यह एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त चित्र है, परिचय में लिखा है कि ये शिशु गिलहरी ,इस गिलहरी की संतान नहीं है,बल्कि अनाथ है. |
खैर, बात यहाँ 'मदर्स डे' की हो रही थी. सबलोग अपनी अपनी माँ को अपने अपने तरीके से थैंक्स बोल रहे थे ...अपनी कृतज्ञता प्रगट कर रहे थे . एक उड़ता सा ख्याल आया ये ममता की भावना क्या सिर्फ 'जन्मदात्री माँ' में ही होती है . प्यार दुलार ,ममता ,सिर्फ माँ का अपने बच्चों के लिए ही नहीं होता, किसी के अन्दर भी किसी के लिए हो सकता है. कई पुरुष भी ऐसे हैं जिन्होंने माँ की अनुपस्थिति में अपने बच्चों को माँ बनकर पाला है. मेरे एक परिचित हैं . उनकी बेटियाँ आठ वर्ष और चार वर्ष की थीं जब उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की , नौकरी में प्रमोशन नहीं लिया कि कहीं ट्रांसफर न हो जाए और नए स्कूल, नयी जगह बच्चियों को एडजस्ट करने में परेशानी न हो. सुबह पांच बजे उठते, बेटियों का टिफिन तैयार करके उन्हें स्कूल भेजते, लंच टाइम में आकर उन्हें खाना खिलाते . उनकी पढाई, स्कूल की पैरेंट्स मीटिंग,स्पोर्ट्स डे अटेंड करना ,बीमारी में उनकी देखभाल,रात रात भर जागना किसी माँ से कम नहीं था .हमारे ब्लॉगजगत में भी एक नामचीन ब्लॉगर हैं जिन्होंने अपने बच्चों को अकेले बड़ा किया है. ऐसे कई लोग होंगे समाज में उनके भीतर भी ममत्व की भावना उतनी ही हिलोरें मारती हैं.
और सिर्फ वे ही क्यूँ...कई लोग जानवरों को भी एक माँ की तरह पालते हैं. एक किसान अपने बैलों को, गाय भैंस को एक माँ बनकर ही पालता है. उनके खाने-पीने , उनकी सुविधा, उनके आराम का ख्याल रखता है. बीमार पड़ जाने पर उनकी सेवा करता है. और सिर्फ गाय भैंस ही क्यूँ, कुत्ते -बिल्ली भी लोग पालते हैं . और उसकी एक माँ की तरह ही देखभाल करते हैं. मेरे घर में ही इसका ज्वलंत उदाहरण है . तीन तीन माओं का दुलारा ,' किप्पर' '
मुझे कुत्ते पालना कभी पसंद नहीं रहा. शायद दिनकर जी की ये कविता ,'श्वानों को मिलते दूध वस्त्र ..भूखे बच्चे अकुलाते हैं "'अवचेतन में इतने गहरे पैठ गयी थी कि किसी पालतू कुत्ते को देख यही ख्याल आता. पर शादी के बाद ससुराल पक्ष का जो भी मिलता उसके पास पतिदेव के श्वान प्रेम की कोई न कोई कथा साथ होती. 'कैसे छोटे छोटे कुत्ते के पिल्लों को कभी छत पर कभी कबाड़ वाले कमरे में छुपा कर रखते और अपने हिस्से का दूध उन्हें पिला आते.' महल्ले के कुत्ते रोज सुबह दरवाजे के बाहर डेरा डाले रहते और जब तक नवनीत उन्हें आटे की तरह गींज नहीं देते वे बरामदे से नहीं हटते. (मेरी सासू जी का कथन था )
शादी के बाद भी घर में एक कुत्ता पालने की बात हमेशा उठती पर मैं सख्ती से मना कर देती. 'दो बच्चों को पाल कर बड़ा कर दिया, अब एक और किसी को नहीं पालना '.
शादी के बाद भी घर में एक कुत्ता पालने की बात हमेशा उठती पर मैं सख्ती से मना कर देती. 'दो बच्चों को पाल कर बड़ा कर दिया, अब एक और किसी को नहीं पालना '.
बच्चे बड़े हुए तो इन्हें भी पिता से श्वान प्रेम विरासत में मिला. बड़ा बेटा अंकुर का प्रेम तो कभी इतना मुखर नहीं रहा पर छोटा बेटा अपूर्व, करीब करीब रोज ही जिद करता. उसे अपने जैसे दोस्त भी मिल गए थे. एक बार बिल्डिंग के बच्चे एक टोकरी में फटे पुराने कपड़ों के बीच दो कुत्ते के पिल्लों को लेकर हर फ़्लैट की घंटी बजाते , मेरे फ़्लैट में भी आये ,"आंटी प्लीज़ इसे पाल लो न..वरना वाचमैन इन्हें कहीं दूर छोड़ आएगा " उनपर दया भी आती पर अपनी मजबूरी थी .एक बार कहीं से ये लोग दो तीन पिल्ले उठा लाये और उसे गैरेज में पालने लगे .बिल्डिंग वालों ने जब उन्हें दूर भिजवा दिया ,उस दिन अपूर्व डेढ़ घंटे तक लगातार रोया. शाम को सारे बच्चे खेलना छोड़ ऐसे मायूस बैठे थे ,जैसे कितना बड़ा मातम हो गया हो.
