सुपर मार्केट के दरवाजे से ढेरों सामान से भरी ट्रॉली
धकेलते हुए अंजू बाहर आ गयी .वहां से स्लोप से नीचे उतर कर सड़क
के किनारे जाना था उसे. एक बार सड़क की तरफ देखती
और एक बार नीचे . जरा सा ध्यान बंटा और पता चला
सामान सहित ट्रॉली लिए हुए गिर
गयी वह. पर अंजू भी क्या करे, बेटी के स्कूल से आने का टाइम
हो रहा था और एक रिक्शा नज़र नहीं,आ रहा था, दोपहर की धूप बहुत तीखी हो
चली थी . घर ज्यादा दूर नहीं था, पर उसने बहुत
सारा सामान खरीद लिया था .इसीलिए
सुपर मार्केट आने से बचती है. चीज़ें शेल्फ पर सजी रहती हैं और
नज़र आती रहती हैं . ट्रॉली में डालते वक़्त ध्यान नहीं रहता
पर जब ट्रॉली से निकाल कर पेमेंट के वक़्त काउंटर पर रखने लगती है तो
दिल धड़कने लगता है, 'उतने पैसे तो
हैं ,पर्स में ??कहीं ऐसा तो
नहीं ज्यादा सामान ले लिया.' डरती रहती है, शर्मिंदगी न
हो जाए .पर क्या करे, बच्चों की फरमाइशें ,जरूरत का
समान , दुबारा समय निकालने की परेशानी, ये सब ख्याल मिलकर
सामानों की लिस्ट में इजाफा करते जाते हैं .
आज भी ऐसे ही खीझ रही थी. सड़क के किनारे
ट्रॉली लगाए खड़ी थी पर सड़क पर
से रिक्शा नदारद थे. दोपहर को सड़क सूनी सी ही थी . इक्का दुक्का कार जैसे मुहँ चिढाती हुई
सर्र से निकल जाती .
बेबस सी देखती रह जाती वह . अब स्कूल बसों का आना भी शुरू हो गया . इतने सारे अलग
अलग स्कूल की बसें, ऐसा लगता इस एरिया का
हर बच्चा किसी अलग स्कूल में पढता है. पर
ऐसा भी नहीं है, हर बस स्टॉप पर एक स्कूल के
चार-पांच बच्चे तो खड़े मिल ही जाते हैं . और उसकी नज़र
सामने की ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं पर चली गयी . एक बिल्डिंग
के कितने सारे विंग और एक विंग में कितने सारे
फ़्लैट और उन फ्लैट्स में रहने वाले . ओह!! ज़रा सी धरती का एक टुकड़ा
समेटे ,आकाश से बातें
करतीं ये बिल्डिंग कितने लोगों को पनाह देती हैं . तभी सामने से
सेंट फ्रांसिस स्कूल की बस गुजरी और
वो एकदम हडबडा गयी, ये सब क्या सोचने लगी वह. इस बस के पंद्रह मिनट बाद ही
रूही की बस आती है. रिक्शे के इंतज़ार में कब तक खड़ी रहेगी ??. घर का दरवाजा बंद
देखकर रूही तो परेशान हो जायेगी . और अंजू ने
जल्दी जल्दी ट्रॉली से सामान का थैला
निकालना शुरू कर दिया . थैला नीचे रखकर ट्रॉली स्टैंड पर
लगाया और दोनों हाथों में दस दस किलो का वजन संभाले , इस धूप
में ही निकल पड़ी . खुद को ही कोस रही थी . सोचा था बारह बजे रौशन को बस
स्टॉप पर छोड़ने के बाद दो घंटे का जो समय मिलता है, उसका सदुपयोग कर डालेगी .क्यूंकि रूही की बस दो बजे
आती थी. शाम को सुपर मार्केट में भीड़ भी तो कितनी होती है, इन्हीं सबसे
बचने के लिए भरी दुपहर में चली गयी और अब दूसरी मुसीबत गले पड़ गयी।
अंजू भारी थैला उठाये, कड़ी धूप में जल्दी जल्दी कदम बढाए चली जा रही थी. माथे से पसीना बहने लगा था पर इतनी मोहलत नहीं थी कि सामान नीचे रखकर रुमाल से चेहरा ही पोंछ ले. बीच बीच में बाएं हाथ का सामान दायें हाथ में लेती कि शायद इस हाथ का सामान हल्का हो. पर दोनों का बोझ सामान था . हाँफते हुए बढ़ी चली जा रही थी कि एक सिल्वर कलर की एक लम्बी सी कार बिलकुल उसके पास से गुजरी .वह थोडा चौंक कर और किनारे हो गयी .पर कार उसके थोडा सा आगे जाकर रुक गयी और कार की खिड़की से एक ख़ूबसूरत सा चेहरा झाँकने लगा . तुरंत ही उसे 'अंजूsss ' नाम की पुकार सुनायी दी . वह पीछे मुड़ कर देखने लगी. पीछे से जरूर कोई महिला या लड़की आ रही होगी , और कैसा संयोग है, उसका नाम भी अंजू ही है. पर पीछे तो कोई था ही नहीं असमंजस में इधर-उधर देखती वो आगे बढती रही .
कार के पास पहुंची ही थी कि वो ख़ूबसूरत चेहरा कार से उतर कर बिलकुल उसके सामने खड़ा हो गया, और फिर से
उत्साह भरी आवाज आयी, "अंजूss "
वो अबूझ सी देखती रही , गोल चेहरा, बिलकुल स्मूथ
स्किन, कंधे पर झुके आकर्षक स्टाइल में
कटे बाल, आँखों पर बड़ा सा महंगा गॉगल्स
, सुन्दर से जींस टॉप में एक लड़की
सी दिखती औरत खड़ी थी . अंजू , उस चेहरे को घूरे जा रही थी पर पहचान का कोई भी अक्स दिमाग की बही
में रजिस्टर नहीं हो पा रहा था .उस ख़ूबसूरत चेहरे ने
आँखों पर से गॉगल्स उतारा और सीधी उसकी आँखों
में झांकती हुई थोड़ी नाराजगी से जोर देकर बोली, "क्या अंजू , मुझे कैसे
भूल गयी ??"
