तंगम,अनीता,मैं और राजी |
'मैराथन' शब्द से परिचय ओलम्पिक का टेलीकास्ट देखते हुए हुआ था. देखती, छोटे-छोटे कदमो से लोग लम्बी दूरी तय करते हैं...बस इतना ही पता था 'मैराथन' के विषय में. फिर परिचय हुआ दुबई में रहनेवाले 'हिमांशु जोशी' से जो जल्द ही एक बहुत अच्छा दोस्त बन गया ...वैसे उसके सन्दर्भ में ये 'अच्छा' शब्द पहली बार प्रयोग कर रही हूँ....वरना उसने मुझे इतना चिढाया है...जितना मेरे दोनों छोटे भाइयों ने नहीं चिढाया होगा...और मुझसे डांट भी इतनी खाई है..जितनी अपनी दो बड़ी बहनों से नहीं खाई होगी.....मेरी हरेक पेंटिंग की बखिया उधेड़ देता..जैसे घोड़ों के हवा में उड़ते बालों को जनाब कहते कि लग रहा है घोड़ों को करेंट लग गया है...और उनके बाल खड़े हो गए हैं...(ये कथा फिर कभी..पूरी एक पोस्ट ही बनती है:)) हिमांशु को दौड़ने का शौक है और वो हमेशा मैराथन में हिस्सा लेता है. पूरे 42 किलो मीटर की रेस तय करता है . अक्सर मैराथन के मजेदार किस्से सुनाया करता.
मेरी सहेली शम्पा के पति 'अभिजीत' को भी दौड़ने का शौक है...पर शम्पा उनकी इस आदत से परेशान ही रहती है. एक बार अभिजीत, शम्पा को रिसीव करने गए और पता चला बस के आने में अभी देर है...उन्होंने कार में से अपने रनिंग शूज़ निकाले और दौड़ने चले गए. इधर शम्पा मय बच्चों और सामान सहित हाइवे पर अकेली खड़ी पति का इंतज़ार करती रही. हिमांशु को जब के 'अभिजीत' के विषय में बताया तो उसने कहा 'मैं जब मुंबई आऊं तो मेरी उनसे दोस्ती करवा दीजियेगा...हमलोग साथ दौड़ेंगे " मैने कहा .."ना बाबा मेरी सहेली मुझे काट डालेगी ( और इसमें मुझे जरा भी शंका नहीं थी )...पहले ही वो उनके इस शौक से परेशान है."
पर मैने देखा है...अनहोनी फिल्मो और कहानियों में कम होती है...वास्तविक जिंदगी में ज्यादा. एक साल के अंदर ही शम्पा के पति अभिजीत ने ONGC की नौकरी छोड़ कर एक मल्टीनेशनल कम्पनी ज्वाइन कर ली और उनकी पोस्टिंग दुबई में हो गयी. दौड़ने के शौक ने उन्हें हिमांशु से मिला दिया और अब दोनों एक ही 'रनिंग क्लब' के मेंबर हैं....बहुत अच्छे दोस्त हैं और दुबई-दोहा-शारजाह-अबू धाबी सब जगह के मैराथन में एक साथ हिस्सा लेते हैं. जनवरी में मुंबई भी आए थे मैराथन में भाग लेने.
जब मुंबई में मैराथन का आयोजन शुरू हुआ तो मेरे पूरे परिवार ने भाग लेने की सोची...पर हर साल कोई ना कोई अड़चन आ जाती...कभी बच्चों के एग्जाम...कभी पतिदेव का कोई जरूरी काम...कभी रिश्तेदारों का आगमन...और टलता ही रहा. मेरी सहेली राजी ने भी सोच रखा था...पर टल ही जाता और हर बार 'मैराथन' बीत जाने पर हम यही कहते.."इस साल भी भाग नहीं ले पाए..." इसीलिए इस बार जैसे ही राजी ने अखबार में पढ़ा कि 'DNA Women's Marathon ' का आयोजन हो रहा है..उसने तुरंत मुझे और तंगम को SMS किया...हमलोग सहर्ष तैयार हो गए.
कुछ करणवश हमारी और सहेलियों ने तो भाग नहीं लिया पर एक सहेली 'अनीता' ने बड़ी हिम्मत दिखाई. मुझे, तंगम और राजी को तो मॉर्निंग वॉक की आदत है. पर अनीता ने करीब साल भर से मॉर्निंग वॉक नहीं किया.... और मैराथन के लिए एक महीने से भी कम का समय था. पर उसने निश्चय किया उसे भाग लेना ही है और उसपर दृढ भी रही. पहले दिन से ही पूरे एक घंटे का वॉक शुरू किया. उसे बीच में घुटनों में दर्द की वजह से डॉक्टर के पास भी जाना पड़ा...पर डॉक्टर ने भी दवा दी और आश्वस्त किया...कि वो प्रैक्टिस जारी रख सकती है . वो घुटनों की मालिश करती...नी-पैड पहनती ..पर प्रैक्टिस में कोई कोताही नहीं की.
