पिछली पोस्ट में मर्लिन मनरो के बचपन के संघर्ष और एक सफल मॉडल बन जाने के बाद बिना किसी समझौते के फिल्मो में रोल पाने के लिए संघर्ष का जिक्र था...अब आगे की जीवन -कथा.
मर्लिन मनरो की कार चोरी हो गयी थी...उनके कमरे का किराया ...दुकानों का बहुत सारा उधार बाकी था और उनके पास ना तो काम था और ना पैसे. वे अपने एक मित्र फोटोग्राफर के पास मदद के लिए गयीं. उसने एक कैलेण्डर के लिए उनके कुछ चित्र खींचे...और उस चित्र की वजह से उन्हें एक फिल्म भी मिली पर वह भी सफल नहीं हुई. पर इसके बाद एक फिल्म में मर्लिन को छोटा सा रोल मिला...और वह फिल्म बहुत सफल रही. पर उसका निर्देशक उनसे बिलकुल खुश नहीं था..और फिल्म-निर्माण के दौरान वह चाहता था मर्लिन किसी तरह यह फिल्म छोड़ दे..क्यूंकि मर्लिन संवाद अदायगी और अभिनय अपने तरीके से करना चाहती थीं. उस फिल्म में मर्लिन का नाम तक नहीं था...लेकिन हर समीक्षक ने उस सुनहरे बालों वाली अनाम लड़की के काम की चर्चा जरूर की. मर्लिन जब एक स्टार बन गयीं तब जब भी वो फिल्म प्रदर्शित की जाती 'मर्लिन मनरो' का नाम सबसे पहले और बड़े अक्षरों में लिखा होता.
प्रसिद्ध निर्देशक जोसेफ मेकिविक्स ने मर्लिन को अपने फिल्म "ऑल अबाउट ईव " में नायिका का रोल दिया और यह फिल्म बहुत ही सफल हुई...मर्लिन एक स्टार बन चुकी थीं. उन्हें फिल्मे मिल रही थीं..और सुपर हिट भी हो रही थीं. उनकी मुलाकात बेस बॉल के मशहूर खिलाड़ी 'जो डीमैगियो ' से हुई....मुहब्बत परवान चढ़ी और जल्द ही दोनों ने शादी कर ली. उन्होंने अपने हनीमून के लिए जापान जैसा शांत देश चुना. पर अब मर्लिन विश्व की सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्द अभिनेत्री बन चुकी थीं. जापान में सड़क के दोनों तरफ खड़े लाखो जापानियों ने 'मारि..लिन'....'मारि..लिन'..के नारों से गगन गुंजा दिए.उन्होंने जापान जैसे शान्ति पसंद कम बोलने वालों को भी मुखर बना दिया. सिर्फ चार सालों में उनकी जिंदगी इतनी बदल गयी थी.
मर्लिन मनरो एवं जो डीमैगियो ' |
परन्तु स्वामित्व,पौरुष और अधिकार भरा 'जो डीमैगियो ' ..मर्लिन के इस प्रसिद्धि से असम्पृक्त था. उसे मर्लिन के अभिनेत्री रूप में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह मर्लिन को एक सीधी-साधी गृहणी के रूप में देखना चाहता था. गृह-कलह शुरू हो गए ..मर्लिन नींद की गोलियाँ लेने लगीं. और १९५४ में वे दोनों अलग हो गए. बिजली की सी यह खबर पूरे हॉलीवुड में फ़ैल गयी और उसके घर के सामने पत्रकारों का जमघट लग गया. उसकी हर हंसी..हर रुदन..हर पीड़ा..हर मित्रता और हर कलह...करोड़ों लोगों की चर्चा का विषय बन जाते. करोड़ों आँखें..करोड़ों जबानें, लाखों कलमें और हज़ारो पत्रिकाएं उसके जीवन के हर क्षण को आम जनता के चौराहे की चर्चा का विषय बना देतीं. पर इन करोड़ों भीड़ से जुड़ी वह बिलकुल अकेली थी.
'जो डीमैगियो ' से अलग होने के बाद अपने अभिनय-कला को और मांजने के लिए ऊन्होने ,प्रख्यात रुसी कथा-लेखक और नाटककार 'चेखव' के भतीजे 'माइकेल चेखव' से बहुत दिनों तक अभिनय की शिक्षा ली. इसके बाद प्रसिद्ध स्टूडियो के निर्देशक 'स्ट्रासबर्ग' से भी अभिनय की बारीकियां सीखनी शुरू कर दी. प्रसिद्द नाटककार आर्थर मिलर, स्ट्रासबर्ग के अच्छे मित्र थे.
