सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

हिंदी लेखन में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग...कितना उचित??





सबसे पहले मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मैंने विषय के रूप में हिंदी बस इंटर तक ही पढ़ी है और मेरा सारा हिंदी ज्ञान ,पत्र पत्रिकाओं या हिंदी साहित्यिक पुस्तकों से ही अर्जित किया हुआ है,इसलिए अगर हिंदी में 'एम.ए.' या 'पी.एच.डी.' वालों को मेरी बात अच्छी ना लगे तो ,क्षमा याचना.

अक्सर मेरे लेखन में अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग पर र्लोग आपत्ति जताते हैं.एक बार किसी ने कमेन्ट में भी लिखा कि "कृपया अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग ना करें...यह आँखों में चुभता है." पर मेरा मानना है कि हिंदी को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द भी समाहित करने चाहिए.सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं अगर संभव हो तो स्पेनिश,फ्रेंच,इटैलियन शब्द भी शामिल करने चाहिए लेकिन हमारा साबका ज्यादातर अंग्रेजी भाषा से ही पड़ता है इसलिए जाने अनजाने हम इनका प्रयोग कर डालते हैं.

एक समस्या सम्प्रेषण की भी है, लिखते वक़्त अनायास ही कोई अंग्रेजी शब्द लिख जाते हैं,पर अगर हम यह बंदिश रखें कि नहीं सिर्फ हिंदी शब्द ही इस्तेमाल करने हैं.तो रुक कर हिंदी शब्द सोचने पड़ते हैं और फिर इस से लेखन प्रवाह में रुकावट आती है.और पाठकों को भी इसका अहसास होता है और फिर वह लेख पाठकों को बांधे रखने में अक्षम हो जाता है.जानबूझकर अगर अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया गया हो या विशिष्टता दिखाने के लिए किया गया हो तो लेख पढने से इसका भी अहसास हो जाता है.पर अगर सहज रूप में कुछ शब्द रचना का हिस्सा बन जाते हैं तो मेरे ख्याल से इसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए.अंग्रेजी भाषा का नहीं अंग्रेजियत का विरोध करना चाहिए.

कहते हैं,'साहित्य समाज का दर्पण होता है'.जिस तरह की भाषा आसपास बोली जाती है,वह लेखन में भी झलक जाती है.किसी गाँव कस्बों में रहने वालों का लेखन या महानगरों में रहने वालों का लेखन,कोई किसी से कमतर नहीं है.वहाँ रहने वालों के लेखन में एक आंचलिक खुशबू होती है और कई सारे आंचलिक शब्दों से पहचान हो जाती है वैसे ही महानगरों में रहने वालों के लेखन में कई भाषाओँ के शब्दों का सम्मिश्रण अपेक्षित है.अगर हम यह दबाव डालें कि सिर्फ हिंदी या संस्कृत शब्दों का ही प्रयोग कर सकते हैं.फिर लेखन में विविधता दृष्टिगत नहीं होगी.अलग अलग शैली का लेखन किसी भी भाषा को समृद्ध ही करता है.मैं कभी अल्मोड़ा,हल्द्वानी नहीं गयी ऐसे ही कभी 'गल्फ कंट्रीज' में भी नहीं गयी.पर मेरे कुछ फ्रेंड्स अक्सर धोखा खा जाते हैं क्यूंकि 'शिवानी' के उपन्यास पढ़ पढ़ कर कितने ही पहाड़ी शब्दों से परिचय हो गया.और मुस्लिम महिलाओं के ऊपर लिखी कई किताबों से 'खाड़ी देशों' के रहन सहन का भी पता चला.मेरी समझ से हिंदी से इतर शब्दों का उपयोग हमारे ज्ञान में वृद्धि ही करता है.

अंग्रेजी एक समृद्ध भाषा है और सबको पता है,उसमे अनेकानेक भाषाओँ का सम्मिश्रण है.हर वर्ष 'ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी' के नए संस्करण निकलते हैं और अखबारों में खबर छपती है,फलां,फलां हिंदी शब्द को शामिल किया गया है.और अंग्रेजी लेखक उन शब्दों का उपयोग करने में जरा भी देरी नहीं करते.एक अंग्रेजी उपन्यास में मैंने जगह जगह 'जोधपुरी' का उल्लेख पाया.जबकि लेखक Artisitic indian shoes लिख सकता था लेकिन उसने 'जोधपुरी' लिखना श्रेयस्कर समझा.ऐसे ना जाने कितने हिंदी शब्द ,अंग्रेजी लेखन में मिल जाते हैं.और पढ़कर बुरा नहीं लगता,ख़ुशी ही महसूस होती है.

