आज सारी दुनिया की नज़रें मिस्र में चल रहे आन्दोलन पर लगी हुई है. टी.वी. हो या अखबार, वहाँ के पल-पल बदलते हालात की खबर को प्रमुखता से स्थान दे रहे हैं. ऐसे में 'मुंबई मिरर' में छपी एक अलग सी खबर ने ध्यान खींचा. 'आसमा महफूज़ ' के विषय में छपी इस खबर ने चौंकाया भी, अभिभूत भी किया..और गौरवान्वित भी. कि 'जहाँ चाह वहाँ राह'...'मजबूत इरादे, आंधी का रुख भी बदल सकते हैं'..जैसी उक्तियाँ सिर्फ उक्तियाँ नहीं हैं...कवि दुष्यंत ने यूँ ही नहीं कह दिया...
."कौन कहता है आसमान में सूराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो"
जरूरत सिर्फ एक पत्थर उछालने के दृढ संकल्प की है...
मिस्र में जनाक्रोश की जड़ें बहुत गहरी है और इसके अनेक कारण है जिसे अशोक कुमार पाण्डेय ने जनपक्ष पर विस्तार से लिखा है.
पर लोगो के मन में यह सवाल उठ रहे हैं कि..इस क्रान्ति की आग को क्या छब्बीस वर्षीय 'आसमा महफूज' के इस वीडियो ने चिंगारी दिखाई. आसमा महफूज़ ने 6 अप्रैल 2010 को सामान विचार के साथियों के साथ मिलकर ,'हुस्नी मुबारक' के शासन के विरुद्ध एक मुहिम चलाई और "यूथ मूवमेंट' की स्थापना की . 18 जनवरी 2011 को उन्होंने बिलकुल जैसे ह्रदय के अंतरतम कोने से एक बहुत ही ओजस्वी अपील,अपने देशवासियों से की और उसे रेकॉर्ड करके इंटरनेट पर अपलोड कर दिया.
उन्होंने इस वीडियो में कहा.है....." चार मिस्रवासियों ने आत्मदाह किया...इस आशा में कि शायद ट्यूनीशिया की तरह उनके देश में भी क्रान्ति आए और उन्हें...स्वतंत्रता, न्याय और इज्ज़त की ज़िन्दगी मिले. आज उनमे से एक की मृत्यु हो गयी. और लोगो की प्रतिक्रिया है कि, "अल्लाह उन्हें इस पाप के लिए माफ़ करे...उसने व्यर्थ ही आत्महत्या की"
क्या लोगो में जरा भी संवेदना नहीं बची है...मैने नेट पर लिख कर पोस्ट कर दिया ," मैं एक लड़की हूँ. और मैं आज 'तहरीर स्क्वायर' पर जाकर एक बैनर लेकर अकेली खड़ी रहूंगी . तब शायद लोगो की संवेदना जागे.
मैने अपना फोन नंबर भी लिख दिया था कि शायद लोग मुझसे कॉन्टैक्ट करें और साथ देने आएँ. पर केवल तीन लोग आए और तीन गाड़ियों में पुलिस भर कर आई. कुछ किराए के मवाली भी हमें डराने आए. वे पुलिस ऑफिसर्स हमें समझाने लगे, कि जिन लोगो ने आत्मदाह कि वे लोग मनोरोगी थे."
नेशनल मिडिया के लिए तो जो भी विरोध करे वो मनोरोगी है.पर अगर वे मनोरोगी थे तो पार्लियामेंट बिल्डिंग में क्यूँ आत्मदाह किया.??
मैं ये वीडियो सिर्फ एक सिंपल मैसेज देने के लिए बना रही हूँ कि हमलोग २५ जनवरी को तहरीर स्क्वायर जाएंगे और अपना विरोध दर्ज करेंगे. हमलोग अपने मौलिक अधिकार की मांग करेंगे . राजनितिक अधिकार नहीं सिर्फ, मानवीय अधिकारों की. ये सरकार...राष्ट्रपति...सुरक्षा बल... सब भ्रष्टाचारी हैं.
जिनलोगो ने आत्मदाह किए वे मृत्यु से नहीं डरते थे बल्कि अपनी सुरक्षा बल से डरते थे. क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? क्या आप भी सुरक्षा बल से डरते हैं? क्या आप भी आत्मदाह करेंगे? या फिर आपको पता ही नहीं कि आप क्या करें.
