रविवार, 24 अप्रैल 2011

साथी ब्लॉगर्स के साथ गुजरे कुछ खुशनुमा पल


शरद कोकास  जी की कविता पर लिखी पुस्तक के विमोचन समारोह के बाद ही ये पोस्ट लिखनी थी...परन्तु वही...बैक लॉग निबटाते अब जाकर इसकी बारी आई.....मैने तो इरादा छोड़ ही दिया था लिखने का....क्यूंकि तस्वीरे फेसबुक पर डाल दी थीं और ज्यादातर लोगो ने देख लिए थे .....परन्तु कई मित्र जो फेसबुक पर नहीं है...उनकी फरमाईश थी कि हमलोग फोटो कैसे देखेंगे ...सो उनका आग्रह सर माथे..

पिछले महीने अपने ब्लोगर मित्रों से काफी जल्दी-जल्दी मिलना हो गया. पहले अभिषेक ओझा...अमेरिका से मुंबई तशरीफ़ लाए...
आभा मिश्रा जी के यहाँ , अभिषेक ओझा ...युनुस खान, ममता सिंह...प्रमोद सिंह...अनिल रघुराज...इकट्ठे हुए थे. अभिषेक, बिलकुल अच्छे बच्चे बन कर अपने घर जा रहे थे....बालों की स्टाइल बिलकुल शरीफ लडको वाली थी. मैने तस्वीरों में उनके बालों के पीछे की टेल देख चुकी थी...और पूछ ही बैठी,"चोटी गायब??" उन्होंने हंस कर सर हिला दिया. सबलोग उनसे पूछ रहे थे.."अमेरिका से वापस आने का इरादा है या नहीं?" उन्होंने ईमानदारी से बता दिया, " इरादा तो है..पर पक्का कुछ नहीं कह सकता....क्यूंकि कई मित्रों को देखता हूँ...वे तय कर लेते हैं...छः महीने बाद वापस लौट आऊंगा..पर वे छः महीने  दो साल में बदल जाते हैं "
 

अभिषेक ने ये भी जिक्र किया...कि 'मुंबई में उन्होंने करीब आठ महीने बाद एक फ्रेंड के टिफिन में घर की बनी चपाती खाई'

वहाँ बोधिसत्व जी और प्रमोद जी में समाज में कवि की भूमिका को लेकर सार्थक बहस छिड़ गयी. अनिल रघुराज जी और आभा बोधिसत्व जी ने भी इस विषय पर खुलकर अपने विचार रखे.
बोधिसत्व जी  ने  निराला...पन्त..महादेवी से सम्बंधित  कई बातों की चर्चा की..कि कैसे निराला जब बीमार हुए तो उनके इलाज के लिए नेहरु जी महादेवी वर्मा के माध्यम से पैसे भिजवाते थे क्यूंकि निराला जैसे स्वाभिमानी कवि को को किसी तरह की मदद लेना गवारा नहीं था.

ऐसी बहस का तो कोई अंत नहीं होता किन्तु अभिषेक को जल्दी निकलना  था क्यूंकि उन्हें कहीं लेक्चर देने जाना था. मैने कह ही दिया ,"आप तो इतने छीटे दिखते हैं...लोग,आपकी बात सुनते भी  है?" अब सुनते ही होंगे ना...वरना इनवाईट क्यूँ करते :)

युनुस जी...ममता जी ने विविध भारती के अपने अनुभव से और बोधिसत्व जी ने फिल्मो से जुड़ी कई  रोचक बातें बताईं ...अफ़सोस भी किया कि अब सागर सरहदी और साहिर लुधियानवी जैसे लोग नहीं हैं जो स्क्रिप्ट का या गाने का एक शब्द भी बदलने को तैयार नहीं होते थे बल्कि कहते थे....आप लेखक/गीतकार बदल लीजिये.
बातों के साथ चाय का दौर चलता रहा....बोधिसत्व जी की बनाई स्पेशल चाय.:)

फोटो आभा जी के ब्लॉग के सौजन्य से मैं उस दिन कैमरा ले जाना ही भूल गयी 

बोधिसत्व जी एवं अभिषेक ओझा 


मैं, आभा जी एवं ममता सिंह जी
आभा जी,मैं,अभिषेक एवं ममता जी

इसके कुछ ही दिनों बाद....विमोचन समारोह था जिसका जिक्र मैं यहाँ कर चुकी हूँ.

