बुधवार, 5 जनवरी 2011

दीदार-ए-युसुफ खान

'कॉफी विद करण' कोई बहुत ही उत्कृष्ट प्रोग्राम नहीं है पर मनोरंजक तो है ही....और याद रह जाए तो मैं कभी मिस नहीं करती. करीब एक हफ्ते पहले से ही प्रोमोज देख रही थी,कि इस बार अमिताभ बच्चन आ रहे हैं पर उनके साथ आए गेस्ट को देखने की  मुझे ज्यादा उत्सुकता थी. और कैमरा था कि एक झलक  श्वेता की दिखा कर फिर से अमिताभ बच्चन पर टिक जाता. श्वेता बहुत ही स्लिम लग रहीं  थीं  और पहली बार एक ऑफ शोल्डर मॉडर्न ड्रेस में थी. श्वेता बच्चन नंदा  हमेशा बहुत ही शर्मीली, कैमरे से दूर रहनेवाली रही हैं. उन्हें  काफी करीब से भी देखने का मौका मिला पर तब तो इतनी स्लिम  नहीं थी. एक ढीलीढाली सी सलवार कमीज़ पहने थीं और बालो को पीछे कर एक रबर बैंड से बाँध रखा था .लिपस्टिक की हल्की  सी रेखा भी नहीं. माथे पर लाल टीका लगा हुआ था  (एकता कपूर की तरह) माँ ने घर से निकलते वक्त लगाया होगा. पर प्रोग्राम में तो सीधी किसी फैशन शो के रैम्प पर चलने वाली श्वेता लग रही थीं.


प्रोग्राम में पिता-बेटी की गुफ्तगू में कई अनोखी बातें भी पता चलीं . बच्चन  परिवार का कोई भी व्यक्ति घर में आई किसी भी पत्रिका या अखबार का कोई आलेख पढता है तो हाशिए पर अपना नाम लिख देता है जिस से दूसरे सदस्य को भी पता चल जाए कि यह आर्टिकल दूसरे ने पढ़ रखी है और फिर उस विषय पर डिस्कस किया जा सके. करण के पूछने पर कि "क्या ऐश्वर्या भी ये रूल फॉलो करती हैं?" दोनों ने एक स्वर से कहा.."हाँ, वे  ARB लिखती हैं."


जब श्वेता से पूछ गया कि अमिताभ बच्चन की एक कमजोरी बताएँ....तो उसने कहा," डैड बहुत जल्दी पैनिक हो जाते हैं..जैसे मैं बीमार पड़ गयी तो घबरा जाते हैं और फिर मुझे ही डांटना शुरू कर देते हैं." अमिताभ ने भी जबाब दिया,..."वो इसलिए कि मैं बहुत ज्यादा केयर करता हूँ" पर श्वेता ने कहा ,"लेकिन मैं बीमार हूँ...मुझे आप कैसे डांट सकते हैं?"


यह बात मैने भी गौर की है. हम सब ऐसा करते हैं. मैं छोटी थी तब भी ऐसे ही डांट सुनती थी और आज मैं भी एक्जैक्टली ऐसा ही करती हूँ. होता ये है कि हम घबरा जाते हैं...बच्चे को बीमार देख,हमें अच्छा नहीं लगता. और हम उसे ही डांटने लगते हैं, "कहा था ना..स्वेटर पहनो..ठंढ में बाहर मत जाओ...आइसक्रीम मत खाओ...पर सुनना ही नहीं है..वगैरह..वगैरह." पर दरअसल जो बीमार है...उसे, उस वक्त ये सब नहीं कहना चाहिए. लेकिन  सच ये भी है कि बस उसी वक्त वे चुपचाप सुन लेंगे.लेकिन इसे सही तो नहीं कहा जा सकता और ऐसा करना भी नहीं  चाहिए. सोचा तो है....मैं भी ऐसा नहीं करुँगी..पर कितना अमल  हो पाता है,पता नहीं.