धीरे धीरे लोगो को पता चलने लगा...और हम सहेलियों को अजीबोगरीब प्रतिक्रियाएँ मिलतीं...कोई कहता.."पागल हो गयी हो..इस उम्र में दौड़ने की सोच रही हो??"..कोई कहता.."दूसरा कोई काम नहीं है क्या??"...तो कोई कहता.."अरे !! हम तो ये सुनकर हँसते हँसते लोटपोट हो गए." पर हमलोग पर कोई असर नहीं होता कहने वाले को ही कह देते.."आपलोगों को भी भाग लेना चाहिए "
अब तक तो हम तेज-तेज चलते थे पर अब दौड़ने की प्रैक्टिस करनी थी. पहले कभी हम सोचते भी कि थोड़ा दौड़ना भी चाहिए क्यूंकि शरीर को किसी भी व्यायाम की आदत पड़ जाती है...और कोई असर नहीं होता...इसलिए बीच-बीच में व्यायाम में फेर बदल कर शरीर को शॉक देना जरूरी है. पर फिर भी हमें झिझक सी होती और हम दौड़ नहीं पाते. पर अब तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी...बिंदास सड़क के किनारे दौड़ने का अभ्यास किया जाता . हम सोचते भी देखने वाले शायद सोच रहे हों..."ये अचानक क्या हो गया है..इन सबको.." पर कोई पूछता भी नहीं कि बताएँ.."मैराथन में भाग लेने जा रहे हैं...:)..तंगम ने मजाक में कहा भी.."हमें अपनी टी शर्ट पर लिख लेना चाहिए "Training for Marathon "
अपने मित्र हिमांशु जोशी को जब बताया तो उसका रिएक्शन था..."woww.. 42 kms ??"
"नहीं पागल हो क्या..."
"woww 21 kms ?"
"जी नहीं...इतना हमारे वश का नहीं.."
"तो क्या आप बिल्डिंग का चक्कर लगाने जा रही हैं..." चिढाने का ऐसा नायाब मौका भला वे कैसे छोड़ते .
यह पहला मौका था और हमने 5 किलो मीटर के "Fun Run " में भाग लेने की सोची . यहाँ कोई कम्पीटीशन नहीं था...बस भाग लेना ही महत्वपूर्ण था. कई लोगो को लगता है...5 किलोमीटर तो कुछ भी नहीं...पर तेज चलना और दौड़ना दोनों बिलकुल अलग चीज़ें हैं. अनुभव से कह रही हूँ...भले ही दो घंटे आप ब्रिस्क वॉक कर लें...पर पाँच मिनट के लिए दौड़ने में भी बुरा हाल हो जाता है.
खैर चिढाने का कोटा पूरा हो जाने के बाद हिमांशु ने काफी उपयोगी टिप्स दिए..प्रैक्टिस करने का तरीका भी बताया...जो हमारे बहुत काम आया.
राजी की एक सहेली 'भारती' जो "Health n Nutrition " मैगज़ीन की एडिटर है...वो भी हमेशा मैराथन में भाग लेती है. उसने भी काफी उपयोगी टिप्स दिए..जैसे च्युइंग गम चबाते रहना चाहिए ...जिस से गला नहीं सूखता...हिमांशु और भारती दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया
एक बार फैसला ले लेने के बाद हमारी दौड़-भाग शुरू हो गयी...सुबह छः बजे प्रैक्टिस..फिर घर का काम ख़त्म कर...कभी तो रजिस्ट्रेशन के लिए जाना... कभी आयोजकों द्वारा दी हुई चीज़ें कलेक्ट करना. रजिस्ट्रेशन फी ३५० रुपये थी..और सारा पैसा चैरिटी में जाने वाला था.Cervical Cancer '..' Girl child education.'...'Violence against women " तीन मुद्दों में से एक का चयन करना था. और पैसे उसी चैरिटी को जाने वाले थे. इस मैराथन के स्पौन्सर्स ने भाग लेने वालों को एक सुन्दर सा थैला .उसमे एक बढ़िया टी-शर्ट...क्रीम..परफ्यूम..शुगर फ्री..एनर्जी ड्रिंक...हैण्ड सैनीटाईज़र "...तमाम तरह की चीज़ें दीं. हम सब, पारिवारिक और सामाजिक दायित्व भी बदस्तूर निभाते रहे...होली भी इसी बीच ही आनी थी. ८ मार्च को होली और ११ मार्च को मैराथन. प्रैक्टिस मिस करने का सवाल ही नहीं. और होली के दिन भी सुबह छः बजे मैं प्रैक्टिस करते हुए सोच रही थी..." कितनी तेजी से बदलाव आ रहा है.. "यहीं होली के दिन . मेरी नानी-दादी...मुहँ अँधेरे उठ कर बिना ब्रश किए ..लकड़ी के चूल्हे पर बड़ा सा कड़ाह चढ़ा कर पुए तलना शुरू कर देती थीं"....."माँ-मौसी-चाची...चाय पीते हुए गैस के चूल्हे पर पुए तलती हैं"....और यहाँ" मैं रात के साढ़े बारह बजे तक पुए तलने के बाद सुबह छः बजे पार्क में हूँ...घर जाकर फिर से पुए तलने हैं...होली खेलनी है...पारिवारिक मित्रों के साथ होली-लंच करना है" ....हम सब सहेलियाँ कभी कभी रात के दो बजे...पार्टी अटेंड कर लौटतीं पर एक दिन भी प्रैक्टिस नहीं छोड़ी...और लगने लगा..पढाई -लिखाई से ज्यादा कष्टदायक खेल-कूद और व्यायाम की गतिविधियाँ हैं.
