अक्सर देखने में आता है, कि लोग कहते हैं 'नई पीढ़ी नहीं जानती प्रेम किस चिड़िया का नाम है, 'प्रेम' को एक टाइम-पास या खेल की तरह लेती है', 'अपने वायदे पर कायम नहीं रहती वगैरह..वगैरह.पर कई बार मुझे लगता है, नई पीढ़ी (30 तक की आयु के ) ज्यादा ईमानदार है. उसकी कथनी और करनी में ज्यादा फर्क नहीं है. कम से कम महानगरों में तो देखा है कि जब प्रेम किया तो उसे निभाते हैं.और अपने माता-पिता का आशीर्वाद लेने की अपनी शक्ति भर पूरा प्रयास करते हैं.
कई उदाहरण देखे हैं, एक युवक ने छः साल तक इंतज़ार करने के बाद,अपने माता-पिता की अनुमति से ही शादी की. एक ने चार साल, इंतज़ार किया. एक मेरा करीबी ही है,बारहवीं से उसका प्रेम चल रहा है आज दोनों नौकरी में आ गए हैं पर लड़की के माता-पिता को मनाने की कोशिश जारी है. एक मित्र दुबई में है,लड़की भारत में,दोनों के परिवार नहीं तैयार पर दोनों ही प्रयासरत हैं उन्हें मनाने को.
जबकि पुरानी पीढ़ी (45,50 से ऊपर ) प्रेम करने में पीछे नहीं रही पर जब शादी का वक़्त आता था तो श्रवण कुमार, बन माता-पिता की इच्छा से विवाह कर लेते थे.
एक मेरी परिचिता हैं, एक प्रतिष्ठित स्कूल में अध्यापिका हैं. कभी कभी 3 महीने तक हमारी सिर्फ हाय-हलो ही होती है और कभी
मिलते हैं तो 3 घंटे में भी हमारी बातें ख़त्म नहीं होती. हाल में ही वे मेरे घर आई थीं और अपने बेटे की शादी की जो बातें बताईं , सुन मैं आवाक रह गयी, आज के युग में, मुंबई जैसे महानगर में, एक क्रिश्चन लड़का ऐसा हो सकता है??
एलेक्स एक गोरा-चिट्टा,लम्बा बहुत ही हैंडसम लड़का है. इंजिनियर है. एक मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत है. नौकरी लगने के छः महीने बाद ही उसने अपने माता-पिता को बताया कि वो नेट पर किसी लड़की से मिला है और शादी करना चाहता है. लड़की मंग्लोरियन क्रिश्चन है और ये लोग गोवन क्रिश्चन हैं.( इनमे भी बहुत जातिवाद है.) पैरेंट्स ने बिलकुल मना कर दिया. लड़की उनकी जाति की भी नहीं थी और बहुत ही साधारण शक्ल सूरत की और सामान्य परिवार से थी. चर्च में रोज ही, एलेक्स के लिए बहुत अच्छे रिश्ते आ रहें थे. पर वो अपनी जिद पर अड़ा रहा.
आखिरकार ,पिता ने कहा हम तुम्हारी शादी में एक पैसा भी खर्च नहीं करेंगे और उस से शादी की तो किसी भी घर मे नहीं घुसने देंगे. (उनके इसी कालोनी में एक पैतृक आवास और २ फ्लैट्स हैं ) एलेक्स ने चर्च में शादी, एक क्लब में रिसेप्शन, सबका इंतज़ाम खुद से किया. ऑफिस के पास ही किराए का घर लिया और माता-पिता को शादी में शामिल हो, आशीर्वाद देने का आग्रह किया. जिसे समाज का ख़याल कर, ये लोग मान गए.
शादी हो गयी. हमलोग भी शामिल हुए ,पर अंदर की बातें हमें क्या पता? एलेक्स वहीँ से अपने नए घर में चला गया .लेकिन हर शनिवार ,अपने पैरेंट्स को मनाने आता. माँ तो मान गयी थीं पर पिता दृढ थे. उस से बात भी नहीं करते. छः महीने बाद क्रिसमस आया . इनलोगों में यह मान्यता है कि क्रिसमस वाले सप्ताह में अगर कोई भी आ जाए तो उसके लिए दरवाजे बंद नहीं करते. चाहे वह आपका कितना भी बड़ा दुश्मन हो, उसका सत्कार करते हैं. एलेक्स ने फोन किया, वह क्रिसमस के एक दिन पहले अपनी पत्नी के साथ आ रहा है. पर माँ ने मना कर दिया कि "pls dont spoil our Christmas" मैं यह सुन इतनी आहत हुई.."ऐसा भी कोई दिन आ सकता है जब अपने बच्चे के आने से त्योहार खराब हो जाये ?? बच्चे का घर आना ही एक त्योहार नहीं?''. पर उनकी भी पता नहीं क्या मजबूरियाँ रही हों. शायद पति का मूड देख मना कर दिया हो.कि वे फिर 'मिडनाईट मास' में भी नहीं जाएंगे.पर उसने कहा 'ठीक है पर क्रिसमस के दिन लंच पर पत्नी के साथ आऊंगा '.
