यह एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त चित्र है, परिचय में लिखा है कि ये शिशु गिलहरी ,इस गिलहरी की संतान नहीं है,बल्कि अनाथ है. |
खैर, बात यहाँ 'मदर्स डे' की हो रही थी. सबलोग अपनी अपनी माँ को अपने अपने तरीके से थैंक्स बोल रहे थे ...अपनी कृतज्ञता प्रगट कर रहे थे . एक उड़ता सा ख्याल आया ये ममता की भावना क्या सिर्फ 'जन्मदात्री माँ' में ही होती है . प्यार दुलार ,ममता ,सिर्फ माँ का अपने बच्चों के लिए ही नहीं होता, किसी के अन्दर भी किसी के लिए हो सकता है. कई पुरुष भी ऐसे हैं जिन्होंने माँ की अनुपस्थिति में अपने बच्चों को माँ बनकर पाला है. मेरे एक परिचित हैं . उनकी बेटियाँ आठ वर्ष और चार वर्ष की थीं जब उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की , नौकरी में प्रमोशन नहीं लिया कि कहीं ट्रांसफर न हो जाए और नए स्कूल, नयी जगह बच्चियों को एडजस्ट करने में परेशानी न हो. सुबह पांच बजे उठते, बेटियों का टिफिन तैयार करके उन्हें स्कूल भेजते, लंच टाइम में आकर उन्हें खाना खिलाते . उनकी पढाई, स्कूल की पैरेंट्स मीटिंग,स्पोर्ट्स डे अटेंड करना ,बीमारी में उनकी देखभाल,रात रात भर जागना किसी माँ से कम नहीं था .हमारे ब्लॉगजगत में भी एक नामचीन ब्लॉगर हैं जिन्होंने अपने बच्चों को अकेले बड़ा किया है. ऐसे कई लोग होंगे समाज में उनके भीतर भी ममत्व की भावना उतनी ही हिलोरें मारती हैं.
और सिर्फ वे ही क्यूँ...कई लोग जानवरों को भी एक माँ की तरह पालते हैं. एक किसान अपने बैलों को, गाय भैंस को एक माँ बनकर ही पालता है. उनके खाने-पीने , उनकी सुविधा, उनके आराम का ख्याल रखता है. बीमार पड़ जाने पर उनकी सेवा करता है. और सिर्फ गाय भैंस ही क्यूँ, कुत्ते -बिल्ली भी लोग पालते हैं . और उसकी एक माँ की तरह ही देखभाल करते हैं. मेरे घर में ही इसका ज्वलंत उदाहरण है . तीन तीन माओं का दुलारा ,' किप्पर' '
मुझे कुत्ते पालना कभी पसंद नहीं रहा. शायद दिनकर जी की ये कविता ,'श्वानों को मिलते दूध वस्त्र ..भूखे बच्चे अकुलाते हैं "'अवचेतन में इतने गहरे पैठ गयी थी कि किसी पालतू कुत्ते को देख यही ख्याल आता. पर शादी के बाद ससुराल पक्ष का जो भी मिलता उसके पास पतिदेव के श्वान प्रेम की कोई न कोई कथा साथ होती. 'कैसे छोटे छोटे कुत्ते के पिल्लों को कभी छत पर कभी कबाड़ वाले कमरे में छुपा कर रखते और अपने हिस्से का दूध उन्हें पिला आते.' महल्ले के कुत्ते रोज सुबह दरवाजे के बाहर डेरा डाले रहते और जब तक नवनीत उन्हें आटे की तरह गींज नहीं देते वे बरामदे से नहीं हटते. (मेरी सासू जी का कथन था )
शादी के बाद भी घर में एक कुत्ता पालने की बात हमेशा उठती पर मैं सख्ती से मना कर देती. 'दो बच्चों को पाल कर बड़ा कर दिया, अब एक और किसी को नहीं पालना '.
शादी के बाद भी घर में एक कुत्ता पालने की बात हमेशा उठती पर मैं सख्ती से मना कर देती. 'दो बच्चों को पाल कर बड़ा कर दिया, अब एक और किसी को नहीं पालना '.
