तब दोनों ऐसे मासूम दिखते थे |
शीर्षक तो इण्डिया टी.वी. के तर्ज़ पर लग रहा है...पर पोस्ट बड़ी घरेलू सी है.
जैसा कि पिछली पोस्ट में जिक्र किया था.....पति और बच्चों को बेवकूफ बनाने की अलग से कोई कोशिश नहीं की...पर अनजाने ही वे लोग धोखा खा बैठे...:)
कुछ साल पहले का वाकया है..एक दिन मेरे दोनों बेटे किंजल्क और कनिष्क खेल कर आए और नहाने जाने की तैयारी करने लगे...मैने यूँ ही पूछ लिया ..."कौन जायेगा.....गुसलखाना ?" और दोनों भाग कर मेरे पास आ गए..."हम चलेंगे...हम चलेंगे "...अब मुझे लगा कि इसका मतलब ये लोग नहीं जानते...मैने कह दिया, "अच्छा ..पहले नहा धो लो फिर देखते हैं...दरअसल इन्हें लगा..."केक खजाना "..."खाना खज़ाना " जैसा कोई रेस्टोरेंट है. नहा कर आए तो मैने कह दिया, "आज तो देर हो गयी....कभी और चलेंगे"
फिर तो ये रोज़ का किस्सा हो गया...ये लोग गुसलखाने जाने की जिद करते और मैं रोज बहाने बना देती..."आज तुमलोगों ने ये शैतानी की....आज ये कहा नहीं माना ...गुसलखाना जाना कैंसिल".
एक दिन किंजल्क ने पूछा..."इतना तो बात दो...कहाँ पर है?..कितनी दूर है?"
मैने कहा, "हर जगह है.."
"अच्छा!!..हमारे एरिया में भी?...फिर हमने बोर्ड कैसे नहीं देखा?"
"अब पता नहीं कहाँ ध्यान रहता है तुमलोग का...जो नहीं देखा "
मुझे मजा आ रहा था...एक दिन पतिदेव के सामने भी अनाउन्समेंट हो गयी...."मम्मी ने प्रॉमिस किया है, हमलोगों को गुसलखाना लेकर जायेगी ...आप भी चलेंगे ?"
इसके पहले कि पतिदेव राज़ खोलते मैने बात बदल दी...और इशारा कर दिया...उस दिन वे मान भी गए वरना 'सांटा क्लॉज़' की गिफ्ट का रहस्य खोलने को हमेशा उतारू रहते थे.
अब ऐसे शैतान दिखते हैं |
पर एक दिन दोनों ने सुबह से मेरी हर बात मानी ...अच्छे बच्चे बन कर दिखाया तो मुझे राज़ खोलना ही पड़ा....पर ज्यादा मजा नहीं आया क्यूंकि हंसने वाली अकेली मैं ही थी...दोनों खिसियानी सूरत बनाए मुझे घूर रहे थे और फिर उन्हें मैकडोनाल्ड भी लेकर जाना पड़ा. {आपलोग भी आजमा सकते हैं....मुझे नहीं लगता आजकल के बच्चे इस शब्द का अर्थ जानते होंगे :)}
अब फेक आई डी का किस्सा..... करीब छः साल पहले मैने नया-नया इंटरनेट सर्फ़ करना सीखा था. उनदिनों हम फ्रेंड्स एक दूसरे को अच्छे -अच्छे ई-मेल फौरवर्ड किया करते थे . पर पता नहीं मेरी आई डी में कुछ प्रॉब्लम आ गयी वो नहीं खुल रहा था. एक फ्रेंड ने सुझाया, तबतक एक अलग नाम से फेक आई डी बना लो...और मैने अलग नाम से एक आई डी बना ली...और उसे जांचने के लिए कि ठीक बना है या नहीं...पति देव की आई डी पर सिर्फ Hi ...how r u ? लिख कर एक टेस्ट मेल भेजा . उनके इन्बौक्स में चेक भी कर लिया कि मेल डिलीवर हो गया है.....मतलब मेरी आई डी काम कर रही है.
दूसरे दिन जब मेल चेक किया तो पाया सहेलियों के प्यारे प्यारे इमेल्स के साथ, पतिदेव का दो लाइन का जबाब भी पड़ा है कि "मैं आपको नहीं जानता...लगता है आपका मेल गलत एड्रेस पर आ गया है."
