सोनाली मुखर्जी का एसिड अटैक से पहले का चित्र |
दुनिया के करीब बीस देशों में हर वर्ष करीब 1500 लोग एसिड अटैक के शिकार होते हैं और इनमे 80 % औरतें होती हैं ,जिनमे से 70 % की उम्र 18 साल के आस-पास होती है . दक्षिण एशियाई देशों में ही ऐसे कुकृत्य ज्यादा देखने में आते हैं और इनमे प्रमुख हैं,. भारत, पकिस्तान, बांगला देश ,ईरान , अफगानिस्तान, कम्बोडिया आदि .
इन देशों में साल में करीब 100 एसिड अटैक की रिपोर्ट दर्ज होती है. इसके अलावा कितनी घटनाओं की तो रिपोर्ट ही नहीं की जाती.
भारत में भी देश के एक कोने से दुसरे कोने तक हमारी बहने इस जघन्य अत्याचार की शिकार हो रही हैं .बिहार, यू.पी , कर्णाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र ,कश्मीर हर प्रदेश में कई ऐसे नाम हैं जो अपना चेहरा खो चुकी हैं, बस उनकी कहानियाँ बाकी हैं . विद्या के माता -पिता ने जब शादी स्थगित कर दी, तो उसके मंगेतर ने उसके चेहरे पर तेज़ाब उंडेल दिया .विनोदिनी के पिता को पैसे उधार देने के बाद, वो व्यक्ति विनोदिनी से शादी करना चाहता था . विनोदिनी के इनकार करने पर उसका यही हाल किया गया
सत्रह साल की सोनाली मुखर्जी के भी इनकार करने पर उसके कॉलेज के ही तीन लड़कों 'तापस मित्रा' , 'संजय पासवान ' और 'ब्रह्मदेव हाजरा ' ने घर में घुसकर सोती हुई सोनाली को तेज़ाब से नहला दिया . वे लड़के पकडे गए ,लोअर कोर्ट ने उन्हें नौ वर्ष की सजा भी सुनायी पर 'तापस मित्रा' , 'संजय पासवान ' बस चार महीने जेल में रहकर बेल लेकर आजाद घूम रहे हैं .ब्रह्मदेव हाजरा ' को कोई सजा नहीं मिली क्यूंकि कोर्ट ने उसे बरी कर दिया क्यूंकि वह उस वक़्त नाबालिग था .हाईकोर्ट में अपील की गयी है, पर नौ वर्ष हो गए और फैसला आना अभी बाकी है.
एसिड अटैक के हादसे के बाद सोनाली KBC में |
KBC के season 6 में सोनाली को आमंत्रित किया गया और वे पच्चीस लाख की इनाम राशि जीत पायीं . इस से कुछ तो उनके इलाज का खर्च निकल आयेगा . .
पर ऐसी पता नहीं कितनी ही सोनाली इस दर्दनाक हादसे का खामियाजा भुगत रही हैं
एक कश्मीरी स्कूल टीचर का रोज पीछा करने वाले एक युवक ने टीचर की तरफ से कोई बढ़ावा न दिए जाने पर उसका चेहरा ही बिगाड़ दिया. हसीना हुसैन के पूर्व बॉस ने शादी से इनकार करने पर बदला लेने का हथियार तेज़ाब को ही बनाया शिरीन जुवाले, स्वप्निका, सबकी यही कहानी है. कुछ साल पहले मुंबई में ही एक खबर पढ़ी थी, जहां एक लड़की ग़लतफ़हमी (mistaken identity ) की शिकार हो गयी .एक लड़के ने दो लोगो को एक लड़की पर तेज़ाब फेंकने के लिए हायर किया था. ये दोनों लोग उस लड़की को नहीं पहचनाते थे और गलती से किसी दूसरी लड़की को निशाना बना आये.
