मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

वह सिलसिला भी अब ख़त्म हुआ...


कुछ दिनों पहले एक सफ़र पूरा हुआ जो बारह साल पहले शुरू हुआ था.वो था बच्चों के स्कूल में 'स्पोर्ट्स डे' में उपस्थिति का सिलसिला.मेरे छोटे बेटे का स्कूल में यह अंतिम 'खेल दिवस' था और मैं प्रोग्राम देखते हुए यादों के समंदर में डूब उतरा रही थी.

ठीक बारह साल पहले बड़े बेटे किंजल्क ने स्कूल से आकर कहा था,मेरी स्कूल डायरी देख लेना,टीचर ने कुछ लिखा है.और उसमे लिखा था,"आपके बेटे ने १०० मीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीता है' कल स्पोर्ट्स डे के दिन उसे मेडल मिलेगा.".इनके स्कूल में सारी प्रतियोगिता पहले ही हो जाती है.'स्पोर्ट्स डे' के दिन सिर्फ रंगारंग कार्यक्रम के बीच पुरस्कार वितरण होता है.मैंने जब खुश होकर उस से पूछा,'तुम रेस में फर्स्ट आए?' तो अपने खेल में मगन वह लापरवाही से बोला,'वो तो मैं कई बार फर्स्ट आया'...वह अभी पहली कक्षा में था और उसे अभी फर्स्ट राउंड,सेकेण्ड राउंड,सेमी फाइनल ,फाइनल की समझ नहीं थी.स्कूल से कार्ड पहले ही आ चुका था और मुख्य अतिथि के रूप में 'एकनाथ सोलकर' का नाम देखकर मैं वैसे ही रोमांचित थी अब यह जान कि उनके हाथों ही मेरे बेटे को मेडल भी मिलेगा मेरी ख़ुशी कई गुना बढ गयी.मेरे पापा और भाई भी सुनकर बहुत खुश हुए,पापा सोलकर के जबरदस्त फैन थे.उन्हें भी शायद इसके गोल्ड मेडल मिलने से ज्यादा इसकी ख़ुशी थी कि वो सोलकर के हाथों मिलेगी.

उसके बाद ये सफ़र चलता रहा..दो साल बाद छोटा बेटा कनिष्क भी शामिल हो गया.उसका भी पहला परफौरमेंस आँखों के सामने आ गया. मुझे उसे प्रोग्राम के बाद कलेक्ट करने में थोड़ी देर हो गयी थी.और उसके लाल लाल फूले फूले गालों पर मोटी मोटी बूँदें गिर रही थीं पर वह एक बडा सा लड्डू खाने में भी मगन था.रोते हुए भी स्कूल से मिले लड्डू खाना उसने एक सेकेण्ड के लिए नहीं छोड़ा था.

इनलोगों को कभी मेडल्स मिलते,कभी नहीं मिलते.जब नहीं मिलते तो मेरा काम ज्यादा बढ़ जाता.मुझे सारी कहानी सुननी पड़ती,'वो तो मेरा पैर फिसल गया...जूता ठीक नहीं था...पीछे वाले लड़के ने धक्का मार दिया...टीचर पक्षपात करती है, वगैरह वगैरह.मैं कहती,'कोई बात नहीं...भाग लेना ही बस मत्वपूर्ण है,मेडल मिले ना इसकी फ़िक्र नहीं करनी चाहिए '...बाद में बच्चे हंसने भी लगे थे.'ममी ...डायलॉग चेंज भी तो करो"