मर्लिन को पढ़ने का शौक था और वह प्रसिद्द नाटककार आर्थर मिलर की गहरी प्रशंसिका थी. एक पार्टी में उनसे मिली थी.पर आर्थर ने उसे नज़रंदाज़ सा कर दिया था. एक दिन स्ट्रासबर्ग का फोन आया कि 'आर्थर मिलर' उनसे मिलना चाहते हैं. स्ट्रासबर्ग के घर पर अक्सर उनकी मुलाकातें होने लगीं. वे स्ट्रासबर्ग के परिवार के साथ द्वीप पर छुट्टियाँ मनाने भी जाने लगे. पर मर्लिन उन्हें एक देवता की तरह ही पुजती थी. एक बार स्ट्रासबर्ग की पत्नी ने उन्हें लेकर कुछ मजाक किया तो मर्लिन ने कहा,"वे मेरे श्रद्धा के पात्र हैं" .तब स्ट्रासबर्ग ने बताया , "उन्हें श्रद्धा की नहीं बल्कि इस समय मैत्री और संवेदना की जरूरत है..क्या तुम उन्हें यह सब दे पाओगी?" आर्थर मिलर के साहित्य पर कम्युनिस्ट आन्दोलन का गहरा प्रभाव था. अपने पहले दो नाटक, ' ऑल माइ संस' और "डेथ ऑफ अ सेल्समैन ' से वे विश्व प्रसिद्धि पा चुके थे. लेकिन अपने यहूदी होने और इस राजनीतिक रुझान के कारण उन्हें अमेरिका में एक जांच-कमिटी के सामने पेश होना पड़ा था. उन्होंने दो नए नाटक लिखे थे , "द कृसिविल " और " अ व्यू फ्रॉम द ब्रिज ' जब ब्रॉडवे में खेले जाने के पहले इस नाटक की पाण्डुलिपि महान अमेरिकन नाटककार " क्लिफर्ड औदेट्स' को दिखा कर राय पूछी गयी कि "क्या इसमें कोई राजनितिक संदेश है?"
तो उन्होंने कहा, "ये तो मुझे नहीं पता पर इस वर्ष के अंदर-अंदर उनका वैवाहिक जीवन टूट जायेगा"
मर्लिन मनरो एवं आर्थर मिलर |
यह सुन लोग हतप्रभ रह गए क्यूंकि मिलर के विवाह को बीस वर्ष हो चुके थे . उनकी पत्नी ग्रेस मिलर उनकी साहित्यिक सलाहकार थीं. उन्होंने मिलर के प्रारम्भिक संघर्ष के दिनों में उनकी बहुत सहायता भी कि थी. पर उन्हें हमेशा ये अहसास दिलाती रहती कि मिलर का निर्माण, उनकी साहित्यिक कृति ..आर्थिक सुरक्षा सब ग्रेस की देन है. वह रोमन कैथोलिक थीं और मिलर की यहूदी माँ को कभी सम्मान और अपनापन नहीं दे पायी. मर्लिन से मिलने के पहले ही आर्थर मिलर का अपनी पत्नी से भावात्मक सम्बन्ध ख़त्म हो चुके थे और वे बहुत बेचैन और अकेले थे.
मर्लिन को स्ट्रासबर्ग द्वारा यह सब पता चलने पर जैसे उन्हें जीवन का उद्देश्य मिल गया. वह किसी के लिए सार्थक बन सकती है. उनकी भी किसी को जरूरत हो सकती है...यह अहसास नया था. वह मिलर के करीब आ गयी. मिलर उन्हें अपने परिवार से मिलवाने ले गए. मर्लिन उनके माता-पिता के साथ काफी दिन रहीं. वे मिलर की माँ से सीख नए-नए व्यंजन बनातीं ..सुबह -सुबह नंगे पैर लॉन में चलतीं और वहाँ बैठकर आर्थर के पिता से यहूदी धर्म की बातें सुनतीं.दोनों ने विवाह करने का निर्णय ले लिया.