ये कह सकते हैं हिंदी खुद ही इतनी समृद्ध है और नए शब्द चाहें तो संस्कृत से लिए जा सकते हैं लेकिन आम पाठक,उर्दू अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का इतना आदी हो चुका है कि संस्कृतनिष्ठ भाषा ही उसे अजनबी सी लगती है और उसके हिन्दी के प्रति ज्यादा रूचि जागने की जगह विमुख होने का खतरा ही ज्यादा बढ़ जाता है.

जो लोग बहुत सुगमता से क्लिष्ट हिंदी शब्दों का प्रयोग कर लेते हैं वे हिंदी के सच्चे साधक हैं पर जो लोग सिर्फ बोलचाल की भाषा में ही लिखते हैं,वे भी हिंदी को हानि नहीं पहुंचा रहें.

कई बार लेखन में कुछ नयापन लाने के लिए भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया जाता है.'शरद कोकस' जी मुंबई पर लिखी कविताओं की एक श्रृंखला लिख रहें हैं."सिटी पोएम्स'..अब "शहर कविता" लिखने में वह बात नहीं होती इसीलिए उन्होंने यह शीर्षक चुना.अंग्रेजी उपन्यासों में अक्सर पढने को मिलता है " He was still in his payjama " लेखक आसानी से लिख सकता है " He was still in his night suit " पर पायजामा लिखने में एक नवीनता झलकती है.और हर लेखक अपनी रचना को एक नयापन देना चाहता है.इसलिए इतर भाषा के शब्दों के प्रयोग से नहीं हिचकता.

कुछ अंग्रेजी शब्द हामारी भाषा में इतने रच बस गए हैं कि प्रतीत ही नहीं होता ये हिंदी भाषा के अभिन्न अंग नहीं हैं.'खुशदीप सहगल जी' ने मेरी 'कामवालियों' पर लिखी पोस्ट पढ़ कर कहा उन्हें, इनके लिए 'मददगार' शब्द उचित लगता है.हमें भी बाई,कामवाली ,महरिन, बुलाना अच्छा नहीं लगता.पर मददगार शब्द उतनी सुगमता से हमारी जुबान पर नहीं चढ़ पायेगा जितना 'हेल्पर' शब्द....गाँव का बच्चा बच्चा भी 'हेल्प' शब्द का अर्थ जानता है और सेना में तो ऑफिसर को जो व्यक्तिगत अर्दली दिए जाते हैं .उन्हें हेल्पर ही कहा जाता है.पर चूँकि 'हेल्पर'शब्द अंग्रेजी का है इसलिए कई लोगों को ग्राह्य नहीं होगा.अब 'ब्लॉग 'शब्द का उदाहरण ही ले लेँ.'चिटठा' या 'चिट्ठाकार' शब्द से सभी परिचित हैं पर उपयोग तो 'ब्लॉग' या 'ब्लॉगर' शब्द का ही करते हैं.

मेरे अहिन्दीभाषी फ्रेंड्स हमेशा पूछते हैं.बोलने वाली हिंदी और पढने वाली हिंदी में इतना फर्क क्यूँ है? जितना ही हम नए शब्दों को प्रश्रय देंगे. यह खाई मिटती जायेगी और हिंदी नए नए लोगों को और भी आकर्षित करेगी.

