जब बाल-दिवस पर एक परिचर्चा आयोजित की थी "दिल तो बच्चा है जी...." जिसमे हमउम्र ब्लॉगर्स ने अपनी शरारतों के किस्से शेयर किए थे...उस वक्त कुछ युवा ब्लॉगर्स ने शिकायत की थी कि 'हमें अपने अनुभव बांटने का अवसर क्यूँ नहीं दिया?'....कहने को तो मैने कह दिया..."आप सबका तो दिल भी बच्चा है और खुद भी बच्चे हो...रोज नई शरारतें करने की छूट है..." पर उसी वक्त सोच लिया था , मूर्ख दिवस पर उनसे अनुरोध करुँगी अपनी शैतानियों का बखान करें...
अभिषेक,...कहीं फिल्म वाले ना कॉपी कर लें ये आइडिया
वैसे तो मैंने ज्यादा शरारतें नहीं की, लेकिन बचपन में बेवकूफी वाली बातें खूब करता था.जैसे की एक दफे जब ये अफवाह उडी की पटना में बाढ़ आने वाली है तो मैं माँ से कहता था की "माँ अगर बाढ़ आया न तो हम गेट ही नहीं खोलेंगे,ग्रिल लगा देंगे और कुर्सी टेबल से दरवाजा ब्लाक कर देंगे. :P बचपन में तो वैसे कई बेवकूफियों के किस्से रहे, लेकिन शरारत के कम ही थे.इंजीनियरिंग में आने के बाद खूब मस्ती की.ऐसे ऐसे नौटंकी वाले दोस्तों से पाला पड़ा की क्या कहूँ.एक बार १ अप्रैल के दिन सबने प्लान बनाया की अपने एक दोस्त सौरभ को थोड़ा अलग अंदाज में उल्लू बनाया जाए.हमारे वो मित्र एक लड़की से प्रेम करते थे, और उस लड़की को भी ये अच्छे से पता था की हमारे मित्र उन्हें देख आंहे भरते हैं.तो हमने प्लान ये बनाया की कैसे भी कर के उस लड़की का टी-शर्ट चोरी किया जाए और उसे अपने मित्र को पहनाया जाए.लेकिन चोरी करना गर्ल्स हॉस्टल में, और वो भी कपड़े...बेहद खतरनाक काम था ये, इसलिए इस जोखिम भरे काम के लिए हमने तैयारी अच्छे से कर रखी थी.दो दिन पहले ही आसपास के जगहों का मुआयना किया गया.जिस गर्ल्स हॉस्टल में हमारे दोस्त की प्रेमिका रहती थी, वो हमलोगों के फ़्लैट के बाजू में था, गर्ल्स हॉस्टल की और हमारे फ़्लैट की बाउन्ड्री कॉमन थी.३१ मार्च की रात एक बजे हमारे दो मित्र आशीष और विपिन कपड़े चोरी करने के मकसद से हॉस्टल की तरफ बढे.हॉस्टल की दीवाल लांघ जैसे ही वो कम्पाउंड में आगे बढे तो उन्हें लगा की कोई उधर से आ रहा है, जल्दबाजी में वो हॉस्टल के पीछे वाले कोने की तरफ भागे.हॉस्टल के पीछे एक छोटा सा गड्ढा, एकदम छोटा तालाब जैसा कुछ था..जिसके बारे में उन दोनों को मालुम नहीं था.वो लोग जल्दबाजी में उसी में जा गिरे, मट्टी, कीचड़ और पानी से लथपथ हो गए, फिर भी उनका हौंसला नहीं टुटा वो आगे बढे...हम अपने छत से ये सब देख रहे थे...हॉस्टल के मेन गेट पे नज़र भी लगाये हुए थे और लगातार उनका हौसला बढ़ा रहे थे.वो दोनों जांबाज हॉस्टल के छत तक पहुँच गए.तय ये था की बस एक ही लड़की के कपड़े लाना है, लेकिन दोनों नालायकों ने सभी के कपड़े ले आयें.उनका तर्क ये था की एक लड़की के कपड़े गायब हुए तो सब हवा को दोष देंगे, लेकिन सबके कपड़े गायब होंगे तो ये तो पक्का हो जाएगा न की किसी ने कपड़ों पे हाथ साफ़ किया है..खैर, इस बात की खबर अभी तक हमारे उस मित्र को नहीं थी.अगले दिन(१ अप्रैल) उस टी-शर्ट(सौरभ बाबु की प्रेमिका की टी-शर्ट) को अच्छे से आयरन कर सौरभ बाबु को ये कह के पहना दी, की ये टी-शर्ट अकरम ने नया ख़रीदा है.सौरभ बाबु जब संदेह भरी दृष्टि से टी-शर्ट की तरफ देखें तो हमने कहानी ये बनाई की अकरम को ये टी-शर्ट पसंद आ गयी, और ऐसा ही टी-शर्ट आपकी प्रेमिका पहनती है, इसलिए अकरम आपको ये टी-शर्ट गिफ्ट कर रहा है.