बच्चे बड़े हुए तो इन्हें भी पिता से श्वान प्रेम विरासत में मिला. बड़ा बेटा अंकुर का प्रेम तो कभी इतना मुखर नहीं रहा पर छोटा बेटा अपूर्व, करीब करीब रोज ही जिद करता. उसे अपने जैसे दोस्त भी मिल गए थे. एक बार बिल्डिंग के बच्चे एक टोकरी में फटे पुराने कपड़ों के बीच दो कुत्ते के पिल्लों को लेकर हर फ़्लैट की घंटी बजाते , मेरे फ़्लैट में भी आये ,"आंटी प्लीज़ इसे पाल लो न..वरना वाचमैन इन्हें कहीं दूर छोड़ आएगा " उनपर दया भी आती पर अपनी मजबूरी थी .एक बार कहीं से ये लोग दो तीन पिल्ले उठा लाये और उसे गैरेज में पालने लगे .बिल्डिंग वालों ने जब उन्हें दूर भिजवा दिया ,उस दिन अपूर्व डेढ़ घंटे तक लगातार रोया. शाम को सारे बच्चे खेलना छोड़ ऐसे मायूस बैठे थे ,जैसे कितना बड़ा मातम हो गया हो.
फिर भी मैं जी कडा कर अड़ी रही कि कोई कुत्ता नहीं पालना है. पर पिछले साल तीनो (Three Men in my
house ) की सीक्रेट मीटिंग हुई और एक कुत्ता पालने का निर्णय ले लिया गया. नेट पर ढूंढ कर कौन सा ब्रीड लेना है. किस केनेल से लेना है, सब तय हो गया. मेरे कानों में भी बातें पड़ीं. और मैंने फिर से एतराज जताया पर इस बार किसी ने मेरी नहीं सुनी. मैंने भी ऐलान कर दिया कि 'मैं उसका कोई काम नहीं करुँगी ' .इसे भी सहर्ष मान लिया गया और एक दिन एक महीने के Cocker spaniel का हमारे घर में पदार्पण हो गया. अंकुर बचपन में एक कार्टून देखा करता था जिसमे एक कुत्ते का नाम KIPPER था. इसका नामकरण भी 'किप्पर' हो गया . घर में ये गाना समवेत स्वर में गाया जाने लगा..."ब्रेव डॉग किप्पर' ,जो न पहने कभी स्लीपर ' अपूर्व तो सातवें आसमान पर विराजमान हो गया, "एक तो उसके बचपन का उसका एक कुत्ता पालने का शौक पूरा हुआ , उस से छोटा कोई घर मे आ गया और उसका नाम भी मिलता जुलता 'क ' से ही रखा गया,. किंजल्क, कनिष्क, किप्पर' (ये महज संयोग ही था )
मैं 'उसका कोई काम न करने की' अपनी बात पर कायम रही. पर किसी को इसका ध्यान भी नहीं था क्यूंकि 'किप्पर' का काम करने के लिए तीनो जन हर वक़्त तत्पर रहते.
किप्पर |
मैं 'उसका कोई काम न करने की' अपनी बात पर कायम रही. पर किसी को इसका ध्यान भी नहीं था क्यूंकि 'किप्पर' का काम करने के लिए तीनो जन हर वक़्त तत्पर रहते.
नवनीत जो हमेशा से लेट राइज़र रहे हैं . किप्पर' को घुमाने के लिए सुबह उठने लगे. ऑफिस जाने से पहले, उसे नहलाना ,हेयर ड्रायर से उसके बाल सुखाना ,फर्श पर लिटाकर देर तक उसके बाल ब्रश करना . सब करने लगे. शैम्पू, कंडिशनर डीयो तो लगाया ही जाता है उसका टूथपेस्ट और टूथब्रश भी है. उसके दांत भी साफ़ किये जाते हैं. जबतक उसकी 'टॉयलेट ट्रेनिंग ' पूरी नहीं हुई थी. तीनो में से कोई भी सफाई कर देता . बहुत जल्दी ही वो ट्रेंड भी हो गया. (होता भी कैसे नहीं ,वो घर से ज्यादा बाहर ही रहता था, तीनो लोग उसे घुमाने के शौक़ीन ) पर अभी हाल में ही उसने एक बार उलटी कर दी और मेरा बड़ा बेटा अंकुर जो घर के सिर्फ शोफियाने काम ही करता है (रंगोली बनाना , घर सजाना आदि ) उसने बेझिझक सफाई कर दी.
