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शुक्रवार, 2 मार्च 2012

साड्डा चिड़ियाँ दा चंबा वे ...(कहानी --२ )


(इस किस्तों वाली कहानी का उपयुक्त शीर्षक नहीं मिल रहा था और मेरी सलाहकार वंदना अवस्थी दुबे ने (सोचती हूँ...इन्हें ऑफिशियल सलाहकार ही अपोयेंट कर लूँ...पर डर है,कहीं मोहतरमा लम्बी-चौड़ी फीस न फरमा  दें :)) सलाह दी...हर किस्त का एक अलग शीर्षक रख लो और बात मुझे जंच गयी...पूरी कहानी का शीर्षक  ढुंढने की  कवायद मुल्तवी  }

कहानी अब तक--
(जया के कविता संग्रह को एक बड़ा पुरस्कार मिला. पत्रकार पूछने लगे, उसकी कविताओं में इतना दर्द कहाँ से आया ?और जया पुरानी यादों में खो गयी.. दो बड़े भाई और दो बड़ी बहनों..माँ-बाबूजी के संरक्षण में बचपन बड़े प्यार में बीता...बाबूजी के दुनिया से चले जाने के बाद उसने सोचा नौकरी करके माँ की देखभाल करेगी..पर एक पड़ोस के लड़के ने ख़त भेजकर..रास्ते में रोक कर अपने प्यार का इजहार शुरू कर दिया..उसने हर बार उसे मना  कर दिया...)
गतांक से आगे ---


कुछ दिन यूँ ही डरते-डरते बीत गए. पर   -धीरे महसूस किया...अब दो आँखें पीठ पर नहीं जड़ी होतीं...ना ही किसी के द्वारा घूरे जाने का अहसास ही होता...और वह थोड़ी निश्चिन्त हो गयी...लगता है 'राजीव समझ गया और कोशिश छोड़ दी....चलो अच्छा हुआ बला टली...अब यूँ डर के साए में नहीं जीना पड़ेगा...अब इत्मीनान से कहीं आ जा सकती है. बिजली का बिल जमा कर लौट रही थी कि देखा...राजीव के घर के बाहर ढेर सारे गद्दे चादरें..सूखने को फैलाई हुई हैं. पड़ोस की मिसेज मिश्रा ...मिसेज गुप्ता से  कह रही थीं..'लगता है...राजीव की अम्मा आई हुई हैं....कभी मिश्रा जी के पास तो कभी बेटे के पास...एक पैर इहाँ त एक पैर उहाँ रहता है,उनका....आते ही झाड़-पोंछ में लग जाती हैं...चलते हैं शाम को मिलने...' 

उसने ऐसे ही उत्सुकता से एक नज़र मुड कर देखा...पर कोई नज़र नहीं आया...वो घर चली आई.

दूसरे दिन अलसाई सी लेटी थी कि तीन बजे के करीब...दरवाजे पर जोर की खट-खट हुई..."अरे कोई है..?"
हडबडा कर उठी तो देखा अधेड़ उम्र की एक औरत खड़ी थीं...उसके दरवाज़ा खोलते ही...उसे ऊपर से नीचे तक घूरने लगीं...उसे थोड़ा अजीब सा लगा...असमंजस में चुप खड़ी रही..जब उनका घूरना बंद नहीं ही हुआ तो पूछ लिया..."किस से मिलना है??.."
"अपनी माँ को बुलाओ"
"आप बैठिये अभी बुलाती हूँ..."
माँ भी लेटी थीं...बताने पर " कौन है...." कहती...हडबडाते हुए सर पर पल्ला ठीक करते बैठक की तरफ भागीं "
"का हाल है..नरेस की माँ....बढ़िया हुआ यहाँ चली आयीं...अपना घर होते हुए काहे बेटा-बहू के आसरे रहतीं.."
"नहीं आसरे की बात नहीं है...ये घर भी इतने दिनों से बंद पड़ा था....इसकी देख-रेख करनी थी...रहने पर ही पता चलेगा ना...किधर क्या मरम्मत कराना  है..इसीलिए यहाँ चली आई " 