सौरभ बाबु अब तक कन्फ्यूज से थे, लेकिन उन्होंने टी-शर्ट पहन लिया.अब बारी थी मिसन को को आखिरी शक्ल देने की.सौरभ को हमने वो टी-शर्ट पहना छत पे ले गए, दूसरी तरफ गर्ल्स हॉस्टल की छत पे सभी लड़कियां पहले से मौजूद थी.लड़कियां सौरभ को शक की निगाह से देखने लगीं और खुसुरफुसुर करने लगीं. .सौरभ बाबु को भी थोड़ा अजीब लगा, वो मेरे से पूछे की भाई, क्या बात है ये सब हमको ऐसे देख के क्या बडबडा रही है? मैंने कहा - अरे महराज उसका टी-शर्ट पहिन के छत पे उसके सामने घूमेंगे आप तो ऐसे देखेगी ही न वो सब. ;) सौरभ बाबु का चेहरा उड़ गया था..वहीँ पे सबको गाली देने लगे - सबके सब कमीने हैं, मेरा धर्म भ्रष्ट करवा दिया सब मिलकर...लड़की का कपडा पहना दिया पागल सब....मेरे इज्जत का बैंड बजा दिया...और भी पता नहीं क्या क्या बुदबुदाते हुए वो नीचे उतर गए..छत पे सभी लड़के ठहाके लगा के हँसने लगे..जब मैं नीचे आया तो सौरभ बाबु कहते हैं - अभिषेक भाई, आपसे ऐसा उम्मीद हम नहीं किये थे..आप भी मिले हुए थे....मैंने भी प्यार से कहा - अरे सौरभ बाबु यही तो ज़माने का दस्तूर है, आज अप्रैल फुल है...पिछली बार आप सबको बनाये थे इस बार आप बन गए..टेक अ चिल पिल :P. (वैसे ये साफ़ कर दूँ, की बदमाशी हमने फिर से की, कुछ लड़कों ने लड़कियों के कपड़े पे एक छोटा सा हर्ट का शेप बना दिया, और फिर से एक अप्रैल की रात वो कपड़े सही सलामत गर्ल्स हॉस्टल की छत पे पहुँच गए, ताकि उन्हें ये यकीन हो जाए की कपड़े वाकई चोरी हुए थे, और चोरी हमने की थी)
रवि धवन नू मामे दी मिठाई, अपरैल फूल दी याद आई!
नानके (नानी का घर) में जो ठाठ होते हैं, वैसा सुख तो शायद ही किसी को कहीं मिलता होगा। मेरे चार मामा जी हैं और चारों एक से एक खतरनाक। यानी की चारों इतना लाड देते हैं कि कई बार तो मन भर आता है। बचपन में तो हर सप्ताह साइकिल उठाकर घर से फुर्र हो जाता था, नानके जाने के लिए। वो पहली अप्रैल मुझे आज भी याद है। 31 मार्च को स्कूल का रिजल्ट आ गया था और अगले पंद्रह दिनों तक छुट्टियां थीं। तो, अगले ही दिन मैंने साइकिल उठाई और भाग निकला अपने नानके। मेरे चेहरे की बत्तीसी बता रही थी कि मैं अच्छे नंबरों से पास हुआ हूं। थोड़ी देर बैठा ही था कि संदेशा मिला कि बाहर मामाजी ने बुलाया है। बाहर जाते ही मुझे मिठाई का डिब्बा दिया और बधाई देते हुए खोलकर खाने के लिए कहा।
उस समय, मुझे पहली अप्रैल की कहां याद थी।
झट से धागा तोड़ा और शान से डिब्बे का ऊपरी गत्ता हवा में उछाल दिया।
पर जब अंदर देखा तो मिठाई नहीं बजरी और पत्थर ही निकले।
इससे पहले कि मैं कुछ समझता, सभी ताली बजाते हुए चिल्लाने लगे
अपरैल (अप्रैल) फूल बनाया-हमको बड़ा मजा आया
अपरैल फूल बनाया....।
मेरे मामाजी मुझे ही मामाजी कहते हैं।
अब जब कभी मैं जाता हूं अपने नानके, ठहाका मारकर ये जरूर कहते हैं, 'मामाजी नूं मिठयाई ते ख्वाओ।'
हालांकि दिखाने के लिए गुस्सा तो बहुत आता है।
पर जब कभी वो यह डॉयलॉग नहीं मारते, तब लगता है कि कुछ न कुछ उनके प्यार में कमी रह गई है।
जिस मामाजी ने मुझे वो डिब्बा थमाया था, उन्हें भी मैं मिठाईवाले मामा ही कहता हूं।
प्रशांत प्रियदर्शी के हाथों के लड्डू....जो खाए वो भी पछताए और जो ना खाए...:)
