. हम, तुम या यहां से जुड़ी तमाम महिलाएं क्या पतियों की प्रवंचना की शिकार हैं? अगर होती तो ऐसे धड़ल्ले से अपनी बात कह पातीं? मतलब समय बदल रहा है. केवल पुरुषों की भर्त्सना नहीं की जा सकती. जो अच्छे हैं, वो तारीफ़ के हक़दार हैं. खुशकिस्मती से मैने अपने इन दोनों परिवारों में अच्छे पुरुष ही देखे. सो मुझे अर्द्धांगिनी कहलाने में भी आपत्ति नहीं है :) काम वाली को निश्चित रूप से जानकारी नहीं है कि कई साल हुए पिता के नाम को लिखने की अनिवार्यता को खत्म हुए :) अब केवल मां के नाम से ही फ़ॉर्म भरा जा सकता है.
हटाएं@summary
हटाएंOf course she knows that bt she has objection that when father has not contributed in their upbringing , Why his name is needed??
@वन्दना
हटाएंतुम्हारा कमेन्ट पढ़ कर मैंने दुबारा-तिबारा अपनी पोस्ट पढ़ी कि कहीं उसमे मैंने पुरुषों की भर्त्सना की है ?? क्या ये लिखा है कि सारी महिलायें पुरुषों की प्रवंचना की शिकार हैं ?? पता नहीं ऐसा क्यूँ लगा तुम्हे..
मैंने एक शब्द पर चर्चा की है. शीर्षक से ही स्पष्ट है. ये भी नहीं लिखा कि इस शब्द का प्रयोग पुरुष करते हैं. स्त्रियाँ भी करती ही होंगी पर मैंने उस पर कुछ लिखा ही नहीं.
यह बात मैं पहले भी कई बार लिख चुकी हूँ कि जब ब्लॉग पर या सार्वजनिक रूप से किसी विषय पर चर्चा की जाती है तो उसका अर्थ होता है अधिकांशतः... बहुतायत रूप से..बहुल क्षेत्र में व्याप्त इत्यादि .कभी भी 'सब' अथवा 'पूर्णतः' की बात होती ही नहीं.
ख़ुशी है कि तुमने दोनों परिवारों में अच्छे पुरुष देखे हैं पर यहाँ ब्लॉग पर या फेसबुक पर कई लोगों ने इस पर सहमति जताई है इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने अपने जीवन में खराब पुरुष देखे हैं :)
>> Why his name is needed??
हटाएंwell , because ideally its father's duty to take care of necessary things required for nourishment and up bringing of kids .... unfortunately if few or lot of men don't realize their duty , there is no way to deal with this situation.
More over if mother is no more & father is solely taking care of kids in that case too his name is required.
That is why mother's name is added these days. whoever is guardian should be mentioned.
हम तो स्वयं को कभी का अर्द्धांग मान बैठे हैं, ताई को अर्द्धांगिनी कहकर एक दिन के पुरूष दिवस महोत्सव से भी महरूम हो जायेंगे.:)
जवाब देंहटाएंमजाक की बात अलग है, यह काफ़ी समय से चली आ रही बहस है. जैसा आपके आलेख का मर्म है कि पहले पति को पा लेना ही नारी के लिये सब कुछ था. अब वो समय जा चुका है, नारी अब नये अवतार और जिम्मेदारियों से लबरेज है. अत: समय के साथ साथ शब्द और उनकी नई परिभाषा गढने और अपनाने में कोई बुराई नही है.
रामराम.
शब्द आज अपने मायने वैसे हो खो रहा है ... इसलिए इसका प्रयोग ज्यादा मायने नहीं रखता ...
जवाब देंहटाएंहां शब् है तो इतिहास में तो रहेगा ही ...
rashmi
जवाब देंहटाएंthe problem is more related to language rather than the meaning .
for last many days i was thinking on logic of man- woman . possibly
woman word was coined by adding "wo" of "womb" to man .
वहीँ हिंदी में हम औरत और आदमी कहते हैं अब अगर आदमी शब्द को को आदम शब्द से से लाया गया हो तो वस्तुतः आदमी तो स्त्री लिंग ही हैं ये क्युकी आदम पुलिंग हुआ . लेकिन यहाँ औरत कह कर " रत " यानी रति से उसको जोड़ा गया होगा .
