ये अब्बास या अली नहीं..गिरिजेश जी के सुपुत्र हैं 'अरिन्दम' |
दुल्हन परदे की ओट से हमारी बर्थ की तरफ झांकती रही क्यूंकि यहाँ तो दो वर्षीय 'अली' और पांच वर्षीय 'अब्बास' ने उधम मचा रखा था . 'अली' की चॉकलेट की फरमाईश अब रूदन का रूप ले रही थी और अम्मी 'अजरा' अपने सलवार-कुरते-दुपट्टे के ऊपर बुरका ओढ़े हैरान-परेशान सी चॉकलेट वाला बैग तलाश रही थी. मैने अपने बैग से निकाल एक 5-स्टार ऑफर किया और 'अली' ने एक प्यारी सी मुस्कान दे चॉकलेट ले ली. अब मुझे भी ये चॉकलेट किसी ने बच्ची समझ कर दिया था और 'गिरिजेश राव जी' ने मुझे बड़े एहतियात से कैडबरी का वो सेलिब्रेशन पैकेट खोलते देख कह दिया था, "लगता है आप चॉकलेट नहीं खातीं " (जो सच था..मेरे भाई कहते हैं...'इसीलिए मीठा भी नहीं बोलती' :) )
गिरिजेश जी से हाल में ही परिचय हुआ था जबकि उनकी लेखनी से परिचय तो ब्लॉग जगत में शामिल होते ही हो गया था. चैट पर थोड़ी बहुत बात-चीत होने लगी थी. वैसे वे अति-व्यस्त व्यक्ति हैं..एक ग्रन्थ (प्रेम-ग्रन्थ:)) लिखने में जुटे हुए हैं. एक बार बहुत ही रोचक बात कही उन्होंने, "हम दोनों एक दूसरे का लिखा नहीं पढ़ते हैं पर लिखते शानदार हैं :)
सोचा, अक्सर 'हलो ' तो हो ही जाती है..बता दूँ उनके शहर आ रही हूँ. सुनकर बोले, 'समय मिले तो मिलते हैं " {कर्ट्सी में इतना तो उन्हें कहना ही था :)} मैने भी हाँ कह दिया,पर साथ में बता दिया 'पता नहीं शादी की गहमागहमी में मौका मिलेगा या नहीं' . मौसी की बेटी की शादी में शामिल होने लखनऊ पहुंची थी.कई रिश्तेदारों से पांच साल के बाद मिल रही थी. लखनऊ जाते ही उन्हें कॉल कर के अपने लखनऊ पहुँचने की खबर तो दे दी परन्तु मिलने का समय निकालना मुश्किल ही लग रहा था. भाभी जी ने घर बुलाने की भी बात की. पर गिरिजेश राव जी ने मित्र धर्म निभाते मेरी मजबूरी उन्हें बता दी ...शुक्रिया गिरिजेश जी..पर अगली बार भाभी जी से मिलना पक्का रहा.
आखिरकार लौटनेवाले दिन उन्होंने कहा ,"मैं स्टेशन आता हूँ" और वे समय से स्टेशन पहुँच गए थे . पर मुझे ही सबसे विदा लेते काफी देर हो गयी. अच्छा हुआ ट्रेन १०-१५ मिनट लेट थी और हमें दो बातें करने का मौका मिल गया..वरना सिर्फ 'हाय' और 'बाय' ही होती. ग्यारहवीं में पढने वाला मेरा कजिन 'कान्हा' जो स्टेशन भी आया था. बहुत उत्सुक था, "तुमलोग एक दूसरे को जानते नहीं...कभी मिले नहीं...कैसे पहचानोगे?..क्या बातें करोगे ?...शर्ट का कलर पूछा है, क्या दी?"... हा हा
गिरिजेश जी ने ही उसकी उत्सुकता शांत की, कि 'फोटोग्राफ्स देखे हैं'. हमने आसानी से एक-दूसरे को पहचान लिया. उस दिन लखनऊ स्टेशन पर एक ही समय अलग अलग प्लेट्फौर्म पर मेरे रिश्तेदार ,दिल्ली,बनारस,रांची,पटना जाने वाली ट्रेन के इंतज़ार में खड़े थे . मम्मी-पापा की पटना जाने वाली ट्रेन थोड़ी लेट हो गयी और पापा हमारे वाले प्लेट्फौर्म पर आ गए. गिरिजेश जी से परिचय करवाते हुए मन में सोया बरसो पुराना डर जाग उठा. जब हम तीनो भाई-बहन अपने दोस्तों से परिचय करवाते डर जाते थे कि पापा सवालों की बौछार ना कर दें..."पिछले एग्जाम में कितने परसेंट मिले थे??...अगले में कितने मिलने की आशा है,??....कैसी तैयारी है??....आदि आदि." उसपर से यह सब बताते उए किसी ने कुछ गलत बोल दिया..तो और मुसीबत. एक बार मेरे भाई के एक फ्रेंड ने कहा, "मुझे अपने grand father से मिलने गाँव जाना है ' पापा ने तुरंत पूछा...."maternal या paternal....सिर्फ grand father बोलने से कैसे चलेगा ?"
