मुझे कायर कह लें, डरपोक कह लें, असंवेदनशील कह ले,या फिर सेल्फ सेंटर्ड सब स्वीकारने को तैयार हूँ क्यूंकि दो दिनों से मेरी हिम्मत नहीं हो रही कोई भी न्यूज़ चैनल देखने की. टी.वी. ऑन ही नहीं किया कि कहीं चैनल सर्फ़ करते ही नज़र न पड़ जाए. अखबार की हेडलाइन पर नज़र पड़ी और पलट कर रख दिया. अब ज़रा भी हिम्मत नहीं बची ऐसी ख़बरें पढने की.
और अगर हमें इतना आगे नहीं बढ़ना है तो फिर पीछे लौट चलें. बाल-विवाह को ही प्रश्रय दें. आखिर पचास साठ साल पहले इतना वहशीपन तो नहीं था लोगों में . आधुनिक बनने की कैसी कीमतें चुका रहे हैं हम ??
फेसबुक पर मित्रों के अपडेट्स से ही सूचना मिल रही है . वहाँ भी कमेन्ट करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही. जैसे सारे अहसास ही कुंद हो गए हैं. शिराओं में बहता खून जम गया है. कोई उबाल नहीं आ रहा उसमे .मस्तिष्क निस्पंद हो गया, समझने-बूझने की ताकत नहीं बची है उसमे.
पांच साल की बच्ची और ऐसे मर्मान्तक कष्ट से गुजर रही है. राजस्थान में भी ग्यारह साल की बच्ची ऐसी ही दरिंदगी की शिकार हुई है और शायद दो साल से उसका इलाज चल ही रहा है. कई सर्जरी हो चुके हैं और कितने अभी बाकी हैं . फिर भी वह पूरी तरह नॉर्मल जिंदगी जी पाएगी, इसमें संदेह ही है डॉक्टर्स को. ऐसी ही जाने कितनी ख़बरें दिमाग में घूम गयीं. कहीं ऐसा वहशीपन झेलने वाली बच्ची दो साल की थी, कहीं पांच साल ,कहीं सात तो कहीं दस .
यह सवाल भी सर उठाता है मन में , पहली बार कब हुआ था किसी बच्ची के साथ ऐसा सलूक ?? जब लोगों को पता चला तो क्या प्रतिक्रिया हुई लोगों की ?? क्या सजा दी गयी उस दरिन्दे को ?? क्यूँ नहीं कोई ऐसी सजा दी गयी कि अगले का ऐसा कुकर्म करने की सोच ही रूह काँप जाए
ये भी ख्याल आ रहा है ,क्या विदेशों में भी ऐसी ख़बरें आम हैं ? वहाँ भी बच्चियां ऐसा वहशीपन भुगत रही हैं?? शायद नहीं .वहाँ अगर इस तरह की घटनाएं हुईं भी हैं तो एकाध. हमारे देश की तरह बाढ़ नहीं आती ऐसे हादसों की .
तो क्या छोटी छोटी बच्चियों के साथ ऐसे दुष्कर्म इसलिए हो रहे हैं क्यूंकि हमारे समाज में तमाम वर्जनाएं हैं ? यौन कुंठित पुरुषों की तादाद इतनी बढती जा रही है कि आये दिन छोटी छोटी मासूम बच्चियां उनकी कुंठाओं का शिकार हो रही हैं.
नहीं चाहिए ये बंदिशें ,नहीं चाहिए ये बंधन. सबको आज़ाद कर दो , किसी पर कोई रोक-टोक न हो. वे अपनी काम-पिपासा ,अपने हमउम्र वालों के साथ ही शांत करें. इन मासूम बच्चियों को बख्श दें . मेरी बातें बहुत ही अव्यावहारिक लग रही होंगीं. पसंद भी नहीं आ रही होंगीं ,पर इस मनःस्थिति में मुझे इसके सिवा कुछ नहीं सूझ रहा . अगर ऐसे खुले समाज में हमारी बच्चियां सुरक्षित हो जाती हैं तो यही सही.
और अगर हमें इतना आगे नहीं बढ़ना है तो फिर पीछे लौट चलें. बाल-विवाह को ही प्रश्रय दें. आखिर पचास साठ साल पहले इतना वहशीपन तो नहीं था लोगों में . आधुनिक बनने की कैसी कीमतें चुका रहे हैं हम ??
मासूम बच्चों की सुरक्षा में बुरी तरह नाकाम रही है ये व्यवस्था .
बिलकुल ही नकारा है, आज की व्यवथा और आज का समाज . अब या तो बहुत आगे ही बढ़ जाएँ या थोडा पीछे ही लौट चलें या फिर पाषाण युग में ही लौट जाएँ पर किसी भी कीमत पर हमारे बच्चों के साथ ये सब नहीं होना चाहिए .