37 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि ! आपकी बात से काफी हद तक सहमत हूँ मैं...मेरे ख्याल से भी किसी भी भाषा की उन्नति के लिए उसका सर्वग्राह्य होना बहुत ही जरुरी है...और वक़्त के हिसाब से उसमें अन्य भाषाओँ के शब्द भी शामिल किये जाएँ तो वे उसकी प्रगति में बाधक नहीं बल्कि अनुकूल साबित होते हैं , इसका सबसे बड़ा उदाहरण अंग्रेजी भाषा है- जिसमें दुनिया के सभी भाषाओँ के शब्द शामिल हैं और लगातार किये जा रहे हैं...
    भाषा को शुद्ध रूप से लिखना ,बोलना गलत नहीं परन्तु उसे कठोर नियमो में बांधने से उसका हश्र संस्कृत भाषा जैसा हो जाता है ...जो ज्यदातर भाषाओँ की जननी और सर्वगुण संपन्न होने के वावजूद भी आज मृत समान है.
    हम भावी पीड़ी पर दोष लगाते हैं की वो हिंदी नहीं पढना चाहते...परन्तु वही पीड़ी हिंदी फिल्स बहुत चाव से देखती है ..क्यों?..क्योंकि वो भाषा उसे आसानी से समझ मैं आती है और रोचक लगती है....
    अत : मेरे विचार से तो लेखन को रोचक अवं ज्यादा भावपूर्ण बनाने के लिए यदि उसमें किसी भी अन्य भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो वो अनुचित तो कदापि नहीं है.
    सार्थक लेख..

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  2. हिन्दी के बारे में कभी पढ़ा था कि "तत्सम", "तद्भव", "देशज" और "विदेशी" भाषाओं के मेल ही हिन्दी बनी है। करीब २०० साल की अंग्रजों की गुलामी और आजादी के बाद यहाँ के शासकों का अपने "पूर्व - शासकों" के भाषा के प्रति "गजब - प्रेम" के कारण अंग्रेजी के बहुत से शब्द हैं जो अब लोक-भाषा के अंग बन चुके हैं।

    जैसे किसी रिक्शावाले को आप "सचिवालय" जाने कहें तो शायद न समझे - "सेक्रेटारियेट" बोलने की देरी - कि तुरत समझ जाता है।

    लोक भाषा अनिवार्य रूप से जुड़ गये शब्दों के प्रयोग में कम से कम मुझे कोई आपत्ति नहीं लगती। हिन्दी लिखने के क्रम में ऐसे शब्द आयेंगे ही - उसके प्रयोग भी होंगे। चिन्ता की कोई बात नहीं।


    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. प्रवाह बनाये रखने के लिए आम प्रचलन की भाषा का इस्तेमाल कतई आपत्तिजनक नहीं लगता. क्लिष्ट भाषा और शब्दों का इस्तेमाल जो लोग कर रहे हैं,उसका महत्व अपनी जगह है उनसे सीखना जहाँ एक ओर उचित है वहीं आम प्रचलन की भाषा में आम पाठकों की रुचि का ख्याल रखते हुए लिखना और उन्हें जोड़े रखना भी जरुरी है.

    विचारणीय आलेख.

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  4. हिंदी को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द भी समाहित करने चाहिए.सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं अगर संभव हो तो स्पेनिश,फ्रेंच,इटैलियन शब्द भी शामिल करने चाहिए.
    बस यही है बाटम लाईन!

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  5. रश्मि जी ,मेरी नजर में भाषा वो होनी चाहिए जो सरल एवं सहज प्रतीत हो ,
    मुश्किल शब्दों का प्रयोग तो हिंदी में किया ही जा सकता है ,लेकिन वह लेख सिर्फ
    विद्वानों के लिए ही रुचिकर हो सकता है , आपको यह भली-भांति ज्ञात है कि सुप्रसिद्ध
    लेखक मुंशी प्रेमचंद कितने सहज और गावों में बोली जाने वाली शब्दों का बहुतायात
    प्रयोग किया करते थे ,जो ज्यादा लोगों को पसंद आयी.
    मै तो सदा यह चाहता हूँ कि पढ़ते समय लगे कि सब मेरी आँखों के सामने
    घटित हो रही है ,तथा मुझे स्वयं कि भाषा में लगे कि किसी पात्र को मै जी रहा हूँ
    यह तभी संभव है जब भाषा साधारण बोल-चाल से मेल खाती हो ,
    मै तो यहाँ तक चाहता हूँ कि जिस जगह से प्रेरित होकर जो कहानी या लेख प्रस्तुत कि जाये
    वहां कि टूटी-फूटी जो भी शब्दें है उसका कुशलता से या यूँ कहें नि:संकोच प्रयोग होना उचित होगा .
    मै रश्मि जी के विचारों से सहमत हूँ ,साथ ही यह अपेक्षा रखता हूँ कि अपनी विद्वता दर्शाने का परित्याग कर
    हम जैसे साधारण व्यक्तियों के लिए सर्वदा सरल एवं मिश्रित शब्दों का ही प्रयोग करें जो पाठको के लिए सहजता प्रदान करें .