अब माँ ने पति की बड़ी बहन ,बड़े भाई को फोन कर समझाने को कहा. उनलोगों के समझाने पर कि 'यह आखिरी मौका है. अगर आज भी तुमने अच्छा सुलूक नहीं किया तो फिर हमेशा के लिए बेटा खो दोगे' .पति ने कुछ कहा नहीं पर अपने कमरे से बाहर नहीं निकले. लंच के बाद एलेक्स, उनके पास जाकर बैठा रहा. बता रही थीं कि 'वो आंसुओं से रो रहा था' पर पता नहीं पिता का दिल किस पत्थर का हो गया था कि पिघल ही नहीं रहा था. फिर एक घंटे बाद अपनी पत्नी को लेकर गया. दोनों उनके पास खड़े, हाथ जोड़े, घंटों उन्हें मनाते रहें और माफ़ी मांगते रहें.तब जाकर पिता, पिघले.आज एलेक्स एक प्यारी सी 4 महीने की बच्ची का पिता है और हर इतवार पत्नी के साथ ,माँ के पास आता है.
वे बता रही थीं कि देखो मैने कितनी मुश्किल से अपने बच्चों को क्रेच में डालकर नौकरी की. और आज मेरी बहू ने नौकरी छोड़ दी है और इतने बड़े घर ,गाड़ी का सुख उठा रही है.यह भी बताया कि जब एलेक्स नौकरी के इंटरव्यू के लिए गया तो उस बोर्ड के एक मेंबर का बेटा उनकी स्कूल में पढता था और वे उसकी क्लास टीचर भी थीं. एलेक्स को नौकरी मिलने में यह पहचान भी काम आई.
उसका कैम्पस सेलेक्शन हो गया था पर उसने यूनिवर्सिटी में टॉप किया तो दूसरी कंपनियों से बड़े पैकेज
के ऑफर मिलने लगे, फिर पिता ने एक लेटर ड्राफ्ट करके दिया कि इतनी सैलरी देंगे तभी वो पुरानी कंपनी में काम करेगा. पर हमने उसका एक पैसा नहीं जाना. जब वे यह सब बता रही थीं तो मुझे लग रहा था कि ये एक बड़े स्कूल की कोई टीचर मेरे सामने बैठी हैं या किसी गाँव की कोई अनपढ़ औरत.
हो सकता है ये उनके क्षणिक विचार हों. पर उनके मन में यह मलाल तो है कि हमने बेटे के लिए इतना किया और बेटे ने अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली जो आज उसके घर पर राज कर रही है. ऐसे वे सचमुच बहुत अच्छी हैं, बहुत सारे सोशल वर्क करती हैं, हमेशा किसी की मदद को तैयार रहती हैं. बहू की भी बार बार तारीफ़ की कि 'बहुत अच्छी है, नाज़-नखरे नहीं हैं,सिंपल सी है, घर अच्छे से संभाल लिया है...बस मेरे हैंडसम बेटे की टक्कर की नहीं है.
पर आज तक, दुनिया की कोई लड़की, किसी माँ को, अपने बेटे के लायक लगी है?? :) :)
(चित्र गूगल से और नाम काल्पनिक है)
( इस से बिलकुल उलट, बीस साल पहले की एक शादी का जिक्र अगली पोस्ट में )
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पर आज तक, दुनिया की कोई लड़की, किसी माँ को, अपने बेटे के लायक लगी है?? :) :
जवाब देंहटाएंदिमाग को उद्द्वेलित करता लेख....यह बात सटीक कही है....
यह बात सब पर लागू नहीं होती....हर बात का दायरा सीमित नहीं है....हमारा ज़माना और था....वैसे मुझे प्रेम प्यार के बारे में कोई अनुभव नहीं है....हाँ मेरे बेटा बेटी ने जिसे पसंद किया मैंने उनका साथ दिया...और उनकी पसंद से ही उनकी शादी की..और काफी धूम धाम से की ...बस दहेज नामी दानव को नहीं पनपने दिया...बेटे की तो अंतरजातीय शादी है....हो सकता है पहली पढ़ी में अधिकांश ऐसे हों जो ऐसे विवाह का विरोध करें...पर सभी नहीं होते....