उनकी सुरक्षा ही सर्वोपरी है. उसके बाद ही प्रगति, विकास ,नियम, संस्कृति, संस्कार आते हैं.
bahut jatil hota ja raha hai yah samaj.. aboojh
जवाब देंहटाएंबूझने की कोशिश भी की गयी तो माथे की नसें फट जायेंगी तड़क कर. इतना मुश्किल हो गया है, इस समाज की मानसिकता समझना .
हटाएंसहमत
जवाब देंहटाएंथैंक्स
हटाएंअगर हमें इतना आगे नहीं बढ़ना है तो फिर पीछे लौट चलें. बाल-विवाह को ही प्रश्रय दें. आखिर पचास साठ साल पहले इतना वहशीपन तो नहीं था लोगों में . आधुनिक बनने की कैसी कीमतें चुका रहे हैं हम ??
जवाब देंहटाएंbas yahii aap sae ashmat hun
jab baal vivah hotae they tab bhi ek 60 saal ke aadmi ki shaadi mehaj 6 saal ki ladki kae saath karvaa dii jaatii thee
mandir me chhotii chhoti bachiyaan dev daasiyaan ban jaati thee
aap ki tarah me bhi aaj subah news paper ult chuki haen
jaanti haen rashmi jahaan ek 5 saal ki bachchi kae saath hua haen wahin dusrae page ki khabr me 60 saal sae upar ki vridha kae saath hua haen
aur yae maansiktaa haen koi ikaa dukaa kissaa nahin haen
ilaaj haen lekin koi karegaa nahin kewal aur kewal mrityu dand aur wo bhi sarae aam binaa court ki prakriyaa haen
रचना जी से सहमत. पुरानी समय में स्त्रिया पूरी तरह से सुरक्षित नहीं थी उस वक्त भी कई बच्चियों के साथ अमानवीय कृत्य होते थे पर सामाजिक कारणों से वो बाहर नहीं आ पाते थे. आज बलात्कार की घटनाएँ पहले की अपेक्षा ज्यादा बाहर आ रही है इसलिए हमें लगता है कि पहले का वक्त ज्यादा अच्छा था.
हटाएंआप दोनों की बात सही है, पर किया क्या जाए
हटाएंजब तीन महीने यानि 120 दिन में 356 रेप के केस दर्ज हों(और जबकि सबकी रिपोर्ट पुलिस के पास नहीं पहुँचती ) तो फिर कहने -सोचने के लिए क्या रह जाता है .
अकेली दिल्ली में
हटाएंrashmi
हटाएंbalatkaar kaa matlab hi haen force kaa istmaal
aur naari kae virdh force kaa istmaal sadiyon sae hua haen
iskae liyae jaruri haen ki aap aur ham aavaaj uthaatey rahey
aur ussae bhi jaruri haen ki agar ham kahin bhi yae daekhae ki kisi bhi mahila kae khilaaf buraa kewal is liyae kiyaa jaa raahaa haen kyuki wo mahila haen to apnae sab virodh jo bhi us mahila kae saath ho unko bhul kar uskae saath khadae ho jaaye
aap ko yaad hogaa ek episode jo is blog jagat me kuchh din pehlae hua thaa jab aap aur maere ek mahila kae saath is liyae khadae they kyuki log chahtey they wo blog band kardae
hamae aesi mahilaon ko aagey lanaa hogaa jo BOL SAKTI haen
रश्मिजी आप बिलकुल सही कह रही है परन्तु पुराने वक्त के अनुसार रहना कोई हल नहीं है .
हटाएंपता नहीं रचना जी, हमारे आवाज़ उठाने से भी कितना और क्या बदल जाएगा. बस ये हैं कि हम अपना आक्रोश व्यक्त कर लेते हैं मन का गुबार निकाल लेते हैं, पर सैकड़ों ऐसा ही कर रहे हैं.
हटाएंशोभा जी,
फिर आगे ही बढ़ जाते हैं क्यूंकि वर्तमान व्यवस्था तो बुरी तरह असफल रही है.
दर्द का सही बयान है इस पोस्ट में ...
जवाब देंहटाएंअरुण चन्द्र राय ने एक द्रश्य दिखने का प्रयत्न किया है यहाँ ..
https://www.facebook.com/arun.c.roy.3/posts/10200284034598235?comment_id=5042099¬if_t=comment_mention
पाशविकता, इंसानियत पर कब्ज़ा कर रही है ...वर्जनाएं भी अपना नकारात्मक रूप दिखा रही हैं
:(
और मुझे लगता है जो आक्रोश जो दर्द भीतर है,उसका शतांश भी बयाँ नहीं हो पाया .
