tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post5125405081155610256..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: हिंदी लेखन में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग...कितना उचित??rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger37125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-32421577942871335272010-02-15T08:22:35.888-08:002010-02-15T08:22:35.888-08:00सोच रहा था कुछ टिप्पणी करू परंतु अवधिया जी ने मेरे...सोच रहा था कुछ टिप्पणी करू परंतु अवधिया जी ने मेरे मन की बात पहले ही कह दी.अंकुर गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/11895780087694607022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-21183648986647089692010-02-12T05:35:59.907-08:002010-02-12T05:35:59.907-08:00अंग्रेजी भाषा का नहीं अंग्रेजियत का विरोध करना चाह...अंग्रेजी भाषा का नहीं अंग्रेजियत का विरोध करना चाहिए.<br />Bahut sahi kahana hai aapka.<br />Jis bhasha ke shabdon ko sabhi log aasani se samjh sakte hai aur wah parbhavpurn ho uska prayog karne mein mere hisab se koi harz nahi... <br />Likhte rahiye hamari Shubhkamnayen..<br />Mahashivratri ki hardik shubhkamnayen.कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-41787840410420075242010-02-12T04:23:42.246-08:002010-02-12T04:23:42.246-08:00prashan dusri bahsha ke shbdon ke pryog ka nahi ha...prashan dusri bahsha ke shbdon ke pryog ka nahi hai,apni bhsha ko samradh banane ka hai..aur aapne bahut sarthak likha hai !Parul kananihttps://www.blogger.com/profile/11695549705449812626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-25687894372518155562010-02-11T09:21:46.639-08:002010-02-11T09:21:46.639-08:00वाह रश्मि जी, बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने. इतनी ...वाह रश्मि जी, बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने. इतनी देर से पहुंचने पर शर्मिन्दा हूं. जब अपनी संस्कृति में हमने पाश्चात्य तौर तरीके, और रहन सहन को मिला लिया है ,तब भाषा के मुद्दे पर ही इतना विवाद क्यों? फिर हिन्दी भाषा में तो देशज शब्दों का चलन और मान्यता पता नहीं कब से है. सैकडों साल तमाम भाषाभाषियों की गुलामी झेल चुके हिन्दुस्तान की भाषा में तो पता नहीं कितनी भाषाओं के शब्द समाहित हो गये हैं. भाषा वही सुन्दर लगती है जो सहज और सरल हो. फिर हिन्दी इतनी कमज़ोर नहीं कि चन्द अंग्रेज़ी के शब्दों के प्रयोग मात्र से गिर पडे.<br />बहुत सुन्दर और सार्थक लिखा है आपने.बधाई.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5100844787389791282010-02-11T02:10:00.237-08:002010-02-11T02:10:00.237-08:00यहाँ दो बातें कहना चाहूंगी मैं....
भाषा भावों के ...यहाँ दो बातें कहना चाहूंगी मैं....<br />भाषा भावों के सम्प्रेषण का माध्यम है,तो बोलते या लिखते समय ,यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जो बोला या लिखा गया वह बोधगम्य है या नहीं...इस लिहाज से आप जिससे बात कर रहे हों,उसकी समझ के हिसाब से शब्द चयन करनी चाहिए.जैसे जब किसी अनपढ़ से बात कर रहे हों तब और जब किसी बहुत पढ़े लिखे से बात कर रहे हों तब,दोनों समय आप समान भाषा या शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते..<br /><br />लेकिन जब लिखने की बात आती है,तो जहाँ तक हो सके भाषा की शुद्धता का हिसाब रखना ही चाहिए...क्योंकि बोली जाने वाली भाषा से लिखी जाने वाली भाषा का स्थायित्व कई गुना अधिक होता है...लिखी हुई बात संरक्षित रह जाती है,जो कि काल विशेष की दिशा दशा की पहचान बन जाती है..<br /><br />सो मेरे हिसाब से बोलते समय हम शब्द प्रयोग के लिए जितने स्वतंत्र होते हैं,लिखने के समय उतने नहीं हो सकते...लिखना बोलने से बहुत अधिक महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी का काम जो है...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-6156695839657010522010-02-10T18:04:48.814-08:002010-02-10T18:04:48.814-08:00हिंदुस्तानी ज़ुबान की यही खासियत है कि दूसरी भाषाओ...हिंदुस्तानी ज़ुबान की यही खासियत है कि दूसरी भाषाओं के प्रचलित शब्दों को भी सुगमता से खुद में समाहित कर लेती है...मैं इस पर भाषा की शुद्धता के सवाल को बेमानी मानता हूं...आखिर हम भी तो यही चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक हिंदी पहुंचे...अब अगर इस तरह हिंदी का प्रसार होता है तो बुराई ही क्या है...<br /><br />एक बात और हेल्पर वाकई मददगार से भी आसान शब्द है, रश्मि बहना को इसके लिए आभार<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-72159175907572586902010-02-09T23:48:49.701-08:002010-02-09T23:48:49.701-08:00Hi...
