भले ही ज्यादा लोग अंग्रेजी फ़िल्में ना देखते हों. या देखते भी हों तो मर्लिन मनरो की फ़िल्में ना देखी हों पर उनके नाम और अप्रतिम रूप से जरूर परिचित हैं.( उनकी तस्वीर देख अपनी हिंदी फिल्मो की अदाकारा 'मधुबाला' की याद आती हैं . संयोग ही है कि आज (१४ फ़रवरी )मधुबाला का जन्मदिन भी है.) मर्लिन मनरो का सफलता की चोटी पर पहुंचना और फिर मात्र ३६ वर्ष की आयु में ख़ुदकुशी कर लेना बहुत ही रहस्यमय सा लगता...और रहस्य के आवरण में लिपटे उनके जीवन के विषय में जानने की इच्छा थी , जो इस पुस्तक 'शुभागता' द्वारा पूरी हुई. इस पुस्तक में पुष्पा भारती जी ने विश्व के कुछ प्रसिद्द लेखक,कवि अदाकार... 'चार्ल्स डिकेंस', 'रिल्के', 'एच.जी.वेल्स' ,'मर्लिन मनरो', 'चेखव' और 'दौस्तोवस्की' के जीवन के अनजाने पहलुओं पर प्रकाश डाला है.
१ जून १९२६ को जन्मीं 'मर्लिन मनरो' का नाम ' नोरमा जीन बेकर था' . उन्होंने अपने पिता को सिर्फ फ्रेम में जड़े एक तस्वीर के रूप में जाना था...वे एक अनब्याही माँ की संतान थीं. . उनकी माँ हॉलीवुड में 'कोलंबिया पिक्चर्स' में निगेटिव काटने का काम किया करती थीं. और आस-पास रहने वाले फिल्म लाइन से जुड़े हर तकनीशियन की तरह उनका भी बस एक ही सपना था 'उनकी बेटी बड़ी होकर सुपर स्टार बने'. नोरमा की माँ को उसके पिता द्वारा धोखा दिए जाने पर दिमाग पर गहरा सदमा लगा था और अक्सर उसे दौरे पड़ते थे. उसकी एक सहेली ग्रेस..'नोरमा' का ख्याल रखती थी. उसे नृत्य और संगीत की शिक्षा लेने स्कूल भेजती थी. परन्तु एक दिन नोरमा की माँ को दौरा पड़ा और उसने अपनी सहेली ग्रेस पर ही चाक़ू से हमला कर दिया. पुलिस ने उन्हें पकड़ कर पागलखाने में डाल दिया .
नोरमा की बदकिस्मती के दिन शुरू हो गए. नोरमा को अनथालय में भर्ती कर दिया गया. वहाँ से एक दंपत्ति ने उसे गोद ले लिया. पर उसकी नई माँ बहुत ही बुरा व्यवहार करती...उससे जूठे बर्तन मंजवाती ..फर्श साफ़ करवाती....इतनी नन्ही सी बच्ची की ये दुर्दशा देख..उसके नए पिता ने उसे किसी और को गोद दे दिया. इस नए घर में दिन में तीन बार चर्च में प्रार्थना करनी पड़ती. नृत्य-संगीत वर्जित था . नोरमा को गाते या नृत्य करते देख लेने पर उसे बहुत डांट पड़ती .एक दिन उस पर एक हार के चोरी का इलज़ाम लगा कर बहुत प्रताड़ना दी गयी. एक दूसरी स्त्री दया कर उसे अपने घर ले गयी....जहाँ उसकी तीन बेटियाँ पहले से थी..वे सब उसे बहुत तंग करतीं.
उसने वह घर भी छोड़ दिया उस वक्त नोरमा महज आठ साल की थी .पर वह नौकरी कर ..पैसे कमाना चाहती थी उसने एक नवदंपत्ति के यहाँ नौकरी कर ली...वह किचन में मदद करती...बर्तन धोती..घर की सफाई करती पर वो यहाँ खुश थी...उसे शनिवार के शाम की छुट्टी भी मिलती और बाहर खाना खाने के लिए पैसे भी .मालकिन उसे डांस भी सिखाती. कुछ दिनों बाद ही उसकी माँ स्वस्थ होकर उसे ढूंढती हुई आ गयी..उसे अपने साथ ले गयी. उसके लिए एक पियानो भी खरीद दिया. पर उसकी ये ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं रही . फिर से माँ पर पागलपन का दौरा पड़ा और उसे पागलखाने में भर्ती कर दिया गया.