हटाएंSolution is possible. stop porn and beer. encourage girls and boys friendship from early ages so boys will understand that girl is human not a patakha like shown on tv ads.
जवाब देंहटाएंalso i find an indian posted a porn video with her nephew in ... where i complain.still after damini rape all my staff views are this is girls fault.
where i can complain if many leaders are rapist
many times hv written that co-education shud b encouraged.
हटाएंand do u know that India is the third largest consumer of pornography in the world..this is a matter of great concern....one should think what are the reasons behind it .
मर्मान्तक घटना है, हृदय पर मनो विषाद का बोझ लद गया है। प्रतिक्रिया सूझती ही नहीं…
जवाब देंहटाएंआपकी मनःस्थिति से निसृत भावनाओं को समझा जा सकता है। किन्तु संस्कार व वर्जनाओं की समाप्ति में इस समस्या का हल नहीं है। यौन कुंठाओं की कभी उपयोग से तृप्ति नहीं होती। काम-कुंठित तो क्रूर से क्रूर रोमांच के उपाय खोजता है, इन्हें छूट दे दी जाय तो कोई जरूरी नहीं काम-तृप्ति के लिए हमउम्र तक सीमित रहे।
पुनः जंगली व्यवस्था की और लौटना व्यवहारिक भी नहीं और सम्भव भी नहीं।
रूह कांप जाय ऐसी सजा और वह भी तत्काल एक रास्ता हो सकता है।
आपकी बात से सहमत कि जीवन और सुरक्षा ही सर्वोपरी है. उसके बाद ही प्रगति, विकास ,नियम, संस्कृति, संस्कार आते हैं.
पता नहीं ,शायद आपका कहना ही सही हो, कि मृत्युदंड ही एकमात्र उपाय है. पर ऐसी घटनाओं में एक साल में 336% की वृद्धि हुई है. इसके पीछे के कारण तो ढूँढने ही होंगे .इस तरह की कुंठायें , मानसिक विकार क्यूँ होते हैं इस पर मनन करना पड़ेगा .
हटाएंमैंने अखबार पढाना और टीवी पर खबरें देखना लगभग छोड़ ही दिया है... अब इसे कोई शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छिपाना कहे या कबूतर की तरह बिल्ली को देख आँख बंद करना.. मैं भी मानता हूँ कि मैं कायर हूँ.. इसीलिये मैं लम्बी-चौड़ी और बड़ी बड़ी बातें नहीं करता.. आक्रोश उबलता है पर जानता हूँ कि पनुन्सक हूँ इसलिए चुप रहता हूँ..
जवाब देंहटाएंवर्जनाएं एक बहुत बड़ा कारण हैं.. आज भी ऐसी आदिम जन जातियां हैं जहाँ की स्त्रियों के स्तन की ओर इशारा करके यह पूछने पर कि यह क्या है, उनका जवाब होता है कि इससे वे अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं.. उनके यहाँ बच्चे १४-१५ साल तक नग्न घूमते हैं.. हमारे विकास ने हमसे हमारा स्वाभाविक वातारण छीन लिया है.. अब जो भी सामने आ रहा है वह सिर्फ विकृति है और मानसिक विकार!!
रही सही कसर देश की न्याय-व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया ने कर दी है.. लगाते रहिये पेटिशन और जनहित याचिका.. अंजाम सिर्फ सिफर और प्रतीक्षा ऐसी ही एक घटना की!!
सचमुच , ऐसा ही लगता है जैसे कोई नयी घटना पुरानी घटना को ढक देगी, बस उसी के इंतज़ार में हैं हम सभी .
हटाएंस्थिति हम सबकी एक जैसी है रश्मि फिर भी इन सबके पीछे अनेक कारण हैं उनमें से एक कारण अरुण जी की पोस्ट पर है और एक कारण ये भी है sirf ek kaaran nahi hain iske peeche ...........anek karan hain sabka vishleshan karna hoga tabhi sabhya samaaj ka nirman ho sakta hai magar aaj to sab paise aur sex ke peeche daud rahe hain ........kisi bhi keemat par kahin se bhi jaldi se jaldi ameer ho jana aur doosre kaise bhi ek aurat hasil kar lena .......ye mansikta rah gayi hai jiske liye sabhi doshi hain aur sabse jyada udaar nitiyan phir chaahe wo cinema ho ya serial bataiye kisme nanga nach nahi hota ? kahan nahi stri ko bhunaya jata chahe vigyapan hon ya serial ya gaane ..............kai baar to dekh kar ham sharmsaar ho jaate hain , aankhein neechi ho jati hain magar un drishyon ko pass kar diya jata hai sensor dwara .......kya ye uchit hai ? ek kam padha likha insaan nahi janta sahi ya galat ...........wo to jo dekhta hai wo hi karta hai , vaisi hi uski soch banti jati hai ........jaroorat hai to ankush ki ............phir chahe akhbar hon ya patrikayein ya cinema ya samaaj .............sab jagah ek ankush ki jaroorat hai aur sabse bada ankush tabhi lag sakta hai jab sarkaar kadam uthaaye magar wo to gahari neend soti rahti hai moonh par tape lagaye और ऐसे ना जाने कितने कारण हैं जिन्होने मानसिकता को गुलाम बना दिया है और एक डर सबमे पैदा कर दिया है कि अब आगे क्या होगा ?