Aapka lekh padha..
Ek purani patrika "...Hi...<br /><br />Aapka lekh padha..<br /><br />Ek purani patrika "SARITA" ka ek samajik vigyapan ka smaran ho aaya jisme Hindi ko Gulamon/gawanron ki bhasha kahte hue Hindi ko mool rup se pryog karne ki salah di gayee thi.. parantu wo patrika swaym purn viram ki jagah full stop ka pryog kar rahi thi...(aap es patrika ka koi bhi ank utha kar dekh sakti hain)...<br /><br />Kisi bhi bhasha ka vikas aur use smrudhshali banane ke liye usme nirantar sudhaar avam anya bhashaon ke prachilit shabdon ko samahit karna awashyak hai...udaharan ke liye Angregi bhasha main jaisa aajkal ho raha hai usse Angreji aaj ek prachilit bhasha ka swaroop le rahi hai...<br /><br />Hindi ka ek gauravshali ateet raha hai aur ek sukhad bhavishya bhi hai, yadi aisa na hota to aaj hum sab ese paricharcha ka vishay na banate...<br /><br />Hindi meri matrbhasha hai par apni hi bhasha ke kuchh klisht shabdon ko main bhi kabhi kabhi samajhne main asmarth rahta hun...uska ek karan ye bhi ho sakta hai ki maine bhi Hindi ki shaikshnik shiksha matr dasvin kaksha tak hi ki hai...Es vishay main Snatak/parasnatak shiksha main nahi kar paya jiska afsos mujhe hamesha raha hai...<br /><br />Hindi lekhan main Angreji shabdon ka prayog meri drushti main vishay ko pathneeya aur sahaj banane ke liye avashya sahayak hota hai.. Lekhak ko agar lekh likhne main asahjta mahsoos ho to aap swyam samajh sakte hain ki use padhne wale ye kitna asahaj lagta hoga...<br />Halanki baat chunki humari apni Bhasha Hindi Ki hai to yathasambhav eske shabdon ka proyog karna chahiye....(jaise aapke es lekh ke uprant anya longon ki tippaniyon se anya ahindi bhashiyon ko aaj ek shabd avashya seekhne ko mila hoga..."SARVGRAHYA" YA "GRAHYA")<br /><br />Uprokt anya logon ki tippaniayan bhi padhin... Bhasha jitni saral hogi utni hi lokpriya hogi...<br /><br />Apka lekh samyanukul hai.. Aksar ye shikayat ham shabko gahe bagahe kai logon se sunne ko milti hi hai, aapne ese charcha ka vishay bana kar ek uplabdhi hasil ki hai...Badhai..<br /><br />DEEPAK SHUKLA...Deepak Shuklahttps://www.blogger.com/profile/02437731202200979518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23717151490137952902010-02-09T21:34:10.550-08:002010-02-09T21:34:10.550-08:00रश्मि ,
बहुत अच्छा लिखा है,...रश्मि ,<br /><br /> बहुत अच्छा लिखा है, तुम क्या समझती हो कि हिंदी मैं एम.