विवाह के दिन सुबह से ही उनके घर के सामने सैकड़ों पत्रकारों की भीड़ इकट्ठी हो गयी. तपती धूप में भूखे प्यासे....इंगलैंड, जर्मनी, फ्रांस,इटली के पत्रकार अपने कैमरे के साथ डटे रहे. पर मर्लिन और मिलर उनसे बचने को घर से सुबह ही निकल गए थे..पर दो पत्रकारों ने उनका पीछा किया और उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया. मर्लिन और आर्थर उन्हें उठा कर अस्पताल में ले गए...दूसरे दिन इटली की उस पत्रकार की मौत हो गयी. फिर भी पत्रकारों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा.
शादी के बाद अपनी अगली फिल्म की शूटिंग के लिए मर्लिन आर्थर के साथ, इंग्लैण्ड रवाना हो गयीं. मर्लिन अपनी फिल्म में व्यस्त हो गयीं और आर्थर अपने लिखने -पढ़ने में. पर पत्रकार मर्लिन से आर्थर के नए लिखे जा रहे किताब के विषय में और आर्थर से मर्लिन की फिल्मो के विषय में पूछते रहते. मर्लिन गर्भवती हुईं..पर उनका गर्भपात हो गया. आर्थर ने उनकी बहुत देखभाल की. मर्लिन जब वापस फिल्मो की शूटिंग के लिए लौटीं तो आर्थर उसकी फिल्मो में काफी रूचि लेने लगे. मर्लिन को कौन सी ड्रेस पहननी चाहिए...कौन सी फिल्म स्वीकारे..कैसे संवाद बोले...किस पत्रिका को इंटरव्यू दे. सब आर्थर तय करने लगे.
मर्लिन आर्थर के लेखक व्यक्तित्व पर मोहित हुई थीं और उनका सम्मान करती थीं. अपनी खुशामद में यूँ लगे देखना नहीं चाहती थीं. वे बचपन से पिता के स्नेह से वंचित थीं...उन्हें ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उनपर शासन करे. अब उनके पास सबकुछ था...अकूत धन-वैभव .. मान-सम्मान और प्यार करने वाला पति..लेकिन यह सब पाकर वो ज्यादा लापरवाह और गैर-जिम्मेदार होती जा रही थीं. प्रोड्यूसर-डायरेक्टर-पत्रकार किसी से भी लड़ लेतीं...आर्थर को उनकी तरफ से माफ़ी मांगनी पड़ती.
आर्थर ने मर्लिन के लिए एक फिल्म की कहानी लिखी "मिसफिट". पर मर्लिन को लगा यह फिल्म पुरुष पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है....उसकी भूमिका काफी कम है. उसके कहने पर भी आर्थर ने कहानी नहीं बदली...मर्लिन ने कई बार सबके सामने आर्थर का अपमान भी कर दिया कि वे कभी फिल्म-लेखन नहीं कर सकते. उन दोनों में तनाव बढ़ता गया. यह शादी भी टूट गयी. आर्थर से जब इसकी वजह पूछी गयी तो उन्होंने कहा, "मर्लिन में खुद को तोड़-फोड़ डालने की वहशी प्रवृत्ति है. इसी के वशीभूत उसने यह सब किया है...थोड़े दिनों बाद खुद को यह तकलीफ देकर वह ठीक हो जाएगी. और हम पहले की तरह रहने लगेंगे"
आर्थर से सम्बन्ध-विच्छेद के बाद कई लोग उसके जीवन में आए पर प्यार उन्हें " पीटर लोफार्ड' से हुआ. जबकि 'पीटर लोफार्ड' विवाहित था और वो जानती थी कि पीटर कभी भी अपनी पत्नी को नहीं छोड़ सकता क्यूंकि पीटर की पत्नी अमेरिका के राष्ट्रपति 'कैनेडी' की बहन थीं. इस गम में वो चौबीसों घंटे शराब में डूबी रहने लगीं...नींद की गोलियाँ खाने लगीं... वे बहुत परेशान रहने लगीं और एक बार मानसिक रोगों के अस्पताल में भी खुद ही भर्ती हो गयीं..वहाँ से एक बार कूद कर जान देने की भी कोशिश की पर बचा ली गयीं. अभिनय पर असर पड़ने लगा...वे अपनी लाइंस भूल जातीं...शूटिंग पर नहीं पहुँचती और एक बार निर्माता बहुत नाराज़ हुए जब वे हफ़्तों बीमारी का बहाना कर शूटिंग पर नहीं पहुंची लेकिन राष्ट्रपति कैनेडी के जन्मदिन की पार्टी में शरीक हुईं और राष्ट्रपति के लिए 'हैप्पी बर्थडे भी गाया " न्यूयार्क से लौट कर भी वे शूटिंग कैंसल करती रहीं. निर्माता- निर्देशकों ने उनपर ५००,००० डॉलर के नुकसान का दावा कर दिया. और उनका रोल एक दूसरी अभिनेत्री को दे दिया.