नौ-दस वर्ष की उम्र में नोरमा को फिर से एक घर में बर्तन धोने -झाडू लगाने की नौकरी करनी पड़ी. उस घर का एक बूढ़ा व्यक्ति 'नोरमा' से हमदर्दी जताने लगा. पिता के स्नेह से वंचित नोरमा उस से हिल-मिल गयी और एक दिन उस बुड्ढे ने उसकी पवित्रता नष्ट कर डाली. मालकिन से शिकायत करने पर उसने उल्टा नोरमा की ही पिटाई कर डाली कि वो शरीफों को बदनाम करती है. नोरमा को लगता ..उसने बहुत बड़ा पाप किया है. उसके सर पर पेट की भूख के बोझ से ज्यादा पाप की भावना का बोझ था.
इस बीच नोरमा को पता चला,उसकी ग्रेस आंटी ने शादी कर ली है. वह उन्हें ढूंढते हुए उनके घर पहुँच गयी. वो वहाँ बहुत खुश थी.पर ग्रेस के पति को उसे रखना गवारा नहीं था..और ग्रेस ने उसे एक अनाथालय में भर्ती करा दिया.वहाँ नोरमा दो साल रही.
इसके बाद उसकी ग्रेस आंटी उसे अपने एक रिश्तेदार बूढी महिला के घर ले गयीं. वो वृद्धा "ऐना' उसे बहुत प्यार करती थीं. नोरमा अपनी बचपन की यादों में इन वृद्धा से जुड़ी यादों को सबसे खुशनुमा मानती है. ऐना की मृत्य के बाद.."आई लव्ड हर" नाम से उसने एक लम्बी कविता भी लिखी .
नोरमा स्कूल जाने लगी. उसे लिखने -पढ़ने का शौक हो गया. एक बार उसे "डॉग इज मेंस बेस्ट फ्रेंड" पर एक लेख लिखने पर एक ईनाम भी मिला. फिर तो वह कहानी-कविताएँ लिखने लगी. वो 'एब्राहम लिंकन' की गहरी प्रशंसिका थी और उसके कमरे में एक ही तस्वीर होती थी. 'एब्राहम लिंकन' की . पढ़ने-लिखने के शौक के साथ उसे सजने संवरने का भी बहुत शौक था. लड़कों के साथ घूमना-फिरना भी शुरू हो गया. यह देख उसकी ग्रेस आंटी और ऐना ने १९४२ में उसकी शादी कर दी. नोरमा अपने पति जिम को बहुत प्यार करती थी और पजेसिव भी थी. पर नोरमा का सौन्दर्य उनके प्यार की राह में काँटा बन गया. उसके पति के मित्र उसकी खूबसूरती की तारीफ करते और उसकी तरफ खिंचे चले आते. नोरमा को अपनी प्रशंसा अच्छी लगती पर जिम को नागवार गुजरती और उनमे तनाव बढ़ने लगा और वे अलग हो गए.
उसे मॉडलिंग के कई ऑफर भी मिलने लगे. नोरमा ने इसे गंभीरता से लिया और एक मॉडलिंग स्कूल ज्वाइन कर ली. हँसना.. बोलना..चलना..सब नए सिरे से सीखने लगी.एक्सरसाइज़ करती ..अपनी सुन्दरता..अपनी फिगर का ख्याल रखती और बहुत जल्दी ही एक मशहूर मॉडल बन गयी. उसकी तस्वीरें देख, "आर.के.ओ.रेडियो पिक्चर्स" के मालिक ने "ट्वेंटीयेथ सेंचुरी फौक्स' नामक प्रसिद्द फिल्म कम्पनी से संपर्क कर नोरमा को साईन करने की सलाह दी. फिल्म कम्पनी वालों ने नोरमा से अपना नाम बदलने के लिए कहा. उनलोगों ने सलाह दी कि उन दिनों की प्रख्यात गायिका ' मर्लिन मिलर' के नाम का पहला शब्द 'मर्लिन 'चुन ले और दूसरा शब्द खुद ढूंढ ले.. नोरमा की ग्रेस आंटी ने उस से कहा कि वो अपनी माँ के बचपन का नाम 'मनरो' लगा सकती है.और अब उसका नाम हो गया, "मर्लिन मनरो'
'ट्वेंटीयेथ सेंचुरी फौक्स' ने उसे साइन तो कर लिया था पर वह अनेक नवोदित तारिकाओं में से एक नाम भर थी. उसे कोई रोल नहीं मिल रहा था. एक सस्ती सी फिल्म में एक्स्ट्रा का रोल मिला जिसमे उसका बस एक सीन था जिसमे 'हलो' बोलना था. मर्लिन ने उसके लिए बहुत मेहनत की पर प्रदर्शन के समय उसका सीन एडिट कर दिया गया.