बचपन से ही अप्रैल का पहला तारीख बिलकुल अजब समां बांधता था.. अगर उस दिन रविवार होता था तो रंगोली पर, अगर बुधवार अथवा शुक्रवार होता था तो चित्रहार पर वह गीत अवश्य आता था "अप्रैल फूल बनाया, तो उनको गुस्सा आया".. बचपन से लेकर अभी तक इस दिन का यही मतलब समझ में आया कि दिन भर सबसे बच कर रहो, किसी की बात का भरोसा मत करो(जैसे पूरी दुनिया उस दिन आपके ही पीछे पड़ी हो बेवकूफ बनाने के लिए), और जहाँ कहीं मौका देखो, बस सामने वाले को मामू बना डालो.. :)
तो यहाँ यह किस्सा लिखने तो बैठे नहीं हैं की किसने मुझे कब बेवकूफ बनाया था.. पब्लिक प्लेस में यह बताना स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है, सो यहाँ यह चर्चा करते हैं की मैंने कभी किसी को जोरदार तरीके से बेवकूफ बनाया था या नहीं? वैसे मेरा तो अब यही मानना है की किसी को भी बेवकूफ बनाना सामने वाले की बेवकूफी का सबूत नहीं होता है, यह सबूत होता है उसके विश्वास के टूटने का, और हमारे विश्वासघात का.. भले ही यह छोटे पैमाने पर ही हो, हंसी-मजाक के लिए ही हो, मगर बात कहीं ना कहीं होती वही है.. अगर हम किसी पर किसी बात के लिए भरोसा ना करें तो क्या मजाल की कोई हमें बेवकूफ बना जाए? मगर भरोसे पर ही दुनिया कायम है, यह बात ऐसे ही नहीं कही गई है..
बहुत साल पहले की बात है.. शायद 1994-95 की.. मेरी उम्र उस समय 13-14 साल रही होगी.. तब हम चक्रधरपुर नामक शहर में रहते थे जो क़स्बे से थोडा ही बड़ा था.. उसे शहर नहीं तो बड़ा क़स्बा भी बुलाया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा.. उस समय 40-50 हजार की आबादी रही होगी उस शहर की और वह साढ़े तीन किलोमीटर के दायरे में सिमट जाए बस इतना ही क्षेत्रफल रहा होगा उसका.. अब यह जगह झारखंड के हिस्से जा चुका है.. पड़ोस में एक भैया रहते थे.. वह यूँ तो थे पापा के ही नौकरी में, मगर तुरत ज्वाइन किये थे और पापा से उनके उम्र की दूरी हमारे और उनके उम्र की दूरी से कुछ अधिक ही थी, सो हम सभी बच्चे उन्हें भैया ही बुलाते थे.. उनकी नई-नई शादी भी हुई थी सो हमें भी एक भाभी मिल गई थी.. स्कूल से लौटने के बाद पता नहीं कहाँ से मन में यह विचार सूझा की भाभी को अप्रैल फूल बनाया जाए.. अब करें तो क्या करें? जो भी करना है वह एक ही बार में करना होगा, नहीं तो भाभी सावधान हो जायेंगी और फिर कोई भी प्लान काम नहीं करेगा.. खैर एक आयडिया मन में तो आया, मगर मुझे खुद ही उसकी सफलता पर शक था.. फिर भी कोई और विचार ना आने के कारण से मैंने वही आजमाया.. बगीचे से थोड़ी सी चिकनी मिटटी लिया मैंने, उसे पानी में अच्छे से मिलाया, ठीक वैसे ही जैसे आटा गूथते हैं.. चुपके से रसोई से थोडा सा सूजी ले आया हल्का भून कर.. फिर मिटटी को लड्डू जैसा गोल-गोल आकार देकर उस पर चारों और से सूजी का लेप लगा दिया.. अब वह लड्डू में असली लड्डू जैसा दिखने भी लगा था.. मैंने तस्तरी में अच्छे से सजा कर उनके घर गया और उन्हें देते हुए बोला कि मम्मी भिजवाई है.. वो कुछ बोलती उससे पहले ही मैं सीधे घर के अंदर.. जाकर सोफे पर बैठ गया.. थोड़ी देर इधर उधर कुछ करता रहा फिर बोला कि टेस्ट तो कीजिये, मम्मी अभी अभी बनायी है.. सूजी अभी भी हल्का गरम था सो वे भी झांसे में आ गई.. जैसे ही मिटटी मुंह में गया की बस्स... :) अब जबकि वह मूर्ख बन ही चुकी थी तो भैया को कैसे छोड़ देती? जब भैया दफ़्तर से वापस लौटे तो उन्हें भी वही पेश किया गया..