अमिताभ बच्चन की एक आदत पर श्वेता और करण दोनों बहुत हँसे, वे बहुत ही organized हैं .एक चश्मा, बेडरूम में..दूसरा ड्राइंगरूम में..तीसरा कार में ऐसे ही inhaler भी (उन्हें दमा है) ...बेडरूम , ड्राइंगरूम, बाथरूम,कार..सब जगह रहती  है. अमिताभ बच्चन के  सफाई देने पर श्वेता ने कहा.."पॉकेट में एक चश्मा और एक inhaler ही काफी है..नॉर्मल लोग ऐसा नहीं करते" और ये तो सच है...ऐसा नहीं कि कोई चाहे तो चार चश्मे नहीं बनवा सकता. पर कोई करता नहीं ऐसा.


एक बात और अमिताभ ने अपने बुरे दिनों की बताई  कि जब उनकी फिल्मे फ्लॉप हो रही थीं. तो प्रीतीश नंदी ने Illustrated Weekly में फ्रंट पेज पर बोल्ड अक्षरों में छाप  दिया था " FINISHED  " अमिताभ ने अपने टेबल पर वो पन्ना खोल कर रख दिया था और रोज़ ,सुबह शाम वे उस पेज को देखा करते  और कसम खाया करते कि इस इबारत को  बदल डालना है.


एक बार सिमी गरेवाल के शो में भी बच्चन परिवार आया था और अमिताभ ने बताया कि उनके दोस्त,परिवारजन सब  उनके  KBC होस्ट  करने के विरुद्ध  थे. पर उन दिनों वे  इतने क़र्ज़  में डूबे हुए थे और इतने जरूरतमंद थे कि सेट पर  झाडू तक लगाने को तैयार थे (प्रतीकात्मक रूप में  ही यह कहा होगा..पर वैसी बुरी स्थिति से उबर कर आना, जीवट वाले ही कर सकते हैं. )


अमिताभ बच्चन sms सेवा का भी भरपूर उपयोग करते हैं. पूरे परिवार का  एक sms ग्रुप है. और वे लोग एक दूसरे को हर एक्टिविटी की खबर करते रहते हैं. उन्होंने शाहरुख़ खान और धोनी द्वारा उनके sms का उत्तर नहीं दिए जाने की शिकायत भी की.(जिसके लिए शाहरुख़ खान ने अगले प्रोग्राम में हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी, न्यूज़ चैनल वालो ने ये दृश्य सौ बार तो दिखाए ही होंगे ) श्वेता ने यहाँ भी पापा को प्यार भरी  झिड़की दी.."कम ऑन डैड...वो जानते भी नहीं होंगे कि सच में आपने  sms किया है."


करण जौहर के एक प्रश्न पर प्रोग्राम में ठहाके गूँज उठे..जब करण ने पूछा, "जया आंटी की कोई कमजोरी बतायें " अमिताभ का तुरन्त जबाब था.."मरवाना है क्या?" :) श्वेता ने भी कहा..".मुझे तुम्हारा शो....कॉफी हैम्पर '(जीती जाने वाली बास्केट) कुछ भी नहीं चाहिए..पर माँ के विरुद्ध  एक शब्द नहीं कह सकती.


आप सब सोच रहे होंगे...शीर्षक  में दिलीप कुमार हैं...और चर्चा अमिताभ और श्वेता की .दरअसल ज्यादा महत्वपूर्ण  बात तो अंत के लिए बचा कर रख ली जाती है,ना.. श्वेता को मैने मुंबई से दिल्ली जाने वाली फ्लाईट  में करीब से देखा था. और उसी प्लेन में दिलीप कुमार भी थे. वैसे वे लोग बिजनेस क्लास  में थे और उन दोनों की आया हमलोगों के साथ एक्जक्यूटिव क्लास में.:( दिलीप-सायरा के साथ वाली लड़की तो काफी स्मार्ट थी. पर श्वेता के बच्चो की आया तो नारंगी रंग के बड़े से क्लिप और चटख नारंगी रंग के साधारण से  सूट में प्लेन में अलग सी ही दिख  रही थी.


