साहिल खान, अनुपम मुखर्जी, अर्नब रे, प्रीति शेनॉय |
वैसे पता नहीं , इस जानकारी का हम हिंदी में लिखने वालों के लिए कोई महत्त्व है या नहीं....शायद यह सब सपना सा ही लगे लेकिन अगर सपने देखे ही नहीं जायेंगे तो पूरे कैसे होंगे....काश इस तरह के ख़ूबसूरत हादसे...हिन्दीवालों के साथ भी घटें. हालांकि इसके लिए पहले लोगो में किताबें पढ़ने की रूचि और फिर उसके बाद किताब खरीद कर पढ़ने की आदत का चलन शुरू होना चाहिए. कोई भी प्रकाशक एक चतुर बिजनेसमैन ही होता है....अगर उसे लाभ नहीं होगा, तो वह कभी भी अपनी तरफ से किताब छापने की पहल नहीं करेगा.
शायद लोग यह कहें..."किताब छपने की चाह ही क्यूँ...ब्लॉग से ही संतुष्ट रहना चाहिए " पर ये सत्य है कि किताब की पहुँच काफी दूर तक है, अभी भी जन-मानस का एक बड़ा हिस्सा net savvy नहीं है . और जब आप लिखते हैं, तो वो जितने ज्यादा लोगों की नज़रों से गुजरे, लिखने की सार्थकता इसी में है. मुझे ही कितने ही लोगो ने कहा है, "नेट पर कहानियां पढना मुश्किल लगता है....कभी किताब छपे तो बताइयेगा ".मेरी कहानी वाले ब्लॉग पर इस ब्लॉग के पाठकों से आधी उपस्थिति इस सत्य को उजागर भी करती है.
जबतक हमारे लिए यह सपना सच होता नहीं दिख रहा... अंग्रेजी में लिखनेवाले अपने साथी ब्लॉगर्स की दास्ताँ सुन ही दिल को तसल्ली दे सकते हैं.प्रस्तुत है उस आलेख के कुछ अंश का हिंदी अनुवाद. .
२२ साल के साहिल खान की दो किताब छप चुकी है, पर पुराने जमाने के नवोदित लेखकों की तरह उन्हें प्रकाशकों के यहाँ के चक्कर नहीं काटने पड़े ना ही बेकरारी से किसी फोन-कॉल का ही इंतज़ार करना पड़ा. उन्हें ये ब्रेक अपने ब्लॉग की वजह से मिला
पुणे -स्थित ये ब्लॉगर अपने ब्लॉग TheTossedSalad.com. पर किताबें -फिल्मे और रेस्टोरेंट की समीक्षाएं लिखा करते थे. अचानक एक दिन बैंगलोर के Grey Oak Publishers से 'एक शॉर्ट स्टोरी' लिखने का निवेदन आया .साहिल का कहना है ," उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका लिखा कभी छापेगा....पर कहीं कोई तो मेरा ब्लॉग पढ़ रहा था और पसंद कर रहा था "
पिछले साल बारह युवा लेखकों की लिखी २८ कहानियों का संकलन प्रकाशित हुआ, जिसमे साहिल खान की कहानी The Untouched Guitar भी सम्मिलित है . जो एक कॉमन फ्रेंड की नज़र से एक कपल के डेटिंग, ब्रेक-अप और पैच-अप पर आधारित है .
प्रकाशक आजकल लगातार, नए टैलेंट की खोज में नेट पर नज़रें जमाये हुए हैं. दिल्ली की publishing consultant and editor. जया भट्टाचार्जी रोज़ का कहना है.."पहले रोज, नए लेखकों से मिलना..नई प्रतिभाएं ढूंढना एक मशक्कत भरा कार्य होता था परन्तु अब सक्रिय ब्लोग्स के जरिये नई प्रतिभाएं ढूंढना आसान हो गया है."