वो एक कोने में खड़ी थी...माँ ने उसकी तरफ  मुड़ कर देखा..."जरा  सरबत-पानी लेकर आओ...." फिर उसकी आँखों में सवाल देख खुद ही जबाब दे दिया.."अरे राजीव की माँ हैं...तुमको याद नहीं होगा...कम ही मुलाकात हुआ है...कभी जब हमलोग आते थे तो ये नहीं और ये आती थीं तो हमलोग नहीं.." फिर उन महिला की तरफ मुड़ कर पूछा.."आपने पहचाना,इसे...जया है.."

"हाँ अच्छी तरह पहचाना...अब तो एही बाकी  है ना सादी  के लिए....बाकी सबको तो सरमा जी निबटाइए  के गए हैं.."

उनका इस तरह 'निबटाइए  के' बोलना..उसे अच्छा नहीं लगा...पर चुपचाप मुड़ गयी. शरबत देने के बाद ...वह वापस कमरे में आ कर लेट गयी..अचानक उनकी बातचीत में अपना नाम सुन..उसके कान खड़े हो गए . राजीव की माँ कह रही थीं..." छोटकी बेटी की सादी के लिए का सोची हैं..?"
"अभी तो कुछ नहीं...बी.ए.का इम्तिहान दी है..रिजल्ट आ जाए...तब देखें..कहती तो है कि अभी और आगे पढेंगे...नौकरी करेंगे..."
"अरे का लड़की जात से नौकरी करवाईयेगा....सादी-ब्याह का सोचिये.."

और माँ की दुखती रग छू गयी हो जैसे...बिना देखे ही वो बता सकती थी..उनकी आँखें गंगा-जमुना बन गयी होंगी...जब भी उसकी बात होती...माँ बाबूजी को याद करके रोने लगतीं..क्या क्या अरमान थे उनके..अभी भी रुआंसी सी बोल रही थीं.." हाँ..देखना ही होगा...इसके बाबूजी तो रहे नहीं...बीच मझधार में छोड़ चले गए...हमेशा कहते थे इसके लिए तो राजकुमार जैसा दूल्हा लायेंगे....क्या पता क्या लिखा है..इसकी किस्मत में.."
"अरे ऐसा क्यूँ कहती हैं....सरमा जी का अरमान था तो राजकुमार जईसा दुल्हा ही मिलेगा इसको.."
"आप बताइए...राजीव को भी तो नौकरी में आए बहुत दिन हो गया...कब कर रही हैं...ब्याह  उसका..?"

"अरे अब का बताएँ...दू साल हो गया नोकरी लगे...लड्कीवाला लोग सुबह-साम दुआर अगोरता है...पर इ माने तब ना...अभी और परीक्षा देना है..अफसर बनना है...एही कहता है...मेरा तो उ लोग को चाय पिलाने में ही महीना का पांच किलो चीनी...और दू किलो चाय ख़तम हो जाता है. कम से कम सादी करे तो ई खर्चा त कम हो.."
"आप भी ना.."..हंसने लगीं  माँ...
"पर अब मान गया है...एक लड़की पसंद आ गयी है...."
"ओह फिर देर काहे की...जल्दी से बजवाइये बाजा.."
"इसीलिए तो इहाँ आए हैं.."
"समझी नहीं..." माँ सचमुच कुछ नहीं समझी थीं...पर वो सब समझ रही थी...उसका दिल बैठ गया...उनकी चाय की चर्चा सुन चाय बनाने उठी थी..धम से वापस चौकी पर बैठ गयी...'तो ये वजह है राजीव की माँ के यहाँ आने का"
"का नहीं समझीं....आपकी बेटी जया पसंद आ गई है राजीव को...अब तक सादी के नाम पर ना ना कहता था..अब अपने से कहा है...बात करने के लिए...त का करें...अब आपके घर में कोई मरद माणूस भी नहीं है ना...किस से बात किया जाए...इसीलिए हमको आना पड़ा...नहीं तो औरत लोग कभी ई सब काम करती है...पर अब का करें...दुसर कौनो उपाए नहीं था..."
माँ शायद सकते में थीं...एक शब्द नहीं निकला उनके मुहँ से....
"का सोच रही हैं....सरमा जी कहते थे ना..राजकुमार जैसा दूल्हा ढुंढेंगे  त देखिए बिना मेहनते के दुआरी पर राजकुमार जैसा दूल्हा आ गेया "
" हाँ..भाग्य है लड़की का..पर बातचीत त मेरा दुनो बेटा ही करेगा...अब वही दोनों गार्जियन  है इसका.." शायद माँ को घर में कोई मरद मानुस नहीं होने की बात अखर गयी थी...उसे भी सुकून आया..डर रही थी कहीं माँ..एकदम से हाँ ना कह दें.