फिर भी मैं जी कडा कर अड़ी रही कि कोई कुत्ता नहीं पालना है. पर पिछले साल तीनो (Three Men in my
house ) की सीक्रेट मीटिंग हुई और एक कुत्ता पालने का निर्णय ले लिया गया. नेट पर ढूंढ कर कौन सा ब्रीड लेना है. किस केनेल से लेना है, सब तय हो गया. मेरे कानों में भी बातें पड़ीं. और मैंने फिर से एतराज जताया पर इस बार किसी ने मेरी नहीं सुनी. मैंने भी ऐलान कर दिया कि 'मैं उसका कोई काम नहीं करुँगी ' .इसे भी सहर्ष मान लिया गया और एक दिन एक महीने के Cocker spaniel का हमारे घर में पदार्पण हो गया. अंकुर बचपन में एक कार्टून देखा करता था जिसमे एक कुत्ते का नाम KIPPER था. इसका नामकरण भी 'किप्पर' हो गया . घर में ये गाना समवेत स्वर में गाया जाने लगा..."ब्रेव डॉग किप्पर' ,जो न पहने कभी स्लीपर ' अपूर्व तो सातवें आसमान पर विराजमान हो गया, "एक तो उसके बचपन का उसका एक कुत्ता पालने का शौक पूरा हुआ , उस से छोटा कोई घर मे आ गया और उसका नाम भी मिलता जुलता 'क ' से ही रखा गया,. किंजल्क, कनिष्क, किप्पर' (ये महज संयोग ही था )
मैं 'उसका कोई काम न करने की' अपनी बात पर कायम रही. पर किसी को इसका ध्यान भी नहीं था क्यूंकि 'किप्पर' का काम करने के लिए तीनो जन हर वक़्त तत्पर रहते.
किप्पर |
मैं 'उसका कोई काम न करने की' अपनी बात पर कायम रही. पर किसी को इसका ध्यान भी नहीं था क्यूंकि 'किप्पर' का काम करने के लिए तीनो जन हर वक़्त तत्पर रहते.
नवनीत जो हमेशा से लेट राइज़र रहे हैं . किप्पर' को घुमाने के लिए सुबह उठने लगे. ऑफिस जाने से पहले, उसे नहलाना ,हेयर ड्रायर से उसके बाल सुखाना ,फर्श पर लिटाकर देर तक उसके बाल ब्रश करना . सब करने लगे. शैम्पू, कंडिशनर डीयो तो लगाया ही जाता है उसका टूथपेस्ट और टूथब्रश भी है. उसके दांत भी साफ़ किये जाते हैं. जबतक उसकी 'टॉयलेट ट्रेनिंग ' पूरी नहीं हुई थी. तीनो में से कोई भी सफाई कर देता . बहुत जल्दी ही वो ट्रेंड भी हो गया. (होता भी कैसे नहीं ,वो घर से ज्यादा बाहर ही रहता था, तीनो लोग उसे घुमाने के शौक़ीन ) पर अभी हाल में ही उसने एक बार उलटी कर दी और मेरा बड़ा बेटा अंकुर जो घर के सिर्फ शोफियाने काम ही करता है (रंगोली बनाना , घर सजाना आदि ) उसने बेझिझक सफाई कर दी.
नवनीत का इतनी अच्छी तरह उसकी देखभाल करते देखकर मैं अक्सर कहती हूँ ,"'पुरुषों को चालीस के बाद ही पिता बनना चाहिए." तब वे कैरियर में थोड़े सेटल हो गए होते हैं और पहले जैसी भागम भाग नहीं लगी होती. आज जब देखती हूँ, नवनीत ऑफिस में फोन कर देते हैं, आज 'किप्पर' का वैक्सीनेशन है , देर से ऑफिस आउंगा (कभी कभी तो छुट्टी भी ले ली है ) तब मुझे याद आता है कि बच्चे जब छोटे थे , इनके ऑफिस जाने के बाद घर का काम ख़त्म कर एक बच्चे को गोद में उठाये दुसरे की ऊँगली पकडे डॉक्टर के यहाँ जाती और वहां घंटों इंतज़ार भी करना पड़ता था . किप्पर' की ज़रा सी तबियत खराब हुई और तीनो के मुहं लटक जाते हैं . उसे गोद में में ही उठाये फिरते हैं ये लोग. एक दिन भी अगर उसने ठीक से खाना नहीं खाया और नवनीत तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले जाते हैं. डॉक्टर भी एक महंगा 'टिन फ़ूड' थमा देता है, 'इसे खिलाकर देखिये' और किप्पर' उसे सूंघ कर छोड़ देता है. 'टिन फ़ूड' के डब्बे सजते जाते हैं. क्यूंकि हर कुछ दिन बाद नवनीत की रट शुरू हो जाती है, 'ये ठीक से खा नहीं रहा, दुबला होता जा रहा है '( जबकि किप्पर' अपनी उम्र से दो साल बड़ा दिखता है )
वो अगर नहीं खाता तो हथेली पर पेडिग्री ले कर उसे हाथ से खिलाया जाता है वो भी पूरे धैर्यपूर्वक देर तक. .घर के लिए कभी नवनीत ने एक ब्रेड भी न लाई हो पर किप्पर' के लिए रोज अंडे, पनीर. और शाम को आइसक्रीम लेकर आते हैं. और उसे आइसक्रीम खिलाते हुए जो तृप्ति का भाव चेहरे पर होता है, वो तो बस अवर्णनीय ही है. डॉक्टर को फोन करके उसके जन्मदिन की भी जानकारी ली गयी, और दस दिन पहले से ही घ रमें उसके बर्थडे मनाने की धूम. मजे की बात ये कि पहले जन्मदिन के बाद ही झट से डॉग मेट्रीमोनियल इण्डिया 'पर उसका रजिस्ट्रेशन भी हो गया .(हाँ कुत्तों की मेटिंग के लिए भी एक साईट है ) सारे शौक जल्दी जल्दी पूरे कर लेने हैं पता नहीं, बेटे ये मौक़ा दें या नहीं :) (पर एक सोचनीय बात है कि उस साईट पर भी male dogs की तुलना में female dogs बहुत कम हैं .)
