हमारा देश आक्रोश, अविश्वास, बेबसी की आंच से सुलग रहा है। व्यवस्था के प्रति ये क्रोध हर तबके के लोगों में है पर युवाओं में ज्यादा मुखर है। सही भी है, देश की पतवार उनके हाथों में हैं शायद उनके हाथ ही सही दिशा में ले जाएँ।
आज निर्भया हम सबसे दूर चली गयी है पर हमारे ह्रदय में उसने हमेशा के लिए साहस, प्रेरणा की लौ जला दी है, जो कभी बुझने वाली नहीं।निर्भया ने जिस हिम्मत से उन छः नर-पिशाचों का सामना किया , भले ही उसके शरीर के चिथड़े कर दिए गए पर उसने आत्मसमर्पण नहीं किया . उसके इसी साहस ने सबकी आत्मा को झिंझोड़ दिया है। ज़रा सी बात पर हम लोग निराश हो जाते हैं, हिम्मत हार जाते हैं और यहाँ एक लड़की, अपने शरीर पर भीषण अत्याचार सहती रही पर हार नहीं मानी,अंत तक लडती रही।
आज निर्भया हम सबसे दूर चली गयी है पर हमारे ह्रदय में उसने हमेशा के लिए साहस, प्रेरणा की लौ जला दी है, जो कभी बुझने वाली नहीं।निर्भया ने जिस हिम्मत से उन छः नर-पिशाचों का सामना किया , भले ही उसके शरीर के चिथड़े कर दिए गए पर उसने आत्मसमर्पण नहीं किया . उसके इसी साहस ने सबकी आत्मा को झिंझोड़ दिया है। ज़रा सी बात पर हम लोग निराश हो जाते हैं, हिम्मत हार जाते हैं और यहाँ एक लड़की, अपने शरीर पर भीषण अत्याचार सहती रही पर हार नहीं मानी,अंत तक लडती रही।
हर युवा की संवेदनशीलता को इस घटना ने गहरे तक छुआ है।
आज इस काले शनिवार के दिन ही दो संवेदनशील युवाओं की प्रतिक्रियायें मिली एक तो मेरी पिछली पोस्ट पर summary (इनका नाम नहीं पता, ब्लॉग आइ डी यही है ) की प्रतिक्रिया जो आक्रोश से भरी हुई है।
summary के शब्द हम सबके मन की भावनाएं व्यक्त करते हैं।
चलो , न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी .....कम से कम हमारी इटैलियन मेम (सोनिया गांधी ) तो यही सोच रही होंगी . मैडम शीला दिक्षित बहुत हिम्मत वाली महिला हैं . मिलने नहीं गयीं लड़की से पर आज सुबह उनकी फोटो अखबार में कैंडल जलाते हुए . इस वर्ष कई मंत्रियों ने अपने बोल्ड विचार व्यक्त किये विभिन्न विषयों पे। पिछले 2 हफ़्तों में कई बुद्धिजीवियों ने स्त्रियों के मानक बताये .
क्या करना चाहिए , क्या नहीं ... बाहर जाना चाहिए तो कैसे .. कपडे पहनने चाहिए तो कैसे ... कुछ ने कहा ... लड्कियूं को फिल्म नहीं देखनी चाहिए ... जीन्स पहनने से वे लड़कों को उकसाती हैं .
रात 6 बजे के बाद घर से बहार नहीं निकलना चाहिए ... 1 महिला वैज्ञानिक ने तो यहाँ तक बोला कि 'दामिनी'/निर्भया ' ने उन लोगों को उकसाया . वो रात को 10 बजे पिक्चर देखने क्यूँ निकली ?
अच्छी बात है ... तो फिर ये लोक्तंत्र का बाजा क्यूँ ? चुनाव क्यूँ ? खाड़ी देशों के तरह .. महिलायों को घर में बिठा कर रखो ... 5 क्लास के बाद नज़रबंद कर दो ... जो मार काट के गद्दी पे बैठ जाये वो PM . क्यूँ कल्पना चावला सुनीता विल्लिअम्स का example देते हो ...वे दोनों यहाँ से निकल गयीं तो कुछ कर दिखाया ..वर्ना यहाँ ..double standard politics mentality का शिकार बन चुकी होतीं ....क्यूँ कहते हो ..उन्हें भारत की मूल नागरिक ? इस हिसाब से तो उन्होंने भारत की नाक कटा दी .. जीन्स पहन के ......अमेरिकी क्यूँ लड़कियों को j जींस पहने देख उत्तेजित नहीं होते ..वे नामर्द हैं क्या ? सारे मर्द यहाँ भारत वर्ष में पैदा हुए ... दु:शाशन से लेकर गोपाल कांडा तक ......
क्या करना चाहिए , क्या नहीं ... बाहर जाना चाहिए तो कैसे .. कपडे पहनने चाहिए तो कैसे ... कुछ ने कहा ... लड्कियूं को फिल्म नहीं देखनी चाहिए ... जीन्स पहनने से वे लड़कों को उकसाती हैं .
रात 6 बजे के बाद घर से बहार नहीं निकलना चाहिए ... 1 महिला वैज्ञानिक ने तो यहाँ तक बोला कि 'दामिनी'/निर्भया ' ने उन लोगों को उकसाया . वो रात को 10 बजे पिक्चर देखने क्यूँ निकली ?