"ठीके है...खबर कर दीजिये उ लोग को...दुनो खुसे होगा...भाग-दौड़ का मेहनत बच गया....अब चलेंगे...राजीव के ऑफिस से आने का टाइम हो रहा है..जब तक हियाँ हैं..चाय-पानी त  दे दें.." 

"आप चाय तो पी के जाइए...जयाss..जयाss " माँ पुकार ही रही थीं...पर राजीव की माँ बीच में ही उन्हें रोक कर उठ गयीं.." अब त मिठाईये खायेंगे...चाय ओए रहने दीजिये"  
उसने भी राहत की सांस ली...उसका भी मन नहीं था उनके सामने जाने का 

***
माँ घबराई सी अंदर आयीं...' जया..बेटी...सुना तुमने क्या कह रही थीं...राजीव की माँ..."
माँ को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था...खुश भी थी...और उनकी आँखें भी भरी जा रही थीं...
पर उसने सख्त चेहरा बनाए हुए कह दिया.." सब सुना...पर  मैने पहले ही बता दिया है...शादी नहीं करनी..अभी और पढूंगी...नौकरी करुँगी.."

ज़िन्दगी में पहली बार माँ ने जोर से डांटा.."ऐसे कुलच्छन बोल नहीं बोलते.... कोई लड़की अनब्याही रही है आजतक...भगवान ने भेजा  है..इतना सुन्दर घर और वर....उनकी इच्छा को ना नहीं करते..चल  मेरे साथ चल...दोनों भैया को फोन कर दे... "
"माँ....मैं कहीं नहीं जा रही....इतना हडबडाने की जरूरत नहीं है.
"अब इ शाम  को हम अकेले जाएँ...हमको तो नंबर मिलाना भी नहीं आता...काहे नहीं बात मान रही हो..सीमा और रीता को भी फोन कर देंगे...सबसे ई खुसखबरी बाँटने का मन हो रहा है..."
"कैसी खुसखबरी माँ...अभी से सब जगह  ढिंढोरा मत पीटो...आज तो हम कहीं नहीं जायेंगे...कल देखेंगे.." और इतना कह वह उठ कर चली गयी .