अब मैने सोचा...जरा इसे लम्बा खींचना चाहिए...मैने बड़ी विनम्रता से कुछ लम्बा ही इमेल लिखा, "आपने इतना व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर जबाब दिया....मैं बहुत इम्प्रेस्ड हुई ....आपसे दोस्ती करना चाहती हूँ...वगैरह वगैरह..." अपना सारा अंग्रजी ज्ञान उंडेल दिया कि पतिदेव इम्प्रेस्ड हो जाएँ.
अब, इंतज़ार था...जबाब का..दूसरे दिन दो पंक्ति का जबाब आया, "मुझे दोस्ती करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.....मैं दो बच्चों का पिता हूँ..कृपया अब मेल ना करें "
थोड़ी निराशा तो हुई.....पर मैने हिम्मत नहीं हारी....फिर से जबाब लिखा..."कि कोई बात नहीं..मैं भी दो बच्चे की माँ हूँ...अच्छी दोस्ती चाहती हूँ....बहुत अकेली हूँ...वगैरह..वगैरह"
नवनीत अक्सर ऑफिस जाने से पहले मेल चेक कर लिया करते थे...मैं जान बूझकर आस-पास ही मंडरा रही थी कि जरा चेहरे का एक्सप्रेशन देख सकूँ. थोड़ी भृकुटी चढ़ी देखी तो पूछ लिया.."क्या हुआ "
उन्होंने कहा .."पता नहीं कोई लेडी है..दोस्ती करना चाहती है ...मना करने के बाद भी रोज मेल भेजती है....अभी इसे स्पैम में डालता हूँ "मैने थोड़ी सिफारिश की ..."रिप्लाई करने में क्या जाता है....देखें ...आगे क्या कहती है?"
पर उसके बाद उन्होंने कुछ ऐसा कहा कि मुझे तुरंत ही सच बताना पड़ा......दरअसल कहा कि..."ये लोग कॉल गर्ल्स होती हैं...ऐसे ही मेल भेजा करती हैं..."
और मेरा फिल्म "मित्र' की तरह इस प्रकरण को लम्बा खींचने का मंसूबा अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया. :(
("मित्र' फिल्म में पति-पत्नी ही चैट फ्रेंड हो जाते हैं....और एक दूसरे के गहरे दोस्त बन जाते हैं...एक दूसरे की समस्याएं हल करते हैं....पति काम के बहाने ड्राइंग रूम में बैठकर और पत्नी...बेडरूम से अपने अपने लैपटॉप से आपस में ही चैट करते हैं....)
पर हकीकत और फिल्म में यही अंतर होता है.
बच्चों की मासूम नटखटों और शरारतों को याद करना-हमें बच्चा बने रहने देता है ...किसि दिन मिलवाती हूँ मेरे दोनों से भी....
जवाब देंहटाएंहा हा.... दिलचस्प.... वैसे इस मज़ेदार पोस्ट ने ऐसे ही कई किस्से याद दिला दिए..
जवाब देंहटाएंपतिदेव का ठोक-बजाकर परीक्षण कर लिया? गुसलखाना शब्द मजेदार निकला। आज न जाने कितने ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ बच्चे नहीं जानते। दोनों ही वाकये बहुत ही आनन्द देने वाले हैं।
जवाब देंहटाएंहकीकत और फिल्म का यही अन्तर है।
जवाब देंहटाएंशरारतें बेहद दिलचस्प हैं :)
जवाब देंहटाएंहमारे बच्चो के संग भी कई बार ऎसे वाक्य हुये हे, तब बहुत मजा आता हे, चलिये आप ने भई साहब को जान परख लिया, अब आओ का आईडिया पा कर कई अन्य ब्लाग साथी अपने जीवन साथी को भी परखेगी/गे :) शुकर हमारी बीबी का ई मेल आईडी, ओर मेरा ई मेल आई डी ओर पास वर्ड बच्चो को पता हे, ओर हम से पहले वो ही हमे चेक कर लेगे:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, धन्यवाद
आप ना दी, बहुत शरारती हो. मेरे सीधे-सादे जीजाजी को परेशान मत किया करो. बच्चे तो खैर अब आपको मज़ा चखाते होंगे :-)
जवाब देंहटाएं@ मुझे नहीं लगता आजकल के बच्चे इस शब्द का अर्थ जानते होंगे :)
जवाब देंहटाएंआजकल के बच्चे जो जानते हैं वो हम नहीं जानते। और वे अपने द्वारा प्रयुक्त शब्द हम पर आजमाने लगे तो ....!
