मर्लिन मनरो के नाम की बिल्डिंग |
समीर लाल जी ने भी एक बड़ी रोचक जानकारी दी. उन्होंने बताया कनाडा में मर्लिन मनरो नाम की एक बिल्डिंग भी बनी है...जिसका निर्माण उनकी देहयष्टि के अनुरूप रखने की कोशिश की गयी है. उन्होंने उस बिल्डिंग की तस्वीर भी भेजी .(बाईं तरफ तस्वीर देखी जा सकती है.)
एक और रोचक वाकया हुआ इस पोस्ट के साथ....एक सज्जन ने इस पोस्ट के शीर्षक पर आपत्ति करते हुए एक मेल भेजा...
एक और रोचक वाकया हुआ इस पोस्ट के साथ....एक सज्जन ने इस पोस्ट के शीर्षक पर आपत्ति करते हुए एक मेल भेजा...
आदरणीय रश्मि जी
आपकी पोस्ट " सौन्दर्य देवी : मर्लिन मनरो " देखी आपने काफी विस्तृत जानकारी दी है . मर्लिन मनरो के विषय में ...लेकिन एक व्यक्ति विशेष के लिए देवी शब्द का प्रयोग करना अच्छा नहीं लगा .....इस विषय से तो आप अवगत ही हैं कि हमारे यहाँ " देवी " शब्द कितना पवित्र और कितना गहरा प्रभाव रखता है ....इसलिए ऐसे के प्रयोग के लिए हमें संवेदनशील होने के साथ - साथ इनकी महता का भी ध्यान रखें तो बेहतर है .....!
मेरा मन दुविधा में पड़ गया...क्या सचमुच मैं गलत हूँ??....'सौन्दर्य देवी' लिखना सही नहीं है? और मैने सोचा मित्रों की राय ली जाए...जैसा उन सबका विचार होगा..उसीके अनुसार शीर्षक में संशोधन किए जाएंगे. मैने यह मेल उन सज्जन का नाम लिए बगैर फेसबुक पर शेयर कर दी ( वे सज्जन भी चाहते तो कमेन्ट में अपनी बात कर सकते थे पर उनकी इच्छा किसी विवाद की नहीं थी..इसीलिए उन्होंने मेल किया...इसलिए मुझे भी लगा...उनका नाम लेना उचित नहीं होगा )
वहाँ मित्रों ने इतना मनन कर के इतनी अच्छी प्रतिक्रिया दी...कि 'देवी' शब्द पर एक अच्छा-खासा शोध ही हो गया. और लगा...इसे अपने ब्लॉग दोस्तों से भी शेयर करना चाहिए.आप भी देखें..
Aradhana Chaturvedi अपनी-अपनी सोच है. मुझे तो इसमें कोई आपत्ति नज़र नहीं आती. .असल में 'देवी' शब्द पवित्र है या सांकेतिक यह उसके प्रयोग पर निर्भर करता है. हमारेयहाँ सुंदरता की देवी 'रति' है और देवता 'कामदेव'. 'रति' को तो उतना पवित्र नहीं माना जाता.
Rashmi Prabha यह शब्द मर्लिन मुनरो के सौन्दर्य के लिए प्रयुक्त है ...
और असीम सौन्दर्य हो तो सौन्दर्य की देवी से तुलना अतिशयोक्ति नहीं ...
Sangita Puri सभी महिलाओं के उपनाम में 'देवी' शब्द सुशोभित रहता है
Sonal Rastogi मुझे इसमें बहस की कोई गुंजाइश नहीं लगती ...लोग अपने नाम के साथ
देवता शब्द लगा लेते है उनसे पवित्रता का certificate
कोई नहीं माँगता ....खैर वो बेहद खूबसूरत थी.
Satish Pancham रश्मि प्रभा जी के कमेंट को मेरा भी कमेंट माना जाय। वैसे भी कई जगह
देखने में आया है कि नाटकों आदि में पात्र आपसी
सम्बोधन में - देवी.......से शुरूवात करते हैं फिर सामने वाला कैसा भी चारित्रिक दोषरहित/
सहित क्यों न हो।
Vandana Gupta देवी शब्द का प्रयोग धार्मिक दृष्टि से नही किया गया दूसरी बात ये हमारी
संस्कृति है पहले लोग नाम के साथ देवी शब्द लिखा
करते थे जो सम्मानसूचक होता था तीसरी बात सुन्दरता की देवी एक प्रशंसात्मक ।सांकेतिक
प्रयोग है जो किसी वास्तव मे सुन्दर रूप को कहा जाता
है तो इसमे देवी का शब्द का अर्थ अलग हो जाता है इसलिये अलग अलग दृश्यों मे अलग अलग
अर्थ होते हैं जिन्हे एक दूसरे से नही जोडना चाहिये।
सर्वाधिक विस्तार से सलिल जी ने लिखा..