मैं अकेली २५ जनवरी को 'तहरीर स्क्वायर' जा रही हूँ और गली-गली में पर्चे बाटूंगी. मैं आत्मदाह नहीं करुँगी.अगर सिक्युरिटी फ़ोर्स मुझे जलाना चाहे बेशक जलाए .लेकिन मैं चुप नहीं बैठूंगी.अगर आप एक सच्चे मर्द हैं तो मेरे साथ आइये.
कौन कहता है,औरतो को आगे नहीं बढ़ना चाहिए, क्यूँकि उनकी पिटाई हो सकती है और ये शर्म की बात है...अगर ऐसा है तो उन्हें शर्म आनी चाहिए जो पिटाई करें. अगर आप में खुद के लिए थोड़ी भी इज्जत और मर्दानगी है तो मेरे साथ आइये.
लोग कहते हैं, मुट्ठी भर लोग क्या कर लेंगे? जो भी ये कहता है , मैं कहती हूँ..हम मुट्ठीभर हैं हैं..आपकी वजह से. क्यूंकि आप हमारे साथ नहीं. आप भी राष्ट्रपति और सुरक्षा सैनिक की तरह ही राष्ट्रद्रोही है. जो सड़कों पर अपने ही देश के नागरिको को पीटते हैं. आपके आने से फर्क पड़ेगा. हमारे साथ आइये.
अपने पड़ोसी, दोस्त, सहकर्मियों,सब से बात कीजिए और उन्हें अपने साथ आने के लिए तैयार कीजिए. उन्हें तहरीर स्क्वायर आने की जरूरत नहीं है. वे कहीं भी जा सकते हैं और 'हम आज़ाद हैं' के नारे लगा सकते हैं." सिर्फ घर में बैठ कर और न्यूज़ और फेसबुक पर हमारी गतिविधियाँ फॉलो करना शर्म की बात है.
अगर आप में सचमुच मर्दानगी है तो सडकों पर आइये मेरी सुरक्षा के लिए...मुझ जैसी कई लड़कियों की सुरक्षा के लिए. अगर आप घर में चुपचाप बैठे रहंगे और हमें कुछ हो गया तो हमारे दोषी आप होंगे. हमारी रक्षा नहीं करने के लिए ,अपने देश के प्रति भी आप अपराधी होंगे.
गलियों में... सडकों पर जाइए...sms भेजिए... नेट पर पोस्ट कीजिए ...लोगो में जागरूकता लाइए. अपने परिवार..अपने दोस्त.....अपनी बिल्डिंग....अपनी कॉलोनी के लोगो को बताइए एक व्यक्ति अगर पांच या दस लोगो को बताए फिर वो और दस लोगो को...तो क्रान्ति आने में देर नहीं लगेगी.
आत्मदाह करने से अच्छा है,कुछ सकारात्मक करें, जो बदलाव लाएगा...एक बड़ा बदलाव.
कभी ना कहें...कि "कोई आशा नहीं..जैसे ही यह कहा जाता है..आशा वैसे ही गायब हो जाती है" ( Never say there's no hope Hope disappears only when you say there's no hope ) जबतक आपलोग हमलोगों के साथ रहेंगे तब तक आशा बनी रहेगी
सरकार से मत डरिए सिर्फ अल्लाह से डरिए...कुरान में भी कहा गया है,"अल्लाह तब तक किसी के हालात नहीं बदलते ,जबतक वह खुद अपनी हालात बदलने की कोशिश नहीं करता.
ये मत सोचिये कि आप सुरक्षित रहेंगे. कोई भी सुरक्षित नहीं होगा.हमारे साथ आइये और अपने अधिकार...मेरे अधिकार..अपने परिवार के अधिकार की मांग करिए"
मैं २५ जनवरी को तहरीर स्क्वायर जा रही हूँ. और कहूँगी.. NO TO
THIS CORRUPTION.... NO TO THIS REGIME
http://www.youtube.com/watch? v=A8lYkrgKZWg
."कौन कहता है आसमान में सूराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो"
जरूरत सिर्फ एक पत्थर उछालने के दृढ संकल्प की है...
मिस्र में जनाक्रोश की जड़ें बहुत गहरी है और इसके अनेक कारण है जिसे अशोक कुमार पाण्डेय ने जनपक्ष पर विस्तार से लिखा है.