अच्छे लेख के लिए बधाई
@ संगीता जी,
जवाब देंहटाएंमुझे पता है, संगीता जी, वो पंक्ति मजाक में लिखी है....इसीलिए तो स्माइली भी है साथ में...:)
नमस्कार जी...
जवाब देंहटाएंआपकी सामयिक पोस्ट पढ़ कर मुझे भी लगने लगा है की कुछ अंतर तो आया है पर जहाँ तक "इमानदारी" की बात है वो हर पीढ़ी में "बेईमानी" के साथ चली है, हाँ जहाँ तक प्रेम की बात है..पुरानी पीढ़ी की अपेक्षाकृत आज की पीढ़ी अधिक स्वालंबी है जिसके कारन वोह अपने निर्णय लेने में अधिक सक्षम है...इसीलिए आज की पीढ़ी के बच्चे अपने परिवार के विरोधों के बावजूद अपने मन की करने में पीछे नहीं रहते जबकि आज से २०-२५ वर्ष पहले ऐसा नहीं था...तब समाज का परिवारों पर दबाव ज्यादा था और आज के सामान सामाजिक उदारीकरण नहीं था...क्या आपने अपने आस पास उस ज़माने में एक भी अंतरजातीय विवाह होते देखा था? मेरा अनुमान है की आपका उत्तर "नहीं" में होगा... और आज अगर प्रेम-विवाह हो रहा हो तो क्या कोई जाति का ध्यान देता है..? तो में यही कहूँगा की ये समय समय की बात है...तब वो समय था...अब ये समय है...और कल जब इनकी पीढ़ी आएगी...तो इनसे भी ज्यादा स्वालंबी, ज्यादा स्वतंत्र होगी....हमारी आपकी कल्पनाओं से भी अलग...
दीपक...
रश्मिजी
जवाब देंहटाएंहर जमाने में है हर तरह के लोग रहते है |आज से ४० -५० साल पहले भी बहू को (जो बेटे की पसंद से आई थी )ख़ुशी ख़ुशी परिवार में आई थी तब अंतरजातीय विवाह इतनी धूमधाम से नहीं होते थे कोर्ट मेरेज होता था (अभी भी होता है )उसने सारे परिवार को और परिवार ने उसको सहर्ष स्वीकार किया था जो की आज भी अपने नाती पोतो के साथ घुलमिलकर रह रही है परिवार और समाज में |ये मै छोटे शहर की बात कर रही हूँ |मुंबई में मै भी कई साल रही हूँ और वहां पर मैंने ऐसी कई संकुचित मानसिकता के उदाहरण देखे है जैसा आपने उल्लेख किया है |यहाँ फिर मै यही कहूँगी सिर्फ सोच और सोच ही हमारे उचित और अनुचित व्यवहार को दिशा देती है |
अंतरजातीय विवाह उचित है ऐसा भी उचित नहीं माना जा सकता ,परन्तु जिन्होंने किया है वाह अन्य्चित है ऐसा भी नहीं कहा जा सकता |वे हमारे अपने है |उन्हें हेय द्रष्टि से देखना अथवा तिस्क्रत भावना से देखना ओछी मानसिकता ही होगी |अन्र्जतीय विवाह कोई अपराध नहीं है व्यापक द्रष्टिकोण से विचार करे |समय के हिसाब से परिवर्तन होते आये है |
हाँ आपका ये कहना बिलकुल सही है कि आज के बच्चे पारदर्शिता जीवन को ही अपना आदर्श मानते है और मै इसे अच्छा मानती हूँ कि वो मन में कुछ और ऊपर कुछ आचरण करे ये तो अपने आपको और ओरो (जिसमे बुजुर्ग भी है )
उन्हें धोखा देना ही हुआ |
@दीपक जी,
जवाब देंहटाएंअफ़सोस है कि आपका अनुमान गलत है...अपने आस-पास ही नहीं मेरे घर में ही कई अन्तर्जातीय विवाह हुए हैं. मेरे छोटे भाई ने,कई कजिन्स ने अन्तर्जातीय विवाह किए हैं.और माता-पिता की अनुमति से. मेरे से उपरवाली पीढ़ी में भी ऐसे विवाह हुए हैं.