माँ भी शायद समझ गयीं...वो नहीं मानेगी..."ठीक है...कल ही चलना..पर जरा कागज़ कलम दे...सबको चिट्ठी तो लिख दें".. और सीधा चिट्ठी लिखने बैठ गयीं...ये माँ का एकदम बदल हुआ रूप था...अब तक रोने-धोने सोग मनाने वाली माँ, एकदम से कामकाजी हो उठी थीं .....माँ की पनीली आँखों में एक नई चमक आ गयी थी. एक नई जिम्मेवारी के अहसास से एकदम सीधी तन कर बैठी थी... माँ ने तो लम्बी चिठ्ठी दोनों भैया और दोनों दीदी को  लिखी... लिखते वक्त....खुद से ही बातें करतीं...कभी रोती..कि बाबूजी नहीं है..अपनी रानी बेटी की शादी देखने को...कभी खुश होती...कि कितनी चिंता थी..उन्हें जया की शादी की..भगवान ने घर बैठे लड़का भेज दिया. उसने भी लिफ़ाफ़े में दो लाइन लिख कर डाल दिया कि उसे शादी नहीं करनी...और कोई जल्दी नहीं है...जैसे छुट्टी मिले...वैसे ही लोग आएँ.

माँ नहीं मानीं..दूसरे दिन सबको फोन किया और कह दिया...कि चिट्ठी में सब विस्तार से लिखा है. बड़े भैया तो दो दिन बाद ही आ गए .बहनों ने भी पत्र के उत्तर में ,ख़ुशी जाहिर की और उसे समझाया कि बचपना ना करे. पर भैया जबतक आए...राजीव की माँ वापस चली गयीं थीं . भैया, राजीव से मिलकर बहुत खुश हुए कि होनहार लड़का है  और उनके मात-पिता से मिलने...उनकी पोस्टिंग पर चले गए. लौट कर बताया...."उनलोगों को जया बहुत पसंद है..."
"और लेन-देन की बात ?"...माँ ने आशंका से पूछा.

"मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं था...उन्होंने कहा दो-तीन दिन छुट्टी लेकर आऊं..फिर आराम से बातें करेंगे...तुम चिंता मत करो...जब खुद लड़की का हाथ मांग रहे हैं तो उनलोगों की ज्यादा डिमांड नहीं होगी....और अपने घर की लडकियाँ, अपनी  किस्मत लेकर आती हैं....सीमा और रीता  की शादी में भी कहाँ ज्यादा दहेज़ माँगा  उनलोगों ने..दोनों दामाद कितने अच्छे मिले हैं...और हम दोनों भाई की शादी में भी पिताजी ने नहीं ली ..तो जया की शादी में क्यूँ देना पड़ेगा....जो भी करेंगे हमलोग अपने शौक से करेंगे....और सबसे छोटी बहन है...पूरे धूमधाम से शादी करेंगे...उन्हें शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा..."

माँ की आँखों से झर झर आँसू गिरने लगे...वे बस आँचल से आँखें पोंछती रहीं...कुछ बोली नहीं...शायद मन ही मन भगवान  का शुक्रिया  अदा कर रही थीं.

"बस इतना कहा है कि सोने के सिक्के से लड़के का टीका कर जाऊं...."
"हाँ, लड़के का रोका तो करना होगा....चलो संदूक खोलती हूँ...देख लो...उसमे से क्या लेना होगा "

ये सब सुनकर थोड़ा मन उदास हो गया उसका..शुरुआत तो कर ही दी उनलोग ने मांगने की....दीदी-भैया के समय ऐसा कुछ तो नहीं कहा था.. पता नहीं आगे क्या होने वाला है." एक गहरी सांस ली उसने.

कानो कानो ये बात पूरे मोहल्ले में फ़ैल गयी. उसका बाहर निकलना  दूभर हो गया. वो तो ज्यादा लोगों  को पहचानती नहीं..लेकिन लोग उसे दिखा कर कहते..."यही है वो लड़की " उसे लगता पता नहीं लोग क्या सोच रहे होंगे......माँ के चहरे से उदासी की परत गायब हो गयी थी..वे सारा समय शादी का हिसाब-किताब ही करती रहतीं.

