आजकल गैस सिलेंडर की कीमत में बढ़ोत्तरी चर्चा का विषय बनी हुई है. कुछ साल पहले भी सिलेंडर के दाम बढे थे और सबके साथ मैं भी परेशान हो गयी थी...बस ये बात दीगर है कि मेरी परेशानी का सबब कुछ और था. एक शाम यूँ ही चैनल सर्फ़ कर समय काट रही थी कि एक फोन आया..."हम एक न्यूज़ चैनल से बोल रहे हैं...गैस सिलेंडर की बढ़ी हुई कीमत पर आपकी प्रतिक्रिया चाहिए...कल आपके घर आ जाएँ, आपका इंटरव्यू लेने?"...मैं तो एकदम से चौंक पड़ी....और यकीन मानिए...यूँ अप्रत्याशित रूप से टी.वी. पर पल भर के लिए ही सही....कुछ बोलने का अवसर ख़ुशी से ज्यादा घबराहट दे जाता है.
जबकि ये पहला मौका नहीं था...कई बार 'पलक झपकाई और गायब' (blink n miss) जैसे अवसर मिलते रहे हैं. कुछ साल पहले पतिदेव Zee t.v. में कमर्शियल वी.पी. के रूप में कार्यरत थे
एक दिन ऑफिस से आए तो मुझे कुछ लिफाफे थमाते हुए कहा, "'गजेन्द्र सिंह' ने 'सारेगामा' प्रोग्राम की रिकार्डिंग के कुछ पास दिए हैं...आस-पड़ोस में जिसे देना हो दे देना. "
मैने ऐलान कर दिया....'मैं भी जाउंगी'...पतिदेव को कुछ आश्चर्य तो हुआ क्यूंकि उन्हें लगता था...'इसमें देखने जैसा क्या है'...साथ काम करनेवालों के लिए सबकुछ बहुत आम होता है.
नियत दिन पर, मैं अपने कुछ रिश्तेदारों सहेलियों के साथ सारेगामा की रिकॉर्डिंग पर गयी. कई बार कैमरे के हद में भी आए हम सब...दूर-दराज़ के नाते-रिश्तेदार टी.वी. पर हमारी झलक देख बड़े खुश भी हुए. पर मैने तौबा कर ली...क्यूंकि आधे घंटे की रेकॉर्डिंग 3 घंटे में संपन्न हुई...उस तेज रौशनी में चुपचाप एक जगह इतनी देर बैठे रहना एक सजा से कम नहीं लगा. हालांकि कई बातें भी पता चलीं...कि ये स्क्रीन पर तिरंगा झंडा, फहराता हुआ कैसे दिखता है. झंडे के नीचे एक पेडस्टल फैन लिटा कर रखा जाता है.
उम्रदराज़ महिलाएँ 'सोनू निगम ' की जबरदस्त प्रशंसक निकलीं . रिकॉर्डिंग शुरू होने में देर होने लगी ..तो वे लोग जोर से आवाजें लगा रही थीं...कि "बस सोनू निगम को बाहर भेज दो...हमलोग एक झलक देख चले जाएंगे..सिर्फ उन्हें देखने ही आए हैं." सोनू निगम ने एक इंटरव्यू में कहा भी था...कि "मेरे पास सबसे ज्यादा पत्र आंटियों के आते हैं...सब मुझे अपना दामाद बनाना चाहती हैं"
इसके बाद कुछ स्पेशल प्रोग्राम और zee awards...वगैरह देखने ही जाया करती थी. कई बार हम देखते हैं, दो एंकर में से कोई एक ही बोलता जाता है..देखनेवालों को लगता है...दूसरे को बोलने का अवसर ही नहीं मिल रहा जबकि असलियत कुछ और होती है. एक प्रोग्राम में ,पल्लवी जोशी के साथ एक मेल एंकर था...वो बार बार अपनी पंक्तियाँ भूल जा रहा था...और मजबूरी में शो को संभालने के लिए पल्लवी जोशी को उसकी पंक्तियाँ भी बोलनी पड़ रही थीं. दोनों के मेकअप मैन और हेयर ड्रेसर स्टेज के किनारे ही खड़े थे...एक डायलॉग ख़त्म होता...और वे दौड़ कर उनके बालों पर ब्रश और चेहरे पर पाउडर की परत फेर जाते.