अभी हाल की ही खबर है, जहां जातिवाद की वजह से भी दो मासूम बहनें ,ऐसे भयानक हादसे की शिकार हुईं .21 अक्तूबर 2012 को चार ऊँची जाति के युवकों ने उन्नीस वर्षीय चंचल पासवान और उसकी पंद्रह वर्षीय बहन के ऊपर तेज़ाब फेंककर,उन्हें बुरी तरह झुलसा दिया . चंचल अकेली दलित लड़की है जो दसवीं पास कर ग्यारहवीं में पढ़ रही थी, पढने में तेज थी और कंप्यूटर इंजिनियर बनाना चाहती थी/है . ऊँची जाति के युवक उसे हमेशा परेशान किया करते थे .फिर भी अपनी पढ़ाई जारी रखने और उन युवकों के दबाव में नहीं आने के कारण उसे यह सजा दी गयी .उसके माता-पिता मजदूर हैं , दोनों बहनों का पटना मेडिकल कॉलेज में इलाज चल रहा है. ज्यादातर दवाइयां और मलहम बाहर से खरीदने के लिए कहे जाते हैं जिसे वे नहीं खरीद पाते.
हमारे क़ानून में एसिड फेंकने वाले अपराधियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है. न्यायिक प्रक्रिया भी बहुत लम्बी है . और फैसला आने तक अपराधी किसी की ज़िन्दगी तबाह कर खुद आराम से सामान्य जीवन बिताते हैं . जबकि पीडिता न सिर्फ असहनीय दर्द झेलते एक जिंदा लाश में तब्दील हो जाती है बल्कि उसके चरित्र पर भी अंगुलियाँ उठायी जाती है.
तेज़ाब सिर्फ चेहरे को ही नहीं झुलसाता बल्कि पीड़ितों के लिए एक एक दिन जीना मुश्किल कर देता है .अक्सर उनकी आँखों की रौशनी भी चली जाती है. कान से सुनाई नहीं देता और उनके हाथ-पैर भी ठीक से काम नहीं करते .
समाज ज्यादातर ऐसी घटनाओं से असंपृक्त ही रहता है. यहाँ तक कि एक संगठन ने एक कॉलेज में इस विषय पर सेमीनार करने की इच्छा प्रगट की तो कॉलेज की प्रिंसिपल ने यह कह कर मना कर दिया कि एसिड विक्टिम का चेहरा देखकर छात्राएं डर जायेंगी .
फिर भी कई लोग, अपनी आत्मा की आवाज़ सुन ,इन पीड़ितों के लिए काम कर रहे हैं .पाकिस्तान की एक महिला जो ब्यूटीपार्लर चलाती है , अपने पार्लर में एसिड अटैक से पीड़ित लड़कियों/महिलाओं को ट्रेन करती है और उन्हें काम देती है. लन्दन में कार्यरत एक पाकिस्तानी डॉक्टर जावेद नियमित रूप से पाकिस्तान आते हैं और एसिड विक्टिम का फ्री में इलाज करते हैं .
हमारे देश में भी कई संगठन प्रतिरोध जता रहे हैं और सरकार से मांग कर रहे हैं .कि एसिड अटैक विक्टिम को न्याय दिलाने के लिए अलग से कानून बनाए जाएँ . अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान हो , उन्हें बेल न मिले . एसिड अटैक पीड़ित के इलाज का पूरा खर्च सरकार उठाये और उनके पुनर्वास की भी व्यवस्था करे.
पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता आलोक दीक्षित एवं प्रसिद्ध कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ के सौजन्य से 8 मार्च 2013 को दिल्ली में हिंदी भवन में 12 बजे से 4 बजे के बीच एक सेमीनार आयोजित किया जा रहा है .
इन पीड़ितों को न्याय दिलाने उनके इलाज उनके पुनर्वास के प्रयास पर विमर्श किया जायेग. अगर आप दिल्ली में हैं तो मेरी गुजारिश है वहां जरूर जाएँ और अपना योगदान दें .
