नरेश चंद्रकर जी एक प्रतिष्ठित कवि हैं.
कुछ ज्ञात नहीं
पर, इतना जानता हूॅं
तभी लगा मुझे :
स्त्रियों के कंठ में रुंधी
कि कबाड़ हो सके
तो हमें लग सकती है
उस लड़की की याद
वह याद की जा सकती थी
बहुत बोलते बोलते ऊब जाने पर
वह याद की जा सकती थी
आज उस जैसी लड़की को
तब
वस्तुओं में तकलीफें
नरेश चंद्रकर जी की कुछ और कवितायें यहाँ पढ़ी जा सकती हैं.
पत्र पत्रिकाओं में उनकी कवितायें नियमित रूप से प्रकाशित होती हैं.
दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं
'बातचीत की उडती धूल में (२००२)
बहुत नर्म चादर थी जल से बुनी (२००८)
उन्हें 'गुजरात साहित्य अकादमी सम्मान '
एवं 'मंडलोई सम्मान' से सम्मानित किया जा चुका है
और हमारे लिए गर्व की बात है कि इतने प्रतिष्ठित कवि को मित्र कहने का गौरव प्राप्त है हमें . इस महिला दिवस को उन्होंने एक बहुत ही ख़ूबसूरत कविता के साथ मुझे महिला दिवस की शुभकामनाएं दीं.
पर, ठोस कुछ करती हुई
नदी के पास से होते हुए घर लौट रहा हूँ
मछलियाँ जबकि अपने ही घर में हैं
छोटी-बड़ी, रंगवाली, पंखोंवाली सब तरह की मछलियाँ
हैं अपने ही आवास में
विचरती पारदर्शी, लहर-दीवारों के आर-पार
मछलियाँ जबकि अपने ही घर में हैं
छोटी-बड़ी, रंगवाली, पंखोंवाली सब तरह की मछलियाँ
हैं अपने ही आवास में
विचरती पारदर्शी, लहर-दीवारों के आर-पार
वे हैं इसलिए जल स्वच्छ है
नदियाँ सुंदर है
बह रही है हवा की उँगलियों का स्पर्श ले-लेकर
नदियाँ सुंदर है
बह रही है हवा की उँगलियों का स्पर्श ले-लेकर
घर ओर तमाम दुनिया में रहने वाली स्त्रियों के बारे में सोचता हूँ
वे चुपचाप हैं
चलती भी हैं तो बे-आवाज
चलती भी हैं तो बे-आवाज
पर, ठोस कुछ करती हुई।।
पर हम तो जनम के लालची ठहरे . हमने झट से फरमाइश कर दी कि अपनी कुछ और स्त्री विषयक कवितायें , हमें पढवाएं और उनकी अनुमति हो तो मैं इस कविता के साथ,उन कविताओं को अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना चाहूंगी.
उन्होंने सहर्ष अपनी कई कवितायें भेज दीं . बहुत बहुत शुक्रिया नरेश जी.
नरेश जी की कवितायें स्त्री-मन के भीतरी तहों तक झाँक लेती हैं . उपरी शांत समतल सतह के भीतर हो रही गहरी हलचल को बहुत सरलता से बयान कर देती हैं.
स्त्रियों की लिखी पंक्तियाँ
एक स्त्री की छींक सुनाई दी
कल मुझे अपने भीतर
वह जुकाम से पीड़ित थी
कि नहाकर लौटी थी
कि आलू बघारे थे
कुछ ज्ञात नहीं
पर, इतना जानता हूॅं
काम से निपटकर कुछ पंक्तियाँ लिखकर
वह सोई
तभी लगा मुझे :
स्त्रियों के कंठ में रुंधी
असंख्य पंक्तियाँ हैं, अभी भी
जो या तो नष्ट हो रही है
या लिखी जा रही है
तो सिर्फ ऐसे कागज़ पर
कि कबाड़ हो सके
कभी पढ़ी जाएंगी
वे मलिन पंक्तियाँ
तो हमें लग सकती है
सुसाईट नोट की तरह !!