University of Maryland के Research scientist and assistant professor अर्नब रे एक ऐसी ही प्रतिभा हैं. 2004 से वो अपने ब्लॉग The Random Thoughts of a Demented Mind पर लिख रहे हैं, उनके 6,500 पाठक उनके बी-ग्रेड बॉलिवुड फिल्म्स या क्रिकेट या पौलिटिक्स पर लिखे उनके पोस्ट का इंतज़ार ही करते रहते हैं.
2009 में 237 पेज की उनकी एक किताब छपी , May I Hebb Your Attention Pliss, जिसकी 15,ooo कॉपियाँ बिक गयीं. अर्नब रे ने पुस्तक में छपी सामग्री और शैली बिलकुल अपने ब्लॉग जैसी ही रखी थी क्यूंकि उन्हें पता था...उनके पाठक क्या पसंद करते हैं. दिल्ली स्थित Westland Publishers. 2012 में उनकी दूसरी पुस्तक प्रकाशित कर रहे हैं. Harper Collins इंडिया की मार्केटिंग हेड 'लिपिका भूषण' का कहना है, " ब्लोगर्स प्रकाशकों को एक सेफ्टी नेट प्रदान कर रहे हैं, जहाँ नेट पर उनके नियमित पाठक पहले से मौजूद हैं और जो उनकी किसी छपी पुस्तक का इंतज़ार कर रहे हैं."
अनुपम मुखर्जी को अपने लेखन पर विश्वास नहीं था उन्होंने एक छद्म नाम से लिखना शुरू किया .2009 में Fake IPL player के नाम से उनका ब्लॉग बहुत मशहूर हुआ जिसमे वे 'कोलकाता नाईट रीडर्स टीम' की अंदरूनी बातें बढ़ा-चढ़ा कर लिखते थे. क्रिकेट प्रेमी उनका लिखा हर शब्द पढ़ने को बेताब रहते थे. नाईट राइडर्स की टीम मैनेजमेंट ने उन्हें poison pen नाम दे दिया.
1,50,000 visitors और नियमित कमेंट्स ने उन्हें इतना विश्वास दे दिया कि अनुपम मुखर्जी ने, Harper Collins को FIP इमेल आई डी से कॉन्टैक्ट किया और एक किताब लिखने की इच्छा जाहिर की "The Gamechangers". नाम से एक किताब लिखने का कॉट्रेक्ट उन्हें मिल गया .
अनुपम मुखर्जी का कहना है कि शायद प्रकाशक को नवोदित लेखकों की तरफ से रोज सौ मेल मिलते हों पर, मेरे ब्लॉग की वजह से उन्होंने मेरा नोटिस लिया"
जब से अनुपम मुखर्जी ने अपनी सही पहचान बतायी ,उन्हें एक अखबार में एक कॉलम लिखने का भी ऑफर मिला और वे अब वे एक नियमित स्तम्भ लिखते हैं.
पुणे स्थित ब्लॉगर प्रीति शेनॉय जो दो बच्चों की माँ भी हैं,कहती हैं.."ब्लोगिंग लेखन में एक अनुशासन भी ला देता है."
उनकी पहली पुस्तक 34 Bubble Gums and Candies, उनके अपने जीवन की 34 सच्ची घटनाओं के संस्मरण का संकलन है. जो उनके ब्लॉग से लिया गया है. शेनॉय का कहना है ,"प्रकाशक को मेरी लेखन शैली बहुत अच्छी लगी "
उनकी पहली पुस्तक एक बेस्ट सेलर के रूप में बिकने के बाद कई प्रकाशकों से उन्हें लिखने के ऑफर मिले. इसी वर्ष प्रकाशित Life Is What You Make It, नामक नॉवेल की कामयाबी के बाद वे अब तीसरी पुस्तक लिखने में व्यस्त हैं . “
अनुपम मुखर्जी का कहना है, " हर लेखक बनने की चाह रखनेवाले को अपना ब्लॉग जरूर बनाना चाहिए, सिर्फ अपने लिए ही सही. ये उनका स्पेस है...जहां वे अपने लेखन के साथ प्रयोग कर सकते हैं और बिना किसी दिशानिर्देश....बिना किसी बाध्यता के ..अपनी तरह से अपनी कहानी कह सकते हैं...दरअसल ब्लॉग अपनी लेखन के सैम्पल्स का एक ऑनलाइन पोर्टफोलियो होता है."