उस दिन विमोचन समारोह में सबसे मुलकात तो हुई..पर इत्मीनान से बैठकर बात नहीं हो पायी थी. और दूसरे दिन ही शरद जी को वापस लौट जाना था. बहुत ही जल्दबाजी में कुछ लोगो को ही सूचना दे पायी उसमे भी ममता सिंह जी और अनीता कुमार जी नहीं आ पायीं. घुघूती बासुती जी...शरद जी..युनुस जी...आभा जी...बोधिसत्व  जी और सतीश पंचम जी ही आ पाए.

संयोग से शरद जी के भाई का घर और घुघूती जी का घर एक ही इलाके में है....इसलिए वो लोग साथ ही आ गए. और इस बात की तो प्रशंसा करनी पड़ेगी कि मुंबई में इतनी दूरी होने पर भी...उनलोगों ने इतने अच्छे से कैलकुलेट किया था कि बिलकुल समय पर आ गए. थोड़ी ही देर में आभा जी बोधिसत्व जी और युनुस जी भी आ गए. सतीश जी...पोस्ट तो बड़ी जल्दी जल्दी लिखते हैं...पर यहाँ काफी देर से  पहुंचे.

पता नहीं किस बात पर भगवान राम का जिक्र आया और पुरातन काल में स्त्रियों की स्थिति पर गहरा विमर्श शुरू हो गया. सब लोग अपने अपने विचार रख रहे थे.पर घुघूती जी और बोधिसत्व जी ज्यादा मुखर थे. अब घुघूती जी की तस्वीर तो नहीं दिखा सकती {उन्हें कैमरे को सजा देने की आदत है ..उसे डांट कर दूर भगा देती हैं :)} लेकिन बोधिसत्व जी की तस्वीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितने जोश में थे, दोनों वक्ता :)...फेसबुक पर इस सन्दर्भ में हुए कुछ संवाद का आपलोग भी लुत्फ़ उठाएँ   
Rashmi Ravija अनुमान लगाइए बोधिसत्व जी, किसे कुछ समझाने की कोशिश कर रहे हैं??

Bodhi Sattva उधर कौन है जो नहीं समझ रहा...

Praveen Trivedi ‎.........तो इतना गुस्साने की क्या जरुरत है ?    .
 

 Yunus Khan कउन कहता है कि बोधि गुस्‍सा रहे हैं। कोई मत कहिए कि वो खीझ रहे हैं। अरे भई वो तो बतियाए रए हैं।

Praveen Trivedi ओह! युनुस भाई .....माफी देव हमका ........हम समझे कि .................?
गुस्सा रहें हैं |

Praveen Trivedi वैसे इत्त्ने तथाकथित स्नेह से वह किससे बतिया रहे हैं ........अब ज़रा यहु तो बता दीजिए ना ?

Yunus Khan उनसे जिनका नाम एक चिडिया का नाम भी है।

Anil Pusadkar ghughuti basuti jee,   

Bodhi Sattva लोग भावनाओं को नहीं समझते....तो क्या करें....

Ghughuti Basuti भावनाओं को तो समझना सरल है तर्क नहीं. वहीं तो मतभेद हो रहा है, मनभेद नहीं. वैसे कल जब हम बतिया / तर्किया रहे थे 'राम जी' हिचकियों से बहुत परेशान हो रहे थे.