तो अपनी कहानी फिलहाल यही तक.. :)
(अगली पोस्ट में कुछ और ब्लॉगर्स के शैतानी भरे किस्से )
तो उसी के तहत पेश है..आज अभिषेक, रवि धवन और प्रशांत प्रियदर्शी के कारनामे.
अभिषेक,...कहीं फिल्म वाले ना कॉपी कर लें ये आइडिया
वैसे तो मैंने ज्यादा शरारतें नहीं की, लेकिन बचपन में बेवकूफी वाली बातें खूब करता था.जैसे की एक दफे जब ये अफवाह उडी की पटना में बाढ़ आने वाली है तो मैं माँ से कहता था की "माँ अगर बाढ़ आया न तो हम गेट ही नहीं खोलेंगे,ग्रिल लगा देंगे और कुर्सी टेबल से दरवाजा ब्लाक कर देंगे. :P बचपन में तो वैसे कई बेवकूफियों के किस्से रहे, लेकिन शरारत के कम ही थे.इंजीनियरिंग में आने के बाद खूब मस्ती की.ऐसे ऐसे नौटंकी वाले दोस्तों से पाला पड़ा की क्या कहूँ.एक बार १ अप्रैल के दिन सबने प्लान बनाया की अपने एक दोस्त सौरभ को थोड़ा अलग अंदाज में उल्लू बनाया जाए.हमारे वो मित्र एक लड़की से प्रेम करते थे, और उस लड़की को भी ये अच्छे से पता था की हमारे मित्र उन्हें देख आंहे भरते हैं.तो हमने प्लान ये बनाया की कैसे भी कर के उस लड़की का टी-शर्ट चोरी किया जाए और उसे अपने मित्र को पहनाया जाए.लेकिन चोरी करना गर्ल्स हॉस्टल में, और वो भी कपड़े...बेहद खतरनाक काम था ये, इसलिए इस जोखिम भरे काम के लिए हमने तैयारी अच्छे से कर रखी थी.दो दिन पहले ही आसपास के जगहों का मुआयना किया गया.जिस गर्ल्स हॉस्टल में हमारे दोस्त की प्रेमिका रहती थी, वो हमलोगों के फ़्लैट के बाजू में था, गर्ल्स हॉस्टल की और हमारे फ़्लैट की बाउन्ड्री कॉमन थी.३१ मार्च की रात एक बजे हमारे दो मित्र आशीष और विपिन कपड़े चोरी करने के मकसद से हॉस्टल की तरफ बढे.हॉस्टल की दीवाल लांघ जैसे ही वो कम्पाउंड में आगे बढे तो उन्हें लगा की कोई उधर से आ रहा है, जल्दबाजी में वो हॉस्टल के पीछे वाले कोने की तरफ भागे.हॉस्टल के पीछे एक छोटा सा गड्ढा, एकदम छोटा तालाब जैसा कुछ था..जिसके बारे में उन दोनों को मालुम नहीं था.वो लोग जल्दबाजी में उसी में जा गिरे, मट्टी, कीचड़ और पानी से लथपथ हो गए, फिर भी उनका हौंसला नहीं टुटा वो आगे बढे...हम अपने छत से ये सब देख रहे थे...हॉस्टल के मेन गेट पे नज़र भी लगाये हुए थे और लगातार उनका हौसला बढ़ा रहे थे.वो दोनों जांबाज हॉस्टल के छत तक पहुँच गए.तय ये था की बस एक ही लड़की के कपड़े लाना है, लेकिन दोनों नालायकों ने सभी के कपड़े ले आयें.उनका तर्क ये था की एक लड़की के कपड़े गायब हुए तो सब हवा को दोष देंगे, लेकिन सबके कपड़े गायब होंगे तो ये तो पक्का हो जाएगा न की किसी ने कपड़ों पे हाथ साफ़ किया है..खैर, इस बात की खबर अभी तक हमारे उस मित्र को नहीं थी.अगले दिन(१ अप्रैल) उस टी-शर्ट(सौरभ बाबु की प्रेमिका की टी-शर्ट) को अच्छे से आयरन कर सौरभ बाबु को ये कह के पहना दी, की ये टी-शर्ट अकरम ने नया ख़रीदा है.सौरभ बाबु जब संदेह भरी दृष्टि से टी-शर्ट की तरफ देखें तो हमने कहानी ये बनाई की अकरम को ये टी-शर्ट पसंद आ गयी, और ऐसा ही टी-शर्ट आपकी प्रेमिका पहनती है, इसलिए अकरम आपको ये टी-शर्ट गिफ्ट कर रहा है.सौरभ बाबु अब तक कन्फ्यूज से थे, लेकिन उन्होंने टी-शर्ट पहन लिया.अब बारी थी मिसन को को आखिरी शक्ल देने की.सौरभ को हमने वो टी-शर्ट पहना छत पे ले गए, दूसरी तरफ गर्ल्स हॉस्टल की छत पे सभी लड़कियां पहले से मौजूद थी.लड़कियां सौरभ को शक की निगाह से देखने लगीं और खुसुरफुसुर करने लगीं. .सौरभ बाबु को भी थोड़ा अजीब लगा, वो मेरे से पूछे की भाई, क्या बात है ये सब हमको ऐसे देख के क्या बडबडा रही है? मैंने कहा - अरे महराज उसका टी-शर्ट पहिन के छत पे उसके सामने घूमेंगे आप तो ऐसे देखेगी ही न वो सब. ;) सौरभ बाबु का चेहरा उड़ गया था..वहीँ पे सबको गाली देने लगे - सबके सब कमीने हैं, मेरा धर्म भ्रष्ट करवा दिया सब मिलकर...लड़की का कपडा पहना दिया पागल सब....मेरे इज्जत का बैंड बजा दिया...और भी पता नहीं क्या क्या बुदबुदाते हुए वो नीचे उतर गए..छत पे सभी लड़के ठहाके लगा के हँसने लगे..जब मैं नीचे आया तो सौरभ बाबु कहते हैं - अभिषेक भाई, आपसे ऐसा उम्मीद हम नहीं किये थे..आप भी मिले हुए थे....मैंने भी प्यार से कहा - अरे सौरभ बाबु यही तो ज़माने का दस्तूर है, आज अप्रैल फुल है...पिछली बार आप सबको बनाये थे इस बार आप बन गए..टेक अ चिल पिल :P. (वैसे ये साफ़ कर दूँ, की बदमाशी हमने फिर से की, कुछ लड़कों ने लड़कियों के कपड़े पे एक छोटा सा हर्ट का शेप बना दिया, और फिर से एक अप्रैल की रात वो कपड़े सही सलामत गर्ल्स हॉस्टल की छत पे पहुँच गए, ताकि उन्हें ये यकीन हो जाए की कपड़े वाकई चोरी हुए थे, और चोरी हमने की थी)
रवि धवन नू मामे दी मिठाई, अपरैल फूल दी याद आई!