एक बार सातवीं कक्षा में किंजल्क ने आकर बताया,कि उसने 'लॉंग जम्प' में महाराष्ट्र का अंडर फोर्टीन का रेकोर्ड तोडा है,कई जगह उस से हस्ताक्षर कराये गए.कोई सेना का ऑफिसर भी उपस्थित था,(किस हैसियत से ,ये नहीं पता)...पर किंजल्क उनकी यूनिफ़ॉर्म का बखान किये जा रहा था.वह कुछ ज्यादा ही प्रभावित था क्यूंकि उसे 'एयरफोर्स पायलट' बनने की तमन्ना थी .शायद उन्हें देखकर ही उसे ज्वाइन करने कि इच्छा जाग्रत हुई.घर से NDA ज्वाइन करने की इजाज़त नहीं मिली,वो अलग किस्सा है.फिर कई साल बाद जब वह ग्यारहवीं में था और अपने कोचिंग सेंटर के नीचे दोस्तों के साथ खड़ा था.थोड़ी दूर पर उसे यूनिफॉर्म में सेना के एक अफसर दिख गए.उसकी नज़र बार बार उनकी तरफ उठ जाती.थोड़ी देर बाद उन्होंने उसे पास .बुलाया.किंजल्क थोड़ा डर गया,शायद बार बार उन्हें देख रहा था.इसीलिए उन्होंने बुलाया है.पर उन्होंने बुला कर पूछा,'तुम तो खुश हो गए होगे..तुम्हारे बोर्ड के रिजल्ट में २ परसेंट और जुड़ गए होंगे"
'सॉरी सर...शायद आप मुझे कोई और समझ रहें हैं,हम कभी नहीं मिले हैं.'
'तुम SVIS के स्टूडेंट हो ना.जिसने 'लॉंग जम्प' में महाराष्ट्र का अंडर फोर्टीन का रेकॉर्ड ब्रेक किया था".
अब किंजल्क स्तंभित, 'आपको कैसे पता?'
और उन्होंने कहा,' You are carrying the same face my boy ,You hvnt changed at all.' और उन्होंने बताया कि अभी तक वह रेकॉर्ड उसी के नाम है.हमें तो पता भी नहीं था कि उस सर्टिफिकेट का कुछ फायदा उठाया जा सकता है,जरूरत भी नहीं पड़ी..उसे अच्छे नंबर मिले और मनपसंद कॉलेज में एडमिशन मिल गया.
और उन्होंने यह भी बताया कि चेहरे से पहले उन्होंने उसकी चाल नोटिस कि.उनका कहना था कि ये पैर उठा कर चलता है जबकि ज्यादातर बच्चे पैर घसीट कर.(मैंने तो आजतक नोटिस नहीं किया)..

इन खुशनुमा लमहों के साथ कई दुखद पल भी आए.किंजल्क दसवीं में था और उसका अंतिम 'स्पोर्ट्स डे' था.वह बहुत खुश था.उसके सारे competitor स्कूल से निकल गए थे.करीब करीब सारे रेस के फाइनल में था वह और उसे कई सारे मेडल जीतने की पूरी उम्मीद थी लेकिन फाइनल्स के एक दिन पहले वह स्कूल में ही गिर गया और घुटने पे ११ स्टिचेस लगे.
वो 'खेल दिवस' मेरे लिए सबसे बडा दुविधा का दिन था.प्रोग्राम तो मैं कई बार देख चुकी थी पर छोटे बेटे को कुछ मेडल्स मिलने वाले थे.और मैंने देखा है, स्टेज से उतरते वक़्त उनकी आँखें भीड़ में मुझे जरूर ढूँढती हैं.कभी वे मुझे देख पाते हैं,कभी नहीं.पर वह एक अहसास बड़ा होता है कि आपके इस ख़ास क्षण में कोई अपना आपके साथ है,आपको देख रहा है.
किंजल्क ने ही यह मुश्किल आसान कर दी.मुझे जबरदस्ती जाने के लिए बोला.और मैं देख रही थी,मेरे किशोर बेटे में सारे पुरुषोचित गुण आ गए हैं.उसके मन के गहरे दुःख का अहसास था मुझे पर वह निर्विकार भाव से चेहरे पर मुस्कान सहेजे सोफे पे लेता हेडफोन लगाए गाने सुन रहा था.