नवनीत का इतनी अच्छी तरह उसकी देखभाल करते देखकर मैं अक्सर कहती हूँ ,"'पुरुषों को चालीस के बाद ही पिता बनना चाहिए." तब वे कैरियर में थोड़े सेटल हो गए होते हैं और पहले जैसी भागम भाग नहीं लगी होती. आज जब देखती हूँ, नवनीत ऑफिस में फोन कर देते हैं, आज 'किप्पर' का वैक्सीनेशन है , देर से ऑफिस आउंगा (कभी कभी तो छुट्टी भी ले ली है ) तब मुझे याद आता है कि बच्चे जब छोटे थे , इनके ऑफिस जाने के बाद घर का काम ख़त्म कर एक बच्चे को गोद में उठाये दुसरे की ऊँगली पकडे डॉक्टर के यहाँ जाती और वहां घंटों इंतज़ार भी करना पड़ता था . किप्पर' की ज़रा सी तबियत खराब हुई और तीनो के मुहं लटक जाते हैं . उसे गोद में में ही उठाये फिरते हैं ये लोग. एक दिन भी अगर उसने ठीक से खाना नहीं खाया और नवनीत तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले जाते हैं. डॉक्टर भी एक महंगा 'टिन फ़ूड' थमा देता है, 'इसे खिलाकर देखिये' और किप्पर' उसे सूंघ कर छोड़ देता है. 'टिन फ़ूड' के डब्बे सजते जाते हैं. क्यूंकि हर कुछ दिन बाद नवनीत की रट शुरू हो जाती है, 'ये ठीक से खा नहीं रहा, दुबला होता जा रहा है '( जबकि किप्पर' अपनी उम्र से दो साल बड़ा दिखता है )
वो अगर नहीं खाता तो हथेली पर पेडिग्री ले कर उसे हाथ से खिलाया जाता है वो भी पूरे धैर्यपूर्वक देर तक. .घर के लिए कभी नवनीत ने एक ब्रेड भी न लाई हो पर किप्पर' के लिए रोज अंडे, पनीर. और शाम को आइसक्रीम लेकर आते हैं. और उसे आइसक्रीम खिलाते हुए जो तृप्ति का भाव चेहरे पर होता है, वो तो बस अवर्णनीय ही है. डॉक्टर को फोन करके उसके जन्मदिन की भी जानकारी ली गयी, और दस दिन पहले से ही घ रमें उसके बर्थडे मनाने की धूम. मजे की बात ये कि पहले जन्मदिन के बाद ही झट से डॉग मेट्रीमोनियल इण्डिया 'पर उसका रजिस्ट्रेशन भी हो गया .(हाँ कुत्तों की मेटिंग के लिए भी एक साईट है ) सारे शौक जल्दी जल्दी पूरे कर लेने हैं पता नहीं, बेटे ये मौक़ा दें या नहीं :) (पर एक सोचनीय बात है कि उस साईट पर भी male dogs की तुलना में female dogs बहुत कम हैं .)
अंकुर की गोद में किप्पर |
आजकल पतिदेव मुम्बई से बाहर गए हुए हैं . मेरे पूछने पर कि "अब 'किप्पर' का ख्याल कौन रखेगा ?",दोनों बेटों ने एक सुर में कहा, "हमलोग हैं न.." उसका ख्याल रखा भी जा रहा है और कुछ ज्यादा ही. एक सुबह चार बजे ही ,अपूर्व उसे घुमाने ले गया क्यूंकि वह कूं कूं कर रहा था .उसे नहलाना, उसके बाल ब्रश करना , खिलाना तो सब कर ही रहे हैं, एक दिन अंकुर ने उसके लिए रोटी भी बनाई और मदर्स डे था इसलिए मुझ पर भी कृपा हो गयी. मेरे लिए लिए भी पराठे बनाए. पहली बार के हिसाब से ठीक ही बने थे .