मेरे पतिदेव ने कई सालों  तक एक टेलिविज़न चैनल में जॉब की है.(कमर्शियल साइड)  लिहाज़ा अवार्ड फंक्शन वगैरह में काफी करीब से बड़े बड़े स्टार्स को देखने  का मौका मिला है.खासकर हम रिहर्सल देखने जाया करते थे. जहाँ कोई भीड़-भाड़ नहीं होती थी और सारे स्टार बिना किसी मेकअप के रिहर्सल करते और आस-पास आकर बैठ जाते. एक बार फ्लाईट में हृतिक रौशन,जैकी श्रौफ़,सुष्मिता सेन वगैरह भी मिले थे.पर कभी किसी की ऑटोग्राफ लेने की नहीं सोची.


पर दिलीप कुमार तो legend हैं. उनका ऑटोग्राफ लेने का मौका मैं नहीं छोड़ने वाली  थी. दिल्ली एयरपोर्ट पर पति से  बस कहा कि 'मैं दिलीप कुमार का औटोग्राफ लेने जा रही हूँ'...उन्हें 'हाँ'....'ना' कहने का ऑप्शन ही नहीं दिया और सामान कलेक्ट करने की जिम्मेवारी उनपर छोड़ मैं चल दी,दिलीप कुमार को ढूँढने.  पर वे तो कहीं नज़र ही नही आ रहे थे. तभी कुछ दूरी पर सायरा बानो अपनी उसी आया के साथ खड़ी दिखीं. सोचा....ऑटोग्राफ के बहाने थोड़ी देर उनके पास ही रुका जाए. दिलीप साहब जहाँ भी होंगे, आयेंगे तो यहीं. पर उनकी तरफ बढ़ते हुए ख्याल आया कि ऑटोग्राफ लूंगी किसपर??  कोई डायरी वगैरह तो है नहीं. पर्स में एक पेन तो मिल गया (जो एक पार्टी में हाउजी खेलने के लिए रख  छोड़ा था ) और पर्स में से दो बिल निकले एक लौंड्री  के और एक टेलर के.{ 'रॉक ऑन' फिल्म  का वो गाना हमेशा याद आता है.." मेरी लौंड्री का एक बिल...एक आधी पढ़ी नोवेल" :)} ...मैने उस बिल को ही  पलट कर ,पर्स से आईना निकाला (अभी लास्ट पोस्ट में ही पर्स में आइने के महत्त्व का उल्लेख किया है....जिस काम के लिए रखा जाता है...वो तो संकोचवश कभी नहीं किया...पर दूसरे कार्यों  में बहुत साथ दिया, इस छोटे से शीशे ने )  आइने को उलट कर, उसपर वो लौंड्री का बिल बिछाया और कलम  लेकर सायरा जी के पास पहुँच गयी. वहाँ  समय भी काटना था  और सायरा बानो की, 'जंगली' छोड़ कोई और फिल्म  याद ही नहीं आ रही थी..जिसका जिक्र कर के थोड़ा बातचीत आगे बढाऊं. जंगली का ही जिक्र किया..फिर याद आया कहीं पढ़ा था 'वे भोजपुरी में फिल्म बनाने की सोच रही थीं क्यूंकि विदेशो में उसका अच्छा मार्केट है....उन्होंने कनाडा में बसे  भारतीयों  के भोजपुरी प्रेम  का जिक्र किया था ,(अब समीर जी और अदा इस पर रौशनी डाल सकते हैं )..पर सायरा जी थोड़ा भाव खा रही थीं...जबाब तो दे रही थीं...पर जरा अनमने ढंग से फिर मैने पूछ  ही लिया,.."दिलीप जी ..नज़र नहीं आ रहे "