और आज कनिष्क का स्कूल का अंतिम 'स्पोर्ट्स डे' था और उसने इसका भरपूर फायदा उठाने की सोची थी.कई सारे प्रोग्राम में हिस्सा लिया था.सबसे पहले उसे सफ़ेद कमीज़ और काली पैंट में डिसिप्लिन मिनिस्टर का बैज लगाये मार्च पास्ट करते देखा,थोड़ी देर बाद ही वह सफ़ेद बनियान और काले शौर्ट्स में 'ह्युमन पिरामिड' बना रहा था. जब आप अपने बच्चे के ऊपर तीन तीन लडको को खड़े देखते हैं तो एक पल को सांस रुक जाती है...फिर तालियों की गड़गडाहट से ही ध्यान टूटता है.थोड़ी देर बाद देखा वो चमकीले लाल शर्ट में गले में स्कार्फ लगाए माइकेल जैक्सन के गाने पर डांस कर रहा था.इस अजीबोगरीब गेटअप में देख एक पल को विश्वास करना मुश्किल हो रहा था,ये अपना ही बेटा है.और इसके बाद उसे सफ़ेद कुरता पैजामा पहने साफा बांधे लेजियम बजाते देखा.अंत में अपनी फुटबाल टीम के साथ जर्सी में दौड़ते हुए पूरे ग्राउंड का चक्कर लगा रहा था..और वही मेरे लिए उस स्कूल का अंतिम प्रोग्राम था.

स्कूल में 'स्पोर्ट्स डे' का दिन बच्चे सबसे ज्यादा एन्जॉय करते हैं क्यूंकि उस दिन कोई अनुशासन नहीं होता.पूरी छूट होती है टीचर्स दूसरे काम में बिजी होती हैं और छोटे छोटे ग्रुप में बच्चे रंग बिरंगे कपड़ों में चहकते नज़र आते हैं.कनिष्क ने भी प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद थोड़ी देर और स्कूल में रुकने की इजाज़त मांगी और हैरान हो गया,जब मैंने एकदम से हाँ कह दी.वह अभी इस अहसास से बेखबर था कि बेफिक्री भरे उसके ये दिन फिर कभी वापस नहीं आने वाले.

एक घटने का जिक्र करूँ तो बच्चे बहुत नाराज़ हो जायेंगे और घटना इतनी मजेदार है कि जिक्र ना कैसे करूँ?...कनिष्क अपने स्कूल के लेजियम ग्रुप में तीन साल से है और इनका स्कूल मुंबई में फर्स्ट आया था.इसलिए कभी भी किसी नेता का आगमान हो,शिक्षा मंत्री या कोई भी विशिष्ट व्यक्ति तो इनके स्कूल को बुलाहट आ जाती है.नेतागण तो अपनी ए.सी. कार में आते हैं और ये बच्चे कड़ी धूप में घंटो लेजियम लिए सड़क के किनारे उनका इंतज़ार करते रहते हैं.खैर इसी वजह से कनिष्क को हर बार सफ़ेद कुरते पैजामे की जरूरत पड़ती थी..मैंने पतिदेव का एक कुरता पायजामा काँट-छाँट कर उसके नाप का कर दिया.हर प्रोग्राम के बाद धुलवा कर रख देती.इस बार कनिष्क के स्पोर्ट्स डे के एक दिन पहले किंजल्क के ड्रामा का शो था.उसे भी सफ़ेद कुरता पायजामा चाहिए था,मैंने निकाल कर दे दिया.जब रात में कनिष्क ने अपने सारे कॉस्ट्यूम्स रखने शुरू किये और सफ़ेद कुरता पायजामा माँगा तो मेरी हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.सुबह सात बजे उसे स्कूल जाना था और किंजल्क शो ख़त्म करके बारह के पहले घर नहीं आनेवाला था.उन दिनों हमारी बिल्डिंग में 'पानी बचाओ मुहिम' भी चल रही थी' और रात के 11 बजे पानी बंद हो जाता था...लिहाजा वाशिंग मशीन में धोकर सुखाना भी संभव नहीं था..मैंने कनिष्क को बिना कुछ बताये किंजल्क को फोन किया...और उसने कहा 'मैंने ड्रामे में पहना तो है...पर ज्यादा गन्दा नहीं हुआ...उसे प्रेस करके वापस वो दूसरे दिन पहन सकता है'...कनिष्क ने देखा तो बहुत नाक भौं सिकोड़ा और बोला 'तुमने 'सचिन तेंदुलकर' वाली पोस्ट लिखी ना...कि उनके पास एक ही सफ़ेद शर्ट पैंट थी...इसीलिए हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ.'