एकाध सवाल तो गिरिजेश जी को भी झेलने ही पड़े. पर मैने तुरंत यह कह कर उनका इम्प्रेशन जमा दिया कि "ये सबकी वर्तनी की 'अशुद्धियाँ' सही करते रहते हैं " मुझे पता था, पापा शुद्ध बोलने और शुद्ध लिखने पर बहुत जोर देते हैं. फिर अखबारों में लिखी जाने वाली भाषा के गिरते स्तर पर चर्चा होने लगी. तभी मेरी ट्रेन व्हिसिल देकर सरकने लगी और ज़िन्दगी में पहली बार मैं चलती हुई ट्रेन में चढ़ी (ये अनुभव भी क्यूँ बाकी रहे? )
मुंबई लौटने पर मैने गिरिजेश जी से पूछा, "पापा ने आपकी क्लास तो नहीं ली ?" कहने लगे.."नहीं नहीं..बहुत भले आदमी हैं " (सबके पापा भले आदमी ही होते हैं ) पर आगे जो उन्होंने कहा वो तो आठवां आश्चर्य था. कहा,"आपकी तारीफ़ कर रहें थे ". मेरी तारीफ़??....कोई और तारीफ़ करे तो वो भी कभी ना बताएं. कभी मेरी स्कूल की प्रिंसिपल ने मेरी तारीफ़ की थी और वो बात मुझे पता चली,जब मैं एम.ए. कर रही थी. वह भी किसी से पापा कह रहें थे और मैं बाहर से आती हुई अपना नाम सुन,बरामदे में ही रुक गयी थी. अच्छा हुआ सुन लिया वरना सारी ज़िन्दगी उन्हें 'शुष्क हृदय वाली कठोर अनुशासन प्रिय प्रिंसिपल' ही समझती रहती. सौ तो नाम रखे थे, हमने उनके .कभी -कहीं चुपके से बातें सुन लेना भी फायदेमंद होता है.:)
मैने थोड़ा और लालच दिखाया और गिरिजेश जी से कहा ,"आप भी मेरी थोड़ी तारीफ़ कर देते....पापा जरा खुश हो जाते "
वे बोले, "किया ना..कहा कि आपको काफी लोंग पढ़ते हैं ...और आपसे डरते भी हैं "
ख़ुशी के मारे मेरे पैर जमीन से उठने ही वाले थे कि उन्होंने वापस धरातल पर ला दिया ,यह कह कर कि "डरते हैं.. यह नहीं कहा" :(
कह ही दिया होता जरा इम्प्रेशन जम जाता. ...पर मैं सोच रही थी, जरूर मेरे सब-कॉन्शस माइंड ने यह पूछा होगा..'कितनी भी उम्र हो जाए...माता-पिता की नज़रों में अपनी पहचान की लालसा बनी ही रहती है '
(सबके मन में उठते सवाल का जबाब अगली पोस्ट में..महफूज़ से मुलाकात हुई या नहीं :))
यह तो आपने इस मिलन कथा को उजागर कर दिया ,,गिरिजेश जी तो चुप्पा मार कर ऐसे बैठे कि आपके लखनऊ आने की खबर तक गोल कर गए मित्रों से .....महफूज भाई उस दिन पुलिस कस्टडी में लखनऊ पहुँचने की बात कर रहे थे..पहुंचे ही होंगें .....