राजीव ने कई सारी परीक्षाएं दे रखी थीं. और उनके रिजल्ट आने शुरू हो गए थे.पता चला...पी.सी.एस. का इम्तहान पास कर लिया है और वो अब डिप्टी कलक्टर बन जाएगा. राजीव के माता-पिता घर आ गए और एक बड़ी पूजा रखी. वो तो पूजा में नहीं गयी पर माँ बता रही थी कि मोहल्ले के सारे लोग ,उसे बधाई दे रहे थे कि 'लड़की के पैर बड़े अच्छे हैं...रिश्ता जुड़ते ही बढ़िया नौकरी लग गयी.'
 
माँ ने तो बस इतना ही बताया.पर एक दिन पास-पड़ोस की औरतें घर पर आई थीं...उनमे से ही दबंग मिसराइन चाची ने कहा.."अरे जब मैने राजीव  की माँ से कहा, बहू के पैर बड़े शुभ हैं..आने के पहले ही...खुशखबरी आ गयी" तो तमक कर बोली.."अभी कैसी बहू...कोई छेका थोड़े ही हुआ है... " 
मैने भी सुना दिया.."क्या अब दहेज़ की चकाचौंध में भुला  गयीं  का...कि आप ही गयीं थीं..लरकी का हाथ मांगने...तब ना सोचीं कि कहीं बेटा अफसर बन जायेगा त बड़का गाड़ी में लोग आएगा रिश्ता ले के...नहीं जाना चाहिए था ना. "
 वो तो राजीव के बाबूजी उसी वक्त बात सम्भाल लिए.."अरे नहीं भौजी...जुबान देने के बाद...हम फिरने वाले में से नहीं हैं..' ..वरना मैं तो और सुनाने वाली थी." 

सबने हाँ में हाँ मिलाई..."पूरा सहर  जानता है....कि इन दुनो का सादी पक्का हो गया है...इसके भाई त सिक्का से लरिका का टीका भी कर गए थे...तुम कंजूस लोग ने लड़की को कुछ नहीं दिया..तो का शादी नहीं ठीक  हुआ"...बोलो सुधीर  की माँ...गलत कहे का हम?" मिसराइन चाची ने आगे जोड़ा.

"ना ना एकदम ठीक बात है..अरे लरकी का भाग है की ऊ अफसर बन गया "...ये सुधीर  की माँ थीं.
यह सब सुन उसे डर भी लगा और थोड़ा सुकून  भी...अच्छा हो, वे लोग कहीं और रिश्ता कर लें...और उसके मन की बात पूरी हो जाएगी"

पर उसने मन का शक दूर करने को सीधे राजीव से ही बात करने की सोची. इस बार वो रास्ते में राजीव के इंतज़ार में खड़ी थी. वो उसे देख  गर्व से मुस्कुराया और उसके कंधे थोड़े  और  भी चौड़े हो गए. वो नज़रें झुकाए बोली.. "आप बिलकुल फ्री हैं..कहीं और शादी करने के लिए....मेरी तरफ से एकदम स्वतंत्र"
"नहीं जी शादी तो हम आपसे ही करेंगे...और अब तो हम अफसर भी बन गए हैं...अब तो आपके भाई लोग की बराबरी में हैं ना?"..आज उसके स्वर में वो नम्रता और वो मनुहार नहीं था ..बल्कि..थोड़ा  विद्रूपता और उपहास था.

पर वो भी फैसला करके आई थी..दो टूक बात करेगी..." देखिए आपको दूसरी जगह अच्छा दहेज़ मिल जायेगा...मेरी माँ -भाई का  इतना सामर्थ्य नहीं है "
"ये सब बात लड़की लोग के मुहँ से शोभा नहीं देता...और ये सब तो परिवार के बड़े-बुजुर्ग तय करेंगे...हम आप क्या बोलें उसमे...फिर अजीब ढंग से मुस्कुरा कर बोला..." और आप सबसे छोटी हैं..इतना बड़ा मकान है...बाबूजी भी बढ़िया पैसा छोड़ कर गए ही होंगे...दो दो अफसर भाई है..आप क्यूँ चिंता करती हैं...जाइये जिस रूप पर इतना घमंड है ना...उसका साज-श्रृंगार कीजिए.....अब उसपर मेरा हक़ है "

वो अंदर तक सिहर गयी...इस आदमी से उसकी शादी होने जा रही है...उसके स्वर में लेश-मात्र का प्यार नहीं था...ऐसा भाव था..जैसे उसने कोई जीत हासिल कर ली हो. और रूप पर घमंड??....जबसे बाबूजी गए हैं...उसने ठीक से आईना  तक नहीं देखा...घमंड क्या करेगी?