सायरा जी ने कहा, "साहब को पायलट अपनी केबिन में और लोगो से मिलाने ले गए हैं " {कौन नहीं  है उनका मुरीद :)}


मैने कुछ और पूछा ..और सायरा जी जबाब दे ही रही थीं...कि अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ,दिलीप जी खरामा ,खरामा  इस तरफ आते दिखे.  कुर्तानुमा  सफ़ेद शर्ट और सफ़ेद पैंट पहन रखी थी उन्होंने. माथे पर झुके बाल भी  सही सलामत थे, वो मशहूर  लट भी. (विग तो नहीं लग रहा था ) .मैने ध्यान ही नहीं दिया कि सायरा जी की बात ख़त्म नहीं हुई है.और दिलीप कुमार की तरफ बढ़ गयी. सायरा जी के आग्नेय नेत्र पीठ पर महसूस हो रहे थे पर उसे निरस्त्र करने को दिलीप जी की शीतल मुस्कान  सामने ही थी:) . मैने झट से इस बार टेलर वाला  बिल सामने बढ़ा दिया..(याद नहीं..पर 'ऑटोग्राफ प्लीज़' ही कहा होगा) दिलीप कुमार ने झुक कर साइन कर दिया. पर उनका सिग्नेचर कुछ समझ में नहीं आ रहा था और मैने पूछ ही लिया " आपने दिलीप कुमार के नाम से साइन किया है या युसुफ़ खान नाम से "


दिलीप कुमार ने फिर मुस्कुरा कर कहा.."दिलीप लिखा है....कहिए तो युसुफ भी लिख दूँ..??" इस दिलकश अंदाज़ में कहा था कि अगर उम्र का वो  फासला नहीं होता ..और ये डायलॉग उन्होंने अपने स्टार वाले दिनों  में कहे होते  तो मैं तो वहीँ बेहोश ही हो गयी होती.:)


"लिख दीजिये..." चहक कर बस इतना ही कहा. और उन्होंने इस बार स्पष्ट शब्दों में युसुफ लिख दिया.


मुझे ऑटोग्राफ लेते देख..कुछ और लोगों की  हिम्मत बढ़ी और उनलोगों ने भी दिलीप जी को घेर लिया.

अब, मुझे अपने पति-बच्चो की सुध आई .पतिदेव ने अकेले सामान संभाला था और अब उन्हें ये किस्से भी सुनने थे.

37 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही रोचक विवरण है जी ये तो। घटनाओं को किस क्रम में लिखा जाय कि रोचकता बनी रहे ये कोई आप से सीखे :)

    और हाँ, वैसे भी मैं कॉफी विद करण वाला शो नहीं देखता लेकिन आपके दिये इस विवरण ने मेरे न देखे जाने की भरपाई कर दी है।

    बहुत शानदार पोस्ट। एकदम राप्चिक।

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  2. बेहद रोचक संस्मरण

    आप तो छा गईं दीदार-ए-युसुफ खान के क्लाईमैक्स में

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  3. दोनों आख्यान रोचकता से परिपूर्ण।

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  4. अरे वाह , ये तो वन इन टू हो गया ।
    मज़ेदार संस्मरण ।
    दिलीप कुमार तो अब भी नौज़वान ही लगते हैं ।

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  5. kismat wali hai aap....
    coffee with karan ki mainto mureed hoon

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  6. बहुत सुन्दर अन्दाज़-ए-बयाँ है।

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  7. आपकी ये पोस्ट "काफी विध करण" से ज्यादा मनोरंजक है...:-)

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  8. Top class refreshing post...
    किस बात पे क्या कमेन्ट दूँ समझ में ही नहीं आ रहा है...
    खैर कोशिश करते हैं ...