पर जब भी मैं कोई आलेख लिखती हूँ तो व्यापक तौर पर जो देखती हूँ,उसे ही लिखती हूँ. बदलाव तो आ ही रहें हैं पर प्रतिशत १० का भी नहीं है जबकि जबतक अस्सी प्रतिशत बदलाव ना आ जाए....मैं उसे बदलाव नहीं मानती.
आम नज़रिया है ........ पर आज तो प्रेम का व्यापार है, हाँ जहाँ सच्चाई है उसे निभाने का संकल्प आज के युवाओं में है
जवाब देंहटाएंआम नज़रिया है ........ पर आज तो प्रेम का व्यापार है, हाँ जहाँ सच्चाई है उसे निभाने का संकल्प आज के युवाओं में है
जवाब देंहटाएं@शोभना जी,
जवाब देंहटाएंसही है हर समय हर तरह के लोग होते हैं...पर इस घटना में तो पहले इतने आधुनिक माता-पिता के व्यवहार ने चौंकाया और फिर उस लड़के की माता-पिता के प्रति सम्मान ने मन द्रवित कर दिया.
आज काफ़ी हद तक तो मानसिकता बदली है मगर उस स्तर तक नही वरना आज जाति के और इज्जत के नाम पर यूँ कत्ल ना हो रहे होते………………हर पीढी के अपने अपने उसूल रहे हैं बस फ़र्क इतना है पहले रूढिवादिता बहुत ज्यादा थी इसलिये बच्चे अपने मनचाहा कदम कम ही उठा पाते थे मगर आज उसमे थोडा बदलाव आया है फिर भी अभी भी मानसिकता उस स्तर तक नही बदली है।
जवाब देंहटाएंपर आज तक, दुनिया की कोई लड़की, किसी माँ को, अपने बेटे के लायक लगी है?? :)
जवाब देंहटाएंभले ही मजाक में कही हो आपने ये बात लेकिन है एकदम सटीक :)
और मैं तो हमेशा से ही नयी पीड़ी की पक्षधर रही हूँ :)
मुझे एक पुरानी फिल्म का एक डायलोग याद आ रहा है :)
"आधा समय नजरे चुराने में लग जाता था ..आधा नजरें मिलाने में और जब तक बारी बोलने की आती बेचारे प्रेमी साहब मामा बनकर रह जाते :).
बहुत अच्छा लेख है रश्मि !
बहुत नहीं कह सकता विवाह के बारे में क्योंकि अनुभव सीमित है पर जीवन में हृदय तो इतना बड़ा हो कि कम से कम संबन्धियों तो तो समेट ले।
जवाब देंहटाएंइस बात से सहमत हूँ की आज के युवा ," जब प्यार किया तो डरना क्या" को सही मायने में चरितार्थ कर रहे है. इसके जो भी कारण हो चाहे उनकी अपने प्यार के प्रति प्रतिबद्धता या उनका आत्म विश्वास (चाहे वो उनके अपने पैरो पर खड़ा होना ) हो. सबसे बड़ी बात की वो अपने माता पिता को भी इस रिश्ते के लिए अनुमति लेने की पुरजोर कोशिश करते है .अच्छा सम सामयिक आलेख
जवाब देंहटाएंसमाज का आईना है आपका यह लेख, हरेक माँ को अपने बेटे को लिये पता नहीं कौन सी विशेषताओं या कितनी सुन्दर लड़की चाहिये होती है, भले ही अपने विशेषता न देखें। मैं माँ के खिलाफ़ नहीं बोल रहा हूँ, पर एक साधारण सी बात कह रहा हूँ, जो प्यार से तो बोल ही सकता हूँ।
जवाब देंहटाएंघर की बहु सुन्दर हो या न हो कोई फ़र्क नहीं पड़ता अपित उसके संस्कार और व्यवहार अच्छे होने चाहिये।
एलेक्स के पिता मान गये बहुत अच्छा लगा, अगर माता पिता का साथ न हो तो जिंदगी वीरान होती है।
प्रेम विवाह तो पहले भी होते थे ओर आज भी होते है... लेकिन कितने कामयाब होते है यह देखे?? प्रेम किसे कहते है इसे लोग पहले भी कम जानते थे ओर आज भी कम ही जानते है, किसी सुंदर लडकी/ लडके को देखा ओर प्यार हो गया.... फ़िर अपना घर बसाया... मां बाप जिन्होने पाल पोस कर बडा किया उन्हे कुडे के ढेर पर फ़ेक दिया या आश्राम मै छोड दिया, या उन्हे उस समय अकेले छोड दिया जब उन्हे हमारे प्यार ओर आसरे की जरुरत है.... तो प्यार कहा गया? सिर्फ़ पाने को ही प्यार कहते है...मै तो यही कहुंगा कि ना पहली पीढी खराब थी ना यह पीढी खराब है.... लेकिन प्यार दोनो को ही नही पता, बस फ़र्क इतना है पहले आंखॊ मै शर्म होती थी दुनिया का डर होता था.... ओर आज की पीढी.....
