सोमवार, 1 अप्रैल 2013

"पिया के घर में पहला दिन ' परिचर्चा : साधना वैद जी, इस्मत जैदी एवं अर्चना चाव जी के संस्मरण

पिया के घर में पहला दिन ' परिचर्चा के अंतर्गत अब तक  लावण्या शाह जी, रंजू भाटिया, रचना आभा, स्वप्न मञ्जूषा 'अदा' ,सरस दरबारी , कविता वर्मा , वन्दना अवस्थी  दुबे , शोभना चौरे जी एवं  पल्लवी सक्सेना अपने रोचक संस्मरण हम सबके साथ शेयर कर चुकी हैं. साधना वैद  जी ने अपनी भांजी अर्चना  का बहुत ही मजेदार संस्मरण  भेजा है. इस्मत जैदी  एवं अर्चना चावजी ने भी  छोटी पर खुशनुमा यादें बांटी हैं. )

सादना वैद जी की  भांजी अर्चना की अपने पिया के घर में पहली सुबह 

विवाह के बाद बड़े धड़कते दिल से पतिदेव के साथ ससुराल में पहला कदम रखा था ! ससुराल वाले बड़े ही प्रतिष्ठित खानदानी लोग हैं यह तो जानती थी साथ ही यह भी सुन रखा था कि घर के सभी लोग बहुत परम्परावादी और नीति नियमों को मानने वाले हैं ! इसलिये और भी नर्वस थी कि कहीं कोई भूल ना हो जाये 

ससुराल का घर बहुत भव्य और तीन मंजिला था ! पतिदेव भाई बहनों में सबसे छोटे हैं और मनमौजी भी ! देर रात तक टी वी देखना, गाने सुनना, किताबें पढ़ना उनकी आदत में शुमार है इसलिए उन्हें घर की तीसरी मंजिल पर बना हुआ इकलौता कमरा दिया गया था ताकि उनकी आदतों से घर में अन्य किसीको दिक्कत ना हो !

शादी के बाद मुझे भी सुरुचिपूर्ण ढंग से सजे उसी कमरे में पहुँचा दिया गया ! रात को श्रीमान जी सबके बारे में मुझे विस्तार से बताते रहे कि घर में सभी लोग कितने अच्छे हैं ! संयुक्त परिवार होने के बाद भी घर में सब लोग कितना हिलमिल कर रहते हैं ! रिश्तों का मान रखते हैं ! वगैरह वगैरह ! उन्होंने मुझे सलाह दी कि तुम सुबह जल्दी उठ कर नीचे चली जाना और माँ, दीदियों और भाभियों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद ले लेना तो सब खुश हो जायेंगे और तुम्हारा बढ़िया इम्प्रेशन पड़ जायेगा ! घर में माँ का अनुशासन चलता है ! उन्हें किसीका भी देर से उठना पसंद नहीं है ! यहाँ तक कि बच्चे भी सुबह जल्दी ही उठ जाते हैं !

मुझे सुबह उठने में कहीं देर ना हो जाये इस डर के मारे रात भर नींद ही नहीं आई ! घड़ी में अलार्म भी लगा दिया कि कहीं गड़बड़ ना हो जाये ! लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और मैं समय से उठ कर नहाने चली गयी ! बाथरूम से बाहर निकली तो देखा श्रीमान जी नीचे जा चुके थे ! मन की घबराहट और बढ़ गयी ! सब लोग क्या सोचेंगे बेटा तो उतर कर आ भी गया नयी बहू अभी तक सो रही है ! घबराहट के मारे हाथ पाँव फूल रहे थे ! जैसे-तैसे तैयार हुई ! नीचे जाने के लिए जैसे ही दरवाजा खोलना चाहा तो देखा कि दरवाजा बाहर से बंद है ! पतिदेव आदतन बाहर से कुंडी लगा कर नीचे चले गये थे ! यह भी हो सकता है कि उन्होंने सोचा हो कि मैं पहले से ही नीचे जा चुकी हूँ ! मेरी नर्वसनेस और बढ़ गयी ! अब क्या होगा ! ना तो मेरे पास कोई फोन था ना ही नयी बहू का इस तरह चिल्ला कर किसीको बुलाना शोभा देता ! बड़ी देर तक मैं दरवाज़ा खटखटाती रही लेकिन नीचे मेहमानों से भरे घर में किसीको सुनाई नहीं दे रहा था ! हार कर मैं भी चुपचाप बैठ गयी ! कभी तो किसीको सुध आयेगी मेरी ! आँखों से आँसू बह रहे थे कि पहले ही दिन इज्ज़त का फलूदा हो गया !