29 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि! यूँ तो आपने ये संस्मरण बच्चों के स्पोर्ट्स डे पर लिखा है ..परन्तु एक एक पंक्ति और एक एक वाक्य में आपकी ममता छलक- छलक पढ़ रही है...
    बच्चों की उपलब्धियों से होने वाला गर्व पूरे संस्मरण में साफ़ तौर से दिखाई पढ़ रहा है ..और हो भी क्यों न आखिर इतने होनहार बच्चों के लिए श्रेय तो आपको ही जाता है न. यानि उनकी माँ को....बहुत ही प्यारी यादों से सजा खुबसूरत संस्मरण..भगवान दोनों बच्चो को आसमान की उंचाई प्रदान करे.बस यही दुआ है.

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  2. बहुत ही यादगार क्षणों को आपने बाँटा है, ऐसे ही कितने क्षण हमारी जिंदगी के किसी न किसी पहलुओं से जुड़े हुए हैं। इतनी गहराई से आपने लिखा है कि हम सोचते ही रह गये, कि आपने कैसे लिखा होगा, क्योंकि जो लिखा है वह लिखना वाकई बहुत मुश्किल होता है।

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  3. goodness...कुछ ज्यादा हो गया क्या...शिखा..:)

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  4. रश्मि, बच्चों के खेल कूद दिवस पर लिखा संस्मरण बहुत ताज़गी दे रहा है....लिखने की शैली गज़ब की है...बच्चों का मनोविज्ञान भी साफ़ दिखाई देता है...बहुत सलीके से लिखा है तुमने...और प्यारी प्यारी यादों को सहेजा है.दोनों बच्चे हर क्षेत्र में आगे बढ़ें और उन्नति के नए आयाम छुएं मेरी शुभकामनायें हैं...

    वैसे ये लेख पढ़ कर मुझे भी बहुत सी बातें याद आ गयीं...कुछ अपने बच्चों की तो कुछ स्कूल के विद्यार्थियों की ....फोटो भी बहुत सुन्दर हैं....तुमको भी बधाई...

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  5. यह तो वाकई तारीफ के काबिल है की बच्चे इतने होनहार हो ,
    सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी की एक माँ को अपने बच्चो के प्रति कितना असीम प्यार होता है ,इस लेखनी में वो ख़ुशी वो गर्व सब कुछ मिला .
    बहुत-२ धन्यवाद रश्मि जी , इतनी सहजता से सारे संस्मरण को शब्दों में पीरों कर .....
    खुबसूरत प्रस्तुति ...

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  6. स्कूल के भीतर वाकई अपने बच्चों को तब पहचानना मुश्किल हो जाता है जब वह घर से अलग कुछ हट कर करता है। पिरामिड बनाने में अपने बच्चे पर होने वाला बोझ भी तब पता नहीं चल पाता।

    बहुत ही रोचक संस्मरण हैं।

    वैसे मैं अपनी बताउं तो जब अक्सर अपनी छुट्टी यानि शनिवार के दिन बच्चों को स्कूल लेने जाता हूं तो सभी बच्चे यूनिफार्म पहने होने के कारण गेट से निकलते हुए एक जैसे दिखते हैं। इधर टकटकी लगा कर गेट से निकलते बच्चों को मैं देखता रहता हूं कि अब आयेंगे अब आयेंगे, पता चला कि एक तो मेरे बगल में आकर खडा हो गया और मैं वहीं अब तक गेट पर नजरें गडाये हूं :)

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  7. सतीश जी,..बिलकुल सच कहा....ऐसा कितनी बार मेरे साथ भी हुआ है...पर कहाँ तक लिखती...पास में ही मेरी सहेली बैठी थी और बोल रही थी..बेटी बोल कर गयी है..थर्ड रो में सेकेण्ड हूँ...सब तो एक जैसे दिख रहें हैं..कैसे पहचानूँ उसे??