***
दूसरा भाग तो लाजवाब है। पहले तो ज़ोरदार हंसी आई, फिर खुशी हुई। इतने खु़शनसीब हैं आप!
बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
बाक़ी ... आपके आलेख को पढ़ने के बाद तो बिल्कुल ही नहीं मानने को तैयार हूं कि हक़ीक़त और फ़िल्म में अंतर है।
जवाब देंहटाएंकई, या अधिकांश फ़िल्में हक़ीक़त के ईर्द-गिर्द ही बुनी जाती हैं। दसियों उदाहरण दे सकता हूं जिनमें उनकी तरह, क्या नाम बताया था आपने, मि. ... (नाम शायद बताना भूल गईं) ओके, आपके पतिदेव की तरह निष्ठावान होते हैं।
@मुक्ति
जवाब देंहटाएंएक पोस्ट लिखने ही वाली थी, बेटो की शैतानियों पर...अब तुम्हारे कमेंट्स देख ...शायद नेक्स्ट पोस्ट में ही लिख दूँ...अपनी व्यथा-कथा ......सब तो जैसे इंतज़ार ही कर रहे हैं कि जानें कि मैं कब परेशान हुई...:)
@मनोज जी,
जवाब देंहटाएंऑफ कोर्स होते हैं....यहाँ कहानी आगे नहीं बढ़ने की बात पर कहा.....कि फिल्म और हकीकत में अंतर होता है.
आपके लिखने का तरीका वास्तव में बहुत रोचक है।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इसे पढना।
आपके दूसरे अनुभव का अनुभव मुझे भी हुआ है। बस यहां फर्क इतना है कि पुराने दोस्त से मैं आगे बातचीत नहीं करना चाहता था,सो उन्होंने ऐसा ही ही एक फेक आईडी बनाकर मुझसे बातचीत फिर से शुरू कर दी। पर कहते हैं न कि झूठ का चेहरा ज्यादा दिन छुपता सो मुझे उन पर शक होने लगा कि वे मेरे बारे में इतना सब कैसे जानते हैं। और आखिर एक दिन राज खुल गया।
जवाब देंहटाएंऔर गुसलखाने से याद आया कि बचपन में मुझे गुड़ रोटी खाना बहुत अच्छा लगता था। एक दिन मैंने शाम के वक्त अपनी मां से कहना चाह रहा था कि मुझे गुड़ रोटी खानी है। पर और भाई बहन न सुन लें इस चक्कर में मैंने गुड़ के बजाय उसका पहला अक्षर ही बोला। अब आप समझ सकती हैं कि उसके बाद मेरी क्या हालत हुई होगी।
जवाब देंहटाएंहाहा...गुसलखाना...मज़ा आ गया. रश्मि, तुम्हारी पोस्ट पढने के बाद मैने तुरन्त ही अपनी बिटिया, विधु से पूझा-’ गुड़िया, तुमने गुसलखाना देखा है? उसने बड़ी मासूमियत से सिर हिला दिया. मैने कहा- हद है. तुमने गुसलखाना नहीं देखा. तो बोली- मां, ये कहां है? तुमने कहां देखा? सबने देखा माने इसकी ब्रांच हर जगह होती है क्या?"
जवाब देंहटाएंहाहाहा.....
हम लोगों की भाषा उर्दू-प्रधान इसलिये रही, क्योंकि हमारी नानी-दादी इस भाषा का इस्तेमाल बहुतायत करती थीं. हिन्दुस्तानियों की भाषा उर्दू मिश्रित होती थी, जो आज अंग्रेज़ी मिश्रित हो गयी है. दूसरे, हम लोगों की पढने की आदत. आज तो बच्चों से हिन्दी के कठ्नि शब्द के ही माने नहीं आते.
और पतिदेव को क्या खूब बुद्धू बनाया....मज़ा आ गया पढ के.
