पुरुषों के लिए, नौकरी मिलने से पति बनने तक के बीच के दिन बड़े सुनहरे होते हैं और फिर कभी लौट कर नहीं आते. सैकड़ों फोटो देखी जाती हैं,दावतें उडाई जाती हैं और चुन कर सुन्दर,स्मार्ट, पढ़ी लिखी लड़की शादी कर घर लाई जाती है .और बस उसके बाद , आँखों पर पड़ा रंगीन पर्दा हट जाता है और खुरदरी यथार्थ की जमीन नज़र आने लगती है.
सुबह होती है,पति अखबार और चाय की तलाश में कमरे से बाहर आता है,देखता है ,पत्नी सामने टेबल पर पैर फैलाए,अखबार में नज़रें गडाए बैठी है. कोई सप्लीमेंट उठा चाय का आग्रह करता है,अब या तो वह इंतज़ार करे या खुद बना ले क्यूंकि पत्नी तो आर्टिकल पूरा कर के ही उठेगी.और नज़रों के सामने घूम जाता है,माँ का चेहरा,जिनके कान पिताजी के उठने की आहट पर ही लगे होते थे.बच्चों को सुबह से ही डांट पड़नी शुरू हो जाती थी,अख़बार इधर उधर मत रख दो,पापा को चाहिए होगी. और पापा फ्रेश होकर आए नहीं कि चाय और अखबार एक मुस्कान के साथ हाज़िर .बस साथ में एक ताजे फूलों के गुलदस्ते की कमी रहती.वरना पूरा रेस्तरां सर्विस ही लगता था.
पापा ने अखबार पढ़ते पढ़ते ही आवाज़ लगाई,जरा शेव का सामान और पानी दे जाना .और माँ नौकर के हाथों,बच्चों के हाथों या फिर खुद ही लिए हाज़िर हो जातीं.यहाँ , एक तो बाथरूम में खड़े होकर शेव करो और अगर गलती से कह दिया,शेविंग क्रीम या आफ्टर शेव ख़त्म हो गया है तो तुरंत सुनने को मिल जायेगा, "अब इतना तो अपनी चीज़ों का ख़याल रख ही सकते हो" या "फ्रिज पर जो कागज़ चिपका है उसपर लिख दो, माँगा दूंगी" .अब पति बाथरूम से उसी अवस्था में निकल कर जाकर लिख आए या फिर वैसे ही काम चलाता रहें.
पापा नहा कर निकलते थे और उनकी कमीज़, पैंट, रूमाल निकाल कर रखी होती थी. आजकल अपनी अलग आलमारी होने से यह काम भी खुद ही करना होता है. एक दिन हलके हरे रंग की शर्ट में देख,कलीग मिस गुप्ता ने काम्प्लीमेंट दे दिया था,"यह रंग आपको बहुत सूट करता है " पति पूरा बाज़ार छान उस रंग की टीशर्ट खरीद कर लाता है. और खुश खुश अपना आलमीरा खोलता है...आज तो शनिवार है,टीशर्ट पहन सकता है और किसी बहाने मिस गुप्ता के टेबल के पास से गुजरने के मंसूबे भी बना रहा है.पर टीशर्ट तो मिल ही नहीं रही .पूछने पर पत्नी कहती है...'हाँ वो मैंने अपने लिए रख ली ....इतना फेमिनिन कलर तुम पर अच्छा नहीं लगेगा."
"पर वो तो तुम्हे काफी लूज़ होगा "...पति एक क्षीण आशा रखता है,टीशर्ट की आलमारी में पुनः वापसी की .पर सुनना को मिलता है.,
"'ना, अब शादी के बाद काफी पुट ऑन कर लिया है..." पति सोचता रह जाता है..उससे तो हर बार यही कहने की आशा रखी जाती है कि , 'इस ड्रेस में बड़ी स्लिम लग रही हो'. पर जब उसकी टीशर्ट झटकने की बारी आई तो खुद ही सच्चाई मान ली.
खाने के टेबल पर भी पापा की थाली,नज़र के सामने आ जाती है.इतनी सारी कटोरियाँ होती थीं. मसाले तेल से भरपूर,कितने स्वाद वाली.उसपर माँ , सैकड़ों काम छोड़ पंखा झले ना झलें (वो शायद दादी झलती होंगी) पास जरूर बैठी होती थीं. और थाली पर ध्यान जरूर रखती थीं,ये तो खाया ही नहीं, ये तो छूट ही गया, ये और चाहिए?. यहाँ, अगर पति कह दे,"कितना ब्लैंड है, नमक मिर्च का पता नहीं",पत्नी का रेडीमेड जबाब होता है, "इतनी सीडेन्ट्री लाइफ स्टाइल है.वाक पे जाते नहीं,एक्सरसाइज़ करते नहीं.कम से कम खाना तो परहेजी खाया करो."