ए. और Ph . D . कर लेने से लेखन भी अच्छा हो जाता है, नहीं लेखन अपनी अभिव्यक्ति है और उसको जिस भाषा में अच्छी तरह से व्यक्त किया जा सके वही अच्छी है. हाँ ये हो सकता है कि हिंदी के बीच में अंग्रेजी के शब्द न अच्छे लगते हों, लेकिन ये तो हमारी दैनिक जीवन कि जरूरत बन चुकी है. बल्कि हम अपने शोध कार्य में इंग्लिश को हिंदी और हिंदी ko इंग्लिश में कंप्यूटर के द्वारा अनुवाद के साथ एक नयी प्रष्ठभूमि पर कार्य कर रहे हैं और वह है हिंगलिश . जो कि आम लोगों कि भाषा बन चुकी है. इसलिए यह ग्राह्य है और इसमें कोई भी आपति कि बात नहीं है. जैसे हम कैंसर को अब कैंसर ही कहते हैं, इसका हिंदी भावानुवाद प्रयोग नहीं करते हैं. अब जब ऑक्सफोर्ड हमारे हिंदी शब्दों को स्वीकार कर इंग्लिशdictionary में शामिल कर रहा है तो हम तो बहुल संस्कृति और सभ्यता का आरम्भा से ही स्वागत करते आ रहे हैं.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-35984796387403422552010-02-09T06:06:35.746-08:002010-02-09T06:06:35.746-08:00एक एक शब्द से सहमत हूँ बस लेगी रहो धारा प्रवाह ऐसे...एक एक शब्द से सहमत हूँ बस लेगी रहो धारा प्रवाह ऐसे ही लिखा जाता है। शुभकामनायेंनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-66780469565368308072010-02-09T05:48:35.575-08:002010-02-09T05:48:35.575-08:00Oho.... haar gaya main aapse.. kyonki lagbhag inhi...Oho.... haar gaya main aapse.. kyonki lagbhag inhi sab vicharon ko leke ek post main bhi likhne ki soch raha tha ek hafte se.. lekin chalo jaankar achchha laga ki mere jaise tuchchh insaan ke vichaar aapse itne milte hain.. :)दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-71969520787808566092010-02-09T03:03:12.353-08:002010-02-09T03:03:12.353-08:00जितना ही हम नए शब्दों को प्रश्रय देंगे. यह खाई मिट...जितना ही हम नए शब्दों को प्रश्रय देंगे. यह खाई मिटती जायेगी और हिंदी नए नए लोगों को और भी आकर्षित करेगी.<br />रश्मि ! आपकी बात से सहमत हूँ मैं<br /><br />हिन्दी लिखने के क्रम में ऐसे शब्द आयेंगे ही - उसके प्रयोग भी होंगे। चिन्ता की कोई बात नहीं।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-51212416738258544162010-02-09T03:01:45.447-08:002010-02-09T03:01:45.447-08:00आज अंग्रेजी जो इतनी आगे है... उसके पीछे कारण ही यह...आज अंग्रेजी जो इतनी आगे है... उसके पीछे कारण ही यही है कि ....अंग्रेजी ने खुद को डेवलप करने के लिए .... दूसरों का सहारा लिया.... आज हम अंग्रेजी में विश्व की तकरीबन हर भाषा का समावेश देख सकते हैं.... अंग्रेजी ने कभी भी किसी भाषा को खराब नहीं कहा.... उसने सबको अपनाया... तो फिर हिंदी में ऐसा क्यूँ? क्या हम हिंदी का विकास नहीं चाहते? अगर हिंदी में दूसरी भाषा के शब्दों का समावेश होता है तो यह हिंदी के विकास के लिए अच्छा है.... और इसमें कोई खराबी नहीं है..... <br /><br />आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी.... देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ..... आजकल टाइम की बहुत शौर्टेज है.... <br /><br />हाँ! कुलवंत हैप्पी का भी बहुत बहुत थैंक्स ....आज हैप्पी ने आपके लिए बहुत अच्छी पोस्ट डाली है.....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-44823015245027107312010-02-09T02:52:32.626-08:002010-02-09T02:52:32.626-08:00उर्दू, फारसी,अरबी, तमिल. तेलुगु,बंगाली, असमी,आदि अ...उर्दू, फारसी,अरबी, तमिल. तेलुगु,बंगाली, असमी,आदि अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों को भी शामिल समझा जाए.