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  8. बहुत सुंदर आप की मेहनत रंग लाई, ओर ममता मुस्कुराई बहुत सुंदर ढंग से आप ने मां के दिल की खुशी अपने लेख मै लिख दी, हम सभी को बहुत खुसी होती है जब बच्चे होन हार हो, लेकिन बच्चो के पीछे मां बाप को भी तो तपस्या करनी पडती है.
    धन्यवाद

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  9. Hi..
    Hamesha ki tarah anutha avam bhavpurn sansmaran. Ese padhkar hume ek 'Maa' ke prem aur maatrtva bhav ka saraltam shabd rupantaran padhne ka saubhagya prapt hua hai.. Eske liye aapka dhanywad..

    Bachche bade hote jaate hain, aur pratyek din , apne abhibhavakon khaskar 'MAA' ko yaad karne ke liye dheron khatte meethe lamhe chodte jaate hain.

    Ek Sports day to kya
    bachchon ke bachpan se lekar bade hone tak ka har din har 'Maa' ke liye vishesh aur avismarneey
    hota hai..

    Aapke sansmaran ne Hamen bhi apni 'MAA' ji ki yaad dila di. Har Maa apne har bachche ki pasand aur napasand ke baare main purntaya jaanti hai.. Meri Maa ji es umar main bhi mere jaruraton, pasand, napasand ke bate main sab kuchh janti hain..

    Aapka bahut bahut dhanyavad..

    DEEPAK..

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  10. बहुत बढ़िया संस्मरण की प्रस्तुति...बहुत उम्दा!

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  11. रश्मि बहना,
    इतनी खुशी अपनी किसी उपलब्धि पर नहीं होती, जितनी अपने अंश जब कुछ हासिल करते हैं तो होती है...इस फीलिंग को केवल महसूस ही किया जा सकता है, बयां नहीं किया जा सकता है...ऐसा ही अहसास मुझे तब हुआ था जब मेरे बेटे सृजन को स्कूल में ऑलराउंडर की ट्राफ़ी मिली थी...

    आपने आज एकनाथ सोल्कर की बात की है...मैं बहुत छोटा था जब वो खेलते थे...उन जैसा बेहतरीन फील्डर दुनिया में और कोई नहीं हुआ...बिना हेल्मेट फॉरवर्ड शार्ट लेग पर फील्डिंग करना और बैट्समैन की टांगों में से हाथ बढ़ाकर कैच पकड़ लेना, ये सिर्फ सोल्कर के ही बूते की बात थी...बैटिंग और बोलिंग भी अच्छी किया करते थे...

    जय हिंद...

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  12. bahut hi bhavpoorn sansmaran...laga meri hi baat bata rahi ho...yah sach hai..khud ki uplabdhiyaan utni khushi nahi detien jitni ki bacchon ki..bahut hi accha laga sabkuch..hamesha ki tarah..

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  13. ये यादों की जो श्रंखला लिख रही हो, बहुत ही मोहक है, वो कहते हैं न की जिसे रजा ने छुआ सोने का हो गया और इस को तुमने शब्दों में बांधा वो भी मोहक हो गया. कहीं ज्यादा तो नहीं बोल गयी.
    ऐसी प्रस्तुति के लिए बधाई .

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  14. @खुशदीप
    बहुत ही सुन्दर नाम है बेटे का,'सृजन'...वाह ,बहुत ख़ूबसूरत...और आपकी तरह ही all rounder भी है,ढेरों शुभकामनाएं उसे..
    एकनाथ सोलकर का जिक्र भी पापा से ही हमेशा सुनती थी,फिर गावस्कर की आत्मकथा,'Sunny
    Days'में उनके बारे में सारी जानकारी मिली.

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  15. @अदा
    सबके बच्चे ऐसे ही होते हैं...आजकल माता-पिता उन्हें बढ़ावा भी देते हैं और उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के अवसर भी खूब मिलते हैं....इस पोस्ट के बहाने उनका पूरा बचपन याद किया मैंने और सोच रही थी..कितना मिस करने वाली हूँ मैं ये सब.
    @रेखा
    बोलते रहिये रेखा दी...कंजूसी मत कीजिये...उत्साह बढ़ता है...:)

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  16. Rashmi ji, i m sorry for being late, i am stil not in india, so get less time from work. this post reminded me lot of things which i used to do for my daughter, and it made my eyes wet. very heart touching post.