११ मार्च २०१२ मैराथन का दिन भी आ पहुंचा. हमारी दौड़ "बान्द्रा - कुर्ला कम्प्लेक्स" से साढ़े आठ बजे शुरू होने वाली थी. हमारे परिवार जन और सहेलियाँ.. "कनिष्क, कृष्णदेवन , अनघा, शर्मिला,वैशाली ,सुरेश रोड्रिगो ,इन्गेल्बर्ट और आएशा" ...अपनी सन्डे की सुकून भरी सुबह की नींद का परित्याग कर हमें चीयर करने हेतु ...हमारे साथ साढ़े छः बजे ही घर से निकल पड़े. वहाँ पहुँच कर तो पाया एक उत्सव सा माहौल है. हमारी उम्र की महिलाओं की भी कमी नहीं थी. ब्रह्मकुमारियों का भी एक बड़ा सा दल था. जो सलवार कुरता और साड़ियाँ पहने थीं. स्टेज पर खड़े फिटनेस इंस्ट्रक्टर 'मिकी मेहता ' वार्म अप करवा रहे थे. हम सहेलियों ने भी थोड़ी स्ट्रेचिंग और प्राणायम किया. 'दीपिका पादुकोणे' झंडा दिखा कर रेस शुरू करने वाली थीं....पर ये हिरोइन्स समय पर पहुंची हैं कभी??...हालांकि ५ मिनट ही लेट थीं...पर भाग लेने वालों ने बहुत शोर मचाया..'हमें नहीं चाहिए दीपिका की मौजूदगी..रेस शुरू की जाए...." वैसे भी मुंबई में इन सितारों को ज्यादा भाव नहीं मिलता..वो स्टेज पर खड़ी हाथ हिलाती रहीं..और सारे प्रतिभागी नाक की सीध में चलते रहे..हाँ, हमारे साथ आए लोगो ने पास से खूब सारी तस्वीरें खींचीं. 'तारा शर्मा' और 'रागेश्वरी' ने हमारे साथ दौड़ में हिस्सा भी लिया.
रास्ते पर जगह-जगह वौलेंटीयर्स .. पानी की बोतलें लेकर खड़े थे... एम्बुलेंस भी खड़ी थी और मोबाइल टॉयलेट की भी व्यवस्था थी. प्रतिभागियों के रिश्तेदार भी रास्ते में खड़े हमारा हौसला बढ़ा रहे थे...'स्माइल'...'यू कैन डू इट'...'ब्रावो'..."जस्ट हाफ द रन लेफ्ट"..."जस्ट लास्ट लैप..." .कई बहुत रोचक दृश्य भी मिल रहे थे...चटक गुलाबी साड़ी पहने एक लड़की भी साथ में दौड़ रही थी...एक पोलियो ग्रस्त लड़की भी थी...दो सत्तर के करीब महिलाएँ भी थीं...तस्वीरें लेने की इच्छा पर किसी तरह काबू किया..वरना सहेलियों से बहुत पीछे रह जाती...मैं राजी और तंगम...साथ -साथ ही थे..कभी कोई जरा सा आगे हो जाता कभी कोई जरा सा पीछे...तंगम का आइडिया था...हम तीनो हाथ पकड़ कर फिनिशिंग लाइन पार करेंगे और और हमने ३५ मिनट से भी कम समय में ५ किलो मीटर पूरा कर लिया.( क्यूंकि शुरू में तो भीड़ में हमें तेज चलने की जगह ही नहीं मिल पा रही थी. ) तंगम के बच्चे 'इन्गेलबर्ट' और 'आएशा'...ने कई जगह हमारे साथ दौड़ते हुए हमारी तस्वीरें लीं. 'इन्गेल ' ने तो फिनिशिंग लाइन के पास...हमारे सामने दौड़ते हुए वीडियो भी बनाया...वीडियो में देख कर लग रहा है...'हम सचमुच इतना तेज ..दौड़े' :) .फिनिशिंग लाइन के पास हमारे साथी..हमारे स्वागत के लिए खड़े थे. वे सब भी आश्चर्यचकित थे...उन सबने भी सोच रखा था..एक घंटा तो हमें लग ही जाएगा. सबने कैमरा खटकाना शुरू कर दिया.
अनीता हमसे पीछे थी....हम उसका स्वागत करने के लिए किनारे खड़े हो गए...वो थकी मांदी चल कर आ रही थी...उसे देखते ही हम इतने जोर से चिल्लाये कि उसने भी जोश में दौड़ना शुरू कर दिया और मैं, तंगम,राजी उसका हाथ पकड़ कर फिनिशिंग लाइन तक उसके साथ दौड़े. ये देख कर कुछ अखबार वाले भी कैमरा लेकर इस क्षण को कैद करने दौड़ पड़े. फिनिशिंग लाइन के पास बड़े अक्षरों में होर्डिंग लगी थी "Congrats, You have created History !! " दूसरे इतिहास की बात जाने दें..पर अपने-अपने परिवार का इतिहास तो हमने जरूर बनाया. सबसे अच्छी बात लग रही थी...कई सारी महिलाओं के पति छोटे छोटे बच्चों को गोद में उठाये या ऊँगली पकडे...अपनी पत्नी की तस्वीरें उतार रहे थे और कहते नहीं थक रहे थे "I am proud of U " {ऐसा मौका औरतों की जिंदगी में कम ही आता है :)} सबके परिवारजन बहुत खुश थे...सबके चेहरे गर्व से चमक रहे थे.