जवाब देंहटाएंअरुण जी की पोस्ट अभी नहीं पढ़ी , पढ़ती हूँ .
हटाएंतुमने जितने कारण बताये सब सही हैं और भी न जाने कितनी वजहें होंगी. पर अब भयंकर निराशा हो रही है , सच में कुछ समझ नहीं आ रहा, स्थितियाँ कैसे सुधरेंगी :(
रश्मि,
जवाब देंहटाएंयही है असली भारत, चरित्रहीन, संस्कारहीन, अविवेकी, असंवेदनशील ...किस संस्कृति का बिगुल बजा रहे हैं लोग ??
मेरा तो दिमाग ही भन्ना गया है। लोग चले आते हैं, भारत की प्राचीन गौरव गाथा गाने । आज का भारत क्या है ? किस बात का गौरव करें हम ??? शर्म से डूब मरना चाहिए सबको। कितने गुणवान हैं भारतवासी वाह !! क्या कमी है भारत में, रेपिस्ट हैं हीं, भ्रष्टाचार है ही, गंदगी है ही, बेईमानी की कमी नहीं, ढोंग की कमी नहीं, संवेदनाएं मरी हुई हैं हीं, कमियों की फेहरिस्त इतनी लम्बी है की यहाँ अटेगा ही नहीं । सब बकवास करते रहते हैं।
भारत की गौरव गाथा वाल न्यूज़ यहाँ भी आ ही रहा है। भारत का बड़ा नाम हो रहा है।
दामिनी के केस टाँय टाँय फ़ीस हो ही गया। इतनी जो बकवास हुई, जुलुस अनशन और जाने क्या क्या। ये केस भी ऐसे ही हो हल्ला के बाद गताखाता में जमा हो जाएगा। पांच साल की बच्चियाँ, दो साल की बच्चियों ने अपने बदन की नुमाइश करके ये सब करने को पुरुषों को ललकारा होगा, है ना ? भारत जंगली, कुत्सित, व्यभिचारियों का जमावड़ा बन चुका है। देश का नैतिक पतन हो ओ चुका है । कामवासना इतनी प्रचंड है कि लोग आपे से बाहर हो चुके हैं , अब लोग खुलेआम बेहूदगी, अश्लीलता और निर्लज्जता करते देखे जा सकते हैं। भरे बाजार में भूखे भेडिय़ों की तरह लड़कियों के साथ मारपीट, छेडख़ानी करना उसके कपड़े तक फाड़ डालना बहुत आम बात हो गयी है । जब यह सब हो रहा होता है तमाम राहगीर तमाशबीन बने हुए रहते हैं, हैरानी की बात यह भी है, वहीं उसी जगह मीडिय़ा कर्मियों की भीड़ ब्रेंकिंग न्यूज के लिए वीडियो शूट कर रही होती है। यह वही देश है जहाँ जब रावण सीता को अपहरण कर ले जा रहा था तो एक पक्षी जटायु ने अपनी जान की बाजी लगाकर रावण से संघर्ष किया था और सीता को बचाने की कोशिश की थी। और उसी देश में आज किसी लडक़ी की इज्जत सरे आम लूटी जाती है और उसे बचाने कोई भी आगे नहीं आता । पुरुषों का पुरुषत्व सिर्फ कमज़ोर लड़कियों को देख कर जागता है, उफान मारता है। वर्ना आज भारतीय समाज, डरपोक, कायर और नपुंसक हो गया है , इतना नपुंसक कि आज वह अपनी बहू बेटियों की सरेआम लुटती इज्जत तक की रक्षा नहीं कर पा रहा। बच्चियों के साथ ऐसा कुकर्म करने वालों को तत्काल सरे आम फांसी क्यों नहीं दी जाती है??? अभी मेरा दिमाग बहुत ख़राब है, फिर आउंगी :(
बिलकुल समझ सकती हूँ, तुम्हारा आक्रोश . ऐसी ख़बरें देख सुन ,ऐसी ही बातें दिमाग मी आती हैं. किस बात पर गर्व करें हम ?? किस प्राचीन गौरव और वर्तमान विकास के गुण गायें , जहाँ यह सब हो रहा है.