@ राजेश जी
जवाब देंहटाएंओह!! पता नहीं,आपके इस अनुभव से लोगो को आइडिया ना मिल जाए...सतर्क रहना पड़ेगा..:)
जितने मजेदार किस्से ... उतनी ही मजेदार पोस्ट ... बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंहा हा, फेक आइडी के तो बहुत जबरदस्त किस्से हुए थे हमारे कॉलेज में :) बगल में बैठकर कईयों को बेवकूफ बनाया जाता था.
जवाब देंहटाएंरश्मि जी , बड़ा शुक्र रहा ।
जवाब देंहटाएंदुनिया में विश्वामित्र से बड़ा ऋषि कोई नहीं होता । :)
मेडिकल कॉलिज में एक बार हमने भी एक मित्र को ठेपडी खिलाने का वादा किया था ।
खुशनुमा पल, दिलचस्प यादें
जवाब देंहटाएंगनीमत है! अभी हमारे जुड़वाँ जानते हैं पिछली पीढ़ी की भाषा
बेचारे बच्चे ---- और मेल वाला मामला तो बहुत मजेदार रहा
जवाब देंहटाएंदोनों रहस्य बडे गूढ रहे ।
जवाब देंहटाएंमेल मिलाप से पहले ही फेल हुआ.
जवाब देंहटाएंमजेदार अनुभव.
जवाब देंहटाएंअच्छे बच्चे बनाने के लिए अगर गुसलखाना घुमाना पड़े तो घुमा दीजिए न... तभी तो कहते हैं दाग अच्छे हैं.... फेक आईडी...?? बस मत पूछिए... बड़ा खतरनाक मामला होता है :)
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट... मिस्टर रश्मि तो बहुत ही पत्निव्रता निकले .. वरना ९९ % लोग तो आगे बढ़ ही जाते हैं इन्क्लुडिंग माइसेल्फ़... दोनों बच्चे स्मार्ट हैं...
जवाब देंहटाएंहा हा!! मजेदार....मित्र फिल्म देखी थी अतः सतर्क ही रहते हैं. :)
जवाब देंहटाएंयह तो बच्चे हैं। हमारे एक अधेड मुम्बैया मित्र भी होटल खोलना चाहते थे और उसका नाम खालिस उर्दू में रखना चाहते थे। "गुसलखाना" उनके चुने हुए नामों में से एक था। जब मैने अर्थ बताया तो बेचारे शर्मिन्दा हो गये।
जवाब देंहटाएंआजकल कई शब्द सुनकर तो हमें भी ऐसा लगता है की क्या ये शब्द पहले भी सुने थे ...हमारे यहाँ तो आजकल शुद्ध हिंदी की क्लास लगी रहती है ...
जवाब देंहटाएंदूसरा हिस्सा रोचक और मनोरंजक है ...
एक बार पतिदेव को इन्टरनेट से मोबाइल पर मेसेज भेजा ...दिन भर परेशान रहे :):)...
एक जैसी खट्टी -मीठी रोचक शैतानियाँ ... शायद इसलिए ही बनती है हमारी :):)
पिछले वाले पोस्ट पे जो कमेन्ट किया था वो कैंसल करता हूँ....सबसे अच्छी शैतानियों वाली पोस्ट ये है :) :)
जवाब देंहटाएंआप भी दीदी कुछ कम नहीं हैं लेकिन...रुकिए रुकिए एक दिन आपको भी अच्छे से मजा चखाना है, मतलब बेवकूफ बनाना है :) :)
@वंदना
जवाब देंहटाएंये ब्रांच वाली बात तो सबसे रोचक रही....
@मीनाक्षी जी,
जवाब देंहटाएंअब याद आ गया तो आप भी शेयर कर डालिए वो सारी शरारतें
@अभिषेक
जवाब देंहटाएंवो फेक आई डी वाले किस्से हम भी उस्त्सुक हैं सुनने को...{कहानी के लिए ही कुछ मेटेरिअल मिल जाए :)}
@अरुण जी,
जवाब देंहटाएंऐसा पत्नीव्रत जैसा कुछ नहीं है....बस नवनीत ने ज़माना देखा हुआ है....प्रैक्टिकल हैं...इस पर हमारी चर्चा भी हुई...बोले,"बिना जान-पहचान के क्यूँ कोई दोस्ती करना चाहेगा....कुछ तो दाल में काला होगा.
