जब BIG FM 92.7 पर 'याद शहर' प्रोग्राम शुरू हुआ था तो एक ब्लॉगर मित्र ने इसके विषय में बताया था .और मझसे कहा था 'आप कहानियाँ लिखती हैं यहाँ कहानी भेज सकती हैं ' पर मैंने प्रोग्राम सुना भी नहीं था और मेरी कुछ समझ में नहीं आया . फिर ये प्रोग्राम काफी हिट हुआ . You Tube पर सारी प्रसारित कहानियाँ अपलोड की गयीं .
'अनु सिंह चौधरी' से मुलाक़ात हुई और उन्होंने भी इस प्रोग्राम की चर्चा की और मुझसे कहानियाँ भेजने के लिए कहा . तब मुझे ख्याल आया कि वे मित्र इसी प्रोग्राम के विषय में बात कर रहे थे . मेरी एक फ्रेंड भी ये प्रोग्राम बड़े शौक से सुनती है . कहानी और उसके बीच बीच में कहानी के कथ्य पर आधारित बजते दिलकश गाने उसे बहुत पसंद है. उसने भी बहुत उकसाया .
पर किसी भी प्रोग्राम में समय की सीमा होती है . कहानी की भी शब्द सीमा निर्धारित होती है. और मैं कितना लम्बा लिखती हूँ, ये मेरे पाठक जानते ही हैं . :) .शब्द सीमा में बंध कर लिखना ,मेरे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. और यहाँ कहानी को छः भागों में बांटना होता है, खैर खुद को डांट-डपट कर ये चुनौती भी स्वीकारी .कहानी भेज दी . उन्हें पसंद आयी
पर एक मुश्किल पार्ट और है .इस प्रोग्राम के लिए कहानियां लिखने वालों की एक बैठक होती है.जिसे मंडली कहते हैं. वहाँ लोग बारी बारी से अपनी कहानियाँ पढ़ते हैं और फिर बाक़ी सब उस कहानी पर अपनी बेबाक राय देते हैं. और मुझसे चाहे जितनी कहानियां लिखवा लें ,किसी कहानी के दोष गुण बतलाना ,उसपर अपने विचार देना मेरे लिए बहुत कठिन होता है. पर वहाँ, हर कहानी पर आपसे विचार पूछे ही जाते हैं...और बताना ही होता है :( वहाँ 'सुन्दर प्रस्तुति'...'ख़ूबसूरत लेखन ' कह कर बचा नहीं जा सकता :)
आकाशवाणी पर मैं भी कहानियाँ पढ़ती हूँ .पर वहाँ समय सीमा और भी कम है .और आकाशवाणी में मुझसे कभी कुछ कहा नहीं गया पर मैंने खुद के लिए ही अलिखित नियम बना लिये हैं वहाँ मैं सिर्फ सामाजिक सरोकार से जुड़ी कहानियां ही पढ़ती हूँ . पर यहाँ तो इस प्रोग्राम में कहा ही जाता है , '92.7. BIG FM पर आप सुन रहे हैं "प्यार के किस्से यादो का इडियट बॉक्स विद निलेश मिश्रा ' यानि अपनी कल्पना के घोड़े के लगाम को खुला छोड़ दीजिये पर हाँ, रोचक दौड़ होनी चाहिए ये तो पहली शर्त है ही.
दो कहानियों को अब तक निलेश जी अपनी आवाज़ दे चुके हैं. और उनकी आवाज़ ,उनके पढने के अंदाज के कितने फैन हैं यह तो फेसबुक पर याद शहर के पेज पर एक नज़र डाल कर ही पता चल जाता है. कहानी में जैसे जान आ जाती है और अपनी कहानी ही नयी सी लगने लगती है.
ब्लॉग पर अपना देखा -लिखा-पढ़ा-छापा सब कुछ सहेज कर रखने की आदत है.
सो ये दोनों लिंक भी सहेज लिए . (आगे भी डालती रहूंगी ) फेसबुक पर तो मित्रो ने सुन ही ली है (जिन्होंने सुनना चाहा होगा )
और उन ब्लॉग दोस्तों के लिए ख़ास, जो मेरी लम्बी कहानियाँ पढने से घबराते हैं....वे यहाँ सुन सकते हैं, यानि कि रश्मि रविजा की कहानी से बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन है :) :)
अनकहा सच
पहचान तो थी
यह तो सही है ...
जवाब देंहटाएं:)
आभार !
वाह, नीलेश जी ने आपकी कहानी को और रोचक और सुमधुर कर दिया। आपकी कहानी की लय बस मन की मगन से मिलती है।
जवाब देंहटाएंहां हमने तो पहले ही सुन ली है :) और हम बचना भी नहीं चाहते रश्मि रविजा की कहानी से :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और सुन्दर प्रस्तुती ,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह।
जवाब देंहटाएंबधाई। लेकिन आवाज़ भी आपकी होती तो और भी आनंद आता।
बहुत बढ़िया। दराल साहब की फरमाइश को मेरा भी वोट है
जवाब देंहटाएंठीक है ! :)
जवाब देंहटाएंबधाई !
बहुत बधाई रश्मि जी. कहानियां सुनने का मज़ा ही कुछ और है.
जवाब देंहटाएंबहुरत खूब ...
जवाब देंहटाएंबधाई ... कहानी पढ़ने और सुनने दोनों का अलग मज़ा है ...
>> यानि कि रश्मि रविजा की कहानी से बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन है.
जवाब देंहटाएंरश्मि रविजा की कहानी से बचना भी कौन चाहता है ? ;-)
आभार साझा करने का , कहानी की मौखिक प्रस्तुति अच्छी लगी
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