यह पोस्ट कल डालने की सोची थी, कल हंसने हंसाने का दिन था. तो सोचा क्यूँ ना अपने प्रिय फिल्म कलाकारों वाली पोस्ट डाल दूँ,जो बरसों से बिना अप्रैल,या दिसंबर देखे हमें हंसाते आए हैं.पर कुछ दिन काफी व्यस्तता भरे थे और देर रात वक़्त मिला तो कहानी की अगली किस्त डालने में ही लगी रही...वहाँ भी जरा देर हुई कि शिकायतें शुरू हो जाती हैं...आज ही पढ़ लीजिये,भाषा जरा किताबी है,वो इसलिए क्यूंकि किसी अखबार के लिए लिखी गयी थी :)
हमारे देश में मनोरंजन का सबसे सुलभ या कहें तो एकमात्र साधन है,हिंदी फ़िल्में. हिंदी फिल्मों के माध्यम से हम थोड़ी देर को अपनी रोजमर्रा की परेशानी भूल एक अलग ही काल्पनिक दुनिया में पहुँच जाते हैं .और अगर यह काल्पनिक दुनिया हमें हंसी ख़ुशी का तोहफा दे जाए तो इस से बेहतर और क्या होगा? पर फिल्म के माध्यम से कोई सन्देश देना, सोचने पर मजबूर कर देना, रुलाना या डराना जितना आसान है किसी के चेहरे पर हंसी की रेखा लाना, उतना ही मुश्किल. लेकिन फिल्म देखने के बाद भी अक्सर वही दृश्य और डायलॉग याद रह जाते हैं और बार बार दुहराए जाते हैं,जिनमे हंसी का पुट छुपा हो.इसलिए हर निर्माता निर्देशक की कोशिश होती है कि वे अपनी फिल्म में कोई हास्य दृश्य और डायलॉग जरूर डालें.क्यूंकि ये फिल्म को और भी आकर्षक बना देते हैं और दर्शकों को टिकट खिड़की तक खींचने में सक्षम होते हैं.
कई बार पूरी फिल्म ही हास्य प्रधान होती है. इन फिल्मों में अभिनय कर उन दृश्यों को साकार करना जिस से आज की हैरान-परेशान जनता के चेहरे पर हंसी लाई जा सके ,कोई आसान काम नहीं. कुछ ऐसे प्रसिद्ध हास्य कलाकार हिंदी फिल्म जगत में अवतरित हुए हैं ,जिन्होंने इस कठिन कार्य को बखूबी अंजाम दिया है.उनके परदे पर आते ही दर्शकों की तनी हुई नसें ढीली पड़ जाती हैं और अनायास ही मुस्कान आ जाती है, चेहरे पर ,इस उम्मीद में कि अब हंसी का पिटारा बस खुलने ही वाला है. इनमे कुछ all time ग्रेट कलाकार हैं, 'किशोर कुमार' , 'महमूद', जॉनी वॉकर, परेश रावल, कदर खान आदि. इन कलाकारों ने दर्शकों को थोड़ी देर अपनी चिंता -परेशानी ताक पर रख खुल कर हंसने पर हमेशा मजबूर किया है.
(किशोर कुमार मेरे सर्वाधिक प्रिय हास्य कलाकारों में से हैं.उनकी कोई भी फिल्म टी.वी. पर आए मैं नहीं छोडती देखना.)
'किशोर कुमार अपनी बेहतरीन गायकी के लिए मशहूर हैं. पर वे एक अद्वितीय हास्य कलाकार भी थे. उनकी कॉमिक टाइमिंग लाजबाब थी.वे अपने बेमिसाल अभिनय , डायलॉग डिलीवरी और अपने हाव भाव से अपने किरदार में जान डाल देते थे. और दर्शक उनकी हरकतों पर बस लोट पोट होकर रह जाता था. उनकी कुछ अविस्मरनीय कॉमेडी फ़िल्में हैं, चलती का नाम गाड़ी, (१९५८), हाफ टिकट,(१९६२०, पड़ोसन (१९६८), बाप रे बाप (१९५५०, प्यार दीवाना (१९७३), हंगामा (१९७१), बढती का नाम दाढ़ी (१९७४)
महमूद कॉमेडी के सरताज कहे जा सकते हैं. उन्हें परदे पर देखते ही सबके चेहरे खिल उठते थे. क्या बच्चे क्या बूढे, महमूद हर दिल अजीज थे. वे अपने हर किरदार को कुछ इस तरह निभाते थे कि उस किरदार को दर्शक हाल से निकलने के बाद भी भूल नहीं पाते थे. फिल्मों का एक दौर था. जब महमूद का रोल निश्चित हुआ करता था और उनके लिए अलग से रोल निकाले जाते थे. महमूद भी हमेशा उस किरदार के साथ न्याय करते थे और दर्शकों के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ जाते थे. अपने तीस दशक के फिल्म कैरियर मे महमूद ने करीब ३०० फिल्मों में काम किया. पड़ोसन, कुंवारा बाप, बोम्बे टू गोवा, गरम मसाला, जौहर महमूद इन हांगकांग , साधू और शैतान, मैं सुन्दर हूँ, इत्यादि.
