रविवार, 6 मार्च 2011

पिता से हुए हताहत के परिवार को बेटे से मिल रही राहत

सारंग परसकर और सुनील परसकर
अक्सर हम अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या से थोड़ी  निजात पा...अखबार उठा लेते हैं या फिर टी.वी. का रिमोट. पर दोनों जगह, ऐसी खबरे देखने या पढ़ने को मिलती हैं कि सारे पेज पलट कर अखबार वापस रख दिया जाता है और सौ चैनल सर्फ़ कर उलजुलूल  प्रोग्राम्स की झलकियाँ देखने के बाद टी.वी. बंद करने को रिमोट का बटन दब जाता है. लेकिन यही अखबार और टी.वी. कभी-कभी इंसानियत, ईमानदारी, मेहनत,सच्चाई का ऐसा नज़ारा पेश करते हैं कि दुनिया का एक ख़ूबसूरत रूप नज़र आने लगता है.


पहले अखबार की खबर. कुछ दिनों पहले, मुंबई मिरर में एक बहुत ही प्रेरक वाकया पढ़ने को मिला.  जहाँ उन्नीस साल  का एक लड़का, पार्टी-गर्लफ्रेंड-रॉक बैंड- डिस्क की दुनिया से दूर समाजसेवा में लगा हुआ है. DCP सुनील परसकर,  ने  1999 से 2001 तक एनकाउन्टर  स्पेशलिस्ट की एक टीम का नेतृत्व किया था और कई गैन्गस्टर को अपनी गोली का निशाना बनाया था.


बार डांसर की बेटी अपनी टेलरिंग शॉप में
दस साल  बाद उनका बेटा 'सारंग परसकर ' एक NGO चला रहा है . जो उन क्रिमिनल्स के परिवार और उनके बच्चों  के पुनर्स्थापन के लिए  कटिबद्ध है. इनमे  से ज्यादातर क्रिमिनल उसके पिता की गोलियों का शिकार बने थे .2009 में सारंग ने 'रास्ता' नामक एक NGO बनाया और तब से दस परिवार को अपराध की दुनिया से दूर, एक सामान्य  जीवन बिताने में मदद कर चुके हैं. फिलहाल अमेरिका के एक बिजनेस स्कूल में पढ़ रहे सारंग कहते हैं, " अपराधियों या फिर सेक्स वर्कर्स के बच्चे आज ना कल अपराध की दुनिया अपना ही लेते हैं. क्यूंकि समाज उन्हें अपराध मुक्त जीवन जीने नहीं देता. अपराधी के बच्चे का कलंक उनके माथे पर लिख दिया जाता है, जबकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती."


अब सारंग इस NGO का संचालन अमेरिका से ही करते हैं. इसमें 25 वालंटियर्स हैं. जो उन परिवारों  से संपर्क  करते हैं, जिनके पिता या परिवार का मुखिया, अपराधी थे और मारे गए.  चैरिटेबल और्गनाइजेशन से मिले लोन और डोनेशन पर 'रास्ता' अपने लक्ष्य को अंजाम देती है. किसी को आर्थिक मदद, किसी को कैमरा या  सिलाई मशीन दी जाती है. बार डांसर्स को मेहन्दी लगाने या ब्यूटी पार्लर की ट्रेनिंग दी जाती है, जिस से वे कोई सम्मानजनक पेशा अपना सकें. एक 'बार डांसर' की उन्नीस वर्षीया  बेटी बताती है कि उसके पास भी अपनी माँ का पेशा अपनाने के सिवा कोई चारा नहीं था. पर उसके पहले ही रास्ता ने उसे सहारा  दिया और उसे सिलाई की ट्रेनिंग दी  और एक सिलाई मशीन उपलब्ध करवाई. आज उसकी टेलरिंग शॉप में बार डांसर का पेशा छोड़, तीन और लडकियाँ काम कर रही हैं.