हमारे देश की यह भी परम्परा है कि हम किसी भी व्यक्ति को सम्मान देकर संबोधित करते हैं.
वह व्यक्ति उस सम्मान के योग्य है कि नहीं, यह बात
दीगर है. देवियों और सज्जनों एक ऐसे ही संबोधन का प्रतीक है.. आवश्यक नहीं कि जिन्हें हम
संबोधित कर रहे हैं वे सज्जन ही हों.
देवी (आचरण):
हमारे देश की यह परम्परा भी है कि हम देवी-देवताओं के नाम पर अपने बच्चों के नाम रखते हैं/
थे. यदि देवी शब्द पर इतनी आपत्ति है तो लक्ष्मी
और राम कृष्ण जैसे नामों पर भी आपत्ति होना चाहिए. क्योंकि ऐसे नामों वाले कितने ही
व्यक्ति भ्रष्ट, दुराचारी और पापी देखे जा सकते हैं.
देवी (नाम का एक भाग):
हमारेदेश की यह परम्परा रही है कि हम अपने नाम के साथ ‘कुमार’ जैसे शब्द जोडते हैं.. अब
इसके लगाने से वह व्यक्ति राजकुमार हो जाए ऐसा
नहीं है. वैसे ही ‘देवी’ (उमा देवी) आदि भी नाम के भाग के रूप में स्वीकार लिए गए हैं, चाहे वह
स्त्री वास्तव में देवी हो या नहीं.
देवी (आध्यात्मिक):
ओशो अपने प्रत्येक प्रवचन के अंत में कहते हैं कि अंत में मैं आप सबों के अंदर स्थित परमात्मा
को नमस्कार करता हूँ. यह भी हमारे देश की
परम्परा है कि हम प्रत्येक जीवात्मा में परमात्मा का अंश स्वीकार करते हैं. ऐसे में किसी को देवी
कहना उसके अंदर स्थित देवी को सम्मान देना ही है.
देवी (उपमा):
हमारे देश की परम्परा रही है कि हम देवी-देवताओं को सर्वगुणसंपन्न मानते हैं. पश्चिम में भी
ग्रीक गौड और ग्रीक गौडेस् जैसे शब्द अप्रतिम सुंदरता
के लिए उपमास्वरूप प्रयुक्त होते रहे हैं. इसलिए मर्लिन मुनरो को सौंदर्य की देवी कहना (जो कि
वो थीं) भूल नहीं है.. बालिकी जिन्हें आपत्ति है वे
इसे कृपया ग्रीक-गौडेस् का भावानुवाद मान सकते हैं!
Vani Sharma salilji ke jawab ke baad kya bacha kahne ko ...devi shabd kisi bhi
stri ke liye prayukt hota hai,iska uski
khoobsurati ya charitra se koi sambandh nahi hai !
Vandana Awasthi Dubey कमाल है!! लोग इतना शाब्दिक अर्थ क्यों लेते हैं? और हर
चीज़ को धर्म से क्यों जोडने लगते हैं? तुम्हारी पोस्ट में
मर्लिन को देवी नहीं बताया गया बल्कि उसे सौंदर्य की देवी कहा गया है, जो कहीं से ग़लत नहीं
है. सौंदर्य की उपासना तो जग-जाहिर है, और
उपासना देवी की ही की जाती है :) :)
मैने ये सारे कमेंट्स कॉपी-पेस्ट कर उक्त सज्जन को प्रेषित कर दिया...पर उनके प्रत्युत्तर ने
एक बार फिर मुझे उलझन में डाल दिया.