हटाएंदिखा ही रहे होंगे ,वहाँ के चैनल भी. विदेश में रहने वाली एक फ्रेंड ने बताया वहां के अखबार में ये खबर, इस शीर्षक से छपी है, Indian style of rape ' शर्म से डूब न मर जाएँ हम सब कहीं
सुबह सुबह ही तुम्हारा मूड खराब कर दिया इस पोस्ट ने :(
आज की ब्लॉग बुलेटिन क्यों न जाए 'ज़ौक़' अब दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंअब या तो बहुत आगे ही बढ़ जाएँ या थोडा पीछे ही लौट चलें या फिर पाषाण युग में ही लौट जाएँ
जवाब देंहटाएंसचमुच अपने विचारणीय प्रश्न उठाया है उपरोक्त दोनों में एक चुनने का वक़्त आ गया है
बहुत ही आक्रोशित और व्यथित मन से लिखा है यह . वर्तमान व्यवस्था से तो दोनों ही अच्छे (मेरी नज़र में )
हटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंसच, मन दुःख और विषाद से भर गया है .... समझ नहीं आ रहा कि किससे आशाएं रखीं जाएँ | कोई ठोस कदम उठाये जाने आवश्यक हैं, नहीं तो शायद ऐसे वीभत्स हादसे यूँ ही होते रहें
जवाब देंहटाएंघृणा और जूगुप्सा के मारे दो तीन दिन से संज्ञाशून्य होने जैसी स्थिति हो गयी है ! शर्मिंदगी, क्षोभ और गुस्से का यह आलम है कि लगता है मुँह खोला तो जैसे ज्वालामुखी फट पड़ेगा ! यह किस किस्म के समाज में हम रह रहे हैं जहाँ ना तो इंसानियत बची है, न दया माया ना ही मासूम बच्चों के प्रति ममता और करुणा का भाव ! इतना तो मान कर चलना ही होगा कि इस तरह की घृणित मानसिकता वाले लोग जानवर ही होते हैं ! अब चिंता इस बात की है कि प्रतिक्षण बढ़ने वाली जनसंख्या में ऐसे जानवर कितने पैदा हो रहे हैं और कहाँ कहाँ हो रहे हैं इस आँकड़े का निर्धारण कैसे हो ! समस्या का हल सिर्फ एक ही है कि इन जानवरों को इंसान बनाना होगा ! उसके लिये जो भी उपाय हो सकते हैं किये ही जाने चाहिये ! सबसे पहले पोर्न फ़िल्में और वीडियोज दिखाने वाले टी वी चैनल्स पर तत्काल बैन लगा दिया जाना चाहिये ! फिल्मों में दिखाये जाने बेहूदा आइटम सॉंग्स, अश्लील दृश्य व संवाद, जो आजकल फिल्म की सफलता की गारंटी माने जाते हैं, सैंसर बोर्ड द्वारा पास ही नहीं किये जाने चाहिये ! समाज का एक अभिन्न अंग होने के नाते महिलाओं की भी जिम्मेदारी होती है कि समाज में हर पल बढ़ते इस मानसिक प्रदूषण को रोकने के लिये कारगर उपाय करें ! इसलिये केवल खोखली शोहरत और धन कमाने के लिये अभिनेत्रियों व मॉडल्स को ऐसी फिल्मों व विज्ञापनों में काम करने से मना कर देना चाहिये जिन्हें देख कर समाज के लोगों की मानसिकता पर दुष्प्रभाव पड़ता हो ! स्त्री एक माँ भी होती है ! अपने बच्चों को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिये एक माँ हर संभव उपाय अपनाती है ! आज भारतीय समाज भी ऐसे ही निरंकुश, पथभ्रष्ट और संस्कारविहीन लोगों से भरता जा रहा है ! महिलाओं को माँ बन कर उन्हें सख्ती से रास्ते पर लाना होगा और इसके लिये सरकार को भी कुछ सख्त कदम उठा कर क़ानून कायदों को प्रभावी और समाजोपयोगी बनाना होगा ! पश्चिमी संस्कृति का जब और सारी बातों में अनुसरण किया जाता है तो इस बात में भी तो किया जाना चाहिये कि वहाँ की क़ानून व्यवस्था कितनी सख्त और प्रभावी है और उसका इम्प्लीमेंटेशन कितना त्वरित और असरदार होता है ! वहाँ किसी व्यक्ति के खिलाफ, बलात्कार तो बहुत बड़ी बात है, यदि ईव टीजिंग की शिकायत भी दर्ज कर दी जाती है तो उसे सज़ा तो भुगतनी ही पड़ती है उसके अलावा हमेशा के लिये उसका रिकॉर्ड खराब हो जाता है और उसे कहीं नौकरी नहीं मिलती ! हमारे देश में विरोध करने