एसिड अटैक पीड़ितों के विषय में ज्यादा जानकारियों के लिये इस पेज से जुड़ सकते हैं
युवा भी अपनी तरफ से विरोध प्रगट कर रहे हैं, इस जघन्य अपराध की तरफ लोगो का ध्यान आकर्षित करने के लिए 11 जनवरी 2013 को दिल्ली यूनिवर्सिटी के 70 छात्र-छात्राओं ने मिलकर 7 मिनट के लिए freeze mob अभियान का आयोजन किया
दोषियों को तत्काल कठोर दण्ड जब तक नहीं मिलेगा, ऐसे अपराध बढ़ते ही रहेंगे। दिल्ली की दुर्घटना को ढाई माह व्यतीत हुए हैं अभी, पर घटना से लोगों की अनदेखी को देखकर लगता है कि सदियां बीत चुकी हैं। प्रश्न है कि तन्त्र क्या कर रहा है और वह किसलिए है? मात्र घोटाले करने और इससे उबरने के लिए।
जवाब देंहटाएंयही तो समझ नहीं आता, आखिर सरकार कब अपना कर्तव्य समझेगी .
हटाएंएक सार्थक पोस्ट ... बहुत जरूरी हो गया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह अपराध और इसको करने वाले अपराधी कानूनी बारीकियों का सहारा ले बचने न पाएँ ! इस मसले पर सरकार की लापरवाही भी जग जाहिर है ... आजतक वो इसको एक गंभीर मुद्दा ही नहीं मान पाई तो कानून का ख़ाक बनाती!
जवाब देंहटाएंइस मसले पर मैंने भी एक पोस्ट लगाई थी ... देखें !
http://jaagosonewalo.blogspot.in/2010/05/blog-post_11.html
नागरिकों को एक सुरक्षित वातावरण देना ,सरकार का कर्तव्य है. सरकार बनायी ही इसलिए जाती है कि सबकुछ व्यवस्थित रूप से चले, पर अगर सरकार इसमें असफल होती है तो फिर उसे पीड़ितों की हर तरह से पूरी सहायता करनी ही चाहिए
हटाएंइन देशों में ही तेजाबी हमले ज्यादा होते हैं इससे साफ पता चलता है कि जो भी समाज महिलाओं से जितना ज्यादा डरता है जितना ज्यादा बंदिशें लगाता है वही ये घटिया कायराना कृत्य ज्यादा करते हैं।
जवाब देंहटाएंएकतरफा प्यार?
ऐसा कहके हम प्यार का नाम बदनाम करते हैं ये भेडिये नरपिशाच क्या जानें प्यार क्या होता है ।प्यार एकतरफा भी होता है परंतु ऐसा नही । प्रेम वह होता है जिसमें खुद मिट जाने को मन होता है न कि दूसरे को मिटा देने का।ऐसे वर्चस्ववादी जो किसी लडकी का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार नहीं कर सकते वो क्या किसीसे प्यार करेंगें।तेजाबी हमला तो बस एक खीज उतारने के लिए किया जाता है।बहरहाल इस पर अंशुमाला जी ने कोई पोस्ट लिखी थी कि पीडिता का इलाज सरकारी खर्च पर होना चाहिए ताकि ऐसे लोग ये सोचना बंद कर दें कि ऐसा करके वो किसी लडकी का अस्तित्व ही खत्म कर सकते हैं या उसे सजा दे सकते है।और सख्त कानून तो जरूरी है ही।
जानकारी के लिए धन्यवाद !मैंने बहुत पहले से सोच रखा है कि मैं अपनी तरफ से किसी भी किस्म की मदद कर सकूँ जो अब मैं जरूर करूँगा।
मैंने भी जब इन देशों के नाम पढ़े तो यही ख्याल आया कि चाहे हम पश्चिम की जितनी आलोचना कर लें, पर हम में अब भी बर्बरता शेष है, हम पूरी तरह से सभ्य नहीं हो पाए है .