***

वो नीची निगाह किए, थके कदमो से लौट आई...कैसे गुजरेगा उसका आगामी जीवन?...माँ,भैया सब खुश हैं...उन्हें बिना भाग-दौड़ के एक अफसर दामाद मिल गया...वो कैसे मना करे...मना भी करे तो किस बात पर...कोई बड़ी वजह तो हो...सिर्फ इतनी सी बातचीत पर कैसे कोई निर्णय ले...और क्या पता शायद उसे इस बात का गुस्सा हो कि उसने बधाई नहीं दी...शर्मा कर हंस कर बात नहीं की..सीधा दो टूक बात की. छुई-मुई लडकियाँ ही लड़कों को अच्छी लगती हैं...लजा कर शर्मा कर आदाओं से बातें करने वाली लडकियाँ ही भाती हैं, उन्हें...शायद ये साफगोई उन्हें धृष्टता लगी हो...और फिर अंतर्मन ने जैसे आवाज़ दी.."क्या खुद पर 
भरोसा  नहीं...अगर पत्थरदिल भी होगा...तो उसे वो अपने प्यार और समर्पण से मोम बना लेगी. और खुद तो प्रपोज़ किया है....मन में प्यार तो होगा ही.....वो नाहक चिंता कर रही है. और सर झटक घर के अंदर आ गयी...गुनगुनाने की कोशिश की....खुश होने की कोशिश की...लेकिन दिल में जैसे किसी गहरी उदासी ने घर कर लिया था. मन को समझाया शायद माँ से दूर एक अजनबी घर में जाने के डर से मन उदास है.

पर डर बेबुनियाद नहीं  था. भैया छुट्टी लेकर शादी की बातचीत करने राजीव के पिताजी के पास गए  थे. लौट कर आए तो बहुत परेशान. उनकी तो अच्छी खासी मांगें थी. माँ से बता रहे थे..."पहला सवाल ही उन्होंने किया...कितने भर सोना देंगे??".महानगरीय जीवन के आदि भैया जब यह समझ नहीं पाए तो जोर का ठहाका लगाया, ससुर जी ने और विद्रूपता से बोले, "बहन की शादी करने चले हैं या मजाक करने...इतना भी नहीं जानते...या जानना नहीं चाहते....मतलब कितने ग्राम सोना देंगे....?

 ऐसे ही लम्बी लिस्ट,पकड़ा दी है उन्होंने,...कार...फर्नीचर ...फ्रिज ..टी.वी. से लेकर गृहस्थी का हर सामान है...और फिर उनके खानदान भर के कपड़े....शादी भी वे अपनी पोस्टिंग वाले शहर से ही करेंगे...यहाँ से नहीं...बारात का आना -जाना ठहराना...स्वागत -सत्कार सब..
और ऊपर से कैश " भैया  के स्वर में  चिंता थी...माँ ने भी आशंका से पूछा..."क्या कहा तुमने...."