उन्होंने लिखा :
मैंने सिर्फ ध्यान दिलाया था ....जो मुझे लगा ....यहाँ मेरा आशय यह नहीं था .......नाम के साथ हमारे भारत में " देवी" शब्द का प्रयोग किया जाता है ...... और यह है हमारे देश में महिलाओं के सम्मान के कारण ....आप थोडा उस व्यक्ति के मन को ध्यान में रखिये जिसे इनके बारे में जानकारी नहीं है ...आज से ५० साल बाद आपके ब्लॉग का यह सन्दर्भ कहीं कोई प्रयोग करना चाहे तो वह तो यही कहेगा न .... " मर्लिन मुनरो " को भारत में सौन्दर्य की देवी कहा जाता है ..आज के प्रसंग और भावनात्मक प्रसंग में यह सब ठीक है ...लेकिन वृहत परिप्रेक्ष्य में यह सही नहीं लगा मुझे .....! इस विषय में बहुत सी बातें कही जा सकती हैं लेकिन अभी इतना ही काफी है .....
सतीश पंचम जी यूँ भी फेसबुक पर कह रहे थे...
Satish Pancham ओ बादशाओ...ते बादशाओ दे संगी साथियो......हुण बस वी करो
यारो....जिन्ने मेल लिखिया सी ओदी ओपिणियन तां आउंदी
नईं.......तुसी लोकी किन्ना बोलोगे :)
ऐस देवी मर्लिन मुनरो दे चक्कर विच बौद्धिकता कुछ ज्यादा ही खर्च हो गई :)
तो मैने उनका ये जबाब वहाँ रख दिया...इस बार लावण्या शाह जी ने विस्तार से अपने विचार रखे. ऊपर जिन ब्लोगर्स ने अपने विचार रखे हैं...वे हम सबके परिचित हैं. लावण्या जी का भी अपना ब्लॉग है..पर वे ज्यादा सक्रिय नहीं हैं. लावण्या शाह जी..प्रसिद्द गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं. अक्सर फेसबुक पर उनकी अल्बम में लता मंगेशकर दिलीप कुमार आदि के साथ उनकी तस्वीर देखने को मिल जाती है. आजकल वे अमेरिका में रहती हैं.
नेहरु जी के साथ पंडित नरेंद्र शर्मा |
Lavanya Shah कुछ तो लोग कहेंगें ...लोगों का काम है कहना :-)
मार्लिन मुनरो को वीनस = [ मतलब ग्रीक मायथोलोजी वाली ] से तुलना करते हुए उस के अप्रतिम व प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए अमरीका में
लोकप्रियता हासिल हुई है - अमरीकी मीडीया का भी हाथ है इस में और अमरीकी प्रजा का
झुकाव ऐसे व्यक्ति के प्रति अधिक् रहता है जो कम उम्र
का हो, सुंदर हो और जिसकी मौत हो गयी हो ..उदाहरणात " एल्विस प्रेस्ली " ( गायक +
कलाकार ) और लेडी डायना -- मार्लिन मुनरो भी इसी तरह
आज भी अमरीकी प्रजा में बेहद लोकप्रिय हैं - अब बात आती है उन्हें ' देवी ' कहने की या न कहने की -- तो जिसे शी जानकारी पानी है उसे रीसर्च कर लेना भी आवश्यक है ! रश्मिजी रविजा जी को अपनी बात , अपनी तरह कहने की आज़ादी होनी ही चाहिए ...और भारत के करोड़ों [ साक्षर या
फेसबुक या हिन्दी ब्लॉग जैसे माद्य्मों से जुड़े लोग मार्लिन मुनरो के लिए भ्रामक धारणा मान लेंगें या नहीं उसकी जिम्मेदारी रश्मि जी के लेखन पर ही निर्भर रह गयी तब तो यही कहूँगी कि , साक्षर होने के लिए अपनी राय बनाने से पहले किसी भी विषय को परखने के प्रयास अवश्य करें ] तथास्तु !