जवाब देंहटाएंगिरिजेश राव जी से तो जान पहचान मेरी भी हुई नहीं अभी तक..लेकिन उनके ब्लॉग से अच्छे से परिचित हूँ...कौन नहीं परिचित होगा उनके ब्लॉग से...
जवाब देंहटाएंवैसे उनके ब्लॉग से परिचय कराने के श्रेय जाता है प्रशान्त प्रियदर्शी को ही..:)
अच्छा लगा पोस्ट...मजेदार अंदाज़ एज ऑलवेज :)
गज़ब! एक धुरन्धर ब्लॉगर की मुलाकात दूसरे धुरन्धर ब्लॉगर से।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंआपको कितनी गलतफहमियां हैं....जब खबर की पूरी जानकारी ना हो...तो कुछ कहने से बचना चाहिए....कैसी पुलिस कस्टडी??...क्या किया है महफूज़ ने?? या आपका महफूज़ के बारे में खबर लेने का ये कोई तरीका है.??
But its sad...rally really sad...am soo upset.....बहुत ही दुख हुआ..इतनी खुशगवार पोस्ट पर ऐसे कमेन्ट किए आपने???...मैं कुछ कहना नहीं चाहती वरना सच मन हो रहा है..बहुत कुछ कह दूँ...
बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया गया यात्रा और भेंट का ये दिलचस्प फ़साना.
जवाब देंहटाएंआप की सहजता और आत्मीयता! क्या कहने!! लगा ही नहीं कि पहली बार भेंट हुई थी।
जवाब देंहटाएंआप के पिताजी से भी मिलना वैसा ही रहा जैसे पुराने अध्यापकों से मिलना एक अलग तरह की तृप्ति देता है।
पटना जाने पर मेरा लंच भी आप के यहाँ पक्का है - ऐसा उन्हों ने कहा।
हाँ, आप की प्रशंसा करते वह पूरे स्नेहिल पिता थे, कड़क कठोर नहीं :)
It was a beautiful experience.
रश्मि जी, आप मन छोटा न करें. अरविन्द जी ऐसे ही मजाकिया किस्म के प्राणी हैं. मजे लेते हैं. उनका उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाने का होना तो नहीं चाहिए.
जवाब देंहटाएंबताईये, हम तो ब्लॉगरीय आत्मीयता के बारे में थ्योरी बता रहे थे और आप लोग लखनऊ में, राम त्यागी जी और सहगलजी दिल्ली में मिलने का प्रैक्टिकल कर रहे थे। आप लोगों ने इस आत्मीयता का प्रदर्शन कर हमारी पोस्ट सफल कर दी।
जवाब देंहटाएं@गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंपापा कड़क-कठोर बिलकुल भी नहीं थे.....एक्चुअली, हमने ऐसा मौका ही नहीं दिया......घर के कितने सारे अलिखित नियम बिना आना-कानी के मान लेते थे.
आज के बच्चे अलग है....पर वक्त के साथ सबकुछ बदलता है.
@ सुब्रहण्यम जी
जवाब देंहटाएंपर ये कैसा मजाक है....मुझे तो अच्छा नहीं लगा....मजाक हो या कुछ भी...
It was really in very bad taste
जवाब देंहटाएंएक बार में पूरा पढ़ गई रे बाबा! सच जिन्हें मात्र नेट,चैट,ब्लॉग के द्वारा जानते पहचानते है उनसे रूबरू होना बहुत अच्छा लगता है.मैं महसूस कर सकती हूँ.