गेटवे ऑफ इण्डिया पर टूरिस्ट का फोटो खींचता एक स्मार्ट सा लड़का, एक अपराधी का बेटा है और खुद भी चेन स्नैचर बन गया था. अब फोटोग्राफर का काम करता है और गर्व से कहता है, " सारंग सर ने मुझे ये कैमरा देकर एक इज्ज़त की ज़िन्दगी बख्शी है " वह  500 से 1000 रुपये रोज कमाता है. जो 'चेन खींचने'  वाले दिनों की तुलना में काफी कम है. पर कहता है.." पैसे कम हैं, पर दिन रात पुलिस का डर तो नहीं है"


सुनील परसकर जो अब Anti-Narcotics cell,  के हेड हैं, 'रास्ता' के प्रयासों की सराहना करते हुए कहते हैं, "अक्सर इन अपराधियों के बच्चे को समाज स्वीकार नहीं करता और वे भी उसी अपराध की दुनिया में धकेल दिए जाते हैं, जिसमे उसके माता-पिता जीते थे और मारे गए." अक्सर ये बच्चे बड़े अपराधकर्मियों  द्वारा ट्रेंड किए जाते हैं और अंडरवर्ल्ड  के लिए काम करने को तैयार किए जाते हैं. बहुत जरूरी है कि  इन्हें सही समय पर उस  दुनिया में जाने से रोक लिया जाए."


गेटवे ऑफ इण्डिया पर फोटोग्राफर जो कभी चेन स्नैचर था
'रास्ता' सिर्फ सारंग के पिता द्वारा मारे गए, क्रिमिनल्स के बच्चों  को ही सहारा नहीं देती, बल्कि पुलिस एन्काउन्टर  में मारे गए किसी भी अपराधी के बच्चे को अपना जीवन पुनः प्रारम्भ करने का प्रयत्न करने में सहायता देती है..

सारंग कहते हैं ," किसी भी व्यक्ति  को एक अपराधी करार देना बहुत आसान है पर उसके लिए इस छवि से छुटकारा पाकर सामान्य  जीवन जीना बहुत ही मुश्किल है."


(लिखते वक्त लगा, टी.वी. वाले प्रकरण  का जिक्र दूसरी  पोस्ट  में  होना चाहिए, )

36 टिप्‍पणियां:

  1. saarang ke prayaas kee jitnee prashasaa ho kam hai. uskee soch mai mauliktaa hai aur apne dam kuchh karne ka dam kham bhee. aapka shukriya aise kaam ko charcha mai lane ke liye.

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  2. ऐसे व्यकतित्व ही समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और नया मार्ग दिखाते हैं. हत्या, लूट-पाट, बलात्कार की खबरों के बीच सचमुच ऐसी खबरें कितना सुकून देती हैं. अच्छाई पर भरोसा होने लगता है. शानदार पोस्ट. बधाई.

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  3. बहुत सुंदर जानकारी, काश हमारा समाज ऎसे ही लोगो की मदद करे, सहारा दे तो कितने लोग अपराधी बनने से बच जाये, धन्यवाद

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  4. ऐसे रास्ते देश में जितने ज़्यादा से ज़्यादा निकलें उतना ही इसका अपनी समस्याओं से निपटने का रास्ता आसान होगा...

    जय हिंद...

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  5. सलाम
    आंखों में
    अश्रु और दिल में सम्मान भर के
    नत मस्तक
    आपके लिये भी
    विनत आभार

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  6. पिता से हुए हताहत के परिवार को बेटे से मिल रही राहत. (आपके शीर्षक का शब्‍द 'आराम' नहीं जमा, इसलिए शीर्षक सुझाती हुई टिप्‍पणी). वैसे पोस्‍ट का विषय और प्रस्‍तुति दोनों ही लाजवाब.

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  7. ये "रास्ता" वाकई अनुकरणीय है,रश्मि जी। उजाले की खबर देती पोस्ट। नमन करता हूँ परस्कर परिवार के उस जज़्बे को ।

    और अशेष साधुवाद आपको ऐसी पोस्ट के लिये।

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  8. maine bhi padhi thi ye news di...sarang jaise yuvao ki hi aaj desh ho jarurat hai...bahut hi prerak kaam kar rhe hai wo bhi itni kam umar me...bahut bahut dhanywaad aapka jo aapne blog per bhi share kiya ise...

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  9. समाजसेवी संगठन अगर ईमानदारी से कार्य करें तो बदलाव आ सकता है।

    रास्ता से परिचय कराने के लिए आभार

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  10. फ़िल्म दीवार में एक माँ एक बेटे की कमर पर पिस्तौल सजाती है और दूसरे बेटे के लिये मंदिर जाती है. जबकि उसको पता है कि दोनो&परस्पर विरोधी इच्छाएँ हैं. यह संस्कार देने की बात है. परसकर साहब और उनके बेटे दोनों ने समाज को एक नई राह दिखाई है..सारन्ग परसकर के जज़्बे को सलाम!!

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  11. एक बहुत अच्छा काम -शेयर करने का शुक्रिया !