इसके बाद पार्टियों का दौर चल रहा है...रेस के बाद हमें एक मशहूर कैफे में ट्रीट दी गयी. परिवार वाले लंच पर ले गए. योगा बैच ने अलग पार्टी दी. ..तो ब्लॉग दोस्त कब दे रहे हैं पार्टी :):)
हमारे चीयर लीडर्स |
ब्रह्मकुमारी का दल |
चिथड़े पहने बेचारी अमीर लड़की |
परिवारजन और सहेलियाँ |
आएशा ,तंगम,इन्गेल,और सुरेश रोड्रिगो..तंगम का उत्साहित परिवार |
अनीता को चीयर करती शर्मिला,तंगम और राजी |
अनीता के रेस पूरी करने की ख़ुशी वैशाली के चेहरे पर |
माँ के प्रयास पर गर्वित कनिष्क |
Interesting post.....reminded me of my Olympic run in Raipur..that was also of 5 km.Here Raveena Tandon had come who got upset as she was not getting any importance....fact is in such events one is involved in oneself ....heroines ki kisko fikr rahti hai.
जवाब देंहटाएंI remember it too...and i requested u to write abt ur exp. bt u dint gv me any bhaav :(:(
हटाएंसपना सच हुआ तो बधाई भी लीजिए। सचमुच आपका उत्साह आपके लेखन में छलक छलक जा रहा है। वहां तो आप छा-छा जा रही होंगी। बेचारी दीपिका, उसके लिए आप चीथेड़ पहने अमीर लड़की का कैप्शन ही मिला।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजेश जी,
हटाएंपर वहाँ सब ही छा छा गए थे...बहुत अच्छा लग रहा था...औरतों का यूँ स्कूल-कॉलेज के दिन जैसे निफिक्र होकर इस आयोजन में भाग लेना.
चीथेड़ पहने अमीर लड़की....
जवाब देंहटाएंकैप्शन शानदार लगा...
खैर, मैराथन में भाग लेने का अपना ही रोमांच है... हालाँकि अपुन ने अभी तक इसका आनंद नहीं लिया है... लेकिन मेरे कई मित्र हैं जो पहले भागते हैं फिर हमने अपने किस्से सुनते हैं....
शुक्रिया लोकेन्द्र जी,
हटाएंअगली बार खुद को इस रोमांच से वंचित ना रखें...आपको तो साथ भी हैं ऐसे दोस्तों का...फिर आलस कैसा.
बहुत बधाई रश्मि.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
शुक्रिया GB :)
हटाएंआपकी मेराथन बड़ी रोचक रही, करंट लगे घोड़े के बालों की तरह. बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुब्रहमण्यम जी
हटाएंबहुत बढ़िया रहा यह अनुभव । वर्ना शहर में तो आराम की जिंदगी में कोई इतनी परेशानी नहीं उठाता ।
जवाब देंहटाएंफिटनेस के लिए ज़रूरी है फिजिकल एक्टिविटी।
शुक्रिया डॉ दराल
हटाएंचलिए आपकी तमन्ना पूरी हुयी ... पूरा किस्सा पढ़ के माजा आया .... ये दुबई वाले हिमांशु जी के बारे में पढके अच्छा लगा ... दुबई वालों को प्रेरणा लेनी पढेगी अब ... हा हा ...
जवाब देंहटाएंसभी फोटो भी अछे से कैद किये हैं आपने ...
शुक्रिया नासवा जी,
हटाएंदुबई वालों के साथ...आप भी शुरू कर ही दीजिये दौड़ना.
आपको जितनी बधाई दी जाये, उतनी कम है। यही उत्साह छलके और औरों को भी प्राप्त हो..
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
वोई तो..!!
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत ही बढ़िया लगा पढ़ कर...
तू योगा करती है और अब मैराथन भी ? कमाल है..!!
बेटे को देख कर बहुत ख़ुशी हुई...ढेर सारा प्यार देना उनको...
और 'चीथड़े' देख कर मन प्रसन्न हुआ बालिके...लगा कि अमीर और गरीब में कितना कम फासला रह गया है अब....
कुछ दिन पहले एक कविता लिखी थी मैंने जिसमें ऐसी ही फटी जींस की तसवीरें और बात कही थी...
आम तौर पर मैं अपनी किसी रचना का ज़िक्र नहीं करना चाहती लेकिन यहाँ कर रही हूँ...बस कुछ पंक्तियाँ...
जहाँ तक 'सुरुचि' का प्रश्न है..
वो अभिजात वर्ग की,
'असभ्यता' का...
दूसरा नाम है..!!
और उसे अपनाना,
हमारी 'सभ्यता'...!!
और एक बात...क्या तेरी खूबसूरती का राज़ मैराथन और योगा है ?
मुझे जवाब माँगता हैं...हा हा हा...
सच में बहुत सुन्दर लग रही है तू और सारी तसवीरें..
हाँ नहीं तो..!!
अदा,
हटाएंएम्बैरेस करना तो कोई तुमसे सीखे ...इतनी बेकार सी तस्वीरें हैं {अब जैसी हूँ वैसी ही ना दिखूंगी..बच्चों का कथन :)}..पर मैराथन का था..इसलिए लगा दिया और तुम हो कि अलाय बलाय बोली जा रही हो :)
और कविता का लिंक काहे नहीं दिया..हमें तो पूरी कविता पढनी है.
