ये दुनिया आखिर कब तक सरप्राइज़ करती रहेगी . इतनी उम्र
हो गयी, इतना कुछ पढ़ लिया, देख लिया, सुन लिया कि लगता है अब ऐसा क्या
देख-जान लूंगी जो चौंका देगी. पर तभी कोई ऐसी घटना से रु ब रु होती हूँ कि
मुहं खुला का खुला रह जाता है और बार-बार अविश्वास से पूछने पर कि ऐसा
कैसे हो सकता है ?? पता चलता है ,बिलकुल ऐसा ही हुआ है.
पर उस घटना को शेयर करने से पहले एक दूसरी बात कि कैसे समय के साथ हमारी खुद की सोच बदलती है . आज के युग में तो खैर चालीस साल की उम्र को न्यू ट्वेंटी और साठ को न्यू फोर्टी कहा ही जाता है. पर जब अट्ठारह-बीस की उम्र में मैंने अपना पहला उपन्यास लिखा था तो उसमें मेरी नायिका जब तीस-चालीस की उम्र की हो जाती है तो उसका वर्णन कुछ यूँ किया था ,"चेहरे पर प्रौढ़ता का गाम्भीर्य झलक रहा था , दो चोटियों में झूलते बाल एक सादे से जूड़े में बंधे थे और चेहरे पर मोटे फ्रेम का चश्मा लगा हुआ था {तब इतनी ही अक्ल थी :)} . लेकिन जब मैंने वो कहानी ब्लॉग पर पोस्ट की तो खुद चालीस की हो चुकी थी...वे पंक्तियाँ कुछ यूँ बदल दीं, "कमर तक लम्बे बाल अब कंधे तक रह गए थे .चेहरे की तीखी रेखाएं पिघल कर एक स्निग्ध तरलता में बदल गयी थीं..." पर अब भी साठ साल की एक महिला की कुछ अलग ही छवि थी मेरे मन में .छवि क्या ...मेरी कुछ सहेलियां भी हैं,साठ के उम्र की हैं . फिट हैं ,..बहुत एक्टिव हैं, जीवन से भरपूर हैं...कार्यकुशल हैं .. पर साथ में उनमें सादगी भी है . पर एक साठ के करीब की महिला से हाल में ही मुलाकात हुई और जब मिल कर अच्छा लगे तो फिर दोस्ती होते देर नहीं लगती. इनमें भी वो सारी खूबियाँ हैं... साथ ही ये अपनी साज-सज्जा का बहुत ख़याल रखती हैं. महीने में दो बार मैनीक्योर,पेडिक्योर ,उनके नाखूनों पर बिलकुल फंकी कलर वाले नेलपॉलिश लगे होते हैं और वे बुरे इसलिए नहीं लगते क्यूंकि नियमित मेनिक्योर से उनके हाथ बड़े कोमल से हैं. आई शैडो, मैचिंग लिपस्टिक, मॉडर्न बैग-सैंडल , जंक ज्वेलरी की शौक़ीन हैं ..उन्होंने अपनी कलाई पर चाइनीज़ में अपने पोते का नाम टैटू करवा रखा है. ...यह सब उनपर फबता है. पहले मुझे लगता था ऐसी साज सज्जा इतनी उम्र में शोभा नहीं देती पर शायद उसे ग्रेसफुली कैरी करना आना चाहिए. और ये महिला कोई सोशलाइट या बहुत उच्च वर्ग की नहीं हैं. मिड्ल क्लास की हैं . छोटी उम्र से नौकरी की है ,संघर्ष किया है , खाड़ी देश में बिना किसी हाउस हेल्प के सिर्फ पति की सहयता से बच्चे ,घर नौकरी सब संभाला है. बच्चों को अच्छी शिक्षा दी, घर बनाया और अब रिटायर्ड लाइफ जी रही हैं और अपनी शर्तों पर अपनी मर्जी से जी रही हैं.