नीचे सब मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! पतिदेव की नज़रें मुझे ढूँढ रहीं थीं लेकिन वे संकोच के मारे किसीसे मेरे बारे में नहीं पूछ रहे थे कि सब मजाक बनायेंगे ! जब नाश्ते का वक्त हुआ तो बड़ी भाभी ने अपनी बेटी को भेजा कि जाओ चाची को ऊपर से बुला लाओ ! किसीके पैरों की आहट सुन मेरी जान में जान आई अब तो इस कैद से मुक्ति मिलेगी ! लेकिन जब उसने देखा कि बाहर से कुंडी लगी है तो वह लौट कर जाने लगी ! लौटते कदमों की आहट ने मुझे फिर से सकते में डाल दिया ! इस बार सारा संकोच भूल मैं ज़ोर से चिल्लाई  मैं अंदर हूँ ! दरवाजा तो खोलो ! मेरी आवाज़ सुन भतीजी ने जल्दी से कुंडी खोली, यह क्या चाची ! चाचा आपको कमरे में बंद कर गये ! मैं उसके गले लग कर हँस भी रही थी और आँखों से आँसू भी बह रहे थे !  

नीचे जाकर जब उसने सबको बताया कि उसके चाचा मुझे कमरे में बंद कर आये थे तो पतिदेव का चेहरा देखने लायक था !


इस्मत जैदी  : दुआ है, ऐसे ही खुशहाल बना रहे जीवन 

शादी को २६ साल हो गए माशा अल्लाह ,सब कुछ बहुत अच्छा और संतोषजनक  से भी ज़्यादा दिया अल्लाह ने लेकिन घटना की बात पर ,,,वही ढाक के तीन पात 

बस अपने और अपने परिवार के बारे में थोड़ा बहुत बताती हूँ 
मेरे स्व.पिता जी और स्व. ससुर जी की दोस्ती ऐसी कि उन में  भाइयों जैसा प्रेम था अत: मुझे तो प्यार मिलना ही था और वो सिलसिला आज भी जारी है ,अम्मी मुझे बेटी और मेरी नन्दें तथा घर के सभी सदस्य भाभी कम बहन ज़्यादा समझते हैं ,,,हम लोग एक भाई एक बहन हैं लेकिन यहाँ का माशा अल्लाह भरापुरा परिवार मुझे बहुत भाया ,,सच पूछो तो मुझे ऐसा लगा ही नहीं कि किसी और घर में हूँ ,,न ये कि मुझे प्यार मिला ,भरपूर इज़्ज़त भी मिली और सिर्फ़ मुझे ही नहीं मेरे मायके वालों को भी ,,फिर और क्या चाहिये था :) 
बस दुआ करो कि हमारे परिवार के बीच ये प्यार और स्नेह हमेशा बना रहे


अर्चना चावजी "तुला मराठी येते ?"

बताती हूं थोड़ा सा बात है १९८४ की नागपूर से आई थी बरात ......

हाँ तो हुआ यूँ था कि हम तो ठहरे गुजराती और साहब थे महाराष्ट्रीयन तो खान -पान में बहुत अन्तर होना ही था ... कई सारे नाम मुझे पता भी नहीं,.... सोच सोच कर बोलना पड़ रहा था  .....हर कोई एक ही सवाल करता कि -"तुला मराठी येते ?"और मैं सिर्फ़ ह्म्म्म करके सिर हिला देती ....उत्तर सुनील ही देते ....
बहुत लम्बा रास्ता तय करके बारात बहू (यानि मुझे) लेकर आई थी वापस बस से ...सारे निढाल हुए पड़े थे शाम को रिसेप्शन था ,,,दिन में सब पीछे पड़ गए कि गीत सुनाईये ...कभी भी गाया नहीं था कोई गीत तब तक सिर्फ़ सुनने का शौक था ...... सोचा यहाँ किसको आता होगा हिन्दी गीत समझ में .... और साहब जी कि उनींदी आँखों को देखकर एक अन्तरा याद आ गया ...गीत गाया भरी दोपहर में ----बहुत रात बीती चलो मैं सुला दूं .... मैं तो पॉडकास्ट ही भेज रही हूँ आपको उस गीत का --- मेरा प्रिय गीत .... 