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  12. धन्यवाद ...जब har तरफ निराशा हो तो ऐसे उदाहरण आशा जगाते है

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  13. आपकी यह पोस्‍ट बताती है कि एक ही समस्‍या से निपटने के कई तरीके हो सकते हैं। 'रास्‍ता' सचमुच मानवीय रास्‍ता है।

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  14. रश्मि जी , सारंग के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा । आज जरूत है ऐसे ही संवेदनशील लोगों की जो निस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा कर रहे हैं ।

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  15. इस तरह निस्वार्थ सेवा कितने लोग करते हैं ……………अगर ऐसा सभी करने लगे तो देश और समाज की दशा काफ़ी सुधर जाये…………सुन्दर आलेख्।

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  16. सारंग परसकर का मानवीय रास्ता कई युवाओं के जीवन को प्रेरणा देगा.. जो काम सरकार को करना चाहिए वह सारंग कर रहे हैं... लेकिन यदि पिता इस से जुड़े ना होते हो सारंग के लिए उन परिवारों तक पहुंचना, उन्हें विश्वास में लेना कठिन काम था... लेकिन इस से सारंग की महत्ता कम नहीं होती... सारंग को शुभकामना !

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  17. " किसी भी व्यक्ति को एक अपराधी करार देना बहुत आसान है पर उसके लिए इस छवि से छुटकारा पाकर सामान्य जीवन जीना बहुत ही मुश्किल है."
    sahi kaha sarang ne

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  18. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ... सारंग जैसे युवा को ही असली प्रतिनित्व करना चाहिए युवा पीड़ी का ...
    बहुत ही सार्थक पोस्ट है ...

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  19. सारंग जी बहुत पुण्य का कार्य कर रहे हैं ! किसीको धिक्कार कर समाज के सामने एक्स्पोज़ कर अपमानित और प्रताड़ित करना आसान है लेकिन किसी धिक्कारे हुए को सम्मानित और सामान्य जीवन बिताने के लिये एक ठोस आधार देना उतना ही मुश्किल कार्य है ! सारंग जी की जितनी सराहना की जाये कम होगी और आपका भी बहुत-बहुत आभार है जो आप इतने उदार और विलक्षण व्यक्तियों के बारे में अपने ब्लॉग पर लिख कर सबसे परिचित कराती हैं ! शायद कुछ समझदार लोग इससे प्ररणा ले सकें और उस 'रास्ते' पर चलने के लिये अपने कदम बढ़ा लें जो उन्हें अपराध की राह से दूर ले जाये ! धन्यवाद रश्मि जी ! आपका आलेख बहुत अच्छा लगा !

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  20. ऐसी खबरें सचमुच कितना सुकून देती हैं

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  21. कमाल का काम कर रहा है सारंग ।
    बधाई इस उम्दा प्रस्तुति के लिए ।

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  22. अत्यंत सुंदर और अनुकरणीय, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  23. बहुत सुंदर जानकारी| धन्यवाद|

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  24. इस तरह के पोस्ट से ब्लॉग दुनिया के गरिमा और साख बढती है।
    हर आदमी में अच्छाई का तत्व होता है। बुराई का भी। बुराई के तत्व पर गोलियों से विजय नहीं पाई जा सकती, पर प्रेम, स्नेह और उचित मार्गदर्शन से
    भटका हुआ इंसान सही रास्ते पर आ सकता है।
    कम से कम यह पोस्ट तो इससे सहमत है।

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  25. सही से पढ़ा नहीं है दी...आराम से सुबह पढूंगा...वैसे एक बात मुझे जो आपकी सबसे अच्छी लगती है वो ये की अखबार या कोई और खबर आपको दिख जाती है जो हम लोग अनदेखा कर देते हैं, उसे आप ब्लॉग पे लिख देती हैं...

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  26. बहुत सराहनीय काम कर रहे है सारंग जी |
    ऐसी सकारात्मक पोस्ट जीवन को उर्जा से भर देती है |

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  27. सारंग को बहुत बहुत शुभकामनायें। ऐसे ही काम में लगे रहें।

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  28. सारंग के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा ...
    इस तरह के प्रयास सामाजिक संतुलन को बनाये रखते हैं ...
    इसे सभी पाठकों से बांटने के लिए शुक्रिया !

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  29. रश्मि सारंग जैसा व्यक्तित्व सच मे ही समाज के लिये वरदान है। काश हम लोग भी उनसे कुछ प्रेरणा ले सकें\ धन्यवाद उनसे परिचय करवाने के लिये।

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  30. अनुकरणीय पहल !

    क्या कोई ऐसा समय आएगा कि पुलिस इनकाउंटर की आवश्यकता ही ना रहे ?

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