Rashmi Ravija हा हा सही कहा,घुघूती जी..बेचारे राम , द्रौपदी, कृष्ण, अर्जुन,अहिल्या,गौतम , इंद्र को बड़ी हिचकियाँ आ रही होंगी....युनुस जी का सुझाव बढ़िया था...अगली बहस ठीक उसी बिंदु से शुरू होगी...:)..... वैसे मजा आ गया...सबको कॉलेज स्टुडेंट्स जैसे हँसते-बतियाते-बहसियाते देख.

Abha Bodhisatva अभी तो घुघूती जी के साथ हूँ......:)

Ghughuti Basuti प्रवीण, स्नेह तो स्नेह ही था तथाकथित नहीं, हाँ, विषय ही कुछ ऐसा था कि जोश आ ही रहा था, मजा भी.

 Praveen Trivedi हम तो केवल बूझ पाने की कोशिश ही कर पा रहे हैं| .......फिर भी बड़ा मजा आ रहा है|  वैसे चित्र चर्चा से कुछ आगे बढ़कर यह 'हिचकी' प्रकरण आगे बढ़ाया जाए .....तो कैसा ? .........बस क्यूंकि समझने में तनिक नहीं बहुत कठिनाई समझ आ रही है | इस (बोध) कथा को भी अगर समझाया जा सके ....तो बहुत ...........साधुवाद आप सबका |  

Yunus Khan कुछ नहीं जी। बस ज़रा चर्चा श्रीराम के बहाने पौराणिक संदर्भ में स्‍त्री की स्‍वतंत्रता जैसे मुद्दों से शुरू हो गयी थी। और फिर क्‍या था।

Praveen Trivedi ‎...........क्या था .....युनुस भाई ?

Yunus Khan अरे मास्‍साब!!
Bodhi Sattva बता दो भाई..

शरद जी से घुघूती जी ने यूँ ही पूछ लिया कि कितनी महिलाएँ  उनकी कविता से प्रभावित हुई हैं और शरद जी ने तुरंत बता दिया कि उनकी पत्नी भी पहले उनकी कविताओं से ही प्रभावित हुई थीं. एक रोचक घटना भी उन्होंने शेयर की . शादी से पहले उन्होंने, लता जी से पूछा, "आप मार्क्स से परिचित हैं?" { अब कवि हुए तो क्या हुआ...लड़कियों से बात करने में सारे लड़के dumb ही होते हैं...(सॉरी शरद जी :))अब पहली मुलाकात में कोई लड़की से कार्ल मार्क्स के बारे में पूछता है?:)} और लता जी ने कहा..."हाँ बिलकुल परिचित हूँ..वो मार्क्स के पर्सेंटेज ना ?" (वे टीचर हैं...तो नंबर(मार्क्स) से ही उनका वास्ता पड़ता है ).

इस बात पर शरद जी की बहुत खिंचाई  हुई पर सतीश जी और आभा जी की वेशभूषा पर हुई खिंचाई से कम.

संयोग कुछ ऐसा था कि
दोनों लोगो ने बिलकुल मिलते जुलते रंग  के ड्रेस पहने थे. फेसबुक पर इसपर बड़े रोचक संवाद हुए जो फोटो के नीचे कॉपी पेस्ट कर दे रही हूँ...



 Rashmi Ravija किस स्कूल से क्लास बंक कर के आ रहे हैं दोनों...ड्रेस तो एक ही स्कूल की लग रही है...एकदम मैचिंग :)

Abha Bodhisatva कल तो छुट्टी थी..... :)

Rashmi Ravija कोचिंग क्लास का बहाना बनाया होगा...हा हा

Abha Bodhisatva कोचिंग में स्कूल ड्रेस हा हा हा.... :)

Rashmi Ravija यूनिफॉर्म वाला नया कोचिंग क्लास खुलनेवाला है..:)

Ghughuti Basuti जहाँ पढ़ने जाएंगे ब्लॉगर! 

