
अखबार से जुड़ी कुछ रोचक यादें भी है. बचपन में पापा की सख्त हिदयात थी कि हम तीनो भाई बहन रोज अखबार जरूर पढ़ें और अंग्रेजी के पांच शब्द अंडरलाइन करके रखें फिर उनके अर्थ डिक्शनरी से देखकर कॉपी में लिखें. इतना सा काम हमें पहाड़ सा लगता. शाम को पापा के आने से पहले हमें होश आता.फिर हम भाई बहन में झगडे होते...'मुझे दो पेपर...पहले मुझे दो'. कभी कभी हम बिना पढ़े ही अंडरलाइन कर देते और पेपर को ऐसे क्रश कर देते कि लगता पढ़ा है, हमने.(काश, मेरे बच्चे ना पढ़ें ये सब :) ).
पर अखबार पढने की लत जो बचपन में पड़ी...कहाँ जाती है.कहते भी हैं...Old habit dies hard सो .घर के सैकड़ों काम के बीच में 'न्यूजपेपर ब्रेक' चलता ही रहता है. और उनमे पढ़ी कोई रोचक या महत्वपूर्ण खबर यहाँ भी बाँट लेती हूँ. ऐसे ही कल' मिड डे' में डॉ. शाकिर हुसैन जो भारत के टॉप न्युरोफिजिशियन हैं का इंटरव्यू पढ़ा. और अपने देश के लाखों युवजनों का चेहरा आँखों के सामने घूम गया जो हाथों में छुपाये उस छोटे से उपकरण में लगातार कुछ ना कुछ बुदबुदाता ही रहता है. विज्ञापनों में ऋतिक रोशन को फोन पर स्क्रिप्ट सुनते देख और आमिर खान को पूरी रात अपनी गर्लफ्रेंड से बातें करते देख...इनका उत्साह और बढ़ता ही है,कम नहीं होता. और उन्हें ही क्यूँ दोष दें...हम, आप, सब इसके शिकार हैं. पर जितनी जल्दी असलियत से वाकिफ हो जाएँ और इसपर गंभीरता से विचार करें,उतना ही अच्छा
वैसे हम सबों को थोड़ा अंदाजा तो है ही कि देर तक मोबाईल फोन यूज़ करने के घातक परिणाम हो सकते हैं .पर डा.शाकिर हुसैन ने काफी बारीकी से इस पर प्रकाश डाला.
पिछले हफ्ते WHO ने एक रिपोर्ट जारी की कि electromagnetic radiation जो हमारे सेल फोन से निकलती है हमारे ब्रेन के neuro-circuitry में शॉर्ट सर्किट उत्पन्न कर सकती है.
सेल फोन एक तरह की एनर्जी उत्पन्न करती है और इसी तरह की एनर्जी का उपयोग विभिन्न मेडिकल उपकरणों में भी किया जाता है जो कैंसर टिशू को ख़त्म करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. हालांकि फोन से निकलती एनर्जी बहुत ही कम फ्रीक्वेंसी की होती है ,इसलिए यह बहुत धीरे धेरे नष्ट करती है. पर इस से नुक्सान होता जरूर है .इसलिए ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने पर ब्रेन के कोमल टिशू के नष्ट होने का पूरा खतरा है.
Brain tissues अति कोमल होते हैं इसलिए इनपर जल्दी असर होने का खतरा भी रहता है. radio waves के एक्स्पोजर से इनमे ट्यूमर बन सकता है. दो तरह के growths हो सकते हैं...एक तो meningioma जो ब्रेन को ढके रहने वाली झिल्ली में हो सकती है. पर वह इतनी खतरनाक नहीं है.लेकिन दूसरे तरह की growth को glioma कहते हैं जिसमे कैंसर के कीटाणु होते हैं.और वह जानलेवा साबित हो सकता है. इसलिए सेलफोन का देर तक इस्तेमाल ज़िन्दगी के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है.
सरदर्द, इसका सबसे पहला और आम लक्षण है, मिर्गी, पैरालिसिस, हाथ पैरों में कमजोरी भी बेन ट्यूमर के ही लक्षण हैं. अगर ग्रोथ मस्तिष्क के पिछले भाग में है तो कुछ भी निगलने में, आँखों पर असर और शारीरिक संतुलन पर भी असर पड़ता है. अगर सर दर्द के साथ उलटी भी हो तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए.
भारत में इसके इलाज की बेहतर सुविधा उपलब्ध है. डॉक्टर एक gamma knife का इस्तेमाल करते हैं. कैंसर के टिशू को ख़त्म करने के लिए. दूसरी तकनीक भी इस्तेमाल की जाती है,जिसमे ट्यूमर को खून का प्रवाह रोक दिया जाती है जिस से ट्यूमर का ग्रोथ रुक जाता है .
सबसे ज्यादा खतरा नवयुवकों को है जो ज्यादा से ज्यादा देर तक सेलफोन पर ही अपने सहकर्मी ,दोस्त ,रिश्तेदार,परिवारजन से बातें करते हैं.
सेलफोन आज के युग की अनिवार्यता है. फिर भी कुछ सीमाएं खुद ही बनानी होंगी. दो साल तक अगर रोज दो घंटे, सेल फोन का इस्तेमाल किया जाए तो खतरा बढ़ जाता है.इसलिए भले ही ये घीसी पीटी बात लगे पर सच है Prevention is better than cure .