    पहले तो ये की मैंने गलती की की आपको डांटा नहीं, अरे जब आप अमरुद खा के बीमार पड़ गयी थी ;)

    दूसरा ये की अमिताभ बच्चन के बारे में तो हर खबर पढता ही हूँ, लेकिन श्वेता बच्चन के बारे में भी कोई खबर आये तो पढ़ लेता हूँ...मैंने ये एपिसोड तो देखा नहीं, लेकिन अभी ब्लॉग पढ़ने के बाद यूट्यूब पे देखूंगा.

    तीसरी ये की आप अवार्ड फंक्सन में जाती हैं ये बात मुझे पता नहीं थी और आपने कभी बताई भी नहीं :( इतने स्टार्स को देखा है आपने..
    वैसे कौन कौन से रिहर्सल पे गयीं हैं ये नहीं बताया..

    चौथी ये आपका क्रिएटिव दिमाग झलक गया जब आपने लौंड्री वाले बिल को यूज किया :P

    पांचवीं बात ये की इस डायलोग पे मैं जबरदस्त हंसा - "इस दिलकश अंदाज़ में कहा था कि अगर उम्र का वो फासला नहीं होता ..और ये डायलॉग उन्होंने अपने स्टार वाले दिनों में कहे होते तो मैं तो वहीँ बेहोश ही हो गयी होती.:)" :P
    बड़ा मस्त डायलोग लगा ये आपका ;)

    आखरी बात ये की दो पोस्ट लिखी जा सकती थी पर आपने एक ही पोस्ट में खत्म कर दिया :(

    पोस्ट की तारीफ़ तो पहले लाईन में कर ही चूका हूँ ;)

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  9. मज़ेदार! स्मरणीय!! मेरी माता जी तो इस उम्र में भी बेहोश हो जातीं, आज भी युसूफ साहब की कोई फिल्म आ जाए तो हिलती नहीं टीवी के सामने से और अपने बॉम्बे(उन दिनों मुम्बई नहीं थी)की याद की वही पुरानी कथा सुनाने लगतीं, दत्त साहब (जिनसे उनकी मुलाक़ात लोकलट्रेन में हुई थी), दिलीप कुमार और देव साहब की झलक पाने को लम्बे इंतज़ार की दास्तान!!

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  10. काफी रोचक विवरण पढ़ने में मजा आया | हमने तो रिपीट टेलीकास्ट देखा था वो भी आधा अधुरा आप ने एक दो बात बता कर पुरा कर दिया |

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  11. लीजिए बेहोश होने की भी कोई उम्र होती है क्‍या। फिर
    भी अच्‍छा ही हुआ कि आप बेहोश नहीं हुईं।
    बहरहाल और कितने आटोग्राफ हैं आपके पास। सबकी कहानी बनाइए। पर हां इसमें ये इतना लम्‍बा विज्ञापन कुछ बात जमी नहीं। हालांकि विवरण मजेदार है।

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  12. दिलीप कुमार ने फिर मुस्कुरा कर कहा.."दिलीप लिखा है....कहिए तो युसुफ भी लिख दूँ..??" इस दिलकश अंदाज़ में कहा था कि अगर उम्र का वो फासला नहीं होता ..और ये डायलॉग उन्होंने अपने स्टार वाले दिनों में कहे होते तो मैं तो वहीँ बेहोश ही हो गयी होती.:)

    बहुत सुन्दर वर्णन है...

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  13. कमाल का लिखा है...
    काफ़ी से बिल...ओटोग्राफ़...
    और वो सब कुछ, जो आपकी पहचान है.
    बच्चन साहब, श्वेता, यूसुफ़ साहब और सायरा बानो साहिबा से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया.