अगले पांच-छः साल तक मर्लिन भटकती रहीं. वो शाम को सज-धज कर बस इसलिए निकलतीं की कोई एक डिनर खिला दे. कई पुरुष सुन्दर लड़की के साथ के लिए भटकते और उसे डिनर पर ले जाते पर डिनर से ज्यादा उसने कोई समझौता नहीं किया. कई मौके आए जब उन्हें थप्पड़ रसीद कर गिरते-पड़ते काँटों से लहुलुहान होते अपने घर की तरफ भागी. एक रोचक वाकया भी हुआ. एक अठहत्तर वर्षीय आदमी ने उसके पास शादी का पैगाम भेजा कि "वो उसका गहरा प्रशंसक है..पत्रिकाओं से काटकर उसके सारे चित्र सुरक्षित रखे हैं. उसे दिल के दौरे पड़ते हैं...वो सिर्फ चार-पांच महीनों का मेहमान है..और उसके पास अस्सी लाख रुपये हैं. वो मर्लिन मनरो के पति के रूप में मरना चाहता है. अगर मर्लिन मनरो उस से शादी कर ले तो सारे पैसे उसके हो जाएंगे. संदेश लाने वाले ने कहा कि अगर उसमे से आधा हिस्सा चालीस लाख रुपये 'मर्लिन' उसे दे दे तो वह ये शादी करा देगा. मर्लिन ने ये कहते उसके मुहँ पर दरवाज़ा बंद कर दिया कि "मेरे हिस्से के चालीस लाख भी तुम ही रख लो "
इस अकेलेपन और गरीबी की भटकन में मर्लिन मनरो का एक ही सहारा थी, कोलंबिया कंपनी की अभिनय अध्यापिका " नाटाषा लाईटेस " लाईटेस ने उसके कपड़े पहनने का ढंग ...चाल-ढाल ..संवाद बोलने के तरीके को सुधारा (मर्लिन भी प्रसिद्धि पाने के बाद भी अपनी उस गुरु को नहीं भूली. अपनी कम्पनी में एक ऊँचा पद दिया और स्क्रिप्ट स्वीकार करने या उसमे कोई भी परिवर्तन वो उनकी सलाह के बिना नहीं करती थी )
लाईटेस की सिफारिश से उसे एक संगीत प्रधान फिल्म मिली "लेडीज़ ऑफ द कोरस" जिसमे आठ गायिकाओं में से एक गायिका 'मर्लिन' भी थीं. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान वे कोलंबिया पिक्चर्स के संगीत निर्देशक " फ्रैडी कारगर ' के प्यार में गिरफ्तार हो गयी. फ्रैडी भी उनका बहुत ख्याल रखते ...उसकी समस्याएं सुलझाते उसके साथ समय बिताते अपने घर ले जाकर अपनी माँ -बहन और अपने बेटे से भी मिलवाया. वह तलाकशुदा थे . पर अपना प्रेम प्रदर्शित नहीं करते. सारा स्टूडियो उनके इस विचित्र प्रेम कहानी को उत्सुकता से देखता. आखिर मर्लिन ने ही कहा.."हमें विवाह कर लेना चाहिए' इस पर फ्रैडी ने कहा."कल को मुझे कुछ हो गया..तो तुम क्या मेरे बेटे की अच्छी माँ बन पाओगी"
यह सुनते ही मर्लिन वहाँ से चली गयी और फ्रैडी से बात करना बंद कर दिया. फ्रैडी ने बाद में उसकी बहुत मिन्नतें कीं पर मर्लिन ने दुबारा उसकी तरफ नहीं देखा. फिल्म प्रदर्शित हुई पर सफल नहीं हुई और एक महीने बाद ही 'कोलंबिया पिक्चर्स 'से उसे नोटिस दे दिया गया.