पर किसी भी 'लाइव शो' से 'अवार्ड शो' के रिहर्सल देखना ज्यादा अच्छा लगता. सिर्फ Zee t.v. में काम करनेवालों के परिवार ही होते दर्शकों में. स्टार्स भी बिना किसी मेकअप के होते और रिहर्सल के बाद बिना किसी नाज़ ,नखरे के हमारे बीच आ कर बैठ जाते. एक शो के पीछे कितनी मेहनत लगती है...वो प्रत्यक्ष देखे बिना नहीं जाना जा सकता. पूरी रात रिहर्सल चलती थी. ज्यादातर उस टीम में लडकियाँ ही होतीं .मैं तो हैरान रह जाती ,"ये लोग घर कब जाएँगी?" परदे के पीछे से काम करनेवाले अपनी भूख-प्यास-नींद त्याग हफ़्तों से लगे होते. और ये कलाकार भी एयरपोर्ट से सीधा रिहर्सल के लिए आते..कोई रात के दो बजे...कोई सुबह चार बजे.
पर पैसे भी तो लाखो में लेते हैं ये लोग. एक बार एक मजेदार बात हुई.. धुलने में डालने से पहले पतिदेव के पैंट के पॉकेट चेक कर रही थी...उसमे से एक पुर्जा निकला,जिसपर लिखा था...शाहरुख- 80....सलमान-70....माधुरी- 75....करिश्मा -50..अक्षय-50... गोविंदा -- 20 ...पहले तो समझ में नहीं आया..फिर पता चला...ये सब उस अवार्ड शो में भाग लेने की उनकी फीस है, जो लाखो में है. गोविंदा की फीस सबसे कम थी..जबकि सबसे ज्यादा entertaining गोविंदा ही होते थे.
एक बार एक म्युज़िक अवार्ड में गयी थी. शो शुरू होने में कुछ वक्त था...कई गायक-गीतकार आ चुके थे...अलका याग्निक...उदित नारायण...जावेद अख्तर और शबाना आज़मी ठीक मुझसे अगली पंक्ति में बैठे थे...कई लोग जाकर उनसे बातें कर रहे थे..अपनी मोबाइल से तस्वीरें ले रहे थे...पर मैं संकोच के मारे अपनी जगह से उठी ही नहीं..दरअसल पतिदेव के डिपार्टमेंट के लोग आस-पास ही चक्कर लगा रहे थे..शायद यह देखने को..."जिस बॉस से वे लोग इतना डरते हैं....वे बॉस किस से डरते हैं {ये बस एक डायलॉग था ...मुझसे कोई नहीं डरता.. }
एक और रोचक बात हुई...कैमरामैन ने शायद मुझे भी कोई सेलिब्रिटी समझ लिया...और कई बार उस प्रोग्राम के दौरान मेरा क्लोज़अप लिया. बड़ी सी स्क्रीन पर जब ना तब मेरा चेहरा भी दिख जाता.
मुझे पूरा विश्वास था कि जब एडिटिंग के वक़्त पता चलेगा....कि ये कोई सेलिब्रिटी नहीं हैं..तो जरूर कैंची चल जाएगी. इसीलिए किसी को भी नहीं बताया....पर प्रोग्राम,टेलीकास्ट होने वाली शाम खुद टी.वी. ऑन करके बैठी थी...और हमें एक पार्टी में जाना था. पतिदेव शोर कर रहे थे..."देर हो रही है"...और मैं जानबूझकर कभी बिंदी ढूँढने का अभिनय करती तो कभी मैचिंग कड़े......और पाया कि नहीं...मेरी तस्वीर एडिट नहीं की थी.
एक बार हमलोग हरिद्वार-मसूरी-शिमला की ट्रिप पर गए थे. रुड़की से मैने अपनी मौसी की लड़कियों को भी साथ ले लिया था. शाम को हमलोग मसूरी पहुंचे थे और सडकों पर यूँ ही घूम रहे थे कि पीछे से एक आवाज़ आई "एक्सक्यूज़ मी" देखा तो आधुनिक परिधान में लिपि-पुती एक लड़की थीं...मेरे मुड़ते ही एक माइक मेरे सामने कर दिया..."आपसे कुछ सवाल पूछने हैं..." और मेरे कुछ कहने के पहले ही..सवालों की झड़ी लगा दी..."अनु मल्लिक से सम्बन्धित 5 सवाल थे. अब सिर्फ अंतिम सवाल ही याद है..." फिल्मफेयर अवार्ड किस फिल्म के लिए मिला था?'"...मैने कहा "बौर्डर " और उसने माइक नीचे कर पास खड़े कुछ लड़कों से कहा," We have a winner here "
पता नहीं कैसे ,मेरे पांचो जबाब सही थे.
