शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

फ़िल्मी नगरी की गैर फ़िल्मी होली


मुंबई में होली के बहुत ही अलग अलग अनुभव हुए.शुरू में एक बहुत बड़ी सोसायटी में रहते थे. वहाँ बहुत ही वृहद् से रूप होली मनाई जाती थी.एक दिन पहले पार्टी होती थी. गेम और्गनाइज़र बुलाये जाते.जो बच्चों के,महिलाओं के,कपल्स के फिर पूरे परिवार के..अलग अलग गेम्स खिलाते.फिर खाना,पीना,गाना,अन्त्याक्षरी के बाद सुबह ४ बजे के आस पास होलिका दहन होता.और फिर सबलोग गुलाल लगाते एक दूसरे को और दूसरे दिन फिर दस बजे पानी वाली होली शुरू हो जाती.

उसके बाद एक ऐसी सोसायटी में शिफ्ट हुई जहाँ एकाध परिवार को छोड़कर सिर्फ महाराष्ट्रियन परिवार ही थे. मुंबई में बच्चों और किशोरों के लिए होली एक हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती है. पर यहाँ सिर्फ होली के दिन ही रंग खेलते हैं बाकी के दिन सिर्फ पानी से और बहुत ही जम कर खेलते हैं. सड़क पर चलना दूभर हो जाता है. पता नहीं किधर से पानी के गुब्बारे हमला कर दें.और अगर वो लग जाए तो बड़े जोर की चोट लगती है और ना लगे तब और भी मुसीबत क्यूंकि तब सड़क की मिटटी उड़कर कपड़ों पर पड़ जाती है.कई बार दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं. किसी बाईक चला रहें व्यक्ति को लग जाए तो उसका बैलेंस बिगड़ जाता है.

होली के ३,४, दिन पहले से बच्चे रात के ८,९ बजे बिलकुल भीग कर आते हैं. अच्छा है यहाँ ठंढ नहीं पड़ती.बिहार में होलिका दहन बहुत रात बीते कहीं होती थी. लेकिन यहाँ शाम को ही सारे लोग उसके आस पास जमा हो जाते हैं.पुजारी आते हैं मराठी और गुजराती महिलायें हाथों में पूजा की थाली लिए होती हैं.वे इसकी परिक्रमा भी करती हैं.  प्रसाद स्वरुप 'पूरण पोली'( मीठी दाल भरी पूरी) होती है जिसे वे जलती हुई होलिका में डालती हैं. बिहार में भी बेसन की बड़ियाँ होलिका में डालते हैं.मतलब चने के दाल से बनी चीज़ों का महत्त्व होता है, आज के दिन.  इधर पूजा होती रहती है और बच्चों का हुडदंग शुरू हो जाता है.  आज के दिन तो वे रात के १२ बजे तक पानी से होली खेलते हैं.

होली के दिन सिर्फ पुरुष और बच्चे ही रंगों वाली होली खेलते. महाराष्ट्रियन महिलायें बाहर नहीं आतीं क्यूंकि उन्हें दूसरे दिन ऑफिस भी जाना होता और रंग ना छुड़ा पाने का डर उन्हें घर में ही क़ैद कर के रखता.