दुसरे दिन अपूर्व ,किप्पर' के लिए चिकन लेकर आया और जो कभी चाय भी नखरे के साथ बनाता है. ख़ुशी ख़ुशी उसके लिए चिकन बनाया . ' {अच्छा है, मेरी बहुएं शिकायत नहीं करेंगी :)} .
बस अपूर्व की एक बात का मैं उत्तर नहीं दे पाती .एक दिन उसने कहा, "सबलोग कहते हैं, मेहनत के बिना कुछ नहीं मिलता, मेहनत करो तभी किस्मत साथ देती है . ये 'किप्पर' क्या करता है जो इसकी किस्मत इतनी चमकी हुई है?? "
अराधना भी अक्सर अपनी गोली और सोना की तस्वीरें पोस्ट करती रहती है...उनकी बातें शेयर करती रहती है, अराधना की गोली का परिचय है
नाम- गोली
मम्मा का नाम- आराधना
रंग- गोरा
आँखों का रंग- काला
ऊंचाई- एक फुट
लम्बाई- दो फुट
उम्र- एक साल तीन महीने
मनपसंद काम- कोल्ड ड्रिंक की बोतलों को काट-कूटकर चपटा कर देना :) बाल खेलना और मम्मा को काटना :)
खाने में- डॉग फ़ूड, दही, अंडे, पपीता, संतरा और आम। कच्चा आलू, नूडल्स और आलू भुजिया भी पसंद है, पर मम्मी देती नहीं :(
आराधना ने अपनी 'सोना' का बहुत ही प्यारा वीडियो पोस्ट किया है ,जिसे यहाँ देखा जा सकता है
पाबला जी के मैक की कारस्तानियाँ सब जानते हैं. Mac Singh का अपना फेसबुक अकाउंट है .उनके रोज के अपडेट्स और बेशुमार तस्वीरें यहाँ देखी जा सकती हैं.
मैक के पहले जन्मदिन की तस्वीर पर पाबला जी ने
उसका परिचय कुछ ऐसे लिखा ,"अभी तो माशा अल्लाह 1 साल के हैं ज़नाब
तो 5 फीट की लम्बाई है
जब जवां होंगे तो गज़ब ही ढाएँगे —
वंदना अवस्थी दुबे के पास भी एक प्यारा सा नन्नू है जिसके खाने में बड़े नखरे हैं ,वन्दना कहती हैं..."नन्नू खाना खा ले, इसके लिये भारी जतन करना पड़ता है अब घर ले आये हैं तो पालेंगे भी बच्चे की तरह, कोई कुछ भी कहे "
ये सब देखकर तो यही लगता है कि ममत्व की भावना ,ममता की अनुभूति पर सिर्फ जन्मदात्री माँ का ही हक़ नहीं .यह भावना सर्वव्यापी है. .
मेहनत के बिना कुछ नहीं मिलता, मेहनत करो तभी किस्मत साथ देती है . ये 'किप्पर' क्या करता है जो इसकी किस्मत इतनी चमकी हुई है?? "
जवाब देंहटाएंअब इसका जबाब तो हमारे पास है ही नहीं .
हटाएंहा हा हा! अपनी माता जी के साथ किप्पर- ये पढ़कर हँसी ही नहीं रुक रही...और किप्पर पर बना गाना-"ब्रेव डॉग किप्पर' ,जो न पहने कभी स्लीपर ' :)
जवाब देंहटाएंवैसे आप बड़ी सख्त हो दीदी. बच्चों को बचपने में डॉगी के प्यार से दूर रखा. पता है- मेरे घर में तो हमेशा एक कुत्ता ज़रूर रहता था. और उसकी पोटी मुझे साफ करनी पड़ती थी. मेरा नाम ही 'सफाई मंत्री' और 'जमादारिन' पड़ गया था. खैर, रेलवे कालोनी में कुत्ते पालना आसान भी होता था.
किप्पर टोपी में बड़े अच्छे लग रहे हैं और मैक की बात ही निराली है.