उन्होंने कुछ फिल्मे भी निर्देशित कीं जो काफी सफल रहीं.दुश्मन दुनिया का (१९९६), जनता हवलदार (१९७९), एक बाप छः बेटे (१९७८), कुंवारा बाप (१९७४)
(जॉनी वाकर भी मेरे फेवरेट हैं )
जॉनी वाकर के बोलने का स्टाईल उन्हें दूसरे हास्य कलाकारों से अलग कर देता था. उनके बोलने के स्टाईल की सबसे ज्यादा नक़ल की जाती थी. उनका असली नाम 'बदरुद्दीन जमालुद्दीन क़ाज़ी 'था.वे एक मिल वर्कर के बेटे थे. उनका नाम उस जमाने के प्रसिद्द स्कॉच व्हिस्की के नाम पर पड़ा और विडंबना ये कि वे शराब छूते भी नहीं थे. वे बहुत ही सरल इंसान थे. जब वे सफलता के शिखर पर थे तब भी उन्होंने विनम्रता का दामन नहीं छोड़ा. करीब ३०० फिल्मों में उन्होंने हास्य प्रधान भूमिका निभाईं . जिनमे प्रमुख गुरुदत्त द्वारा निर्मित और निर्देशित फिल्मे थें.
आज की फिल्मों के सर्वाधिक लोकप्रिय हास्य कलाकार हैं, परेश रावल. आज के दौर की फिल्मों में कॉमेडी उन्हीं से शुरू और उन्ही पे ख़तम हो जाती है. उनकी डायलौग डिलीवरी, उनके चेहरे के हाव भाव ,दर्शकों को उनका दीवाना बना देते हैं.'हेराफेरी' फिल्म के बाबू राव गणपत का किरदार हो या 'आँखें' के नेत्रहीन बैंक लूटने वाले का ,वे हमेशा दर्शकों को हंसाने में सफल रहें हैं.
कादर खान ने भी अपनी कॉमेडी से दर्शकों को बहुत हंसाया है. अपने डायलॉग बोलने के अंदाज़ और परफेक्ट टाइमिंग के लिए वे मशहूर रहें हैं. गोविंदा के साथ उनकी ट्यूनिंग बहुत ही सफल रही.दोनों ने एक साथ बहुत सारी हिट फिल्मे दी हैं. डेविड धवन की फिल्मों में सलमान खान और गोविन्द के पिता के रूप में निभाये किरदार दर्शकों को ज्यादा पसंद आए.
आजकल तो नायक का रोल करने वाले स्थापित कलाकार भी हास्य कलाकरों की लोकप्रियता देख. कॉमेडी रोल करने का लोभ नहीं संवरण कर पाते.गोविंदा, सलमान खान, अजय देवगन आजकल कई हास्य प्रधान फिल्मों की मुख्य भूमिका में नज़र आते हैं. फिर भी हास्य कलाकारों ने अपनी जगह बरकरार रखी है. उपर्यक्त लिखित प्रमुख कलाकरों के अलावा कुछ और मशहूर नाम हैं, भगवान दादा, उत्पल दत्त, असरानी, जौहर महमूद, जगदीप, देवेन वर्मा, शक्ति कपूर, अनुपम खेर, जॉनी लीवर, केश्टो मुखर्जी, जूनियर महमूद, रघुवीर यादव, लक्ष्मीकाँट बेर्डे, सतीश शाह, राजपाल आदि, ये कलाकार दर्शकों का अच्छा मनोरंजन करते आए हैं और कर रहें हैं.