Lavanya Shah एक बात और भी जोड़ना चाहूंगी कि विशुध्ध भारतीय संदर्भ में अग्र ' देवी '
शब्द कोयी कहता है तब ' देवी ' पूजनीया माता
भवानी , अम्बिका , सरस्वती ' को भी कहते हैं और आर्यावर्त में संभाषण के दौरान ' देवी ' पत्नी
से भी कहा गया है -- अप्सराओं को भी यही संबोधन से पुकारा गया है ...ऐसे भी उदाहरण हैं कि , ' देवी ' कहलानेवाली ' मेनका अप्सरा ' ने शंकुंत्ला का त्याग किया और इंद्र दरबार में लौट गयीं थीं ...सो, ' देवी ' जो प्राचीन काल में प्रयुक्त शब्द रहा है उसे आज २१ वीं सदी में हम किस तरह लें ...और इस प्रयोग का उपयोग , ' रचनाकार ' की अपनी इच्छा पे निर्भर रहेगा चूंकि , व्यक्ति को अपनी बात, अपने अंदाज़ में कहने की सम्पूर्ण स्वतंत्रता है ..भारतीय संस्कृति व विरासत अपनी मजबूत जड़ों की बदौलत , किसी के अभिप्राय या मतानुसार नहीं बनेगी या बिगड़ पायेगी ..हां , हरेक पाठक को बस १, या २ मिनट ध्यान देकर
चलते बनना ये तो ' समझ ' को परिष्कृत करने का सही आधार नहीं बनाना चाहीये ...पहले कहा
उसे पुनः कहूँगी , ' शोध ' जारी रखें और दीमाग के
दरवाज़े खुले रखें ताकि , ज्ञान , नयी बात , नये विचार भी प्रवेश पा सकें ..हमेशा विद्यार्थी ,
शोधार्थी बने रहना आवश्यक है ...और हां, ये मत मेरा
अपना है , दूसरों को मुझसे अलग मत रखने की पूरी स्वतंत्रता है ...
लता मंगेशकर के साथ लावण्या शाह जी |
सभी साथियों का एक बार फिर कोटिशः धन्यवाद, अपने विचार रखने के लिए.
पर इन सबके विचार पढ़ते हुए एक ख्याल और आया मेरे मन में...ये सारे लोग तो मेरे मित्र हैं और कहते हैं मित्रता सामान विचार वालों में ही होती है. वैसे भी फेसबुक पर मैं मित्रों को add करने में बहुत कंजूस हूँ. उनका प्रोफाइल चेक कर...उनका वाल पढ़कर ही उनकी फ्रेंड्स रिक्वेस्ट स्वीकार करती हूँ. ..जाहिर हैं उन सबकी सोच मेरे जैसी ही है.
पर ब्लॉग एक खुला मंच है...यहाँ कोई भी ये पोस्ट पढ़ सकता है...और अपनी राय रख सकता है.
जिनलोगो को 'देवी' शब्द के प्रयोग से एतराज हो..वे भी अपनी बात कह सकते हैं.
देवियों पे पर ये दृष्टिकोण कल चर्चा मंच पे रहेगा ,
जवाब देंहटाएंसादर
कमल
अब तो आपत्ति की गुंजाइश ही नहीं - वाकई कुछ अधिक बौद्धिकता खर्च हो गई
जवाब देंहटाएंaise muddon par jab budhdhimatta kharch hoti hai to kuchh hasil hi hota hai..aise prashn uthate rahna chahiye.dhanyvad..
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंगहन परिचर्चा...देवीजी..
जवाब देंहटाएंसहज संबोधन है।
जवाब देंहटाएंऊफ़्फ़ देवी के लिये पहली बार इतना सारा पढ़ने को मिला है, वरना हमें तो अपने पुराने शहर का "देवीजी" का मंदिर ही पता था या देवी तालाब ।
जवाब देंहटाएंदो (बल्कि एकाधिक) राय है, इसलिए दो राय नहीं कि मसला चर्चा-योग्य है.
जवाब देंहटाएंअनावश्यक विवाद है। देवी केवल सम्बोधन मात्र है। हमारे तो एक गुरुजी थे, वे सभी को देवीजी कहते थे और हमको बडी चिढ मचती थी लेकिन उनकी उम्र का लिहाज रखकर कुछ नहीं कह पाते थे। इसलिए यह सम्बोधन कभी व्यंग्य जैसा भी लगता है।
जवाब देंहटाएंअच्छा विमर्श चला एक शब्द पर ।
जवाब देंहटाएंहमारा दृष्टिकोण पोस्ट में आ ही गया है !
जवाब देंहटाएंदोस्त बनाने में मैं भी बहुत कंजूस हूँ !