एक बार फिर से भुखमरी के दिन सामने थे. कोलंबिया फिल्म्स के 'चेयर मैन' मर्लिन पर मेहरबान हो गए और अक्सर उसे डिनर पर ले जाने लगे. मर्लिन को उन्होंने अपनी कम्पनी में तो काम नहीं दिलवाया पर दूसरी कम्पनी के मालिक के पास एक पत्र लेकर भेजा. उस कम्पनी के मालिक ने फिल्म में रोल देने की शर्त रखी कि "एक सप्ताह उसके साथ समुद्री जहाज पर बिताना होगा" मर्लिन ने कहा.."बेशक..पर आपके बीवी-बच्चे भी साथ होने चाहिएँ "
यह कहकर जब वो बाहर आई तो पाया..उसकी टूटी-फूटी कार चोरी हो गयी है. पुलिस में शिकायत करने पर पता चला..उसके कमरे का किराए ..दुकानों से उधार लिए सामान के एवज में उनलोगों ने कार पर कब्ज़ा कर लिया है.
अब मर्लिन मनरो को फ़िक्र थी कि कहीं से सिर्फ पचास डॉलर मिलें ताकि.कमरे..धोबी..गैस का किराया निकल सके.
(पुष्पा भारती जी ने तो बहुत विस्तार से लिखा है...पर काफी संक्षिप्त करने की कोशिश के बावजूद...पूरी कहानी बहुत लम्बी हो गयी...इसलिए दो पोस्ट में विभक्त करना पड़ रहा है... अगली पोस्ट में 'मर्लिन मनरो' की सफलता और प्रेम के किस्से )
मर्लिन मनरो के बारे में काफी बढ़िया जानकारी मिली ... अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा !
जवाब देंहटाएंवास्तव में काफी विस्तृत है!!
जवाब देंहटाएं@सलिल जी,
जवाब देंहटाएंकभी मिले तो 'शुभागता ' पढ़ कर देखिए...इतनी रोचक घटनाओं का जिक्र है...जिन्हें उद्धृत नहीं कर पाना , मन कचोट गया....पर क्या करूँ...सिर्फ तथ्य रखने की कोशिश ही विस्तृत लग रही है.
नोरमा जीन बेकर उर्फ मर्लिन मनरो के बारे में मुझे कुछ भी मालुम नहीं था, मुझे तो वो बस बहुत खूबसूरत लगती थीं...बहुत ज्यादा!
जवाब देंहटाएंबड़ी अच्छी जानकारी दी है आपने...आप हमेशा कुछ न कुछ कहीं पढ़ लें तो उसे शेयर कर लेती हैं ब्लॉग पे..आपकी इसी 'बुरी आदत के वजह से हमें कितनी चीज़ें जानने को मिलती हैं...
बाई द वे, मुझे ये भी पता नहीं था की आज मधुबाला का जन्मदिन है...हैप्पी बर्थडे टू हर :) :)
अगला पार्ट जल्दी लाया जाए!!
मुझे भी मर्लिन मनरो के बारे में abhi जितनी ही जानकारी है। वास्तव में इन जैसी हस्तियों के बारे में बहुत कुछ अनजाना, अनपढ़ा रह जाता है। इस पोस्ट के जरिये मर्लिन मनरो के बारे में जानने का मौका मिला।
जवाब देंहटाएंतुम्हारे द्वारा मेरे कितने ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं ... आगे का इंतज़ार
जवाब देंहटाएंमर्लिन मनरो के बचपन की ऐसी बातें पहली बार पढ़ी हैं ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया विवरण । अगली किस्त का इंतजार रहेगा ।
मुनरो के बारे में जानकार अच्छा लग... युवाओं के लिए प्रेरक भी है... देखता हूँ आजकल कुछ लड़कियां क्षणिक कामयाबी के लिए अपने ज़मीर को बेच देती हैं.. जबकि मुनरो तमाम परेशानियाँ झेलकर भी अपने को बचा कर रखे रही...
जवाब देंहटाएंमर्लिन वाक़ई बहुत ख़ूबसूरत थी...
जवाब देंहटाएंइतनी कम उम्र में इस कदर त्रासद घटनाक्रम से गुजरीं वो ! वहां परिवार नहीं थे और थे भी तो हर क्षण बिगड़ने , बनने और फिर से बिगड़ने के लिए ! सब कुछ अनिश्चित , अस्थिर ! सारे सम्बन्ध क्षणजीवी से !