"क्या कहता...कार में तो असमर्थता जता दी...बाइक के लिए हाँ की है......बाकी सब चीज़ें तो देनी ही पड़ेंगी...बार-बार सुना रहे थे..फलां जगह से इतने लाख का ऑफर है...वहाँ से अच्छी कार और कई  लाख रुपया का ऑफर है...वो तो हमने  आपको जुबान दी है...अब समाज में  नाक की बात थी..हमें क्या पता था...ये नालायक लड़का सचमुच पी.सी.एस. निकाल ही लेगा...लगा क्लर्की के लिए ये घर ठीक है...गुस्सा  तो इतना आ रहा था...कि  कह दूँ...वो सब पैसे चार दिन में चले जाएंगे...पर मेरे सोने जैसी बहन आपके आँगन में जायेगी तो आपका खानदान सँवर जायेगा....पर लड़की का भाई था...खून का घूँट पी कर रह गया...बोला नहीं कुछ "

"पर बेटा...कहाँ से होगा इंतजाम ?"

"हो जायेगा माँ...छोटे से भी  कहूँगा...हम दोनों भाई हैं...कर लेंगे  इंतजाम "

वह अंदर कमरे में सब चुपचाप सुन रही थी...अब उस से नहीं रहा गया...सारा भय-संकोच त्याग कर भाई के सामने आ बोली,"भैया....जरूरी है क्या यहाँ शादी करना....मैने तो पहले भी कहा था...मैं शादी नहीं करुँगी...नौकरी करुँगी "

"गुड़िया..क्यूँ चिंता करती है...सारा इंतजाम हो जायेगा...पिताजी ने इतना कुछ किया है हम सबके लिए...बस एक तेरी जिम्मेवारी छोड़ गए हैं...वो भी हम दोनों भाई पूरी नहीं कर सकते??...चिंता मत कर...शुरू शुरू में हर लड़केवाले ऐसे ही बातें करते हैं...फिर मान जाते हैं....जा एक कप चाय बना ला..." भैया ने स्नेह से बोला.

बाबूजी के जाने के बाद पहली बार किसी ने गुड़िया कह कर पुकारा था...आँखें भर आयीं उसकी....अच्छी भली ज़िन्दगी गुजर रही थी,भैया लोगों की...कहाँ से उस पर 'राजीव' की नज़र पड़ गयी और उसके भाई मुसीबत में पड़ गए.

इसके बाद देखती...शादी की जो भी बात करनी हो...भैया और माँ की बैठक छत पर बने कमरे में होती ताकि उसके कान में कुछ ना पड़ सके...पर दोनों का चिंताग्रस्त चेहरा और माथे की गहरी लकीरें उसे आभास दे देती कि सबकुछ सही नहीं है...और अपनी असमर्थता पर खीझ कर रह जाती वह.

धीरे-धीरे शादी की तैयारियाँ शुरू होने लगीं. राजीव ट्रेनिंग पर चले गए थे....थोड़ी राहत थी...कि अब  राजीव से मुलाकात नहीं होगी और फिर कुछ उल्टा-सीधा नहीं सुनना पड़ेगा.

शादी  की तारीख नज़दीक आने लगी....घर में  मेहमान भरने लगे...चाची,मौसी ,बुआ....सारे रिश्तेदार उत्साह से भरे  थे...इतने अच्छे घर में इतनी आसानी से जया का रिश्ता तय हो गया...बैठे -बिठाए इतना अच्छा लड़का मिल गया. माँ और दोनों भैया ने लेन-देन दहेज़ की बातें अपने तक ही रखीं थीं....बहनों को भी ज्यादा कुछ नहीं बताया  था...उसने दीदी से राजीव से मिलने की बात बतायी....और बताया कि किस रूखे  ढंग से उसने बात की...
दीदी ने उसे दिलासा दिया ..."उसे लड़कियों से कैसे बाते करते हैं नहीं पता होगा...कई लडको को नहीं होता...वे ऐसे ही ऐंठ कर बातें करते हैं. पर उसने खुद तुम्हे पसंद किया है....घबरा मत...सब ठीक होगा."