सपना सच होने की खुशी... मेराथन दौड सा वर्णन और खूबसूरत नजारों सी तस्वीरें.. सबकुछ चलचित्र सा.. हाँ अंतिम वाली तस्वीर बहुत अच्छी लगी जिसमें आप अपनी "ट्रॉफी" के साथ दिखाई दे रही हैं!! :)
जवाब देंहटाएंसलिल जी ,
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
शानदार रेस.
जवाब देंहटाएंराहुल जी,
हटाएंशुक्रिया
मैं भी यही आनंद महसूस करना चाहती हूँ सच कहूं जलन सी भी हो रही है पर पढ़कर अच्छा लगा आप एक नेक काम के लिए आगे आई, खुद के होने पर फक्र हुआ होगा ,चेहरे की चमक सब बयान कर रही है
जवाब देंहटाएंसोनल,
हटाएंमुझे पूरा विश्वास है जल्द ही दिल्ली में भी ऐसे आयोजन किए जायेंगे...फिर मौका हाथ से जाने मत देना.
रश्मि दी , यह तो हम भी कहेंगे ...
जवाब देंहटाएं"I am proud of U "
जय हो आपकी और आपकी सभी सहेलियों की !
पार्टी जब भी मिलना हुआ तब ... मेरी ओर से ... पक्का !
शिवम.
हटाएंसोच लो...हम सब याद रखते हैं...भूलेंगे नहीं कि तुमने पार्टी देने का वादा किया था :)
फिक्र नौट हम भी नहीं भूलूँगा ... वादा बोले तो वादा ... मुझे कौन सा ब्लोगिंग का चुनाव लड़ना है जो झूठे वादे करता फिरूँ ... फिलहाल आप यह देखिये ...
हटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - मेरा सामान मुझे लौटा दो - ब्लॉग बुलेटिन
"I am proud of U " कहने का मौका आपके जिंदगी में भी कम ही आता है या अक्सर आता है :D
जवाब देंहटाएंएनीवे, सुपर-मस्त टाईप पोस्ट है...मैंने तो जब देखा ये मैराथन वाला न्यूज़(देर से ही सही), मुझे तो यकीन नहीं हुआ...मुझे लगा की आप फेंक रही होंगी....फिर आपने आख़िरकार तस्वीरें लगा ही डाली :) :)
रिअली कहना पड़ेगा..
वी आर प्राउड ऑफ यु दीदी!! :)
बाई द वे, कहानी का क्या?
अभिषेक
हटाएंभूल गयी वरना पोस्ट में लिख देती...कुछ लोग तो समझे..."फेंक रहे हैं हम :) "
कहानी के बीच में मैं कभी दूसरी पोस्ट नहीं डालती पर ये एक milestone जैसा था लाइफ में... इसीलिए लिख डाला...बस इंतज़ार कर लो थोड़ा..जल्दी ही कहानी की अगली किस्त डालती हूँ.
इतने दिनों बाद ब्लॉग पढऩे का मौका मिला दी। दिनों क्यों महीनों बाद। मैराथन तो बढिय़ा रही आपकी।
जवाब देंहटाएंपढ़कर मजा बहुत आया।
अब सारी पोस्ट पढ़ता हूं, पिछली एक-एक करके।
रवि,
हटाएंहम भी तुम्हे मिस कर रहे थे
बाप रे! हम तो 2 किमी भी नहीं दौड़ पायेंगे आपको बहुत बहुत बधाई। दौड़ने के बाद इत्ती अच्छी पोस्ट भी लिख दिया! मतबल स्वास्थ ठीक हैं कहीं कोई दर्द नहीं!!
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी,
हटाएंप्रैक्टिस के बाद हमारे पैर बहुत दुखते थे...रोजाना दो बार घुटनों की मालिश किया करती थी...जिंदगी में कभी अपनी इतनी देखभाल नहीं की...
पर मैराथन में पांच किलोमीटर की दौड़ पूरी करने के बाद..उत्साह..ख़ुशी..संतुष्टि या पता नहीं क्या था...जिसने पैरों के दर्द को गायब कर दिया...ना तो जरा भी पैर दुखे..ना ही मालिश करने की याद रही.
अरे वाह! बहुत खूब बधाई!
जवाब देंहटाएंफोटो भी अच्छी हैं।
अगली बार मैराथन के किलोमीटर बढायें जायें। :)
अनूप जी,
हटाएंअगली बार दूरी ऑटोमेटीकली बढ़ जायेगी
जनवरी में जो मैराथन आयोजित होता है..उसमे ड्रीम रन ७ किलोमीटर का होता है.