हटाएंआपका कहना सही है,यह 'प्यार' तो बिलकुल नहीं है. सिर्फ अहम है कि 'मुझे इनकार करने की हिम्मत कैसे हुई ?? '
मानसिक विक्षिप्तता की निशानी है यह.
बहुत गंभीर समस्या है यह .....पीड़िता सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक प्रताड़ना भी झेलती है और वो भी जीवन भर , न जाने सर्कार क्यों उदासीन है ऐसे अपराधों को लेकर , विचारणीय विषय
जवाब देंहटाएंउसकी ज़िन्दगी ही रुक सी जाती है.
हटाएंसरकार को परवाह ही क्या है, उसे अपनी गोटियाँ बिठाने, अपने सात पुश्त का इंतजाम करने की फ़िक्र है, बस .
स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की एक लम्बी श्रृंखला है .
जवाब देंहटाएंमगर अच्छे आलेखों में ऊँची नीची जाति के शब्दों के प्रयोग पर मुझे आपत्ति है , कम से कम हम स्त्रियों को तो इस खांचे में ना बांटे . स्त्रियों पर किये जाने वाले अत्याचार स्त्रियों की समस्या है , किसी जाति विशेष की होने से दर्द कम ज्यादा नहीं हो जाता . राजस्थान में भी शिवानी जडेजा सहित अनेक दर्दनाक काण्ड हुए हैं , मगर उसकी जाति विशेष से जोड़ना कहा तक उचित है . स्त्रियों की समस्या को जाति से जोड़ कर उन्हें राजनीति का हिस्सा न बनाये , पढ़े लिखे प्रबुद्ध वर्ग से तो कम कम से यह अपेक्षा की ही जा सकती है !
@मगर अच्छे आलेखों में ऊँची नीची जाति के शब्दों के प्रयोग पर मुझे आपत्ति है , कम से कम हम स्त्रियों को तो इस खांचे में ना बांटे
हटाएंलिखते वक़्त एक बार मुझे भी यह ख्याल आया था, फिर भी मैंने लिखा क्यूंकि सच यही है. इस विषय पर काफी आलेख पढ़े हैं, उसके बाद ही यह पोस्ट लिखी है. कई समाजशास्त्रियों का कहना है कि एसिड अटैक का एक कारण जातिवाद भी है. दलित लड़कियों को आगे नहीं बढ़ने देने के लिए भी एसिड अटैक को हथियार बनाया जाता है. मैंने चंचल पासवान से सम्बंधित खबर की लिंक भी दी है, (इंटरनेट पर इस दुष्कृत्य से सम्बंधित और भी कई आलेख हैं ) जिसमे लिखा है कि किस तरह ये युवक उसके घर के परदे फाड़ दिया करते थे, कंप्यूटर क्लास जाते वक़्त उसका दुपट्टा खींच लिया करते थे, उस पर गंदे रिमार्क्स करते थे (जातिसूचक ) .उसने अपना रास्ता बदल लिया फिर भी पढ़ाई जारी रखी तो अंतिम हथियार यह अपनाया गया .
बिलकुल यह चंचल का दर्द हो, सोनाली का या शिरीन का, सबका दर्द एक जैसा है .पर अगर किसी को जातिवाद की वजह से यह झेलना पड़ा तो उस से कैसे इनकार करें ??
दलित स्त्रियों पर और भी कई बार सिर्फ उनके दलित होने की वजह से अत्याचार किये जाते हैं तो यह लिखना ही पड़ेगा कि दलित स्त्री पर ऊँची जाति वालों ने ये अत्याचार किये. हाल में ही फेसबुक पर कई लोगो ने एक दलित स्त्री की तस्वीर शेयर की, जिसका बलात्कार करके उसे फांसी दे दी गयी थी. और पेड़ से लटका दिया गया था .वहाँ लिखा ही था कि ऊँची जाति वालों ने इस दलित स्त्री का ये हाल किया .
सच से आँखें कैसे चुराएं ??