शेरघाटीhttps://www.blogger.com/profile/12003123660549394986noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-9524218323454717392010-02-09T02:50:32.888-08:002010-02-09T02:50:32.888-08:00हिंदी को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द भ...हिंदी को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द भी समाहित करने चाहिए.सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं अगर संभव हो तो स्पेनिश,फ्रेंच,इटैलियन शब्द भी शामिल करने चाहिएशेरघाटीhttps://www.blogger.com/profile/12003123660549394986noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-4504084044521010652010-02-09T02:33:44.898-08:002010-02-09T02:33:44.898-08:00rashmi ji
itni der se aayi hun ki sab kuch kaha j...rashmi ji<br /><br />itni der se aayi hun ki sab kuch kaha ja chuka hai jo main kehna chahti thi.........ab sirf itna hi kahungi ki aapne bahut hi umda post dali hai jo sabko sochne par majboor karegi ki kya uchit hai aur kya anuchit sirf hindi ke naam ka dhindhora pitne se kuch nhi hoga ........iske liye sabhi tarah ke prayas kiye jane chahiye jisse ye sarvgrahya ban sake phir koi nhi kahega ki hindi mushkil hai ya ise koi nhi janta bas thodi si pahal hamein bhi karni padegi ,apne nazariye ko badalna hi padega tabhi sarvmany hoga.vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5696076676774594912010-02-09T01:15:33.812-08:002010-02-09T01:15:33.812-08:00रश्मि जी काफी अच्छा लेख है ,, लेखन की भाषा वही होन...रश्मि जी काफी अच्छा लेख है ,, लेखन की भाषा वही होनी चाहिए जो ग्राह हो मगर मै भाषा की शुद्धता का भी पछ धर हूँ--- अगर हम अपने लेखो में अंग्रेजी मिश्रित या अन्य भाषायो के शब्द मिलाते रहेगे तो हिंदी का अर्थ ही बदल जाएगा और आने बाली पीढ़ी असली हिंदी से नहीं उस मिश्रित हिंदी से ही जुडी महसूश करेगी और वही उसके लिए ग्राह होगी------------------,, जहा तक लेखन का सवाल है अगर उसका मतलब केवल अभिव्यक्ति है तो आप चाहे उसमे अंग्रेजी मिश्रित करे या जर्मन मुझे कोई एतराज नहीं ,, मगर अगर आप हिंदी साहित्य में ब्रधी करना चाहते है या साहित्यिक लेखन करना चाहते है तो भाषाकी शुद्धता का ध्यान तो रखना ही होगा ,,,,<br />सादर<br />प्रवीण पथिक<br />9971969084प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी)https://www.blogger.com/profile/01003828983693551057noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-67108800856305493932010-02-08T23:24:20.103-08:002010-02-08T23:24:20.103-08:00मैं तो भोजपुरी भी अंगरेजी में बोलता हूँ :)