वो लड़के प्रोडक्शन टीम के थे पर किसी कॉलेज के लड़के जैसे ही लग रहे थे. उसी झुण्ड में से किसी ने एक बैग से एक ताज निकाला और एक सैश जिसपर लिखा था..."BPL उस्ताद " और मुझे पहना दिया . और 15,00 रुपये का चेक भी पकड़ा दिया. अब फिर से माइक सामने था...और मुझसे मेरा परिचय पूछा गया. फिर उसने अन्नू मल्लिक की फिल्म का एक गाना गाने के लिए कहा. गाने से रिश्ता बस अन्त्याक्षरी तक ही सीमित है...पारिवारिक महफ़िल में भी नहीं गाती...और टी.वी. पर...नामुमकिन...बहने बढ़ावा दे रही थीं..."अरे दो लाइन गुनगुना दो ना..." पर मेरी ना तो ना...आखिर उस एंकर ने ही सुझाया आप सब मिल कर गा दीजिये...और हमने कोरस में गाया.. "संदेशे आते हैं...." शिल्पी ने सामने जाकर एक फोटो भो ले लिया.
सारा कुछ दस मिनट के अंदर घट गया....अब मुझे ध्यान आया....कार से देहरादून से यहाँ तक आने में तो बाल बिलकुल बिखर गए हैं..चेहरे पर धूल की परत चढ़ी हुई है.......जींस और खादी के कुरते में पता नहीं कैसी दिख रही हूँ ...पर शायद खादी के कुरते ने ही उस एंकर को मेरी तरफ आकर्षित किया था .
पतिदेव बच्चों के साथ कुछ आगे चल रहे थे...उनलोगों को कुछ पता भी नहीं चला. हम सब तेज़ कदमो से उन्हें बताने को भागे...जब उन्होंने पूछा, "टेलीकास्ट कब होगा..?" तब ख्याल आया हमने तो ये पूछा ही नहीं...फिर वापस भागे...संयोग से वे लोग मिल गए और बताया बस दो दिनों बाद.
अब शाम को मसूरी की उस घूमती हुई रेस्टोरेंट में बैठकर सारे रिश्तेदारों - सहेलियों को कॉल करने का सिलसिला शुरू हुआ { आप सबसे परिचय नहीं था...नहीं तो कुछ ब्लॉगर्स को भी फोन लगाया होता } ससुराल वालों को फोन करने में एक हिचक सी भी थी...उनलोगों ने जींस में मुझे कभी देखा नहीं था.... . सोचा...बातें बनेंगी...... पर बताना भी था. . प्रोग्राम तो आया ही शकल भी..बहुत ज्यादा बुरी नहीं लग रही थी..... ...बस ये हुआ कि उस प्रोग्राम वालों के पैसे बच गए...क्यूंकि चेक मैं किसी किताब में रखकर भूल गयी.
आईला !!!..मैने शुरुआत कुछ और लिखने को किया था...और कुछ और ही लिख गयी...कोई नहीं वो अगली पोस्ट में
जबकि ये पहला मौका नहीं था...कई बार 'पलक झपकाई और गायब' (blink n miss) जैसे अवसर मिलते रहे हैं. कुछ साल पहले पतिदेव Zee t.v. में कमर्शियल वी.पी. के रूप में कार्यरत थे
एक दिन ऑफिस से आए तो मुझे कुछ लिफाफे थमाते हुए कहा, "'गजेन्द्र सिंह' ने 'सारेगामा' प्रोग्राम की रिकार्डिंग के कुछ पास दिए हैं...आस-पड़ोस में जिसे देना हो दे देना. "
मैने ऐलान कर दिया....'मैं भी जाउंगी'...पतिदेव को कुछ आश्चर्य तो हुआ क्यूंकि उन्हें लगता था...'इसमें देखने जैसा क्या है'...साथ काम करनेवालों के लिए सबकुछ बहुत आम होता है.
नियत दिन पर, मैं अपने कुछ रिश्तेदारों सहेलियों के साथ सारेगामा की रिकॉर्डिंग पर गयी. कई बार कैमरे के हद में भी आए हम सब...दूर-दराज़ के नाते-रिश्तेदार टी.वी. पर हमारी झलक देख बड़े खुश भी हुए. पर मैने तौबा कर ली...क्यूंकि आधे घंटे की रेकॉर्डिंग 3 घंटे में संपन्न हुई...उस तेज रौशनी में चुपचाप एक जगह इतनी देर बैठे रहना एक सजा से कम नहीं लगा. हालांकि कई बातें भी पता चलीं...कि ये स्क्रीन पर तिरंगा झंडा, फहराता हुआ कैसे दिखता है. झंडे के नीचे एक पेडस्टल फैन लिटा कर रखा जाता है.