इस खबर ने मर्लिन को अंदर से तोड़ दिया..अब तक वे तेइस सफल फिल्मो में काम कर चुकी थीं और उन निर्माता-निर्देशकों को करीब बीस करोड़ डॉलर का फायदा हुआ था. बड़े से बड़े पुरस्कार उन्होंने जीते थे. बेइंतहा दौलत कमाई थी..पर अब यह उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं. उन्हें यह चिंता भी थी कि अब उनका फिगर भी पहले की तरह नहीं रह गया था और उन्होंने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया. जून १९६२ में उन्हें नोटिस दिया गया था और दो ही महीने बाद ४ अगस्त १९६२ को उन्होंने अत्यधिक नींद की गोलियाँ खाकर आत्महत्या कर ली.
कुछ जानकार लोगो का कहना है कि उन्होंने पीटर को फोन पर कहा कि "मैने नींद की गोलियाँ खा ली हैं...कुछ ही देर में जहर मेरे शरीर में फ़ैल जायेगा. पर मैं जीना चाहती हूँ..मेरी मदद करो.." पर पीटर ने कहा कि, " मैं एक शादी-शुदा आदमी हूँ....मेरी इज्जत पर आंच आएगी....नहीं आ सकता..किसी के साथ एक डॉक्टर को भेजता हूँ.." पर ना कोई आदमी आया ना कोई डॉक्टर .
उनकी मृत्यु की खबर सुन..लाखों लोग फूट-फूट कर रोये...समाचार पत्र..पत्रिकाएं उनके चित्रों और उनपर लिखे आलेखों से भरे रहने लगे. बरसों तक उनके नाम के सैकड़ों पत्र... पत्रिकओं के ऑफिस में आते रहे. इतने लोग जिसे जी जान से प्यार करते थे..वो अकेलेपन से त्रस्त होकर दुनिया छोड़ गयी. पागलखाने में रह रही उसकी माँ को जब ये खबर मिली तो उसने भी फांसी लगा आत्महत्या कर ली. आर्थर ने सुनकर इतना ही कहा, "ये तो होना ही था " पर जो डीमैगियो ' फूट फूट कर रोया...और कहा.."उफ्फ! यह क्या हो गया...अब मैं क्या करूं?..काश वो जानती होती कि मैं उसे कितना प्यार करता हूँ " मर्लिन का अंतिम संस्कार भी उसी ने किया और मर्लिन के मेकअप मैन...उसके बाल और कपड़ों की देखभाल करने वालों के पास जाकर मिन्नतें की कि मर्लिन के शव का वैसा ही श्रृंगार करें जैसी वह अपने प्रसिद्धि के दिनों में दिखती थी.
कहते हैं...वैक्स वुड मेमोरियल पार्क में जहाँ 'मर्लिन मनरो ' दफ़न है सप्ताह में तीन बार माली ताजे गुलाब चढ़ा जाता है और उसके पैसे जो डीमैगियो 'भेजता है. उसका कहना था वह जबतक जिन्दा रहेगा फूल बराबर चढ़ते रहेंगे .
(शुभागता पुस्तक से साभार )
"शुभागता"
लेखिका पुष्पा भारती
भारतीय ज्ञानपीठ प्रकशन
आपने तो कहा था कि आपने पहले कोई पोस्ट नहीं लिखी मुनरो पर... अभी देखा तो... सौंदर्य की देवी नामक पोस्ट है... आपने कहा था कि विचार रखने हैं... अब तो दोनों पोस्ट पढ़ कर ही विचार रखूँगा...
जवाब देंहटाएं@महफूज़
जवाब देंहटाएंफेसबुक पर जो स्टेटस लगाया था वह इस पोस्ट के शीर्षक से सम्बंधित था...पोस्ट से नहीं...
वहाँ मैने उस स्टेटस अपडेट्स पर अपने विचार रखने के लिए कहा था...पोस्ट पर नहीं.