पर उस घटना को शेयर करने से पहले एक दूसरी बात कि कैसे समय के साथ हमारी खुद की सोच बदलती है . आज के युग में तो खैर चालीस साल की उम्र को न्यू ट्वेंटी और साठ को न्यू फोर्टी कहा ही जाता है. पर जब अट्ठारह-बीस की उम्र में मैंने अपना पहला उपन्यास लिखा था तो उसमें मेरी नायिका जब तीस-चालीस की उम्र की हो जाती है तो उसका वर्णन कुछ यूँ किया था ,"चेहरे पर प्रौढ़ता का गाम्भीर्य झलक रहा था , दो चोटियों में झूलते बाल एक सादे से जूड़े में बंधे थे और चेहरे पर मोटे फ्रेम का चश्मा लगा हुआ था {तब इतनी ही अक्ल थी :)} . लेकिन जब मैंने वो कहानी ब्लॉग पर पोस्ट की तो खुद चालीस की हो चुकी थी...वे पंक्तियाँ कुछ यूँ बदल दीं, "कमर तक लम्बे बाल अब कंधे तक रह गए थे .चेहरे की तीखी रेखाएं पिघल कर एक स्निग्ध तरलता में बदल गयी थीं..." पर अब भी साठ साल की एक महिला की कुछ अलग ही छवि थी मेरे मन में .छवि क्या ...मेरी कुछ सहेलियां भी हैं,साठ के उम्र की हैं . फिट हैं ,..बहुत एक्टिव हैं, जीवन से भरपूर हैं...कार्यकुशल हैं .. पर साथ में उनमें सादगी भी है . पर एक साठ के करीब की महिला से हाल में ही मुलाकात हुई और जब मिल कर अच्छा लगे तो फिर दोस्ती होते देर नहीं लगती. इनमें भी वो सारी खूबियाँ हैं... साथ ही ये अपनी साज-सज्जा का बहुत ख़याल रखती हैं. महीने में दो बार मैनीक्योर,पेडिक्योर ,उनके नाखूनों पर बिलकुल फंकी कलर वाले नेलपॉलिश लगे होते हैं और वे बुरे इसलिए नहीं लगते क्यूंकि नियमित मेनिक्योर से उनके हाथ बड़े कोमल से हैं. आई शैडो, मैचिंग लिपस्टिक, मॉडर्न बैग-सैंडल , जंक ज्वेलरी की शौक़ीन हैं ..उन्होंने अपनी कलाई पर चाइनीज़ में अपने पोते का नाम टैटू करवा रखा है. ...यह सब उनपर फबता है. पहले मुझे लगता था ऐसी साज सज्जा इतनी उम्र में शोभा नहीं देती पर शायद उसे ग्रेसफुली कैरी करना आना चाहिए. और ये महिला कोई सोशलाइट या बहुत उच्च वर्ग की नहीं हैं. मिड्ल क्लास की हैं . छोटी उम्र से नौकरी की है ,संघर्ष किया है , खाड़ी देश में बिना किसी हाउस हेल्प के सिर्फ पति की सहयता से बच्चे ,घर नौकरी सब संभाला है. बच्चों को अच्छी शिक्षा दी, घर बनाया और अब रिटायर्ड लाइफ जी रही हैं और अपनी शर्तों पर अपनी मर्जी से जी रही हैं.
हाँ, तो जिनका परिचय दिया है, वे अक्सर बातों में अपनी भतीजी का जिक्र करतीं, उसके लिए शॉपिंग करतीं हैं , उसकी पसंद की चीज़ें बनातीं हैं ,उसका बहुत ख्याल रखतीं हैं . मैंने एक दिन कह दिया.."भतीजियाँ अपनी बुआ की बहुत प्यारी होती ही हैं. " उन्होंने कहा , "मैं इसकी कहानी सुनाउंगी तुम्हे " और एक दिन जब सारी बातें बताईं तो मैं बस यही कहती रह गयी.."ऐसा कैसे हो सकता है ??"
ये महिला अपने पति के पास खाड़ी देश में थीं. उनकी बेटी यहाँ नौकरी करती थी और अपने फ़्लैट में रहती थी. बेटा ऑस्ट्रेलिया में है . एक दिन इनका मन बहुत बेचैन हो रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ है. अपने बेटे और बेटी को फोन किया..पर वहाँ सब ठीक था . फिर भाई के यहाँ फोन किया तो छोटी भतीजी से बात हुई , जब बड़ी के लिए पूछा तो उसने बताया ,'वो तो घर छोड़ कर चली गयी है ' दोनों बेटियों को उनकी माँ , खाना बनाने का जिम्मा सौंप बाहर गयी थीं. माँ के लौटने पर छोटी बेटी ने शिकायत की कि "सारा काम मैंने किया है दीदी तो बस अपने बॉयफ्रेंड से फोन पर चैटिंग कर रही थी ." माँ बहुत नाराज़ हुई ,पूछने पर बेटी ने स्वीकार किया कि उसका एक बॉयफ्रेंड है . माँ ने बेटी को बहुत भला-बुरा कहा, थप्पड़ भी लगाया और बोला, 'पिता आयेंगे तो तुम्हे काट डालेंगे ,उनके आने से पहले घर छोड़ कर चली जाओ " जबकि ये लोग कैथोलिक हैं . डेटिंग इनकी संस्कृति में है. खुद उस लड़की के माता-पिता की लव मैरेज है . पर उसके पिता बहुत सख्त थे और माँ भी उनसे डरी हुई थी . बेटी ने उस लड़के को फोन किया . लड़का उनके ही धर्म का है, कैथोलिक है , बैंक में नौकरी करता था, अपने माता-पिता का इकलौता बेटा है..मुंबई में अपना फ्लैट है . गिटार और पियानो बजाने का शौक है . खाली वक़्त में क्लास लेता है. इस लड़की की छोटी बहन को भी सिखाया करता था .वहीँ इन दोनों की मुलाक़ात हुई थी .