उम्रदराज़ महिलाएँ 'सोनू निगम ' की जबरदस्त प्रशंसक निकलीं . रिकॉर्डिंग शुरू होने में देर होने लगी ..तो वे लोग जोर से आवाजें लगा रही थीं...कि "बस सोनू निगम को बाहर भेज दो...हमलोग एक झलक देख चले जाएंगे..सिर्फ उन्हें देखने ही आए हैं." सोनू निगम ने एक इंटरव्यू में कहा भी था...कि "मेरे पास सबसे ज्यादा पत्र आंटियों के आते हैं...सब मुझे अपना दामाद बनाना चाहती हैं"
इसके बाद कुछ स्पेशल प्रोग्राम और zee awards...वगैरह देखने ही जाया करती थी. कई बार हम देखते हैं, दो एंकर में से कोई एक ही बोलता जाता है..देखनेवालों को लगता है...दूसरे को बोलने का अवसर ही नहीं मिल रहा जबकि असलियत कुछ और होती है. एक प्रोग्राम में ,पल्लवी जोशी के साथ एक मेल एंकर था...वो बार बार अपनी पंक्तियाँ भूल जा रहा था...और मजबूरी में शो को संभालने के लिए पल्लवी जोशी को उसकी पंक्तियाँ भी बोलनी पड़ रही थीं. दोनों के मेकअप मैन और हेयर ड्रेसर स्टेज के किनारे ही खड़े थे...एक डायलॉग ख़त्म होता...और वे दौड़ कर उनके बालों पर ब्रश और चेहरे पर पाउडर की परत फेर जाते.
पर किसी भी 'लाइव शो' से 'अवार्ड शो' के रिहर्सल देखना ज्यादा अच्छा लगता. सिर्फ Zee t.v. में काम करनेवालों के परिवार ही होते दर्शकों में. स्टार्स भी बिना किसी मेकअप के होते और रिहर्सल के बाद बिना किसी नाज़ ,नखरे के हमारे बीच आ कर बैठ जाते. एक शो के पीछे कितनी मेहनत लगती है...वो प्रत्यक्ष देखे बिना नहीं जाना जा सकता. पूरी रात रिहर्सल चलती थी. ज्यादातर उस टीम में लडकियाँ ही होतीं .मैं तो हैरान रह जाती ,"ये लोग घर कब जाएँगी?" परदे के पीछे से काम करनेवाले अपनी भूख-प्यास-नींद त्याग हफ़्तों से लगे होते. और ये कलाकार भी एयरपोर्ट से सीधा रिहर्सल के लिए आते..कोई रात के दो बजे...कोई सुबह चार बजे.
पर पैसे भी तो लाखो में लेते हैं ये लोग. एक बार एक मजेदार बात हुई.. धुलने में डालने से पहले पतिदेव के पैंट के पॉकेट चेक कर रही थी...उसमे से एक पुर्जा निकला,जिसपर लिखा था...शाहरुख- 80....सलमान-70....माधुरी- 75....करिश्मा -50..अक्षय-50... गोविंदा -- 20 ...पहले तो समझ में नहीं आया..फिर पता चला...ये सब उस अवार्ड शो में भाग लेने की उनकी फीस है, जो लाखो में है. गोविंदा की फीस सबसे कम थी..जबकि सबसे ज्यादा entertaining गोविंदा ही होते थे.
एक बार एक म्युज़िक अवार्ड में गयी थी. शो शुरू होने में कुछ वक्त था...कई गायक-गीतकार आ चुके थे...अलका याग्निक...उदित नारायण...जावेद अख्तर और शबाना आज़मी ठीक मुझसे अगली पंक्ति में बैठे थे...कई लोग जाकर उनसे बातें कर रहे थे..अपनी मोबाइल से तस्वीरें ले रहे थे...पर मैं संकोच के मारे अपनी जगह से उठी ही नहीं..दरअसल पतिदेव के डिपार्टमेंट के लोग आस-पास ही चक्कर लगा रहे थे..शायद यह देखने को..."जिस बॉस से वे लोग इतना डरते हैं....वे बॉस किस से डरते हैं {ये बस एक डायलॉग था ...मुझसे कोई नहीं डरता.. }
एक और रोचक बात हुई...कैमरामैन ने शायद मुझे भी कोई सेलिब्रिटी समझ लिया...और कई बार उस प्रोग्राम के दौरान मेरा क्लोज़अप लिया. बड़ी सी स्क्रीन पर जब ना तब मेरा चेहरा भी दिख जाता.