जवाब देंहटाएंऔर ये हरदम बन्दूक ताने क्यों रहती हो दुष्ट लड़की! हो सकता है अरविन्द जी 'पुलिस सिक्योरिटी' लिखना चाहते हो और 'कस्टडी' लिख दिया हो.तुम भी ना....तुम जैसी सब लडकियां हो जाए तो बेचार नौजवानों की जवानी बेनूर हो जाए.सिटी मारना तो दूर पीछे पीछे चल भी ना पाए लड़कियों के.
हा हा हा
सचमुच बहुत स्वीट हो तुम .तुम जैसी लड़कियों को मैं दिल से पसंद करती हूँ.सच्ची.
ऐसिच हूँ मैं भी
चलिए ब्लोगर मिलन के लिए एक और वेन्यु का पता चल गया :)
जवाब देंहटाएंयात्रा और भेंट की सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत अच्छी पोस्ट
बहुत सुन्दर यात्रा वृत्तांत ! साथ ही गिरिजेश जी से भेंट का प्रसंग भी उतना ही रोचक और शानदार रहा ! कभी आगरा आइये और हमें भी यह सुअवसर दीजिए ! सच बहुत आनंद आयेगा !
जवाब देंहटाएंसमय कम था,सो गिरिजेश जी के व्यक्तित्व पर ज्यादा न लिख पाई आप। हमारी भी इच्छा थी गिरिजेश जी के बारे में ज्यादा जाने। खैर…॥
जवाब देंहटाएंऔर धाराप्रवाह वृतांत से आपके व्यक्तित्व पर भी प्रकाश हुआ।
अच्छे लोगों को सारी दुनिया खूबसूरत लगती है।
आभार्॥
बढ़िया मुलाकात. हम भी इनसे मिल चुके हैं एक बार :)
जवाब देंहटाएंआत्मीय और सहज रचाव ! न असहज बनाव , न दिखाव ! मुलाक़ात की ख़ूबसूरती को रखती खूबसूरत सी पोस्ट !
जवाब देंहटाएं'' माता-पिता की नज़रों में अपनी पहचान की लालसा बनी ही रहती है ''- फुर बात !!
किसी घटना को रचना का रूप देना अपन को नहीं आया , पर आपका लिखा खूब भाया ! आभार !
स्टेशन पर ब्लोगर मिलन ...और कितना अपनापन ..वाह ..बहुत बढ़िया ...कुछ ही क्षण मिलें ..पर आत्मीयता तो बढती ही है ....बहुत रोचक लगा...और हाँ क्या बच्चे ही चॉकलेट खाते हैं ?
जवाब देंहटाएंमुझे तो बहुत पसंद है ...सोचना पड़ेगा ....:):)
अगली पोस्ट का इंतज़ार है ..
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जवाब देंहटाएं.
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'कितनी भी उम्र हो जाए...माता-पिता की नज़रों में अपनी पहचान की लालसा बनी ही रहती है'
सचमुच,
और हाँ, अरविन्द जी यहाँ पर 'पुलिस प्रोटेक्शन' कहना चाह रहे ही लगते हैं... इंदू पुरी गोस्वामी जी सही कह रही हैं।
'कितनी भी उम्र हो जाए...माता-पिता की नज़रों में अपनी पहचान की लालसा बनी ही रहती है ' ...
जवाब देंहटाएंसच ही है ...
मेरी चॉकलेट पूरी बाँट दी ....मेरे लिए बचाई भी नहीं ....
छोटी सी मुलाकात के लम्बी खूबसूरत कहानी अच्छी लगी ....
रश्मि जी ,आपके इस वक्तव्य से ठेस तो मुझे पहुँची है ,जिस दिन आप लखनऊ में थीं महफूज से मेरी फोन पर लम्बी बात हुयी थी ...उन्होंने जो बताया मैंने लिखा ..मैं कभी भी अप्रमाणिक जानकारी नहीं देता ..हाँ आपको सुविधाजनक लगे तो प्रवीण जी के सुझाये संशोधन -प्रोटेक्शन शब्द को स्वीकार लें ..गलतफहमियां आप लोग पाले हुए हैं ..और ताज्जुब है ..मैं भी कहने को बहुत कह सकता हूँ मगर चूंकि आप एक सर्जनात्मक प्रतिभा की धनी सामान धर्मा हैं इसलिए नहीं कहता बल्कि आपको मेरी बात जो की कतई बुरी नीयत से नहीं कही गयी थी किन्तु आपको बुरी लग गयी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ....