उसकी आँखों की चमक देखते ही अंजू चीख पड़ी, "अरे!! शालिनी तूss ओ माय गॉड , कितना बदल
गयी है, कैसे पहचानूंगी ?"
अंजू के हाथों से दोनों थैले छूट गए और दोनों
सहेलियां गले मिल गयीं . किसके कदम पहले बढे , कहना मुश्किल
था .
दोनों ने एक साथ ही पूछा, कब से हो इस शहर में ? और दोनों ने एक साथ ही जबाब दिया, 'कई सालों से ' फिर होंठ बिसूरते हुए साथ ही कहा, "और देखो आज मिल रहे हैं "
शालिनी और अंजू स्कूल में साथ थीं . पक्की सहेलियां थीं, साथ बैठना, साथ में लंच करना, एक दूसरे के घर जाना,घंटों गप्पे लगाना , फिल्मे देखना, शरारतें करना ,सब कुछ साथ में होता . दोनों के पिता का
ट्रांसफर हो गया . दोनों सहेलियां अलग अलग शहरों में चली गयी, अलग कॉलेज में पढने लगीं . कुछ दिनों तक नियमित पत्रों का आवागमन जारी रहा फिर धीरे धीरे कम होते हुए
पत्रों का आना -जाना ख़त्म ही हो गया. यूँ अचानक,इतने सालों बाद
मिलने के बाद इतनी सारी बातें हो गयी थीं कि दोनों समझ नहीं पा रही थीं,कहाँ से शुरू करें, कहाँ पर खत्म.
बातों में पता चला, शालिनी के पति अक्सर विदेश दौरे पर रहते हैं और
दोनों बच्चे हॉस्टल में . बच्चों का जिक्र आते ही अंजू को याद आया उसकी बेटी
रूही की स्कूल बस आ गयी होगी . अंजू ने झपट कर
दोनों थैले उठा लिए और बोली, "रूही की बस आ गयी
होगी, वो परेशान हो रही होगी अब चलना होगा. घर आ न एक दिन एड्रेस बताती हूँ . "
"हाँ, तो कार में बैठो न
छोड़ देती हूँ , पहले बताना था न बातों में इतना समय वेस्ट कर दिया, वहाँ बच्ची परेशान हो रही होगी. "
"घर पास में ही है चली जाउंगी ...."
"इतना फॉर्मल कब से हो गयी?? मेरी टिफिन से मेरी
मनपसंद गोभी के पराठे तो पूरा सफाचट कर जाती थी, एक टुकड़ा भी नहीं
छोडती थी और उलटा कहती थी, 'तू घर जाकर खा लेना चाची ने और बनाए होंगे’ चल बैठ
चुपचाप गाडी में " कहते हुए शालिनी ने पिछला दरवाजा खोल दिया और उसके हाथों
से थैला लगभग छीन कर ही रख दिया .
उसे भी स्कूल के दिन याद कर हंसी आ गयी , स्कूल पहुँचते ही पहले देखती थी, शालिनी ने डब्बे
में क्या लाया है और अगर भरवा पराठें हों तो फिर रिसेस का इंतज़ार एक सदी सा लगता
था ". चुपचाप आगे बैठ गयी . दो मिनट में ही अपनी बिल्डिंग तक पहुँच गयी .
रूही गेट पर ही होंठ बिसूरे आँखों में बड़ी बड़ी मोती लिए खड़ी थी . रूही ने गाडी पर एक नज़र भी नहीं डाली उसकी आँखें रास्ते
पर ही लगी हुई थीं .
अंजू को कार से उतरते देख रूही आश्चर्य से देखती रही पर उसके पास दौड़ कर नहीं आयी .अंजू ही भाग कर बेटी के पास गयी और उसे लिपटा कर पूछा, "देर से खड़ी हो क्या ?"
पर रूही की नज़रें तो कार से उतरती शालिनी पे लगी थीं, "ये आंटी कौन हैं ?"
तब उसने पलट कर देखा, शालिनी उसके भारी भारी थैले उठाये चली आ रही थी .
उसने भाग कर हाथों से थैला ले लिया और सोचने लगी, ' अब शालिनी को घर
चलने के लिए कहना पड़ेगा, पर घर तो सारा बिखरा हुआ है. सुबह से वक़्त ही
नहीं मिलता और अकसर वो बेटे को बस स्टॉप पर छोड़ कर आने के बाद ही घर संभालती है ,आज तो सुपर मार्केट चली गयी . सारी चीज़ें बिखरी हुई पड़ी हैं . शालिनी
इतने सलीके वाली लग रही है, क्या सोचेगी ? अच्छा हो ,वो कह दे कि अभी वो जल्दी में है फिर कभी आएगी और वो फिर बहत जिद करेगी
कि उसे जरूर आना होगा, और एक दिन सब कुछ
व्यवस्थित कर के बुलाएगी उसे, पर अभी तो रस्म निभानी ही होगी,सोच अंजू बोली, 'चलो शालिनी घर पर चलो. एक कप चाय तो पीकर जाओ
"
"हाँ, और क्या, अभी तो हम मिले हैं कितनी बातें करनी है, बड़ी प्यारी है,
तेरी बेटी ...बिलकुल तुझ पर गयी है...पर हाँ तू बिलकुल गोल मटोल थी इसकी उम्र में...होती
कैसे नहीं बस आलू पराठे..गोभी पराठे यही सब पसंद थे तुझे “
“क्या शालिनी मेरी बेटी के सामने मेरी पोल खोल रही है...” अंजू ने कहा पर
शालिनी रूही कि तरफ मुड़ चुकी थी...
“ बेटे आपका नाम क्या है ..देर से इंतज़ार कर
रही थी मम्मा का ??”