वैसे ये दोनों इतनी लम्बी पोस्ट पढना तुम्हारे लिए कुछ ज्यादा ही नहीं हो जाएगा...:):)
इतना सब कुछ होते हुए भी कोई इतना सुंदर कैसे दिख सकता है... यही दोबारा सोच रहा हूं.
जवाब देंहटाएंपहली बार यह पढ़ा, सितारों के अपने अँधेरे हैं..
जवाब देंहटाएंचलो ' देवी ' के स्पष्टीकरण के बाद मर्लिन मुनरो के सौन्दर्य और जीवन से फिर मिली ... मर्लिन मुनरो के अकाट्य सौन्दर्य सी तुम्हारी लेखनी - जो भी पढ़ा ,
जवाब देंहटाएंउसे प्रस्तुत करके बहुत अच्छा किया .
इस चमकती ,,जगमगाती दुनिया में बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन के हिस्से में रौशनी आई है
जवाब देंहटाएंअधिकतर लोगों के हिस्से में दिये के नीचे का अँधेरा ही है
"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता"
ख्वाजा अहमद अब्बास ने एक बार कहा था कि जब भी आप किसी फिल्मी अदाकार को मुस्कुराते देखें, तो एक बार ये ज़रूर सोचें कि वो बहुत मुश्किल से मुस्कुरा पा रहा है. तपती धूप और बड़े रिफ्लेक्टर्स की चकाचौंध के बीच हँसी बड़ी मुश्किल से निकलती है.
जवाब देंहटाएंबकौल शायर:
बाहर से देखते हैं तो समझेंगे आप क्या,
कितने ग़मों की भीड़ है इक आदमी के साथ!
.
मीना कुमारी, गीता दत्त, परवीन बाबी, कुंदन लाल सहगल, भारत भूषण और अब आपने सुनाई मर्लिन मुनरो की कथा...!!
@सलिल जी,
जवाब देंहटाएंये पोस्ट लिखते वक़्त मैं भी सोच रही थी..आज हमलोग हॉलीवुड की एक अभिनेत्री की जीवन-कथा इतनी उस्त्सुकता से लिख-पढ़ रहे हैं...क्या हमारे यहाँ के अदाकारों के किस्से भी इसी इंटरेस्ट से विदेशी भाषाओँ में लिखे-पढ़े जायेंगे..या लिखे-पढ़े जाते होंगें??
रश्मि जी, हमारी नज़र में विदेश को लेकर आकर्षण बहुत है.. ऑस्कर के लिए सिर्फ नामित होने पर ही हम अपनी फिल्मों को सम्मानित मानने लगते हैं... जबकि तकनीक और कथानक दोनों स्तर पर हमारी फ़िल्में किसी भी कोण से उनसे कम नहीं... हाँ कुछ नाम हैं जिनकी चर्चा वहाँ भी होती है.. बलराज साहनी, राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद (जब पर्ल बक ने उनके साथ मिलकर गाइड में काम किया).. वैसे ही हम भी चर्चा करते हैं चार्ली चैप्लिन, एलिजाबेथ टेलर, रौक हडसन, मार्लन ब्रांडों और मर्लिन मुनरो की!!
जवाब देंहटाएंवैसे यह व्यथा एक फिल्मी कलाकार की है.. और दर्द के और दुर्दशा के मामले में यूनिवर्सल है.. हाल ही में व्हिटनी ह्यूस्टन की मौत!!
विश्वास करना ही पड़ता है कि हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती.
मर्लिन मुनरो के सौन्दर्य और जीवन से फिर मिली मगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई
जवाब देंहटाएंमर्लिन मनरो की जीवनी का यह हिस्सा पढ़ते हुए हाल ही में बनी डर्टी पिक्चर की सिल्क स्मिता की याद आती रही। इस फिल्म का उतरार्द्ध मनरो की कहानी से ही प्रेरित लगता है। पर कहते तो यह हैं कि वह सचमुच सिल्क स्मिता की जीवनी पर आधारित है।
जवाब देंहटाएं*
हंसा वाडेकर की जीवनी पर बनी भूमिका एक अभिनेत्री के इसी तरह के संघर्ष को सामने रखती है।
*
दूसरा भाग पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसा आप इसे जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहतीं थीं। अगर पोस्ट तीन हिस्सों में भी होती तो कोई हर्ज नहीं था। बहरहाल पढ़कर अच्छा लगा।
आपकी इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंअजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खत्म। एक शादी, दो शादी, अनेक शादी। शादियों से थकते नहीं है लोग?