नानके (नानी का घर) में जो ठाठ होते हैं, वैसा सुख तो शायद ही किसी को कहीं मिलता होगा। मेरे चार मामा जी हैं और चारों एक से एक खतरनाक। यानी की चारों इतना लाड देते हैं कि कई बार तो मन भर आता है। बचपन में तो हर सप्ताह साइकिल उठाकर घर से फुर्र हो जाता था, नानके जाने के लिए। वो पहली अप्रैल मुझे आज भी याद है। 31 मार्च को स्कूल का रिजल्ट आ गया था और अगले पंद्रह दिनों तक छुट्टियां थीं। तो, अगले ही दिन मैंने साइकिल उठाई और भाग निकला अपने नानके। मेरे चेहरे की बत्तीसी बता रही थी कि मैं अच्छे नंबरों से पास हुआ हूं। थोड़ी देर बैठा ही था कि संदेशा मिला कि बाहर मामाजी ने बुलाया है। बाहर जाते ही मुझे मिठाई का डिब्बा दिया और बधाई देते हुए खोलकर खाने के लिए कहा।
उस समय, मुझे पहली अप्रैल की कहां याद थी।
झट से धागा तोड़ा और शान से डिब्बे का ऊपरी गत्ता हवा में उछाल दिया।
पर जब अंदर देखा तो मिठाई नहीं बजरी और पत्थर ही निकले।
इससे पहले कि मैं कुछ समझता, सभी ताली बजाते हुए चिल्लाने लगे
अपरैल (अप्रैल) फूल बनाया-हमको बड़ा मजा आया
अपरैल फूल बनाया....।
मेरे मामाजी मुझे ही मामाजी कहते हैं।
अब जब कभी मैं जाता हूं अपने नानके, ठहाका मारकर ये जरूर कहते हैं, 'मामाजी नूं मिठयाई ते ख्वाओ।'
हालांकि दिखाने के लिए गुस्सा तो बहुत आता है।
पर जब कभी वो यह डॉयलॉग नहीं मारते, तब लगता है कि कुछ न कुछ उनके प्यार में कमी रह गई है।
जिस मामाजी ने मुझे वो डिब्बा थमाया था, उन्हें भी मैं मिठाईवाले मामा ही कहता हूं।
प्रशांत प्रियदर्शी के हाथों के लड्डू....जो खाए वो भी पछताए और जो ना खाए...:)
बचपन से ही अप्रैल का पहला तारीख बिलकुल अजब समां बांधता था.. अगर उस दिन रविवार होता था तो रंगोली पर, अगर बुधवार अथवा शुक्रवार होता था तो चित्रहार पर वह गीत अवश्य आता था "अप्रैल फूल बनाया, तो उनको गुस्सा आया".. बचपन से लेकर अभी तक इस दिन का यही मतलब समझ में आया कि दिन भर सबसे बच कर रहो, किसी की बात का भरोसा मत करो(जैसे पूरी दुनिया उस दिन आपके ही पीछे पड़ी हो बेवकूफ बनाने के लिए), और जहाँ कहीं मौका देखो, बस सामने वाले को मामू बना डालो.. :)
तो यहाँ यह किस्सा लिखने तो बैठे नहीं हैं की किसने मुझे कब बेवकूफ बनाया था.. पब्लिक प्लेस में यह बताना स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है, सो यहाँ यह चर्चा करते हैं की मैंने कभी किसी को जोरदार तरीके से बेवकूफ बनाया था या नहीं? वैसे मेरा तो अब यही मानना है की किसी को भी बेवकूफ बनाना सामने वाले की बेवकूफी का सबूत नहीं होता है, यह सबूत होता है उसके विश्वास के टूटने का, और हमारे विश्वासघात का.. भले ही यह छोटे पैमाने पर ही हो, हंसी-मजाक के लिए ही हो, मगर बात कहीं ना कहीं होती वही है.. अगर हम किसी पर किसी बात के लिए भरोसा ना करें तो क्या मजाल की कोई हमें बेवकूफ बना जाए? मगर भरोसे पर ही दुनिया कायम है, यह बात ऐसे ही नहीं कही गई है..