उस लड़की की याद
उस लड़की की याद
उस लड़की की याद
किसी तस्वीर,
किसी दिन
या किसी फिल्म
या किसी किस्से के आधार पर
संभव नहीं थी
वह याद की जा सकती थी
बहुत बोलते बोलते ऊब जाने पर
बहुत काम करते करते थम जाने पर
बहुत गहरे में दु:ख दर्द को झेलते रहने पर
बहुत किल्लत की ज़िदगी जीने पर
वह याद की जा सकती थी
इन सभी की तरह से
आज उस जैसी लड़की को
जब मैंने
मजदूरनियों के झुंड के पीछे-पीछे चलते
कुछ गुनगुनाते
सुबह-सुबह कहीं जाते देखा
तब
वह मुझे बहुत याद आई!!
इन दिनों के दृश्य
तेज चलती बाइक और
बाईक पर सटकर बैठे देख कर
यह नहीं लगता -
यह पिटी हुई औरत है
या घर लौटकर पिट जाएगी
अपमानित की जाएगी
लानत मलानत में डूबेगी आकंठ
बहुत गड्ड-मड्ड हुई है
इन दिनों के दृश्य में
केवल इतनी इच्छा
दुनिया में कहीं भी हों
बच्चे नहीं रोंए,
सुख चैन से भर रात
घर की नींद
स्त्रियॉं सोए!!
विलय
पहले भी जानता था
पेट डोलता है
धीमे चलना होता है
उठाने होते हैं सधे क़दम
पर आज पहली बार जाना
कभी-कभी
उल्टे भी लेटना चाहती हैं
गर्भवती स्त्रियाँ,पहली बार
छोटी-मोटी इच्छाओं का
देखा बड़े सपनों में विलय!!
पेट डोलता है
धीमे चलना होता है
उठाने होते हैं सधे क़दम
पर आज पहली बार जाना
कभी-कभी
उल्टे भी लेटना चाहती हैं
गर्भवती स्त्रियाँ,पहली बार
छोटी-मोटी इच्छाओं का
देखा बड़े सपनों में विलय!!
नज़र उधर क्यों गई ?
वह एक बुहारी थी
सामान्य –सी बुहारी
घर घर में होने वाली
सडक बुहारने वालियों के हाथ में भी होने वाली
केवल
आकार आदमकद था
खडे –खड़े ही जिससे
बुहारी जा सकती थी फर्श
वह मूक वस्तु थी
न रूप
न रंग
न आकर्षण
न चमकदार
न वह बहुमूल्य वस्तु कोई
न उसके आने से
चमक उठे घर भर की ऑंखें
न वह कोई एन्टिकपीस
न वह नानी के हाथ की पुश्तैनी वस्तु
हाथरस के सरौते जैसी
एक नजर में फिर भी
क्यों चुभ गई वह
क्यों खुब गई उसकी आदमकद ऊंचाई
वह ह्दय के स्थाई भाव को जगाने वाली
साबित क्यों हुई ?
उसी ने पत्नी-प्रेम की कणी ऑंखों में फंसा दी
उसी ने बुहारी लगाती पत्नी की
दर्द से झुकी पीठ दिखा दी
उसी ने कमर पर हाथ धरी स्त्रियों की
चित्रावलियां
पुतलियों में घुमा दी
वह वस्तु नहीं थी जादुई
न मोहक ज़रा-सी भी
वह नारियली पत्तों के रेशों से बनी
सामान्य -सी बुहारी थी केवल
पर,उसके आदमकद ने आकर्षित किया
बिन विज्ञापनी प्रहार के
खरीदने की आतुरता दी
कहा अनकहा कान में :
लंबी बुहारी है
झुके बिना संभव है सफाई
कम हो सकता है पीठ दर्द
गुम हो सकता है
स्लिपडिस्क
वह बुहारी थी जिसने
भावों की उद्दीपिका का काम किया
जिसने संभाले रखी
बीती रातें
बरसातें
बीते दिन
इस्तेमाल करने वालों की
चित्रावलियां
स्मृतियां ही नहीं
उनकी तकलीफें भी
जबकि वह बुहारी थी केवल ! !