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  6. किसी गाने की लाइन है "प्यार बांटते चलो..."
    कुछ नहीं रखा purity की ज़िद में. पानी बहेगा नहीं तो सड़ जाएगा...बहने दो इसे...

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  7. किसी भी भाषा की समृद्धि दूसरी भाषा को अपनाने में है...
    यहाँ कनाडा में मेरे बच्चे हिंदी समाचार देखना ही नहीं चाहते.... क्योंकि वो उनको समझ में आता ही नहीं है...इतनी क्लिष्ट हिंदी होती है कि क्या कहें..जबकि समाचार जैसी महत्वपूर्ण चीज़ , सहज, ग्राह्य, और समझने वाली होने चाहिए....इतने दिन यहाँ समय बिताने के बाद मुझे भी कभी-कभी सोचना पड़ता है की ये क्या कह रहा है....सहजता इतनी होनी ही चाहिए कि उसे समझने की कोशिश जारी रहे ...यह न हो कि कोई फेंक कर ही चला जाए...
    आभार...

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  8. समय के साथ चलना ही ठीक है....अच्छी पोस्ट है।

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  9. आज यदि हिंदी को सर्वग्राह्य बनाना है तो हमें ऐसे शब्दों काप्रयोग करना ही होगा जो हम आम बोलचाल में करते हैं.और हिंदी तो ऐसी भाषा है जिसने बहुत सी भाषाओँ के शब्दों को अपने में समाहित किया हुआ है....लेखन में प्रवाह बनाये रखने के लिए ज़रूरत है की लेख सबको समझ आना चाहिए...शुद्ध हिंदी की अपनी गरिमा होती है उसको भी नकारा नहीं जा सकता......हिंदी लेखन में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग उचित या अनुचित से ज्यादा ज़रूरी ये बात है कि लोगों तक आपकी बात पहुंचे..अब आम बोलचाल में डाक्टर शब्द प्रयोग में आता है ना कि चिकित्सक जब कि ये शब्द क्लिष्ट नहीं है ..सब अस्पताल जाने कि बात कहते हैं या हॉस्पिटल शब्द का प्रयोग करते हैं गांव तक में यही शब्द प्रचालन में है चिकित्सालय कोई नहीं कहता...तो बात बस ये है कि आप अपनी बात किन शब्दों में सब तक पहुंचा सकते हैं..यदि हिंदी में लिखा जाये तो बहुत अच्छा है लेकिन अंग्रेजी शब्दों को मुद्दा नहीं बनाना चाहिए....भाषा के लिए सर्वप्रथम सरलता ज़रूरी है...
    लेकिन क्लिष्ट हिंदी पढने का भी अपना आनंद है...बहुत से नए शब्दों का ज्ञान होता है...

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  10. अरे, लोगों की बातों में पड़ने लगे तो फिर हो गया कुछ भी काम.. लोग तो ये भी कह सकते हैं की आपने यहाँ "अंग्रेजी" क्यों लिखा आपको आंग्ल लिखना चाहिए था.. ब्लॉग है जी, जो मन में आये लिखिए.. :)

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  11. बहुत ही बढिया बात कही है आपने. लेखन लेखक या रचना के परिवेश से अलग नही हो सकता.

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  12. आपके विचारों में अपने विचारों का विजन पाता हूं। इसलिए सदा बोल चाल के शब्‍द ही अपनाता हूं परंतु पढ़ता रहता हूं सदा, इसलिए मुझे तो लगते हैं सरल पर कई बार कठिन शब्‍द भी लिख जाता हूं। सभी भाषाओं और बोलियों और उनकी शब्‍द संपदा को अवश्‍य अपनाना चाहिये। मैं कह सकता हूं कि आपके विचारों से बुरी तरह सहमत हूं।
    एक बार और कहना चाहूंगा कि हम सब पर आवश्‍यकता के अनुसार नये नये शब्‍दों को भी सदा गढ़ते रहना चाहिये। इससे हमारी हिंदी भी और शब्‍द संसार (सभी भाषाओं) एनरिच होता है। इसे सदा रिच करते रहें कभी पूअर न होने दें। कितना अच्‍छा लगता है।