कुछ समय पहले डिस्कवरी पर एक कार्यक्रम देखा था जिसमे वैज्ञानिक परमाणु कचरे को जमीन में गहरे से दबाने के बाद ये सोच रहे थे की उसके ऊपर खतरे का कौन सा चिन्ह लगाया जाये क्योकि ये जरुरी नहीं है की आज से २०० सालो बाद खतरे के निशान के लिए वही चिन्ह और शब्द प्रयोग किये जाये जो आज किये जाते है (जैसे कही पढ़ा था की "नाईस" शब्द का प्रयोग पहले मुर्ख और बेफकुफ़ लोगो के लिए किया जाता था जबकि आज इसका अर्थ कुछ और है ) और संकेतो को सही नहीं समझा गया और इस जगह को खोद दिया गया तो एक बड़ी दुर्घटना हो सकती है , किन्तु क्या फेसबुक और ब्लाग आदि पर लिखते समय हम इतने गंभीर और दूरदर्शी होते है , मुझे तो लगता है की शायद ही कोई लिखने से पहले इतना दूरदर्शी और गंभीर होता है । हम सभी यहाँ आज को सोच कर आज के और अपने समाज को ध्यान में रख कर और अपने आज के विचार रखते है जो संभव है की भविष्य में हमारे अपने अनुभवों और परिस्थिति के बदलने के साथ बदल जाये , ऐसे में किसी और समाज के बारे में हम में से शायद ही कोई सोचता हो ।
जवाब देंहटाएंकिन्तु इसका ये मतलब नहीं है की जो लावण्या जी कह रही है वो कही से भी गलत है मेरी नजर में तो उनकी बात भी १००% सही है क्योकि जब हम गूगल की हद में आने वाली जगहों पर लिख रहे है तो उसे पढ़ने वाले पूरी दुनिया में है जो देवी का मात्र एक ही अर्थ जानते है भारतीय " भगवान " अब उनमे सलिल जी की तरह इतना ज्ञान देवी को लेकर तो नहीं ही होगा :) तो कल को किसी अमेरिकी सनसनी पैदा करने वाले अखबार में ये हेडिंग आ जाये की भारत में मुनरो को देवी माना जाता है तो ये भी असंभव नहीं है {रश्मि जी इसको दूसरा पहलू देखिये आप और आप का ब्लॉग अमेरिकी अखबारों में चर्चा में होगा :)))) }
फिर सवाल ये भी है की ब्लॉग आदि तो आम सोच, साधारण समझ रखने वालो के लिए अपने विचार रखने की जगह है क्या हम इसे प्रयोग करना यहाँ कुछ भी लिखना इतना कठिन बना दे की लिखने से पहले दुनिया जहान का रिसर्च करे एक एक शब्द का दुनिया में पड़ने वाले सारे प्रभावों को देखो और फिर लिखो , तब तो हम जैसे ब्लोगरो को यहाँ से अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ेगा ।
लेकिन फिर वही बात सामने है की आज की जनरेशन जो हर बात के लिए गूगल शरणागत होती है और उस पर लिखा हर बात उसके लिए सही हो जाता है उसका क्या करे , उसे कैसे पता चलेगा खास कर आज के कुछ सालो बाद जब हम सभी के लिखे कुछ शब्द बोलचाल से ही गायब होंगे तब उन्हें कौन बतायेगा की लिखी गई चीज रिसर्च के साथ ज्ञानवर्धन के लिए लिखी गई है या महज व्यक्ति विशेष की निजी राय है । आप को बता दू रश्मि जी की कितने ही युवाओ को देखा है जो बस चीजो को मोटा मोटी पढ़ते समझते है और कभी कभी तो पूरी चीज पढ़ते ही नहीं है । अब उनकी नजर सलिल जी की टिपण्णी पर नहीं गई तो समझिये हो गया बन्टाधार ।
इस विषय पर तो मै ही कोई एक राय नहीं बना पा रही हूँ देखे बाकि के लोग क्या कहते है
इतने दिनों बाद ब्लॉग पर आ कर एक अच्छी चर्चा पढ़ना अच्छा लगा धन्यवाद रश्मि जी ।
एक और बात कहानी थी डिस्कवरी पर ही देखा था की मुनरो के सम्बन्ध जान एफ कैनेडी से भी काफी गहरे थे और काफी लोगो को शक था की उनकी हत्या कैनेडी ने ही करवाई थी। लो अब सोच रही हूँ की ज्ञानवर्धन के लिए डिस्कवरी सही है या अपना ब्लॉग :))))) पर कम्बखत डिस्कवरी पर भी पूरा भरोषा नहीं कर सकते वो भी पक्का अमेरिकी है वो भी काल अमेरिकी पक्ष ही दिखाता है ।
जवाब देंहटाएं@अंशुमाला
जवाब देंहटाएंधन्यवाद तो आपका है...आपने हर पहलू पर गौर करके अपने विचार रखे. आपकी सारगर्भित टिप्पणियाँ हम इतने दिनों से मिस कर रहे थे.