वो भी यही आस लगाए बैठी थी...कि शादी के  तीन दिन पहले...उसके नाम राजीव का ख़त आया...पहली बार कुछ कोमल अहसास ने सर उठाये....अच्छा था कि भैया के बेटे ने उसे ही पत्र थमाया.  धड़कते दिल से कमरे के कोने में जाकर ख़त खोला...सिर्फ एक पंक्ति थी...कोई संबोधन नहीं..."अगर बारात  लेकर नहीं आया तो क्या करोगी??.....राजीव " वो तो पत्ते सी कांपने लगी. संयोग वश दीदी आ गयी कमरे में और उसे यूँ कांपते देख.."क्या हुआ...जया??" कहते थाम लिया...वरना वो बेहोश ही हो गयी होती. दीदी  ने वो पत्र देख  लिया...वे भी घबरा गयीं...उसे बिठाया पानी पिला कर लिटा दिया...और दौड़ गयी भैया को बताने. उसी कमरे में दोनों भैया, माँ  और दीदी  की बैठक हुई. तय हुआ बड़े भैया और जीजाजी जाकर बात करें...आखिर माजरा क्या है?"

उसे तो तेज बुखार चढ़ गया....भैया और जीजाजी जब बात करके लौटे तो भैया बड़े निराश से थे...और जीजाजी गुस्से में. अब उस से कुछ भी छुपाने का कोई फायदा नहीं था...दो दिन बारात चढ़ने में रह गए थे...और यहाँ लड़के वालों के ये तेवर थे. भैया ने बताया, राजीव ने कहा..."वो तो उन्होंने ,अपनी होने वाली पत्नी को लिखा था...इनलोगों ने क्यूँ पढ़ी?"

जीजाजी नाराज़ हो गए..." वहाँ लड़की बेहोश हो गयी है...उसे तेज बुखार हो गया...और आप कह रहे हैं..मजाक था...ऐसा मजाक करता  है कोई"

इसपर सुना उसने कहा.."मजाक तो आपने देखा ही  नहीं..कैसा कैसा कर सकते हैं?"

भैया उन्हें शांत करके ले आए...पर आज भैया फूट फूट कर रो रहे थे...गलती हो गयी...ऐसे घर में बेटी नहीं देनी थी...उस दिन राजीव के पिताजी ने भी कहा था..."आपलोग कह रहे हैं...ये नहीं दे सकते...वे नहीं दे सकते...अखबार में पढ़ते हैं कि नहीं कि बहू जला दी गयी...मार दी गयी....डर नहीं लगता आपलोगों को.."
जीजाजी को फिर गुस्सा आ गया.."और आप सुनकर चुप रह गए?'

"नहीं मैने कहा...ऐसा क्यूँ   कह रहे हैं....तो कहने लगे....हम तो एक बात कह रहे हैं....हमलोग इतने नीच नहीं हैं..."...अभी आठ दिन पहले की बात है...क्या करता...सब तैयारी हो गयी है,शादी की. अब क्या कर सकते हैं..."

माँ अलग रोने लगीं.."अब तो शादी तोड़ दें ..तो इसकी शादी फिर कभी नहीं होगी....ज़िन्दगी भर बिनब्याही बैठी रहेगी...लड़की ससुराल जाएगी पर जी वहीँ टंगा रहेगा..पता नहीं  कैसी है...?"

उसे सामने की दीवार घुमती सी लगी....दोनों हाथों से सर थाम लिया....कुछ उपवास...कुछ घर छोड़ने का दुःख..और अब ये नयी टेंशन...जोरों का चक्कर आ गया ,सर में..इन लोगों की बातें भी  उस तक टुकड़ों टुकड़ों में ही पहुँच रही थीं....पलकें मुंदने लगी थीं...धीरे धीरे मुंदती पलकों वाले शरीर को बेहोशी ने अपने आगोश में ले लिया...
(क्रमशः )

फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

यह संयोग है कि मैंने कल फ़िल्म " The Wife " देखी और उसके बाद ही स्त्री दर्पण पर कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग सुनी ,जिसमें सुधा अरोड़ा, मध...