Satish Pancham मेरी टीचर ने तो आज मेरे कान पकड़ कर पिटाई भी कर दी.....ये कहते कि क्लास में तबीयत खराब का बहाना बहाना बनाकर छुट्टी ली और वहां ब्लॉगर बैठकी में जा पहुंचा ......वो क्या है कि मेरी टीचर भी फेसबुक पर ही है, उसे भी यहीं से पता चला :)
Ghughuti Basuti जो टीचर फेसबुक पर हो उससे पढ़ने नहीं जाना चाहिए.

वैसे रोचक बात यह भी थी कि घुघूती जी, बोधिसत्व जी एवं शरद जी ने शायद वसंत के आगमन की ख़ुशी में  पीले रंग के कपड़े पहन रखे थे..(घुघूती जी तो पीली साड़ी और लाल बिंदी में बहुत ही ख़ूबसूरत लग रही थीं.) उनके परिधानों पर वसंत के असर के   जिक्र पर बोधि जी ने कहा .."भायं भायं  करता आया वसंत..." सतीश जी ने इसपर 'इसी पंक्ति से एक कविता रच डालने  का अनुरोध भी कर डाला. देख लीजिये बानगी 
 
atish Pancham वैसे युनुस जी ने या शायद आप ही ने कहा था - 'भांय भांय बसंत'......रोचक शब्द रचना है :)
Bodhi Sattva यह मैंने कहा था भाई..खुद के लिए....

Satish Pancham बोधि जी.....इतने से नहीं चलेगा....पूरा किजिए :) 'भांय भाय करता बसंत' अब रच ही डालिए :)

Yunus Khan भांय भांय करते ब्‍लॉगर/भांय भांय करता बसंत। इस तस्‍वीर में खिले दांतों को देखकर कहा जा सकता है कि ब्‍लॉगरी करके भी खुश रहा जा सकता है।
Bodhi Sattva अरे सतीश जी...मैं अपनी वावाज को कितना प्यार करता हूँ.....निरपेक्ष हो कर नहीं लिख पाऊँगा... :)

Rashmi Ravija वावाज ???

Bodhi Sattva वावाज...के मायने हैं.....ऐसी आवाज जो तारीफ के काबिल हो..... 

शरद जी की उसी शाम की ट्रेन थी और बोधि जी की भी एक मीटिंग थी..इसलिए बातचीत अधूरी छोड़ कर ही सबको उठ जाना पड़ा. युनुस जी ने हँसते हुए  सुझाव रखा कि "अब ये बहस अगली मीटिंग में ठीक उसी बिंदु से शुरू होगी."
 मैने कहा..."हाँ! मैने विषय नोट कर लिया है..".अब तो यहाँ लिख भी दिया  :) 

वैसे एक "कोडक मोमेंट" छूट गया....बोधी जी ने "माफ़ करना माते " कहते झुक कर विधिवत घुघूती जी के पैर छू लिए और घुघूती जी ने भी भरपूर आशीर्वाद दिया. सबके चेहरे पर मुस्कान खिल आयी...बहुत ही हंसी-ख़ुशी के माहौल में वो पल गुजरे... कुछ ऐसे ही  और पलों का इंतज़ार है,अब.
कुछ और चित्र 
शरद जी, युनुस जी एवं बोधिसत्व जी 
सतीश पंचम जी, बोधिसत्व जी,आभा जी,शरद जी एवं युनुस जी 




दो महिलाओं के बीच बैठकर फोटो खिंचवाने के लिए मुस्कराहट की कॉन्फिडेंस जरूरी है.



54 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छी रिपोर्ट है, दिल जलाने वाली कि हम ना थे। और हाँ घुघुती जी को फोटो से परहेज क्‍यों हैं? सुन्‍दर लोगों को नजर लगने का डर कुछ ज्‍यादा ही रहता है क्‍या?

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  2. बढ़िया रिपोर्टिंग...

    जय हिंद...