वालों की सहायता करने की बजाय पुलिसवाले उन पर हाथ उठाते हैं और उन्हें पैसे देकर मामला दबाने के लिये मजबूर करते हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत ही दर्दनाक है यह सब, इन खबरों को देखने पढने से भी दर्द और आत्मग्लानि होती है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक बहुत ही गंदा और घटिया किस्म का आदमी है जिसका नाम लेना भी अब मुझे पसंद नहीं उसे इस बच्ची की हालत दिखानी चाहिए और उससे पूछना चाहिए कि बता अब ताली बजाने वाले दोनों हाथ किसके थे और क्या इस बच्ची को भी यही सलाह देगा कि बलात्करी को भाई बना लेती,पैरों में पडकर माफी माँग लेती? रश्मि जी सच तो ये है कि ऐसे लोगों की वजह से बलात्कार को प्रोत्साहन मिलता है।हमारे यहाँ इस गंभीर अपराध के पीछे असली कारणों को जानने की कोशिश नहीं की जाती बल्कि इस पर लतीफे बनाए जाते है।यदि बलात्कार का कारण तीव्र कामेच्छा ही है तो फिर इसका कोई इलाज नहीं है।चाहे आप कितनी ही कड़ी सजा रख लें चाहे लडकियाँ कितने ही सुरक्षा उपाय कर लें।लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता।चरित्र पर शक के कारण पत्नी की हत्या करने वाले सम्मान के लिए बेटी और बहन को मार डालने वाले और बलात्कार करने वाले तीनों को ही अपने किए पर कोई पछतावा नहीं होता ।जाहिर है इन सबके पीछे स्त्री जाति से ही नफरत एक कारण होती है।आप अपने सामाजिक मूल्य नहीं बदलेंगे बलात्कार नहीं रुकेंगें।और हाँ आज भी बलात्करियों में उनका ही प्रतिशत ज्यादा है जिनका टीवी और इन्टरनेट से कोई खास वास्ता नहीं है या है ही नहीं।
जवाब देंहटाएं@तीनों को ही अपने किए पर कोई पछतावा नहीं होता ।
हटाएंसही कहा राजन, इनलोगों को पछतावा नहीं होता क्यूंकि इन्हें लगता ही नहीं ये कोई गलत काम कर रहे हैं.एक साइकियाट्रिस्ट ने जेल में इन अपराधियों पर रिसर्च किया था और यही निष्कर्ष निकला था कि उन्हें अपनी गलती महसूस ही नहीं होती ,बहन और पत्नी की ह्त्या करने वाले तो यही समझते हैं उन्होंने ठीक किया, उन्हें यही सजा मिलनी चाहिए थी
और बलात्कारी इसे बलात्कार मानते ही नहीं ,वे बच्चों को भी एक व्यस्क समझते हैं.
अब सोचना यह है कि ऐसे मानसिक विकार इतनी तेजी से क्यूँ बढ़ रहे हैं ??
हर एक पुरुष के मन में दूसरी स्त्रियों के लिए सम्मान जागने में लगता है एक सदी लग जायेगी .
और रश्मि जी आप तो वर्जनाहीन समाज की बात ऐसे कर रही हैं जैसे तो ऐसे समाज में कोई भी लड़की किसके भी साथ संबंध बनाने को तैयार हो जाएगी।आज किसीको भला बुरा कहने के लिए उसके घर की महिलाओं को गाली दी दी जाती है।दंगों में विधर्मी महिलाओं का बलात्कार किया जाता है,अपने से नीची जाति को सबक सिखाने के लिए उनकी महिलाओं को शिकार बनाया जाता है।और ऐसा करते हुए इनमें कोई अपराधबोध भी नहीं होता।यह केवल अपनी कामवासना को तृप्त करने के लिए नहीं किया जाता बल्कि अपने मर्दवादी अहम् को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है।ये बताने के लिए किया जाता है कि तुम्हें अपने दायरे में रहना होगा।महिलाओं के संबंध में हमारे समाज की सोच इनमें किसी भी अपराधबोध को ही खत्म कर देती है उन्हें लगता है कि पुरुष होने के नाते उनके लिए यह सब सहज है।मुझे नहीं लगता कि बलात्कारियों की कामेच्छा सामान्य पुरुषों से कुछ अलग या असामान्य होती होगी।
जवाब देंहटाएंवर्जनाहीन समाज से मतलब है लड़के/लड़कियों को आपस में मिलने की खुली छूट . वहाँ लड़की की इच्छा का भी उतना ही महत्त्व होगा .