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  17. सॉरी कुछ देर हो गयी ...मेरा पी सी बहुत गड़बड़ कर रहा है ...आज की मेरी पोस्ट के लिए भी मुझे रात में 3 बजे उठना पड़ा तब जाकर लिख पायी ....सो plz. bear with me..

    इस पूरी पोस्ट में ही ममता छलक रही है ...अदा की बात ही कहूंगी कि अपनी उपलब्धियां उतनी ख़ुशी नहीं देती जितनी बच्चों की ....!!

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  18. होनहार बिरवान के होत चिकने पात
    बच्चों को लायक और होनहार बनाने में मां का ही सबसे बडा हाथ होता है।
    खूबसूरत यादों को बडे अच्छे ढंग से संजोया है आपने
    आपकी ममता को प्रणाम

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  19. ममता ऐसी ही होती है फिर । बहुत सुन्दर यादें हैं तुम्हारी लिखने की शैली उसे और सुन्दर बना देती है शुभकामनायें

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  20. जय श्री राम......... | मैं एक अंक ज्योतिषी और बॉडी लैंग्वेज-विशेषज्ञ हूँ | इस विधा को अधिकाधिक विस्तार देने के लिए प्रयासरत हूँ | इसी दिशा में नवीन प्रयास हैं मेरे ब्लॉग ---http://ankjyotish369.blogspot.com एवं http://ankjyotish369.wordpress.com | इन ब्लॉगों पर आप अंक ज्योतिष और बॉडी लैंग्वेज पर आधारित विविध विषयक विश्लेषणात्मक एवं भविष्यवाणीपरक आलेख पाएँगे,जिन में हर शुक्रवार को रिलीज़ होने वाली फिल्मों से सम्बंधित भविष्यवाणी भी होगी | आप इन ब्लॉगों पर नि:शुल्क परामर्श भी प्राप्त कर सकते हैं---हर मंगलवार (tuesday) को | जिन को अपनी जन्म-तारीख़ सही-सही पता नहीं है,वे भी परामर्श प्राप्त कर सकते हैं | इन ब्लोगों के समर्थकों और अनुसरणकर्ताओं को उन के जन्म के मूलांक का अंकज्योतिष और बॉडी लैंग्वेज पर आधारित परामर्श सहित विश्लेषण भेजा जाएगा | तो आइए मेरे ब्लॉगों----http://ankjyotish369.blogspot.com एवं http://ankjyotish369.wordpress.com पर |.........सप्रेम...डॉ.कुमार गणेश 369-जयपुर-+91-99298-42668,+91-90241-79535

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  21. bahut hi sundar sansmaran.........maa ki mamta aisihi hoti hai jo har pal ko apni yadon mein sahej kar rah leti hai..........dono bachchon ko bhagwan safalta pradan kare jeevan ke hat kshetra mein.

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  22. उम्दा संस्मरण, बहुत अच्छी प्रस्तुति!

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  23. wo kahte hai na asal se adhik sood pyara hota wahi hamari umra bhar ki tapsaya jab rang le aati hai to saari taklife nakaar di jaati hai .
    aksar dosh naari par hi thop diya jaata hai lekin jab sahi raste le jaate hai to rukvaate kam nahi hoti tab avrodhak ko bhavishya ki tasvir nazar nahi aati bas bachcho se hamdardi aur dulaar ka sambandh hota hai ,maa agar tab buri bankar
    bachcho ko sahi disha le gayi samjho wo bhavishya me taarife kaabil hi hoti hai ,isliye ruk jaana nahi tu kahi haarkar ....ye lakshya paane ke liye aham hai .
    har maa ke liye ye safar mahtavpoorn hai jisse jude anubhav aapne hamse baate ,bahut achchha laga padhkar. ek maa ko doosre maa ke ahsaas ko jatane ki jaroort nahi aesa mera anubhav kahta hai ,

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  24. लानत है मुझ पर.... मारिये मुझे .... दो झापड़ लगाइए मुझे.... मैं कान पकड़ कर उठक बैठक कर लेता हूँ.... 1, 2 3 4 5 6 7 8 9 10...........100......... उफ़! थक गया... माफ़ी चाहता हूँ..... इतना लेट आने के लिए......... आ आ आ आ आ ......... प्लीज़ कान छोड़ दीजिये..... सच कह रहा हूँ.... अबसे ऐसी गलती नहीं होगी...... लेट नहीं आऊंगा.... उई माँ.... प्लीज़ कान छोड़ दीजिये दर्द कर रहा है.... हाँ! अब ठीक है... थैंक यू.... अबसे ऐसी गलती नहीं करूँगा.....