अच्छी बात है ... तो फिर ये लोक्तंत्र का बाजा क्यूँ ? चुनाव क्यूँ ? खाड़ी देशों के तरह .. महिलायों को घर में बिठा कर रखो ... 5 क्लास के बाद नज़रबंद कर दो ... जो मार काट के गद्दी पे बैठ जाये वो PM . क्यूँ कल्पना चावला सुनीता विल्लिअम्स का example देते हो ...वे दोनों यहाँ से निकल गयीं तो कुछ कर दिखाया ..वर्ना यहाँ ..double standard politics mentality का शिकार बन चुकी होतीं ....क्यूँ कहते हो ..उन्हें भारत की मूल नागरिक ? इस हिसाब से तो उन्होंने भारत की नाक कटा दी .. जीन्स पहन के ......अमेरिकी क्यूँ लड़कियों को j जींस पहने देख उत्तेजित नहीं होते ..वे नामर्द हैं क्या ? सारे मर्द यहाँ भारत वर्ष में पैदा हुए ... दु:शाशन से लेकर गोपाल कांडा तक ......
we don't want insensible , incapable and careless government . Its pity that when whole nation was expecting some quick , strict action from gov that time gov acted as a silent spectator without having any strategy to deal with the situation. RIP my little sister. we are sorry .
एक संवेदनशील युवा लड़के ने बहुत व्यथित होकर एक कहानी सा लिखा है।
कहानी अंग्रेजी में है,जिसका हिंदी अनुवाद यहाँ है
" एक सफ़ेद रंग की कार 'भारत माता चौक' के पास एक मिनट के लिए रुकी . फिर तुरंत आँखों से ओझल हो गयी। कार से एक मैले-कुचैले चादर में लिपटी एक आकृति सड़क के किनारे धकेल दी गयी थी। उसकी मैली चादर पर नज़र पड़ते ही उसे रास्ते में रहने वाली भिखारिन समझ लोग आगे बढ़ जाते।
एक कीमती साडी में एक औरत अपने बच्चे को गोद में लिए उसके पास से गुजर रही थी। उस आकृति ने उस औरत की साडी पकड़ कर खींचना चाहा . उस औरत ने उसे जोर से झिड़क दिया और आगे बढ़ गयी। सौ के करीब लोग उसके पास से गुजरे, उसमे से दस लोगो ने उसकी तरफ देखा भी पर किसी ने नोटिस नहीं लिया।
सड़क के पार से एक जोड़ी मूक आँखें उस आकृति को घूर रही थीं। 'यह कुछ अलग सा क्या है ? " उन मूक आँखों में ये भाव कौंधे , तब तक वो आकृति कितने ही लोगो के पैर , उनकी पेंट के पायंचे, साडी का किनारा खींच कर अपनी तरफ उनका ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश कर रही थी। पर लोग उसका हाथ झटक कर आगे बढ़ जाते। एक जोड़ी मूक आँखें उसे घूरती रहीं, फिर धीरे से उसके कान खड़े हो गए और वह अपनी दुम हिलाता उठ खड़ा हुआ।उस चादर में लिपटी आकृति की तरफ देख कर भौंकने लगा। फिर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब वह अपने छोटे छोटे पैरों से सड़क को पार कर उस आकृति के पास जाकर भौंकने लगा . हर गुजरते कदमों के साथ उसके भौंकने की आवाज़ बढती जा रही थी। उसकी आवाज़ से कुछ लोगों ने डर कर अपने कदमों की गति तेज कर दी पर भौंकने की वजह पर ध्यान नहीं दिया।
अब वह कुत्ता सड़क पर आगे-पीछे भागते हुए भौंकने लगा। कुछ लोगो ने उसे छोटे छोटे पत्थर और पानी की बोतल फेंक कर मारा । उसने एक आदमी का पैंट पकड़ कर खींचा तो उस आदमी ने बगल से एक लाठी उठा कर उसे दे मारा। पर वह कुत्ता फिर भी नहीं हटा, उस आकृति के पास जाकर भौंकने लगा। उस आकृति की पनीली आँखें उस कुत्ते के आँखों से मिलीं और उसका भौंकना पंचम सुर तक पहुँच गया . अब वह हर आने-जाने वाले के कपडे पकड़ कर खींचने लगा। एक छोटी सी भीड़ उस कुत्ते के पास जमा हो गयी और लोग उस कुत्ते को पागल समझ कर उसके ऊपर पत्थर फेंकने और उसे लाठी से मारने लगे। फिर भी लोगो का ध्यान उस मैली कुचैली आकृति पर नहीं गया जिसके लिए वह कुत्ता भौंक रहा था .
कुत्ते को पागल समझकर दो भिखारी जैसे लोग उस सड़क की दूसरी तरफ जाने लगे और उस आकृति को भी अपने साथ चलने के लिए उसकी चादर पकड़ कर खींचा । चादर खींचते ही वह आकृति लुढ़क पड़ी ,लोगो ने देखा वह एक लड़की थी,जिसके कपडे फटे हुए थे और वह खून से लथपथ थी।
भीड़ में से किसी ने नंबर डायल किया 101 और पता बताया ,'भारत माता चौक '
थोड़ी ही देर में पुलिस वैन आकर लड़की को ले गयी .लड़की ने दो दिन बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया। लगातार भौंकने की वजह से पत्थर और लाठियां खा कर कुत्ता पहले ही मर चुका था।
पुलिस को इतनी तत्परता से लड़की को अस्पताल पहुंचाने के लिए राज्य की तरफ से पुरस्कृत किया गया।
पुलिस को इतनी तत्परता से लड़की को अस्पताल पहुंचाने के लिए राज्य की तरफ से पुरस्कृत किया गया।