पर लोगो के मन में यह सवाल उठ रहे हैं कि..इस क्रान्ति की आग को क्या छब्बीस वर्षीय 'आसमा महफूज' के इस वीडियो ने चिंगारी दिखाई. आसमा महफूज़ ने 6 अप्रैल 2010 को सामान विचार के साथियों के साथ मिलकर ,'हुस्नी मुबारक' के शासन के विरुद्ध एक मुहिम चलाई और "यूथ मूवमेंट' की स्थापना की . 18 जनवरी 2011 को उन्होंने बिलकुल जैसे ह्रदय के अंतरतम कोने से एक बहुत ही ओजस्वी अपील,अपने देशवासियों से की और उसे रेकॉर्ड करके इंटरनेट पर अपलोड कर दिया.
उन्होंने इस वीडियो में कहा.है....." चार मिस्रवासियों ने आत्मदाह किया...इस आशा में कि शायद ट्यूनीशिया की तरह उनके देश में भी क्रान्ति आए और उन्हें...स्वतंत्रता, न्याय और इज्ज़त की ज़िन्दगी मिले. आज उनमे से एक की मृत्यु हो गयी. और लोगो की प्रतिक्रिया है कि, "अल्लाह उन्हें इस पाप के लिए माफ़ करे...उसने व्यर्थ ही आत्महत्या की"
क्या लोगो में जरा भी संवेदना नहीं बची है...मैने नेट पर लिख कर पोस्ट कर दिया ," मैं एक लड़की हूँ. और मैं आज 'तहरीर स्क्वायर' पर जाकर एक बैनर लेकर अकेली खड़ी रहूंगी . तब शायद लोगो की संवेदना जागे.
मैने अपना फोन नंबर भी लिख दिया था कि शायद लोग मुझसे कॉन्टैक्ट करें और साथ देने आएँ. पर केवल तीन लोग आए और तीन गाड़ियों में पुलिस भर कर आई. कुछ किराए के मवाली भी हमें डराने आए. वे पुलिस ऑफिसर्स हमें समझाने लगे, कि जिन लोगो ने आत्मदाह कि वे लोग मनोरोगी थे."
नेशनल मिडिया के लिए तो जो भी विरोध करे वो मनोरोगी है.पर अगर वे मनोरोगी थे तो पार्लियामेंट बिल्डिंग में क्यूँ आत्मदाह किया.??
मैं ये वीडियो सिर्फ एक सिंपल मैसेज देने के लिए बना रही हूँ कि हमलोग २५ जनवरी को तहरीर स्क्वायर जाएंगे और अपना विरोध दर्ज करेंगे. हमलोग अपने मौलिक अधिकार की मांग करेंगे . राजनितिक अधिकार नहीं सिर्फ, मानवीय अधिकारों की. ये सरकार...राष्ट्रपति...सुरक्षा बल... सब भ्रष्टाचारी हैं.
जिनलोगो ने आत्मदाह किए वे मृत्यु से नहीं डरते थे बल्कि अपनी सुरक्षा बल से डरते थे. क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? क्या आप भी सुरक्षा बल से डरते हैं? क्या आप भी आत्मदाह करेंगे? या फिर आपको पता ही नहीं कि आप क्या करें.
मैं अकेली २५ जनवरी को 'तहरीर स्क्वायर' जा रही हूँ और गली-गली में पर्चे बाटूंगी. मैं आत्मदाह नहीं करुँगी.अगर सिक्युरिटी फ़ोर्स मुझे जलाना चाहे बेशक जलाए .लेकिन मैं चुप नहीं बैठूंगी.अगर आप एक सच्चे मर्द हैं तो मेरे साथ आइये.
कौन कहता है,औरतो को आगे नहीं बढ़ना चाहिए, क्यूँकि उनकी पिटाई हो सकती है और ये शर्म की बात है...अगर ऐसा है तो उन्हें शर्म आनी चाहिए जो पिटाई करें. अगर आप में खुद के लिए थोड़ी भी इज्जत और मर्दानगी है तो मेरे साथ आइये.
लोग कहते हैं, मुट्ठी भर लोग क्या कर लेंगे? जो भी ये कहता है , मैं कहती हूँ..हम मुट्ठीभर हैं हैं..आपकी वजह से. क्यूंकि आप हमारे साथ नहीं. आप भी राष्ट्रपति और सुरक्षा सैनिक की तरह ही राष्ट्रद्रोही है. जो सड़कों पर अपने ही देश के नागरिको को पीटते हैं. आपके आने से फर्क पड़ेगा. हमारे साथ आइये.