बहुत साल पहले की बात है.. शायद 1994-95 की.. मेरी उम्र उस समय 13-14 साल रही होगी.. तब हम चक्रधरपुर नामक शहर में रहते थे जो क़स्बे से थोडा ही बड़ा था.. उसे शहर नहीं तो बड़ा क़स्बा भी बुलाया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा.. उस समय 40-50 हजार की आबादी रही होगी उस शहर की और वह साढ़े तीन किलोमीटर के दायरे में सिमट जाए बस इतना ही क्षेत्रफल रहा होगा उसका.. अब यह जगह झारखंड के हिस्से जा चुका है.. पड़ोस में एक भैया रहते थे.. वह यूँ तो थे पापा के ही नौकरी में, मगर तुरत ज्वाइन किये थे और पापा से उनके उम्र की दूरी हमारे और उनके उम्र की दूरी से कुछ अधिक ही थी, सो हम सभी बच्चे उन्हें भैया ही बुलाते थे.. उनकी नई-नई शादी भी हुई थी सो हमें भी एक भाभी मिल गई थी.. स्कूल से लौटने के बाद पता नहीं कहाँ से मन में यह विचार सूझा की भाभी को अप्रैल फूल बनाया जाए.. अब करें तो क्या करें? जो भी करना है वह एक ही बार में करना होगा, नहीं तो भाभी सावधान हो जायेंगी और फिर कोई भी प्लान काम नहीं करेगा.. खैर एक आयडिया मन में तो आया, मगर मुझे खुद ही उसकी सफलता पर शक था.. फिर भी कोई और विचार ना आने के कारण से मैंने वही आजमाया.. बगीचे से थोड़ी सी चिकनी मिटटी लिया मैंने, उसे पानी में अच्छे से मिलाया, ठीक वैसे ही जैसे आटा गूथते हैं.. चुपके से रसोई से थोडा सा सूजी ले आया हल्का भून कर.. फिर मिटटी को लड्डू जैसा गोल-गोल आकार देकर उस पर चारों और से सूजी का लेप लगा दिया.. अब वह लड्डू में असली लड्डू जैसा दिखने भी लगा था.. मैंने तस्तरी में अच्छे से सजा कर उनके घर गया और उन्हें देते हुए बोला कि मम्मी भिजवाई है.. वो कुछ बोलती उससे पहले ही मैं सीधे घर के अंदर.. जाकर सोफे पर बैठ गया.. थोड़ी देर इधर उधर कुछ करता रहा फिर बोला कि टेस्ट तो कीजिये, मम्मी अभी अभी बनायी है.. सूजी अभी भी हल्का गरम था सो वे भी झांसे में आ गई.. जैसे ही मिटटी मुंह में गया की बस्स... :) अब जबकि वह मूर्ख बन ही चुकी थी तो भैया को कैसे छोड़ देती? जब भैया दफ़्तर से वापस लौटे तो उन्हें भी वही पेश किया गया..
तो अपनी कहानी फिलहाल यही तक.. :)
(अगली पोस्ट में कुछ और ब्लॉगर्स के शैतानी भरे किस्से )
आईडिया अच्छा लगा. अभिषेक के कारनामे ज्यादा पसंद आये (आने ही थे, डेयरिंग जो थे) रोचक भी.... पोस्ट छोटा लगने लगा. ये लड़का सही मायने में अपने ब्लॉग पर भी यादें संजोता है. छठ पूजा और मुहब्बतें फिल्म से रिलेटेड इसने कई खुशनुमा यादें जिंदा कि हैं... बहुत शरीफ भी है.