अंकुर की गोद में किप्पर |
आजकल पतिदेव मुम्बई से बाहर गए हुए हैं . मेरे पूछने पर कि "अब 'किप्पर' का ख्याल कौन रखेगा ?",दोनों बेटों ने एक सुर में कहा, "हमलोग हैं न.." उसका ख्याल रखा भी जा रहा है और कुछ ज्यादा ही. एक सुबह चार बजे ही ,अपूर्व उसे घुमाने ले गया क्यूंकि वह कूं कूं कर रहा था .उसे नहलाना, उसके बाल ब्रश करना , खिलाना तो सब कर ही रहे हैं, एक दिन अंकुर ने उसके लिए रोटी भी बनाई और मदर्स डे था इसलिए मुझ पर भी कृपा हो गयी. मेरे लिए लिए भी पराठे बनाए. पहली बार के हिसाब से ठीक ही बने थे .
दुसरे दिन अपूर्व ,किप्पर' के लिए चिकन लेकर आया और जो कभी चाय भी नखरे के साथ बनाता है. ख़ुशी ख़ुशी उसके लिए चिकन बनाया . ' {अच्छा है, मेरी बहुएं शिकायत नहीं करेंगी :)} .
बस अपूर्व की एक बात का मैं उत्तर नहीं दे पाती .एक दिन उसने कहा, "सबलोग कहते हैं, मेहनत के बिना कुछ नहीं मिलता, मेहनत करो तभी किस्मत साथ देती है . ये 'किप्पर' क्या करता है जो इसकी किस्मत इतनी चमकी हुई है?? "
अराधना भी अक्सर अपनी गोली और सोना की तस्वीरें पोस्ट करती रहती है...उनकी बातें शेयर करती रहती है, अराधना की गोली का परिचय है
नाम- गोली
मम्मा का नाम- आराधना
रंग- गोरा
आँखों का रंग- काला
ऊंचाई- एक फुट
लम्बाई- दो फुट
उम्र- एक साल तीन महीने
मनपसंद काम- कोल्ड ड्रिंक की बोतलों को काट-कूटकर चपटा कर देना :) बाल खेलना और मम्मा को काटना :)
खाने में- डॉग फ़ूड, दही, अंडे, पपीता, संतरा और आम। कच्चा आलू, नूडल्स और आलू भुजिया भी पसंद है, पर मम्मी देती नहीं :(
आराधना ने अपनी 'सोना' का बहुत ही प्यारा वीडियो पोस्ट किया है ,जिसे यहाँ देखा जा सकता है
पाबला जी के मैक की कारस्तानियाँ सब जानते हैं. Mac Singh का अपना फेसबुक अकाउंट है .उनके रोज के अपडेट्स और बेशुमार तस्वीरें यहाँ देखी जा सकती हैं.
मैक के पहले जन्मदिन की तस्वीर पर पाबला जी ने
उसका परिचय कुछ ऐसे लिखा ,"अभी तो माशा अल्लाह 1 साल के हैं ज़नाब
तो 5 फीट की लम्बाई है
जब जवां होंगे तो गज़ब ही ढाएँगे —
वंदना अवस्थी दुबे के पास भी एक प्यारा सा नन्नू है जिसके खाने में बड़े नखरे हैं ,वन्दना कहती हैं..."नन्नू खाना खा ले, इसके लिये भारी जतन करना पड़ता है अब घर ले आये हैं तो पालेंगे भी बच्चे की तरह, कोई कुछ भी कहे "
ये सब देखकर तो यही लगता है कि ममत्व की भावना ,ममता की अनुभूति पर सिर्फ जन्मदात्री माँ का ही हक़ नहीं .यह भावना सर्वव्यापी है. .