यहाँ अगर पत्नी गृहणी है तो टेबल पर खाना लगा, घर के बचे कामो में उलझी होगी क्यूंकि इसके बाद का समय उसका अपना है, टी.वी. देखे,फ़ोन पर गप्पे मारे,शॉपिंग करे या फिर नेट-सर्फिंग करे .पर उस समय में कोई कटौती नहीं होगी.और अगर पत्नी नौकरी पर जाती है तब तो सौ हिदायतें और मिल जाएँगी.कैसरोल का ढक्कन बंद करना मत भूलना,सब्जी फ्रिज में रख देना, और दूध ठंढी हो जाए तो वो भी फ्रिज में रख देना और हाँ,पानी पीकर खाली बोतल वापस फ्रिज में मत रखना,भरी हुई बोतल ,उठाकर रख देना.और पति एक एक कर सारी हिदायतें याद करता रहता है.
शादी के पहले ऑफिस जाते समय, पत्नी को अलग अलग अंदाज़ से बाय करने के सपने देख रखे थे.पर वे सपने ही क्या जो पूरे हो जाएँ. गृहणी है तो उसके सौ काम राह देख रहें होंगे और अब ऑटोमेटिक दरवाजे ने दरवाजा बंद करने की जहमत से भी मुक्ति दे दी है कि कम से कम दरवाजा बंद करने के बहाने ही पत्नी,दरवाजे तक छोड़ने तो आए.
अगर नौकरी वाली हो तो पति भले ही बाय कहने की राह देखता रहें .पर पत्नी सैंडल,पर्स,मोबाइल,गौगल्स में ही उलझी होती है,किस हाथ में क्या क्या और कैसे संभाले. और उस पर से रोज "ओह फिर से लेट हो गयी, आज " की रट अलग.
पति का पुराना मित्र उसके शहर आया है.पति उसे गर्मजोशी से कहता है, "ऑफिस के बाद तुम्हे पिक करता हूँ और फिर सारा शहर घुमाता हूँ". मन ही मन खुश हो रहा है, मित्र कॉम्पिटिशन में निकल तुरंत अच्छी सरकारी नौकरी में लग गया तो क्या,उसके पास तो सरकारी जीप ही है,ना. उसे काफी संघर्ष करना पड़ा पर अब तो अपनी होंडा सिटी है, उसकी ए.सी. की जबरदस्त कूलिंग,उसका स्टीरियो,आरामदायक सीट सब दिखायेगा मित्र को. पर निकलते समय पत्नी कहती है, "आज कार छोड़ ऑटो या टैक्सी से चले जाओ,मुझे कार चाहिए, आज सहेलियों के साथ लंच है."
"तुम आज,ऑटो से चली जाओ मुझे अपने फ्रेंड को घुमाना है"
"कैसी बातें करते हो,ऑटो या टैक्सी में बालों का क्या हाल होता है,पता भी है. तुम ही आज चले जाओ टैक्सी या ऑटो से,तुम्हे क्या फर्क पड़ेगा, वैसे भी बाल ही कितने बचे है." और पति सब भूल, आईना में अपने बाल निहारने लगता है,"हेयर थेरेपी ले ही ली जाए क्या?". एक ख्याल पत्नी को एक दूसरी गाड़ी खरीद कर देने का भी होता है, नैनो ही सही.पर पार्किंग की विकराल समस्या मुहँ बाए खड़ी होती है. रोज बिल्डिंग वालों से झगडा मोल लेने से तो अच्छा है,मित्र को टैक्सी में ही घुमा दिया जाए.
ऑफिस जा कर भी चैन नहीं अगर दिन में तीन बार फोन नहीं किया तो उलाहने सुनने को मिलेंगे, सुबह से सर में दर्द था,एक बार हाल भी नहीं पूछा, या बेटे/बेटी का रिज़ल्ट नहीं पूछा, बेटे/बेटी के हॉकी/फूटबाल के मैच का हाल नहीं पूछा. यह टेलीफोन ईजाद ही क्यूँ हुआ.और ईजाद हुआ भी तो इतना आम क्यूँ हुआ? पिताजी को तो ये समस्याएं नहीं आयीं कभीं.