जवाब देंहटाएंरश्मि जी आप अपनी पोस्टों के माध्यम से हकीकत सामने ला रही हैं और हृदय परिवर्तन भी कर रही हैं। बहुत बेहतर लग रहा है आने वाला समय। मौसम चाहे बदतर ही होता जाएगा पर समाज बेहतर की ओर बढ़ेगा और उसमें हिन्दी ब्लॉगिंग की नि:संदेह सकारात्मक भूमिका रहेगी।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी , जहाँ मां बाप का फ़र्ज़ है कि वे बच्चों को जिंदगी की सारी ऊंच नीच सिखाएं , वहीँ उनको कट्टर भी नहीं होना चाहिए । आखिर ये उनकी अपनी जिंदगी है । जब मियां बीबी राज़ी तो क्या करेगा काजी ।
जवाब देंहटाएंतरह तरह के माँ बाप, और तरह तरह के बच्चे हर युग में मिलते हैं,राज जी से सहमत हूँ..
जवाब देंहटाएंआपके आलेख बहुत विचारोत्तेजक होते हैं जिन्हें पढ़ कर मन मस्तिष्क को बहुत देर के लिये खुराक सी मिल जाती है और वह काफी समय तक सक्रिय रहता है ! आपका अध्ययन विचारणीय है ! निश्चित रूप से आजकल के बच्चे पहली पीढ़ी की तुलना में अपनी इच्छाओं और भावनाओं के प्रति अधिक सतर्क और जागरूक हैं और आजकल के माता-पिता भी पहली पीढ़ी की तुलना में अधिक उदार और मानवीय होते जा रहे हैं ! कम से कम बड़े शहरों और शिक्षित समाज में तो ऐसा ही हो रहा है ! अपवाद हर जगह मिल जाते हैं ! आपने जिस परिवार का उल्लेख अपने आलेख में किया है उस परिवार के पिता को मैं अपवाद की श्रेणी में ही रखूँगी ! छोटे गाँवों में अभी भी जाति, धर्म और गोत्र के बहाने बच्चों की इच्छाओं का गला घोंटा जा रहा है ! माता-पिता की सहमति और आशीर्वाद के लिये बच्चों के आग्रह के पीछे उनके अच्छे संस्कार और शिक्षा दीक्षा का प्रतिबिम्ब ही झलकता है ! पहले शादियाँ कम उम्र में होती थीं इसलिए माता-पिता या अभिभावकों के निर्णय का अधिक महत्त्व होता था जो वे अपनी मर्जी से ही लेते थे ! अपने कम उम्र के बच्चों की उचित निर्णय ले सकने की क्षमता पर उन्हें कम ही भरोसा होता था ! लेकिन अब परिद्रश्य बदल चुका है ! अब शादी के समय तक बच्चे भी परिपक्व हो जाते हैं इसलिए माता-पिता भी अपने हाथ समेट लेते हैं ! बच्चे बगावत पर उतर जाएँ और परिवार से नाता ही तोड़ दें यह कौन चाहेगा ! और अब वैसे भी एकल परिवारों का चलन हो गया है इसलिए वे भी सोचते हैं कि जीवन तो बच्चों को अपने तरीके से अलग रह कर ही जीना है तो वे अपनी पसंद क्यों उन पर थोपें ! इसलिए वे भी उदारतापूर्वक बच्चों की पसंद को ही अपनी पसंद मान लेते हैं ! एक सार्थक और सारगर्भित पोस्ट के लिये बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएंदी, मैं आपकी इस बात से शत-प्रतिशत सहमत हूँ कि आज की युवा पीढ़ी अधिक ईमानदार है. मैंने अपने हॉस्टल में आपकी पोस्ट की कहानी जैसे प्रेम-विवाह भी देखे हैं और बहुत दिन तक अफेयर चलने की बाद भी माँ-बाप की मर्जी से ही ब्याह करने वाले श्रवण कुमार भी, पर इन श्रवण कुमारों ने भी अपनी प्रेमिकाओं को किसी मुगालते में नहीं रखा उन्हें पहले से ही मालूम था कि वे विवाह नहीं कर सकते तो ब्रेक-अप हो गया... सब कुछ साफ़-साफ़. प्रेम के लिए सब कुछ दांव पर लगा देना सबके बस की बात नहीं है. पर जो प्यार करता है, वह ऐसा कर लेता है.