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  3. फ़ेसबुक से ब्लॉग तक पहुंचने का रास्ता काफ़ी लम्बा रहा। :)

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  4. जब हम मिलेंगे तो ऐसे ही कवर करना है, बहुत ही बढ़िया प्रस्तुत करती हैं

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  5. रश्मि, मैंने स्वयं रपट लिखनी शुरू की थी। क्यों अटक गई, भी लिखा है। वैसे आजकल लिखना छूटता जा रहा है।
    मैंने तो बोधि बालक को दिल खोलकर सिर पर हाथ रखकर आशिर्वाद भी दिया था।
    २२.०३.११ की यह अधूरी छुटकी सी रपट पढ़िए और यूनुस को हर जगह हिन्दी में नाम लिखने का सुझाव भी दीजिए।

    कल रश्मि रवीजा के घर जाना हुआ। शरद कोकास जी शहर में थे और रश्मि ने उन्हें व कुछ अन्य मित्रों को अपने घर बुलाया था। इससे पहले भी पिछले सप्ताह मिलने मिलाने के कार्यक्रम हुए, आभा के घर जाने का लाख मन होते हुए भी मैं मकान बदलने में व्यस्त थी सो जाना न हो पाया।
    किन्तु कल रश्मि के घर जाकर शरद कोकास, आभा, बोधि, युनूस, यूनुस (नहीं, नहीं Yunus, सच में मैं उ, ऊ की मात्रा में गड़बड़ा गई हूँ और पिछले घंटे भर से Yunus को हिन्दी में खोज रही हूँ। वे स्वयं अपने को सब जगह Yunus ही लिखते हैं,सो सोचा कि मैं भी अंग्रेजी में ही पुकार लूँ। किन्तु भला हो बोधिसत्व का कि अभी अभी फेसबुक पर उन्होंने यह नाम हिन्दी में लिखा और मैं भी वहीं से टीप रही हूँ, यूनुस! )

    घुघूती बासूती

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  6. @घुघूती जी
    अजित जी ने आपसे कुछ पूछा है ...जबाब दीजिये :)

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  7. शानदार रिपोर्टिंग है........रश्मि दीदी

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  8. बहुत मेहनत करती है आप दी ..पोस्ट तैयार करने में

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  9. जितना पढ़े, (संदर्भों के अभाव में) उतना ही गड़बड़ाने लगे.

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  10. बढ़िया ! चित्रौ दुरुस्त हैं ! प्रसन्न-मुद्रा में सब !!

    ब्लॉग और फेसबुक की खिचड़ी अच्छी बनी है !!

    नेहरू चचा निराला खातिर पैसा भेजवाते थे, यह नयी जानकारी रही ..शुक्रिया !!

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  11. बहुत सुंदर।

    मेरा तो इतने सारे बड़े ब्लॉगर से परिचय भी नहीं है। आज आपके ब्लॉग की इस पोस्ट से इतने सारे लोगों से जान पहचान हुई। इनके ब्लॉग का लिंक भी दे देते तो और आनंद आता।

    आपकी इस पोस्ट में जो आनंद का वातावरण दिख रहा है, कामना है सारे ब्लॉग में वह छाया रहे।

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  12. अजित जी, इसे सनक, idiosyncrasy, eccentricity या ऐसा ही कुछ कह सकती हैं। शायद किसी दिन स्वयं ही इससे बाहर भी निकल आऊँ। इसका आरम्भ हिन्दी ब्लॉगिन्ग से बहुत पहले अंग्रेजी चैटिंग व लेखन के जमाने में लिए गए निर्णय से हुआ। तब शायद ठीक ही सोचा था कि फोटो का उपयोग नहीं करूँगी। शायद कभी पुनर्विचार करूँ, किन्तु मैं वही हूँ जो मेरा लेखन है, न कि वह जो दर्पण में मुझे मुँह चिढ़ाती है।
    घुघूती बासूती

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  13. शानदार पल, ईर्ष्या जनक प्रस्तुति!!

    मुंबई में होते हुए भी अपने तो नसीब ही खोटे!!

    खैर मिलकर अच्छा लगा!!