वाह, ये हुई न बात। बधाई :)
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट है। चिथड़े पहने लड़की वाला कैप्शन जोरदार रहा :)
सतीश जी,
हटाएंआपकी सलाह काम ना आई...आपने FB पे लिखा था ना..ऐसे दौडियेगा जैसे कोई टिकट चेकर पीछे पड़ा हो और आपके पास टिकट ना हो...फर्स्ट आ जाएँगी :)
पर यहाँ तो कोई कम्पीटीशन ही नहीं था :)
क्या बात है रश्मि !! तुम तो कमाल पर कमाल करती रहती हो और हम तब भी प्रेरणा नहीं लेते
जवाब देंहटाएंमज़ेदार लेखन और सुंदर तस्वीरों से सजी इस पोस्ट के लिये धन्यवाद
मैडम
हटाएंकमाल तो तुम करती हो...इतनी सुद्नर गज़लें लिखती हो
और हम है कि कोई प्रेरणा भी नहीं लेते...बस ऐसी पोस्ट लिखकर भरपाई करने की कोशिश करते हैं...पर कर नहीं पाते :(:(
कैप्शंस मजेदार बन पड़े हैं...... रोचक पोस्ट , मैराथन में दौड़ने की बधाई ,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी
हटाएंचिथड़े पहने बेचारी अमीर लड़की। वाह हँसी रूक ही नहीं रही है इस जुम्ले पर तो। पार्टी की कह रही हो, यहाँ तो ईर्ष्या हो रही है। पार्टी तो लेने आना पड़ेगा। बहुत ही बढिया प्रयास रहा, उस आनन्द की कल्पना करके ही अभिभूत हूँ। सच में हमें ही अभिमान है, तुम पर।
जवाब देंहटाएंअजित जी,
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
आपकी स्नेह भरी टिप्पणी से अभिभूत तो मैं हूँ.
तो नाम सार्थक कर ही दिया …………झांसी की रानी ने :)))))))) बधाइयाँ……… ऐसे कारनामे की ही उम्मीद कर सकते हैं तुमसे नाम के अनुरूप ………हा हा हा
जवाब देंहटाएंअच्छा जीsss... तो मुझे तुमलोग झांसी की रानी बुलाती हो..hmm..hmm..hmm..:):)
हटाएं"Congrats, You have created History !! " :) :) :)
जवाब देंहटाएंThanx Vandna :)
हटाएंbahut bahut badhai di...maza aa gya aapki ye post padh kar...meri ek friend ne bhi participate kiya tha...next time mai bhi try karti hun :P
जवाब देंहटाएंtry nahi..bolo ki next time main bhi participate karungi...hamaari kayee friends ne already decide kar liya hai.
हटाएंजहाँ चाह वाह राह अपने अपने आप निकल आती है यह आपने भी सिद्ध कर दिया है।
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंवाह! शानदार रेस और उसका बढ़िया विवरण!
जवाब देंहटाएंख़ुशी चित्रों में, शब्दों में झलक रही है, बनी रहे।
जब आप ख्लेकूद पर लिखतीं हैं (इस बार तो सचित्र!) तो मुझे खासा अच्छा लगता है।
ढेरों शुभकामनाएँ इस रेस और अगली कई रेसों के लिए भी। :)
@अविनाश,
हटाएंआप इतने मन से पढ़ते हैं...इसीलिए लिखने की भी प्रेरणा मिलती है.
शौर्य , विजय , उत्साह की लहर फूट पड़ रही है लेखन के साथ तस्वीरों में भी !
जवाब देंहटाएंओये कमाल कर दित्ता है ! मुबारकां !
उम्र रुकने का नहीं दौड़ने का नाम है , विवरण और तस्वीरें प्रेरक हैं !
शुक्रिया वाणी :)
हटाएंपहेले तो आप को बहुत बहुत बधाई की आपने और आप की सहेलियों ने अपने पहेले Running Event में भाग लिया और उसे खूब enjoy किया. हर किसी के बस की बात नहीं है की अपनी comfort zone से बहार निकल के कुछ नया करे और वो भी दौड़ने जैसी demanding exercise. आप सभी को बधाई.
जवाब देंहटाएंफिर आप का बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मुझे अपने ब्लॉग में जगह दी. कभी उम्मीद नहीं थी. :) आप का बहुत बहुत आभार ).
देखिये यह तो Rocket की फितरत होती है की वो आकाश की तरफ उड़े. बस आग लगाने वाला चाहिए. जो मैंने लगाईं. आप को तो मालूम ही है की मैं कितना माहिर हूँ आग लगाने में :)
मेरे लिए Marathon शब्द बहुत ही आदरणीय है. जब एक आदमी या औरत ४२ किमी दौड़ता है तो वोह अपने शारीर ही नहीं दिल और दिमाग की भी परीक्षा देता है. Marathon एक दानव है, जिसे हर marathon दौड़ने वाला काबू मैं करने की कोशिश करता है. Marathon शुरू ही ३२ किमी दौड़ने के बाद शुरू होती है. क्योंकि वहां से शारीर और दिमाग दोनों थके होते हैं और अभी और १० किमी दौड़ना बाकी होता है. मैं खुद ७ बार दौड़ चूका हूँ पर अभी भी काबू नहीं कर पाया हूँ. लेकिन कोशिश जारी है. अगले साल फिर से कोशिश करेंगे.
जो कभी नहीं दौड़ा उसके लिए ७ किमी बहुत बढ़ी बात है. हाँ 7 km को marathon बोलना थोडा दर्दनाक लगता है.
बस अब आप सभी दौड़ते रहिये और दूसरों को भी दौड़ने के लिए motivate कीजिये. Happy Running :)
मुझे पता था, हिमांशु... तुम 5 किलोमीटर को 'मैराथन' बोलने पर जरूर टोकोगे.. बाबा...पर इस event का नाम तो DNA Womens's Marathon ही था ना..सो हमने मैराथन में भाग लिया :)
हटाएंबाकी उम्मीद नहीं थी ना कि मैं कभी आपका जिक्र करुँगी..अब ऐसे अच्छे काम तो हम करते रहते हैं....लोगो को ही पता नहीं रहता.. :):)
मैराथन तुम्हारे लिए क्या मायने रखता है...तुम्हे जानने वाले अच्छी तरह जानते हैं..आगामी हर रेस के लिए अनेक शुभकामनाएं..तुम्हारी टाइमिंग हमेशा बेहतर होती रहे.