लिफ्ट में भी शालिनी रूही से बातें करने में लगी रही ,किस क्लास में पढ़ती है, स्कूल में बेस्ट फ्रेंड कौन है,कौन से पसंद है, तमाम बातें और उसके दिमाग में पूरे घर का नज़ारा घूम
रहा था . उसने एकाध बार कहा भी, "घर बहुत
बिखरा हुआ है, ये मत सोचना हमेशा ऐसा ही रहता है '
शालिनी ने भी चुटकी ली, "अब सफाई मत दे तू हमेशा से कामचोर है, मन तो लगता नहीं होगा, नॉवेल पढ़ती होगी बैठ के " उसने गुस्से में
शालिनी को आँखें दिखाईं तो रूही खी खी कर हंसने लगी '
घर में घुसते ही वो जल्दी जल्दी सोफे पर से टॉवेल , रौशन के उतारे कपडे, टेबल से ग्लास , किताबें कॉपियां
हटाने लगी . बद्बदाती भी जाती 'सब बिखेर कर रख
देते हैं ये लोग, कितना भी सिखाओ कोई नहीं सुनता '
"अरे! ठीक है न अंजू, परशान क्यूँ हो रही
है मैं कोई गेस्ट हूँ ?? बच्चों वाला घर बिखरा हुआ ही अच्छा लगता है , आओ रूही मैं तुम्हारी टाई खोल दूँ ,अंजू पहले इसे खाना
दे दे, बाद में घर संभालती रहना ' भूख लगी है न बेटा? 'शालिनी बिलकुल कम्फर्टेबल थी .
अंजू अब ये भी सोच रही थी . खाना भी तो इतना सादा सा बनाया है, बच्चों की पसंद वाला , ‘दाल चावल भिन्डी’
.खाने का समय हो रहा है, शालिनी को खाने के लिए भी कहना पड़ेगा . ओह! वो किसी सन्डे को क्यूँ नहीं टकराई . घर भी सजा संवरा रहता है. और
किचन भी भरा-पूरा . शालिनी के आधुनिक पहनावे, महँगी कार देख कर अंजू को यकीन हो गया था वह बहुत
अमीर है और ऐसा सादा खाना
शायद ही उसे पसंद आये. अंजू के पति की भी अच्छी इनकम थी, बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे, इस महंगे शहर में अपना दो कमरे का घर था . उसे कोई शिकायत नहीं थी पर दो बच्चों की देखभाल, घर बाहर सब देखते वह खीझ जाती. रूही को खाना देकर शालिनी से खाने के लिए
पूछ ही लिया और शालिनी ने झट से हाँ भी कर दी.
अंजू ने एक और सब्जी बनानी चाही तो शालिनी ने किचन में आकर गैस बंद कर
दी ". कुछ और मत बना . दाल चावल सब्जी ही मेरे लिए एक कम्प्लीट मील
है." हारकर अंजू ने साथ में ,दही , पापड़, अचार सलाद , रख दिये. शालिनी ने
ऐसे चटखारे लेकर खाए ,जैसे जाने कितना स्वाद हो. उसे लगा वह उसका संकोच
मिटाने के लिए इतनी तारीफ़ किये जा रही है. डोंगे के लिए हाथ बढाते सलाद लेते
शालिनी के हाथों पर नज़र पड़ी और और अंजू ने अपनी उंगलियाँ समेट लीं. शालिनी
के कोमल मैनीक्योर किये हाथ बहुत सुन्दर लग रहे थे. लम्बे नाखून शेप
में कटे हुए थे और उनपर हलके रंग की नेलपॉलिश लगी थी. . अंजू तो कभी नेलपॉलिश लगा ही
नहीं पाती, कभी लगा भी लिया तो उसी वक़्त रूही या रौशन को कुछ
चाहिए होगा या कुछ गिरा देंगे या फिर खुद ही गिर कर चोट लगा लेंगे . सबके सोने
के बाद कभी लगाने की सोचती भी है तो इतनी थकी होती है कि हाथों में
नेलपॉलिश की शीशी लिए हुए ही सो जाती है. और इन सबसे उबर कर कभी लगा
भी लिया तो फिर छुड़ाने का होश नहीं रहता ,अभी भी नाखूनों पर
आधे उजड़े नेलपॉलिश बड़े भद्दे लग रहे थे. यही हाल क्रीम लगाने का है, सोचती रह जाती है ,पर पहले जरा ये काम कर लूँ ,जरा वो काम कर लूँ और क्रीम के डब्बे शो पीस से ड्रेसिंग टेबल की शोभा बढाते
रहते हैं. याद नहीं आता ,कब ध्यान से अपना चेहरा आईने में देखा था, हमेशा तो भागम- भाग ही लगी रहती है. अंजू सोच रही थी, दोनों की उम्र एक ही है,पर कितनी अलग लग
रही है, शालिनी
शालिनी उसके मन में उठते इन गुबारों से निरपेक्ष पुरानी बातें याद करने में
लगी थी . वो स्कूल से लौटते हुए लम्बा रास्ता चुनना कि घर जल्दी न
आये. डेस्क पर सर नीचे झुका कर कागज़ में लिपटे कच्चे टिकोरे नमक के साथ खाना . वो
किताबो के बीच रखकर बाल पौकेट बुक्स पढना ...कॉरिडोर में टीचर्स के चाल की नक़ल
करना और कभी कभी पकडे जाने पर एक्टिंग करना कि पैरों में चोट लगी है.
शालिनी की बातों में वह भी वर्तमान का सब भूल उन
स्कूल के दिनों में पहुँच गयी . खाने के बाद भी सोफे पर जमी दोनों सहेलियां ,स्कूल-मोहल्ले की बातें याद कर देर तक हंसती रहीं. रूही
आराम से मौके का फायदा उठा , कार्टून नेटवर्क देखती रही .. शाम होने
को आयी तो रूही ने ही याद दिलाया, रौशन के आने का
वक़्त हो गया है. शालिनी साथ ही बस स्टॉप तक आयी रौशन को गोद में उठा कर खूब प्यार
किया और फिर आने का वायदा कर और उस से आने का वायदा ले चली गयी.