जवाब देंहटाएंपढ़कर अज़ीब सा लग रहा है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दरता के अलावा और कुछ देखने को नहीं मिला ।
ब्यूटी और ब्रेन --साथ साथ क्यों नहीं हो सकते !
मर्लिन मोनरो: सौन्दर्य और सौन्दर्यबोध की ट्रेजेडी-हालांकि उनकी असामयिक मृत्यु ने उन्हें चिर यौवना बने रहने का छुपा वरदान दे डाला ! जनमानस उन्हें चिर यौवना ही जानता रहेगा !
जवाब देंहटाएंकुछ खास अच्छा मन नहीं है सुबह से और अब उसपर से ये पोस्ट पढकर क्या लिखूं समझ नहीं पा रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंitna kuch inke bare me jaankar achcha laga...
जवाब देंहटाएंyahan par ek building bhi uske naam par bani hai usi ke shape me...
अहा जिंदगी में विदेशी कलाकारों अथवा साहित्यकरों के बारे में पढ़ते हुए अक्सर यही सोचा है कि क्या न हमारे देश के कला और साहित्य से जुड़े लोगों की दास्तान इतनी संघर्षपूर्ण नहीं है जिसे इतने रोचक तरीके से पेश किया जा सके ....
जवाब देंहटाएंमर्लिन के सौंदर्य और संघर्ष की रोचक दास्ताँ पढना अच्छा लगा !
चमचमाती रौशनी के पीछे का स्याह अँधेरा ....कभी कभी हैरानी होती है , इसे पाने की भी कितनी ललक होती है लोगों में ...... संतुलित पोस्ट ......
जवाब देंहटाएंवाणी,
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं है....हमारे यहाँ भी कुछ सिने अदाकारों...लेखक/लेखिकाओं का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा है...मधुबाला..मीना कुमारी...माला सिन्हा..लता मंगेशकर....जितेन्द्र, राज बब्बर...सुनील दत्त...दिलीप कुमार....जावेद अख्तर..इन सबकी यात्रा बहुत ही कष्टपूर्ण रही है..काफी नीचे तबके से संघर्ष करते हुए इन लोगो ने अपना मुकाम हासिल किया...हाँ, दो से ज्यादा शादियाँ किसी ने नहीं कीं...पर प्रेम सम्बन्ध तमाम रहे...अब इतने रोचक तरीके से इनकी जीवन-कथा लिखी गयी या नहीं...ये नहीं पता..
उनके जीवन की छिट-पुट घटनाएं तो पढ़ने को मिलती रहती हैं...और उनसे पता चल जाता है कि उनके जीवन की असली तस्वीर कैसी रही होगी.
ध्यान आया मैने तो सिर्फ..पुराने कलाकारों की बात की है...नए कलाकारों में करिश्मा..करीना..गोविंदा..जैकी श्रौफ़...शाहिद कपूर...अक्षय कुमार आदी को भी कड़ा संघर्ष करना पड़ा...
जवाब देंहटाएंकरिश्मा..करीना की माँ बबीता रणधीर कपूर से अलग तो हो गयी थीं..पर ना तो उन्होंने उनसे कोई आर्थिक मदद ली...और ना रणधीर कपूर ने उनकी कोई आर्थिक मदद की. करीना ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बचपन में वे लोग सिर्फ दाल-चावल खाते थे..सब्जी के लिए पैसे नहीं होते थे..करिश्मा ने बहुत कम उम्र में काम शुरू कर दिया..और १०४ बुखार में भी शूटिंग पर जाती थीं.
बाकी सबों की भी कहानी कुछ ऐसी ही है...
मर्मस्पर्शी जीवनी. प्रतिक्रिया करने को अपने शब्द भी नहीं है।
जवाब देंहटाएंसीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यो है? इस शहर में हर शख्स ...
उनके व्यक्तित्व के विकास से एकदम ऐसी तस्वीर नहीं बन पाई पोस्ट में जिससे उनकी आत्महत्या परिणिति लगे, आकस्मिक लगता है. एक दुर्घर्ष व्यक्तित्व की छवि बनती है उनकी, जो हर विपरीत परिस्थिति के बावजूद टूटती नहीं, मुकाबला भी करती है, धीरज भी है उनके व्यक्त्वि में. लेकिन आत्महत्या आकस्मिक सा लगता है या उनका कोई पक्ष ऐसा भी हो जो ओझल रहा हो.