मुझे पूरा विश्वास था कि जब एडिटिंग के वक़्त पता चलेगा....कि ये कोई सेलिब्रिटी नहीं हैं..तो जरूर कैंची चल जाएगी. इसीलिए किसी को भी नहीं बताया....पर प्रोग्राम,टेलीकास्ट होने वाली शाम खुद टी.वी. ऑन करके बैठी थी...और हमें एक पार्टी में जाना था. पतिदेव शोर कर रहे थे..."देर हो रही है"...और मैं जानबूझकर कभी बिंदी ढूँढने का अभिनय करती तो कभी मैचिंग कड़े......और पाया कि नहीं...मेरी तस्वीर एडिट नहीं की थी.
एक बार हमलोग हरिद्वार-मसूरी-शिमला की ट्रिप पर गए थे. रुड़की से मैने अपनी मौसी की लड़कियों को भी साथ ले लिया था. शाम को हमलोग मसूरी पहुंचे थे और सडकों पर यूँ ही घूम रहे थे कि पीछे से एक आवाज़ आई "एक्सक्यूज़ मी" देखा तो आधुनिक परिधान में लिपि-पुती एक लड़की थीं...मेरे मुड़ते ही एक माइक मेरे सामने कर दिया..."आपसे कुछ सवाल पूछने हैं..." और मेरे कुछ कहने के पहले ही..सवालों की झड़ी लगा दी..."अनु मल्लिक से सम्बन्धित 5 सवाल थे. अब सिर्फ अंतिम सवाल ही याद है..." फिल्मफेयर अवार्ड किस फिल्म के लिए मिला था?'"...मैने कहा "बौर्डर " और उसने माइक नीचे कर पास खड़े कुछ लड़कों से कहा," We have a winner here "
पता नहीं कैसे ,मेरे पांचो जबाब सही थे.
वो लड़के प्रोडक्शन टीम के थे पर किसी कॉलेज के लड़के जैसे ही लग रहे थे. उसी झुण्ड में से किसी ने एक बैग से एक ताज निकाला और एक सैश जिसपर लिखा था..."BPL उस्ताद " और मुझे पहना दिया . और 15,00 रुपये का चेक भी पकड़ा दिया. अब फिर से माइक सामने था...और मुझसे मेरा परिचय पूछा गया. फिर उसने अन्नू मल्लिक की फिल्म का एक गाना गाने के लिए कहा. गाने से रिश्ता बस अन्त्याक्षरी तक ही सीमित है...पारिवारिक महफ़िल में भी नहीं गाती...और टी.वी. पर...नामुमकिन...बहने बढ़ावा दे रही थीं..."अरे दो लाइन गुनगुना दो ना..." पर मेरी ना तो ना...आखिर उस एंकर ने ही सुझाया आप सब मिल कर गा दीजिये...और हमने कोरस में गाया.. "संदेशे आते हैं...." शिल्पी ने सामने जाकर एक फोटो भो ले लिया.
सारा कुछ दस मिनट के अंदर घट गया....अब मुझे ध्यान आया....कार से देहरादून से यहाँ तक आने में तो बाल बिलकुल बिखर गए हैं..चेहरे पर धूल की परत चढ़ी हुई है.......जींस और खादी के कुरते में पता नहीं कैसी दिख रही हूँ ...पर शायद खादी के कुरते ने ही उस एंकर को मेरी तरफ आकर्षित किया था .
पतिदेव बच्चों के साथ कुछ आगे चल रहे थे...उनलोगों को कुछ पता भी नहीं चला. हम सब तेज़ कदमो से उन्हें बताने को भागे...जब उन्होंने पूछा, "टेलीकास्ट कब होगा..?" तब ख्याल आया हमने तो ये पूछा ही नहीं...फिर वापस भागे...संयोग से वे लोग मिल गए और बताया बस दो दिनों बाद.