{ इस आलेख के लिए अपनी सहेली राजी मेनन का भी शुक्रिया अदा कर दूँ...,जिसने sms कर ये आलेख पढ़ने के लिए कहा ..वरना ब्लॉग्गिंग के चक्कर में कई महत्वपूर्ण और रोचक आलेख छूट जाते हैं..पर एक मुसीबत भी गले पड़ गयी...उसने इस आलेख का जिक्र किसी ख़ास मकसद से किया था कि मैं भी ऐसी कोई कोशिश करूँ......अब रोज उसके सवालों से बचने के बहाने तलाशती रहती हूँ.:)}
चलो अच्छा है। फायदा अपने को भी हो रहा है। कुछ अखबारों से लिखने का निमंत्रण मिला है। पर समय का सारा झंझट है। राजी जी ने जिस मकसद से आपको लेख पढ़वाया था,उसपर जरूर ध्यान दें। बहानेबाजी नहीं चलेगी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जी , अपने भी दिन आयेंगे वैसे आप अपना औटोग्राफ जल्दी से दे दो कहीं बाद में भाव खाया तो क्या करुँगी :-)
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये
@सोनल
जवाब देंहटाएंएक दूसरे का ले लेते हैं...पता नहीं कौन भाव खाने लगे :)
निष्कर्ष* ये कि आंग्लभाषी पाठक खरीद कर किताबें पढते होंगे यह विश्वास पब्लिशर्स को होगा तभी तो :)
जवाब देंहटाएंदेखें हिन्दी ब्लागर्स की ऐसी ही गारंटेड मार्केट वैल्यू पर पब्लिशर्स भरोसा कब कर पाते हैं :)
वैसे पिछले कुछ दिनों के उदाहरणों से हिन्दी ब्लागर्स इस मामले में आत्मनिर्भर जैसे लगते हैं :)
प्रिंट की चाहत आगे फिर कभी चर्चा होगी !
(निष्कर्ष* को आप अनुमान* भी पढ़ सकती हैं)
कमाल की जानकारी दी आपने.... आपको बता दूं मेरी अमेरिका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी में जो पोएम छपी है... वो भी मेरे इंग्लिश ब्लॉग के थ्रू ही कांटेक्ट किया गया था..... इन्टरनेट काफी फायदेमंद तो है ही.... नो डाउट ........ वैसे एक बात कहूँ जो सच है... इंग्लिश में क्लास तो है ही... इसीलिए इंग्लिश में ज्यादा फायदा होता है... और वर्ल्ड लेवल पर भी लोग इंग्लिश ज्यादा समझते हैं... हम इंग्लिश को गाली तो दे सकते हैं.... लेकिन नकार नहीं सकते... और क्लास हमेशा बिकता है.... कुल मिला कर आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी....
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक लगी आपकी यह पोस्ट-आपकी इस पोस्ट का लिंक यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंये तो अंग्रेज़ी भाषा की कहानी है. हिंदी में हालत तो अभी भी बेहद बुरे हैं.
