पहले भी अखबारों की कुछ ख़बरें...शेयर करती आई हूँ...आज ही Mumbai Mirror में कुछ ऐसा पढ़ा कि लगा...ऐसी ख़बरें लोगो के सामने आनी चाहिए .
इसका एक पक्ष तो दुखद सा कटु सत्य है. अंग्रेजों के इतने साल की गुलामी की वजह से गोरे रंग के प्रति हमारी रुझान आज भी बनी हुई है. ढेर सारे विज्ञापन भी यही कहते हैं.Fair is Lovely .सामने से जो भी कहें लोग, पर मन ही मन हर कोई एक अदद गोरी बीवी और गोरे बच्चों की कामना रखता ही है. (यहाँ महिलाओं के विषय में जरूर कहूँगी...कि वे लोग TDH (tall,dark and handsome )पर ही रीझती रहीं हैं और उन्हें पति के सांवले सलोने होने से कोई शिकायत नहीं होती है }
इस गोरे रंग के प्रति आकर्षण ने एक महिला का जीवन नरक कर डाला. मई 2005 में मुंबई निवासी सत्ताईस वर्षीय लक्ष्मण शिंडे का विवाह हुआ. शादी के तुरंत बाद ही शिंडे अपनी पत्नी को उसके गहरे रंग की वजह से सताने लगा. उसका लोगो के सामने उपहास उड़ाता. कई बार घर से भी निकालने की कोशिश की. पर वो महिला दूसरी लाखों भारतीय महिलाओं की तरह सारी प्रताड़ना चुपचाप सहती रही. परन्तु पत्नी के काले रंग ने शिंडे को उस से शारीरिक सम्बन्ध बनाने से नहीं रोका. लेकिन अगर पत्नी गर्भवती हो जाती तो वह उसे दवा देकर...उसका गर्भपात करवा देता क्यूंकि उसे डर था, उसके बच्चे भी काले रंग के होंगे और ये उसे बर्दाश्त नहीं था. बार-बार गर्भपात से उस महिला का स्वास्थ्य गिरने लगा.
उसके बिगड़ते स्वास्थ्य का कारण उसके ससुर को पता चला. उन्होंने इसका विरोध किया और बेटे को समझाना चाहा....बेटे ने उन्हें धमकी दी...पर उन्हें लगा, ऐसे तो उनकी पुत्रवधू जीवित नहीं बचेगी और उन्होंने उसे अपने मायके भेज दिया. करीब एक साल तक वो मायके में रही..उसके पति ने उसकी कोई खोज-खबर नहीं ली. फिर दोनों परिवारों के बुजुर्ग लोगो के समझाने पर अच्छे व्यवहार का वायदा कर,शिंडे अपनी पत्नी को अपने घर लिवा गया. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. पर फिर जल्द ही उसके रंग को लेकर प्रताड़ना शुरू हो गयी. और जब वो फिर से गर्भवती हुई तो उसपर गर्भपात के लिए दबाव डालने लगा.
उक्त महिला अपने मायके आ गयी. २००७ में उसने एक बच्ची को जन्म दिया. सबको लगा,बच्ची के जन्म के बाद,शायद वह बदल जाएगा...पर उनकी आशाएं निर्मूल साबित हुईं. शिंडे ने पत्नी और बच्ची से कोई सम्बन्ध नहीं रखा. फिर भी उक्त महिला और उसके परिवार वाले सोचते रहे कि कुछ दिनों बाद शायद उसे अक्ल आ जाए और वो अपनी पत्नी को स्वीकार कर ले.
पर कुछ ही दिनों पहले शिंडे ने दूसरी शादी कर ली. अब महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी है. इन सबमे एक सुखद बात ( जिसने इस पोस्ट को लिखने को प्रेरित किया) ये है कि.उक्त महिला के ससुर ने अपने परिवार वालों की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपने बेटे के विरुद्ध गवाही दी है. पुलिस से कहा है कि..."बेटे ने अपनी पत्नी को बहुत प्रताड़ित किया है और उसे सजा मिलनी चाहिए."