अब शाम को मसूरी की उस घूमती हुई रेस्टोरेंट में बैठकर सारे रिश्तेदारों - सहेलियों को कॉल करने का सिलसिला शुरू हुआ { आप सबसे परिचय नहीं था...नहीं तो कुछ ब्लॉगर्स को भी फोन लगाया होता } ससुराल वालों को फोन करने में एक हिचक सी भी थी...उनलोगों ने जींस में मुझे कभी देखा नहीं था.... . सोचा...बातें बनेंगी...... पर बताना भी था. . प्रोग्राम तो आया ही शकल भी..बहुत ज्यादा बुरी नहीं लग रही थी..... ...बस ये हुआ कि उस प्रोग्राम वालों के पैसे बच गए...क्यूंकि चेक मैं किसी किताब में रखकर भूल गयी.
आईला !!!..मैने शुरुआत कुछ और लिखने को किया था...और कुछ और ही लिख गयी...कोई नहीं वो अगली पोस्ट में
अरे मुझे लगता है ऐसे अनूठे पल आपको अचानक मिलते है जब आपने कभी सोचा नहीं होता. मेरी भी कुछ यादें है कभी फुर्सत में बाटूंगी
जवाब देंहटाएंशाहरुख- ८०....सलमान-७०....माधुरी- ७५....करिश्मा -५०..अक्षय-५०... गोविंदा -- २०
जवाब देंहटाएं:))
मजेदार पोस्ट .............. अगले एपिसोड का इन्तजार रहेगा :))
क्या पता हमने देखा भी हो टी वी पर!अबकी देखूंगी तो सोचूँगी की ये तो पहचानी सी लगती हैं.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आईला !!यह भी बहुत मजेदार था। कित्ती सारी बातें पता चलीं और यह भी कि आप भी किसी सेलिब्रेटी से कम नहीं हैं।
जवाब देंहटाएं@घुघूती जी,
जवाब देंहटाएंयानि कि दो बार मिलने के बाद भी हम जाने-पहचाने से नहीं लगे :(:(
हमें तो आप बिलकुल ऐसी लगीं..जैसे कब की मिल चुकी हूँ..:)
वो १५०० रुपये का क्या किया फिर?
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक!!
ओह!!! उनसे डुप्लीकेट चैक मंगवा लेना था जी ....गुमे चैक के बदले दे देते.
जवाब देंहटाएंअरेएए
जवाब देंहटाएंगैस सिलिंडर के दाम बढने वाली बात कहां पहुंच गयी :)
खैर ये स्टाईल पसन्द आया
यह रिवॉल्विंग (घूमने वाला) रेस्टौरेंट होटल हॉवार्ड इन्ट्रनेशनल का है। मुझे इसमें डिनर करना अच्छा लगता है।
प्रणाम
अरे वाह फ़िल्मे देखने का कुछ तो फ़ायदा हुआ ना………बहुत ही रोचक रहा फिर तो ।
जवाब देंहटाएंक्या आईला ........ आप क्या भूलीं , मुझे भी याद नहीं, पर जो लिखा - बड़ा मज़ा आया , थोड़ी जलन भी हुई ,.... मैं होती तो मैं भी जाती न
जवाब देंहटाएंअरे आपका तो बहुत बड़े लोगों में उठना बैठना हो गया । लेकिन सबके राज़ क्यों खोल दिए जी ।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी यह मज़ेदार चटपटी पोस्ट ।
aree wah ye to bahut mazedar post lagi :D
जवाब देंहटाएं@ दराल जी,
जवाब देंहटाएंअब कहाँ राज़ है ये सब...ये तो पहले की बात है...अब तो उनकी फीस करोड़ों में है...और कुछ राज़ तो अब भी नहीं खोले...:)
विलुप्त पल इधर हमारी आँखों में कौंध गए..बेहद खूबसूरत पल...बाँटने का आभार
जवाब देंहटाएंमजेदार पोस्ट...मुड एकदम चेंच कर देने वाली पोस्ट..
जवाब देंहटाएंअब जब जाइयेगा कोई भी अवार्ड शो में, मुझे भी एक इनविटेसन दीजियेगा :)
आप किसी सेलिब्रिटी से कम तो कभी भी नहीं लगीं -बिलकुल सच्ची ,नो पन!
जवाब देंहटाएंराह तो ठीक ही पकड़ी आपने.
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट...रोचक जानकारियां मिली.... :)
जवाब देंहटाएंThis was a great post!!Enjoyed it a lot!!