शालिनी के जाने के बाद अंजू बहुत अनमनी सी हो गयी . दोनों सहेलियां एक साथ ही
पढ़ती थीं . घर का बैकग्राउंड भी एक सा था .पर आज दोनों की ज़िन्दगी कितनी अलग
है. शालिनी यूँ बिंदास जहाँ मन होता है, घूमती है, बच्चे हॉस्टल में, पति दौरे पर . पैसे हैं, गाडी है जिधर मन हो
चल दो. कोई जिम्मेवारी नहीं . कोई रोकने टोकने वाला . रोकते-टोकते तो उसके पति
अवनीश भी नहीं हैं , पर वो क्या करे. दोनों बच्चों का स्कूल,उनके होमवर्क, उनकी ड्राइंग क्लास, डांस क्लास ,कराटे क्लास, स्केटिंग क्लास, फिर शौपिंग, खाना बनाना .घर संभालना , इनके बीच ही तो चकरघिन्नी सी घुमती रहती है. कहाँ से खुद के लिए समय
निकाले? ड्रेस भी ऐसी चुनती है, जिन्हें प्रेस न
करनी पड़े ,बस धो डालो और जैसे भी हों पहन लो. समय
बचता है. नयी चप्पलें डब्बे में ही बंद पड़ी रह जाती है और वह एक ही चप्पल को
घसीटती रहती है. मजाक में ही शालिनी ने कह दिया था, कि नॉवेल पढ़ती होगी
. ' कितना शौक था उसे ,फिल्मे देखने
का, नॉवेल पढने का, पर अब सब एक बीते
युग की बातें लगती हैं. अब तो समय ही नहीं मिलता बस बच्चों की कोर्स बुक ही पढ़ती
रह जाती है.
अंजू के पति अवनीश ऑफिस से आये तब भी अंजू अपनी सोच में ही गुम थी. पति ने पूछ
ही लिया, "क्या बात है, तबियत ठीक नहीं ?'
"न... सब ठीक है "
तब तक बच्चे आकर अवनीश से लिपट गए और आज की सबसे बड़ी खबर बताने लगे ,"पता है पापा,...मम्मी की एक बहुत सुन्दर सी स्कूल फ्रेंड आयी थीं
बहुत सुन्दर थी, हमें बहुत प्यार किया " रौशन था ,
"और पता है, बोल रही थीं मम्मी
स्कूल में बिलकुल मेरी जैसी लगती थी पर मुझसे मोटी थी …'रूही बटाते हुए फिर से हंसने लगी थी
"अच्छा .." अवनीश ने अंजू की तरफ देखा तो उसने कहा , “हाँ,शालिनी मिल गयी थी रास्ते में... मेरी स्कूल फ्रेंड है..दोपहर में यही थी “
"तब तो तुम्हे खुश होना चाहिए था, यूँ चुप सी क्यूँ हो '
"नहीं बस थक गयी हूँ , बहुत दिनों बाद
इतनी देर बाद बातें की न इसलिए"... कह कर बात टाल दी अंजू
ने. पर सबके सो जाने के बाद भी उसकी आँखों में नींद नहीं थी . उसके सामने बार बार
शालिनी का खिला खिला चेहरा घूम जाता ,साथ ही अपनी बुझी
सी सूरत दिखाई दे जाती और उसका मन और बुझ जाता. क्या हो गयी है, ज़िन्दगी उसकी ? सारा दिन काम और बच्चों में सर खपाना. सुकून के दो पल
नहीं मिलते. एक काम निबटाती भी नहीं कि दुसरे काम का ख्याल दस्तक देने लगता है.
पूरे समय भागम-भाग लगी रहती है. बच्चों को भी हरदम डांटती ही रहती है. दस
साल और आठ साल के दोनों बच्चे शरारतें भी कितना करते हैं. वो
समझती है,यही उम्र है उनकी पर वो भी क्या करे. थक जाती है. आज
शालिनी ने गोद में बिठा कर प्यार किया तो दोनों कितना खुश दिख रहे थे . बार बार
जिक्र कर रहे थे, 'आंटी ने इतना प्यार किया .उसे तो याद भी नहीं आता ,कब बच्चों को गोद में बिठा कर पुचकारा था.
शनिवार की शाम शालिनी अवनीश से मिलने आयी , इस बार हलके गुलाबी
रंग के सलवार कुर्ते में और भी नाजुक सी लग रही थी. पर व्यवहार बहुत ही सहज.
अवनीश भी मिलकर बहुत खुश हुए . देर तक बातें करती रही फिर बोली ," कल इतवार की दोपहर बच्चे और पापा अपनी बौन्डिंग करें और आपकी बीवी को हम थोड़ी
देर के लिए चुरा कर ले जायेंगे ? जरा हम सहेलियों को
भी थोडा वक़्त साथ बिताने दीजिये ' जब वरुण टूर से
लौटेंगे तो आप सबको डिनर या लंच के लिए मेरे घर आना होगा ."
"आप ये लालच न भी देतीं फिर भी मैं आपकी सहेली को जाने से नहीं रोकता , इन्हें भी थोडा
अपने लिए वक़्त चाहिए '
अंजू ने थोडा शंका से देखा तो अवनीश ने उसे आश्वस्त किया , "अरे !! तुम बच्चों की चिंता मत करो , क्यूँ बच्चों कल
हमलोग कार्टून फिल्म देखेंगे फिर मैक्डी जायेंगे और फिर ..??" अवनीश ने बात अधूरी छोड़ दी
"आइसक्रीsssम..." दोनों
बच्चे एक साथ चीखे .वे भी माँ के अनुशासन से थोड़ी देर के लिए निजात
पाने के ख्याल से खुश ही थे .
ठीक तीन बजे शालिनी गाडी लेकर आ गयी .एक ग्लास पानी पीने को भी
नहीं रुकी ,'न अब सब कुछ मेरे घर पर ..." .
शालिनी के घर के बाहर ही दरवाजे के दोनों तरफ दो प्लांट सजे थे. एक एक पत्ते
ऐसे चमक रहे थे जैसे अभी अभी धुले हों . बाहर से ही पता चल गया था ,अन्दर का रख-रखाव
कैसा होगा.
घर के अन्दर सबकुछ व्यवस्थित , सफ़ेद रंग का सोफा , बीच में कलात्मक सी कांच की मेज और मेज पर सजे एक बाउल में रंग बिरंगे
पत्थर . हर कोने में गमले में सुन्दर से प्लांट. प्लांट के नीचे सजी मूर्तियाँ .
साफ़ चमकती दीवारें और उन पर लगी पेंटिंग्स पर गिरती हल्की सी रौशनी . लग रहा था
किसी और ही दुनिया में पहुँच गयी है.
वह तो नीचे कुछ रखने की सोच भी नहीं सकती . रौशन के बॉल की एक ठोकर सब तोड़ डालेगी . उसे बैठने को कह ,शालिनी शेल्फ पर से एक फोटो उठा लाई, " देख मेरे दोनों बेटे पराग और परिमल .
