सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

क्यूँ मुश्किल है,पुरुष ब्लॉगर पर कोई फिल्म बनाना ??


(कभी-कभी कोई पोस्ट खुद को ..यूँ ही सी लगती है...पर लोगो को वही याद रह जाती है....आज मेरे ब्लॉग के एक बहुत पुराने पाठक (नॉन  ब्लॉगर ) ने  मेरी इस पोस्ट की चर्चा छेड़ दी...और इसकी इतनी बातें की कि मैं भी दुबारा पढ़ने पर मजबूर हो गयी....एक साल पहले पोस्ट की थी..कई लोगो के लिए यह पोस्ट नई सी ही होगी.)

(सभी पुरुष ब्लॉगर्स से क्षमायाचना सहित ,यह केवल एक निर्मल हास्य है )

जब मैंने जुली न जूलिया  फिल्म के बारे में लिखा जिसकी नायिका एक ब्लॉगर है...तो कुछ लोगो ने कहा.."किसी ऐसी फिल्म के बारे में भी बताएं जिसका नायक हिंदी ब्लॉगर    हो.

और मन यह सोचने पर मजबूर हो गया कि अगर सचमुच हिंदी पुरुष ब्लॉगर   पर फिल्म बनायी जाये तो??. और मेरी  कल्पना के घोड़े दौड़ने लगे.वैसे भी  अब दौड़ते घोड़ों की पहुँच बस कल्पना तक ही रह गयी है..रेसकोर्स में भी तो अच्छी नस्ल वाले घोड़े ही दौड़ते हैं. बाकी सब तो कल्पना में ही दौड़ कर शौक पूरा कर लेते हैं.

खैर  तो कल्पना कीजिये कि ये एक पुरुष ब्लोगर पर बनी फिल्म है. उसे ब्लॉग के बारे में अखबार से या अपने मित्र से पता चलता  है.घर आता  है,लैपटॉप खोलता है. ब्लॉग बना डालता है. पत्नी बच्चों को डांटती  है, पापा काम कर रहें हैं शोर मत करो. और पत्नी,बच्चे सब दूसरे कमरे में चले जाते हैं.

सुबह भी वे अपना लैपटॉप खोलते हैं. चाय वही आ जाती है. ब्रेकफास्ट वहीँ आ जाता है. तैयार होकर ऑफिस जाते हैं. वहाँ जब थोड़े खाली हों,अपना ब्लॉग खोल लिया.या किसी मीटिंग में गए, बोरिंग लगी तो मोबाईल पर कोई पोस्ट खोल ली.
ऑफिस से आए वही रूटीन, चाय, नाश्ता, खाना ,ब्लॉग्गिंग . लीजिये फिल्म ख़त्म. कोई रोचक मोड़, जद्दोजहद, परेशानी, उल्लास  टेंशन हुई?? नहीं. तो फिल्म ४ मिनट की तो नहीं बन सकती .हाँ  पुरुष ब्लोगर कहेंगे ,महिलाओं को क्या पता, हमें कितनी टेंशन होती है. ई.एम. आई. भरना है, इतने सारे बिल भरने हैं..हम यह सब सोचते रहते हैं अब इस सोच को तो परदे पर प्रदर्शित नहीं कर सकते ना. अब ब्लॉग्गिंग पर फिल्म है तो...हीरो हीरोइन को ड्रीम सिक्वेंस में बगीचे में ...बारिश में गाना गाते भी तो नहीं  दिखा सकते.

अब यही देखिये किसी हिंदी महिला ब्लॉगर पर बनी फिल्म. अगर वह गृहणी है तो बच्चों से ,देवर से या पति से उसे ब्लॉग के बारे में पता चलता है. बड़े उत्साह से जाती है. जरा हेल्प करो,ना...अभी रुको जरा ये काम कर लूँ.उनके लिए ,अच्छी चीज़ें खाने को बनाती है, किसी चीज़ की जरूरत हो दौड़ कर ला देती है. सौ  अहसान जताते हुए वे ब्लॉग बनाने में हेल्प करते हैं.

सुबह उठती है..जल्दी जल्दी बच्चों को स्कूल भेजती है. बीच में थोड़ा सा वक़्त मिले तो कंप्यूटर खोल लेती है. एक पोस्ट पढ़ी नहीं कि पतिदेव की आवाज़ आ गयी..चाय देना..चाय देकर आती है..कमेन्ट टाइप करती है कि कामवाली आ जाती है. उसे थोड़ा निर्देश दिया ..फिर आकर कमेन्ट पोस्ट कर, कंप्यूटर बंद कर दिया.