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग में से प्रकाशित सामग्री का किताबी रूप, मेरी जानकारी अनुसार, हर्ष छाया की चूरन ठीक ठाक रही है पर इसे भी संभवतः उन्होंने स्वयं के प्रयास से ही छपवाया है. रहा सवाल राइटिंग असाइनमेंट का तो तकनीकी स्तंभों के लिए मुझे भी कई जगह प्रस्ताव मिले, मगर या तो आपको इतना कम मानदेय - 500-1000 तक अधिकतम - दिया जाता है या फिर आपके आलेख को विज्ञापन के चलते या तो बुरी तरह कांट छांट दिया जाता है कि फिर लगातार लिखने का मा्मला जमा नहीं. उम्मीद नहीं कि निकट भविष्य में इसमें कुछ परिवर्तन होगा... :(
मेरे ब्लॉग शस्वरं पर तथा नेट पर अन्यत्र छपी मेरी रचनाओं को सड़क पर पड़ा लावारिस सामान समझ कर अपने अख़बारों और लघु पत्रिकाओं में छापने के तो कुछ हादसे घट चुके मेरे साथ …
:) शायद पैसा भेज ही रहे होंगे वे …
हालांकि लेखकीय प्रति भी किसी अन्य की कृपा से उपलब्ध हुई …
बहरहाल
अच्छे और जानकारीपूर्ण आलेख के लिए
आपका और आपकी सहेली राजी मेनन जी का आभार !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हम भी यही सवाल उठा रहे है की ऐसा कुछ क्या कभी हिंदी ब्लोगरो के साथ होगा, उम्मीद तो कम ही लगती है |
जवाब देंहटाएंऑटोग्राफ़ हमें भी चाहिये... :-)
जवाब देंहटाएंइसके अलावा पेंग्विन वालों की एक सीरीज आती है First Proof.. वो उभरते अंग्रेजी लेखकों और ब्लॉगर्स की कुछ चुनिंदा ब्लॉग पोस्ट्स का कोलाज होता है..
प्रतिभा कहीं भी हो छुपी नहीं रह सकती।
जवाब देंहटाएंलिखने वालों को प्रेरित करती रचना कि लिखने के साथ साथ उत्कृष्टता की भी ज़रूरत है।
हम क्या कहें - हम तो लेखक हैं ही नहीं। मात्र ब्लॉग ठेलक हैं! :)
जवाब देंहटाएंये आर्टिकल मैंने अर्नब रे के ट्विट से पढ़ा था.
जवाब देंहटाएंइस बार मुंबई आया तो औटोग्राफ लेता हूँ आपका. :)
ऑटोग्राफ एक्सचेन्ज कल्ब में मैं भी हूँ....प्लीज!!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा और उम्मीद तो खैर जागी हुई थी ही. :)
@अभिषेक और पंकज
जवाब देंहटाएंठीक है....ठीक है....ब्लॉग पर सब कुछ virtual ही है ना ..इसीलिए ऑटोग्राफ की बात कह कर तसल्ली दे रहे हो...मोगैम्बो खुश हुआ कि तर्ज़ पर हम भी खुश हुए...:)
अब काल्पनिक ऑटोग्राफ भेज ही देते हैं...मिलने पर बताना :)
रोचक जानकारी दी आपने....
जवाब देंहटाएं@समीर जी
जवाब देंहटाएंहा.. हा...अभी तो आपका ऑटोग्राफ पाकर ही हम खुश हैं...आप तो इस क्लब के सर्वेसर्वा हैं. हम नवागतों का मार्गदर्शन कीजियेगा नियम-कायदे बताकर.
हिन्दी में है कोई किस्मत वाला
जवाब देंहटाएंदेख कर तो लगता है कि ब्लॉगिंग का भविष्य उज्जवल है।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी ...उम्मीद है की एक दिन ऐसा हो ब्लॉग्गिंग की दुनिया में भी....
जवाब देंहटाएंहिंदी में तो आमतौर ब्लॉग पाठकों का भी टोटा होता है.
जवाब देंहटाएंहिंदी अंग्रेज़ी तो क्या , मैं तो इन्हे समझ आने वाली किसी भी ज़ुबान में कार्टून बना दूं...भूतनी का कोई प्रकाशक ज़ेब में नोट डालकर मेरे ब्लॉग पर आए तो सही वर्ना उठाई गिरे और मुफ़्तखोर तो भेष बदलकर रोज़ चले ही रहते हैं :-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुदर जानकारी दी आप ने, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबस रज्जी चेच्ची की बातों का ध्यान रखिये तो आपके ऊपर एक पोस्ट मैं लिखूंगा.. क्योंकि उसपर पहली प्रतिक्रया तो किसी बड़े लेखक की होगी!!
जवाब देंहटाएंहिंदी में किताब छपना कठिन नहीं बशर्ते कि पच्चीस-तीस हजार अंटी से ढीले करने की हिम्मत होनी चाहिए...कई प्रकाशन इस तरह का उपकार (?) ब्लॉगरों पर कर रहे हैं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
अपनी पुस्तक की पहली प्रति मुफ्त भेजोगी ही , अपने औटोग्राफ के साथ ...