इसके बावजूद तुम्हे आलेख अच्छा लगा, शुक्रिया .
वाणी जी,शिवानी जडेजा वाली घटना जयपुर में हुई थी किसी गाँव में नहीं।और वो घटना बिल्कुल अलग थी जितना मुझे याद है ये हमला खुद उस लड़की की भाभी ने करवाया था।ये बात सच है कि मीडिया हर एक मामले को एक जैसा रंग दे देता है कुछ ऐसी खबरें आती हैं जैसे दलित महिला से छेड़छाड़ या दलित महिला से बलात्कार।लेकिन ये भी सच है कि गाँवों में दलित महिलाओं को तथाकथित ऊँची जातियों के पुरुषों द्वारा सबक सिखाने के लिए ऐसी घटनाएँ अंजाम दी जाती है।बाल विवाह का विरोध करने वाली भँवरी देवी का उदाहरण ऐसा ही है।
हटाएंराजन जी ,
हटाएंमैं भी यही कह रही हूँ कि ये स्त्रियों के साथ होने वाली दुर्घटनाएं है , स्त्रियों की दृष्टि से सोचे !
गाँवों में या शहरों में भी , तथाकथित उच्च जाति की स्त्रियाँ भी दुर्घटना की शिकार होती ही है , मगर क्या तब भी उनका उल्लेख उनकी जातियों के साथ होता है ??
वाणी,
हटाएंउच्च जाति की स्त्रियों के साथ भी ये हादसे होते हैं . पर इस अटैक की वजह उनकी जाति नहीं होती, अक्सर उनका शादी से इनकार कर देना ही वजह होती है. इसलिए जाति का उल्लेख करना जरूरी नहीं होता
पर यहाँ, इस हादसे की वजह जाति थी और ये अकेला चंचल पासवान का ही उदहारण नहीं है और भी ऐसे कई मामले सामने आये हैं, इसीलिए जाति का उल्लेख करना ही पड़ेगा .
अगर सिर्फ ये मामला होता कि लड़की ने उन लड़कों के प्रेम का प्रतिदान नहीं दिया, इस वजह से उस पर एसिड फेंका गया तो जाति का उल्लेख बिलकुल भी जरूरी नहीं था . पर यहाँ क्या चंचल पासवान या उस जैसी कितनी ही लड़कियों पर जो एसिड फेंके गए क्या एसिड फेंकने वाले उस से शादी करना चाहते थे ? नहीं, वे बस उसे सबक सीखाना चाहते थे .
और जैसे पाकिस्तान में पत्नियों का पति की आज्ञा न मानना , अफगानिस्तान, ईरान में हिजाब न करना, लड़कियों का स्कूल जाना, जैसे कारण हैं,उनपर एसिड अटैक के वैसे ही भारत में एकतरफा प्रेम इज़हार के साथ साथ जातिवाद भी एक प्रमुख वजह है.
वाणी जी,गाँव शहर की बात मैंने इसलिए की क्योंकि आपने एक शहर की घटना का उदाहरण दिया था लेकिन शहरों में जातिवाद की समस्या इतनी नहीं है कि किसी महिला पर दलित वर्ग की होने की वजह से एसिड फेंका जाए यहाँ ये किसी के साथ भी हो सकता है और इसके कारण भी अलग होते हैं पर गाँवों में हालात अलग है।
हटाएंमेरे ख़याल से नाम, जाति, स्थान का ज़िक्र होना आवश्यक है, क्योंकि ये सभी सच्ची घटनाएं हैं। ये सारे अंश रश्मि ने अपनी तरफ से नहीं जोड़े होंगे, ये जैसे उसे मिले होंगे वैसे ही इनको लिखा होगा। ये एक तरह से statistic भी देता है, कहाँ, कैसे और किसके साथ क्या घटित हुआ।
हटाएंवर्तमान में हमने पुरुषों की मानसिकता बदल दी है, हम अक्सर कहते हैं कि पुरुष प्रधान समाज है। उसका परिणाम यह आता है कि किशोर वय के लड़के अपनी प्रधानता समझने लगते हैं और लड़की को बलात पाना चाहते हैं। इसलिए मैं अक्सर कहती हूँ कि भारत पितृ प्रधान है ना कि पुरुष प्रधान। हमें परिवारों में पुरुष की प्रधानता का भूत उतारना होगा।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं,अजित जी,
हटाएंबचपन से शायद ऐसे पुरुषों के मन में यह भावना भर दी जाती है कि वे जिस चीज़ पर हाथ रख दें,वह उनकी हो जायेगी और इसीलिए ये रिजेक्शन झेल नहीं पाते. सब पालन-पोषण का ही दोष है. बचपन से ही उन्हें समानता का पाठ पढ़ाना जरूरी है.