जवाब देंहटाएंआगे से आपके ब्लॉग पर महफूज को लेकर कुछ नहीं कहूंगा ...
कृपया टिप्पणी प्रकाशित करें !
@अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएं'कस्टडी' शब्द और 'प्रोटेक्शन' में फर्क तो है ही. आप सिक्युरिटी भी कह सकते थे. अब आप जैसे विद्वान से इस चूक की तो उम्मीद नहीं होती.
'प्रोटेक्शन' शब्द के सुविधाजनक प्रयोग जैसी कोई बात ही नहीं...क्यूंकि 'कस्टडी' और ' प्रोटेक्शन' या 'सिक्युरिटी' .दोनों अलग अर्थों में प्रयुक्त होता है. अब आप जो लिखेंगे वही तो समझा जायेगा ...यहाँ तो कुछ between the lines भी नहीं था कि कुछ और समझने की कोशिश भी की जाए. आपने सीधे सीधे 'कस्टडी' शब्द का प्रयोग किया था. किसी अपराध के अंदेशे पर ही किसी को कस्टडी में लिया जता है तो मैं और क्या समझूँ??
आपने अलग से मेल में इस कमेन्ट को प्रकाशित करने का आग्रह बेकार ही किया क्यूंकि अगर ऐसा होता तो मैं पहली टिप्पणी ही रोक देती. मॉडरेशन सिर्फ अनर्थक बातों के लिए है ताकि लोगों का वक्त ना जाया हो.
@साधना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपके बुलावे का.
एक बार चाँदनी रात में 'ताज' को देखने की बड़ी तमन्ना है....बस इंतज़ार कीजिये किसी भी पूरनमासी को टपक पडूँगी, आपके यहाँ.:)
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी के ब्लॉग का लिंक भी दिया है...उनका लिखा पढ़ते रहिये....उनके व्यकतित्व से अच्छी तरह परिचय हो जायेगा.
@संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद तो पता चल गयी...:)
चॉकलेट तो सब खाते हैं...हाल में ही मेरी सहेली ने अपनी सासू माँ के जन्मदिन पर बड़ा सा चॉकलेट का पैकेट खरीदा था...हमारे चेहरे पर मुस्कुराहट देख एक्सप्लेन किया कि "उन्हें चॉकलेट बहुत पसंद है"
कैडबरी विज्ञापन के सौजन्य से तो अब बड़े-बूढों को भी खूब चॉकलेट गिफ्ट किया जता है.(जैसे मुझे की गयी :) ) फिर भी वो पुरानी धारणा कहाँ जाती है कि बच्चों को ही चॉकलेट ज्यादा पसंद है.
@वाणी,
जवाब देंहटाएंमेरी चॉकलेट पूरी बाँट दी ....मेरे लिए बचाई भी नहीं ....
गिरिजेश राव जी ने बताया ही नहीं, वो तुम्हारी चॉकलेट थी..वरना कुछ तो बचा ही देती..रैपर ही सही :)
hmm....जैसी कि उम्मीद थी आपने बहुत रोचक तरीके से इस प्लेटफॉर्म बैठकी को पेश किया है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा विवरण।
बहुत अच्छा लगा ये ब्लागर मिलन। आभासी रिश्तों मे शायद अधिक स्नेह होता है। गिरिजेश राव जी वो पहले व्यक्ति हैं जिनका मुझे सब से पहला कमेन्ट मिला था। सब के मार्गदर्शक और प्रेरणा स्त्रोत हैं। अच्छा लगा। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, एक ही पोस्ट में बहुत सारी बातें कह दी। पिताजी की बात पर स्मरण आ गया अपने पिताजी का। हम कहते थे कि फ्रेंड से मिलने जा रहे हैं तो वे कहते थे कि सहेली शब्द का प्रयोग करो जिससे कोई गफलत ही ना रहे। अब जब भी मुम्बई आएंगे, स्टेशन पर आपको याद कर लिया करेंगे।
जवाब देंहटाएंrochak raha yah vivaran
जवाब देंहटाएंरश्मि जी... आपकी 'आचार्य' से मुलाक़ात मेरे लिए इर्ष्य का सबब बन रही है......