जब हम अपने फ़्लैट में शिफ्ट हो गए तो हमारा भी एक ग्रुप बन गया. जिसमे बंगाली,पंजाबी,राजस्थानी,यू.पी.और एक महाराष्ट्रियन परिवार भी है. हम सबने मिलकर होली मनाने की सोची.  यहाँ पार्टी अरेंज करने का काम महिलाओं का ही होता है.सबके पति देर रात को घर आते हैं और आपस में मिल भी नहीं पाते. लिहाज़ा मेन्यु चयन करने से ऑर्डर करने तक का सारा काम महिलाओं के सर ही होता है. होली के दिन हम सबने जम कर होली खेली और वहीँ लॉन में आधी धूप आधी छाया में बैठ गए. हमारे ग्रुप के बंगाली दादा सबसे सीनियर हैं और बहुत अच्छा गाना गाते हैं. वे ईलाहाबाद के हैं और बनारस और पटना में काफी वर्ष गुजारे हैं,लिहाज़ा वहाँ के होली गीतों से बहुत अच्छी तरह परिचित हैं. उन्होंने वहीँ थाली पर चम्मच की ताल पर महफ़िल जमा ली. बस बीच बीच में उन्हें गीत एक्सप्लेन भी करने पड़ते. यहाँ तक कि उन्हें 'टिकुली' का अर्थ भी समझाना पड़ता. उनकी बेटी और पत्नी का गला भी बहुत सुरीला है...वे भी बहुत अच्छा गाती हैं. पर सबलोग बढ़ चढ़ कर साथ देते हैं. आज के दिन सारी टेंशन भुला,होली के गीतों में रम  जाते.

खाने पीने के दौरान हमलोग सबको बिहार की होली के बारे में बताने लगे कि कैसे शाम को नए कपड़े पहन कर एक दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं तभी मेरे पतिदेव को पता नहीं क्या सूझी , उन्होंने सबको कह दिया,शाम को आप सबलोग मेरे घर पर आ जाइए. पूरे घर का नज़ारा मेरे सामने घूम गया. घर बिखरा पड़ा था.किचेन में अनधुले बर्तन पड़े थे. और कोई तैयारी नहीं थी. होली के दिन गुब्बारों के डर से कामवाली बाईयां भी छुट्टी कर लेती हैं. पर पति लोगों को इन सबकी क्या चिंता?  जब व्यावहारिक बुद्धि बंट रही थी तब तो इनलोगों की नज़र बुद्धि की थाल थामे अप्सरा पर जमी हुई थी. ये अपनी झोली फैलाना ही भूल गए और उनके हिस्से की बुद्धि भी हमें ही मिल गयी. सारी सहेलयों की नज़र मुझपर थी. वे मेरी उलझन समझ रही थीं. पर मैंने भी हंस कर कहा "हाँ हाँ सबलोग आ जाइए".शाम के चार बज गए थे और सारे पुरुष उठने को तैयार नहीं. मुझे रात की पार्टी की तैयारी भी करनी थी. खैर घर आकर मशीन की तरह सारे काम निबटाये. सहेलियों के फोन आने भी शुरू हो गए.'कुछ बना कर ले आऊं??'पर मेरे मना करने के बावजूद एक.दो ने कुछ पका ही डाला और कुकर ही उठा कर ले आयीं. उन दिनों बाहर से खाना मंगाना भी नहीं सीखा था. मेहमानों को घर का बना ही खिलाना चाहिए,यही मान्यता थी..रात की महफ़िल और अच्छी जमी. और उसके बाद से ही यह सिलसिला चल निकला. अब तो दिन की बैठक के लिए पहले से ही एक गैरेज धुलवा लिए जाते हैं. बाकायदा दरी बिछा कर दादा अपनी हारमोनियम भी ले आते हैं. मैं भी दो दिन पहले से तैयारी शुरू कर देती हूँ...सो सबकुछ स्मूथ चलता रहता है

अभी पिछले साल मेरी योगा बैच की सहेलियां (जिसमे सब दक्षिण भारतीय और क्रिश्चियन हैं) कहने लगीं कि उनलोगों ने कभी मालपुए और दही बड़े नहीं खाए हँ (मुंबई में रेस्टोरेंट में मीठे दही बड़े मिलते हैं,मैं धोखा खा चुकी हूँ) मैंने सोचा चलो इनलोगों को उत्तर भारतीय व्यंजन से परिचित कराती हूँ. मालपुए,दहीबड़े, मटर की कचौरियां,छोले सबबनाए ...उनलोगों को बहुत पसंद भी आया पर जब अंत में मैंने गुलालों भरी थाल निकाली तो सब चौंक गयीं. पर सबने बड़े शौक से अच्छे कपड़ों की परवाह किये बिना अबीर खेला.क्रिश्चियन लड़की (महिला :)..अब कहाँ कोई लड़की दोस्त है) ने ज़िन्दगी में पहली बार होली खेली. सोचा था इसे हर साल का सिलसिला बना दूंगी पर इस साल बेटे के इम्तहान की वजह से ब्रेक लग गया...कोई बात नहीं...अगले साल सही.