जवाब देंहटाएंवाकई ...शुभ अवसर मौज्दूत तो हैं ब्लॉगिंग में भी ...रफ़्तार बढ़ने की देर है !
हमें तो आपके संस्मरणों की पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी वह भी आपकी हस्ताक्षरित !
जवाब देंहटाएंउत्साही जी बोल ही दिया है कि हिंदी बालों का नम्बर भी लगने लगा है. हिंदी वालों को भी कोई कोई याद कर लेता है.
जवाब देंहटाएंवैसे ऑटोग्राफ एक्सचेंज क्लब तो आप शुरू ही कर दो. पता नहीं कब किसकी अनुपलब्धता का बोर्ड लग जाय.
हिन्दी ब्लॉग की किताबें तो धडल्ले से छप रही हैं। सबसे पहले मैंने सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की सत्यार्थमित्र के बारे में पढा था, उसके बाद से लाइन ही लगी हुई है। http://hindustaniacademy.blogspot.com/2009/08/blog-post_16.html
जवाब देंहटाएं@अनुराग जी,
जवाब देंहटाएंकिताबें जरूर धड़ल्ले से छप रही हैं....पर किसी प्रकाशक ने किसी के ब्लॉग से प्रभावित हो ब्लॉग लेखक को एप्रोच किया हो...ऐसा शायद नहीं सुना (हो सकता है, मुझे पूरी जानकारी ना हो) ...ईश्वर करे ये दिन जल्दी ही आए.
@अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंसंस्मरणों की पुस्तक ???....ये तो कभी wildest thought भी नहीं रहा. ऐसा कुछ ख़ास है भी नहीं मेरे संस्मरण में...सारे अनुभव अति-साधारण से हैं.
रोचक जानकारी दी ………………आभार्।
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लौगिंग का भी भविष्य उज्जवल है अब.
जवाब देंहटाएंहिन्दी फिल्मों जितना प्रेम इस भाषा की किताब को मिले,,,संदेह है फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है
जवाब देंहटाएंaaj apna ho n ho per kal hamara hai... kaafi kuch jaanne ko milta hai in aalekhon se . ye sach hai ki kitaab padhna chahte log .
जवाब देंहटाएं@ब्लॉग लेखक को एप्रोच किया हो...ऐसा शायद नहीं सुना
जवाब देंहटाएंएक उदाहरण: हिन्द पॉकेट बुक्स ने अभय तिवारी का ब्लॉग पढकर उनसे सम्पर्क किया और "कलामे रूमी" छापा। निश्चित ही, और भी उदाहरण होंगे यहाँ।
हम ने भी तीन किताबें छपवाई लेकिन घर फूँक कर तमाशा देखने जैसा रहा। जो किताबों की मार्केटिन्ग नही कर पाते उनके लिये घाटे का सौदा है। बहुत मेहनत का काम भी है। अग्रिम बधाई ले लो मेरी तरफ से।
जवाब देंहटाएंपहले ब्लॉग फिर पुस्तक --इसी तरह तमन्ना पढ़ती जाती है लेखन की । लेकिन ज्यादातर पुस्तकें लोग खुद पैसा खर्च कर ही छपवाते हैं ।
जवाब देंहटाएंबिक जाएँ तो वास्तव में उपलब्धि है ।
शर्तिया कामयाब बहानों पर हमारी एक पुस्तिका छपने गई हुई है, प्रकाशक रोज नये बहाने बनाकर टरका रहे है अन्यथा आपको अपनी सहेली को जवाब देने में आसानी होती।
जवाब देंहटाएं@रश्मिजी, काफी बढ़िया news संग्रह किया है! काफी अच्छा लगा पढकर!