जवाब देंहटाएंमुया कोई रिश्तेदार भी तो लखनऊ में नहीं रहता.
बहुत बढ़िया विवरण रहा।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
ब्लोगर मिलन का ये अन्दाज़ भी बढिया रहा।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट में आप दोनों से मिलकर अच्छा लगा. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंbahut rochak post ... girijesh rao ji ko naam se main bhi janti hun.....papa ji se milker main bhi aapki tareef karungi... bilkul shat pratishat sahi
जवाब देंहटाएंकुछ लोग बहुत अच्छे हैं शायद गिरिजेश उन्ही में से एक हैं ! जिस अपनापन से आपने विवरण लिखा वह अच्छा लगा ! शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंरश्मि,
जवाब देंहटाएंतुम जानती हो आज कल बहुत कम टिप्पणी कर पाती हूँ...लेकिन तुम्हारी ये पोस्ट तो बस दिल में ही उतर गई और अपनी बात कहने से ख़ुद को रोक नहीं पाई...
सच, बहुत ही मीठी सी पोस्ट है...तुम्हारा लेखन तो बस कमाल है...सहज, सरल और सुन्दर...!!
११०/१००....:)
@ पोस्ट जी ,
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी भयंकर आलसी हैं ये बात साबित हुई ! उन्हें हम जैसे बहुतों से मिलना था पर वे केवल रश्मि जी से मिल सके :)
रश्मि जी के लिए सेलिब्रेशन पैक और हमसे मिलने तक का वक़्त नहीं , देख लूंगा उन्हें भी :)
@ प्रेम ग्रन्थ,
मुझे लगा कि वे आत्म कथा लिख रहे हैं :)
@ रश्मि जी ,
अरविन्द जी से फोन पर बात हो रही थी तो उन्होंने कहा कि "महफूज की जान को खतरा है
इसलिए पुलिस कस्टडी में लखनऊ आ रहे हैं"
मेरे ख्याल से कस्टडी शब्द का प्रयोग प्रथम द्रष्टया अभिरक्षा के लिए किया जाता है ,मसलन अदालत ने 'बच्चे को मां की कस्टडी' में सौंपा और इसका दूसरा प्रयोग है 'हिरासत' बतौर ! तो ...
अरविन्द जी ने ये बात मुझसे कही तो मैंने उसे मां की कस्टडी वाले अर्थ में ही समझा ! जिसके दो कारण हैं , एक ये कि ये शब्द का पहला अर्थ है और दूसरा ये कि अरविन्द जी मूलतः वैज्ञानिक हैं और उनसे खांटी भाषाविद जैसी शब्दावली व्यवहृत करने की अपेक्षा उचित नहीं प्रतीत होती ! बातचीत में उनको यह स्पेस दिया जाना और उनके बारे में मेरी यह समझ उनसे मित्रता और शब्दों की मेरी अपनी समझ पर आधारित भी हो सकती है !
आपने कस्टडी के दूसरे अर्थ को पकड़ा तो उसका कारण संभवतः अरविन्द जी की ब्लॉग जगत में अलग किस्म ख्याति होना भी हो सकता है :)
बहरहाल मुझसे टेलीफोनिक वार्ता के अंशों को देखिएगा तो पाइएगा की उनकी मंशा गलत नहीं थी !
निवेदन ये है कि कस्टडी मामले को यहीं समाप्त माना जाये !
@अली जी,
जवाब देंहटाएंआपकी मित्रता को सलाम....:)
अरविन्द जी ने स्पष्टीकरण दे दिया...तो ये प्रकरण वहीँ समाप्त हो गया.