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  14. बहुत मज़ेदार लगी ये पोस्ट ,वाक़ई दिलीप साहब से बात करना अपने आप में एक बेहतरीन अनुभव है

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  15. @अभी
    सुधार कर लो....दो दिन से फ्रिज में पड़ा अमरुद...:)
    अवार्ड फंक्शन और रिहर्सल वाली बात भी आ ही जाएगी..किसी ना किसी पोस्ट में..धीरे-धीरे...बस धीरज धरे रहो.:)

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  16. @राजेश जी,
    लम्बा विज्ञापन कौन सा लगा?..."कॉफी विद करण"?...आपको शायद ऐसा लगा हो...पर मेरी मंशा,इसी बहाने कुछ बातों की चर्चा की थी...जैसे,वो आर्टिकल के हाशिए पर नाम लिखनेवाली बात....किसी के बीमार पड़ने पर 'बीमार व्यक्ति' को ही डांटने वाली बात...या फिर अमिताभ के दुबारा सफलता प्राप्त करने की जिद वाली बात...इत्यादि .

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  17. रश्मि जी अचार के भाण्‍ड में कॉफी का स्‍वाद अजीब लग रहा था। शुक्र है आखिरी घूंट के बाद कुछ पुराने अचार के टुकड़े भी मिल गए। :)

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  18. वाह यहां दो शो देख लिया हमने, काफी विद करण (टीवी पर नहीं देख पाए थे) और फ्लाईट विद रश्मि जी (यह देख पाने का तो चान्‍स ही नहीं था), दोनों बढि़या शो.

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  19. काफी विद करण कभीकभार देख लेती हूँ ...दीपिका और सोनम वाला के बाद इसी एपिसोड को देखा ...दरअसल अखबार में अमिताभ जी के ब्लॉग की खबर छपती रहती है ...श्वेता के आउटफिट ने चौंकाया था , मेरा अनुमान है की ये ड्रेस करण के डिजाईनर की देन है ...
    संस्मरण हमेशा की तरह रोचक लगा ...

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  20. लाजवाब संस्मरण ! आप वाकई किस्मत वाली हैं ! बधाई !

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  21. संस्मरण को सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने... बहुत बढ़िया..

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  22. टिप्पणी करने से पहले एक सिकायत दर्ज़ कर दूं,
    एक नहीं दो ...
    आपसे एक शिकायत है, .... हां
    आप बहुत लंबा आलेख लिखती हैं,

    पर उससे भी बड़ी एक और शिकायत है ...

    कि आप ऐसा क्यों लिखती हैं कि एक ही सांस में पूरा पढे बिना रहा भी नहीं जाता!

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  23. घर के सदस्य खासकर बच्चे केबीमार होने पर घबरा जाने पर अपना दिन याद आया -- कि हम तो ख़ुद ही बीमार हो जाया करते थे। बेटे ने जब डेग भरना शुरु किया तो चलकर एक सायकिल के निकट पहुंच गया और उसे अपने ऊपर गिरा लिया फ्लतः केहुनी की जोड़ डिस्लोकेट हो गया।अब मैं क्या उसे देखता,पड़ोसियों न सिर्फ़ उसका प्लास्टर करवायाबल्कि उन्हें मेरी भी तीमारदारी करनी पड़ी।

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  24. अमिताभ से दो बार मुलाक़ात हुई, एक तो कड़ोरपति के सेट पर दूसरे लखनऊ हवाई अड्डे पर जब वो ट्रैक्टर वाली शूटिंग कर लौट रहे थे। पर अपनी तो न चाहत थी न आदत औटोग्राफ लेने की।

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  25. चश्मा तो मैं भी जगह रखता हूं, एक आंख पर,एक गाड़ी में, एक बैग में, एक दफ़्तर में...पर मैंने उन्हें बताया नहीं था, फिर मेरी यह आदत उन्हें कैसे लग गई!

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  26. आपका यह संस्मरण एक्कविता की भांति चलती है, अबाध,रोचकता के साथ। बहुत अच्छा लगा पढकर और इसकी सफलता यह हैकि यह न सिर्फ़ पाठक को अपने से जोड़े रखता है बल्कि उसे अपने कई वाकए याद करने पर मज़बूर कर देता है।

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  27. और ये आप किस शो की बात कर रही थीं?