जवाब देंहटाएंवहीँ पी डी को भी जानता हूँ. इमानदारी इक अशर्फी के तरह है इसके पास, इसी बूते यह है. और इसी वजेह से सब कुछ अभी इसके पास है. आपका शुक्रिया.
रवि भाई ईमानदार निकले...कैसे वो अप्रैल फुल बने इसका किस्सा सुनाया!! गुड :)
जवाब देंहटाएंप्रशांत से तो और कुछ का उम्मीद था नहीं हमको...ये नालायक यही कर सकता है :)
मजेदार किस्से...गुदगुदाते हुए. :)
जवाब देंहटाएंतीनो किस्से मजेदार हैं :) चलिये आपके बहाने अभिषेक बाबू की शरारतों के बारे में पता तो चला वरना हमें तो ये बडे सीधे लगते थे हमारी तरह :)
जवाब देंहटाएंपीडी तो खूंखार हैं बस चाय नहीं पीते ;)
‘उस’ वाली कैटेगरी में नोमिनेशन नहीं भेजा था कि हम भी ‘इस’ कैटेगरी में शामिल किए जाएंगे। पर .. आपने अच्छा नहीं किया :( और ... इसका मतलब कि वो सब युवा नहीं थे। तो क्या ‘अंकल’ वाली कैटेगरी के थे। :)
जवाब देंहटाएंसच॒! :) :)
आप अप्रील फूल तो नहीं बना रहीं उन सबको! :) (हमें भी):) :)
(आज ही एक सज्जन ब्लॉगर को कहा है ‘अंकल’ मत कहो ना। अब यहां खुद को न पाकर उनसे अपने शब्द वापस लेना पड़ेगा। :( :()
@ मनोज जी,
जवाब देंहटाएंऔर ... इसका मतलब कि वो सब युवा नहीं थे
वे सब चिर युवा हैं...ये लोग अभी सिर्फ 'युवा' है....कुछ सालों बाद ये भी चिर युवा हो जाएंगे :)
अभि तो मुझे भी बड़ा सीधा लगता था. देखो तो सबसे ज्यादा शैतान निकला. अपने दोस्त की उसकी प्रेमिका के सामने खिल्ली उड़वा दी. इससे ज्यादा किसको बेवकूफ बनाया जा सकता है :-)
जवाब देंहटाएं@ रश्मि जी
जवाब देंहटाएंहाहाहा
क्या शब्दों की आपने ‘चिर ... फार की है
गेट बन्द कर देने से बाढ़ नहीं घुसेगी, वाह।
जवाब देंहटाएंलड़कियों के कपड़े चुराने वाले इन आधुनिक कान्हाओं की रोचक शैतानीयों के बारे में पता चला हैं :)
जवाब देंहटाएंराप्चिकम्.....राप्चिकम् :)
बहुत ही मजेदार लगी सभी की शरारते, लग रहा है की आज पहली तारीख है वो भी अप्रैल की :))
जवाब देंहटाएंरुचिकर लेख ...शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंमज़ेदार पोस्ट. अगली बार ’बड़ों’ को भी मौका देना रश्मि :)
जवाब देंहटाएं@वंदना,
जवाब देंहटाएंयही कड़ी आगे बढ़ा दूँ??....पर शर्त है कि तुम्हारा संस्मरण पहला होगा.....हर बार कन्नी काट जाती हो..:)
:)
जवाब देंहटाएंआज़मा के देख लो न, सबसे पहले लिखूंगी :) पक्का वादा.
