एक सभ्य,शिक्षित,जागरूक नागरिक के मन में हमेशा यह भावना हिलोरे मारती रहती है कि इस समाज ने, जो इतना कुछ उसे दिया है...कुछ उसका प्रतिदान कर जाए...लोगो की भलाई के लिए कुछ तो समाज-सेवा कर जाए. परन्तु अपने दैनंदिन कार्यो में ही वे इतने उलझे होते हैं कि अलग से समय नहीं निकाल पाते. और समय हो भी तो उन्हें कोई जरिया नहीं मिल पाता ...जहाँ घंटे दो घन्टे के लिए वे अपना कुछ योगदान दे पायें.
परन्तु अगर दिल करुणा से भरा हो और चौकस दृष्टि भी हो और हो समाज के काम आने की ख्वाहिश तो कई रास्ते निकल आते हैं. हाल में ही अखबार में कई लोगो की नज़र से यह खबर गुजरी होगी कि एक विदेशी का शव, बीस दिन से 'सायन हॉस्पिटल',मुंबई के मोर्ग में पड़ा है और उसकी पहचान नहीं हो पा रही. मुंबई के एक प्रतिष्ठित फर्म में काम करनेवाले रंजित विचारे ने भी यह खबर पढ़ी और कुछ करने की सोची. उन्हें उस शव से सिर्फ एक क्लू मिला कि उस मृत व्यक्ति की बाहँ पर एक टैटू बना था जिसमे लिखा था "helle"
उन्होंने नेट पर इस शब्द को सर्च किया और पाया कि,नॉर्वे और नीदरलैंड के एक गाँव का नाम 'helle' है. डेनमार्क की एक म्युनिसिपैलिटी का नाम भी 'helle' है और ग्रीक की धार्मिक कथाओं में भी इस शब्द का जिक्र है.
उन्होंने जांच-अधिकारी 'अनिल करेकर' से FIR की रिपोर्ट मांगी और उसका मराठी से अंग्रेजी में अनुवाद कर, उस मृत व्यक्ति की तस्वीर और कुछ और डिटेल्स के साथ ,स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड, नीदरलैंड, जर्मनी और ग्रीस के दूतावास को भेज दी. चौबीस घंटों के अंदर ही जबाब आने लगे और पता चल गया कि वह शव, डेनमार्क के निवासी, स्वेंसन का है. उनकी बहन को सूचना दे दी गयी.
अगर रंजित विचारे ने इतनी कोशिश नहीं की होती तो स्वेंसन के घरवालो को उनके विषय में कुछ भी पता नहीं चल पाता.
करीब बारह वर्ष पहले,वाराणसी की गलियों में एक बीमार भिखारी को रंजित विचारे ने एक ग्लास पानी दिया. भिखारी ने कुछ घूँट पीने के बाद ही, उनके सामने ही दम तोड़ दिया. रंजित जी ने ही उस भिखारी की सम्मानजनक अंत्येष्टि का प्रबंध किया. उसके बाद से ही सड़क पर कोई भी लावारिस शव देख,वे तुरंत पुलिस को खबर करते हैं और उसकी पहचान स्थापित करने में भी पुलिस की मदद करते हैं. अब तक वे करीब पच्चीस मृत शवों की पहचान में पुलिस की मदद कर चुके हैं.
1996 में एक अँधेरी रात में इंदौर के रास्ते में उन्होंने एक दुर्घटनाग्रस्त कार देखी. उतर कर चेक किया तो खून से लथपथ एक युवक मृत पड़ा था. उन्होंने पुलिस को सूचना दी और खुद भी उसकी पहचान में जुट गए. उसकी कलाई पर 'एक तुलसी के पौधे' का टैटू बना हुआ था. उन्होंने तुरंत लैपटौप पर सर्च किया और पाया कि ये 'गोंद जनजाति' के लोगो की प्रथा है. उन्होंने यह बात पुलिस को बता दी.कि यह युवक गोंद जनजाति का हो सकता है. दो दिन बाद, रंजित विचारे के पास लड़के की माँ का फोन आया कि वे चाहती हैं कि उस लड़के की अंतिम क्रिया रंजित ही करें क्यूंकि वे ही उस के अंतिम क्षणों में उसके साथ थे.
तीन साल बाद ट्रेन में यात्रा करते हुए, इन्होने एक बूढी औरत के मृत शरीर की पहचान, एक इलेक्ट्रीसीटी बिल की मदद से की.