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  13. आपका यह विचार बिल्कुल सही है कि "हिंदी को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द भी समाहित करने चाहिए"। मैं यह भी समझता हूँ कि बोलचाल में प्रचलित अन्य भाषाओं के शब्दों को भी हिन्दी में समाहित करना चाहिये।

    किन्तु प्रायः यह देखकर दुःख होता है कि जिन विदेशी शब्दों के लिये पहले से ही हिन्दी में सरल शब्द हैं उनका प्रयोग करने के स्थान पर लोग अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करते हैं। कुछ समय पहले मैंने किसी ब्लोग में एक वाक्य पढ़ा था "वजह यह है कि युवा वर्ग उससे अपने आपको रिलेट नहीं कर पाता"। क्या इस वाक्य में अंग्रेजी शब्द 'रिलेट' प्रयोग करना जरूरी है? क्या इसे "कारण यह है कि युवा वर्ग उससे अपने आपको जोड़ नहीं पाता" कहें तो क्या पाठकों को समझने में कुछ मुश्किल होगा? मैंने तो यह भी देखा है कि हिन्दी में अनेक सरल शब्द होने के बावजूद उनके लिये अग्रेजी के भारी भरकम शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

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  14. आपकी यह प्रविष्टि खुद में ही सारी कहानी कह रही है । मैं इसे ही उदाहरण के तौर पर रखूँगा, और महसूस करूँगा, कि जो अच्छी हिन्दी लिख सकते हैं, दूसरी भाषाओं के शब्दों को भी आत्मीयता से स्थान देकर उन्हें हिन्दीमय बनाकर संप्रेषण की सारी कारगुजारी कर सकते हैं ।

    खूबसूरत प्रविष्टि ।

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  15. साहित्य समाज का दर्पण ही है ...इसलिए जो भाषा बोली जाती है ...लेखन में सहजता के लिए उसका प्रयोग किया जाता है .. हमारे जैसे अल्पज्ञानियों को मजबूरीवश आसान शब्दों का परायों करना ही पड़ता है ...
    मगर जहा तक साहित्य के उत्कृष्ट लेखन की बात है ...क्लिष्ट शब्दों का अपना आकर्षण है ....मेरा मानना है जब हम दूसरी भाषाओँ के शब्दार्थ देखने के लिए शब्दकोष का प्रयोग किया जा सकता है तो हिंदी के लिए क्यों नहीं ...सिर्फ पढने और लिखने में सहजता महसूस करने के लिए भाषा की शुद्धता और उसके विकास और प्रचार को तो दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए ...कई अंग्रेजी के शब्द ऐसे होते हैं जिनका सरल अनुवाद हिंदी में उपलब्ध होने के बावजूद लोग उनका उपयोग करने में कतराते हैं ....
    बहुत अच्छे विषय चुनती है आप ...!!

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  16. congrats for a well documented blog post !!!!!!

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  17. दरअसल ये बात अक्सर उठती रह्ती है तब तो जरूर ही जब हिंदी को प्रचारित/प्रसारित करने का प्रलाप किया जाता है । और स्वाभाविक रूप से जैसा कि आपने कहा कि लाख शोर मचाने के बावजूद लोगों को जो सुलभ लग रहा है वे उसे ही अपना रहे हैं । और जो ये समझते हैं कि हिंदी को पीछे ढकेलने की वजह अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा है वे भी गलत होते हैं । ....मगर किसी भी सूरत में जब कोई अंग्रेजी भाषा या और किसी भी भाषा का उदाहरण दे कर मुझसे ये कहता है कि हिंदी इस मुकाबले /इस मायने में कमजोर लगती है....तो वो मुझे ज्यादा बुरी लगती है
    अजय कुमार झा

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  18. मै हिन्दीभाषी हूँ लेकिन साहित्यिक हिंदी की क्लिष्ट भाषा आत्मसात करने में कठिनाई महसूस करता हूँ. अन्य भाषावो के शब्दों को गोद लेकर हिंदी को समृद्ध करने में कोई बुराई नहीं समझता. वैसे भी बोलचाल
    की हिंदी में , अरबी, फारसी, और संस्कृत के बहुत से शब्दों का प्रयोग होता है. मुझे जहा तक याद है, केशवदास को क्लिष्टभाषा प्रयोग करने के बाद भी हृदयहीन कवि कहा गया है.