हटाएंऔर मैंने यह निष्कर्ष नहीं निकाला है, एक सवाल किया है कि क्या तब ऐसे कामांध लोग मासूमों को शिकार बनाना छोड़ देंगे?? ऐसे मानसिक विकार के इक्का दुक्का केस हो सकते हैं पर जिस तेजी से हमारे देश में इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं. कारण और उपाय दोनों सोचने तो होंगे . कई ऑप्शन आते हैं दिमाग में, उनमे एक यह भी था .
akhtarkhanakela.blogspot.com/2013/04/blog-post_4859.html?utm_source=feedburner&utm_medium=email&utm_campaign=Feed:+blogspot/qwmIC+(Akhtar+Khan+Akela)&m=1
जवाब देंहटाएंरोंगटे खड़े कर दिए इस कविता ने ..
हटाएंइस पर तो चर्चा करने में भी शर्म और घृणा लगती है । " बस पकड़ते ही गोली मार देने का क़ानून होना चाहिए "
जवाब देंहटाएंकाँप जाता है मन ... कुछ कहने की स्थिति नहीं रहती .... किसको दोष दो इस स्थिति के लिए ... खुद के अलावा कोई नहीं दीखता ...
जवाब देंहटाएंमानसिकता बदलनी जरुरी है ...
जवाब देंहटाएंआपके उठाए सवाल सही हैं. पर आप इन्हें गलत जगह और ऐसे लोगों (ले-पर्सन्स) से पूछ रही हैं जो इस विषय में उतना ही जानते हैं जितना की मैं और आप. यह विषय गंभीर विवेचना की मांग करता है, इसपर गंभीर सलाह एवं बदलाव के सुझाव केवल अनुभवी समाजशास्त्री, मानवविज्ञानी, अपराधविज्ञानी, मनोवैज्ञानिक वगैरह दे सकते हैं. पर याद नही आता की किसी मीडिया ने बढ़ते यौनअपराधों पर विशेषज्ञों से सुझाव अथवा सलाह मांगी हो.
जवाब देंहटाएंहम्म...बात तो सोचने वाली है. अब ब्लॉग तो है ही इसीलिए कि मन का उंडेल दो.
हटाएंइतना सोच-समझ कर कभी लिखा नहीं कि लिखने से क्या फायदा होगा..या ये जगह ऐसे सवालों के लिए नहीं है.
मीडिया को क्या गंभीरता से इस सम्सस्या को सुलझाने में कोई रूचि है ??
उन्हें TRP बटोरना है और वे ऐसा कर रहे हैं.
पर कम से कम हमारे समाजसेवी तो इस पर गंभीरता से सोचें .
यह बात सही कही रश्मि जी कि शादी की उम्र बढ़ना भी इस समस्या को बढ़ने में अपना योगदान कर रही हो.
जवाब देंहटाएंaajkal striya kis se bhaybhit h ? unke dwara janam diye hue purush se... ye ek bada swal or esme hi chupa h jawab. ek stri apni santan ko ye kyo nahi sikha pa rahi ki kya sahi h or kya galat? ek stri usko dusri mahilao ka aadar karna kyo nahi sikha rahi? ek mahila jo maa banane ja rahi h vo apne garbh me us jive ko sanskarit kyo nahi kar rahi? ye hi ek bada yksh prashn h . I am engineering student and in our course a great law given by newten that every action has equal and oppsit reaction. aajkal ki nariya apni santano ko maryada nahi sikha rahi or nariyo ko uska hi parnaam result me bhugatna pad raha h .
जवाब देंहटाएंToday we see that young genration break down all rues of society. aajkal chahe vo ladke ho ya ladkiya, chahe kissi bi varg ke ho adiktar apko lajja vihin or bina sarm vale hi milenge. ye log kal parents banege tab kya sikhayenge apne bacho ko ki maryada me raho? jo khud hi maryada me nahi rahe vo kya sikha payenge apne bacho ko.
mere hisab se abhi aane vale samay me society ka balance bhayanak gati se or bigdega kyonki abhi jo nayebache ho rahe h vo sanskar ke naam par kevel bazarwad sanskriti sikh rahe h ...
अब शुभम आप एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट हैं ,युवा पीढ़ी के हैं ,नयी सोच वाले हैं और ये सोचते हैं कि सारा दोष स्त्रियों का है तो क्या कहा जाये.
हटाएंकौन सी माँ अपने बच्चों को अच्छी बातें नहीं सिखाती ?? कौन सी माँ ऐसी हरकतें करने की शिक्षा देती है ??