इस सम्बन्ध में मेरा मंतव्य यही है कि अगर आने वाली पीढ़ी...सिर्फ एक जगह "सौन्दर्य देवी : मर्लिन मनरो" पढ़कर यह समझने लगे कि भारत में सुन्दरता की देवी को मर्लिन मनरो कहा जाता है .तो फिर वह "फूलन देवी " के विषय में पढ़कर क्या समझेगी ??
जो कोई भी देवनागरी भाषा में कुछ पढ़ेगा...हिंदी पढ़ेगा..और सचमुच 'देवी' शब्द का अर्थ जानना चाहेगा तो उसे सही जानकारी कई सूत्रों से मिल जाएगी. और अगर चलताऊ ढंग से एक नज़र डाल वे 'देवी' शब्द का अर्थ जानना चाहते हैं...तो उनकी परवाह क्यूँ की जाए क्यूंकि ऐसे छिन्नमस्तक लोग तो अगले ही पल भूल भी जायेंगे कि उन्होंने क्या पढ़ा था...और उन्हें तो 'सौन्दर्य ' शब्द पढ़ने में ही बड़ी कठिनाई होगी...सुन्दरता भले ही पढ़ लें :)
इतने दिनों बाद आपकी ब्लॉग जगत में वापसी सचमुच बहुत अच्छी लगी. इतना लम्बा ब्रेक ना लिया करें :)
एक बहुत ही रोचक वाकया सबसे शेयर का र्लूं...
जवाब देंहटाएंमर्लिन मनरो पर पोस्ट लिखनी शुरू करने से पहले...शीर्षक सोच रखा था..."सौन्दर्य का पर्याय : मर्लिन मनरो "
पर यह पोस्ट देर रात गए लिख रही थी...आँखें बंद हो रही थीं...कई टाइपिंग मिस्टेक भी हो गए थे...'बेस बॉल' की जगह मैने 'बेल बॉस' लिख दिया था...शुक्रिया 'अनुराग शर्मा जी' और 'इस्मत जैदी' का उनलोगों ने मेल करके इस तरफ इंगित किया. 'सतीश पंचम जी' ने भी एक जगह टाइपिंग मिस्टेक की तरफ ध्यान दिलाया..उन सबका तहे दिल से शुक्रिया.
पर पोस्ट पूरी करने के बाद मैं शीर्षक भूल गयी कि क्या सोचा था और पोस्ट करने की जल्दी में.."सौन्दर्य देवी' लिख दिया...
पर अब सोचती हूँ...अच्छा हुआ...इतने भिन्न भिन्न दृष्टिकोण देखने को मिले.:)
@अंशुमाला
जवाब देंहटाएंऐसा कुछ मैने भी सुना था...केनेडी के जीवन पर बनी एक फिल्म देखी थी..शायद उसमें भी इस बात का जिक्र है...पर इस पुस्तक में तो केनेडी की बहन के पति से उनका अफेयर बताया गया है....क्या पता क्या सच..क्या झूठ...
कोई एतराज नहीं है देवी शब्द पर...अपने देश में तो हर नारी ही देवी होती है...
जवाब देंहटाएंनीरज
यह तो वास्तव में एक शोध का विषय बन गया . और काफी शोध हो भी गई .
जवाब देंहटाएंलगे हाथों हम भी एक सवाल पूछ लेते हैं --क्या आप जिल्लो देवी को जानते हैं ? :)
लावण्या जी की बात से पूर्ण सहमति। अपने इतिहास और संस्कृति के बारे में सतही जानकारी से आगे बढकर उसे जानने-समझने की ज़रूरत आज पहले से कहीं अधिक मालूम पड़ती है।
जवाब देंहटाएंहालांकि इतना कहा जा चुका है कि मेरे कहने की कोई अधिक सम्भावना नहीं रहती, पर भी जैसा अंग्रेजी में कहते हैं, "here are my two cents":
जवाब देंहटाएंमैं समझता हूँ कि "देवी", "महापुरुष" या ऐसे किसी भी संबोधन को गलत कहना, या इसके प्रयोग को द्विविधापूर्ण देखना ठीक नहीं।
हो सकता है कि यह तनिक अतिशयोक्तिपूर्ण लगे/हो, लेकिन गलत किंचित भी नहीं है।
अतिश्योक्ति प्रशंसा की सीमा है, किन्तु गलत नहीं।
यदि हर बात को केवल तथ्यपरक ही मानें और शाब्दिक(एकविमीय) अर्थों से ऊपर उठ कर न समझें तो शिक्षित और साक्षर में कोई भेद नहीं रह जाता। और यदि कोई ऐसा करता हो तो आप लिखने वाले को दोष नहीं दे सकते। समस्त गीत/कवितायें/तुलनाएं/उपमाएं सब क्षण भर में बैलेंस-शीट में परिवर्तित हो जाएँ।
उदाहरणार्थ:
हॉकी का जादूगर: मतलब? क्या ध्यानचंद मैदान पर टोना करते थे?