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  19. मैं तो भोजपुरी भी अंगरेजी में बोलता हूँ :)

    Near = नजदीक यदि अंगरेजी में है तो भोजपुरी में भी नीयर मतलब 'नजदीक' है - नियरे बा :)

    Look = देख/ देखो
    e.g Look at him = उसकी तरफ देखो

    यदि अंगरेजी मे लुक का मतलब देखना है तो भोजपुरी मे भी लउक (देख) है।

    तनी ओकरा के लउका :)

    अब भोजपुरी वाले ठहरे ठेठ, सो वह तो लखनउ को भी घसड कर नखलौ कहते हैं। यह तो हुई मजाकिया बातें।

    अपने मन की कहूं तो ये सब बातें कि हिंदी में अंग्रेजी न हो, यह न हो आदि सब मेरे लिये तो कोई मायने नहीं रखती। सामने वाले को अपनी बात समझ आ जाय वही बहुत है। हां यथासंभव कोशिश करनी चाहिये की भाषा सरल औऱ शुद्ध बोली जाय।
    एकदम शुद्ध तो सोना भी नहीं पहना जाता, फिर यह तो भाषा है जो कदम कदम पर बदलाव की ओढनी लिये चलती है :)

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  20. रश्मि जी काफी अच्छा लेख है ,, लेखन की भाषा वही होनी चाहिए जो ग्राह हो मगर मै भाषा की शुद्धता का भी पछ धर हूँ--- अगर हम अपने लेखो में अंग्रेजी मिश्रित या अन्य भाषायो के शब्द मिलाते रहेगे तो हिंदी का अर्थ ही बदल जाएगा और आने बाली पीढ़ी असली हिंदी से नहीं उस मिश्रित हिंदी से ही जुडी महसूश करेगी और वही उसके लिए ग्राह होगी------------------,, जहा तक लेखन का सवाल है अगर उसका मतलब केवल अभिव्यक्ति है तो आप चाहे उसमे अंग्रेजी मिश्रित करे या जर्मन मुझे कोई एतराज नहीं ,, मगर अगर आप हिंदी साहित्य में ब्रधी करना चाहते है या साहित्यिक लेखन करना चाहते है तो भाषाकी शुद्धता का ध्यान तो रखना ही होगा ,,,,
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  21. rashmi ji

    itni der se aayi hun ki sab kuch kaha ja chuka hai jo main kehna chahti thi.........ab sirf itna hi kahungi ki aapne bahut hi umda post dali hai jo sabko sochne par majboor karegi ki kya uchit hai aur kya anuchit sirf hindi ke naam ka dhindhora pitne se kuch nhi hoga ........iske liye sabhi tarah ke prayas kiye jane chahiye jisse ye sarvgrahya ban sake phir koi nhi kahega ki hindi mushkil hai ya ise koi nhi janta bas thodi si pahal hamein bhi karni padegi ,apne nazariye ko badalna hi padega tabhi sarvmany hoga.

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  22. हिंदी को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द भी समाहित करने चाहिए.सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं अगर संभव हो तो स्पेनिश,फ्रेंच,इटैलियन शब्द भी शामिल करने चाहिए

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  23. उर्दू, फारसी,अरबी, तमिल. तेलुगु,बंगाली, असमी,आदि अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों को भी शामिल समझा जाए.

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  24. आज अंग्रेजी जो इतनी आगे है... उसके पीछे कारण ही यही है कि ....अंग्रेजी ने खुद को डेवलप करने के लिए .... दूसरों का सहारा लिया.... आज हम अंग्रेजी में विश्व की तकरीबन हर भाषा का समावेश देख सकते हैं.... अंग्रेजी ने कभी भी किसी भाषा को खराब नहीं कहा.... उसने सबको अपनाया... तो फिर हिंदी में ऐसा क्यूँ? क्या हम हिंदी का विकास नहीं चाहते? अगर हिंदी में दूसरी भाषा के शब्दों का समावेश होता है तो यह हिंदी के विकास के लिए अच्छा है.... और इसमें कोई खराबी नहीं है.....

    आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी.... देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ..... आजकल टाइम की बहुत शौर्टेज है....

