आजकल फिजाएँ कोयल की कूक से गूँज रही है. रोज सुबह कभी लम्बी, कभी बहुत तेज तो कभी धीमी सी कूक सुनाई दे जाती है, कभी-कभी तो पेड़ के नीचे खड़ी हो कोयल को ढूँढने की कोशिश भी करती हूँ,पर वो पत्तों में छिपी नहीं दिखती .और मुझे अपनी ये पुरातन कविता याद आ जाती है, जो तीन साल पहले पोस्ट की थी . आज रीपोस्ट कर रही हूँ.
एम.ए. की परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त थी. अंग्रेजी में कहें तो 'बर्निंग मिड नाइट आयल' जैसा कुछ और उसी 'मिड नाइट' में एक कोयल की कुहू सुनाई दी. बरबस ही माखनलाल चतुर्वेदी (जिनका उपनाम 'एक भारतीय आत्मा' था) की कविता "कैदी और कोकिला' याद हो आई....ऐसे ही उन्होंने भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, जेल के अन्दर एक कोयल की कूक सुनी थी और उन्हें लगा था कोयल, क्रांति का आह्वान कर रही है.
कुछ अक्षर कागज़ पर बिखर गए जो अब तक डायरी के पीले पड़ते पन्नों में कैद थे. आज यहाँ हैं.
ऊसर भारतीय आत्माएं
रात्रि की इस नीरवता में
क्यूँ चीख रही कोयल तुम
क्यूँ भंग कर रही,
निस्तब्ध निशा को
अपने अंतर्मन की सुन
सुनी थी,तेरी यही आवाज़
बहुत पहले
'एक भारतीय आत्मा' ने
और पहुंचा दिया था,तेरा सन्देश
जन जन तक
भरने को उनमे नयी उमंग,नया जोश.
पर आज किसे होश???
क्या भर सकेगी,कोई उत्साह तेरी वाणी?
अपने अंतर्मन की सुन
सुनी थी,तेरी यही आवाज़
बहुत पहले
'एक भारतीय आत्मा' ने
और पहुंचा दिया था,तेरा सन्देश
जन जन तक
भरने को उनमे नयी उमंग,नया जोश.
पर आज किसे होश???
क्या भर सकेगी,कोई उत्साह तेरी वाणी?
खोखले ठहाके लगाते,
मदालस कापुरुषों में
शतरंज की गोट बिठाते,
शतरंज की गोट बिठाते,
स्वार्थलिप्त,राजनीतिज्ञों में
क्या जगा सकेगी कोई जोश तेरी कूक
क्या जगा सकेगी कोई जोश तेरी कूक
भूखे बच्चों को थपकी दे,सुलाती
दुखियारी माँ में
नौकरी की तलाश में भटक ,
नौकरी की तलाश में भटक ,
थके, निराश, निढाल बेटे में
दहेज़ देने की चिंता से ग्रसित पिता
अथवा
ना लाने की सजा भोगती पुत्री में
मौन हो जा कोकिल
मत कर व्यर्थ
मौन हो जा कोकिल
मत कर व्यर्थ
अपनी शक्ति,नष्ट
नहीं बो सकती,
नहीं बो सकती,
तू क्रांति का कोई बीज
ऊसर हो गयी है,'सारी भारतीय आत्मा' आज.
एक कुक ने ह्रदय में कितने भाव जगा दिए!! आपके विद्यार्थी जीवन की कविता, लेकिन दुर्भाग्य देखिये इस देश का कि आज भी कुछ नहीं बदला.. मैंने भी कोयल की कुक से उपजे भावों से एक कविता लिखी थी.. अलग, एक नारी ह्रदय से सोचकर.. फेसबुक पर है, मेरे नोट्स में.. शायद पसंद आये आपको!!
जवाब देंहटाएंआपकी कविता बहुत पसंद आयी!!
मैंने पढ़ी ,और कैसा संयोग है,मैंने फेसबुक पर लिंक डाला और ठीक उसी वक़्त आपने भी जिस नोट में टैग किया वो कविता भी कोयल पर ही है .
हटाएंआपकी कविता एक अलग सा ही भाव जगाती है और उसकी कूक को एक अलग दृष्टि से देखने(सुनने ) के लिए मजबूर करती है.
वह नहीं बद्ध, स्वर में अपने गायेगी,
जवाब देंहटाएंहम रहे रुद्ध, हमको अाहत कर जायेगी।
अति सुन्दर कविता के माध्यम से विचारणीय विवशता भाव।
जवाब देंहटाएंमौन हो जा कोकिल
जवाब देंहटाएंमत कर व्यर्थ
अपनी शक्ति,नष्ट
नहीं बो सकती,
तू क्रांति का कोई बीज
ऊसर हो गयी है,'सारी भारतीय आत्मा' आज.
आपकी सोच और भावों को नमन, बहुत हृदयस्पर्षि रचना.
रामराम
मौन हो जा कोकिल
जवाब देंहटाएंमत कर व्यर्थ
अपनी शक्ति,नष्ट
नहीं बो सकती,
तू क्रांति का कोई बीज
ऊसर हो गयी है,'सारी भारतीय आत्मा' आज.
सच ही तो है !!
ओह ....कहाँ तक उतर गई आपकी बात ....आज तो यही परिस्थितियां हैं
जवाब देंहटाएंदर्द की सही अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंकोयल की कूक कवि हृदय को सदा ही आकर्षित करती रही है। आपकी कविता टीस जगाती, सोचने पर विवश करती है।
जवाब देंहटाएंनहीं बो सकती,
जवाब देंहटाएंतू क्रांति का कोई बीज
ऊसर हो गयी है,'सारी भारतीय आत्मा' आज.
आज की परिस्थितियों का चित्रण है यह कविता.
बहुत शानदार कविता है रश्मि.
जवाब देंहटाएंपुरानी कवितायेँ पढ़ते यह अहसास होता है की हम बस एक गोल घेरे में घूम रहे हैं , कही कुछ नहीं बदलता !
जवाब देंहटाएंकालजयी कविता हो गयी न फिर तो !
कविता के माध्यम से जब दिल के भाव निकल के आते हैं तो वो सीधे आत्मा तक जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंसोचने को विवश करती ... प्रभावी लेखनी ..
तू क्रांति का कोई बीज
जवाब देंहटाएंऊसर हो गयी है,'सारी भारतीय आत्मा' आज.--जब हर घर से एक शहीद होने के लिए आगे आयेगा तब क्रांति होगी !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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