yah ek gambeer ghatna hai jisme nyay dete samy is baat ka dhyan rakha jaye ki isme ek ladki ke sirf chehre ko hi nahi balki uske samooche vyaktitv ko jhulsa dene ki koshish hui hai ye to uski jijivisha hai ki vah iske baad bhi tan kar khadi hai. use jald or uchit nyay milana hi chahiye...
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं, कविता जी
हटाएंचिन्तनीय परिस्थितियाँ, इसे जघन्यतम अपराधों की श्रेणी में लाकर ही कुछ भला संभव है।
जवाब देंहटाएंसही कहा ,आपने
हटाएंमुझे लगता है की एसिड अटैक को हत्या के बराबर का जुर्म बनाना चाहिए , पीड़ित लड़की का वास्तव में सारा जीवन बर्बाद हो जाता है सिर्फ सामाजिक रुख से नहीं बल्कि उन्हें शारीरक रूप से कई बार अपंग भी बना दिया जाता है । जहा अपराधी को जेल की सजा होनी चाहिए वही उस पर भारी आर्थिक जुर्माना भी लगाना चाहिए जिसको पीड़ित को देना चाहिए ( किन्तु वास्तव में ऐसा करने वाले युवा होते है इसलिए वो जुर्माना नहीं दे सकते है किन्तु उनका केस लड़ रहे परिवार वालो को इसे अदा करना चाहिए ) । जैसा की आप ने लिखा है की ऐसे मामलों में सरकारों का रवैया देख कर खीज ही ज्यादा आती है ये समस्या इतनी विकराल हो गई है किन्तु आज भी महिलाओ के खिलाफ अपराधो में बड़ी सजा देने के लिए हमारे माननीय लोग बिल को दबा कर बैठे थे दिल्ली गैंग रेप पर इतना बवाल नहीं होता तो ये अध्यादेश भी नहीं आता और देखिये कानून बन पाता है की नहीं । अफसोस होता है की पाकिस्तान में ऐसी महिलाओ की मदद के लिए उनके प्लास्टिक सर्जरी करने के लिए एक संस्था है किन्तु भारत में ऐसा कुछ भी शुरू नहीं हुआ बल्कि एक भारतीय महिला का पाकिस्तान की उस संस्था ने सर्जरी की थी ।
जवाब देंहटाएंसरकार को पीड़ित के इलाज का पूरा खर्च, उसके पुनर्वास की व्यवस्था करनी ही चाहिये.
हटाएंऔर कोशिश करनी चाहिए की जहाँ तक हो सके वो एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सके, क्यूंकि उसे सुरक्षित माहौल नहीं मुहैय्या कराया गया, यह पूरा सरकार का ही दोष है.
अपराधियों को भी ऐसी सजा मिले कि ऐसा अपराध करने की सोचते ही उनकी रूह काँप जाये. पर हम सब जानते हैं, यह सब हमारी कोरी कल्पनाएँ हैं, सरकार को विदशी दौरे, मीटिंग करने, घोटाले करने से फुर्सत ही नहीं मिलने वाली.