फिलहाल...लक्षम शिंडे फरार है और उसपर 'अपनी पत्नी को प्रताड़ित करने के'...'ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के'...'दूसरी शादी करने के '...'बिना पत्नी की सहमति के जबरदस्ती गर्भपात करवाने के' आरोप लगाए गए हैं. पुलिस ने उसे जल्द ही पकड़ लेने का दावा किया है.
लक्षमण शिंडे पता नहीं कब पकड़ा जाएगा....उसके केस की सुनवाई कितने सालों के बाद होगी...कहा नहीं जा सकता. पर एक ससुर ने आगे बढ़कर अपने बेटे के खिलाफ गवाही दी है. यह एक स्वागतयोग्य दृष्टांत है.
इसका एक पक्ष तो दुखद सा कटु सत्य है. अंग्रेजों के इतने साल की गुलामी की वजह से गोरे रंग के प्रति हमारी रुझान आज भी बनी हुई है. ढेर सारे विज्ञापन भी यही कहते हैं.Fair is Lovely .सामने से जो भी कहें लोग, पर मन ही मन हर कोई एक अदद गोरी बीवी और गोरे बच्चों की कामना रखता ही है. (यहाँ महिलाओं के विषय में जरूर कहूँगी...कि वे लोग TDH (tall,dark and handsome )पर ही रीझती रहीं हैं और उन्हें पति के सांवले सलोने होने से कोई शिकायत नहीं होती है }
इस गोरे रंग के प्रति आकर्षण ने एक महिला का जीवन नरक कर डाला. मई 2005 में मुंबई निवासी सत्ताईस वर्षीय लक्ष्मण शिंडे का विवाह हुआ. शादी के तुरंत बाद ही शिंडे अपनी पत्नी को उसके गहरे रंग की वजह से सताने लगा. उसका लोगो के सामने उपहास उड़ाता. कई बार घर से भी निकालने की कोशिश की. पर वो महिला दूसरी लाखों भारतीय महिलाओं की तरह सारी प्रताड़ना चुपचाप सहती रही. परन्तु पत्नी के काले रंग ने शिंडे को उस से शारीरिक सम्बन्ध बनाने से नहीं रोका. लेकिन अगर पत्नी गर्भवती हो जाती तो वह उसे दवा देकर...उसका गर्भपात करवा देता क्यूंकि उसे डर था, उसके बच्चे भी काले रंग के होंगे और ये उसे बर्दाश्त नहीं था. बार-बार गर्भपात से उस महिला का स्वास्थ्य गिरने लगा.
उसके बिगड़ते स्वास्थ्य का कारण उसके ससुर को पता चला. उन्होंने इसका विरोध किया और बेटे को समझाना चाहा....बेटे ने उन्हें धमकी दी...पर उन्हें लगा, ऐसे तो उनकी पुत्रवधू जीवित नहीं बचेगी और उन्होंने उसे अपने मायके भेज दिया. करीब एक साल तक वो मायके में रही..उसके पति ने उसकी कोई खोज-खबर नहीं ली. फिर दोनों परिवारों के बुजुर्ग लोगो के समझाने पर अच्छे व्यवहार का वायदा कर,शिंडे अपनी पत्नी को अपने घर लिवा गया. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. पर फिर जल्द ही उसके रंग को लेकर प्रताड़ना शुरू हो गयी. और जब वो फिर से गर्भवती हुई तो उसपर गर्भपात के लिए दबाव डालने लगा.
उक्त महिला अपने मायके आ गयी. २००७ में उसने एक बच्ची को जन्म दिया. सबको लगा,बच्ची के जन्म के बाद,शायद वह बदल जाएगा...पर उनकी आशाएं निर्मूल साबित हुईं. शिंडे ने पत्नी और बच्ची से कोई सम्बन्ध नहीं रखा. फिर भी उक्त महिला और उसके परिवार वाले सोचते रहे कि कुछ दिनों बाद शायद उसे अक्ल आ जाए और वो अपनी पत्नी को स्वीकार कर ले.