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  14. बेहतरीन रिपोर्टिंग़ के लिए साधुवाद ! मुझे पेंटिंग नहीं आती वर्ना घुघूती बासूती का एक चित्र ज़रूर बना कर भेजता :)

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  15. घुघूती जी का घूंघट!
    उत्कंठा जगाता है !
    बढियां वृत्तांत -इनमें से कईयों से मिलने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हो चुका है ,
    एक से बढ़कर एक हैं -घुघूती जी अपने सौन्दर्य के बारे में बहुत काशस है ...
    जबकि सभी को मालूम है वे बहुत सुन्दर हैं!सुन्दरता तो निसर्ग की एक ऐसी देन है जिसे
    घूंघट में रखना खुद सर्जक का ही अपमान है -लिहाजा घुघूती जी को घूंघट से बाहर आना चाहिए ...
    यह भी तो देखें हम किस युग में आ पहुंचे हैं! लगता है घुघूत जी का कुछ दबाव है ?

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  16. घुघूती जी का घूंघट!
    उत्कंठा जगाता है !
    बढियां वृत्तांत -इनमें से कईयों से मिलने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हो चुका है ,
    एक से बढ़कर एक हैं -घुघूती जी अपने सौन्दर्य के बारे में बहुत काशस है ...
    जबकि सभी को मालूम है वे बहुत सुन्दर हैं!सुन्दरता तो निसर्ग की एक ऐसी देन है जिसे
    घूंघट में रखना खुद सर्जक का ही अपमान है -लिहाजा घुघूती जी को घूंघट से बाहर आना चाहिए ...
    यह भी तो देखें हम किस युग में आ पहुंचे हैं! लगता है घुघूत जी का कुछ दबाव है ?

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  17. वाह जी!
    बढ़िया है संस्मरण ब्लॉगर मुलाक़ात के

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  18. मैं फिर से मुंबई आने का प्लान करता हूँ :)
    असली बात तो आपने यहाँ लिखी ही नहीं. मैं भी नहीं बताता वर्ना ब्लोग्गर आपके घर पहुँचने लगेंगे खाने के लिए :)
    आपकी मेमोरी का जवाब नहीं. मैं भुलक्कड़, अप्रेसियेट करने से रोक नहीं पा रहा अपने आपको.

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  19. फ़ोटो देखकर आप सभी लोगों की बहुत याद आई, मजा आ गया वैसे रपट पढ़कर

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  20. रिपोर्टिंग अच्छी लगी | मुंबई में लालटेन का इ प्रयोग अच्छा है मुंबई के लोग बिजली का बचत करना शुरू कर दे नहीं तो एक दिन उसे वह से उतार कर जलाने की नौबत आ जाएगी :))

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  21. @विवेक जी,
    आपको बहुत मिस किया हम सबने...अब तक हर मुलाकात में आप जरूर शामिल रहते थे .

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  22. @अंशु जी,
    क्या नज़र है आपकी...मान गए :)

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  23. बहुत सुंदर विवरण, ओर उतनी ही सुंदर फ़ोटो, सब को नमस्कार

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  24. दी, जब आप ऐसी मुलाकातों का जिक्र करती हैं तो मैं जलभुनकर राख हो जाती हूँ :-)

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  25. ऐसी मुलाकातें कितनी ऊर्जा बढा देतीं हैं न? लम्बे समय तक के लिये स्फ़ूर्ति आ जाती है. आभासी दुनिया की वास्तविक मुलाकातें बहुत रोचक और अविस्मरणीय होती हैं, फिर तुमहारे इस कार्यक्रम का तो कहना ही क्या! फ़ेसबुक वार्ता और भेंट-वार्ता ने मिल कर पोस्ट को एकदम नया रूप दे दिया है. नया प्रयोग कहूं, तो ज़्यादा सही होगा. मज़ा आ गया.

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  26. रश्मि जी क्या जीवंत चित्रण किया है इस मीटिंग का. इतने सारे ब्लोगिंग के धुरंधर एक साथ आपको दाद देनी पड़ेगी. बहुत मजा आया. धन्यबाद आभार इस शानदार रिपोर्ट के लिए.