जवाब देंहटाएंराज जी की बात पर मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि जो प्रेम-विवाह करने वाले अपने माँ-बाप का अपमान करते हैं, वो सच्चे अर्थों में प्रेमी हो ही नहीं सकते, कोई अपने जीवनसाथी से प्रेम करता है तो माता-पिता को बेसहारा कैसे छोड़ सकता है. सच्चे प्रेमी एलेक्स जैसे ही होते हैं, जो अपने माँ-पिता को भी नहीं छोड़ते और प्रेमिका को भी नहीं.
अपने ऑफिस के कैफेटेरिया में बैठे हुए किसी कलीग पर चर्चा चल रही थी कि फलांने ने अरेंजड मैरिज किया है...सुनते ही मेरे मुंह से निकला - ओह....तब तो काफी शरीफ है।
जवाब देंहटाएंबगल में बैठी एक महिला सहकर्मी जिन्होंने लव मैरिज किया था...मजाकिया खुन्नस में बोलीं...ऐसा कैसे बोल सकता है सतीश....ऐसा थोड़ी होता है कि जो लव मैरिज किया वो बदमाश और जो अरेंज्ड किया वो शरीफ....इट्स नॉट द क्रायटेरिया.....।
मैं तो हंस हंस कर पागल हो रहा था...साथ में जो बैठे थे वह भी महिला सहकर्मी के लव मैरिज के बारे में जानने के कारण हंसने लगे।
वह शाम काफी मस्ती में गुजरी...और तकाजा यह कि मुझे उनको समोसे खिलाने पड़े कि मजाक था यार....डोन्ट टेक इट सिरियस।
लेकिन मैं अब भी सोच रहा हूँ कि मजाक मजाक में निकला यह शब्द सही था या गलत।
आपने जिस परिवार का जिक्र किया वह वाकई काफी संजीदा लग रहा है अपने बेटे के प्रति। मान मनौवल...प्यार...पुचकार यह सब एक परिवार के आपस में गहरे जुड़ाव की निशानी है।
हाय! मैं अब नई पीढ़ी का नहीं रहा.... तीस पार हो गया हूँ.... सुबुक सुबुक.... आखिरी सवाल तो सोचनीय है....
जवाब देंहटाएंप्रेम-विवाह तो हमेशा से होते चले आये हैं, हां उनका प्रतिशत अब ज़्यादा बढा है. जबसे लड़कियों की शिक्षा का और कार्य का क्षेत्र बढा है, तब से वे अपने बारे में सोचने लगीं हैं, बल्कि अपनी ज़िन्दगी के फ़ैसले भी किसी हद तक खुद करने लगी हैं, ये अलग बात है कि इन सब का प्रतिशत बहुत कम है.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि वैदिक काल ज़्यादा आज़ाद खयाल था. पौराणिक कथाओं में देखें तो एक भी राजा सजातीय विवाह करता नहीं मिलेगा. स्वयंवर की प्रथा थी, जिसमें जातिभेद की गुंजाइश ही नहीं थी, और लड़कियों को वर चुनने का पूरा अधिकार था.
अभी भी अन्तर्जातीय विवाह का इतिहास बहुत पुराना है, मेरे खानदान में ही लगभग हर धर्म की बहुएं हैं.मेरे आस-पास भी तमाम अन्तर्जातीय जोड़े हैं.
हां आज का युवा वर्ग अपने रिश्तों में पारदर्शिता रखना चाहता है, रखता है.
आज के समय में एलेक्स के माता-पिता की सोच के लिये क्या कहूं? जब महानगर में ये हाल है तो छोटे शहरों के लोगों को क्या दोष दूं?
बढिया आलेख.