पर कुछ ही दिनों पहले शिंडे ने दूसरी शादी कर ली. अब महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी है. इन सबमे एक सुखद बात ( जिसने इस पोस्ट को लिखने को प्रेरित किया) ये है कि.उक्त महिला के ससुर ने अपने परिवार वालों की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपने बेटे के विरुद्ध गवाही दी है. पुलिस से कहा है कि..."बेटे ने अपनी पत्नी को बहुत प्रताड़ित किया है और उसे सजा मिलनी चाहिए."
फिलहाल...लक्षम शिंडे फरार है और उसपर 'अपनी पत्नी को प्रताड़ित करने के'...'ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के'...'दूसरी शादी करने के '...'बिना पत्नी की सहमति के जबरदस्ती गर्भपात करवाने के' आरोप लगाए गए हैं. पुलिस ने उसे जल्द ही पकड़ लेने का दावा किया है.
लक्षमण शिंडे पता नहीं कब पकड़ा जाएगा....उसके केस की सुनवाई कितने सालों के बाद होगी...कहा नहीं जा सकता. पर एक ससुर ने आगे बढ़कर अपने बेटे के खिलाफ गवाही दी है. यह एक स्वागतयोग्य दृष्टांत है.
कैसे कैसे लोग भरे हुए है इस दुनिया में ... खैर आरोपी के पिता ने अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह ना मोड़ कर एक बेहद उम्दा मिसाल पेश की है !
जवाब देंहटाएंआपका आभार इस घटना को हम सब तक पहुँचाने के लिए !
भारतीय सभ्य परिवारों में हमेशा ही बहु का पक्ष लिया जाता रहा है। लेकिन एक ससुर ने कोर्ट के समक्ष भी बहु का पक्ष लिया यह हमारी परिवार संस्था की सुदृढ़ता का ही परिचय है। ऐसे व्यक्तित्व को नमन।
जवाब देंहटाएंआज के दौर में ऐसे समाचार समाज को परिवार और रिश्तों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण देते हैं..शुक्रिया रश्मि..
जवाब देंहटाएंnihsandeh yah ek prashansniy kadam hai... sach ka saath to diya
जवाब देंहटाएंसच मे सराहनीय कदम है अगर सब ऐसे होने लगे तो सबकी ज़िन्दगी सुधरने लगे।
जवाब देंहटाएंbahut acha issue uthya hai aapne, agar wakai sabhi log sahi ke saath khade hone lage to ye samaj aur behtar hoga
जवाब देंहटाएंरोंगटे खड़े हो गए इस पोस्ट को पढ़कर। ऐसे लोगों को सरे आम सज़ा मिलनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंससूर को नमन।
इस केस में ससुर का रोल सराहनीय है । हालाँकि कहीं न कहीं उसकी कमजोरी भी है कि वह अपने बेटे को सुधार नहीं पाया ।
जवाब देंहटाएंउन्हें नमन ....उनका यह कदम सराहनीय और अनुकरणीय है ....
जवाब देंहटाएंरश्मि जी! आज फिर प्रेमचंद के एक कालजयी लेखक होने का एक और प्रमाण मिल गया..पञ्च के पदपर बैठकर न कोइ मित्र होता है,न शत्रु.. न पिता न पुत्र.. शिंदे जी ने वास्तव में एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है समाज के सामने.. लक्षमन शिंदे आज नहीं तो कल पकड़ा ही जाएगा!