    कितना अच्छा लगता है ना.... बच्चों को ऐसा आगे बढ़ते देखते हुए..... बच्चों में कॉन्फिडेंस बढ़ जाता है...मैं महसूस कर सकता हूँ..... कुछ कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हो चुका है.... मेरे भी जब हलकी मूंछ की रेखाएं उभरी थीं...तो मम्मी बहुत खुश हुईं थी.... मगर अफ़सोस मेरी माँ मुझे जवान होते नहीं देख सकीं.... अभी भी ऐसा ही लगता है कि काश....मम्मी आ जाएँ.... और मुझे आज इस कम्प्लीट मैन के रूप में देख कर बहुत खुश हों..... मैन उन्हें दिखाना चाहता हूँ...कि जो पौधा उन्होंने लगाया था.... आज वो भार्प्पोर....खूबसूरत मर्द बन चुका है.... मुझे यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी...पढ़ते वक़्त मैं आपके बेटे की जगह खुद को महसूस कर रहा था... Very touchy post....

    आइन्दा ऐसी गलती नहीं होगी... प्रॉमिस ....

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  25. सच कहूं तो ब्लोग्गिंग का ये रूप बहुत ही भाता है मुझे हमेशा से , बहुत कम पढ पाता हूं ऐसी पोस्टें ...नहीं नहीं पढता तो हूं ....सब लिखते कहां हैं अपने मन की यूं इस तरह से ..
    अजय कुमार झा

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  26. पढ़कर अच्छा लगा. जारी रहें. शुभकामनाएं.

    [उल्टा तीर]

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  27. रश्मि जी के इस लेख मे उस साधना की झलक मिल्ती है जो हर मा अपने बच्चो को बडे होते होते करती है. सीखना, भूलना कोशिश करना और पारन्गत होना ये सब काम साथ साथ चल्ते रह्ते है. कभी जीत कभी हार कभी आशा कभी निराशा इन सबके बीच बच्चे को आगे बढते देखना एक मा के लिये पूरी तपस्या है.

    आपके बच्चे बहुत लायक है, मेरी कामना है कि वो खूब सफ़ल हो और भगचान से प्रार्थना है कि वो हमेशा खुश रहे.

    एकनाथ सोलकर तब अपने क्रिकेट जीवन की संध्या पर थे जब मेरी क्रिकेट के प्रति दीवानगी ७ वे आसमान पर थी. २७ टेस्ट मैच में लिए गए उनके ५३ कैच खुद उनके बारे में सब कहानी कह देते है सुनील गवास्कर की सनी डेज मैंने पढी है और उसमे भी सोलकर की प्रतिभा के बारे में दिल खोलकर लिखा है. बहुत कम लोगो को पता होगा कि सोलकर एक बहुत अच्छे फिरकी गेंदवाज थे लेकिन फिरकी चौकड़ी की मौजूदगी और कोई गौड़ फादर नाजी होने के कारण उन्हें माध्यम तेज गेंदवाजी टेस्ट मैचो में करनी पडी. सोलकर स्कूली दिनों में गवास्कर के कप्तान रह चुके थे और उनका कहना है कि उन दिनों में सोलकर की गेंदवाजी को खेलना बहुत मुश्किल काम होता था

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  28. बच्चों की ख़ुशी ही हमारी ख़ुशी बन जाती है..यही हमारी परम्परा है.आप ने अत्यंत ही ख़ूबसूरती के साथ उनकी गतिविधियों को शब्दों में क़ैद किया है.जीत जभी तो यह आपकी है..

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  29. shaharoj ke ji ke shabdon ko hamara hi samajhiye....!!baaki iske liye dhanyavaad to mera hi le lije.....!!

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