आजकल 'होली रेन डांस' का भी चलन बहुत बढ़ गया है. कई क्लब और सोसायटी भी बड़े बड़े पानी के टैंकर मंगवाते हैं उसमे रंग घोल कर शावर के माध्यम से रंग की बरसात की जाती है. और लड़के लडकियां.इसके नीचे रंग में भीगते हुए डांस करते हैं. जो लोग अकेले रहते हैं.दोनों पति पत्नी काम करते हैं.  कोई सोशल सर्कल नहीं है.उनके लिए यह सुविधा उपयुक्त है.

हमलोग तो वही पुराने ढंग वाली होली मनाते हैं और बहुत एन्जॉय करते हैं.
आप सबलोगों को होली की ढेरों शुभकामनाएं.

32 टिप्‍पणियां:

  1. गाँव के बाद ये शहर कि होली ..वो भी अलग अलग सोसाएटी के हिसाब से अलग अलग ..कितना मजा आता होगा न...मुझे भी याद आ गया जब हम कुमायूं (पिथोरागढ़) में रहते थे वहां १५ दिन पहले से सबके यहाँ गाने बजाने कि महफ़िल शुरू हो जाती थी...और मोस्को हॉस्टल में तो एक बार रंग नहीं मिले तो हमने लंच के लिए बनाये हुए दाल चावल ,दही मतलब जो भी फ्रिज में था उन सबसे होली खेली ....हा हा हा ..फिर ५ दिन तक सफाई करते रहे ....
    बहुत अच्छा लगा आपके संस्मरण पढ़कर खासकर ये
    " जब व्यावहारिक बुद्धि बंट रही थी तब तो इनलोगों की नज़र बुद्धि की थाल थामे अप्सरा पर जमी हुई थी.ये अपनी झोली फैलाना ही भूल गए और उनके हिस्से की बुद्धि भी हमें ही मिल गयी" ही ही ही ही मजा आ गया.
    आपकी होली इस बार भी हँसते ,गाते बीते शुभकामना है

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  2. संस्मरण बहुत अच्छा लगा होली की बहुत बहुत शुभकामनायें। सच कहूँ तो मुझे होली से बहुत डर लगता है मैं तो उस दिन बाहर नही निकलती। मगर जब छोटी थी गाँव मे तब जरूर खेला करते थे । उस होली जैसा आनन्द अब कहाँ। बेशक शोर शराबा अधिक है मगर वो मज़ा नही है। होली की बहुत बहुत शुभकामनायें

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  3. सच में सोसायटी के हिसाब से होली खेलने का ढ़ंग बदल जाता है और गाँव की होली का तो अलग मजा होता ही है। अच्छा संस्मरण।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. बहुत सुंदर लगा आप का संस्मरण !! हम जब तक भारत मै रहे खुब ओर खुल कर होली खेली, अब कहां होळी, लेकिन आप का लेख पढ कर ओर चित्र देख कर मन फ़िर से ललचाने लगा होली के लिये.

    धन्यवाद

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  5. सच्‍ची होली तो यही है।
    मन से मन की बोली
    होली की भरती है झोली।

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  6. चलिये, यह होली मनाने का संस्मरण भी बढ़िया रहा. रेन डांस वाला पहली बार सुना!