रात में पिता हमेशा रेडिओ पर समाचार सुनते या टी.वी. पर समाचार देखते हुए खाना खाते थे. पर यहाँ तो टेबल पर खाना लगा, टी.वी.पर फैशन शो की झलकी आने ही वाली है कि पत्नीश्री रिमोट का बटन दबा देती हैं और किसी उद्घोषक की तरह अनाउंस करती हैं. "डिनर टाइम-- नो टी.वी." अब पति अगर चुपचाप खाए तो उलाहना मिलेगा सिर्फ इसी समय तो सारे परिवारजन एक साथ बैठते हैं, दिनभर की गतिविधियों पर बातचीत होनी चाहिए,अगर बातों में उलझा रहें तो सुनेगा, इतनी मेहनत से "पनीर पसंदा" बनाया है और तुम्हारा ध्यान भी नहीं. पति का मन होता है, कहे, "भाग्यवान, किसने कहा इस एक्सपेरिमेंट के लिए? उसे तो पारंपरिक आलू गोभी ही पसंद है."और अब वह सोच सोच के बच्चों से सवाल पूछता रहता है,वरना चुप हुआ कि सुनने को मिलेगा, अमुक के पति ने डायमंड रिंग गिफ्ट किया एनिवर्सरी पे,अमुक सिंगापूर जा रहें हैं वेकेशन में ,अमुक ने इम्पोर्टेड कार ली है. और तुर्रा ये कि ये सब शिकायत नहीं बस सूचना है.
बच्चों के बर्थडे पार्टी में हाजिरी जरूरी है,वरना नकारा बाप होने के तमगे से नवाज़ दिया जायेगा. पर अपने घर की पार्टी में ही बिन बुलाये मेहमान सा डोलना पड़ता है,ना तो बच्चों के दोस्त , उसे पहचानते हैं. ना ही बच्चों को खिलाये जाने वाले तरह तरह के गेम्स की कोई जानकारी है उसे. पत्नी कैमरा थमा देती है. पर बाद में फोटो में भी हज़ार मीनमेख एक भी फोटो सही नहीं है. पर फोटो ली कैसे जाए,बच्चे स्थिर रहते हैं क्या, एक मिनट भी?.याद आता है,पापा के हाथों में कैमरा देखते ही वे सब कैसे फ्रीज़ हो जाते थे,सांस लेना नहीं भूलते थे यही क्या कम है.
पति सोचता है,चलो घर के अंदर ये हाल हैं,ऑफिस की पार्टी में तो उसकी इतनी सुन्दर, स्मार्ट,वाक्पटु बीवी को देख सब जल कर राख हो जाएंगे.पर पता चलता है, यह जलने की प्रक्रिया उसके हिस्से ही आती है. उसके सारे कलीग्स यहाँ तक कि बॉस भी उसकी पत्नी का अटेंशन पाने को आतुर हैं .वह तो बिलकुल साइड लाइन कर दिया गया है.
उसकी माँ आनेवाली है,खुश होता है,चलो अब थोड़ा माँ शायद बहू की आलोचना करे तो उसे संतुष्टि होगी. पर माँ पर तो आदर्श सास बनने का भूत सवार है. बहू की तारीफ़ करती नहीं अघाती. "बहू घर का,बच्चों का पूरा ख्याल रखती हैं यहाँ तक कि हमें भी गाड़ी में बिठा शहर घुमा आती है.बेटे को तो फुर्सत ही नहीं." जाते वक़्त पत्नी उन्हें डेढ़ हज़ार की साड़ी गिफ्ट कर के उसकी सारी उम्मीद ही खतम कर देती है मन होता है कहे, 'माँ मैं तीन हज़ार की साड़ी ला दूंगा,तुम एक बार पारंपरिक सास बन, बहू को सता कर तो देखो.'
और बेचारा पति उफ्फ्फ भी नहीं कर सकता. वरना उसके उदार विचारों वाले, स्त्री स्वतंत्रता के पक्षधर, नारी का सम्मान करने वाले इमेज को जबरदस्त ठेस पहुंचेगी
सोचता है, काश वह किसी गाँव की गोरी को शादी कर ले आता.जिसकी सारी दुनिया बस ,वह ही होता.उसे किसी के स्वामी बनने के अहम् को कुछ तो संतुष्टि मिलती .
रश्मि जी ,वैशाखनंदन प्रतियोगिता में आपकी ये रचना पढ़ी थी ,शत प्रतिशत सत्य है कई हिस्सों में तो मुझे ऐसा लगा आप मुझे आइना दिखा रही हो
जवाब देंहटाएंओह! यह तो बड़ा ही शानदार व्यंग लिखा है आपने.... अब इतना कुछ अनुभव करने के लिए .....पहले पति बनना पड़ेगा.... ऊँ...ऊँ....ऊँ...ऊँ.... पर यह तो है कि आप Master of all भी हैं.... मज़ा आ गया इस व्यंग को पढ़ कर.... अब शिकायत....