अपने पड़ोसी, दोस्त, सहकर्मियों,सब से बात कीजिए और उन्हें अपने साथ आने के लिए तैयार कीजिए. उन्हें तहरीर स्क्वायर आने की जरूरत नहीं है. वे कहीं भी जा सकते हैं और 'हम आज़ाद हैं' के नारे लगा सकते हैं." सिर्फ घर में बैठ कर और न्यूज़ और फेसबुक पर हमारी गतिविधियाँ फॉलो करना शर्म की बात है.
अगर आप में सचमुच मर्दानगी है तो सडकों पर आइये मेरी सुरक्षा के लिए...मुझ जैसी कई लड़कियों की सुरक्षा के लिए. अगर आप घर में चुपचाप बैठे रहंगे और हमें कुछ हो गया तो हमारे दोषी आप होंगे. हमारी रक्षा नहीं करने के लिए ,अपने देश के प्रति भी आप अपराधी होंगे.
गलियों में... सडकों पर जाइए...sms भेजिए... नेट पर पोस्ट कीजिए ...लोगो में जागरूकता लाइए. अपने परिवार..अपने दोस्त.....अपनी बिल्डिंग....अपनी कॉलोनी के लोगो को बताइए एक व्यक्ति अगर पांच या दस लोगो को बताए फिर वो और दस लोगो को...तो क्रान्ति आने में देर नहीं लगेगी.
आत्मदाह करने से अच्छा है,कुछ सकारात्मक करें, जो बदलाव लाएगा...एक बड़ा बदलाव.
कभी ना कहें...कि "कोई आशा नहीं..जैसे ही यह कहा जाता है..आशा वैसे ही गायब हो जाती है" ( Never say there's no hope Hope disappears only when you say there's no hope ) जबतक आपलोग हमलोगों के साथ रहेंगे तब तक आशा बनी रहेगी
सरकार से मत डरिए सिर्फ अल्लाह से डरिए...कुरान में भी कहा गया है,"अल्लाह तब तक किसी के हालात नहीं बदलते ,जबतक वह खुद अपनी हालात बदलने की कोशिश नहीं करता.
ये मत सोचिये कि आप सुरक्षित रहेंगे. कोई भी सुरक्षित नहीं होगा.हमारे साथ आइये और अपने अधिकार...मेरे अधिकार..अपने परिवार के अधिकार की मांग करिए"
मैं २५ जनवरी को तहरीर स्क्वायर जा रही हूँ. और कहूँगी.. NO TO
THIS CORRUPTION.... NO TO THIS REGIME
और छब्बीस जनवरी से आन्दोलन शुरू हो गया....लाखों लोग सड़क पर
उतर आए....आन्दोलन ने व्यापक रूप ले लिया है और अभी तक जारी है.
वह वीडियो इस लिंक पर देखी जा सकती है http://www.youtube.com/watch?
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
जवाब देंहटाएंबस इसी क्रांति की यहाँ भी जरूरत है और जब तक जनता खुद कदम नही उठायेगी हालात नही बदलेंगे ……………हमेशा बदलाव क्रांतियों से ही आये हैं और अगर आसमा के वीडियो से ऐसा हुआ है तो सही हुआ है कम से कम और लोग तो इससे कुछ सीखेंगे ही।
जवाब देंहटाएंजरुर क्रांति आयेगी हमारे यहाँ भी -एक पत्थर तो उछाला ही आपने |
जवाब देंहटाएंइन विचारो को सबको पढवाने का आभार |
जी… पत्थर तो उछला है और क्या ही तबियत से उछला है …… और अब मिस्र के तानाशाही फ़लक में छेद होना भी पक्का ही है…… !
जवाब देंहटाएंआस्मा बहुत अच्छी वक्ता हैं यह उन्हे सुन के लगता है। कोइ शक नहीं कि उनका एक कदम सिर्फ़ मिस्र ही नहीं दुनिया हर देश में परिवर्तन लायेगा। तारीख़ गवाह है जब भी एक आम आदमी अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति सचेत हुआ है, इतिहास में एक क्रान्ति दर्ज़ हुई है।
बहुत सार्थक पोस्ट, धन्यवाद !
एक बेहद सार्थक पोस्ट ... आभार इस जानकारी के लिए !