मैं सोच रहा हूं कि पागलपंथी कई किस्म की होती हैं उसमें से एक शौक भी है :)
जवाब देंहटाएंमैं ये भी सोच रहा हूं कि शौक कई किस्म के होते हैं उसमें से एक सनक भी है :)
मैं सोच रहा हूं कि सनक कई किस्म की होती है जैसे ब्लागिंग,फ़िल्में देखना,पेंटिंग,मार्निंग वाल्क पर उनमें से एक मैराथन रनिंग भी होती है ये पता ना था :)
अब पता तो ये भी नहीं शाम को घर लौट कर पुए तल पाये होंगे कि नहीं :)
बहरहाल आप सामाजिक कार्य के लिए यूं ही गतिमान बनी रहें / ऊर्जावान बनी रहे / हौसलेमंद बनी रहें , हमारी अशेष शुभकामनायें ...और हां हिमांशु के ४२ किलोमीटर वाले मैराथन की तो ऐसी की तैसी :)
हे भगवान!..अली जी...हिमांशु के ४२ किलोमीटर की ऐसी-तैसी क्यूँ भई ??....बड़े कम लोग फुल मैराथन (४२ किलोमीटर ) में भाग ले पाते हैं ...बल्कि मैं तो सोच भी नहीं पाती...कि लगतार ढाई- तीन घंटे तक लोग कैसे दौड़ पाते हैं....
हटाएंआपने इसलिए तो कहीं ये सब नहीं लिखा कि मैं हिमांशु की तारीफ़ करूँ :):)
कहांsssss पाssssssssचं किलोमीटर और कहां ४२ मात्र !
हटाएंहिमांशु आपकी तरह पहले मां बने होते :) घर के काम काज के साथ वो सब करते जो आप कर रही हैं और फिर ४२ किलोमीटर भागते तो मैं क्यों कुछ कहता :)
अली जी. नमस्कार!
हटाएंबड़ा अच्छा लगा आप की प्रतिक्रिया पढ़ कर. वो भी इस लिए की मुझे रश्मि जी के ब्लॉग मैं थोड़ी और space मिल गयी.
हाँ यह बात अलग है की मातृत्व मेरे लिए नहीं है :) मेरे साथ कई और महिलाएं दौड़ती हैं जो दो तीन बच्चों की माँ हैं और marathon भी दौड़ती हैं और बहुत अच्छा दौड़ती है. कई पिता भी हैं जो अपने बच्चो को stroller मैं बिठा कर ४२ किमी दौड़ जाते हैं. यह शौक हैं जो जीवन को और रोचक बनाते हैं और आसपास के लोगों को अच्छे तरीके से motivate करते हैं.
उदाहरण बहुत हैं, पहला कदम रखने की देर है :) वैसे एक बार आप भी कोशिश करके देखिये, रश्मि जी ने तो शुरुवात कर दी है. उन्ही से motivation ले लीजिये. ज़िन्दगी बदल जाती है :) हो सकता है आप का भी एसिडिटी या blood pressure की दवाई का खर्चा कम हो जाए. जनाब यह सनक नहीं जीने का तरीका है. जिसके लिए थोड़ी सी महनत करनी पड़ती है. अपने रोज़ के काम के अलावा थोडा समय निकलना पढ़ता है. टीवी सीरियल त्यागने पढ़ते हैं. और वोह हर कोई करना नहीं चाहता :) इसी लिए इस शौक को सनक का नाम देकर हाथ ना झाडें कल ही अच्छे से जूते खरीदें और निकल जाइये सुबह की ताज़ा हवा से रोमांस करने :)
हिमांशु
हटाएंमुझे रश्मि जी के ब्लॉग मैं थोड़ी और space मिल गयी.
space की क्या बात..कहो तो पूरी एक पोस्ट ही लिख दूँ..:)
सपने सच हुए .... स्नेहिल बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रश्मि जी :)
हटाएंbahut sunder rashmi,mein apkey blog mein pahley bhi aa chuki hun,Hemanshu ney bataya tha par apsey baat nahi hui,vastav mein apki post kuch karney key liye hazaron bahaney dhudhney valon key liye prernashot hai.....merey blog mein apka swagat hai....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रीना
हटाएं...आपका ब्लॉग मैने देखा है...कमाल की कवियत्री हैं आप तो...बधाई !! :)
रश्मि जी सच कहूँ पूरी पोस्ट पढ़ते वक़्त मुस्कुराती रही हूँ ....
जवाब देंहटाएंकाश की मैं भी कहीं आपके पास रहती होती तो आपके साथ जरुर भाग लेती .....
आपको ढेरों बधाईयाँ .....
सच में आम गृहणियों के लिए ये आसान नहीं था पर आपने कर दिखाया ....
और मैं भी कह रही हूँ .....