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  7. मुम्बई की होली ..आप तो मुम्बई की हो ली । अच्छा है .. अब तक हम मुम्बई की फिल्मी होली के बारे में सुनते आये थे अब सोसायटी की होली के बारे मे भी पढ़ रहे हैं । .. लेकिन ..कुछ मज़ा नहीं आया । तस्वीरों में तो आपको साफ पहचाना जा सकता है ? एकाध रेन डांस की तस्रवीर भी देखने को मिल जाती तो ।
    बाकी सब ठीक है वो थाली वाली अपसरा वाली बात पर सख़्त ओब्जेक्शन है ..सबकी तरफ से ..क्या?

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  8. बहुत मजेदार संस्‍मरण ..
    जब व्यावहारिक बुद्धि बंट रही थी तब तो इनलोगों की नज़र बुद्धि की थाल थामे अप्सरा पर जमी हुई थी.ये अपनी झोली फैलाना ही भूल गए और उनके हिस्से की बुद्धि भी हमें ही मिल गयी
    इससे सिद्ध होता है कि प्रकृति संतुलन करना जानती है.

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  9. वाकई होली पर जो मस्ती अपने यहाँ होती है वह मुंबई में थोड़ी फ़ीकी ही लगती है।

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  10. शरद जी...रेन डांस और हमलोग??...ना ना वो आप जैसे यंगस्टर्स के लिए छोड़ दिया है...:).
    और अब इतनी होली ही काफी है...कि सब पहचान लेँ...अब हम महिलायें घर का काम करें या रंग छुडाएं...कहाँ गए वो बेफिक्री के मायके के दिन...:( :(

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  11. विवाह से पहले हम भी होली के रंग में ऐसे रंगते थे कि पहचानना मुश्किल होता था ...धीरे धीरे गुलाल कि शरीफों वाली होली में शामिल हो गए ...अब एक अपार्टमेन्ट में रहने और मिलकर होली को अलग अलग अंदाज में मनाने का मज़ा ही अलग आता है .... आपका संस्मरण पढ़कर यादें ताज़ा हो गयी ....
    आपको होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं .....

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  12. आपको भी
    " हो ली की बहुत बहुत शुभ कामनाएं "
    आपकी जीवन यात्रा से जुड़े संस्मरण होली के संग
    रंग भर गये --
    आज हमने भी कुछ यादें लिखीं हैं
    देखिएगा ---
    आप बहुगुणी हैं -
    - चित्रकला भी बढ़िया करतीं हैं वाह !! -
    - परिवार के सभी को रंग बिरंगी ,
    खुशियाँ मुबारक हो !
    स्नेह सहित,
    - लावण्या

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  13. आपको ओर आप के पुरे परिवार को होली की बहुत बहुत शुभकामनाऎँ

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  14. बहुत मधुर संस्मरण ....
    होली की बहुत शुभकामनायें ....!!

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  15. होली का संस्मरण बढ़िया रहा....अब तो होली का मज़ा ही नहीं रहा...शहरों में लोग एक दूसरे को जानते ही कितना हैं....बस अब तो होली की यादें ही हैं ....

    होली की शुभकामनायें

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  16. sahi kah rahi hain asli holi to yahi hai magar aaj ki bhagdaud wali zindagi mein ab logon ke pass itni fursat hi kahan rahi hai........magar jo bhi iske liye waqt nikaal le bahut badhiya hai kuch pal sukoon ke nikalna hi kafi hota hai aur ye yaadein zindagi bhar ke liye yadon mein qaid ho jati hain.

    holi ki hardik shubhkamnayein aapko aur aapke pariwar ko.

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  17. अच्छी लगीं आपकी यादें....व् चित्र ......लज़ीज़ खाना भी बनातीं है जान कर अच्छा लगा .....!!

    शिखा जी के दिमागी कीड़े में आपका भी हाथ था जानकर ख़ुशी हुई ......!!

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  18. होली के विविध रंग -आपको सपरिवार होली की रंगारंग शुभकामनाएं!