जवाब देंहटाएंishra se uthee ye chingaaree aage aur gul khilaayegee
जवाब देंहटाएंsinghaasan khaalee karo ki jantaa aatee hai
थोड़ा बहुत सुना तो था इस विडियो के बारे में लेकिन इस पोस्ट के जरिये पूरी बात विस्तार से जानने को मिला।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस जानकारी को शेयर करने के लिये।
बहुत संभव है कि आसमां के वीडियो ने ही इस आंदोलन को चिंगारी दी हो। लेकिन और भी बहुत कुछ रहा होगा। हिन्दुस्तान और मिस्र की स्थिति में बहुत फर्क है। इसलिए यह कहना बेमानी है कि यहां भी ऐसा आंदोलन हो सकता है। यहां एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
जवाब देंहटाएंअरे भाईयो आओ हम भी एक पत्थर उछाले, अगर इस देश को स्वर्ग बनाना हे, अपने बच्चो का भविष्या सुरक्षित बनाना हे, अपने को आजाद कहलाना हे, तो सीखे इन नन्ही सी जान से....
जवाब देंहटाएंसच है दी ! असल में अंदर ही अंदर सभी के एक आग सुलग रही थी, एक मौके के इंतज़ार में. हो सकता है कि सबको आसमा के वीडियो से ही प्रेरणा मिली हो.
जवाब देंहटाएंइससे ये बात सामने आती है कि कभी भी ये सोचकर चुप नहीं बैठना चाहिए कि कोई हमारे साथ नहीं आएगा या हम चुप बैठें कि कोई ना कोई तो आगे आएगा ही, हम क्यों आगे बढ़ें. एक कदम आगे बढ़ाना चाहिए कि कोई आगे आएगा तो ठीक अगर नहीं भी आया, तो भी हम अकेले ही चलेंगे.
@राजेश जी,
जवाब देंहटाएंमैने लिखा है कि "
मिस्र में जनाक्रोश की जड़ें बहुत गहरी है और इसके अनेक कारण है"
अपने देश में भी ऐसे ही आन्दोलन के आह्वान के लिए यह खबर यहाँ नहीं शेयर की गयी है....लोगो को इसकी जानकारी हो और यह भी पता चले कि मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो इन्सान क्या कुछ नहीं कर सकता.
विश्व के किसी कोने में ऐसे उदाहरण मिलते हैं तो उन्हें शेयर कर ख़ुशी मिलती है.
बड़े हौसले वाली लड़की है उससे लोग प्रेरित हुए कि नहीं इसके बारे में तय होता रहेगा पर सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि उसने पहल की !
जवाब देंहटाएंवो पलायनवादी नहीं लगती क्योंकि उसने व्यवस्था से असहमति दर्ज कराने के लिए खुदकुशी की बात नहीं की !
प्रविष्टि के लिए साधुवाद !
मैंने आज किसी से कहा अपने देश में भी आंदोलन करते हैं तो जवाब आया कि पहले हमारी तस्वीर पर फोटो चढेगी तब आंदोलन बढेगा !
जवाब देंहटाएंये लोग ही कुछ और होते हैं.
तुमने चाहा ही नहीं हालत बदल सकते थे, तेरे बाजुओं से उड़ान के पंख निकाल सकते थे.
जवाब देंहटाएंमगर तुम तो ठहरे झील के पानी कि तरह, दरिया होते तो दूर तक निकाल सकते थे. सुन्दर और रोचक पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई और साधुवाद...
...बांटने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंप्रेरक
जवाब देंहटाएंअन्याय के खिलाफ आंदोलनों की शुरुआत ऐसे ही होती है चिंगारी तो सभी के दिलो में होती है उन्हें बस जोशा और हिम्मत की हवा देने होती है फिर उस चिंगारी को आग बनते देर नहीं लगती है | संभव है की आसमा ने ही लोगों के दिलो की चिंगारी को हवा दी हो |
जवाब देंहटाएंwo patthar hamre desh me nahin hota shayad... :P
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक विडिओ है ............ इस महिला मे कमाल का हौसला है . इनके जज्बे को नमन.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ही नहीं मालूम थी ये बातें। बहुत ही प्रेरक जानकारी दी आपने। ऐसे जीवट वालों के लिए ही कहा गया है,
जवाब देंहटाएंहो इरादों में हक़ीक़त,
हौसलों में ज़लज़ला।
आसमां झुककर तुम्हारे पांव तक आ जायेगा,
देख लेना क़िनारा, नाव तक आ जायेगा।
रश्मि जी, मेरी टिप्पणी का भी कतई यह आश्ाय नहीं था। निश्चित ही आपने आसमा महफूज की पोस्ट से इस मामले में जानकारी बढ़ाई है। मैं भी इस पक्ष को नहीं जानता था।
जवाब देंहटाएं*
वास्तव में मेरी टिप्पणी उन टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया स्वरूप थी, जो अपने देश में भी ऐसी क्रांति की बात कर रहे हैं।
Very informative.