"father of modern physics": Galileo और पिता? विज्ञान के?
"Master blaster" : सचिन न सेना में हैं, न उन पर किसी देश ने आतंकवाद का आरोप लगाया है।
एक छोटा सा उदाहरण लें, आपने अपनी ही इसी पोस्ट में मुझे एक "बड़ा अच्छा कवि" कहा। यह भलमनसाहत हो सकती है, अतिरेक में की गई प्रशंसा हो सकती है, मेरी समझ से अतिश्योक्ति भी हो सकती है, लेकिन क्या इसे गलत कहा जा सकता है? नहीं!
यदि मुझे बहुत अच्छा डॉक्टर बताया जाता, जो कि बेतुका है, झूठ है, तो वह गलत/आपत्तिजनक हो सकता था।
P.S. गंभीर पाठक! अच्छा है :)
@अविनाश जी,
जवाब देंहटाएं"सजग पाठक"..आपके लिए..ये शायद ज्यादा ठीक है...
गंभीर पाठक से चश्मा लगाए...गंभीर मुख मुद्रा वाले पाठक की छवि बनती है..जो आपसे तो कतई मेल नहीं खाती :)
देवी शब्द का प्रयोग आज कल उसी प्रकार से हो रहा हैं जैसे लेडी का होता हैं । हमारे यहाँ किसी भी महिला का लेडी कह दिया जाता हैं जबकि असली में लेडी केवल कुछ संभ्रांत महिला के लिये प्रयोग में था । लेडी का अर्थ महिला नहीं हैं अपितु वो महिला हैं जो बहुत ऊँची सोसाइटी से हो लेकिन आज कल इस का प्रयोग वोमन के लिये होता हैं ।
जवाब देंहटाएंदेवी उसके लिये प्रयुक्त होता हैं जो अलोकिक लगे यानी सौंदर्य की देवी जिसका सौंदर्य अलोकिक, अप्रतिम हैं यानी इश्वरिये क्युकी इश्वर से सुंदर कौन ??
देवी शब्द को आज कल महिला के लिये उपयोग करते हैं पर वो सही नहीं छोटी लडकिया देवी कहलाती हैं क्युकी उनमे एक अलौकिक सौंदर्य होता हैं
सब पढ़ा, वो दोनों पोस्ट भी पढ़ा था, मगर कुछ समझ नहीं आया था कि क्या लिखूं सो कमेन्ट नहीं किया.. देवी परिचर्चा फेसबुक पर भी पढ़ा था और यहाँ भी पढ़ लिया.. अब फेसबुक की भाषा में कहूँ तो "Like...Like...Like" :)
जवाब देंहटाएंअच्छा विमर्श ....गहन चर्चा...अच्छा लगा धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअफ़सोस कि मेरी पहली टिप्पणी आपने छापी नहीं ! अरे भाई मेरी समझ में नहीं आया कि जो बच्ची कठिन हालात में पैदा हुई और सब कुछ लुटा के बमुश्किल संभल पाई फिर उस पर तनाव इतना कि असमय मृत्यु को गले लगा बैठी उसे 'हतभागिनी' कहने के बजाये 'शुभागता' कहा गया तो पिछले चालीस से ज्यादा सालों में किसी को आपत्ति ना हुई और आपने सौंदर्य की देवी कह दिया तो लंबी बहस चल निकली :)
जवाब देंहटाएंक्या भरोसा जो हमारे वर्तमान राष्ट्रपति के पति श्रीमान देवी सिंह रण सिंह शेखावत जी के बारे में भी पचास साल बाद लोग कहें कि आदमी के नाम के आगे औरत का 'तखल्लुस' क्यों ? महिलाओं (महिला भगवान सह साधारण महिलाओं) के वास्ते आबंटित पदनाम / उपनाम / सम्मान पर पुरुष का कब्ज़ा भी चर्चा का विषय हो सकता है :)
अब कल्पनायें तो कल्पनायें हैं इनमें कौन सा पैसा खर्च होने वाला है :)
सलिल जी का मेहनताना बनता है उन्हें धन्यवाद ज़रूर कहियेगा :)