आप भी ज्यादा शेर ना बनिए....आप भी शायद ऐसा ही करते :)
@अनुराग जी,
जवाब देंहटाएंबताइए आपके दोस्त ने भी ये नाम चुन रखा था....अगर आपने सलाह ना दी होती...तो क्या हाल होता उनका :)
बेहद दिलचस्प मज़ेदार पोस्ट हैं
जवाब देंहटाएंवाह आनन्द हुआ गुसलखाने का वाकया पढ़कर | इसी तरह बच्चे हिदी की गिनती भी २० या २५ के आगे समझ नहीं पाते|
जवाब देंहटाएंऔर रविजा जी को इस तरह मत सताया करो |आपके पूरे परिवार को शुभकामनाये |
@शोभना जी,
जवाब देंहटाएंहा हा मजा आ गया....रविजा मेरा तखल्लुस है....यानि रश्मि रविजा मेरा पेन नेम है....पता नहीं कैसे मैने नाम का उल्लेख नहीं किया...पतिदेव का नाम नवनीत है.
आप भी गजब ही करती हैं। खूब धमाल रहा।
जवाब देंहटाएंआभार
हा हा!! मजेदार रहा आपका गुसलखाना और फेक आईडी
जवाब देंहटाएंयह गुसलखाना पसंद आया...बेचारे बच्चे ...
जवाब देंहटाएंलगता है इस घर में माँ अधिक शरारती है :-)
शुभकामनायें !
गुसलखाने का असली मतलब जानकर बच्चों का मुंह कैसा बना होगा, समझ सकता हूं...बेचारे...मां के मारे...
जवाब देंहटाएंनवनीत जी का जवाब साबित करता है कि हमारी बहना कितनी खुशकिस्मत है...
वैसे कॉल गर्ल के उल्लेख पर याद आया...हमारे मेरठ में एक परिचित महिला की बेटी दिल्ली पढ़ने आई हुई थी...लड़की मेहनती थी, इसलिए पढ़ाई का बोझ खुद उठाने के लिए पार्ट टाइम जॉब भी कर लिया...एक दिन वही महिला गर्व के साथ कहने लगीं...हमारी शिल्पी तो अब पढ़ाई के साथ-साथ कॉल-गर्ल भी हो गई है...जिसने सुना, उसके काटो तो ख़ून नहीं...फिर राज़ खुला कि बेचारी शिल्पी किसी कॉल सेंटर में सर्विस करने लगी है...इसे कहते हैं अंग्रेज़ी की टांग तोड़ना...
जय हिंद...
हा हा, खुशदीप जी। अंग्रेजी की ऐसी टाँग तोड़ने वाला किस्सा हमारे साथी अध्यापक भी सुनाते हैं। कल उनसे दोबारा सुनकर लिखूँगा।
हटाएंपति हो तो ऐसा, वाकई मान गए :) वैसे जाल ओह सारी काल गर्ल का नाम सुनते ही हर सीधे साधे इंसान को झुरझुरी आ जाती हैं !
जवाब देंहटाएंआपको उनका अकाउंट पासवर्ड पता है ,उन्हें नहीं -जरुरत ही नहीं समझी होगी ..या कौन अप्रैल फूल बना -यह भी मार्के की बात है !
यही है तो (नारी ) नागरिक जागरूकता
गुसलखाना की गुसल जब्बर्दस्त थी. वैसे बच्चों को ज्यादा परेशान करना ठीक नहीं. ज्यादा मजाक भारी पड सकता है.
जवाब देंहटाएंपतिदेव को तो आपने इमोसनल अत्याचार की तरह टेस्ट करके सती-सावित्री की तरह क्लीन चिट दे दी. एह बदिया रहा. उम्दा संस्मरण. बधाई.
पढ तो कल ही ली थी मगर वक्त नही मिलने के कारण कमेंट नही दे पाई………कुछ मीठी यादें ही हमेशा याद रहती हैं……………किस्से मज़ेदार रहे।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी , आपकी शरारत मजेदार लगी , लेकिन जीजू तो जबरदस्त पत्निव्रता निकले।
जवाब देंहटाएंमैंने अपने बेटे से पूछ लिया है उसने बता दिया कि उसे अब नही जाना गुसलखाने और अब जाउंगा तो खुद हो आउंगा.