जवाब देंहटाएंशिकायत नंबर १.
शिकायत नंबर २.
शिकायत नंबर ३.
@महफूज़
जवाब देंहटाएंमहफूज़ मियाँ शिकायत तो बतलाते नहीं,...बस एक दो,तीन कहते हैं आप...क्या ख़ता हो गयी मुझसे भई...आप बताएं तब तो पता चलेगा
oo bahut sundar...main soch raha hun sanyaas hi le lun..:D
जवाब देंहटाएं@ क्यूँ भई दिलीप... ये पत्नियां सता तो नहीं रहीं...बच्चों का, घर का ख्याल रखती हैं...माँ की सेवा करती है ..कदम से कदम मिलाकर चलती है...और क्या चाहिए एक पति को..:)
जवाब देंहटाएंइतना खरा खरा कहना कहाँ से सीख गई..हा हा!!
जवाब देंहटाएंहै तो पति जी के फेवर की ही बातें सारी..इसलिए जिन्दाबाद!! :)
बेचारे आज कल के मासूम पति....
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ याद दिला दिया ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंपति बेचारा प्यार का मारा ...घर की खेती में व्यंग की फसल जोरदार है
जवाब देंहटाएंसच है की वक्त के साथ हर चीज़ बदलती है...मान्यताएं भी...आज इसे पढ़ कर पुरुष खुद को कितने बेचारे सा महसूस कर रहे होंगे....और ये भी कि काश वक्त का पहिया नहीं घूमता....
जवाब देंहटाएंकल और आज का अंतर बताते हुए बेहतरीन व्यंग लिखा है....बधाई
गज़ब !!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंव्यंग्य लिखन बहुत आसान नहीं होता रश्मि, लेकिन तुमने ये कर दिखाया है. बहुत बढिया व्यंग्य है. अब कुछ अन्य राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों पर भी व्यंग्य लिख डालो. लेकिन कहानी-लेखन प्रभावित न हो, ध्यान रखना.
जवाब देंहटाएंAre they really so tortured?Will have to think?Ab naari bechari se pai bechara ho gaya?
जवाब देंहटाएंओह दी, मैं आपकी यह रचना ताउ जी पर पढ़ चुकी हूँ. बड़ा मज़ा आया पढ़कर...इन पति लोगों के लिये कहने का मन होता है-
जवाब देंहटाएंये बेचारा पत्नी के काम का मारा
इसे चाहिये सिंकारा...
रचना पहले पढ़ चुकी थी वैशाखनन्दन में ...यहाँ पढ़ कर भी अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंये पति तो सचमुच सहानुभूति के काबिल हैं ....:):)
लेखन की हर विधा में तुम कामयाब हो ...कोई शक नहीं ...!!
रश्मिजी
जवाब देंहटाएंइतना डराओगी तो महफूज़ जैसे कुंवारे शादी करने की हिम्मत ही नही करेंगे.
हा हा हा
अरे हमारे पति जो इतने सालों से यातनाएं भुगत रहे हैहमारे साथ रह कर उसका थोडा बहुत अनुभव इन कुंवारों को भी लेने दीजिए भई.
यूँ डराईये मत इन्हें.
वैसे हमारे छोटे शहरों में बहुत बदलाव आज भी नही आया है.
हम भी बहुत कुछ वैसा और वो ही कर रहे हैं जो हमारी माँ या सास करती थी.इसमें न हमें अपनी तोहिंन महसूस होती.ना अफ़सोस या बराबरी के दर्जे वाली बात आती है.इसका अपना सुख है.
थोड़ी देर के लिए भी जब 'इनकी' आँखों से ओझल हो जाते हैं तो 'इनकी' बेचैनी,छ्टपटाह्ट देख कर एक अलग ही सुख मिलता है क्योंकि 'इन' लोगों की आदते बिगाड देने पर जो हमें हासिल होता या हो रहा है,उसे तो बस महसूस ही किया जा सकता है.