काश सभी यूथ इनकी तरह होते। कई बार तो देखने को मिलता है कि प्रेम विवाह के बाद दंपती अपने माता-पिता से बात तक करना पसंद नहीं करते। खैर, बदलाव की बयार थोड़ी तेज हुई और उम्मीद है कि ये बहती रहेगी। आपको जानकर हैरानी होगी कि पानीपत में 'लव आजकल' फिल्म जैसा भी एक जोड़ा है। हमने वैलेंटाइन डे पर एक स्टोरी की थी। हमें कुछ बुजुर्ग मिले, जिन्होंने पचास वर्ष पूर्व तक लव मैरिज की और उनकी कहानी सुनकर मजा ही आ गया।
जवाब देंहटाएंरोचक दास्तान मैम....मुस्कुरा रहा हूँ पढ़कर वो इसलिये कि इन तमाम घटनाओं में खुद को भी कहीं पाता। तेरह साल तो हमारा भी चला इश्क अपनी उत्तमार्ध से...घरवालों को तैयार होने में तकरीबन साढ़े पाँच साल लगे और अब सब खुश हैं।
जवाब देंहटाएंकितनी ही यादें ताजा हो गयीं आपकी इस पोस्ट से।
कई दिनों बाद आ पाया हूँ आपको पढ़ने। उस कहानी वाले ब्लौग को फौलो करना मुश्किल हो गया था मेरे लिये तो अब आपके इस वाले ब्लौग को जोड़ लिया है अपने ब्लौग-रोल में।
पर आज तक, दुनिया की कोई लड़की, किसी माँ को, अपने बेटे के लायक लगी है?? :) :
जवाब देंहटाएंमजाक में ही कही गयी यह बात बहुत हद तक सही है ...
आज की पीढ़ी ईमानदार है ...ठीक है ...बस उसकी प्रेम की परिभाषाएं अलग है तो इसमें उसका कुसूर थोड़े ना है ....विवाह प्रेम के कारण हो या अरेंज हो ...निभता प्रेम , विश्वास और एडजस्टमेंट के बल बूते पर ही हैं ...
हाँ ..इस पीढ़ी में रिश्तों को ढोते रहने जैसी मजबूरी नहीं है ...
@ सच्चे प्रेमी एलेक्स जैसे ही होते हैं, जो अपने माँ-पिता को भी नहीं छोड़ते और प्रेमिका को भी नहीं...
मुक्ति से सहमत ..!
हमेशा ही इन बिंदुओं पर इंसान अपने अपने नजरिए से उसको देखता दिखाता है .......और ये नजरिया .....निश्चित रूप से अपने आस पास घटता जीवन , आस पास के जुडे हुए लोग , और जिंदगी में मिले सीखे अनुभवों से प्रभावित भी जरूर होता है । प्रेम विवाह मैंने खुद किया हुआ है । अंतर्जातीय भी , अतंरराज्यीय भी , और अंतर्भाषीय भी .......मुश्किलें जो आई थीं जो न आतीं तो यादगार वो पल भी न हो पाते ।
जवाब देंहटाएंआपकी बहुत सी बातों से सहमत हूं .........मगर एक बात जो खटकती है मुझे वो ये कि आज की युवा पीढी ...प्रेम और आकर्षण वो भी दैहिक , में ज्यादा फ़र्क नहीं समझती ......या फ़िर कि शायद समझना ही नहीं चाहती ......अपना तो नुकसान करती ही है .......प्रेम की अवधारणा को भी कटघरे में खडा कर देती है .......
पोस्ट तो रोचक है ही टिप्पणियाँ पढ़- पढ़ भी मुस्कुरा रही हूँ .....!!
जवाब देंहटाएंआप काफी सशक्त मसले उठाने लगी हैं ....
और ये आपके लेकन की सफलता है .....
इस विषय पर काफी रोचक जवाब आ गए हैं ....अब मैं क्या कहूँ .....!?!
यहाँ प्रेम विवाह वालों को बोलने दिया जाये ...अपना तो अरेंज था .....हा...हा...हा....!!
पर आज तक, दुनिया की कोई लड़की, किसी माँ को, अपने बेटे के लायक लगी है?? :) :) लाख टके का सवाल पूछ लिया दी... अच्छा विषय चुना एक बार फिर... ऐसे ही एक बार मेरे एक दोस्त के दोस्त को एक लड़की से प्यार हो गया.. लड़का काफी पढ़ा-लिखा था और लड़की ना ही उसकी जाति की थी और ना ही अमीर घर से थी.. बस फिर क्या था..घर वाले नाराज़ हो गए और कहा कि उस लड़की की वजह से २५-३० लाख का दहेज़ नहीं छोड़ सकते हम..
जवाब देंहटाएंमगर फिर भी वो लड़का नहीं माना और उसने मर्जी के खिलाफ जाके शादी की.. किस्मत से जल्दी ही उसे स्टेट्स में जॉब मिल गई और कुछ ही सालों में उसने ३० लाख रुपये कमा कर अपने घर वालों को देते हुए कहा कि आपको पैसों की जरूरत थी.. मैंने पैसे कमा लिए हैं.. तब घर वालों को अपनी गलती का अहसास हुआ और अब सब खुश हैं.. सब ठीक है.