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  28. @मनोज जी,
    लगता है....मेरे लम्बे आलेख की वजह से ही आपको छः टिप्पणियों में अपनी बात कहनी पड़ी :)
    कोई नहीं...जब जो याद आता रहे,कहना जारी रखिए...आप भी यादों के गलियारे में घूम आए...पोस्ट लिखना {लम्बी पोस्ट :)} सार्थक हुआ.

    और आपके पास भी चार चश्मे हैं??...बाप रे....दो तक तो सुना है...लोग-बाग़ जरा महँगी फ्रेम वाला ,पार्टी वगैरह के लिए रखते हैं...और एक रोजाना इस्तेमाल के लिए. लेकिन चार...श्वेता के शब्दों में आप भी नॉर्मल नहीं हैं...यानि कि महान हैं.:)

    भीड़-भाड़ में तो नहीं..पर यूँ एयरपोर्ट पर अकेले टहलते मिल जाते तो शायद मैं अमिताभ बच्चन का भी ऑटोग्राफ ले लेती...और एक लता मंगेशकर का बस....और किसी का ऑटोग्राफ लेने कि तमन्ना मेरी भी नहीं है.
    और ये Koffee with Karan..प्रोग्राम...स्टार वर्ल्ड पर आता है....रविवार रात के नौ बजे. {लीजिये,अब ये हो गया पूरा विज्ञापन...वो भी मुफ्त का :(}

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  29. अमिताभ और अकेले ...पूरी सिक्योरिटी का दस्ता साथ था,...!
    एक चश्मा का राज़ तोखोला ही नहीं था .. वह मेरे सिरहाने के पास होता है जब सो कर टीवी देखता हूं और देखते देखते सो जाता हूं, तब के लिए मोटा सा ताकि करवट बदलने पर मुड़े तुड़े नहीं।

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  30. कॉफ़ी विद करण तो ठीक है, लेकिन ये दिलीप कुमार से मुलाकात के किस्से में मज़ा आ गया.
    " सायरा जी भाव खा रही थीं....." हाहाहा.
    प्रसिद्ध महिलाएं आमतौर पर बहुत भाव खाती है, पुरुषों की अपेक्षा.:):) नहीं क्या?
    तुम्हारी इस घटना की ही तरह हम मद्रास के नल्ली-चेट्टी में शॉपिंग कर रहे थे, और वहीं मुकेश खन्ना आ गये, वो महाभारत का दौर था, भीष्म पितामह सामने थे, किस उतावलेपन से हमने ऑटोग्राफ़ लिये थे, हमीं जानते हैं.

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  31. आपने इस पोस्ट के बहाने मुझे माधव राव सिंधिया सैफअलीखान,रागेश्वरी,सुनील गावस्कर, अशोक मांकड,लालचंद राजपूत,कर्सन घावरी,वेंकटेश प्रसाद,पी गोपीचंद और बहुत से पूर्व टेस्ट खिलाडियो से मुलकात को याद करने का मौका मिला. कभी याद करके लिखुंगा.

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  32. वास्ते दिलीप कुमार...

    "वो मशहूर लट भी.(विग तो नहीं लग रहाथा)"
    अजी खैंच कर देख ही लेना था :)
    सायरा और यूसुफ़ में बस महानता का अंतर है जो उनकी विनम्रता में झलकता है !


    वास्ते काफी विद करण...

    अमूमन ये शो देखता ही नहीं ...कभी हम भी बच्चन को पसंद करते थे पर अब ये परिवार ना जाने क्यों ? धन पिपासु सा लगता है ! शायद यही एक जगह है जहां उनके सामजिक सरोकारों को लेकर राज ठाकरे की शिकायतें बुरी नहीं लगतीं !

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