दो प्यारे से हँसते हुए बच्चे एक दुसरे के गले में बाहें डाले कैमरे की तरफ
देख रहे थे .
उसे फोटो दिखाते हुए शालिनी इतने प्यार से तस्वीरों पर हाथ फेर रही थी , मानो वे तस्वीरे नहीं बच्चों का मुखड़ा हो .अंजू के
भीतर कुछ जोर का दरक गया कितना मिस करती है, शालिनी अपने बच्चों
को . उसकी आँखों की तरफ देखने की हिम्मत नहीं हुई ,जरूर भरी हुई
होंगीं .शालिनी भी हाथों में तस्वीर थामे बच्चों के चेहरे को एकटक
देखते हुए कहीं खो सी गयी थी. उसे उबारने के लिए अंजू ने ही जोर से कहा "अरे पानी तो पिला "
"देख ,मैं कितनी आलसी
हूँ, तू कहाँ भाग-भाग कर मेरी मेरी इतनी खातिरदारी
कर रही थी और मैंने पानी तक को नहीं पूछा .'शालिनी ने एक बार
फिर से तस्वीर को निहारते उसे संभाल कर शेल्फ पर रखते हुए कहा .
पानी लेकर लौटी तो कहने लगी, "तू संकोच कर रही थी न कि घर कितना बिखरा हुआ है ,और यहाँ देख कोई घर बिखेरने वाला है ही नहीं .जानबूझ कर इधर की चीज़ें उधर करती हूँ ताकि कुछ तो बदलाव लगे, वरना महीनो तक चीज़ें एक सी ही पड़ी रहें " अथाह दर्द था उसकी आवाज़ में .
उसके पूछने पर कि ‘बच्चों को हॉस्टल क्यूँ भेज दिया ?’ कहने लगी, " वरुण का मन था , बच्चे इंडिपेंडेंट बने, बड़े कैम्पस वाले
स्कूल में पढ़े, जहाँ घुड़सवारी, तैराकी सब सीख सकें. पहाड़ों के बीच खुली जगह में स्कूल हो .मैं शिकायत नहीं कर रही, बच्चों का भविष्य
बन जाएगा उन्हें अच्छी शिक्षा मिल रही है पर मैं इस अकेलेपन का क्या करूँ ?" बेबसी उतर आयी थी उसकी आवाज़ में .
फिर सर झटकते हुए शालिनी ने खुद ही कहा, "छोड़ मैं भी क्या बातें लेकर बैठ गयी....बोल क्या खाएगी ?? "
"अरे कुछ नहीं ..आज सन्डे था न लंच हेवी हो गया "
"अरे!! वाह !! आपने तो खा लिया पर हम जो भूखे बैठे हैं . "
"क्यूँ तुमने खाना नहीं खाया "
"मैडम खाना खाने के लिए बनाना भी पड़ता है, और अकेले के लिए कौन बनाए ? "
"अरे !!तो तू खाना नहीं खाती, " आश्चर्य से भर गयी अंजू .
"खाती क्यूँ नहीं कभी ब्रेड खा लिया, कभी बिस्किट ,कभी फल या जूस ले लिया . अब खुद के लिए कौन झंझट करे , वरुण टूर से आते भी हैं तो यहाँ उनकी कोई न कोई मीटिंग रहती है , घर पर कम ही खाते हैं .
उस दिन तेरे यहाँ मैंने जमाने के बाद ‘दाल चावल सब्जी सलाद, दही’ खाया था. अब तक स्वाद है जुबान पर . देखा नहीं
कैसे भुक्खड़ की तरह खा रही थी '
"तो तू करती क्या है फिर सारे दिन ,कैसे समय काटती है ? कोई जॉब क्यूँ नहीं कर लेती " अंजू को सचमुच अब शालिनी की चिंता हो रही थी
"कई कारण हैं ,..शालिनी
ने कुछ सोचते हुए कहा...”देख पैसों की तो कमी है नहीं ,वरुण
ठीक ठाक कमा लेते हैं, ?"
"अच्छाsss बस ठीक ठाक?? है न ??, बच्चे इतने महंगे बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहे हैं, पॉश एरिया में ये बड़ा सा
फ़्लैट है . बीवी मर्सीडीज़ में घुमती है और बस ठीक ठाक “ छेड़ा उसने
“अरे छोड़ न ,क्या
फर्क पड़ता है, कौन सी मेरी गाड़ी है...वरुण टूर पे रहते हैं
तो इस्तेमाल कर लेती हूँ. मेरी तो छोटी सी ‘आई टेन’ है. पर तूने नौकरी का पूछा
इसलिए बता रही हूँ ,क्यूँ किसी जरूरतमंद का हक मारूं ??
, मैंने कभी खुद के लिए कोई बड़े बड़े ख्वाब नहीं देखे, एक सीधी सादी सी खुशहाल पारिवारिक जीवन चाहती थी, पर
वो भी मयस्सर नहीं हुआ . पर ठीक है, जैसा मिला है, जो
मिला है उसी में समझौता कर लेती हूँ. नौकरी इसलिए भी नहीं कर सकती कि जब बच्चे छुट्टियों में घर आते हैं तो पूरा
समय उनके साथ बिताना चाहती हूँ. किस जॉब में इतनी छुट्टियाँ मिलेंगी ? और खाली वक़्त में कभी ओल्ड एज होम चली जाती हूँ . कभी कोई
अनाथालय कुछ एन.जी.ओ. से भी जुडी हुई हूँ . स्ट्रीट चिल्ड्रेन, जेल इन्मेट्स के बच्चों के साथ भी काम करती हूँ. उन सबके साथ समय
बिता कर उनके लिए कुछ कर के दिल को बड़ा सुकून मिलता है. और एक राज़ की बात बताऊँ, फिर भी अगर समय न कटे तो पार्लर में जाकर थोडा समय काट आती हूँ. अकेला घर
काट खाने को दौड़ता है, वहां कम से कम कुछ आवाजें तो सुन लेती हूँ “ शालिनी हंस रही थी पर उसके भीतर के दर्द को ढकने में उसकी हंसी बुरी तरह नाकाम हो रही थी.