गोली जी के तो इतने ठाठ हैं कि पूछो मत. रात में कब चुपके से आकर मेरे बिस्तर पर बगल में सो जाती है, पता ही नहीं चलता. लेकिन दीदी, मुझे वो प्यार भी बहुत करती है. एक दिन मुझे अम्मा-बाऊ को याद करके रोना आ गया, तो गोली ने आकर मेरी आँखों को चाटना शुरू कर दिया. फिर बांह पर सिर रखकर मुझे देखने लगी एकटक.
अंदाजा है ,अराधना कि 'गोली' तुम्हें कितना प्यार करती होगी.ये बेजुबान जानवर 'अनकंडीशनल लव 'देते हैं और यही उन्हें इंसान से अलग करता है.
हटाएं'श्वानों को मिलते दूध वस्त्र ..भूखे बच्चे अकुलाते हैं" हमारे माता-पिता ने भी क्या पता यही सोच कर इस अनुभव से हमें वंचित रखा हो... फिर शादी ऐसे देश में हुई जहाँ बहुत कुछ करने की मनाही है...छत पर फाख़्ता और कबूतर दाना चुगने आते हैं तो उन्हें देखकर ही खुश हो लेते हैं...
जवाब देंहटाएंफाख्ता और कबूतर लाग होते हैं ? और आजतक मैं समझती थी, कबूतर को ही फाख्ता कहते हैं .
हटाएंजहाँ तक मुझे जानकारी है फ़ाख़्ता और कबूतर एक ही परिवार से आए हैं..बनावट मे कुछ फर्क है...फ़ाख़्ता को पंजाब में घुग्गी भी कहते हैं जो साइज़ में छोटी और गहरे भूरे रंग की होती है...कबूतर spotted dove और फ़ाख़्ता little brown dove के नाम से ही सुने हैं...
हटाएंहमारे पास भी एक समय में तीनजानवर थे टौमी पामेरियन , चीकू खरगोस और हमरा मिठ्ठू जो उड़ना नहीं जनता था और टूटे पिंजरे से निकल बाहर आ हमारी थाली में खाना खाता था और तीनो की मौत बहुत दर्दनाक थी और लगभग साथ साथ , एक दिन चीकू घर के जंगले से बाहर रात में निकल गया और टौमी अन्दर रहा गया नतीजा बिल्ली ने उसी दिन उस पर हमला कर दिया दो दिन तड़पता रहा किन्तु बचा नहीं , टौमी को पिछले भाग में लकवा मार गया चलन फिरना मुश्किल हो गया और बाद में उसकी मौत , इनकी मौत के पहले मैंने तब तक किसी भी अपने को मरते नहीं देखा था उसकी मौत ने मुझे अन्दर तक इतना हिला दिया ,और साथ में अपराध बोध से भी भर दिया की शायद हमने उसे ठीक से नहीं रखा , उसका ठीक से इलाज नहीं कराया उस ज़माने में जानवरों को प्राइवेट डाक्टर कहा थे बस एक सरकारी अस्पताल था , नतीजा आज तक मेरे घर में किसी ने दुबारा किसी जानवर को लाने की हिम्मत नहीं की , मै जानती हूँ की ये कहने भर के लिए जानवर होते है किन्तु कई बार कुछ अपनो से बढ़ कर , ये तय है की उनका जीवन हमसे बड़ा न होगा और उनका जाना देखना अब न सहा जाएगा , बिटिया बहुत जिद्द करती है पेट रखने के लिए तो मुंबई में छोटे घर का बहाना बना देती हूँ , उस डर या अपराधबोध जो कहा जाये उससे बाहर नहीं निकल पाती हूँ , और घर में किसी पेट को लाने की हिम्मत नहीं कर पाती :(
जवाब देंहटाएंमाँ वाली बात से आप से सहमत हूँ , मैंने भी एक पोस्ट में लिखा था की पुरुष आराम से एक माँ बन सकता है किन्तु वो बनना नहीं चाहता है और इतने अच्छे एहसास से दूर रह जाता है :)
यह तो बहुत बहुत बुरा हुआ,पर किसी किस्म का अपराधबोध न रखो .जब किसी जानवर को पालते हैं तो अपनी जान से भी बढ़कर उसकी देखभाल करते हैं,इसलिए यह तो हो ही नहीं सकता कि उनका ध्यान ठीक से नहीं रखा गया हो.