जवाब देंहटाएंहमेशा पुरुषों के विरुद्ध आवाज उठाने वाले पुरुष विरोधी /निंदक इस खबर से यह तो सीख ले ही सकते हैं कि न तो सभी पुरुष अधम होते हैं और हाँ प्रकारांतर से नारियां भी सभी बुरी नहीं होतीं .....यह समाज अच्छे लोगों के कारण भी वजूद में है ...समाज के एक सकारात्मक पहलू को हमारे सामने लाने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंरश्मि जी
जवाब देंहटाएंआज सुबह ही ये खबर पढ़ी और ससुर के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा किन्तु काश वो अपने बेटे का दूसरा विवाह न होने देता कम से कम दो महिलाओ और उसकी एक बेटी का जीवन बर्बाद न होता | अभी तक तो ससुर ने सिर्फ पुलिस स्टेशन तक बयान दिया है वो कोर्ट तक बहु का पक्ष लेता रहे यही कमाना है क्योकि ऐसे केस में पहले तो लोग सच का साथ देते है किन्तु बाद में परिवार समाज आदि के दबाव में कोर्ट में बयान बदल देते है | अपने बयान पर कायम रहने की उन्हें हिम्मत मिलती रहे , मेरी तरफ से उन्हें शुभकामना |
मुझे लगता है बात केवल प्रताड़ना भर की नहीं है। लक्ष्मण मुझे मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति लगता है। जिसके मन में काले रंग को शायद कोई ग्रंथि बचपन से या अपने परिवेश से घर कर गई है। उस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया है।
जवाब देंहटाएं*
मुझे यह भी लगता है हर पिता को ऐसी गवाही देनी ही चाहिए। सच तो यह है कि यहां तक बात पहुंचे उसके पहले ही सामने आना चाहिए। और अगर पिता या मां ऐसा नहीं कर रहे हैं तो वे अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं। निसंदेह ऐसे लोगों को नमन करें। लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि जो यह नहीं कर रहें हैं उनको धिक्कारा जाए।
*
मुझे यह भी लगता है कि ऐसे कदमों को हम असामान्यता या अभूतपूर्वता या महानता का जामा पहनाने से भी बचें। कोई ऐसा करने से उस कदम को ऐसा बना देंते हैं कि वह साधारण आदमी के वश की बात लगती ही नहीं।
अच्छा लगा पढकर कि 'ससुर' ने बहु का साथ दिया और अन्याय के विरुद्ध खड़ा हुआ.
जवाब देंहटाएंलक्ष्मण शिंदे की सोच,संस्कार और उसकी उस महिला से शादी में ससुर की कहीं न कहीं जिम्मेवारी बनती थी.जिसको उसने पुत्र के विरुद्ध जाकर निभाया तो एक प्रकार से पश्चाताप भी माना जा सकता है.
मेरी नई पोस्ट 'सीता जन्म- आध्यात्मिक चिंतन-१'पर आपका स्वागत है.
@अंशुमाला जी एवं राकेश जी,
जवाब देंहटाएंमेरी भी यही कामना है कि उस महिला के ससुर अपने कथन(statement ) से ना मुकरें.
हो सकता है..उन्हें पुत्र की दूसरी शादी की बात पता ना हो...या शायद हो भी...यह भी कहा जा सकता है कि पुलिस से अपने बचाव के लिए भी उन्होंने ऐसा स्टेटमेंट दिया हो.
फिर भी उन्होंने, पहले भी अपनी पुत्रवधू का साथ दिया और आज भी उसके साथ खड़े हैं...इस से नाकारा नहीं जा सकता.
यह कोई बहुत महान घटना नहीं है...पर हमारे समाज में ऐसे उदाहरण ना के बराबर हैं....इसलिए स्वतः ही ये साधारण सी घटना विशेष हो उठती है
@राजेश जी,
जवाब देंहटाएंमेरी इच्छा थी कि लोग काले-गोरे रंग के विभेद पर भी विमर्श करें...सिर्फ ससुर के पुत्रवधू का पक्ष लेने पर ही नहीं. आपका ध्यान इस तरफ गया,....शुक्रिया
सिर्फ लक्ष्मण शिंडे क्या... हमारे समाज के ९०% लोग इस मानसिकता के शिकार नहीं हैं?? शादी के लिए तैयार किए गए किसी भी लड़की का प्रोफाइल देख लीजिये . गोरी होगी तो शायद बोल्ड शब्दों में लिखा होगा...और गोरेपन की इतनी परिभाषा मैने इस से इतर कहीं और नहीं देखी..कहीं लिखा होता है...'मिल्की व्हाईट' ....'गोरी'...'साफ़ रंग' ...वगैरह वगैरह
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद एक मित्र ने पच्चीस साल पहले कि एक घटना का जिक्र किया...जहाँ उनकी एक रिश्ते की बहन को उसके पति ने उसके गहरे रंग की वजह से ज़हर दे दिया. रसूख वाले लोग थे...मामला दबा दिया गया .पर आज इतने सालों बाद भी लोगो की सोच वही है.