बच्चों,जानवरों पर किए जा रहे अत्याचार के प्रति भी वे चौकस हैं .एक बार उन्होंने एक पिंजरे में कैद उल्लुओं को भी छुड़ाया और एक वेटीनरी हॉस्पिटल में उन्हें भर्ती कराया. जब वे पक्षी स्वस्थ हो गए तो हॉस्पिटल से उन्हें फोन कर के बुलाया गया कि इन्हें खुले आकाश में उड़ने के लिए आप ही छोड़े ,जैसे कितनी ही आत्माओं को मृत शरीर से आज़ादी दिलाते हैं.
रंजित विचारे का यह कथन "हर एक व्यक्ति एक 'सम्मानजनक अंत्येष्टि' का हक़ रखता है." बहुत पहले पढ़ी हुई एक घटना की याद दिला गया. मदर टेरेसा ,कीचड़ में पड़े, दुर्गन्धपूर्ण घावों से भरे मरणासन्न व्यक्ति को भी अपनी संस्था 'निर्मल सदन' में ले जाती थीं .और उन्हें साफ-सुथरा कर उनकी देखभाल करती थीं.ऐसे ही एक भिखारी ने अंतिम सांस लेते समय कहा था, "मैने पूरा जीवन रास्ते में गन्दगी के बीच गुजारा पर आज मैं एक बादशाह की तरह परियों की गोद में मर रहा हूँ. "
परन्तु अगर दिल करुणा से भरा हो और चौकस दृष्टि भी हो और हो समाज के काम आने की ख्वाहिश तो कई रास्ते निकल आते हैं. हाल में ही अखबार में कई लोगो की नज़र से यह खबर गुजरी होगी कि एक विदेशी का शव, बीस दिन से 'सायन हॉस्पिटल',मुंबई के मोर्ग में पड़ा है और उसकी पहचान नहीं हो पा रही. मुंबई के एक प्रतिष्ठित फर्म में काम करनेवाले रंजित विचारे ने भी यह खबर पढ़ी और कुछ करने की सोची. उन्हें उस शव से सिर्फ एक क्लू मिला कि उस मृत व्यक्ति की बाहँ पर एक टैटू बना था जिसमे लिखा था "helle"
उन्होंने नेट पर इस शब्द को सर्च किया और पाया कि,नॉर्वे और नीदरलैंड के एक गाँव का नाम 'helle' है. डेनमार्क की एक म्युनिसिपैलिटी का नाम भी 'helle' है और ग्रीक की धार्मिक कथाओं में भी इस शब्द का जिक्र है.
उन्होंने जांच-अधिकारी 'अनिल करेकर' से FIR की रिपोर्ट मांगी और उसका मराठी से अंग्रेजी में अनुवाद कर, उस मृत व्यक्ति की तस्वीर और कुछ और डिटेल्स के साथ ,स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड, नीदरलैंड, जर्मनी और ग्रीस के दूतावास को भेज दी. चौबीस घंटों के अंदर ही जबाब आने लगे और पता चल गया कि वह शव, डेनमार्क के निवासी, स्वेंसन का है. उनकी बहन को सूचना दे दी गयी.
अगर रंजित विचारे ने इतनी कोशिश नहीं की होती तो स्वेंसन के घरवालो को उनके विषय में कुछ भी पता नहीं चल पाता.
करीब बारह वर्ष पहले,वाराणसी की गलियों में एक बीमार भिखारी को रंजित विचारे ने एक ग्लास पानी दिया. भिखारी ने कुछ घूँट पीने के बाद ही, उनके सामने ही दम तोड़ दिया. रंजित जी ने ही उस भिखारी की सम्मानजनक अंत्येष्टि का प्रबंध किया. उसके बाद से ही सड़क पर कोई भी लावारिस शव देख,वे तुरंत पुलिस को खबर करते हैं और उसकी पहचान स्थापित करने में भी पुलिस की मदद करते हैं. अब तक वे करीब पच्चीस मृत शवों की पहचान में पुलिस की मदद कर चुके हैं.
1996 में एक अँधेरी रात में इंदौर के रास्ते में उन्होंने एक दुर्घटनाग्रस्त कार देखी. उतर कर चेक किया तो खून से लथपथ एक युवक मृत पड़ा था. उन्होंने पुलिस को सूचना दी और खुद भी उसकी पहचान में जुट गए. उसकी कलाई पर 'एक तुलसी के पौधे' का टैटू बना हुआ था. उन्होंने तुरंत लैपटौप पर सर्च किया और पाया कि ये 'गोंद जनजाति' के लोगो की प्रथा है. उन्होंने यह बात पुलिस को बता दी.कि यह युवक गोंद जनजाति का हो सकता है. दो दिन बाद, रंजित विचारे के पास लड़के की माँ का फोन आया कि वे चाहती हैं कि उस लड़के की अंतिम क्रिया रंजित ही करें क्यूंकि वे ही उस के अंतिम क्षणों में उसके साथ थे.