    हाँ! कुलवंत हैप्पी का भी बहुत बहुत थैंक्स ....आज हैप्पी ने आपके लिए बहुत अच्छी पोस्ट डाली है.....

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  25. जितना ही हम नए शब्दों को प्रश्रय देंगे. यह खाई मिटती जायेगी और हिंदी नए नए लोगों को और भी आकर्षित करेगी.
    रश्मि ! आपकी बात से सहमत हूँ मैं

    हिन्दी लिखने के क्रम में ऐसे शब्द आयेंगे ही - उसके प्रयोग भी होंगे। चिन्ता की कोई बात नहीं।

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  26. Oho.... haar gaya main aapse.. kyonki lagbhag inhi sab vicharon ko leke ek post main bhi likhne ki soch raha tha ek hafte se.. lekin chalo jaankar achchha laga ki mere jaise tuchchh insaan ke vichaar aapse itne milte hain.. :)

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  27. एक एक शब्द से सहमत हूँ बस लेगी रहो धारा प्रवाह ऐसे ही लिखा जाता है। शुभकामनायें

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  28. रश्मि ,

    बहुत अच्छा लिखा है, तुम क्या समझती हो कि हिंदी मैं एम.ए. और Ph . D . कर लेने से लेखन भी अच्छा हो जाता है, नहीं लेखन अपनी अभिव्यक्ति है और उसको जिस भाषा में अच्छी तरह से व्यक्त किया जा सके वही अच्छी है. हाँ ये हो सकता है कि हिंदी के बीच में अंग्रेजी के शब्द न अच्छे लगते हों, लेकिन ये तो हमारी दैनिक जीवन कि जरूरत बन चुकी है. बल्कि हम अपने शोध कार्य में इंग्लिश को हिंदी और हिंदी ko इंग्लिश में कंप्यूटर के द्वारा अनुवाद के साथ एक नयी प्रष्ठभूमि पर कार्य कर रहे हैं और वह है हिंगलिश . जो कि आम लोगों कि भाषा बन चुकी है. इसलिए यह ग्राह्य है और इसमें कोई भी आपति कि बात नहीं है. जैसे हम कैंसर को अब कैंसर ही कहते हैं, इसका हिंदी भावानुवाद प्रयोग नहीं करते हैं. अब जब ऑक्सफोर्ड हमारे हिंदी शब्दों को स्वीकार कर इंग्लिशdictionary में शामिल कर रहा है तो हम तो बहुल संस्कृति और सभ्यता का आरम्भा से ही स्वागत करते आ रहे हैं.

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  29. Hi...

    Aapka lekh padha..

    Ek purani patrika "SARITA" ka ek samajik vigyapan ka smaran ho aaya jisme Hindi ko Gulamon/gawanron ki bhasha kahte hue Hindi ko mool rup se pryog karne ki salah di gayee thi.. parantu wo patrika swaym purn viram ki jagah full stop ka pryog kar rahi thi...(aap es patrika ka koi bhi ank utha kar dekh sakti hain)...

    Kisi bhi bhasha ka vikas aur use smrudhshali banane ke liye usme nirantar sudhaar avam anya bhashaon ke prachilit shabdon ko samahit karna awashyak hai...udaharan ke liye Angregi bhasha main jaisa aajkal ho raha hai usse Angreji aaj ek prachilit bhasha ka swaroop le rahi hai...

    Hindi ka ek gauravshali ateet raha hai aur ek sukhad bhavishya bhi hai, yadi aisa na hota to aaj hum sab ese paricharcha ka vishay na banate...

    Hindi meri matrbhasha hai par apni hi bhasha ke kuchh klisht shabdon ko main bhi kabhi kabhi samajhne main asmarth rahta hun...uska ek karan ye bhi ho sakta hai ki maine bhi Hindi ki shaikshnik shiksha matr dasvin kaksha tak hi ki hai...Es vishay main Snatak/parasnatak shiksha main nahi kar paya jiska afsos mujhe hamesha raha hai...