इतने सारे गोरेपन की क्रीम का उत्पादन...बिक्री ऐसी ही मानसिकताओं का परिचायक है.
और इस मानसिकता को दूर करने का सिर्फ और सिर्फ एक ही तरीका है...लड़कियों की उच्च शिक्षा और उन्हें आत्म निर्भरता .
प्रसंगवश एक सुखद घटना का जिक्र कर रही हूँ. एक रिश्तेदार की बेटी, गहरे रंग की थी..और साधारण शक्ल सूरत वाली.पूरा खानदान उस पर और उसके माता-पिता पर तरस खाता..."इस लड़की की शादी कैसे होगी?" जब उसका एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए चयन हो गया तो लोगो ने दिलासा दिया.."चलो अब तुम्हारी बेटी की कहीं शादी तो हो जाएगी"
आज एम.बी.ए. करने के बाद वो लड़की एक उच्च प्रतिष्ठान में पदस्थ है..और एक से एक सजीले उच्च पद पर आसीन युवक उससे शादी को उत्सुक हैं. उन्हें उसका गहरा रंग और शक्ल-सूरत कुछ नज़र नहीं आ रहा, बस सीरत (शायद पैसा भी) नज़र आ रहा है. उसके माता-पिता को अब ये सरदर्द है कि किसे चुनें.
आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है.
जवाब देंहटाएंकाले गोरे का भेद हमारी जड़ों में समा गया है.
जिम्मेदारी की उम्दा मिसाल. रिश्तों की सही पहचान.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता हे यह लक्षम शिंडे पागल हे, जो ऎसी हरकते करता था, ससुर ने बहू का साथ दिया बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंरश्मि जी
जवाब देंहटाएंमैंने सोचा इस पर कुछ लिखू किन्तु डर लगा कही ऐसा तो नहीं की मै पोस्ट का रुख दूसरी तरफ मोड़ दू | काले और गोरे रंग पर समाज की सोच से कितना कष्ट होता है वो मै खूब समझती हूँ मेरा रंग गोरा नहीं है जबकि बिटिया बिलकुल गोरी है मै आप को गिनती नहीं बता सकती लोगो की जो मुझसे पूछते है की आप ने क्या किया था या क्या खाया था जो आप को इतनी गोरी बेटी हुई है शुरू में दुख होता था क्योकि कही न कही ये मेरा गोरा रंग न होने का मजाक भी था बस खीज आती थी और लोगो की सोच पर तरस भी बचपन में मेरी बेटी को हर किसी को देख कर मुस्कराने की आदत थी अजनबियों को भी देख मुस्कराती थी मुझे लगता था क्या किसी को इसकी मासूम मुस्कान नहीं दिखती कोई ये क्यों नहीं पूछता की क्या किया या खाया था की इतनी हसमुख बेटी हुई है सभी बस उसका रंग ही देखते है | सोच यही ख़त्म नहीं हुई जब मेरी बेटी ने रेस में पहला स्थान पाया और मैंने बड़ी ख़ुशी से सभी को ये बताया तो कुछ लोग मुझे राय दे रहे है बेटी को इतना धुप में अभी से भेजोगी तो उसका रंग चला जायेगा यदि मैदान में गिर गई चहरे पर कुछ हो गया तो | आप को बताऊ ये सब सुन सुन कर मेरी मात्र चार साल की बेटी पर भी इसका असर हो गया है एक दिन उसने किसी के बारे में कह दिया की वो अच्छा नहीं है क्योकि उसका रंग काला है और मै गोरी हु ना तो अच्छी हूँ | ये तो अच्छा हुआ की उसने ये बात कह दी जिससे मुझे पता चल गया की उसके मन में क्या बैठता जा रहा है आज उसकी इस सोच को मन से निकालने के लिए अभी से मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ा