अंजू उसकी बातें सुनती गहरे सोच में डूब गयी थी और वो शालिनी को यूँ सजे संवरे देख कितने कॉम्प्लेक्स से भर गयी थी, जबकि यह सब करने की शालिनी की मजबूरी है ‘
उसे चुप देख, शालिनी
ने बात बदल दी ,”अरे ! तू किस सोच में डूब गयी, ये सब मैं किसी से कहती नहीं ,कहने को तो बहुत सारे
दोस्त हैं पर फिर भी वे ये सब नहीं समझेंगे. तू तो बचपन की सहेली है, मुझे जानती है न ,इसीलिए सब कह गयी तुझसे, अच्छा चल बता क्या बनाऊं,
? इतने दिनों बाद किचन में जाकर अच्छा लगेगा , प्याज के पकौड़े बनाती हूँ , वैसे तो नहीं
बनेंगे जैसे स्कूल के पास रघु काका के ठेले पर मिलते थे , क्या
चटखारे लेकर खाते थे हम . मिर्च पड़ जाए तो सी सी करते रहते पर खाना नहीं छोड़ते ‘
और फिर भागकर रंगीन पानी वाला शरबत पीते थे, चवन्नी
में एक ग्लास मिलता था “
“हाँ, अब तो सोच
भी नहीं सकते, इतने गंदे ठेले पर से कैसे खा लेते थे हमलोग और हमें कुछ होता
भी नहीं था, आज के बच्चों को देखो, इतना
ख्याल रखो फिर भी आये दिन बीमार पड़ते रहते हैं “
"चल.. चल मेरी हेल्प कर किचन में ‘ कहते शालिन
उसे किचन में ले गयी. शालिनी को किचन में काम करते देख लग नहीं रहा था कि उसे आदत
नहीं, बड़े सधे हाथों से काम कर रही थी. उसे हेल्प करने को बुला कर लाई थी पर एक स्टूल
खींच उसे बिठा दिया था . कुछ भी करने नहीं दिया. एक तरफ पकौड़े तलती रही और एक तरफ
इलायची अदरक वाली चाय चढ़ा दी.
जब प्लेट में पकौड़े सजाये, बड़े से मग में चाय लिए ड्राइंग रूम में लौटी दोनों तो अंजू ने भी कह ही दिया, “एक अरसे बाद इतनी निश्चिन्त होकर चाय पी रही हूँ, घर पर कोई न कोई काम लगा ही रहता है और चाय ठंढी हो जाती है “
“अरे अब हम अक्सर मिला करेंगे और फिर
तुझे हमेशा गरम चाय मिला करेगी “
प्लेट से पकौड़े ख़त्म होते रहे पर बातों की गगरी छलकी
जा रही थी फिर भी वैसी ही भरी हुई थी. शालिनी अपने बच्चों की बातें, उनकी शरारतें, उनकी कामयाबी के बारे में बता रही थी. उसे ये सब बटाते हुए जैसे वह अपने बच्चों के पास ही पहुँच गयी थी. उसका चेहरा ममता के उजास से दीप्त हो रहा था. अचानक शालिनी ने घडी पर नज़र डाली और चौंक
गयी," हे भगवान् !! मैं भूल ही
गयी, बच्चे इंतज़ार कर रहे होंगे “
"फोन करना है, बेटो को ?’ अंजू ने पूछा .
"अरे नहीं, वो
बताया न स्ट्रीट चिल्ड्रेन के साथ काम करती हूँ. आज सन्डे, रोज की तरह ऑफिस
से आने वालों का ट्रैफिक नहीं होता न. ट्रैफिक सिग्नल पर ये बच्चे सामान बेचते
हैं. आज के दिन इन बच्चों की कमाई भी नहीं होती, ये खाली ही रहते हैं तो शाम को मैं इनके साथ टाइम बिताती हूँ. तू भी साथ
चल न, देख तो जरा एक बार इनकी ज़िन्दगी कैसी होती है ,
अब रास्ते में बात करते हैं “और शालिनी ने
बिजली की सी तेजी से सामान समेटना शुरू किया फ्रिज खोला, उसमे से ढेर सारे फल एक थैले में डाल लिए. डाइनिंग टेबल पर एक सुन्दर से
बास्केट में जो थोड़े से फल रखे थे वे भी डाल लिए. कई ड्रार खोले और उसमे से
चीज़ें डालती रही,एक थैले मे .अंजू चुपचाप सब देखती रही.
रास्ते में शालिनी ने बताया कि वो उन बच्चों को कहानी सुनाती है. साफ़ सुथरे रहने का तरिका बताती है. उन्हें रोज दांत ब्रश करना, कंघी करना, हाथ-पैर साफ़ रखना , नहाना ये सब सिखाती है. अंजू सोच रही थी जिन चीज़ों को सबलोग फॉर ग्रांटेड ले लेते हैं वो छोटी छोटी चीज़ें भी इन बच्चों को बतानी पड़ती हैं. आखिर सड़क पर पलने वाले इन बच्चों को ये सब कौन सिखाने वाला है.”
