हेमा मालिनी अपनी बेटी आहना और इशा के साथ |
मैने नहीं सोचा था , 'हेमा मालिनी ' से सम्बंधित कोई पोस्ट लिखूंगी कभी. पर कुछ उनकी बातें करने का मन हो आया और मन की बात ये ब्लॉग ना सुने {और आपलोग ना पढ़ें :)} तो फिर कौन सुने...:)
जब हेमा मालिनी शिखर पर थीं , तब मैं उनकी फ़िल्में नहीं देखती थीं. वैसे तो उस वक़्त,घर से गिनी-चुनी फ़िल्में ही दिखाई जाती थीं..फिर भी उनमें हेमा मालिनी की फ़िल्में नहीं होती थीं और ना ही कभी देखने की इच्छा होती थी. उनका अभिनय, उनका ग्लैमरस रूप कुछ ख़ास पसंद नहीं आता था. हमें तो सलोनी सी सीधी सादी 'जया भादुड़ी 'पसंद थीं और हम थे उनके जबरदस्त फैन. अपनी छोटी सी बुद्धि से सोच लिया था कि ये दोनों एक दूसरे की विरोधी हैं. जो हेमा मालिनी को पसंद ना करने का एक और कारण बन गया . हालांकि फिल्म 'किनारा' और 'खुशबू'...जरूर देखी...रिलीज़ होने के कई साल बाद टी.वी. पर. और हेमा मालिनी के अभिनय ने मुत्तासिर भी किया पर सारा क्रेडिट हमने ,दे दिया गुलज़ार को कि उन्होंने हेमा जी से इतना अच्छा अभिनय करवा लिया और रोल भी तो बहुत बढ़िया था. पूरी कहानी नायिका के गिर्द घूमती थी.' मीरा ' फिल्म में हेमा मालिनी बहुत ही अच्छी लगी थीं..फिल्म भी बहुत अच्छी बनी थी (फिर से एक बार देखने की इच्छा है ) पर इस फिल्म से जुड़े एक विवाद ने पहले से ही उनके प्रति विमुख कर दिया था. गुलज़ार ने शादी के बाद राखी के जन्मदिन की पार्टी में सबके सामने राखी को 'मीरा' का रोल ऑफर किया था. पर बहुत जल्द ही दोनों अलग हो गए और बाद में यह रोल गुलज़ार ने 'हेमा मालिनी को दे दिया . उन दिनों पत्रिकाओं में यह चर्चा का विषय था. हालांकि इसमें हेमा मालिनी का क्या दोष...पर कच्ची उम्र में इतनी समझ थोड़े ही होती है हम तो फिर से उनके फैन बनने से रह गए. और फिर उनकी बाल बच्चों वाले धर्मेन्द्र से शादी की खबर ने तो उनके फैन बनने की हर उम्मीद का दिया ही बुझा दिया.
लेकिन.. लेकिन..जब वर्षों बाद उन्हें 'जी फिल्म अवार्ड शो' में स्टेज पर थोड़ा करीब से देखा तो जैसे मंत्रमुग्ध रह गयी. उनकी खूबसूरती पर नहीं (वो तो माशाल्लाह है ही ) ...उनकी सादगी, गरिमा, अंदाज़ पर .एक प्लेन आसमानी रंग की साड़ी पहनी थीं उन्होंने और स्टेज पर जिस तरह आत्मविश्वास से लहराती हुई चाल से वे गयीं और अवार्ड लेकर जिस मुद्रा में खड़ी हुईं. लगा वो ट्रॉफी ही धन्य हो गयी. नृत्यांगना होने से उनकी चाल में, उनके खड़े होने , एक गरिमा तो है ही. उनके सभी posture बहुत ही अच्छे होते हैं. अवार्ड लेते समय भी उन्होंने कुछ बडबोलापन नहीं दिखाया . उनके व्यक्तित्व का एक नया पहलू सामने आया.