जवाब देंहटाएंशुरुआत सिलिंडर से की और गैस कहाँ से कहाँ तक फ़ैल गयी... अच्छा लगता है ये सब, चाहे पहली बार हो या चाहे जितनी बार.. मेरे ब्लॉग पर मेरी भी तस्वीर लगी है एक इंटरव्यू की जो "लोक सभा चैनल" वालों ने किया था.. और सबसे एम्बैरेसिंग मोमेंट वो था जब उन्होंने इंटरव्यू के पहले पूछा कि आप कहाँ से हैं..मैंने कहा बिहार से.. तो उनका चेहरा उतर गया, फिर दबी जुबां में पूछा, "क्या आप अंगरेजी में इंटरव्यू दे सकेंगे." मैं मुस्कुरा दिया और जब इंटरव्यू समाप्त हुआ तो वे अचंभित थे!! मेरी धाराप्रवाह अंग्रेज़ी सुनकर..!!
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगा आज महगाई और घर के बजट के बारे में चर्चा होगी सुना है सिलेंडर ६०० रुपये होने वाला है |
जवाब देंहटाएंपोस्ट मजेदार रही पर सूटिंग देखना बिलकुल भी मजेदार नहीं होता है इतना रिटेक बार बार एक ही चीज की शूटिंग बोर कर देता है | हम शिमला गए थे साथ में पूरा खानदान था वहा बाबी देयोल की फिल्म "बादल" की शूटिंग हो रही हमारा लम्बा चौड़ा परिवार देख उन्होंने हम सभी से एक्स्ट्रा के रूप में काम करने का आफर दिया (वही जो आप को फिल्मो में सड़को पर लोगो को चलते फिरते दिखते है) हम सब ने कहा ठीक है कर लो तो कहने लगे की कल सुबह ५ बजे आना होगा हम सब भाग खड़े हुए ५ बजे का नाम सुन, पर बच्चे बाबी को देखने के लिए सिबह ६ बजे हाजिर हो गये | जब हम सभी बड़े १० बजे वहा उन्हें बुलाने आये तो पता चला की तब तक न सूटिंग शुरू हुई थी न बाबी आये थे फिर दोपहर में थोड़ी शूटिंग देखी बहुत ही बोरिंग था |
बड्डे लोग, बड्डी बातें :)
जवाब देंहटाएंफिल्म सूटिंग देखना सच में बड़े धैर्य का कार्य है पर सृजन प्रक्रिया ऐसे ही धीरे धीरे होती है, उसका प्रस्तुतीकरण कैसे भी हो।
जवाब देंहटाएंये सब पढ़कर जान गये कि आप कोई सेलिब्रिटी नहीं हैं:)
जवाब देंहटाएंआईला !!!.कमेंट तो अगली पोस्ट पर करना था..
@ रश्मि जी ,
जवाब देंहटाएंआइला आपने तो वही लिख जो लिखना चाहिए था :)
आप कहना चाह रहीं थीं कि ८० / ७५ / ७० / ५० वाले सेलेब्रेटीज को सिलेंडरों की कीमत से क्या फ़र्क पड़ता है :)
अब देखिये ना एक सेलेब्रेटी को अदने से १५०० रुपये का ख्याल ही ना रहा :)
जबकि इतने में तीन सिलेंडर अब भी मिल जाते और नून तेल के लिए कुछ चिल्लर भी बच जाती :)
आंटियों के दामाद बनने के ख्वाब में खोये सोनू निगम को ये तक पता नहीं कि वे उत्तर पश्चिम भारत के कुछ मर्दों को कितने प्रिय थे :)
@ पोस्ट ,
आपके अनुभव से एक बात ज़रूर साबित हुई कि अच्छा कार्यक्रम /सुन्दर फिल्म /मनोरंजक कथा रीटेक के उबाऊपन से जन्म लेती है ! यानि कि उबाऊपन की अपनी ही उर्वरता है !