हटाएंपर ये भी जरूर है,pets की देखभाल पूरा डेडिकेशन माँगता है.जबतक इतना समय न दे पायें, पालने से परहेज ही करना चाहिए.
पेट् एक बार घर में आ जाये तो न चाहते हुए भी उसके साथ एक सम्बन्ध बन ही जाता है। एक बार अटेचमेंट होने के बाद घर के मेंबर जैसा ही लगने लगता है।
जवाब देंहटाएंघर का सबसे इम्पोर्टेंट मेंबर..सबसे छोटा जो होता है :)
हटाएंनन्नू बिलकुल हमारी रूबी जैसा है हुबहु. पामेरियन होते हुये भी वो 17/18 साल की उम्र की होकर चली गई, जितनी पीडा दुख दर्द हमने और परिवार ने बर्दाश्त किया उसके बाद कोई भी पैट पालने से तौबा कर ली. बहुत ही शानदार आलेख.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शुक्रिया आपको आलेख अच्छा लगा ,और यह बात तो सही कही, उनका बिछड़ना बहुत दर्द दे जाता है.
हटाएंघर पर कोई ना कोई पालतू जानवर होना ही चाहिए फिर चाहे वह गाय, कुत्ता, तोता, खरगोश या फिर चिड़िया ही क्यू ना हो
जवाब देंहटाएंजॉनी और डेज़ी के बाद मन ही नहीं किया किसी पालतू का
मना करने के बावजूद, मैक को गुरुप्रीत ले आया था। अब गुरूप्रीत नहीं है, सारी भावनाएं मैक से जुड़ी हैं
ऐश है पट्ठे की। माइक्रोवेव में बना खाना खाता है, एसी कमरे में सोता है, एसी गाड़ी में घूमता है। घर वालों के लिए कभी डॉक्टर नहीं आया लेकिन मैक के लिए बाकायदा डॉक्टर आता है.
यह बेजुबान मेरी जितनी परवाह करता है, मुझे जितना सहारा देता है उसका तो मैं क़र्ज़ नहीं उतार सकता
समझ सकती हूँ पाबला जी कि मैक आपका कितना ध्यान रखता है ...मैक से जुड़े आपके अपडेट्स पढ़ती रहती हूँ .
हटाएंचलिये, इसी बहाने सब सुधरे तो जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबल्कि सुधर गए हैं :)
हटाएंअरे वाह...छा गये नन्नू, किप्पर, गोली, और मैक सिंह जी :)
जवाब देंहटाएंसच में बड़ा गहरा लगाव हो जाता है घर में जो भी पेटस रहें उनसे .......... ये भी सच है कि ममत्व का भाव तो कसी के भी मन हो सकता है | सभी चित्र बड़े अच्छे लगे...
जवाब देंहटाएंहाँ वही ,ममत्व की भावना पर सिर्फ हम माओं का अधिकार ही नहीं. पुरुषों में भी ये भावना बखूबी होती है.
हटाएंपरिवार छोटे होते गये
जवाब देंहटाएंरहने की जगहें छोटी होती गयी
तो पालतू भी छोटे होते गये
भैंस-गायें की जगह अब फखरू ने ले ली है
फखरू (हमारा पग) के बारे लिखने का मन कर गया आपकी पोस्ट पढ कर
प्रणाम
फखरू नाम बड़ा अच्छा रखा है.:)
हटाएंजल्दी ही मिलवाइए अपने फखरू से ...इंतज़ार रहेगा आपकी पोस्ट का
किप्पर के तो मज़े हैं ... कितने अपने बन गए एक ही पल में ..
जवाब देंहटाएंघर में राणे वाले से लगाव होना स्वाभाविक है ... फोटो मस्त हैं सभी ... ईर्शा हो रही है मुझे तो ...
सचमुच नासवा जी ,बहुत गहरा लगाव हो जाता है.