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  19. वाह! क्या होलियाना संस्मरण है! कुछ साल पहले तक हम भी इसी तरह होली खेलते थे. कॉलोनी में सब एक जगह होली-मिलन के लिये इकट्ठा होते और एक-एक पकवान भी लाते. इस तरह बीसों तरह के व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते. लेकिन अब परीक्षाओं ने सब बन्द करा दिया है.

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  20. तेरी मेरी सबकी होली
    कोई खाये भन्ग की गोली
    कोई बनाये सुर्ख रन्गोली
    और किसी ने पोले खोली
    मेरी तो इतनी विनती है
    मीठी बोलो सबसे बोली

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  21. आपको होली की बहुत बहुत शुभकामनाये

    और आपको होली पे टाइटल पन्च

    ना ये ब्लोग होगा ना टीपा करेगे
    मगर हम तुम्हे हमेशा पढते रहेगे

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  22. चूक गया था अब तक इस संस्मरण को पढ़ने से ! ठीक होली के दिन पढ़ रहा हूँ, ठीक ही है ।
    खूबसूरत संस्मरण ! आभार ।
    आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें ।

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  23. aapki holi ki yaado ke saath shikha ji ke anubhav ka bhi aanand uthaya ,holi mangalmaya ho .

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  24. Maaf karna di.. itne din se aapke doosre blog par holi ke aubhav padhne ke liye bar-bar ja raha tha.. aur aapne daal ispe rakhe hain.
    ye bhi ghar ki holi ki yaad dilata prasang raha.. aabhar

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  25. बढिया लेख !गांव और मुम्बई दोनो का contrast अच्छा लगा.उम्मीद है आपके पति आपका ब्लोग नही पढ़ते वर्ना होली के बाद आपको एक लेख लिखना परता होली और महाभारत.

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  26. जब व्यावहारिक बुद्धि बंट रही थी तब तो इनलोगों की नज़र बुद्धि की थाल थामे अप्सरा पर जमी हुई थी.ये अपनी झोली फैलाना ही भूल गए और उनके हिस्से की बुद्धि भी हमें ही मिल गयी.

    इसमें भी दुनिया का कुछ भला ही छिपा होगा।

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  27. देवताओं को हमेशा ही असुर तंग करते रहते ,कभी उन्हें भगवान की शरण लेनी पड़ती कभी देवी माँ की ,
    उसी समय बुद्धि आजाती तो उसका प्रयोग तो कम से कम कर लेते ?

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  28. ऊपरवाला मेरा कमेन्ट ३ साल पहले का है। २० १ ३ की होली ली शुभ कामनाएं समस्त कोलोनीवालों और बंगाल के दादा जी के लिए भी ..कभी उन्हें रेकोर्ड क्र के सुनवाईये रश्मि जी।
    ' रेन डांस ' का फैशन , राज कपूर जी के स्टुडियो में , एक बड़े रंगीन जल से भरे हौज में सब को डूबाकर रंग मलना
    और वहीं सितारा देवी का जम के डांस ..याद आ गया!
    ससुराल के घर पर भी , बाग़ में पानी देनेवाले पाइप से भिगोना , कीचड मिट्टी, ओईल कलर के रंग और सूखे रंग पिचकारी से खूब मस्ती , फिर जुहू के समुद्र में मौजों के बीच रंग छुडाना , रात को स्कूल के सरे मित्रों का परिवार समेत आना सब याद आ गया।
    पापा जी के घर थी तब , ढोलक पे गाने और गरमागरम मूंग दाल के पकौड़े और होलिका दहन की बड़ी जलेबी आहा पडौस के उधमी अरूण भाई का पाईप के सहारे चढ़ छत से घर के भीतर आकर हमे रंगना ..क्या भूलूं क्या याद करूं ?
    होली मुबारक हो सभी को
    स स्नेह,
    - लावण्या

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