वाह....इतने सारे हस्य्कलाकारों के बारे में इतनी सारी जानकारी एक साथ.....सभी अपने फन में माहिर ....परेश रावल के बारे में बिलकुल सटीक विचार....बहुत अच्छी जानकारी देती बढ़िया पोस्ट....बधाई
जवाब देंहटाएंरश्मि जी बहुत मेहनत करके ऐसे लेख तैयार होते हैं। कहानी उपन्यास से भी अधिक मेहनत होती है इनमें। एक आइडिया दे रहा हूं आप एक लेख ऐसे ब्लॉगरों पर भी लिखिएगा जिनके पोस्ट पढ़ के पूरी उम्मीद रहती है कि हंसी आएगी और उनके अभिनय (लेखन) के कुछ चुनिंदा टुकड़े लगाइयेगा और ऐसे टुकड़े भी जो व्यंग्य की तीखी मार करते हों, काम तो कठिन है पर आसान काम तो कोई भी कर सकता है। पर आप यह कार्य कर सकती हैं। उसे बाद में किसी दैनिक पत्र या पत्रिका में भी प्रकाशित कराया जा सकता है। आप लिखिए और ई मेल में कुछ लिंक आपको उन व्यंग्यकारों के ब्लॉगों के भेज दूंगा और खूब सारे तो आप जानती ही होंगी। समय सीमा कुछ नहीं है पर मानस में रखिएगा जिस दिन मन भी तैयार हो जाए उस दिन लिख डालिएगा।
जवाब देंहटाएंऔर यह लेख तो बेहतरीन बना है इसमें कोई संदेह नहीं है। इसे आप चवन्नीछाप पर भाई अजय ब्रह्मात्मज जी को भी भेज सकती हैं।
बहुत खूब. सच है, बहुत मेहनत से तैयार किया गया लेख है. तथ्यपरक आलेख हमेशा श्रमसाध्य ही होते हैं. किशोर कुमार मेरे भी पसंदीदा कलाकार हैं. कमाल का हास्य पैदा करते हैं वे. पहले तो फिल्मों में कॉमेडियन की बहुत खास जगह होती थी. बाद में ये रोल खुद हीरो-हीरोइन करने लगे.
जवाब देंहटाएंकादर खान की कॉमेडी मुझे भी कभी रास नहीं आई( शायद उनके फूहड़ हास्य या द्विअर्थी सम्वादों के कारण)
शुक्रिया अविनाश जी,.
जवाब देंहटाएंअब तो आपकी शिकायत दूर हो गयी होगी. सुबह ही आपने मेरे दूसरे ब्लॉग पर शिकायत की थी कि मूर्ख दिवस पर कुछ नहीं लिखा...लिख रखा था,बस पोस्ट नहीं कर पायी.
आइडिया तो आपका बहुत अच्छा है,अवश्य कोशिश करुँगी और सबसे पहले आपकी सारी पुरानी पोस्ट पढनी होंगी.श्रेष्ठ व्यंगकार तो आप भी हैं.
मैंने करीब-२ ये सभी फ़िल्में देखी है ,सभी एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएंलेकिन मुझे आज भी पड़ोसन का दृश्य जब भी याद आता है ,बरबस हँसी आ जाती है
किशोर कुमार हो या महमूद दोनों ने खूब ही हँसाया है
इनलोगों की कृति की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
इससे सिद्ध होता है की लेखिका का ध्यान समाज के सभी वर्गों पर रहता है
विभिन्न जानकारियों से अवगत करते रहने के लिए पुन: धन्यवाद
शुक्रिया,वंदना एवं संगीता जी,
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,इसका मतलब आपके फेवरेट कलाकार,परेश रावल हैं हम्म :)
वंदना ,मुझे तो महमूद भी ज्यादा पसंद नहीं और कादर खान तो बिलकुल नहीं. पर चोटी के कलाकार तो थे ही ये लोग और सर्वाधिक लोकप्रिय भी.
रश्मि जी,
जवाब देंहटाएंये सारे ही कलाकार अपनी-अपनी जगह पर एक से बढ़कर एक थे. आपने सबके बारे में एक जगह जानकारी देकर अच्छा काम किया है. मैं आइ.एस.जौहर का नाम ढूँढ़ रही थी. उन्होंने महमूद के साथ "जौहर महमूद इन हांगकांग" फ़िल्म में काम किया था और फ़िल्म निर्देशक भी थे. आपने शायद उनका नाम गलती से जौहर महमूद लिख दिया है. उनके आगे के दो बड़े-बड़े दाँत उन्हें एक अलग लुक देते थे. शागिर्द फ़िल्म में वो जॉय मुखर्जी के चाचा बने थे. किशोर जी मेरे भी फ़ेवरेट हैं. उनकी ’पड़ोस’ तो हमलोग हॉस्टल में जब भी सी.डी. पर फ़िल्में लगवाते थे, ज़रूर देखते थे. ये लोग अब हमें हँसाते हैं, हम जब चाहें.