Near ...मैं तो भोजपुरी भी अंगरेजी में बोलता हूँ :)<br /><br /> Near = नजदीक यदि अंगरेजी में है तो भोजपुरी में भी नीयर मतलब 'नजदीक' है - नियरे बा :)<br /><br /> Look = देख/ देखो <br />e.g Look at him = उसकी तरफ देखो<br /> <br /> यदि अंगरेजी मे लुक का मतलब देखना है तो भोजपुरी मे भी लउक (देख) है। <br /><br /> तनी ओकरा के लउका :)<br /><br /> अब भोजपुरी वाले ठहरे ठेठ, सो वह तो लखनउ को भी घसड कर नखलौ कहते हैं। यह तो हुई मजाकिया बातें। <br /><br /> अपने मन की कहूं तो ये सब बातें कि हिंदी में अंग्रेजी न हो, यह न हो आदि सब मेरे लिये तो कोई मायने नहीं रखती। सामने वाले को अपनी बात समझ आ जाय वही बहुत है। हां यथासंभव कोशिश करनी चाहिये की भाषा सरल औऱ शुद्ध बोली जाय। <br /> एकदम शुद्ध तो सोना भी नहीं पहना जाता, फिर यह तो भाषा है जो कदम कदम पर बदलाव की ओढनी लिये चलती है :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-14227339528731824012010-02-08T22:25:21.897-08:002010-02-08T22:25:21.897-08:00मै हिन्दीभाषी हूँ लेकिन साहित्यिक हिंदी की क्लिष्ट...मै हिन्दीभाषी हूँ लेकिन साहित्यिक हिंदी की क्लिष्ट भाषा आत्मसात करने में कठिनाई महसूस करता हूँ. अन्य भाषावो के शब्दों को गोद लेकर हिंदी को समृद्ध करने में कोई बुराई नहीं समझता. वैसे भी बोलचाल<br />की हिंदी में , अरबी, फारसी, और संस्कृत के बहुत से शब्दों का प्रयोग होता है. मुझे जहा तक याद है, केशवदास को क्लिष्टभाषा प्रयोग करने के बाद भी हृदयहीन कवि कहा गया है.ashishhttps://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-86121552688741768372010-02-08T22:12:46.280-08:002010-02-08T22:12:46.280-08:00दरअसल ये बात अक्सर उठती रह्ती है तब तो जरूर ही जब ...<i> <b> दरअसल ये बात अक्सर उठती रह्ती है तब तो जरूर ही जब हिंदी को प्रचारित/प्रसारित करने का प्रलाप किया जाता है । और स्वाभाविक रूप से जैसा कि आपने कहा कि लाख शोर मचाने के बावजूद लोगों को जो सुलभ लग रहा है वे उसे ही अपना रहे हैं । और जो ये समझते हैं कि हिंदी को पीछे ढकेलने की वजह अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा है वे भी गलत होते हैं । ....मगर किसी भी सूरत में जब कोई अंग्रेजी भाषा या और किसी भी भाषा का उदाहरण दे कर मुझसे ये कहता है कि हिंदी इस मुकाबले /इस मायने में कमजोर लगती है....तो वो मुझे ज्यादा बुरी लगती है </b> </i><br /><a href="http://www.google.com/profiles/ajaykumarjha1973#about" rel="nofollow"> अजय कुमार झा </a>अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-18824292129752489362010-02-08T20:53:49.826-08:002010-02-08T20:53:49.826-08:00बेनिस्सिमो!बेनिस्सिमो!RC Mishrahttps://www.blogger.com/profile/06785139648164218509noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-2520000095334228732010-02-08T19:30:05.308-08:002010-02-08T19:30:05.308-08:00congrats for a well documented blog post !!!!!!congrats for a well documented blog post !!!!!!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-83539988692358038652010-02-08T19:25:11.266-08:002010-02-08T19:25:11.266-08:00साहित्य समाज का दर्पण ही है ...इसलिए जो भाषा बोली...साहित्य समाज का दर्पण ही है ...इसलिए जो भाषा बोली जाती है ...लेखन में सहजता के लिए उसका प्रयोग किया जाता है .. हमारे जैसे अल्पज्ञानियों को मजबूरीवश आसान शब्दों का परायों करना ही पड़ता है ...<br />मगर जहा तक साहित्य के उत्कृष्ट लेखन की बात है ...क्लिष्ट शब्दों का अपना आकर्षण है ....