हटाएंपिता का माँ की तरह बच्चों की देखभाल करना बहुत अचंभित आल्हादित करता है . एक कविता भी लिखी है मैंने इस पर !
जवाब देंहटाएंबहुत पढ़ा है पालतू जानवरों के शौकिनो के बारे में , बहुत संवेदनशील होते हैं , आदि आदि , बल्कि पाया ये है की ऐसे लोग इंसानों के प्रति बहुत असंवेदनशील होते हैं . घर में परिवार का छोटा बच्चा पौटी कर दे इनका वश चले तो उसे जान से ही मार डालें , मगर कुत्ते बिल्लियों की गन्दगी साफ़ करने में उन्हें जरा गुरेज नहीं . किसी एक व्यक्ति के लिए या घर के बुजुर्ग सदस्य के लिए खाना बनाना या पैसे खर्च इन्हें अखरता हो , मगर पिल्लै- पिल्लियों के लिए जो चाहे पकवा लो , बाजार से मंगवा लो . इन लोगों में संवेदनशीलता ढूंढते थक जाती हूँ ...
खैर जरुरी नहीं है कि कुत्ते बिल्ली पालने वाले सारे ऐसे ही होते हों , मगर मेरा अनुभव यही रहा है !
सबको हक़ है अपनी पसंद का कार्य करने का , मगर मुझे इस पैसे को दो गरीब बच्चों को बिस्किट मिठाई या उनकी शिक्षा पर खर्च करना ज्यादा अच्छा उपयोगी लगता है !
सोच अपनी -अपनी !!
पता नहीं, इतना एक्सट्रीम तो मैंने अब तक नहीं देखा बल्कि अपने बेटों को किप्पर का इतना ध्यान रखते देख ,अच्छा ही लग रहा है कि आगामी जीवन में ये अनुभव उनके काम ही आयेंगे.
हटाएंबढिया है आपका किप्पर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :)
हटाएं
जवाब देंहटाएंअब आपके घर में एक ऐसा जीव है जो पूरे जीवन आप सबको, आप सबसे अधिक, प्यार करेगा !
कुछ समय बाद आप इस गूंगे बच्चे के चेहरे पर सबके लिए स्नेह, चिंता , फ़िक्र और जिम्मेदारी महसूस करेंगी !
हाँ इसे भी प्यार चाहिए अपने माता पिता और भाइयों से ...इसके लिए रिश्ते सिर्फ आप लोग हैं हो सके तो इसका ध्यान रखें !!
यह अपनी बात कह नहीं पाता !
मंगल कामनाएं आपके परिवार के लिए
शुक्रिया सतीश जी,
हटाएंसबके लिए स्नेह, चिंता , फ़िक्र..तो अभी से नज़र आती है...कोई ज़रा सा शांत बैठा कि उसके पैर चाटना शुरू कर देता है..और कूं कूं करके अपनी तरफ ध्यान खींचता है.
हटाएंआपको बधाई एक स्नेहमूर्ति जीव को घर लाने के लिए, और इसे हम इंसान लोग कुत्ता कहते हैं :( ..
यकीनन प्यार में हम इंसान बेकार लोग हैं यह नहीं !!!
सरवत जमाल का एक शेर याद आ रहा है ..
इस तरफ आदमी उधर कुत्ता
बोलिए किसको सावधान करें
बढ़िया शेर है ...कितना सच कह गए हैं शायर साब
हटाएंgreetings to Kipper from Peter & Mona!! nice ....