रही है | आज जब कोई भी ये कहने का प्रयास करता है तो मै उसे बिच में ही टोक देती हूँ की मासूम सी दिखती बेटी बड़ी शैतान है कम से कम वो शब्द मेरी बेटी के कानो में जाना बंद हो | राजेश जी जिस बचपन से पली ग्रंथि की बात कर रहे है वो यही है जो समाज लोग बचपन से ही सभी के मन में बैठा देते है यदि माँ बाप अपनी जिम्मेदारी से इसे न रोके तो नतीजा ऐसा ही होता है जैसा की इस घटना में हुआ है |
greatness to hai - maani jaaye ya na maani jaaye - sahi ya galat apni jagah hai - aur apne bete ke khilaf gavaahi apni jagah ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट .सामाजिक मुद्दा बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है आपने .इन लक्ष्मण शिन्दों को इलाज़ की ज़रुरत है .साथ ही यह गोरा और काला भूस्थल आकृति से जुड़ा खेल है .मेलेनिन(मिलेनिनएक हारमोन है जो चमड़ी के नीचे सूरज की प्रखर किरणों के पड़ने से बनता है )का आलेख है .सूरज का लेखा है ।
जवाब देंहटाएंससुर साहब पिता के रोल में आये पुत्र वधु के लिए .नजीर बने यह आइन्दा के लिए .शिंदे जैसे सनके हुए लोगों के लिए जो अभी जैविक विकास के पशु पायेदान पर ही खड़े हैं .
काले और गोरे के विभेद का शिकार मैं स्वयं भी हुआ हूं। संयोग से अपने चार भाई बहनों में मेरा रंग सांवला नहीं बल्कि काले की गिनती में ही आता है। मुझ से छोटे तीनों भाई बहनों का रंग गोरा है। कई बार ऐसा होता था कि जो परिचित नहीं थे,वे मुझे घर का नौकर ही समझ लेते थे। लेकिन मैंने इस ग्रंथि को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।
जवाब देंहटाएं*
और सबसे मजे की बात यह है कि विवाह के लिए सबसे पहले जिस लड़की ने मुझे और मैंने उसे पसंद किया वह श्यामवर्ण ही थी। पर संयोग(या कहूं कि दुर्योग)कुछ ऐसा हुआ कि वहां विवाह हुआ ही नहीं।
@अंशुमाला जी ,
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही फरमाया आपने....लोगो की यही सोच है.
आपको विशेष मेहनत करनी पड़ रही है कि बेटी के दिमाग में यह बात ना घर कर जाए कि वो बहुत सुन्दर है...उसका एक सामान्य बच्ची की तरह विकास हो. काश, हर माता-पिता की सोच आप जैसी ही हो...और वे अपने बच्चे के गोरे रंग पर इतरायें नहीं.
ऐसा नहीं है...कि गोरे रंग वालों के लिए सब कुछ रोज़ी रोज़ी सा सुखद ही होता है. एक सहेली की शादी में कुछ देर हुई...उसके परिवार वालों को ये ताने सुनने को मिले.."आपकी बेटी तो गोरी है..उसकी शादी क्यूँ नहीं हो रही??" यानि किसी तरह भी निस्तार नहीं.
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला ?ये गोरे रंग का रोना तो वह भी रो गया जिसके बारे में कहा गया -
जवाब देंहटाएंश्याम रंग में रंगी चुनरिया अब रंग दूजो भावे न ,
जिन नैनं में शाम बसें हैं और दूसरो आवे न ।
पहले इन बंदिशों को बदलना होगा हालाकी गाया यह भी गया है -
गोरे रंग पे न इतना गुमान कर गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा .
ये काले गोरे का भेद आलमी स्तर पर भी रहा है .इनाक पोवेल जैसों का मानसिक दिवालिया पन जग ज़ाहिर हुआ .आप जानतें हैं -ओबामा साहब ने ओसामा का खात्मा किया कोई गोरा प्रेसिडेंट यह करता अमरीकी ज़मीन सर पे उठा लेते .हमने कई मर्तबा और कई लोगों से इस विषय में बात की -वही ल्युक वार्म सा कमेन्ट -गुड !इट्स गुड !और बस कुछ नहीं ।
लड़के के पिता को सलाम...लड़का तो खैर कब तक फरार रहेगा...
जवाब देंहटाएंएक पक्ष के लिए तो यही कहा जा सकता है कि पागलों की कमी नहीं, लेकिन दूसरा उजला पक्ष, प्रेरक. आस्था जगाने वाला प्रसंग.
जवाब देंहटाएंपत्नी के साथ, अजन्मे बच्चों के साथ तो अन्याय हुआ ही मगर आज के माहौल में पिता की मानवता सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंलड़की ने ससुर ने जो किया, वैसा कम ही करते हैं..सच में एक उदाहरण है..
जवाब देंहटाएं@ पोस्ट ,
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही श्वसुर की पहल अतुलनीय और प्रणम्य है !पत्नी के रंग या अन्य किसी बात पर आपत्ति थी तो सेक्स सम्बन्ध बनाना नहीं चाहिए थे! पति को सजा मिलनी ही चाहिए !
@ रंग भेद,
मानवता के विरूद्ध है सो पति को धिक्कार है !
@ एक और पहलू ,
इस प्रकरण की पृष्ठभूमि में निहित किन्हीं अन्य संभावित कारणों पर भी विचार किया जाना समीचीन होगा ...
(१) संभवतः श्वसुर ने शादी के समय अपनी मनमर्जी चलाई होगी तथा पुत्र की इच्छा का सम्मान नहीं किया होगा जिसके कारण पुत्र ने उक्त समय अपनी अनिच्छा के बावजूद पिता के दबाब में विवाह कर लिया होगा ! हमारे समाज में अक्सर ऐसा होता रहा है !
(२) श्वसुर अब अपनी बात /प्रतिष्ठा /आन के पक्ष में है !
(३) सेक्स में रंग भेद , आयु भेद और अन्य कोई भेद व्यर्थ हो जाते हैं सो पति ने विवाहिता से सम्बन्ध बनाये परन्तु प्रेम और सम्बन्ध सेक्स के इतर भी होते हैं !
(४) जीवन साथी / मित्र की त्वचा के विशिष्ट रंग को लेकर आग्रह / पूर्वाग्रह होने तो नहीं चाहिए पर होते हैं इसके कारण अनेक हैं जिनपर पृथक से चर्चा की जा सकती है ! प्रकरण में उल्लिखित वर की मानसिकता को समझने के लिए समीर लाल की पिछली पोस्ट पढ़ी जाए http://udantashtari.blogspot.com/2011/06/blog-post_27.html
(५) कथन अभी शेष है !
पिता परिवार को न्याय अवश्य दिलायेंगे।
जवाब देंहटाएंयही होना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
ऐसे अक्ल के अंधों का सामाजिक बहिष्कार भी होना चाहिए...
जवाब देंहटाएंलेकिन क्या करें हमारे देश में शाहरुख ख़ान जैसे पैसे के पीर भी गोरे होने की क्रीमों के एड में भ्रामक प्रचार करते रहते हैं, जैसे सांवला होना कोई बहुत बड़ा गुनाह है...ऐसे एड्स को रोकने के लिए न तो सरकार का ध्यान जाता है और न ही एडवरटाइजिंग काउसिंल ऑफ इंडिया कोई कदम उठाती है....
जय हिंद...