मेरा मानना है जब हम दूसरी भाषाओँ के शब्दार्थ देखने के लिए शब्दकोष का प्रयोग किया जा सकता है तो हिंदी के लिए क्यों नहीं ...सिर्फ पढने और लिखने में सहजता महसूस करने के लिए भाषा की शुद्धता और उसके विकास और प्रचार को तो दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए ...कई अंग्रेजी के शब्द ऐसे होते हैं जिनका सरल अनुवाद हिंदी में उपलब्ध होने के बावजूद लोग उनका उपयोग करने में कतराते हैं ....<br />बहुत अच्छे विषय चुनती है आप ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-73916238854802280792010-02-08T19:22:51.415-08:002010-02-08T19:22:51.415-08:00आपकी यह प्रविष्टि खुद में ही सारी कहानी कह रही है ...आपकी यह प्रविष्टि खुद में ही सारी कहानी कह रही है । मैं इसे ही उदाहरण के तौर पर रखूँगा, और महसूस करूँगा, कि जो अच्छी हिन्दी लिख सकते हैं, दूसरी भाषाओं के शब्दों को भी आत्मीयता से स्थान देकर उन्हें हिन्दीमय बनाकर संप्रेषण की सारी कारगुजारी कर सकते हैं । <br /><br />खूबसूरत प्रविष्टि ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-30446249077722019372010-02-08T19:06:05.919-08:002010-02-08T19:06:05.919-08:00आपका यह विचार बिल्कुल सही है कि "हिंदी को समृ...आपका यह विचार बिल्कुल सही है कि "हिंदी को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द भी समाहित करने चाहिए"। मैं यह भी समझता हूँ कि बोलचाल में प्रचलित अन्य भाषाओं के शब्दों को भी हिन्दी में समाहित करना चाहिये।<br /><br />किन्तु प्रायः यह देखकर दुःख होता है कि जिन विदेशी शब्दों के लिये पहले से ही हिन्दी में सरल शब्द हैं उनका प्रयोग करने के स्थान पर लोग अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करते हैं। कुछ समय पहले मैंने किसी ब्लोग में एक वाक्य पढ़ा था <b>"वजह यह है कि युवा वर्ग उससे अपने आपको रिलेट नहीं कर पाता"</b>। क्या इस वाक्य में अंग्रेजी शब्द 'रिलेट' प्रयोग करना जरूरी है? क्या इसे <b>"कारण यह है कि युवा वर्ग उससे अपने आपको जोड़ नहीं पाता"</b> कहें तो क्या पाठकों को समझने में कुछ मुश्किल होगा? मैंने तो यह भी देखा है कि हिन्दी में अनेक सरल शब्द होने के बावजूद उनके लिये अग्रेजी के भारी भरकम शब्दों का प्रयोग किया जाता है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23129060918951263662010-02-08T18:16:00.839-08:002010-02-08T18:16:00.839-08:00आपके विचारों में अपने विचारों का विजन पाता हूं। इस...आपके विचारों में अपने विचारों का विजन पाता हूं। इसलिए सदा बोल चाल के शब्द ही अपनाता हूं परंतु पढ़ता रहता हूं सदा, इसलिए मुझे तो लगते हैं सरल पर कई बार कठिन शब्द भी लिख जाता हूं। सभी भाषाओं और बोलियों और उनकी शब्द संपदा को अवश्य अपनाना चाहिये। मैं कह सकता हूं कि आपके विचारों से बुरी तरह सहमत हूं। <br />एक बार और कहना चाहूंगा कि हम सब पर आवश्यकता के अनुसार नये नये शब्दों को भी सदा गढ़ते रहना चाहिये। इससे हमारी हिंदी भी और शब्द संसार (सभी भाषाओं) एनरिच होता है। इसे सदा रिच करते रहें कभी पूअर न होने दें। कितना अच्छा लगता है।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.com