आदम के लिये स्त्रीलिंग अगर आदमी होता तो आज औरत शब्द की जरुरत ही शायद नहीं होती .
पुरुष को सम्पूर्ण तभी माना जाता हैं जब उसके पास पत्नी हो क्युकी वो पुरुष का आधा अंग हैं इस लिये पुरुष उसको खोजता हैं . अब ये" आधा अंग पत्नी ही हो" ये कैसे और कब बना ये समझ आजाये तो काफी प्रश्नों का उतर मिल जाए
बढिया शोधपरक लेख
जवाब देंहटाएंहमें तो बैटर हाफ का मतलब समझ नहीं आता ! :)
जवाब देंहटाएंवैसे पति पत्नि का रिश्ता कानून की दृष्टि में ही तर्क वितर्क का साधन होता है। असल जिंदगी में तो समझ बूझ का रिश्ता है।
>>एक उपन्यास है ,' चोखेर बाली ' सौ साल पहले ही लिखा गया है ...........वह मरणतुल्य हो जाती है.
जवाब देंहटाएंआज से करीब सौ साल पहले ही १ और उपन्यास लिखा गया था ...'देवदास' ... जिसमे नायक का जीवन मरणतुल्य हो गया था और अंत में मृत्यु भी ... आपने उसे कंसीडर नहीं किया .... :(
हम्म बात तो सोचने वाली है :)
हटाएंपर वो प्रेम का मामला था ..
हाँ, देवदास की पत्नी अगर किसी और के प्रेम में पड़ जाती और देवदास का जीवन बेरंग हो जाता ..वह मरणतुल्य हो जाता तो जरूर कंसीडर किया जाता :)
सुना-पढ़ा गया है कि
जवाब देंहटाएंपुरूष को बनाया गया है, उसकी उत्पत्ति हुई है फिर 'उसने' सोचा मनुष्य का अकेला रहना ठीक नहीं :-)
तब मनुष्य की बाईं पसली से स्त्री की रचना की गई
सुना-पढ़ा गया है कि
स्त्री की उत्पत्ति नहीं हुई वल्कि इसकी रचना की गयी है
सुना-पढ़ा गया है कि
'उसने' न ही पुरूष के सिर से नारी की रचना की कि वह उस पर प्रभुता करे और न ही उसके पैर से उसको रचा कि वह उसे पैर की धूल समझे परन्तु रचा तो ह्रदय के समीप की पसली से, कि वह (पुरूष) उससे प्रेम करे, अपने शरीर का ही भाग समझकर
सुना-पढ़ा गया है कि
इसीलिए पुरूष, खून के रिश्ते भूल कर अपने अंग से बनी कृति को ज़्यादा प्रेम करता है
सुना-पढ़ा गया है कि
इसीलिए उसे वामा, अर्द्धांगिनी , वामांगिनी कहा जाता है
सुना-पढ़ा गया है कि
इसीलिए उसे ह्रदय की ओर बिठाया, लिटाया, खड़ा रखा/ दिखाया जाता है
सुना-पढ़ा गया है भई!
बहुत बहुत शुक्रिया पाबला जी
हटाएंआप सारा सुना-पढ़ा ,सुना-पढ़ा गए :)
सब पढने के बाद ये बात समझ में आई कि पति के सर्वांगीण विकास के लिए अर्धांगिनी की ज़रुरत होती है, इस हेतु पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है, परन्तु पत्नी के सर्वांगीण विकास के लिए पति की आवश्यकता नहीं होती होगी, काहे से कि पत्नी या तो अपने आप में कम्प्लीट होती है या फिर कम्प्लीट होने की कौनो ज़रुरत ही नहीं समझा गया। वर्ना 'अर्धान्गना' शब्द ज़रूर होता।
जवाब देंहटाएंआर्थिक दृष्टिकोण से नहीं देख कर, सिर्फ प्राकृत रूप में भी देखें तो स्त्री, पुरुषों से उन्नत है। वो माँ बन सकतीं हैं, जितना धैर्य, साहस, लगन, सहनशीलता, स्त्रियों में होता है, पुरुषों में नहीं होता। आज भी किसी भी घर में, कोई भी मुसीबत आये, पुरुष अपनी स्त्री से ढाढ़स पाता है और मुसीबत से जूझने को तैयार हो जाता है। स्त्री पुरुष का मनोबल होती है। कहते हैं न 'Behind every successful man there is a woman.'