जवाब देंहटाएंThanx Peter & Mona ..hw r u buddies ??:)
हटाएं-- KIpper
बहुत रोचक पोस्ट है रश्मि जी ! मुझे पहले से पता होता तो अपने प्यारे 'सम्राट' (मेरा पेट डॉग डैशहाउंड ) की भी एक तस्वीर आपके पास भेज देती है ! सबके पेट्स के प्यार दुलार और नखरों के बारे में पढ़ कर बहुत आनंद आया ! तसल्ली हुई बिगड़े राम सिर्फ हमारे ही नहीं हैं बाकी सब भी यही झेल रहे हैं और वो भी बड़े शौक और जोश खरोश के साथ ! हमारे साहबजादे तो इतने बिगड़े हुए हैं कि उन्हें खाना खिलाने के लिये पूरा आधा घंटा डिवोट करना पड़ता है ! कभी समयाभाव की वजह से ऐसे ही खाना कटोरे में दे दिया तो जनाब सूंघते भी नहीं हैं ! पनीर, मलाई, आइसक्रीम, ब्रेड और पार्ले जी बिस्किट्स के दीवाने हैं और रात को जब सोना होता है तो उनकी इजाजत के बिना पाँच मिनिट भी और कोई काम करना असंभव हो जाता है ! इतना शोर मचाता है कि काम बंद करने में ही भलाई दिखाई देती है ! फिर उसे सुलाने के लिये या तो पतिदेव को बेड पर जाना पड़ता है या फिर मुझे ! हमारे पास यह तीसरा डॉग है इसी ब्रीड का जिसका नाम 'सम्राट' है ! क्या करें उसके डॉक्टर को यह नाम इतना पसंद है कि हर बार कहते हैं भाभीजी नाम यही रखियेगा ! तो आजकल हमारे पास इन दिनों सम्राट-३ चल रहे हैं ! बच्चे कहते हैं नाम का बड़ा असर पड़ता है डॉग्स पर शायद इसीलिये तीनों एक से बढ़ कर एक पैम्पर्ड हो गये अब जो पालेंगे उसका नाम 'सेवक' रखेंगे शायद वह डिसीप्लीन्ड हो जाये ! वैसे तीनों पेट्स को बिगाड़ने में इन बच्चों का रोल ही सबसे बड़ा रहा है यह बात अलग है !
जवाब देंहटाएंSab ke bare me to pahle hi kah chuka hu...
जवाब देंहटाएंhaan, last pic ka caption achha h. :) :D
Ha ha ha..bahut achha :) goli ke baare mein aradhna ji se to sunte hi aate hain ab kipper ke baare mein bhi sunnenge aapse :)
जवाब देंहटाएंmamatwa sabame hota hai ...
जवाब देंहटाएंआपने तो मुझे मेरे सभी कुत्तों की याद दिला दी. किप्पर बहुत अच्छा लगा. पालतू जानवर रखने से परिवार के हर सदस्य में उत्तरदायित्व की भावना जग जाती है.
जवाब देंहटाएंपाबला जी का मैक तो बिल्कुल मेरे दिवंगत ताशी जैसा है.
लेख और फोटो बहुत पसंद आईं.
घुघूतीबासूती
लेख बढ़िया लगा. फोटो भी. किप्पर भी. माँएं भी.
जवाब देंहटाएंअपने सभी कुत्ते याद आ गए. वे भी क्या दिन थे!
पाबला जी का मैक तो बिल्कुल मेरा ताशी है.
घुघूतीबासूती
जवाब देंहटाएंलोग तो अपने सगों को मान सम्मान नहीं दे रहें हैं
आप तो अनबोलते प्राणी को इतने प्यार से सहेज रही हैं
वाकई बहुत सार्थक काम है
बधाई
आग्रह हैं पढ़े
ओ मेरी सुबह--
http://jyoti-khare.blogspot.in
मेरी डेजी (पाम -स्पिट्ज ) है ,साल की हो गई और अब भी पूरी तरह सक्रिय है -मगर एक बात कहूँगा -कुत्ते बहुत केयर की मांग करते हैं -बच्चे पिल्लों पर मोहित हो पाल तो लेते हैं मगर झेलना मां बाप को पड़ता है . हम ट्रेन बस से अकेले टूर पर चले जाते थे मगर अब डेजी के लिए कार हायर करनी होती है ....मेरी सलाह है कि कुत्ते पालने का निर्णय बहुत सोच समझ कर होना चाहिए ,
जवाब देंहटाएंआज तो लगता है डेजी ने ही हम दंपत्ति को अडाप्ट किया हो जैसे ......बच्चे दूर हो लिए कबाहत हमें दे गए! :-)
सही कहा आपने
हटाएंPabla ji
हटाएंOnly bearer knows where shoe pinches! :-(
*डेजी 14 साल की हो गई है
जवाब देंहटाएं