लड़का ,अपने पिता के साथ आया और लड़की को लेकर चला गया . (अब मुझे ये विश्वास करना ही कठिन हो रहा था कि बस बॉयफ्रेंड से चैटिंग के लिए एक उन्नीस साल की लड़की को घर से निकाला जा सकता है...वो भी मुंबई जैसे शहर में, २००९ में और एक कैथोलिक परिवार में ..खैर इन्होने भाई-भाभी से बात करने की कोशिश की. उनका कहना यही था कि 'उन्हें उस लड़की से कोई मतलब नहीं '. फिर इन्होने अपनी बेटी को कहा ,"उस लड़की को अपने पास ले आओ..बिना शादी किये लड़के के घर में रहना ठीक नहीं " वे भारत आयीं ,..भाई-भाभी को समझाने की कोशिश की ..पर उनकी एक ही रट, "हमारी बेटी , हमारे लिए मर गयी है " (माता-पिता का ऐसा एटीट्युड मुझे अब भी हैरान कर देता है ) .
इनकी भतीजी और बेटी साथ रहने लगे. उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी . एक दिन कॉलेज के बाहर से लड़की के मामा, मौसी उसे कार में जबरदस्ती बिठा कर ले जाने लगे. अब पता नहीं उसका ब्रेन वॉश करने के लिए या उसे सजा देने के लिए पर एक जगह ट्रैफिक धीमी हुई तो वो लड़की निकल कर भागी . इसके बाद इनलोगों ने इस लड़की को कानूनी रूप से गोद ले लिया . और पूरे रीती रिवाज से उस लड़की की शादी उसके बॉयफ्रेंड के साथ कर दी. सारे रिश्तेदारों को बुलाया . पर एक ही कॉलोनी में रहने वाले माता-पिता शरीक नहीं हुए .अब लड़की अपने ससुराल में है .पढाई पूरी कर जॉब कर रही है . अब बुआ का घर ही उसका मायका है. जहाँ हफ्ते मे तीन चक्कर वो जरूर लगाती है .
मैंने ये सब सुनते हुए न जाने उनसे कितनी बार पूछा होगा, "आखिर आपके भाई-भाभी को क्या एतराज था ??..उन्होंने ऐसा क्यूँ किया ??" इनके पास भी एक ही जबाब था, "पता नहीं,कुछ समझ में नहीं आता "जबकि इनके भाई ने अपने पिता का उदारपन देखा है . जब ये महिला नवीं कक्षा में थीं, इनके पिता ने इनकी सहेली के भाई के साथ सिनेमा देखने , कॉफ़ी पीने की इजाज़त दे रखी थी. बाद में शादी भी उसी लड़के से हुई. और इनके पति भी इतने उदार हैं कि पत्नी के भाई की बेटी को कानूनी रूप से अपनी बेटी बना लिया. पर शायद यहाँ पिता का सिर्फ अहम है कि लड़की ने अपनी पसंद का लड़का कैसे चुन लिया.
जब मुंबई में एक पढ़े-लिखे कैथोलिक परिवार में ऐसा हो सकता है ,(जहाँ लड़के-लड़कियों को आपस में मिलने की छूट किशोरावस्था से ही होती है ) तो दूर दराज के गाँव-कस्बों के शिक्षा से दूर लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है. पर लड़कियों पर बंदिशें लगाने के लिए पढ़े-लिखे और अनपढ़ परिवार में कोई फर्क नहीं . मैंने पहले भी अपनी एक पोस्ट में जिक्र किया था कि मेरी एक परिचिता के बेटे ने एक एयरहोस्टेस से शादी की है. उस लड़की के पिता कर्नल हैं ,बेटी को लन्दन-न्यूयार्क -पेरिस जाने की इजाज़त है पर अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनने की नहीं ....दुनिया ऐसे ही हैरान करती रहती है ,यहाँ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी बेटी से नाता तोड़ लेते हैं और ऐसे भी हैं जो दूसरे की बेटी को अपना लेते हैं.