खैर अब इस शब्द की कोई आवश्यकता नहीं है। नारी अपने आप में पूर्ण है।
भूल सुधार :
हटाएंवो माँ बन सकतीं हैं| जितनी लगन, धैर्य, साहस, सहनशीलता, स्त्रियों में होती है, पुरुषों में नहीं होती ।
@खैर अब इस शब्द की कोई आवश्यकता नहीं है। नारी अपने आप में पूर्ण है।
हटाएंसही कहा, अब स्थितियां बदल गयी हैं.
बहुत कम प्रतिशत है, पर कुछ पुरुष भी घर-बाहर के सारे काम दक्षता से निभा लेते हैं,.पर अब उस संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होनी चाहिए.
और यहाँ ऊपर कुछ पाठकों की टिप्पणी पढ़ लगता है कि अर्द्धांगनि का अर्थ पुरुष को आधा बताता है इसलिए इसमें कुछ गलत नहीं।मतलब किसी शब्द से यदि पुरुष के अविवाहित रहने पर अपूर्ण अपंग आदि होने का भान हो तो उसमें आपको सब कुछ बडा तार्किक नजर आया तब आप विरोध नहीं करेंगे।हाँ महिला के लिए ऐसा कहा जाता तब आप शायद विरोध करते।अजीब गडबडझाला है,अजीब सोच है।अब जमाना बदल रहा है लड़के भी अपने अविवाहित जीवन को खूब एंजोय करते है।यहाँ हम बेवकूफ नहीं है जो घरवाले पीछे पड़े हैं और फिर भी सोच रखा है कि उनतीस के हो जाएंगें तब जाकर कहीं सोचना शुरु करेंगे शादी के बारे में।मुझे तो नहीं लगता कि मैं कोई अपूर्ण हूँ।अपने जीवन में कुछ और रंग भरने के लिए आज के लड़के लड़की शादी करते है न कि पूर्ण होने के लिए।इसलिए न हम रहें किसी भ्रम में कि शादी कर महिलाओं का उद्धार कर रहे हैं न आप रहे किसी खुशफहमी मे कि यदि महिलाएँ शादी नहीं करेंगी तो पुरुष बेचारा गिडगिडा उठेगा ।वर्ना ऐसा मान आप भी वही गलती कर रहे होंगे जो अब तक पुरुष करते रहे है।विवाह न करने पर किसको कितनी परेशानी होती है या नहीं होती ये व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है न कि स्त्री पुरुष होने पर।
जवाब देंहटाएंएंग्री यंग मैन टिपण्णी तो बड़े जोश में की है ,पढ़कर मुस्कराहट आ गयी...:)
हटाएंआपकी आपत्ति बिलकुल जायज है, इसीलिए मुझे बेटर हाफ या उत्तमार्द्ध भी नहीं पसंद, पत्नी को बेटर भी क्यूँ कहा जाए. दोनों ही स्वतंत्र इकाई रहें .एक दुसरे का सम्मान करें...बस .
प्रेम आैर अधिकार दो परस्पर धुरविरोधी अवधारणाएं हैं
हटाएंबिल्कुल सही लिखा आपने।
जवाब देंहटाएंवंदना जी की बात से सहमत हूँ ।गाँवो में जो खेतिहर मजदूरी करते है बहा की महिलाये अपनी रोजी रोटी खु द कमाती है ।
जवाब देंहटाएंलडकी शादी के दो दिन बाद ही घर के कम और खेतो में कम करने निकल जाती है ,लडकी अगर मायके अह्ने आती है तो भी वः मजदूरी करने निकल पड़ती और अपना खर्चा वहन कर लेती है ।और अगर कम उम्र में विधवा हो जाती है तो कोई कोई समाज में दूसरी शादी ख़ुशी ख़ुशी कर दी जाती है जिसे" पाट लगाना "'कहते है ।या फिर निर्धारित दिन शोक मनाकर अपने कम पर
जाने लगती है चली जाती है ।ऐसी महिलाओ को क्या अर्धांगिनी कह सकते है ?
शोभना जी आपने जो कहा है वो निम्न कही जाने वाली जातियों में प्रचलित है. सवर्ण जातियों में तो महिलाओ पर काफी पाबन्दिया होती है.
हटाएं