नरेश चंद्रकर जी की कुछ और कवितायें यहाँ पढ़ी जा सकती हैं.
बहुत सुन्दर रचनाये...
जवाब देंहटाएंबार बार पढ़ीं....
बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि इस अनमोल खजाने को साझा करने के लिए.
ढेर सारी बधाई नरेश जी को भी....
सस्नेह
अनु
प्रासंगिक भाव जो गहरी अभिव्यक्ति लिए हैं |
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ प्रभावित करती हैं ...
bahut kuchh ankaha sa kahti huin kavitayen..
जवाब देंहटाएंस्त्रियों के अंतर्मन में झाँक लेती है नरेन्द्र जी की कवितायेँ . अच्छा लगता है पुरुष की कलम से स्त्रियों के मन की बातों को पढना !
जवाब देंहटाएंआभार !
वाह!! बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंनदी के पास से होते हुए घर लौट रहा हूँ
जवाब देंहटाएंमछलियाँ जबकि अपने ही घर में हैं
-गज़ब!!
बहुत बढिया पोस्ट. इतनी सुन्दर कविताएं पढवाने के लिये शुक्रिया रश्मि.
जवाब देंहटाएंनारी मन को बाखूबी समझ के लिखी सभी रचनाएँ ... नरेश जी की कलम लाजवाब है ...
जवाब देंहटाएंबधाई ओर शुक्रिया पढवाने के लिए ...
नरेश जी की सभी कवितायें बहुत प्रभावशाली लगीं हैं । मुझे ख़ास करके आखरी कविता बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंतेरा थैंक्स इनको साझा करने के लिए।
इसे कहते हैं कविता को जीना और अपने अंदर उसकी भावनाओं को जन्म देना जिसके विषय में कविता लिखी गयी हो.. बहुत ही संवेदनशील कवि से परिचय करवाया आपने रश्मि जी!!
जवाब देंहटाएंभावनाओं के सुगढ़ जाल बुनती हुयी कवितायें।
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriya didi...in kavitaaon ko padhwane ke liye....aur narendra ji se milwaane ke liye...
जवाब देंहटाएंhar ek kavita behad prabvhavshaali aur behad khoobsurat lagi....
रश्मी जी बेहद ही सरल पंक्तियों में काफी कुछ कहा है चंद्रकर जी ने। आपका अभार उनकी कविता से परिचय कराने के लिए। आजकल सीधे शब्दों में बातें कही जा रही है औऱ इसका ही एक उदाहरण है चंद्रकर जी कि कविताएं। इसी तरह की कविताएं लोगो को अक्सर समझ भी जाती है। फिर लगता है कि अऱे ये तो हमारे आसपास ..या हमारे साथ रहने वाली स्त्री की कहानी है...।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी ,कविताओं तक बहुत कम लोग पहुँचते हैं ! परंतु फिर भी आपके सौजन्य से इतने सारे साथियों ने मेरी कविताएं पढ़ी !
जवाब देंहटाएंअत: सोचता हूँ ,आपके प्रति और अनु/Udan Tashtari/डॉ. मोनिका शर्मा/दिगम्बर नासवा/शारदा अरोरा// वन्दना अवस्थी दुबे/स्वप्न मञ्जूषा/प्रवीण पाण्डेय/abhi/rohitash kumar/वाणी गीत के प्रति किन शब्दो मे धन्यवाद करूँ ....
अपनी पूरी विनम्रता के साथ आप सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ ....... ठीक वैसे ही जैसे कोई फूल बागबाँ के प्रति व्यक्त कहता होगा
नरेश की कविताएं चाहे जिन विषयों पर हों, होती हैं धार-दार। बहुत बधाई रश्मि इस आवश्यक कृत्य के लिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रश्मि.......नरेश की इतनी सुन्दर कविताएं पढवाने के लिए\
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