19 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद इन खूबसूरत संस्मरणों को पढ़ाने के लिये....

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  2. साधना जी ने मज़ेदार क़िस्सा शेयर किया ,,बेचारी दुल्हन :)
    अर्चना जी की पसंद का गीत भी बहुत अच्छा है
    धन्यवाद रश्मि

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  3. संस्मरण का बहुत सुन्दर गुलदस्ता ...
    आभार!

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  4. एक मुस्कराहट सी दौड जाती है ऐसे संस्मरणों को पढते हुए.. वे पल एक पूरा युग फिर से जीने जैसा हो जाते हैं..
    मुझे तो बस एक गीत की कुछ लाइनें याद आती हैं-
    बड़े अरमान से रक्खा है बलम तेरी कसम,
    प्यार की दुनिया में ये पहला कदम, पहला कदम!!

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  5. is bahane bahuton ki bahut sari yaade taza kar di aapne..maja aa gaya padh kar..

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  6. धन्यवाद रश्मि जी ! इस बार की परिचर्चा का विषय ही इतना आकर्षक था कि सभी पाठकों के साथ अपनी भांजी के इस मजेदार संस्मरण को शेयर करने से खुद को नहीं रोक सकी ! अपना या किसी और का कुछ ना कुछ मजेदार शेयर करने के लिए हर एक के पास निकल ही आता है ! आपने उसे अपनी परिचर्चा में सम्मिलित किया आपकी आभारी हूँ ! अन्य संस्मरण भी सभी बहुत ही रोचक रहे !

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  7. छोटी छोटी आम पर बड़ी खास बातें ....कितना कुछ है जो यूँ ही घट जाता है | बढ़िया लगे संस्मरण

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  8. दोनों संस्मरण लाजवाब हैं ...
    जैदी साहिबा के लिए हम सबकी दुआएं हैं।

    बाहर से कुण्डी लगा कर चले जाने का मतलब ये था कि 'तुझे कोई और देखे तो जलता है ' :)
    और अर्चना जी का संस्मरण हो, और पॉडकास्ट न हो ऐसा हो नहीं सकता है जी :)

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  9. बहुत ही रोचक और स्मृति गुदगुदाती श्रंखला।

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  10. तीनों संस्मरण बहुत सुन्दर है ।

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  11. ले ही आई आप यहाँ .. :-)
    सबके साथ अच्छा लगा ....

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  12. बहुत रोचक संस्मरण हैं, पढ़ते - पढ़ते ना जाने कितनी यादें ताज़ा हो गईं...कुछ यादें ऐसी ही होती हैं जब-जब आती हैं लगता है जैसे कल की ही बात हो... आप सभी को हमारी शुभकामनायें...

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  13. अर्चना जी ने बताया नहीं की निचे आने के बाद क्या हुआ :)

    सारे संस्मरण पढ़ कर एक बात समझ में आई की लड़किया कितनी संकोची बन जाती है ससुराल और पति के नाम पर :)

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  14. ये संस्मरण पढ़कर बहुत सारी यादें ताजा हो गयी और बाहर से कुण्डी लगा कर चले जाने का...... अर्चना जी का तो बहुत ही मजेदार रहा ..आप सभी को हमारी शुभकामनायें...

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  15. archna ji ka sansmarann padhte samay to lag raha tha ki jaldi se koi aakar kundi khol de bas...ismat ji ka sansmarann sadgi se bharpoor hai..aur archna chawji ka sansmarann mazedaar raha

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  16. साधना जी के संस्मरण ने तो रंग जमा दिया... :) इस्मत मेरी ही बहन निकली :) और अर्चना ने बदमाशी कर दी :) अरे आगे तो बताओ कि " बहुत रात बीती चलो मैं सुला दूं....." सुनाने के बाद क्या हुआ??? :) :)

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  17. सभी दोस्तों की हृदय से शुक्रगुजार हूँ कि आपने इतने ध्यान से संस्मरण को पढ़ा और उसका लुत्फ़ भी उठाया ! सभी संस्मरण एक से बढ़ कर एक हैं ! आप सभी का आभार !

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