उसके बाद कई बार उन्हें टी.वी. पर इंटरव्यू में देखा. खुल कर हंसती है...बिना किसी बनावटीपन के सहजता से मन की बात कह देती हैं. करण जौहर के शो कॉफी विद करण में वे आई थीं..शो में बड़ी सरलता से कह दिया.."ईशा (उनकी बिटिया ) इस शो को लेकर बहुत नर्वस थी कि उसकी माँ पूरे शो में इंग्लिश में कैसे बोल पाएगी...मुझे अच्छी इंग्लिश नहीं आती." फिर हंस कर करण जौहर से पूछा, 'मैने ठीक बोला,ना?" उसी शो में करण जौहर ने एक सवाल पूछा था ,"आज के जो प्रमुख बैचलर हीरो हैं,अगर उनमे से किसी को अपनी बेटी से शादी के लिए चुनना हो तो आप किसे चुनेंगी?" और हेमा जी ने कह दिया ' अभिषेक बच्चन को ' मुझे नहीं लगता दूसरी नायिकाएं इस ट्रिकी सवाल का सीधा उत्तर देतीं. उसी शो में जीनत अमान भी आई थीं. वे बता रही थीं, हेमा जी जब फिल्म की शूटिंग करती थीं तो स्पॉट बॉय से लेकर हीरो,डायरेक्टर, प्रोड्यूसर सब उनके प्रेम में पड़े होते थे. पर ये ऐसे शो करती थीं,जैसे उन्हें यह सब पता ही नहीं. चुपचाप अपना काम ख़त्म करतीं और चली जातीं. " शायद ही हेमा मालिनी कभी ,किसी विवाद में पड़ी हों .
एक इंटरव्यू में देखा..'बागबान में उनके काम और उनकी खूबसूरती की बहुत तारीफ़ हो रही थी. ' पर हेमा मालिनी ने शिकायत की ,'होली खेले रघुवीरा...में मुझे ज्यादा डांस करने का मौका नहीं मिला...कुछ और डांस करने का अवसर मिलता तो अच्छा लगता..' बच्चों जैसी ही लगी कुछ ये शिकायत . वे हमेशा पौलीटिकली करेक्ट होने की कोशिश नहीं करतीं.
अभी इन्डियन आइडल शो में वे धर्मेन्द्र के साथ आई थीं ख़ूबसूरत तो लग ही रही थीं. वैसे मुझे लगता है..चाहे कितने भी तराशे हुए नैन नक्श हों...अगर चेहरे पर खुशनुमा भाव ना हों तो कोई भी स्त्री/पुरुष सुन्दर नहीं लग सकता/सकती . बड़ी-बड़ी आँखें,सुतवां नाक..पंखुड़ी से होंठ किसी को ख़ूबसूरत नहीं बनाते बल्कि पूरे चेहरे पर जो भाव खिले होते हैं...वही ख़ूबसूरत बनाते हैं. कितनी बार साधारण नैन-नक्श वाले लोग भी बहुत अच्छे लगते हैं..वो उनका खुशनुमा व्यक्तित्व ही होता है . नैन-नक्श तो उपरवाले की देन है..पर अपना व्यक्तित्व निखारना खुद के हाथों में है. और हेमा जी को उपरवाले ने खूबसूरती तो दी ही है...उनकी pleasant personality ने उसे द्विगुणित कर दिया है {हो सकता है..हेमा मालिनी को नापसंद करने वाले अपनी भृकुटियाँ चढ़ाएं :)} .
उस प्रोग्राम में आशा भोसले के कहने पर आशा भोसले,सुनिधि चौहान और इतने सारे बढ़िया गाने वालों के बीच ,बिना सुर के भारी दक्षिण भारतीय उच्चारण के साथ एक उर्दू शब्दों से भरे गीत की दो पंक्तियाँ गा दीं. और गाने के बाद जोर से हंसी भीं कि ' मैने आप सबके सामने गाने की हिम्मत कर ली '
एक और घटना के विषय में पढ़ा था कहीं, हेमा जी को इस्कॉन मंदिर जाना था . रास्ते में उनकी कार खराब हो गयी. ड्राइवर बोनट उठा कर देखने लगा, पर हेमा जी ने इंतज़ार नहीं किया और एक ऑटो-रिक्शा को हाथ दिखा,बैठ गयीं. मंदिर पहुँच कर उतर कर वे आगे बढ़ गयीं. जब ऑटो रिक्शा वाले ने पैसे मांगे तो वे बड़े पेशो-पेश में पड़ी. अब ये बड़ी नायिकाएं कोई मध्यम वर्गीय गृहणियां तो हैं नहीं कि घर से बाहर निकलें तो पर्स जरूर साथ में रखें ',क्या पता रास्ते में सब्जी लेनी हो..ब्रेड लेना हो या और कुछ :)' .पर तब तक ऑटोवाला भी उन्हें सामने से देख कर पहचान गया था और उसने हाथ जोड़कर पैसे लेने से इनकार कर दिया. (वरना किसी को फोन कर पैसों का इंतजाम करवातीं ,शायद ).