हा हा हा
पर अच्छा लिखा आपने
प्यार
इंदु
moon-uddhv.blogspot.com
रश्मि जी ऐसे सरकारी लोगों के मनोभाव को चित्रण बखूबी किया..बेहद उम्दा व्यंग....एक बार और पढ़ चुका हूँ पर दुबारा पढ़ना बढ़िया लगा...ऐसे ही लिखते रहिए...शुभकामनाएँ....सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंइस व्यंग को पहले पढ़ चुका हूँ जी, जहाँ पर आपने पहले प्रकाशित किया था, और उस टिप्पणी को भी जिस में आपने कहा था, मर्दों को तो अच्छा लगना ही था।
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी टिप्पणी बिल्कुल अच्छी नहीं लगी, वो लेख मर्दों को अच्छा नहीं लगा, जो मर्दों से आगे निकल एफ और एम को भूल गए उनको अच्छा लगा था।
पहले नहीं पढ़ पायी थी, लेकिन अब पढ़ लिया। बस थोड़ा लम्बा है। अभी कुछ और मेहनत की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंदोबारा पढ़ने में भी पहले जितना ही आनंद आया...
जवाब देंहटाएंमैंने तो पहले भी कहा था कि सभी पतियों को मिल कर इतनी सच्चाई बयां करने के लिए रश्मि बहना का सम्मान करना चाहिए...
जय हिंद...
pahali baar aapka blog dekha bada maja ayaa. kai purani yaden taza hui. saptahik hundustan aur Dharmyug. jara soche ye magzines main bachpan me padha karta tha. aapka vayag bahut badiya hai. bahut maza aya. sach me.
जवाब देंहटाएंअब जाना प्रतिभाएं कंहा छिपी हुई हैं .
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंsuperb !a
badhiya laga....
जवाब देंहटाएंपहले प्रयास के हिसाब से बहुत ही बढिया !!
जवाब देंहटाएंएक दम खरी सुना बैठी....
जवाब देंहटाएंHi...
जवाब देंहटाएंKahte hain "HUSBAND" wo shakhs hota hai jo hans hans kar apna band batwaye.. so agar pati mahashay ka band baze to use khushi hi hogi...
Ek joke yaad aa raha hai...
ek baar ek vyakti ki bivi ne shikhayat ki, " Suno ji aaj mera sar dard kar raha hai....jara daba do na"
Pati bola...," Jab gale main dard ho tab batana"...haha..
Aapka vyang padhkar ye to saaf hi ho gaya ki aaj ki patniyan patiyon ki manodasha se parichit to hain hi aisa na hota to Smt Rashmi Ravija ji etna sukshm vivaran kaise de paatin..haha
Mahfooz bhai se Kunware mitron ko jyada darne ki jarurat nahin hai... ve agar Thoda sa hoshiyari dikhayen to ek unke aage peechhe lagi rahne wali patni paa sakte hain... bas unhen matr karna ye hai ki ek "kala akshar bhais barabar" marka ladki dhundhen... aur roz subah aaram se akhbaar padhen ya net khol kar apni khas mitron se chat karen aur patni ji ko bata den ki office ka kaam kar raha hun...hahaha...aam ke aam guthliyon ke daam...
Vaise bhi kahte hain na Shadi wo laddoo hai jo khata hai wo bhi pachtata hai jo nahi khata wo bhi...to mera ye maanna hai ki kha ke hi pachhtaya jaaye...kya pata aap kismat ke dhani hon aur aapko pachhtana na pade...hahaha..
Sundar aalekh, mere hothon par muskaan aa gayi hai aapke aalekh ko padh kar...sahi maayanon main "Vyang" esi vidha ko to kahte hain...
Behatareen...
Deepak Shukla..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपने तो मुझे संशय में डाल दिया है di,Now should i Commited or Give up?
जवाब देंहटाएंबढ़िया!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत सुन्दर व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंजबरदस्त है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! आपको नियमित व्यंग्य लेखन करना चाहिये। खूब जमेगा।
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग्य , एकदम प्राकृतिक चित्रण वैवाहिक जीवन का , और बिचारे पतियों की दुर्दशा बयां करते हुए . ( मै इस दुर्दशा से वंचित हूँ ). लगता नहीं आपने पहली बार व्यंग्य लिखा है ,
जवाब देंहटाएंye tulnatmak adhyayan itna kamaal ka bana hai ki iski tulna kisi aur vyangya se ho hi nahin sakti.. lagta hai anubhav bol raha hai di.. :)
जवाब देंहटाएंयह व्यंग्य हमने पहले ही पढ़ लिया था । अब इस पोस्ट मे पढ़कर फिर अच्छा लगा । सबसे अच्छा लगा अपना नाम .. ( हेहेहे )
जवाब देंहटाएंबाकी तो सब अपना ही ज़िक्र लगता है ..।
शानदार और जानदार व्यंग्य.
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