I am proud of U
शुक्रिया हरकीरत जी,
हटाएंजल्द ही आपके शहर में भी इस तरह का event जरूर आयोजित होइगा...तब जरूर भाग लीजियेगा और तस्वीरें पोस्ट कीजियेगा
.हमें इंतज़ार रहेगा
बड़ा अच्छा लगा पढ़कर रश्मिजी.. बहुतों को प्रेरित कर दिया आपने..:) और प्रस्तुति का अंदाज़ बेहद रोचक।
जवाब देंहटाएंवैसे तो बहुत खुशी हुई मगर पहले पूछती तो हम तो तीनों बात कहते:
जवाब देंहटाएं"पागल हो गयी हो..इस उम्र में दौड़ने की सोच रही हो??".."दूसरा कोई काम नहीं है क्या??"....."अरे !! हम तो ये सुनकर हँसते हँसते लोटपोट हो गए." :)
वैसे अभी ही तो दौड़ने की उम्र है जी...
हूँ ...बहुत नाइंसाफी है। तीन-तीन काम एक साथ ....पुये तलना, दौड़ना और कमेंट्री....। इसकी सजा मिलेगी ...ज़रूर मिलेगी ....हम भोरे-भोरे उठ के लिट्टी चोखा बनाऊँगा ...आ आपको पूरा का पूरा खाना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंमैराथन की कमेंट्री ऐसी लगी कि लाइव प्रोग्राम देख रहे हों। पूरी कमेंट्री एक साँस में अपने दीदों से देखनी पड़ी ....बिना चश्मे के।
बधायी हो ...आपने बैठे-ठाले दुश्मनी मोल ले ली ...बुढ़ापे से ...अब बेचारा किस मुँह से आपके पास आयेगा। और हाँ मेरा कालिया भी कनिष्क जैसा ही है। महालक्ष्मी स्टेशन के बाहर का एक फोटो भेजूँगा उसका।
nice pics, interesting post...congratulations :) waiting for the remaining story :)
जवाब देंहटाएंwow !!! its so nice to read ur merathan experiences !! i wish, i cud also join :)) v gud report :)) bdw , m waiting fr d nxt part of ur incmplete story :)))
जवाब देंहटाएं5 km 35 min. se bhi kam me..wah rashmiji..aapse prerna mili mujhe bhi..next time mumbai mairathan me part lungi main bhi...thanks
जवाब देंहटाएंप्रिय हिमांशु जी स्नेह ,
जवाब देंहटाएंमेरी जिंदगी पहले ही कुछ दूसरी तरह की सनकों मेरा मतलब शौकों से बदली हुई है :)
कोई अच्छी किताबें दे तो ४२ घंटे लगातार पढ़ लूं :)
कभी वश चले तो चौबीस घंटे मुतवातिर सो लूं :)
जब स्कूल कालेज में था तो हॉकी खेलने की सनक थी :)
दिन तमाम तैरने और पतंग उड़ाने की भी और कंचे खेलना स्कूल से गोल मार कर भी :)
मछली पकड़ने के लिए घंटों नदी तालाब के किनारे बिना हिले दुले बैठ जाऊं :)
अपने घर में बागवानी खुद करूं माली को हाथ तक ना लगाने दूं :)
यूनिवर्सिटी के दिनों में रिसर्च के सिलसिले में एक दिन में ३० -३५
किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलता तो हांफ जाता था इसलिए कुछ घंटों में ४२
किलोमीटर दौड़ पाने वालों से जलता हूं :)
...पर सुबह की सैर और दौडना मेरी सनक में शामिल नहीं हो पाया हालंकि सुबह
की सैर के नाम पर दोस्तों ने नींदें मेरी बहुतेरी खराब कीं :) जूते
भी खरीदे पर टहलने तक के काम नहीं आये :)
सीरियल और फिल्में देखना मेरे वश की बात नहीं सो उन्हें त्यागा हुआ ही
मानिए ! इधर तो पुरानी ढर्रे वाली ,खस्ता हाल आदत गुज़ार जिंदगी है सो
रश्मि जी से इस मामले में मोटिवेट होने की संभावना नहीं है :)
पुनः सस्नेह अली
अली जी नमस्कार!
हटाएंआपके स्नेह की डबल डोज ने तो मेरे दौड़ते कदम रोक लिए. बहरहाल पूरी आशा है आप अपनी शौक़ीन तबियत :) का पूरा लुफ्त उठा रहे है. आशा है आप के शौक जीवन के उतराव और चढाव मैं आपका साथ देते रहेंगे.
इसी आशा के साथ
हिमांशु
सब से पहली बात...
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, ऐसी ही 'Fit' बनी रहना...कभी बुढ़ापा मत ओढ्ना...
और तुम्हारी हंसी ! वह तो ageless है ही... :)
मज़ा आ गया ! हमें भी अपने साथ तुमने पूरे 5 km दौडाया...
तुम्हारी कलम में जान है, जीवन्तता है...कोई professionnal writer
क्या खाक लिख पाएगा इस तरह...मैराथन दौड़ का एक complete package
ही तुमने हमारे सामने रख दिया...
चहल कदमी (जिसे Vinoba Transport भी कहते है) का मुझे सालों से शौक़ है,
जो आज भी है और कल भी रहेगा...इसलिए तुम्हारे आलेख को सही-सही
आत्मसात कर पाया...फिर जो आत्मीय है उसे आत्मसात करना...केवल आनंद.
टिप्पणी का अंत भी शुरु की उन पंक्तियों से ही करूँ :
रश्मि जी : 'ऐसे ही 'Fit' बनी रहना...कभी बुढ़ापा मत ओढ्ना ...'.
बधाई हो! आपने तो इतिहास रच डाला। यह पोस्ट हिन्दी ब्लॉगिंग की प्रेरणा सिद्ध हो सकती है। :)
जवाब देंहटाएं