प्रसंगवश एक और मार्मिक घटना याद आ रही है , जब हेमा जी ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की तो टोकन स्वरुप कुछ पैसे जमा करने थे . फिर से पर्स उनके पास नहीं था. प्रमोद महाजन ने अपने पास से दस रुपये का नोट दिया .उसके बाद हमेशा वे उन्हें मजाक में याद दिलाते 'मेरा दस रुपये का नोट उधार है आप पर.' जब प्रमोद महाजन की मृत्यु हुई तो उनके पार्थिव शरीर के पास हेमा जी अश्रुपूरित नेत्रों से वो दस का नोट रख कर आ गयीं.
मैने हेमा मालिनी का प्रत्येक पब्लिक एपियरेंस नहीं देखा है...हो सकता है ,कुछ लोग मेरी बातों से इत्तफाक ना रखें. पर मेरा औब्ज़र्वेशन यही है. और फिर जिस तरह उन्होंने अपनी शर्तों पर अपना जीवन जिया है..अपने अकेले के दम पर दोनों बेटियों को बड़ा किया है, उनके प्रति मन में सम्मान ही जागता है. धर्मेन्द्र जरूर उनके परिवार का हिस्सा रहे पर मुझे नहीं लगता ,अपनी बेटियों के परवरिश के लिए या किसी भी चीज़ के लिए वे धर्मेन्द्र पर निर्भर रहीं. धर्मेन्द्र ज्यादातर अपने पुराने घर में या अपने लोनावाला वाले फ़ार्म हाउस में ही रहते हैं (अब सुना है,ऐसा..वरना हमें क्या पता ) .ईशा देओल की शादी की तैयारियां भी वे अकेली ही करती नज़र आयीं .
फिल्मों में अभिनय ..घर-परिवार की जिम्मेवारियाँ ...निर्देशक और प्रोड्यूसर की भूमिका..राज्यसभा की सदस्यता...इन सारी जिम्मेवारियों के बीच भी,उन्होंने अपने नृत्य -प्रेम को एक पल के लिए भी धूमिल नहीं होने दिया. नृत्य उनका पहला प्यार है और देश-विदेश में लगातार अपने नृत्य कार्यक्रम प्रस्तुत कर उन्होंने इसके प्रति अपनी अगाध निष्ठा और समर्पण ही जताया है.
इशा देओल , अच्छी खिलाड़ी थीं, फुटबौल बहुत अच्छा खेलती थीं,अपनी स्कूल की टीम में भी थीं.पर मालिनी ने अपनी दोनों बेटियों को नृत्य की विधिवत शिक्षा भी दिलवाई . इशा और आहना के साथ जब वे स्टेज पर नृत्य प्रस्तुत करती हैं तो वो समां दर्शनीय होता है. वैसे भी हर नृत्य प्रस्तुति की तरह हेमा जी का नृत्य प्रदर्शन भी स्वर्गिक आनंद देनेवाला होता है.
अक्सर ऐसा होता है कि जिन्हें हम परदे पर अच्छे किरदार निभाते देखते हैं,उसके प्रशंसक हो जाते हैं. पर कई बार ऐसा भी होता है, जो हमें परदे पर बिलकुल पसंद नहीं आते .परदे की दुनिया के बाहर उनके व्यक्तित्व की झलक हमें उनका मुरीद बना देती है.