तीन साल बाद ट्रेन में यात्रा करते हुए, इन्होने एक बूढी औरत के मृत शरीर की पहचान, एक इलेक्ट्रीसीटी बिल की मदद से की.
बच्चों,जानवरों पर किए जा रहे अत्याचार के प्रति भी वे चौकस हैं .एक बार उन्होंने एक पिंजरे में कैद उल्लुओं को भी छुड़ाया और एक वेटीनरी हॉस्पिटल में उन्हें भर्ती कराया. जब वे पक्षी स्वस्थ हो गए तो हॉस्पिटल से उन्हें फोन कर के बुलाया गया कि इन्हें खुले आकाश में उड़ने के लिए आप ही छोड़े ,जैसे कितनी ही आत्माओं को मृत शरीर से आज़ादी दिलाते हैं.
रंजित विचारे का यह कथन "हर एक व्यक्ति एक 'सम्मानजनक अंत्येष्टि' का हक़ रखता है." बहुत पहले पढ़ी हुई एक घटना की याद दिला गया. मदर टेरेसा ,कीचड़ में पड़े, दुर्गन्धपूर्ण घावों से भरे मरणासन्न व्यक्ति को भी अपनी संस्था 'निर्मल सदन' में ले जाती थीं .और उन्हें साफ-सुथरा कर उनकी देखभाल करती थीं.ऐसे ही एक भिखारी ने अंतिम सांस लेते समय कहा था, "मैने पूरा जीवन रास्ते में गन्दगी के बीच गुजारा पर आज मैं एक बादशाह की तरह परियों की गोद में मर रहा हूँ. "
घायल अवस्था में भी देख जहाँ लोग कतरा कर निकल जाते हैं , रंजित जी का यह प्रयास वाकई प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय है...
जवाब देंहटाएंविचारे सह्ब के जज़्बे को सलाम!! मदर टेरेसा ने जब मिशनरीज़ ऑफ चैरिटीज़ की शुरुआत कलकत्ता (अब कोलकाता)से की थी तो उन्होंने तो कलकता म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की सफाई कर्मी महिलाओं की साड़ियों को ही अपना यूनिफॉर्म बना लिया!! और बाबा आम्टे का उदाहरण जिनका पूरा परिवार कोढ़ियों की सेवा के लिये समर्पित है!!
जवाब देंहटाएंये लोग ही देश के सच्चे हीरो हैं, आदर्श रोल मॉडेल!! रंजित विचारे जी को सलाम!!
रंजित विचारे जी को सलाम।
जवाब देंहटाएंऐसे ही रब के बंदों की जरूरत है आज दुनिया को।
मेरा एक मित्र है आशीष। एक दिन उसके साथ जा रहा था तो रास्ते में एक हाइवे के बिल्कुल बीच में मृत्त कुत्ता पड़ा था। उसने फटाफट गाड़ी रोकने को कहा और भागकर कुत्ते को हाइवे से नीचे रख दिया। अब मैं भी ऐसा ही करता हूं। हम सभी को इन लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
आज आपकी पोस्ट पढ़कर मुझे खुद पर फख्र हो रहा है कि मैं इस ब्लॉग से जुड़ा हूं।
रश्मी जी आपके आलेख के माध्यम से एक महामानव, जिनका नाम रंजीत विचारे है, के बारे में जाना ! मानवता के प्रति उनके प्रयासों एवं आस्था ने मदर टेरेसा की याद दिला दी ! उनका जितना भी धन्यवाद और अभिनन्दन किया जाए कम होगा ! उन्हें हम सबकी ओर से बहुत बहुत साधुवाद और धन्यवाद प्रेषित है ! ऐसे ही दयावान और संवेदनशील व्यक्तियों की वजह से धरा पर संतुलन बना हुआ है !
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणात्मक उदाहरण है रंजित विचारे का ।
जवाब देंहटाएंइस तरह के लोग आजकल कम ही मिलते हैं ।
सुन्दर प्रस्तुति ।
रणजीत विचारे से मिलवाने का शुक्रिया ...ऐसी पोस्ट नि:संदेह प्रेरणादायक हैं ..
जवाब देंहटाएंमैं रंजित विचारे जी की भावनाओं से प्रभावित हूँ। उन्हें उनके प्रयासों के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंदी, मुझे लगता है कि हमारा समाज रंजित जैसे ही कुछ लोगों की वजह से इतने सुकून से रहता है. लोग कहते हैं कि आज की दुनिया इतनी मतलबी हो गयी है कि कोई किसी को पूछता तक नहीं, पर मुझे लगता है कि अच्छे लोग अब भी हैं इस दुनिया में और संचार साधनों के कारण हम उनके बारे में जान पा रहे हैं. रंजित के बारे में इतने विस्तार से बताने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंरंजित से मिलकर लगा कि यह मुलाकात मानवता से है :) बहुत आभार इस रिपोर्ट के लिए !