जवाब देंहटाएंफेक आई डी बहुत लोग बनाते हैं.बस जरा ये सोचिये कि अगर मेरी तरह वो दोस्ती के मिशन पे होते तो क्या हाल होता आपका.
@ zeal
जवाब देंहटाएंअरे बाबा...अगर वो पत्निव्रता हैं...तो अधिकाँश पति पत्नीव्रता और अधिकाँश पत्नियाँ भी पतिव्रता होती हैं..ऐसा कोई नायाब काम नहीं किया उन्होंने.....आजकल कोई लालायित नहीं होता लड़कियों से इतनी दोस्ती को.
भई वाह ! दोंनो ही किस्से बहुत रोचक रहे ! आजकल के बच्चों का हिन्दी उर्दू का ज्ञान बहुत ही कामचलाऊ होता है ! आपने दोनों को बहुत बनाया ! और पतिदेव को भी खूब लपेटा ! लेकिन उनकी सतर्कता और सजगता ने आपकी पोल खोल दी ! दोनों संस्मरण पढ़ कर मज़ा आया ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंहा हा हा मज़ेदार किस्सा। शुभ्क़कामनायें।
जवाब देंहटाएंये फेक आई डी वाली बात मेरे साथ भी हो चुकी है पर मेरी छोटी साली ने ऐसा किया .... वैसे मैने भी कोई जवाब नही दिया ऐसी मेलों का और मामला जल्दी ही फुस्स हो गया ...
जवाब देंहटाएंमजेदर रहे दोनों किस्से..
जवाब देंहटाएंकल बच्चों की आखिरी परीक्षा के बाद मैं भी उन्हें गुसलखाने में घुमा ले आता हूँ।
धन्यवाद, आपने बच्चों को घुमाने का एक अच्छा स्थान बताया।
:)
मज़ेदार रही ये शरारत भरी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआज के बच्चे पचपन छप्पन नहीं जानते.. गुसलखाना तो दूर की बात है.. अब तक छप्पन को मेरी बेटी "अब तक फिफ्टी सिक्स" कहती थी... पोस्टर पर ५६ लिखा होता था..
जवाब देंहटाएंपतिदेव वाले किस्से पर एक स्माइली..
;)
शीर्षक तो सच में खतरनाक लगाया है। अच्छी और चुलबुली पोस्ट है।
जवाब देंहटाएंआज पहली बार आपके यहाँ आना हुआ ....बच्चों से ज्यादा तो उनकी मम्मी शैतान लगती हैं. हमारे पुत्तर जी ने अभी १२ वीं का इम्तेहान दिया है और साहबजादे को 'कामायनी' क्या है नहीं मालूम .....बाबा नागार्जुन, अज्ञेय और फणीश्वर नाथ रेणु के बारे में कभी नहीं सुना. उन्हें 'डगर ' का अर्थ भी नहीं मालुम. अब सोचता हूँ अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ा कर बहुत बड़ी गलती हो गयी. वसीयत करनी पड़ेगी कि ख़ानदान का जो बच्चा अंग्रेज़ी स्कूल
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनोहारी लेखिका की मनोहारी पोस्ट आपका कोई लेख अपठनीय नहीं होता ,सहज रूप से बांध लेता है अपने जाने अनजाने पाठक को बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंदोनों ही वाकिये मजेदार रहे..........
जवाब देंहटाएंबाप रे ! इतना मजेदार ! मैं तो अनायास आ गया। खूब आनंद आया पढ़कर।
जवाब देंहटाएंबरास्ते पाबला जी आज यह पोस्ट पढ़ी .. मज़ा आ गया ।
जवाब देंहटाएंपाबला जी के ब्लॉग से आपकी इस बेहतरीन पोस्ट पर पहुँचे। दोनों ही संस्मरण मजेदार रहे।
जवाब देंहटाएंएक बार मैंने भी अपनी पत्नी जी की परीक्षा ली थी पर उनके पतिव्रत की नहीं बल्कि इस बात की कि उन्हें मेरी पत्नीव्रता होने की कितनी परवाह है। आपकी पोस्ट से वह प्रसंग लिखने की प्रेरणा मिली है।