    Hindi lekhan main Angreji shabdon ka prayog meri drushti main vishay ko pathneeya aur sahaj banane ke liye avashya sahayak hota hai.. Lekhak ko agar lekh likhne main asahjta mahsoos ho to aap swyam samajh sakte hain ki use padhne wale ye kitna asahaj lagta hoga...
    Halanki baat chunki humari apni Bhasha Hindi Ki hai to yathasambhav eske shabdon ka proyog karna chahiye....(jaise aapke es lekh ke uprant anya longon ki tippaniyon se anya ahindi bhashiyon ko aaj ek shabd avashya seekhne ko mila hoga..."SARVGRAHYA" YA "GRAHYA")

    Uprokt anya logon ki tippaniayan bhi padhin... Bhasha jitni saral hogi utni hi lokpriya hogi...

    Apka lekh samyanukul hai.. Aksar ye shikayat ham shabko gahe bagahe kai logon se sunne ko milti hi hai, aapne ese charcha ka vishay bana kar ek uplabdhi hasil ki hai...Badhai..

    DEEPAK SHUKLA...

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  30. हिंदुस्तानी ज़ुबान की यही खासियत है कि दूसरी भाषाओं के प्रचलित शब्दों को भी सुगमता से खुद में समाहित कर लेती है...मैं इस पर भाषा की शुद्धता के सवाल को बेमानी मानता हूं...आखिर हम भी तो यही चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक हिंदी पहुंचे...अब अगर इस तरह हिंदी का प्रसार होता है तो बुराई ही क्या है...

    एक बात और हेल्पर वाकई मददगार से भी आसान शब्द है, रश्मि बहना को इसके लिए आभार

    जय हिंद...

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  31. यहाँ दो बातें कहना चाहूंगी मैं....
    भाषा भावों के सम्प्रेषण का माध्यम है,तो बोलते या लिखते समय ,यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जो बोला या लिखा गया वह बोधगम्य है या नहीं...इस लिहाज से आप जिससे बात कर रहे हों,उसकी समझ के हिसाब से शब्द चयन करनी चाहिए.जैसे जब किसी अनपढ़ से बात कर रहे हों तब और जब किसी बहुत पढ़े लिखे से बात कर रहे हों तब,दोनों समय आप समान भाषा या शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते..

    लेकिन जब लिखने की बात आती है,तो जहाँ तक हो सके भाषा की शुद्धता का हिसाब रखना ही चाहिए...क्योंकि बोली जाने वाली भाषा से लिखी जाने वाली भाषा का स्थायित्व कई गुना अधिक होता है...लिखी हुई बात संरक्षित रह जाती है,जो कि काल विशेष की दिशा दशा की पहचान बन जाती है..

    सो मेरे हिसाब से बोलते समय हम शब्द प्रयोग के लिए जितने स्वतंत्र होते हैं,लिखने के समय उतने नहीं हो सकते...लिखना बोलने से बहुत अधिक महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी का काम जो है...

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  32. वाह रश्मि जी, बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने. इतनी देर से पहुंचने पर शर्मिन्दा हूं. जब अपनी संस्कृति में हमने पाश्चात्य तौर तरीके, और रहन सहन को मिला लिया है ,तब भाषा के मुद्दे पर ही इतना विवाद क्यों? फिर हिन्दी भाषा में तो देशज शब्दों का चलन और मान्यता पता नहीं कब से है. सैकडों साल तमाम भाषाभाषियों की गुलामी झेल चुके हिन्दुस्तान की भाषा में तो पता नहीं कितनी भाषाओं के शब्द समाहित हो गये हैं. भाषा वही सुन्दर लगती है जो सहज और सरल हो. फिर हिन्दी इतनी कमज़ोर नहीं कि चन्द अंग्रेज़ी के शब्दों के प्रयोग मात्र से गिर पडे.
    बहुत सुन्दर और सार्थक लिखा है आपने.बधाई.

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  33. prashan dusri bahsha ke shbdon ke pryog ka nahi hai,apni bhsha ko samradh banane ka hai..aur aapne bahut sarthak likha hai !

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  34. अंग्रेजी भाषा का नहीं अंग्रेजियत का विरोध करना चाहिए.
    Bahut sahi kahana hai aapka.
    Jis bhasha ke shabdon ko sabhi log aasani se samjh sakte hai aur wah parbhavpurn ho uska prayog karne mein mere hisab se koi harz nahi...
    Likhte rahiye hamari Shubhkamnayen..
    Mahashivratri ki hardik shubhkamnayen.

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  35. सोच रहा था कुछ टिप्पणी करू परंतु अवधिया जी ने मेरे मन की बात पहले ही कह दी.

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