जवाब देंहटाएंThanks for sharing the burning news.
बहुत ही प्रेरणादायी पोस्ट ! हमारे देश में भी ऐसी ही क्रांति की आवश्यकता है ! यहाँ की अस्मा महफूज़ कौन बनेगी जो विद्रोह की ज्वाला को सुलगा कर क्रान्ति की रणभेरी बजायेगी इसकी प्रतीक्षा है ! सामयिक, प्रासंगिक और सार्थक पोस्ट ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंnihsandeh, ek patthar tabiyat se uchhalne ki der hai...
जवाब देंहटाएंआज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिडकियाँ,
जवाब देंहटाएंआज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में!
जिसके हाथ में पत्थर हो उसे दुनिया दीवाना करार देती है, आज ज़रूरत है ऐसे ही दीवानों और जुनूनियों की!!
संदर्भों से अच्छी तरह वाकिफ न होने के कारण इतना ही समझ पा रहा हूं कि आसमा महफूज ने न सिर्फ समय की नब्ज पकड़ी, बल्कि अग्नि मंत्र भी फूंका.
जवाब देंहटाएंनमस्ते दी।
जवाब देंहटाएंमैं थोड़े दिनों बाद पहुंचा हूं कुछ कहने के लिए। हालांकि यह पोस्ट पहले दिन ही पड़ ली थी और अपने मित्रों व बॉस को भी लिंक भेज दिया था।
पोस्ट पर काफी सोचा और कुछ साथियों से चर्चा भी की।
निश्चित रूप से युवती के जज्बे को सलाम करना होगा।
हमारे देश में भी वो पत्थर है और बस सबको मिलकर नेक इरादों से उसे उछालना भर तो है।
और हां, इस शानदार पोस्ट के लिए ढेरों थैंक्स।
बहुत अच्छा लगा जानकर की क्रांति के इस दौर की शुरुआत का आह्वान एक महिला ने किया ...सबसे अच्छी बात है की उन्होंने सकारत्मक पहल की ....
जवाब देंहटाएंअच्छी उत्साहवर्धक जानकारी !
बहुत संभव है कि यह भी एक मुख्य कारण रहा हो, अच्छा लगा इस बारे में यहाँ भी पढना।
जवाब देंहटाएंकिसी भी आन्दोलन और क्रांति के दो कारण होने थीं.. एक तात्कालिक और दूसरा जो वर्षों से सुप्त अवस्था में क्रांति के लिए जमीन तैयार करता रहता है... आसमा महफूज़ का यह टेप तात्कालिक कारण हो सकता है.. लेकिन इस आन्दोलन की जमीन वर्षो पहले से तैयार हो रही थी... सुगबुगाहटें दशकों से थी..
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिये आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें…जो लोग यह सोचते हैं कि पूंजीवादी सूचना माध्यमों से कुछ नहीं हो सकता उन्हें इसे गौर से पढ़ना चाहिये।
जवाब देंहटाएंNever say there's no hope Hope disappears only when you say there's no hope...
जवाब देंहटाएंरश्मि लेख ने हम सभी को मिस्र के आन्दोलन से जोड़ दिया है...
कम से कम यहाँ कमेन्ट करने वाले अज ही से
जवाब देंहटाएंजनजागरण का कार्य आरंभ कर दें !
इन्कलाब जिंदाबाद !!
कोंन कहता है आसमा में सुराख़ नहीं हो सकता ..
जवाब देंहटाएंजरा तवियत से एक पत्थर तो उछालो यारों..
दुष्यंत की पंक्तिया...तहरीरी चौक पे साकार हुई हैं..शायर सिर्फ सपनो में नहीं जीते..कुछ चीजें हकीकत में होती हैं...आसमाँ में हिम्मत थी और उस हिम्मत ने एक तानाशाह को उखड फेका...आंधी बन kar..