जवाब देंहटाएंइस दुनिया इतने अच्छे लोग है तभी ये दुनिया आगे जा रही है.
जवाब देंहटाएंरंजित विचारे के विचार और काम को सलाम।
जवाब देंहटाएंमुझे तो यही लगा कि ऐसे लोगों की खबर कितनी देर बाद मिलती है, क्या ऐसा सिर्फ मेरे साथ हुआ है.
जवाब देंहटाएंमेरे लिए आपके ब्लॉग पेज की कीमत इस पोस्ट से कई गुना बढ़ गई है.
जवाब देंहटाएंअक्सर होता ये है की हम ऐसे मामलों में कतरा कर निकाल जाते है कभी समय कम होने का कभी साधन ना होने का रोना रो कर पर असल में हम में ये करने का जज्बा और हिम्मत नहीं होती है |
जवाब देंहटाएंइस तरह के उदाहरानो का फायदा तभी है जब हम में भी ऐसा कुछ करने की हिम्मत आ जाये या एक भी ऐसा काम हम कर सके |
ऐसा उदाहरन सामने लाने के लिए आप का धन्यवाद |
रंजित विचारे जी के बारे में जानना अच्छा लगा, आपका आभार।
जवाब देंहटाएंयह मानवता ही इंसानियत को बचाए हुए है। हमें उनके इस प्रेरक और अनुकरणीय काम से शिक्षा ग्रहन करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंओह ! नमन.
जवाब देंहटाएंरंजित विचारे को सलाम। सच आज भी उनके जैसे संवेदनशील व्यक्ति मिल ही जाते है.......
जवाब देंहटाएंबड़ा ही प्रेरक व्यक्तित्व है रंजित विचारे साहब का !
जवाब देंहटाएंर्4ांजीत विचारे जी का व्यक्तित्व प्रेरक और प्रशंस्नीय है। उनको सलाम। आपको गनतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
रणजीत विचारे जैसे लोगों के कारण ही अपने समाज में मानवता जीवित है.. आज गणतंत्र दिवस पर उन्हें सलाम.. ..
जवाब देंहटाएंएक अच्छा व सराहनीय प्रयत्न आपका भी और रंजित जी का भी।
जवाब देंहटाएंरंजित विचारे जी के इस मानवतापूर्ण जज़्बे को हमारा नमन !
जवाब देंहटाएंऔर
उन से परिचय कराने के लिए आप का शुक्रिया
prashansniy vyaktitv...
जवाब देंहटाएंऐसे इंसान ही तो फ़रिश्ता बनकर दुनिया के सामने आते हैं...
जवाब देंहटाएंरणजीत विचारे जी की भावनाओं को सलाम.
रंजित जी को नमन .....
जवाब देंहटाएंऐसे ही भाव हों हर नौजवां में
तो क्यों हो भाईचारा इस जहां में .....
आज तो रश्मिजी अपने दिल की बढ़ा ही दी असल में जब इस तरह के किसी के कार्यो की खबर या उनके आर्टिकल पढ़ती हूँ तो मुझे ऐसे महसूस होता है जैसे राष्ट्र गान गाते समय जो अनुभूति होती है |
जवाब देंहटाएंरंजित जी के जज्बे को सलाम और उनसे परिचय करवाने के लिए आपका आभार |
रोमांच भर आया रोम रोम में...
जवाब देंहटाएंमेरे रोम रोम से इस सहृदय के लिए दुआएं निकल रही हैं...ईश्वर सबको ऐसा ही मन और विचार दें...
इस प्रेरणादायी सूचना/पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
सच है,आदमी आम जिन्दगी में भी सकारात्मक बहुत कुछ कर सकता है,बस जज्बा चाहिए...
ऐसे न जाने कितने निस्वार्थ सेवाभावी सत्पुरुष छिपे हुए हैं हमारे बीच जो बिना किसी लालसा के निष्काम कर्म मे तत्पर हैं उन्हे सादर वंदन
जवाब देंहटाएंएवं आपका हार्दिक धन्यवाद इनसे परिचय करने के लिए
रंजित विचारे जी जैसे लोग भी हैं दुनिया में .. वो भी इस संवेदनहीन दुनिया में ... किसी अंजाने व्यक्ति के लिए वो भी उसकी मौत के बाद कुछ करना ... सचमुच दिल से सलूट करने का मान करता है ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगता है ऐसे लोगों के बारे में जान कर :)
जवाब देंहटाएंयह अनुकरणीय चरित्र है ....आभार आपका इनका परिचय कराने के लिए !
जवाब देंहटाएं