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  27. घुघुती जी, चलिए आप अपना फोटो मत दिखाइए लेकिन इस बार जब भी मुम्‍बई आना होगा, सीधे आपके घर ही आऊँगी, तब तो आपको देखने का अवसर मिलेगा ना?

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  28. इतनी अविस्मरणीय ब्लॉगर मीट का वृत्तांत पढ़ कर मज़ा आ गया ! रश्मि जी आपकी लेखनी का तो कोई जवाब ही नहीं ! जिस विषय पर चल जाती है वही आलेख अति विशिष्ट हो जाता है ! सभी ब्लॉगर्स से आपके आलेख के माध्यम से मिलना बहुत अच्छा लगा ! आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद !

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  29. शानदार रिपोर्टिंग है। धन्यवाद|

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  30. लीजिए आपकी रिपोर्ट पढ़ते हुए हम भी शामिल हो गए :)

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  31. बहुत अच्छा लगा दिग्गजों की मुलाकात का वर्णन ...
    घुघूती जी सिर्फ मुंबई में रहने वाले या आने वाले ब्लॉगर्स पर ही मेहरबान होंगी ??

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  32. रश्मि...सच में जलन हो रही है...इसलिए कई बार पढ़ कर जा चुके..
    जब हम पहली बार मुम्बई आए थे...अस्पताल और होटल में बैठे...बस हर आहट पर सोचते शायद कहीं ये वो तो नहीं..भला हो अनितादी का जो इतनी दूर से अस्पताल और होटल दोनो जगह मिलने आ पहुँची..आशीष महर्षि भी एक बार मिले...
    अगली बार जबरदस्ती मेहमाननवाज़ी करवाएँग़े...

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  33. @रश्मि प्रभा जी एवं मुक्ति
    अब तक तो, मिलने के पहले कभी सोचा नहीं कि इस मुलाकात का विवरण लिखना है...बाद में मन हो आता है...और लिख डालती हूँ...

    पर आप दोनों से मुलाकात का किस्सा तो जरूर लिखना है...मुक्ति तब लोग जलेंगे...तुम मत जलो...:)

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  34. @मीनाक्षी जी,
    पलक पांवड़े बिछाए बैठे हैं....बस जल्दी प्रोग्राम बनाइये .

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  35. वाह, बढ़िया मिलन, बढ़िया माहौल, बढ़िया तस्वीरे और रपट भी बढ़िया।

    शुक्रिया।
    फेसबुक पे जाना कम होता है इसलिए मालूम ही नहीं चला।

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  36. सुंदर पोस्ट। मजेदार कमेंटस्। अपने प्रिय लेखकों को एक साथ जानने का मौका। वाह! आनंद आ गया।

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  37. .

    Rashmi ji ,

    It's a beautiful reporting, enjoyed reading n viewing the lovely pics of everyone.

    thanks.

    .

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  38. बेशक्..सीधे आपके यहाँ आना होगा....मेहमाननवाज़ी का लुत्फ लिए बिना कैसे रह सकते हैं...

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  39. बड़ी मस्त पोस्ट हे। मजा आ गया। मन कर रहा था कि खत्म ही न हो ये पोस्ट।

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  40. फोटो तो पहले ही देख चुके थे सारी. यह बहुत ही रोचक विवरण रहा दोनों मीटों का....आनन्द आया विस्तार से पढ़कर.

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  41. हम सोच रहे थे कि गणित की व्याख्याता महोदया को यह पोस्ट पढ़वा देंगे फिर कमेंट करेंगे .......आखिर मार्क्स का सवाल है ना ।

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  42. ये महफिलें यूँ ही सजती रहें ...

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  43. रश्मिजी मुझे तो जलन हो रही है |
    मैंने मुंबई आने के पहले मेल किया था उसका उत्तर नहीं आया |
    जबरदस्त रिपोर्टिंग |

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  44. @शोभना जी,
    मुझे कोई मेल नहीं किया आपने....

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