जवाब देंहटाएंजिंदगी भी क्या क्या रूप दिखाती है।
जवाब देंहटाएंकभी सफलता का नशा तो कभी एकाकीपन का संताप।
सही कहा गया है, सफलता पाना आसान होता है, उसे बनाए रखना कठिन।
मर्लिन मनरो के पहले भी और बाद में भी, प्रसिध्दि के बाद गुमनामी और मौत के किस्से, फेहरिश्त काफी लंबी है।
पहली कडी और फिर दूसरी कडी, मर्लिन मनरो को करीब से समझने का अवसर मिला।
आभार।
अच्छा है।
जवाब देंहटाएंसंस्मरण, आलख, उपन्यास, कहानी के साथ साथ ही आप बहुत अच्छा निचोड़ लिख लेतीं हैं।
एक बात पूछ लूँ? :)
आप lord of the rings भी ५-६ भाग में तो लिख ही लेंगी न?
मर्लिन मुनरो------ सौंदर्य और शोहरत के बाद भी इंसान कितना अकेला होता है और जान ही नही पाता कि वो खुद से और समाज से चाहता क्या है शायद यही उसके जीवन की सबसे बडी त्रासदी होती है और यही हुआ भी।
जवाब देंहटाएंमर्लिन मनरो की जीवन गाथा में कई रंग के शेड्स हैं ! अप्रतिम सौंदर्य की मालकिन यह अभिनेत्री सदैव लोगों के लिये रहस्यपूर्ण बनी रही और इसके बारे में जानने की उत्सुकता हमेशा लोगों के मन में करवटें लेती रही ! आपने अपने आलेख के द्वारा मर्लिन मनरो के जीवन के आरंभिक दिनों के संघर्ष, उनकी सफलता और असफलता तथा मानसिक तनावों के चलते उनके द्वारा आत्मघाती कदम उठाने जैसी बातों पर भरपूर प्रकाश डाला है ! मर्लिन मनरो के बारे में इतना सब कुछ जानकर बहुत अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंअली जी की इमेल से प्राप्त टिप्पणी
जवाब देंहटाएंअली सैयद
वे लोग प्रेम के चिरंतन होने के गुमान में नहीं जीते शायद इसका एक कारण
उनकी परवरिश है या उनका सामाजिक ताना बाना अगर कोई हो तो ? सतत अस्थिरता
, असुरक्षा जन्य तनाव में फूलों को मुरझाते देर नहीं लगती ! मेरा मतलब ये
कि वे असमय भी बिखर सकते हैं टूट सकते हैं !
मुझे ऐसे व्यक्तित्व हमेशा बहुत अपील करते हैं, जो अपनी मेहनत की दम पर मकाम हासिल करते हैं. मर्लिन भी अब उनमें शामिल हो गयी है.बहुत अच्छा किया तुमने इस पुस्तक-सार को यहां पोस्ट करके.आभार :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर ..मर्लिन मुनरो के बारे में जानना अच्छा लगा ..
जवाब देंहटाएंकितनी ऊंचाई - जैसे स्वर्ग, और कितना गहरा नरक भी , जीते ही जी देखा - :(
जवाब देंहटाएंआखिर थी तो एक इंसान ही न - सौन्दर्य भले ही देवियों जैसा हो, परन्तु आकांक्षाएं, संवेदनाएं, दर्द तो इंसानी ही थे .... यह सब दर्द देवी देवताओं को कहाँ सामने पड़ते हैं - उनकी तो परीक्षा नहीं होती न ?
aapki nazron se marlin ko dekh liya...dono post ek saath hi padh li..
जवाब देंहटाएंbahut hi acha post hai maine bahut se late se isko padha.
जवाब देंहटाएंदोनों भाग पूरे पढ़े… मैं इतना कुछ नहीं जानती थी… बहुत कुछ घटित हुआ छोटी सी ज़िन्दगी में… उनका पूरा सुन्दर व्यक्तित्व… मन को छू गया… simple और complicated दोनों…जाने कितना समझी हूँ…
जवाब देंहटाएंखैर, बाँटने के लिए बहुत धन्यवाद। Thanks to Facebook! :)