मेनरोड से एक संकरे से रास्ते पर गाड़ी उतार ली शालिनी ने . पास में ही एक पेड़ था, उसके नीचे चबूतरा सा बना हुआ था. किसी समय में वह साफ़ सुथरा रहा होगा. अभी तो जगह जगह से प्लास्टर उखड आये थे और उनके बीच घास उग आयी थी. शालिनी के गाड़ी खड़ी करते ही , पता नहीं किधर से बच्चों का एक हुजूम आया और घेर लिया शालिनी को . “दीदी कहाँ थी आप, हम कब से आपका वेट कर रहे थे." मैले कुचैले कपड़ों में बारह साल से लेकर पांच वर्ष तक की उम्र के बच्चे थे. छोटे बच्चों में से ज्यादातर के बाल उलझे हुए थे. मैली सी घुटनों तक की फ्रॉक पहने लड़की या सिर्फ निकर पहने लड़के थे. अंजू को उनके बिलकुल पास जाने में हिचक सी हो रही थी .पर शालिनी ने एक छोटी बच्ची का हाथ पकड रखा था और एक दुसरे बच्चे को कंधे से घेर कर पेड़ की तरफ जा रही थी. शालिनी के वहां पहुँचते ही एक बड़े लड़के ने झट से एक मैला सा कपडा बिछा दिया. बिना किसी संकोच के शालिनी उस पर बैठ गयी. सारे बच्चे एक साथ शालिनी का अटेंशन चाह रहे थे . कोई उसे अपने दांत दिखा रहा था कि उसने ब्रश किया है, तो कोई अपने हाथ . एक बड़ा लड़का बार बार अपने बाल संवार रहा था और शालिनी ने उसे देख कर कहा , “आज गनेस को दो चौकलेट मिलेगी, सबसे साफ सुथरा बच्चा वही है आज.” गनेस नाम का वह दस वर्ष का लड़का, शरमा कर नीचे देखने लगा, और फिर से एक बार अपने बाल संवार लिए. और फिर शालिनी के जादू के पिटारे में से चीज़ें निकलनी शुरू हो गयी, सबसे पहले उसने उन्हें चौकलेट बांटे ,फिर कंघी निकाल कर उनके उलझे बाल सँवारे, लड़कियों के बाल में रंग बिरंगे क्लिप लगा दिए और एक छोटा सा शीशा उन्हें पकड़ा दिया. लडकियां उसमे अपना चेहरा देखतीं और निहाल हो जातीं. नेल कटर निकाल कर कुछ के नाखून काटे. तब तक कोई अपनी चोट दिखाने लगा तो उसकी चोट पर मलहम लगाया. कुछ की नाक बह रही थी, बेझिझक उसने थैले से टिशु निकाल उनके नाक पोंछ दिए और बोतल में रखे पानी से हाथ धो लिया.
इसके बाद उसने उन्हें कहानी सुनानी शुरू की, कृष्ण के जन्म और उनकी बाल लीलाओं की कहानी . बच्चे ध्यान से
सुन रहे थे आश्चर्य भी करते ,हँसते और उस से सवाल भी
पूछते. जब कृष्ण के माखन चुराने वाला प्रसंग आया तो बच्चे माखन समझ नहीं
पाए. अंजू भी सोचने लगी, ये बिचारे बच्चे क्या जाने दूध,
दही, मक्खन .उन्हें कैसे समझाएगी और शालिनी ने
उपाय सोच लिया बोली, ‘आइसक्रीम जैसी चीज होती थी ‘. आइसक्रीम
तो सब बच्चे जानते थे .
सबसे छोटी बच्ची को शालिनी ने अपने पास बिठाया हुआ था . कहानी सुनाने के दौरान उस लड़की ने शालिनी की गोद में अपना सर रख दिया और बेख्याली में शालिनी उसके सर पर हाथ फेरने लगी.’ अंजू ने आँखें फेर ली, शालिनी को इस तरह बच्चों पर प्यार लुटाते देख, उसका मन भीग गया. पता चल रहा था कितना मिस करती है वह अपने बेटों को. और उन्हें प्यार करने को तरसता मन , इन बच्चों पर बिन बादल बरसात की तरह स्नेह बरसा रहा था.
सबसे छोटी बच्ची को शालिनी ने अपने पास बिठाया हुआ था . कहानी सुनाने के दौरान उस लड़की ने शालिनी की गोद में अपना सर रख दिया और बेख्याली में शालिनी उसके सर पर हाथ फेरने लगी.’ अंजू ने आँखें फेर ली, शालिनी को इस तरह बच्चों पर प्यार लुटाते देख, उसका मन भीग गया. पता चल रहा था कितना मिस करती है वह अपने बेटों को. और उन्हें प्यार करने को तरसता मन , इन बच्चों पर बिन बादल बरसात की तरह स्नेह बरसा रहा था.
शालिनी अंजू की उपस्थिति भूल चुकी थी. अंजू को
भी एकदम से अपने बच्चे याद आ गये. सारा दिन उनकी शैतानियों पर वो खीझती रहती है.
कभी पढने के लिए डांटती है तो कभी सामान जगह पर रखने के लिए तो कभी शरारतें न करने
के लिए. जाने कब से उन्हें यूँ पास बिठाकर नहीं दुलराया. और उसका मन हुआ कैसे भी उड़
कर अभी बच्चों के पास पहुँच जाए और उन्हें खूब प्यार करे.
धीरे से पास जाकर उसने शालिनी से कहा, “अब मैं चलती हूँ , “
“ओह !! सॉरी रे मैं तो भूल ही गयी,
तू भी साथ है, बच्चों आंटी को नमस्ते
करो." सारे बच्चे गुड मॉर्निंग टीचर की तर्ज़ पर ‘नमस्ते आंटी’ चिल्ला उठे तो
अंजू का भी मन भर आया. उसने मन ही मन सोचा एक सन्डे वो भी आएगी ,उन सबके लिए चॉकलेट बिस्किट लेकर
“बस थोड़ी देर रुक जा न, मैं छोड़ देती
हूँ तुम्हे.
"अरे नहीं, इन
सबको तेरी ज्यादा जरूरत है, मैं ऑटो ले लूंगी “
"पक्का न ..”
“हाँ बाबा , मैं
भी इस शहर में नयी नहीं हूँ ’ और लौटते हुए अंजू ने उस
बच्ची के सर पर प्यार से हाथ फिरा दिया , इस बार उसे
कोई झिझक नहीं हुई.
अभी ऑटो में ही थी कि अवनीश का फोन आया, परेशान भरे स्वर
में बोले, "कहाँ हो तुम ... एक सन्डे की शाम तो साथ बिताने को
मिलती है ..और तुम्हारा पता ही नहीं कुछ ,बच्चे भी बार बार
पूछ रहे हैं, कब लौटोगी ??"
मुस्कराहट आ गयी अंजू के चेहरे पर .अभी दूसरा दिन होता तो खीझ जाती, "मैं जो रोज अकेले शाम बिताती हूँ, ऑफिस से लौटने का
कोई ठिकाना ही नहीं रहता. एक दिन शाम अकेले बच्चों के साथ बितानी पड़ी तो खल गया
"
पर अभी महसूस किया, वे सब सचमुच उसे मिस कर रहे हैं . " बस आ ही रही
हूँ " कह फोन रख दिया.
paise se khushiyan kharidi nahi ja sakti...:)
जवाब देंहटाएंसत्य वचन, मुकेश जी
हटाएंअब लिखे भी तो क्या इस कहानी के बारे में ..शुरुवात में लगा की कुछ जादा ही सेंटी टाइप्स होगा।। थैंक गॉड कहानी पूरी होते होते सब कुछ ट्रैक पे ..:)
जवाब देंहटाएंजानकार संतोष हुआ कि आपको कहानी के अंत से निराशा नहीं हुई.