जवाब देंहटाएं@ अनुराग जी,
जवाब देंहटाएंमुझे अभय जी की 'कलामे रूमी ' पुस्तक के विषय में तो पता था पर उनका ब्लॉग पढ़कर उनसे संपर्क किया गया ...ये जानकारी नहीं थी....ये तो बहुत अच्छी खबर है ....अभी याद आया...अजित वडनेरकर जी के 'शब्दों का सफ़र' भी उनके ब्लॉग पोस्ट्स का ही संकलन है...शुक्रिया याद दिलाने का....वरना इनका जिक्र मैं पोस्ट में जरूर करती.
बस यही कि ऐसे उदाहरण इक्का-दुक्का ही ना रहें....कुछ आम हो जाएँ और हिंदी किताबें भी जैसा कि आपने कहा..धड़ल्ले से छपने लगें..वरना रवि रतलामी जी, खुशदीप जी, दराल जी, निर्मला जी ने वस्तु-स्थिति बतला ही दी है....पर हम सबकी कामना है कि ये तस्वीर बदले .
nice information
जवाब देंहटाएंमै तो सपनों में ही खो गई ?प्लीज मेरा भी ध्यान रखियेगा |
जवाब देंहटाएंप्रेरक जानकारी |
but hum to hindi me likhte hain............:(
जवाब देंहटाएंहिन्दी के लेखकों के दिन भी बहुरें बड़ी दिली तमन्ना है लेकिन यह अभी दूर की कौड़ी लगती है ! जिनकी मातृभाषा हिन्दी है उन्हें ही हिन्दी का साहित्य और ब्लॉग पढ़ने में एतराज़ होता है तो अन्य भाषा भाषी लोगों की पसंद और प्राथमिकताओं की तो बात ही अलग है ! इस वजह से हिन्दी के पाठकों का दायरा बहुत सीमित हो जाता है ! पब्लिशर पुस्तकों का प्रकाशन अपने आर्थिक लाभ हानि के तराजू में नाप तौल कर करते हैं ! जहाँ पाठकों का इतना टोटा हो वहाँ पैसा लगाने में क्या फ़ायदा ! जिन्होंने अपना धन लगा कर पुस्तकें छपवा भी ली हैं उन्हें खरीदार नहीं मिलते ! इसलिए हिन्दी ब्लोग्स का भविष्य अभी तो इतना उज्जवल दिखाई नहीं देता ! हाँ चमत्कार की संभावनाएं तो हमेशा ही रहती हैं ! आशावर्धक आलेख के लिये धन्यवाद एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी के प्रकाशक इस ओर ध्यान दे रहे हैं लेकिन अभी हिन्दी के प्रकाशक उदासीन है। क्योंकि उनकी पुस्तकों की खरीद कम हुई है। अभी भी वे नये लेखकों के प्रति उत्साही नहीं है।
जवाब देंहटाएंall the best to all bloggers...
जवाब देंहटाएंदीदी , मेरे को तो आपकी लिखी किताब पढनी है
जवाब देंहटाएंachchhijankari kya kabhi aesa hindi jagat me bhi ho.
जवाब देंहटाएंrachana
यह बात तो सही है कि किताब/ अखबार की पहुँच काफी दूर तक है
जवाब देंहटाएंजानकारी देते आलेख हेतु आभार
प्रिंट मीडिया में आपके लिखे को को सँपादक मॉडरेट कर देता है.. जो मुझ जैसे यायावर को कतई गवारा नहीं, लिहाज़ा मैंनें तो तौबा कर ली । लगातार छपते रहने के लिये लॉबीइंग करनी पड़ती है... ऎसे दबाव आपकी स्वतँत्रता छीन लेते हैं .. अतः बख़्श मेरी खाला मैं लँडूरा ही भला :-(
जवाब देंहटाएंबढ़िया है जी,
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत रोचक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंजानकारी भरी पोस्ट। लेकिन हिन्दी ब्लॉगर्स के नसीब में ये दिन देखने को कब मिलेंगे, पता नहीं।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच
hamen bhi aapke blog se books me jane ka intzaar rahega...waise main to aapko blog me hi padhna pasand karungi..
जवाब देंहटाएंyes blog gives us freedom to experiment.
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