वैसे माँ की कस्टडी..पिता की कस्टडी...और पुलिस कस्टडी..तीनो का प्रयोग ,एक ही अर्थ में होता है?...I seriously doubt that:)
अरविन्द जी मूलतः वैज्ञानिक हैं और उनसे खांटी भाषाविद जैसी शब्दावली व्यवहृत करने की अपेक्षा उचित नहीं प्रतीत होती !
ये क्या बात हुई....फिर वे सिर्फ वैज्ञानिक आलेख ही लिखा-पढ़ा करें...यहाँ तो हम उन्हें एक ब्लॉगर की हैसियत से जानते हैं...उनकी पोस्ट भी एक खालिस ब्लॉगर वाली ही होती है...उसमे तो कोई वैज्ञानिक भाषा या तथ्य तो नहीं नज़र आए मुझे कभी .
Custody, Protection, Security...ये सब तो अंग्रेजी के शब्द हैं....और बड़े साधारण से शब्द...अब उनसे slip of tongue(keyboard) ...हो गया...बस..इसे ऐसा ही समझा जाए.
बहुत ही रोचक और प्रवाहमयी भाषा में लिखा गया यात्रा वृतांत. वाकई यही ब्लागिंग है. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
@अली जी
जवाब देंहटाएंगिरिजेश राव जी केवल "रश्मि रविजा ' से ही नहीं मिले...शायद आपने टिप्पणियाँ नहीं पढ़ीं...
वे 'अभिषेक ओझा' से भी मिल चुके हैं और
'सतीश पंचम ' एवं 'अरविन्द मिश्र जी' से मुलाक़ात के जिक्र पर एक पोस्ट भी है.'अभय तिवारी जी' से भी .मिल चुके हैं.
नामों की एक फेहरिस्त बना लें..कि कितने लोगों के नाम ले उनसे जबाब-तलब करना है :)
'कितनी भी उम्र हो जाए...माता-पिता की नज़रों में अपनी पहचान की लालसा बनी ही रहती है '
जवाब देंहटाएंक्या बात ह!!!!१
सुन्दर पोस्ट. शानदार मुलाकात. यादगार बन जातीं हैं ऐसी मुलाकातें.
जाहिर है कि गिरिजेशजी की चॉकलेट मेरे लिए नहीं थी ...मैं तो तुमसे अपनी चॉकलेट मांग रही थी ...
जवाब देंहटाएंऐसी नौबत नहीं है कि चॉकलेट के रैपर से संतोष कर लें ...तुम सिर्फ कह देती ...मैं तुम्हारी ओर से खुद ही खरीद कर खा लेती ..:)
@अजित जी,
जवाब देंहटाएंस्टेशन पर क्यूँ...आप घर पर आ जाइए....मुझे बहुत ख़ुशी होगी .
@वाणी,
जवाब देंहटाएंकहने की क्या बात...हम तुम्हारे लिए पूरा कार्टन खरीद कर ले आयेंगे. मिलो तो सही...और अब चॉकलेट मेरे हाथो से ही खाना...उसके पहले नहीं :)
कम से कम चॉकलेट की उत्कंठा तो मिलने के लिए प्रेरित करेगी.
पढा।
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है।
१. गिरिजेश जी व्यस्त हैं, रहते हैं, जानकर अच्छा लगा। कोलकात भी आए थे, मिलने का कार्यक्रम भी तय हुआ, पर मेरे मुहल्ले अलीपुर में ही रुके, मिलन न हो सका।
२. मेरे पापा भी, आपका संस्मरण पढकर याद आया, हमेशा अशुद्धियां सुधारने की ज़ोर देते रहते थे और कहते थे, "cut your ts(टीज़), dot your is(आइज़)". आज तो हम खुद भी ग़लतियां करते रहते हैं, दूसरों की भी नज़रअंदाज़ कर देते है।
३. आपसे लोग डरते हैं, क्या आप डराती हैं? आशा है अगली पोस्ट में इस पर प्रकाश दिया जाएगा।
तब तक डरा-डरा सा बैठा हूं। {इसके बाद एक स्माइली भी है। ऐसा :)}
hamare chocklate kab milegee
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