फिर घर के काम निबटा, पति को ऑफिस भेज .कम्प्यूटर पर आ जाती है. जबकि घर के सौ काम राह देख रहें होते हैं. कपड़े समेटना है,डस्टिंग करनी है.वगैरह  वगैरह. एक पोस्ट लिखी जा रही है. और एक नज़र घड़ी पर है. बच्चों को बस स्टॉप से लाना है. पोस्ट पूरा किया पब्लिश बटन प्रेस किया.और कंप्यूटर बंद. बच्चों को खाना खिलाया, उनकी बातें सुनी. बाकी काम समेटे . बच्चों को पढने बिठाया फिर वापस कंप्यूटर. अपनी पोस्ट पे कमेन्ट पढ़े...दूसरों की पोस्ट पढ़ी, कमेन्ट किए. बैकग्राउंड में बच्चों का झगडा, उनका बार बार कुछ पूछना क्यूंकि ममी कम्प्युटर पर है. बच्चों को तो undivided attention चाहिए. जानबूझकर पूछेंगे, जरा ये बता दो..जरा ये समझा दो. रोना धोना सब. बच्चे अगर थोड़े बड़े हैं  तो उन्हें भी उसी वक़्त कम्प्यूटर चाहिए क्यूंकि स्कूल का कोई प्रोजेक्ट तैयार करना है. इनके बीच ब्लॉग्गिंग चलती रहती है.

  जो महिला ब्लोग्गेर्स ऑफिस जाती हैं. वे तो घर से ऑनलाइन  होने की सोच भी नहीं पातीं. कभी कभार कोई विशेष पोस्ट लिखनी हो तो देर रात गए जागना होता है. पर दूसरे दिन सुबह उठकर ऑफिस जाने के पहले काम ख़त्म करने की चिंता हर घड़ी माथे पर सवार. ऑफिस से भी पुरुषों की तरह वे बेख़ौफ़ ऑनलाइन नहीं हो पातीं. कलीग्स या जूनियर थोड़ी कटाक्ष  कर ही जाते हैं. बीच में लंच टाइम में एक पोस्ट लिख कर डाल  दी. और उस पर मिले कमेन्ट दूसरे दिन लंच टाईम पर पढ़े .दूसरों की पोस्ट पढने और कमेन्ट करने का वक़्त तो मिल ही नहीं पाता.

इन सबके साथ, रिश्तेदारों का आगमन, बच्चों की बीमारी, डॉक्टर का चक्कर, बच्चों का बर्थडे ,तीज-त्योहार, घर मे पार्टियों की तैयारी, रिश्तेदारों के सैकड़ों फोन और उलाहने, जब से ब्लॉग्गिंग शुरू किया है,तुम्हारे पास तो टाइम ही नहीं.

तो इसलिए बनायी जाती है  महिला ब्लोगरों पर कोई फिल्म. क्यूंकि इतने सारे रंग हैं उनके जीवन में.जिन्हें फ़िल्मी कैनवास पर बखूबी उतरा जा सकता है.

35 टिप्‍पणियां:

  1. अरे हाँ यह तो एक साल पुरानी वाली पोस्ट है मगर बढ़िया है हाँ अभी अभी हम फेसबुक पर एक टिप्पणी लिख आये हैं .. यहाँ पेस्ट कर दें ?
    "गज़ब .. क्या आयडिया है .. आठ दस ब्लॉग पढवा दो ( अलग अलग कैरेक्टर्स से । कुछ वीडियो , यू ट्यूब , कुछ बहस , एकाध बेनामी से मारपीट , धर्म पर बहस , दंगे की पृष्ठभूमि..फिर बच्चों द्वारा कुछ चोरी छिपे ..(?) ... और किसी स्त्री से किसी पुरुष की बेहतरीन पिटाई ... तीन घंटे की मसाला आर्ट फिल्म तैयार । भाई है कोई फिल्मी दुनिया का ड्यरेक्टर .... कोई है ? ( सॉरी अभी पोस्ट नहीं पढ़ी है )"

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  2. बहुत ही रोचक पोस्ट |काश आपकी कल्पना सच हो |

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  3. खूब दौड़े है आपकी कल्पना के घोड़े ...... फिल्म तो ज़बरदस्त बन पड़ेगी......

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  4. ब्‍लाग से (का अर्थ ब्‍लाग-से यानि ब्‍लाग की तरह भी हो सकता है)उलझते, ब्‍लाग से सुलझते मुद्दे.

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  5. महिला ब्लागर ,पुरुष ब्लॉगर तो ठीक है पर फिल्म बनाना ज़रुरी है क्या :)

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  6. बढ़िया है...
    हम पुरुषों को कोई सीरियसली क्यों नहीं लेता है? :-(

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  7. ऊ हीरो की कास्टिंग फाइनल हुई की नहीं?


    डेढ़ साल से जयादा समय से पूछते पूछते हम हांफ रहे हैं !