हास्य प्रदान करने वाले सा कोई नहीं है. विषमताओ से भरे इस जीवन में कुछ क्षण हंसना और किसी को हँसा देना मायने रखता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख.
इन हास्य-कलाकारों की स्मृतियाँ ताजा कराने के लिए शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संकलन -मेरी पसंद परेश रावल!
जवाब देंहटाएंBahut hi badiya sankalan prastut kiya hai aapne.... Purane hasya kalakaron ki to baat hi niraali hai..
जवाब देंहटाएंBahut badhai
आप बहुत मेहनत से लिखती हैं ..हमेशा की तरह बढ़िया पोस्ट.
जवाब देंहटाएंहमें तो परेश रावल अच्छे लगते हैं। उनकी कोमेडी का जवाब नहीं। बढिया जानकारी।
जवाब देंहटाएंwaah ........aaj to ek hi baar mein sare hasya kalakaron se milwa diya aur yaadein taaza kar di.......bahut badhiya aalekh.
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, आप ने एक एक कलाकार के बारे इतना कुछ लिखा, उसे पढ कर उन की याद सचित्र लगी, बहुत मेहनत से आप ने यह सब जानकारियां इकट्ठी की होगी, आप की मेहनत को ह्म क्या नाम दे, बस एक धन्यवाद ही कह सकते है
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने बहुत ही सुंदर आलेख है ..हास्य कलाकारों का अपना एक अलग ही स्थान और महत्व होता था ..तब ...आज भी है
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
रश्मि दीदी ,
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया,इतने कलाकार सारे के सारे मझे हुए एक लेख में और ...और लेखनी दमदार तो लेख हिट होना हीं है ...आपने बिलकुल सही चित्रण किया है
कभी कभी मै ये सोंचता हूँ की हसने पर मजबूर कर देने वाले ये सितारे जिन्हें हमने मजाकिया मुद में हमेशा देखा है...उन्हें कभी दुःख होता था की नहीं ..इन्सान दुःख सुख दोनों पार्ट का आनंद लेता आया है मगर ये महान कलाकार अपनी अदाकारी चटपटी हरकतों से जाने कितनी खुशियाँ हमारे जीवन में भरते आये ...और इनका दुःख जाने कहाँ गायब हो जाता होगा ...इन सारे कलाकारों में मै तो वाकर साहब का दीवाना हूँ ...क्या गज़ब की आवाज़ थी....आपने ज़रूर ये गाना सुना होगा...जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी...अभी अभी यहीं था किधर गया जी...ये गाना फिल्म में शुरू होने से पहले वाकर साहब कुछ खोजते है सह कलाकार पूछती है की क्या खोज रहे हो तो वाकर साहब कहते है "जो भुला गया है " पुनः पूछा जाता है क्या भुला गया है तो वाकर साहब कहते है "जिसे ढूंढ़ रहा हूँ.. '"बात बहुत सहज है मगर लम्बे समय तक मुझे गुदगुदाती आई है ..ऐसे थे ये कलाकार....आपका धन्यवाद इनसे रूबरू करवाने के लिए.
BILKIL SAHI HE HASTE HASATE HAME BHI SAL BHAR RAHNA CHAHIYE
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत मेहनत से लिखा था ये लेख ...मगर जब तक मेरी परेशानी पर हंसोगी ...बस एक
जवाब देंहटाएंलाइन का कमेन्ट ही करुँगी ...अच्छा है ...:):
आपकी पोस्ट पढ़ते हुये बराबर मुस्कान घूमती रही चेहरे पर ...इन अनमोल हीरों को एक जगह लाने के लिए आपको हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंरश्मि जी बहुत सही और जीवन्त अन्दाज़ मे हास्य के इन पुरोधाओ को आपने याद किया. हास्य अभिनय निसन्देह बहुत मुश्किल अभिनय है. किसी बात पर आप खुद तो हन्स सकते हो पर औरो को हसाना ये बहुत सी बातो पर निभर करता है. किशोर दा को कौन पसन्द नही करता. और मेरी मानो तो किशोर की प्रतिभा उस तरह सामने आयी ही नही जिसका वो हकदार थे. गायन, कामेडी, निर्देशन सभी लाजवाब
जवाब देंहटाएंलगभग सभी नाम आपने ले लिये पर ओम पेअकाश को भूल गयी. पहले कभी इक्का दुक्का फ़िल्म मे हीरो हास्य करता है पर अब जब से हास्यास्पद फ़िल्मे बनने लगी है हीरो का अभिनय या फ़िज़ूल हरकते ही हास्य का कारण बन गयी है.