हटाएंहमेशा की तरह बहुत अच्छी कहानी है
जवाब देंहटाएंसच है बच्चे दूर हो जाएन तो कुच भी अच्छा नहीं लगता है मन लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है !
शुक्रिया इस्मत,
हटाएंपर बच्चों के सुखद और उज्जवल भविष्य के लिए कई बार मन को समझाना भी पड़ता है.
किसी के बाहरी जीवन को देख हम कितने अनुमान लगा बैठते हैं,आंतरिक अव्यवस्थित रूप को नज़रअंदाज कर देते हैं ..... कहानी नहीं .... यह एक खुली किताब सी ज़िन्दगी है
जवाब देंहटाएंअन्दर का दुःख अक्सर लोग एक खिली मुस्कान से ढँक लेते हैं.
हटाएंकहानी तो बहुत लोग लिखते हैं लेकिन, इस विधा में निपुण हो तुम। तुम्हारी कहानियाँ सहज सरल भाषा में होतीं हैं, उनके परिवेश से हम खुद को जोड़ सकते हैं और सबसे बड़ी बात है इनमें कोई न कोई सन्देश होता है ...इसी कहानी में कई अच्छे सन्देश हैं। शालिनी का अपने जीवन की रिक्तता को एक उद्देश्यपूर्ण तरीके से भर लेना, अंजू को आत्मसंतुष्टि की पहचान होना, सुख धन दौलत में तलाशना मूर्खता है, समाज में उन बिसारे हुए बच्चों की तरफ हाथ बढाने की हिचक त्यागना इत्यादि। यह भी कि ज़रूरी नहीं है कि हर पैसे वाला स्वार्थी ही होता है। तुम्हारी कहानियों को कई बार आम धारणाओं को तोड़ते भी देखा है, जो बहुत अच्छी बात है। कुल मिला कर कहानियों के रूप में पाठकों को कुछ धनात्मक सन्देश देने का एक सार्थक प्रयास दीखता है तुम्हारे ब्लॉग में।
जवाब देंहटाएंबहुत अपनी सी लगी कहानी, और शीषक को कमाल लगा, बधाई कबूलो मैडम :)
बहुत बहुत शुक्रिया सपना कि कहानी अच्छी लगी तुम्हें.
हटाएंसन्देश वगैरह तो तुमलोग ढूंढ कर बता देते हो, हम तो बस लिख जाते हैं, सोच कर कब लिखा कुछ .
और जहाँ तक शीर्षक की बात है...क्रेडिट आपको जाता है, मैडम. मैं तो आशंकित थी. स्वीकृति की मुहर तुमने लगाई....सो बधाई तुम रख लो :)
मानवीय संवेदनाओं से भरपूर एक बहुत ही खूबसूरत कहानी जैसे हर पात्र , हर घटना , हर अनुभूतिआँखों के सामने चलचित्र सी गुज़र रही है ! शालिनी से ना जाने कितने लोग हैं जिनके अंतर की व्यथा वेदना को समझने के लिये उन्हें भी किसी अंजू की ज़रूरत है ! मन भर आया कहानी पढ़ कर !
जवाब देंहटाएंसाधना जी,
हटाएंहमेशा ही आपकी सार्थक टिपण्णी कहानी पर बहुत कुछ कह जाती है.
बहुत बहुत शुक्रिया
किसी ने सही कहा है - दूर के ढोल सुहावने लगते हैं । असल में तो सबके जीवन की कई खट्टी मीठी कहानियाँ होती हैं कुछ सामने कुछ पर्दे के पीछे :-)
जवाब देंहटाएंपहले तो सुस्वागतम मीनाक्षी दी.
हटाएंबड़े दिनों बाद आपका ब्लॉग पर आना सुखद लगा.
परदे के पीछे की कहानियों को कौन जान पाता है .
फर्स्ट हाफ में लगा शालिनी वाला रोल हमारा.....फिर लगा नहीं नहीं...अंजू वाला हमारा....
जवाब देंहटाएंयाने सब अच्छा अच्छा....घर संवरा भी...बच्चों से भरा भी...
:-)
बहुत प्यारी कहानी है रश्मि...अपने आस पास ही बिखरे हो जैसे सभी पात्र.
बधाई!!
अनु
अच्छी लगी कहानी, जीवन में कई रंग होते हैं किसी के कैनवास पे कोई और तो किसी के कोई और्।
जवाब देंहटाएंऐसा ही होता दुसरो की थाली का खाना हमे ज्यादा ही दीखता है ,हमारी थाली की अपेक्षा | लेकिन जैसा हम सोचते है वैसा कुछ होता नहीं और हमे अहसास दिल जाता है की जो हमारे पास है वो भी बहुत ज्यादा है और कीमती भी ,जीवन के लिए ।जीवन मूल्यों को साथ लेकर चलती हुई सधी हुई कहानी ।
जवाब देंहटाएंबधाई
नवसंवत्सर की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपको आपके परिवार को हिन्दू नववर्ष
की मंगल कामनायें
कहते हैं न परायी थाली में खिचड़ी में घी ज्यादा पग दिखता है ...सबके अपने दुःख सुख , अपने अपने आसमान . जिसके पास जो नहीं होता , उसकी क़द्र भी उसे ही अधिक होती है !
जवाब देंहटाएंसहज भाव में रची अच्छी लगी कहानी !
जो नहीं होता होता उसको पाने कि चाह रहती ही रहती है.. सुंदर द्रष्टिकोण भावपूर्ण कहानी.
जवाब देंहटाएंहर इंसान को दूसरा ज़्यादा सुखी-सम्पन्न नज़र आता है. उसके दुख, उसकी ज़रूरतें तो साथ रहने पर ही समझ में आती हैं. सुन्दर कहानी. बधाई.
जवाब देंहटाएंwaaaaah didi...bahut achhi lagi kahaani....
जवाब देंहटाएंmujhe to lag raha hai ki jaise zamaane baad aapki koi kahani padhi hai maine....:)