राजनीति होनी शुरू हो जाती है दूसरे ही दिन । पहले दिन ही नेता सांत्वना देते हैं फिर लडने झगडने लगते हैं एक दूसरे की सत्ता पर आरोप और फिर जनता भी पीछे पीछे । इस बीच में पीडित को भूले और कानून को भी
जवाब देंहटाएंसांत्वना देने आते हैं या फोटू खिंचवाने ??
हटाएंये बहुत गम्भीर समस्या है ..कितनी निर्ममता से ऐसे कृत्य किये जाते हैं ...जैसे दूसरे का जीवन जीवन ही नहीं ...
जवाब देंहटाएंइस से निबटना बहुत जरूरी है
हटाएंहां क्रूरतम, जघन्य कृत्य है ये. लेकिन अफ़सोस, कि ऐसा अपराध करने वाले विकृत मानसिकता के लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है.
जवाब देंहटाएंहाँ, दखद तो है ही और हमारे सभ्य कहलाने वाले देश के लिए शर्म से डूब मरने वाली बात है.
हटाएंहम भारतियों में नैतिकता के गिरते स्तर के लिए कौन दोषी है ..? ऐसा भी तो नहीं है की कानून से अभियुक्तों को सजा नहीं मिली ..पर निचली अदालतों के दिए हुए फैसलों पे स्टे आर्डर लेके या फिर उपरी अदालतों में अर्जी दाल के इसे बदल लिया जाता है ...
जवाब देंहटाएंलोग ही दोगले समीकरण पे चलते हैं ..अपने लिए कुछ और दूसरों के लिए कुछ और मानदंड होते हैं इनके .. झूठा दंभ .. खोखले विचार ..
परिवार वालों को घर के लडके जिसने ऐसा कुकृत्य किया हो उसे दंड देना चाहिए ... जबकि वे उसे बचने का हर संभव प्रयास करते हैं ..या तो पुलिस को घूस दे के या शहर से कुछ दिन बाहर भेज के…. घर वालों की मानसिकता ही सामंतवादी होती है ...
बहुत सही सवाल उठाया
हटाएंहम अपने भाई- बंधू , परिवार से ऊपर उठ कर क्यूँ नहीं देख पाते ??
यह जानते हुए भी कि उसने ऐसा घृणित कर्म किया है, परिवार वाले उसे बचाने में लगे होते हैं . उन्हें उस पीड़ित का चेहरा दिखाई नहीं देता जो कल फूल सा कोमल था और आज एक खुरदरी चट्टान में तब्दील हो गया .
समाज भी उन्हें अपना लेता है. लडकियां भी उनसे शादी करने को तैयार हो जाती हैं, यह जानते हुए भी कि उसने एक लड़की का ऐसा हश्र किया है.
कब हम परिवार से ऊपर उठ कर एक समाज के रूप में सोचेंगे, पता नहीं
बहुत हैरानी होती है, देख सुन कर यह सब ...
जवाब देंहटाएंमैंने अमेरिका, कनाडा में ऐसी घटना के बारे में नहीं सुना है, लेकिन भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में ऐसी घटनाएं बहुत आम होती जा रहीं है। यह जघन्य, और अमानवीय कृत्य है, कुत्सित मानसिकता दर्शाती है और यह भी बताती है की इन देशों में स्त्री की औक़ात क्या है। बलात्कार की तरह यह अपराध भी कठोर दंड का भागी होना चाहिए।
मेरे हिसाब से ऐसे लोगों को भी तेज़ाब से, अच्छे से, और आराम से, बिठा कर नहलाना चाहिए ...:(
यही समझ में नहीं आता एक तरफ तो हम सभ्यता का जामा पहने 'आँख के बदले आँख' का विरोध करते हैं और हमारे समाज में ही ऐसी अमानुषिकता बरकरार है.
हटाएंतेज़ाब से नहलाना तो दूर, ये अपराधी तो बस चंद महीने जेल में बिताकर आज़ाद घुमते है .