आपके पतिदेव और मैं जिस धंधे से जुड़े हैं, उसकी पूरी पोल खोल देने की ठान ली थी कि आज क्या...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
@अभिषेक,
जवाब देंहटाएंकहीं व्यंग्य की खुशबू तो नहीं समाहित है ....आपकी टिप्पणी में :)
रोचक, लाजवाब संस्मरण
जवाब देंहटाएं@अली जी,
जवाब देंहटाएंमुझे डर था कोई ना कोई ये बात जरूर कहेगा कि लापरवाही में चेक गुम कर दिया...दुख तो मुझे भी कम नहीं हुआ...पर इसलिए कि एक अच्छी सी ड्रेस आ जाती....:)
वैसे ये सफाई ही लगेगी...इसीलिए पोस्ट में भी नहीं लिखा...दरअसल मैने उसे संभाल कर बैग में पड़ी एक किताब के अंदर रख दिया...कि कहीं बैग में पड़े अन्य कागजों के साथ मिक्स होकर गुम ना हो जाए (ये मेरी आदत है...जो चीज़ बहुत संभाल कर रखती हूँ....वो गुम हो जाती है...घर में कुछ नहीं मिलता तो सब चिढाते हैं..." कहीं सेफ जगह रख दिया होगा" )
शिमला से फिर मैं महीने भर के लिए पटना चली गयी....सफ़र में पढ़ने को साथ में ढेर सारी किताबें थीं...ध्यान था कि किसी किताब में रखा है...किस में रखा है..ये ढूँढने को वक़्त नहीं मिल रहा था....मुंबई लौटकर....व्यस्तताओं से निबट कर जब समय मिला...तब तक देर हो चुकी थी...और मैं एक सुन्दर सा ड्रेस खरीदने का मौका गँवा चुकी थी...:(:(
@खुशदीप भाई,
जवाब देंहटाएंआपको भी पता है कि बहुत सारी पोल नहीं खोली....वैसे am itching to write something....किसी तरह कंट्रोल किया कि शायद वो ethics के विरुद्ध होगा.
वाव ... मैं सोच रहा था आप देखी देखी क्यों लग रही हैं ... अब समझ आया आपतो सेलिब्रिटी हैं ...:)
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक संस्मरण..
जवाब देंहटाएंnice... हा हा हा! बहुत सरस।
जवाब देंहटाएंinteresting lagaa ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक संस्मरण है ! ऐसा करिये घर की सारी किताबों का हर पन्ना छान मारिये ! शायद वह चैक दबा छिपा कहीं मिल जाये ! आपके साथ हमेशा सुखद संयोग होते हैं और उन्हें पढ़ना हमें अच्छा लगता है ! बहुत बढ़िया संस्मरण ! पढ़ कर आनंद आ गया !
जवाब देंहटाएंआपका संस्मरण बड़ा रोचक होता है।
जवाब देंहटाएंवर्णन के साथ जो आस पास की घटनाएं होती हैं वह बांधे रखती हैं। इस पोस्ट में खास कर शूटिंग की घटनाएं।
मुझे तो बोरिंग भी लगे तो भी शूटिंग ज़रूर देखना चाहूंगा ...
याद आती है बचपन के दिनों की बात है ... हम मुज़फ़्फ़र पुर में थे और सुना कि देवानंद जी आ रहे हैं जॉनी मेरा नाम की शूटिंग करने, हम नेशनल हाइवे पर सुबह से डटे रहे और दोपहर के आस पास पुलिस आई मार लाठी के हमें भगा दिया, हम भी कहां मानने वाले थे, पेड़ पर चढ़कर बैठ गए ... और फिर उनकी गाड़ियां आईं और एक गाड़ी को आते और जाते शूट किया और एक मील का पत्थर ... रक्सौल इतना कीलोमीटर ... फिर चलते बने ... न देव दिखे ... न हेमा ... :(
वैसे कोई और समझे या ना समझे हमारे लिए तो आप सेलिब्रिटी ही हैं... बढ़िया और रोचक संस्मरण...
जवाब देंहटाएंमैं सोच रही थी कुछ सिलेंडर की कीमत पर लिखने वाली हो ...यहाँ तो मामला सेलिब्रेटी होने तक पहुँच गया ....
जवाब देंहटाएंबहुत से पल होते हैं ऐसे ही याद रह जाते हैं ...
बेटी ने पार्टिसिपेट किया था एक बार , तब देखा था बड़ी मुश्किल है डगर रिकोर्डिंग की !
रोचक संस्मरण !
सार्थक.जभी तो कहा जाता है इस ब्लॉग कि पोस्ट को. आपको पढना हमेशा अच्छा लगा है.
जवाब देंहटाएंसमय हो तो युवतर कवयित्री संध्या की कवितायें. हमज़बान पर पढ़ें.अपनी राय देकर रचनाकार का उत्साह बढ़ाना हरगिज़ न भूलें.
http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_06.html
सही है, :)
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक!!
१५०० का भारी नुकसान, लेकिन सेलिब्रेटी इतना तो कर ही सकते हैं :)
बातों की कड़ियाँ मजेदार लगी... खुशी हुई पढ़कर!! :)
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद ब्लाग पर पहुंचा हूं। मजा आ गया। फिल्मों से संबंधित सवाल हों और आप जवाब न दें, ऐसा तो हो नहीं सकता। देरी से ही सही पर, बीपीएल उस्ताद अवार्ड के लिए बधाइयां।
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