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही वो इस तरह से अभिशापित सा जीवन गुज़ारने वाली अकेली नहीं होगी ! वहां के बच्चों के साथ ऐसा होने की संभावनायें बहुत अधिक मानी जायें ! एकाधिक बार विवाहित , अविवाहित माता पिता के क्षणवाद से उपजी संतानों के तनावपूर्ण पालन पोषण की दशाओं में अवसाद , हिंसा , आक्रोश , अकेलापन , जैसे लक्षण सहज ही विकसित हो जाते होंगे बच्चों के व्यक्तित्व में !
कम उम्र में अनाथालय / हास्टल्स / घरों से बेघर होते रहने के चक्रव्यूह में दैहिक , मानसिक शोषण की स्मृतियाँ उन्हें अक्सर हांट करती होंगी ! शायद इसीलिये बड़े होकर जीवन और मित्रों के प्रति , उनका नज़रिया सकारात्मक / मित्रवत नहीं रह जाया करता ! अवसरवाद उनके चरित्र का अहम हिस्सा हो जाता है !
कठिन जीवन में प्रसिद्धि पाने वाली अपवाद स्वरूप एक ही मानी जायें वो , वर्ना तो ज्यादातर बच्चों के हाल का आप अनुमान लगा ही सकते हैं !
खैर अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा !
अपनी शर्तों पर जीना महिलाओं के लिए कभी आसान नहीं रहा ...मुश्किल से मुश्किल समय में भी कोई राह निकल आती है ...
जवाब देंहटाएंमर्लिन की कहानी यही बताती है !
रोचक !
मर्लिन मनरो के जीवन में हुई ऐसी मर्मांतक कठिनाइयों के बाद भी उनका अपनी जगह बना पाना सचमुच प्रेरणादायक है। एब लिंकन की फ़ैन थीं, यह जानकर अच्छा लगा। अगली कड़ी का इंतज़ार है।
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य का संघर्ष..
जवाब देंहटाएंएक तथ्यपरक एवं समुचित जानकारी से परिपूर्ण आलेख ! मर्लिन मनरो के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंप्रसिद्धि की चकाचौंध के पीछे जो दर्द गरीबी यातनाएं होती है वो इतनी सहजता से नहीं दिखाई देती ...अगली कड़ी का इंतज़ार
जवाब देंहटाएंयह तो किसी फिल्म की कहानी सुनने जैसा ही लग रहा है। पर किताब के बारे में इस तरह जानना रोचक है। शुभागता के प्रकाशक कौन हैं,इस बात का अगली पोस्ट में जिक्र करें,तो अच्छा रहेगा। संभव है हम किताब ही खरीदकर पढ़ लें।
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट का इंतजार तो रहेगा ही।
मर्मस्पर्शी.... आपका पुनः प्रस्तुतीकरण उत्कृष्ट है ....
जवाब देंहटाएंकाफ़ी जानकारी मिली और काफ़ी रोचक है अब तो आगे का इंतज़ार है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ..आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंक्या जिन्दगी है!
जवाब देंहटाएंबाहर से जो इतने खुश दिखते हैं, उनकी ज़िन्दगी इतने संघर्ष से भरी होगी, हम सोच भी नहीं पाते. "शुभागता" जैसी जानकारीपरक पुस्तकें बहुत कुछ देती हैं हमें. मर्लिन मनरो जैसी अनिंद्य सुन्दरी इतने संकट के दौर से गुज़री!!! अच्छा लग रहा है पढना.
जवाब देंहटाएंमर्लिन मनरो के संबंध में बढिया जानकारी।
जवाब देंहटाएंघर पर है यह पुस्तक, और वैसी ही है जैसा आप लिख रही हैं।
जवाब देंहटाएंआपके पास किस वर्ष का संस्करण है? अब तो शायद किसी नए नाम से आती है यह किताब। शुभागता नहीं, कोई "प्रेम पियाला...
@अविनाश
जवाब देंहटाएंयह प्रथम संस्करण है १९७० में छपा है
मूल्य है 8 रुपये
आपके पास पुस्तक है और आपने पढ़ रखी है ..तब आप समझ सकते हैं..११० पन्नों में लिखे आलेख को दो पोस्ट में समेटना कितना मुश्किल है :):)
'शुभागता' कितना साहित्यिक और सुन्दर नाम है पर ये 'प्रेम पियाला' जरूर मार्केटिंग की दृष्टि से रखा गया होगा.
पहली बार इतना जाना..
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