सच है आज हीर-राँझा और लैला-मजनू का सच्चा स्वरुप कई जगह दिखने लगा है..
got enexpected leave today because of the school being flooded,HAIL RAINS-read all your posts ,the other one has some problem ,its not downloading.
जवाब देंहटाएंenexpected=unexpected
जवाब देंहटाएंरश्मि, हर तरह के लोग हर युग में रहे हैं और रहेंगे। अन्तर केवल इतना है कि क्या उस युग का समाज उस अच्छे या गलत व्यवहार को स्वीकार करता है या नहीं। यदि आज के अधिकतर युवा प्रेम में धोखे, प्रेम तो किया किन्तु विवाह माता पिता के मन का करना है जैसे विचारों को सही नहीं मानते तो इससे भि युवाओं का व्यवहार प्रभावित होता है।
जवाब देंहटाएंमुझे ऐसे माता पिता से कोई सहानुभूति नहीं है। शायद वे अपने बेटे के योग्य हैं ही नहीं।
घुघूती बासूती
जहा तक मेरा व्यक्तिगत अनुभव है .... हर समय में हर तरह के लोग होते हैं .... आज भी हैं कल भी थे और आने वाले समय में भी रहेंगे क्योंकि आज भी संस्कार नाम की चीज़ कम से कम भारतीयों में तो रहती ही है ... चाहे मानने वाले कम हों या ज़्यादा कुछ बेसिक्स हमेशा रहेंगे ही ...
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट है आपकी ... सामाजिक व्यवस्था का विश्लेषण करती ......
आपकी ये पोस्ट तो मुझे न जाने क्या क्या सोचने समझने पे मजबूर कर दी...मेरे एक बहुत ही करीबी मित्र हैं, मेरे से सीनिअर हैं लेकिन एक बहुत ही अच्छे दोस्त...उनकी भी अभी ऐसी ही कुछ हालात चल रहे हैं..बहुत मजाकिया किस्म के व्यक्ति हैं लेकिन कभी कभी इस मामले में बहुत ज्यादा इमोसनल हो जाते हैं....
जवाब देंहटाएंएक और भी है, जिसका नाम मैं नहीं ले सकता...उसे आप जानती भी हैं शायद और आपने हाल ही में फेसबुक में एज-ए फ्रेंड एड किया है :) :),, लेकिन उसकी भी अभी बहुत सी..न खत्म होने वाली मजबूरियां चल रही हैं इसी मामले में...कभी आराम से बताऊंगा आपको
हाँ , लगती हैं न, जिसको वे अपने नजरिये से देख कर पसंद कर लें. लेकिन फिर अपनी ही पसंद के आचरण से शिकायतें होने लगती हैं.
जवाब देंहटाएंतुम्हारा अनुभव बिल्कुल सही है, आज की पीढ़ी इस मामले में अधिक दृढ है क्योंकि वे जिन्दगी को माँ बाप के अनुसार एक एक्सपेरिमेंट नहीं बनाने देना चाहते . जिसे कम से कम सारी बातों में अच्छे से जानते हों उसका जीवन साथी होना अधिक अच्छा मानते हैं और इसमें मैं बुरा नहीं समझती.
मेरी एक परिचित लड़की मुझसे उम्र में बहुत छोटी है. लेकिन मेरे से जुड़ी है. वह लन्दन में पिछले १४ साल से एक लड़के से जुड़ी है और वे दोनों अलग अलग शहरों में हैं. शादी इंडिया में आकर करेंगे लेकिन पहले एक शहर में आने का जुगाड़ तो कर लें. इतना लम्बा इन्तजार पूरी इमानदारी का द्योतक है.
"ज़िन्दगी की कड़ी धूप और कांच के शामियाने"
जवाब देंहटाएंपोस्ट का शीर्षक बहुत सुन्दर है| बाकी तो सभी कमेंट्स में सबने अपनी अपनी जगह सही ही कहा है| लोगों की सोच में कुछ अंतर तो आया ही है, पर फिर भी हमें लगता है की आज कल की पीढ़ी बहुत ज्यादा प्रैक्टिकल है| वो प्रेम सोच समझ कर करते हैं, और सारे रिश्ते भी उसी तरह निभाते हैं| बाकी प्रेम निभा या नहीं ये तो शादी के बाद ही पता चलता है|