डा.अमर कुमार की मेल से प्राप्त टिप्पणी
जवाब देंहटाएंसँभावनायें अनन्त हैं,
जो श्वसुर अब तक के घटनाक्रम से अपने को असँपृक्त रखा... या उन पर नियँत्रण पाने में असफल रहा, उसका इस बिन्दु पर बेटे के विरुद्ध दिया जाने वाला साक्ष्य एक उदाहरण होगा । किन्तु... किन्तु क्या वह ऎसा अपने बचाव के लिये तो नहीं कर रहा है ? या अपने अब तक के असफल नियँत्रण पर लीपापोती हो... सँभव यह भी है कि यह आत्मा की आवाज़ हो या धर्मभीरुता प्रेरित प्रायश्चित हो ! कोई ताज़्ज़ुब नहीं कि, बचाव पक्ष का चतुर वकील स्वयँ इन्हें ही दुश्चरित्र करार दे दे या मानसिक रोगी ठहरा दे
काश! हर पीड़ित बहू को ऐसे ही ससुर मिलते!!
जवाब देंहटाएंसच मे सराहनीय कदम है अगर सब ऐसे होने लगे तो सबकी ज़िन्दगी सुधरने लगे।...सर्थक लेख..
जवाब देंहटाएंआत्मा को झकझोरने वाली खबर है रश्मि जी ! मन की सुंदरता से अधिक लोग तन की सुंदरता पर ध्यान देते हैं ! काले गोरे का भेद भाव अभी तक हमारे दिलों में गहरी जड़ें जमाये है और प्रसाधन बनाने वाली कंपनियाँ इसका भरपूर फ़ायदा उठा रही हैं ! मेरा बस चले तो गोरा बनाने का दावा करने वाली सभी क्रीम के निर्माताओं और विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगा दूँ जो तमाम साँवली सलोनी लड़कियों को हीन भावना से ग्रस्त करती हैं और लक्ष्मण शिंदे जैसे तमाम पुरुषों की मानसिकता को प्रदूषित करती हैं ! खैर ! शिंदे के पिता ने अपनी बहू के पक्ष में गवाही देकर मिसाल कायम की है ! अपने निश्चय पर वे दृढ़ रहें यही कामना है ! अच्छे आलेख के लिये आभार एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंलडकी जब सांवली थी जो शिंडे से बर्दास्त नहीं हो रही थी तो फिर उसने इस लडकी से शादी ही क्यों की ?
जवाब देंहटाएंपिता की भूमिका निःसंदैह अनुकरणीय है ।
श्वसुर द्वारा बेटे के विरुद्ध गवाही देने का मामला तो प्रशंसनीय है मगर बात ये भी सोचने की है की लड़के को जब काली या सांवली लड़की पसंद नहीं थी ,तो उसने विवाह किया ही क्यों था , कही परिवार के दबाब में तो उसने शादी नहीं की थी ...और कर ही ली तो इस प्रकार की प्रताड़ना अक्षम्य है ...
जवाब देंहटाएंऐसा कम ही होता है कि पिता अपने पुत्र के खिलाफ जाये वाकई ये तारीफ के काविल है ..
जवाब देंहटाएंमुझे जो कहना था अजित जी ने कह दिया
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी के दूसरे कमेन्ट से सहमत हूँ और मेरी ओर से बस इतना ही की "कुछ तो लोग कहेंगे .. लोगों का काम कम है कहना .. ऐसे फ़ोकट बातों से कभी टेन्शन में मत रहना :)"
@रश्मि दीदी
इस पोस्ट के लिए आभार :)
सुधार :
जवाब देंहटाएं.....लोगों का काम है कहना ..
गोरे रंग का स्वाभाविक मोह शुरू से ही मनुष्य जाती में रहा है ... अनेकों सामान बाज़ार में सिर्फ इन्ही बातों पर बिकते हैं ...
जवाब देंहटाएंपर गोरे रंग का मोह इंसान को पागलपन की हद तक भी ले जा सकता है ये बहुत ही शर्मनाक बात है ... ये अच्छा हुवा की लड़के के पिता ने सचाई का साथ देर कर नई मिसाल कायम की है ...
पता नहीं कब खत्म होगा यह भेद। यह बिल्कुल सही है कि लड़कियों का शिक्षित होना बेहद जरूरी है।
जवाब देंहटाएं