इन सबके कारण बहुत गहरे हैं ,उन पर गंभीरता से सोचना चाहिए .
ये दर्द तो हर संवेदनशील व्यक्ति की यथा बन गया है ,पर न जाने क्यों लेकिन मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हो पायी हूँ कि पहले की तरह बालविवाह कर दिए जाएँ ...ये तो एक दलदल से बचने के लिए दूसरी खाई में कूद पड़ने जैसा है .....
जवाब देंहटाएंदूसरी बात से सहमत हो जाइये , लड़के लड़कियों को बेरोक टोक मिलने दिया जाए कि यौन कुंठाएं जन्म ही न लें,
हटाएंखैर मैंने पहले ही कह दिया है कि " मेरी बातें बहुत ही अव्यावहारिक लग रही होंगीं. पसंद भी नहीं आ रही होंगीं ,पर इस मनःस्थिति में मुझे इसके सिवा कुछ नहीं सूझ रहा ".
पर कुछ तो गंभीरता से सोचना पड़ेगा न .
कुछ और गहरे विश्लेषण की दरकार है मगर चिंगारी उठना भी जरुरी थी सो उथी इस माध्यम से...हालात ऐसे हुए हैं कि विचार कुंद हुए जाते हैं...
जवाब देंहटाएंमानवता शर्मशार है बारंबार इन कृत्यों से....
जवाब देंहटाएंकई बार शर्म महसूस होती है इस समाज का हिस्सा होने पर ...
जवाब देंहटाएंयह सब कुंठित मानसिकता तथा सजा का भय मन से निकल जाने का नतीजा है . जिस देश में पैसों की खातिर ऐसे घृणित जघन्य अपराधियों की वकालत करने के लिए लोग मौजूद है , वहां किसी से क्या उम्मीद ...यदि दामिनी केस में अपराधियों को अब तक कठोर दंड मिल चुका होता तो निश्चित रूप से इन अपराधों में कमी आती !
वर्जनाहीन और बेरोक टोक पर एक विचार कौंधा......
जवाब देंहटाएंमानवाधिकार के विषयों को लेकर,चलने वाले NGO's जो देशी विदेशी बडे बडे अनुदान पाते है,क्यों न वे प्रचलित देहव्यापार के सेक्स-वर्करों को उनकी सम्पूर्ण आय सब्सीडी में देकर, इस व्यापार को पूरी तरह शुल्क मुक्त कर देते? चैरिटी आधार पर सेवा उपलब्ध होने से कुछ तो अंतर पडेगा. ऐसे अपराधों में मुफ्त की तृप्ति एक प्रमुख कारण तो है ही.
इसी मनःस्थिति में एक विचार रखा है, किसी को बुरा लगे तो क्षमा चाहता हूँ.
आपका दर्द एकदम ठीक है, हम भी ऐसे ही हालात से गुजर रहे हैं। इसलिए क्या लिखना है और क्या नहीं, शायद हमें पता नहीं। हम तो बस सुरक्षा चाहते है।
जवाब देंहटाएंma'm i am sorry. But i think you didn't get actual meaning which i want to say. I am here giving link of two article. They are written by a good known personality, a great journlist and chief editor of a news paper. He is also a vedic litrate and sharp knowledge of society problems. I am requesting you to read these only two artcle. It will take hardly two miniutes. They will clear my point of view which i want to say in my previous comment. The link of artcles are-
जवाब देंहटाएंhttp://www.gulabkothari.com/art83.html
http://gulabkothari.wordpress.com/2013/03/07/
yeah sure Shubham..thanx allot for the links ..will definitely go thru them
हटाएंरश्मि जी
जवाब देंहटाएंशायद आप को पता हो की १५ साल से कम की पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना भी अपराध है इस कानून के जन्म का कारण ही यही था की 1२ साल की पत्नी पहली ही रात २५ साल के पति के सम्बन्ध बनाने के कारन मर गई थी , पत्नियों के साथ और सेक्स वर्करो के साथ अमानवीय व्यवहार भी होते रहे है , बस सामने नहीं आते है , और बहनों के साथ बलात्कार ( खासकर चचेरी ममेरी फुफेरी जैसी बहनों के साथ ) सदा की सच्चीई रही है , अभी के केस में और पहले के केस में विवाहित पुरुष भी पकडे गए है जो अपनी काम वासना की पूर्ति करते रहते थे , इसलिए ये उपाय काम नहीं करेंगे , विकृत मानसिकता के लिए कोई उपाय नहीं है सिवाए इसके की उन्हें पहचानते ही मार दिया जाये , वो इस दुनिया के लायक नहीं है जहा हमारी बेटिया रहती है ।