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  8. कमाल है पुरुषों को ४ मिनट में निपटा दिया आपने तो ... पर आइडिया कमाल का है ...

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  9. इस पोस्ट में कल्पना से ज्यादा तो सच्चाई लगी ..

    एक महिला ब्लोगर का सच

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  10. :-)

    बहुत रोचक..और एकदम सटीक बात..
    मेरी तो आपबीती ही समझिए...

    शुभकामनाएँ..
    happy blogging..

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  11. इसके उत्तर में किसी पुरुष ब्लोगर को एक पोस्ट लिखाकर बताना होगा कि उनपर एक थ्रिल्लिंग फिल्म बनाई जा सकती है!!
    मज़ेदार पोस्ट!!

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  12. तो इसलिए बनायी जाती है महिला ब्लोगरों पर कोई फिल्म. क्यूंकि इतने सारे रंग हैं उनके जीवन में.जिन्हें फ़िल्मी कैनवास पर बखूबी उतरा जा सकता है…………सही कहा।

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  13. बहुत बढ़िया रहेगा ब्लोगर्स पर फिल्म बनाना .
    क्यों न एक ही फिल्म में नायक और नायिका दोनों ब्लोगर हों !
    फिर तो कमाल/ धमाल हो जायेगा .

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  14. वाह!! बात तो पूरी तरह सत्य है।
    चलो पुरूष ब्लॉगर पर कोई चार मिनट का विज्ञापन तो बन सकता है। उसी से चला लेंगे!!

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  15. @अली जी,
    फिल्म क्यूँ नहीं बनानी चाहिए....कहीं सच्चाई ना पता चल जाए...:):)

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  16. @प्रवीण जी,
    आप फिल्म प्रोड्यूस करने का जिम्मा लें तो हीरो आपको ही बना दें:)
    निर्देशन मैं संभाल लूंगी...

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  17. @सलिल जी....
    फेसबुक पर आपने शुरुआत कर ही दी है....लिख डालिए .

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  18. ठीक है हम बिल्कुले तैयार बैठे ....ई तो अब तक आप समझ ही गयी ही होंगी?


    बस्स केवल फाइनेंसर आपके जिम्मे हो जाए गर?

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  19. फिल्म जो भी बने..... हीरो तो मैं ही रहूँगा.... आख़िर स्मार्टनेस, हैंडसमनेस और बॉडी भी कोई चीज़ होती है...

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  20. @महफूज़,

    एक बार पोस्ट भी पढ़ लेते...
    ब्लॉगर के लिए हैण्डसम और स्मार्ट होना कोई शर्त नहीं है.

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  21. सत्य वचन रश्मि जी ! वहाँ बैठे हुए मेरी तस्वीर कैसे उतार दी आपने ! रिकॉर्ड है आज तक चार लाइनें बिना बाधा के एक बार में टाइप नहीं कर पाई हूँ ! बहुत बढ़िया और सटीक आलेख है ! चलती हूँ अभी भी बाहर दूसरे कमरे से बच्चों की अर्जेंट कॉल आ रही है ! स्कूल जाने का वक्त है ! जाना ही होगा ! बहुत बढ़िया !

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  22. सबसे पहले तो ये पोस्ट पढ़ा फिर सलिल चचा का कमेन्ट और उसी में से पता चला की फेसबुक पर भी कुछ न कुछ लिखा गया है और फिर वहाँ से पता लगा की शायद उन्होंने भी कुछ लिखा होगा...चचा के ब्लॉग पर गया, तो वहाँ भी मस्त पोस्ट दिखी..
    उसे पढ़ने के बाद यहाँ कमेन्ट कर रहा हूँ...

    क्या खतरनाक जवाब दिया है चचा ने...आखिर चचा किसके हैं :P

    बाई द वे आपने ये डिस्क्लेमार डाल के अच्छा किया "सभी पुरुष ब्लॉगर्स से क्षमायाचना सहित ,यह केवल एक निर्मल हास्य है"
    :D

    बाई द वे अगर कोई फिल्म का प्लान फाईनल हो तो उसमे मुझे भी एक रोल चाहिए...अरे हम भी ब्लॉगर हैं :P

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  23. हम्मम ये भी सही कहा आपने ! कामकाजी महिलाओं के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं।

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  24. ब्लागर चाहे महिला हो या मुश्किल दोनों के हिस्से अपने उनकी/उनके ताने और बच्चों की जिम्मेदारियों की उठापटक के साथ -साथ काम के मोर्चे पर बलागिंग के साथ -साथ दोहरा तनाव , ये सब एक मसालेदार फिल्म के लिए काफी है .....अच्छा व्यंग.

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  25. कल्‍पना करते रहिए और कोई सच में ही फिल्‍म बना जाएगा। देर से आ पायी हूं, बाहर गयी हुई थी।

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