आप अपनी लेखनी को ऐसे ही अभिनव लेखो के लिये चलाती रहे.
मैं तो पहले पैरा में अटक गया। पोस्ट डालना - अच्छा विन्यास है। हम पोस्ट ठेलने का प्रयोग करते रहे। उस दिन पाइरेटेड म्यूजिक सीडी बनाने वाले ने कहा कि इसमें छन्नूलाल मिश्र का फलाना वाला गाना भी गेर दिया है।
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में भाषा का कस निकाल कर प्रयोग करना मजेदार लगता है। और यह कम मनोरंजन नहीं करता!
सुन्दर लेख, रोचक जानकारी ।
जवाब देंहटाएंबहुत खोज कर इतनी लाजवाब पोस्ट लिखी है आपने .. इतनी सारे हास्य कलाकार जिनको लोग भूलने भी लगी है .. शुक्रिया सबको याद कराने का ...
जवाब देंहटाएंbahut acchhi aur vistrit jaankari. shukriya.
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंSarthak Lekhan ka paryay agar koi dhundhega to use pahla naam Smt. Rashmi Ravija ka naam sarvpratham yaad aayega..
Rashmi ji ne ek baar fir, khojpurn, tathyaparak, vicharneeya aur gyanvardhak aalekh prastut kiya hai.. Aapke shodh aur prastuti kabile tareef hai.. Aur eske liye Aap badhai ki hakdar hain..
Kisi ko hansaana ek dushkar karya hai par aapki post main ullikhit har kalakar ne apne sahaj abhinay se darshkon ko barson se hasaaya hai..
Haan aalekh main mahila kalakaron ke naam chhut gaye shayad.. Mujge do naam yaad aate hain.. TUN TUN..(asli naam yaad nahi) aur Guddi Maruti..
Etne achhe aalekh par apni tippani ko en shabdön ke saath viram dena chahunga..
Surfing keeje Blogs ki.. Par rakhiye aankh gadaye..
Kya malum ki kab kahan, naya idea mil jaaye..
Haha.. ENJOY..
DEEPAK SHUKLA..
ये पूरी फिल्मी पोस्ट बहुत अच्छी है, अपने पुराने दिन याद आ गए , जब फिल्मी लेख लिखा करती थी.
जवाब देंहटाएंफिर उस ज़माने के लिहाज से यानि कि आज से ३५ साल पहले लोगों ने घर वालों से कहना शुरू कर दिया की ये क्या फिल्मी पत्रिकाओं में लिखती है. तब फिर छोड़ दिया था. आजतुम्हारी पोस्ट पढ़ कर फिर बहुत अच्छा लगा.
वाह रश्मि जी, बड़ी मेहनत का काम किया है.तभी तो इअतनी अच्छी पोस्ट लिख सकी हैं एक ही पोस्ट में इतनी सारी जानकारी अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.....!!
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत की है आपने इस पोस्ट पे ......!!
अविनाश जी की बात का समर्थन करती हूँ .....!!
यह लेख नहीं बल्कि पूरा शोध निबन्ध है । एक मुफ्त की सलाह दूँ ? आप फिल्म पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दीजिये । मज़ाक नही कर रहा हूँ भाई ( वैसे भी आज 1 0 अप्रेल है )
जवाब देंहटाएंrashmi ji deri se aane ke liye maafi , aapki ye post mujhe bahut acchi lagi hai ... aap bahut accha likti hai ... meri badhayi sweekar kijiye ..
जवाब देंहटाएंaabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
Aaj ke is tanaav bhre maahol men kisi ko hansaana kitna mushkil kaam hai...chahe ve presh raaval hon ya kishor kumar...Mahmood ho ya Tuntun... jaankaari dene ke liye apka abhaar... http://deendayalsharma.blogspot.com
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