एक अपराधी को भी कठोर सजा मिले तो दूसरों को सबक मिले.
पर यहाँ तो जैसे प्रोत्साहित ही किया जा रहा है. ऐसा जघन्य कृत्य कर के भी वह आजाद घूम रहा है, आप भी करो
बहुत ही disgusting है सब
अपराध ओर उससे जुडी समस्याओं में नतीज़ा स्त्री को ही भोगना पढता है ... उसके किसी भी कसूर के बिना ... समाज की ये दशा चिंतनीय तो है ही ... इससे ज्यादा चिंतनीय दशा तो ये है की सरकार भी कोई कडा कदम नहीं उठाती ओर न ही इस विषय को सोचना चाहती है ...
जवाब देंहटाएंस्त्री का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा उत्पीडन इस एसिड अटैक के माध्यम से ही होता जिससे वह जीवन भर के लिये आपहिज जीवन जीने को विवश हो जाती है. इस तरह की घटनाएँ बहुत दुखद हैं. इस अपराध के अपराधिओं पर कडी से कडी सजा का प्राविधान होना चाहिये. इसे अटेम्प्ट तो मर्डर केस के समतुल्य ही गिना जाना चाहिये.
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसबसे बुरी बात यही है दी कि एसिड अटैक के लिए कोई कड़ा कानून नहीं है. आपकी पोस्ट से बहुत सी नयी जानकारियाँ मिलती हैं...कितना शोध करती हैं आप एक पोस्ट लिखने के लिए!
जवाब देंहटाएंपोस्ट लिखने के लिए शोध नहीं करती, अराधना
हटाएंइन सब विषयों पर पढने का मन होता है और जब ढेर सारा पढ़ लेती हूँ तो फिर उसे बांटने की भी इच्छा होती है.
काफी पहले ही उस पाकिस्तानी ब्यूटीशियन के विषय में पढ़ा था , तभी जिज्ञासा हुई और इस विषय पर काफी कुछ पढ़ा
आज ही पढ़ पाया इसे.
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख। आपके लेख को मैने http://www.mediavichar.com/ पर प्रकाशित किया है आभार।
जवाब देंहटाएंhttp://www.mediavichar.com/2319236023672337-2309233523762325--2350236623442357-23252366-2325238123522370235223402350-235223702346.html
बदला लेने की भावना इतनी हावी हो जाती है क्रूरतम अपराध कर बैठते है और उनके साथ ही उनके घरवाले भी अपराधी की श्रेणी में ही आवेंगे जो उन्हें बचाकर विकृत समाज का निर्माण कर रहे है ।इतनी सरलता से मिलने वाला तेजाब यूँ कहर लाता है उसकी बिक्री ,उसकी उपादेयता , पर भी कानून और पाबंदी होना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंआज के दिन इन्ही सभी पीड़ित लडकियों ,महिलाओ की पीड़ा में मन से शामिल हूँ ।
आपका ब्लाग बहुत अच्छा लगा। इसमें केवल अपने मन की उलझन नहीं है अपितु पूरी समाज की चिंता है। यह चिंता समाज में तब्दीली भी लाएगी, ऐसी आशा है।
जवाब देंहटाएंपता नहीं इ समाज और समाज के ठेकेदार क्या चाहते है जिस से उनका वजूद है उसी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
स्त्री के खिलाफ इस तरह के अमानवीय अपराधों के लिये उतना ही सख्त कानून हो जो कि इस तरह की हिंसा के लिये कठोरतम सज़ा का प्रावधान करे उसे भी इसी प्रक्रिया से गुज़ार कर। यह पुरुष की कुत्सित मानसिकता के साथ उसका न्यूनगंड है जो उसे एैसे कामों के लिये उकसाता है । तेजाब इतनी आसानी से मिल जाता है यह भी एक कारण है ।
जवाब देंहटाएंयह प्रतिशोध और परपीड़ा की पराकाष्ठा है।
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