जवाब देंहटाएंवाह ! मजेदार.
जवाब देंहटाएंपहला आईडिया पिटाई वाला
जवाब देंहटाएंआखरी आईडिया मिठाई वाला।
हा हा हा बढिया
पीडी भाई अगली बार आपको चाय के साथ लड्डू खिलाये जायेंगे...चाय तो आप पीते नहीं..लड्डू ज़रूर खायेंगे....रवि भाई ने तो मिठाई उछाल दी..उम्मीद है आपको लगी नहीं होगी...अभिषेक भाई कभी ये भी बताइए की इसके बाद क्या हुआ था..कपडे वापस कैसे पहुंचे :)...और रश्मि जी प्रयास बहुत ही ज्यादा सफल है आपका...आप इसके लिए प्रशंशा की पात्र हैं...आप सभी को मूर्ख दिवस की शुभकामनायें..ये आपके जीवन में खुशहाली लाए :)
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक कारनामे.आभार यहाँ शेयर करने का
जवाब देंहटाएंछोटा बच्चा जान के इनको.
जवाब देंहटाएंअभी सिर्फ उपस्थित ..!
जवाब देंहटाएंइतनी खुराफातें? ऐसे ही लोग सफल ब्लागर बनते हैं। शरारत का मौका मिले तो मत चूको, बस ये ही है जीवन की जमा पूँजी। बढिया एक से बढकर एक।
जवाब देंहटाएंमजेदार संस्मरण !
जवाब देंहटाएंतो फूल भी अप्रैल फूल बनाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार किस्से रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा युवाओ की शरारतो का पुलिंदा |
जवाब देंहटाएंumda!!! mubarakbad lijiye dil se!!
जवाब देंहटाएंmazedaar kisse..padhkar tar o taza ho gaye.. shukriya
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंहेडिंग तो बहुत ही खतरनाक है...शैतानियों का कच्चा चिट्ठा।
जवाब देंहटाएंऔर कमेंट तो उससे भी ज्यादा खतरनाक आ रहे हैं। चिर युवा, युवा।
दी, आपके आइडियाज बेहद शानदार रहते हैं।
और हां, अभिषेक जी का आइडिया किसी फिल्म में आ सकता है।
अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
आप सभी का और खासतौर से रश्मि दीदी का बहुत बहुत धन्यवाद..
जवाब देंहटाएं:-)
@सागर - दोस्त, क्या कहें तुम्हारे कहे पर!!!
@पंकज - "पीडी तो खूंखार हैं बस चाय नहीं पीते ;)" :)
@ देवांशु (अजी वही "आड़ी टेढी सी जिंदगी" वाले) - दोस्त अगली बार सुबह चार बजे वाली चाय तो हम तुम्हारे ही हाथों से पियेंगे.. :)
@ अभिषेक - अबे, हम अच्छे से जानते हैं तुमको.. कि आयडिया किसी और का रहा होगा, चोरी भी किसी और ने ही की थी.. कपडे लौटाया भी किसी और ने ही था.. तुम तो बेटा बस ताली बजाय होगा, और यहाँ लिख भेजा.. :P
कारनामें तो सभी के ऐसे हैं जैसे की हँसी नही रौक रही ... पर रवि जी का मजेदार ...
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