इस पोस्ट में नेहरु जी के साथ शर्मा जी की फोटो का औचित्य समझ में नहीं आया ? मुझे स्मरण नहीं कि इन दोनों ने कभी अपने नाम के साथ देवी शब्द वापरा हो :)
और अंत में मेरी आंखों को असीम कष्ट पहुंचाने के लिए मैं आपकी पर्याप्त भर्त्सना करता हूं ताकि अगले पचास सालों बाद कोई कहे कि रश्मि रविजा को मित्रों की आंखों में बदले हुए नम्बर वाले चश्में के एडजेस्टमेंट नहीं हो पाने का भी कोई ख्याल नहीं रहता था :)
@अली जी,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम तो मुझे आपकी कोई टिप्पणी नहीं मिली....आपने बताया कि आपने एक 'स्माइली' लगाई थी....तो भला मैं किसी की मुस्कान क्यूँ कैद में रखूंगी या उसे डिलीट करुँगी :):)
वंदना अवस्थी की पोस्ट पर मेरी टिप्पणी भी नहीं नज़र आ रही...इस्मत की टिप्पणियाँ भी गायब हो जा रही हैं...एक बार डा.दराल जी की टिप्पणी भी मेरी पोस्ट से गायब हो गयी थी...अब ये सारा दोष...गूगल का है...
जहाँ तक इस पुस्तक के शीर्षक 'शुभागता' की बात है...पहली पोस्ट में ही मैने जिक्र किया था कि
"इस पुस्तक में पुष्पा भारती जी ने विश्व के कुछ प्रसिद्द लेखक,कवि अदाकार... 'चार्ल्स डिकेंस', 'रिल्के', 'एच.जी.वेल्स' ,'मर्लिन मनरो', 'चेखव' और 'दौस्तोवस्की' के जीवन के अनजाने पहलुओं पर प्रकाश डाला है."
पहली कहानी जर्मन भाषा में लिखने वाले महान कवि 'रेनर मारिया रिल्के ' की है..और उनकी प्रेमिका का नाम था 'बेनेवुटा ' जिसका अर्थ होता है.."शुभागता" ..पहली कहानी के शीर्षक के नाम पर ही पुस्तक का भी शीर्षक है. हाँ...यह शीर्षक 'मर्लिन मनरो' पर तो सही नहीं प्रतीत होता. वैसे इस पुस्तक का नया नाम 'प्रेम पियाला' भी मुझे समझ में नहीं आ रहा.
लावण्या जी के परिचय के सन्दर्भ में मैने ये दोनों तस्वीरें उनकी एल्बम से लीं. अब औचित्य तो लता मंगेशकर के साथ उनकी तस्वीर का भी नहीं है...पर ये दोनों तस्वीरें मुझे अच्छी लगीं :)
वैसे 'वापरा' शब्द का प्रयोग कुछ चौंका गया :)...यह तो मराठी शब्द है...मुंबई आने से पहले मुझे इस शब्द का अर्थ नहीं पता था...अच्छा लग रहा है...सारी भाषाएँ आपस में घुलमिल रही हैं.
"और अंत में मेरी आंखों को कष्ट पहुंचाने के लिए मैं आपकी भर्त्सना करता
हूं"
आपकी आपत्ति सर आँखों पर...लेकिन आपके मित्रों को आकाशवाणी तो हुई नहीं कि आपने चश्मे का नंबर बदला है..वरना वे पोस्ट लिखना मुल्तवी रखते..पचास साल बाद इस बेबुनियाद इलज़ाम को भी याद रखा जाएगा :):)
@डा. दराल
जवाब देंहटाएं'जिल्लो देवी' तो नहीं पता ...अलबत्ता अली जी के ध्यान दिलाने पर कई पुरुषों के नाम याद आ रहे हैं...जैसे जाट नेता 'देवी लाल' :)
मर्लिन मनरो को देवी नहीं सौंदर्य की देवी कहा है आपने पोस्ट में और यह सिर्फ एक प्रतीक के तौर पर है।
जवाब देंहटाएंमुझे तो कहीं से लगत नहीं लगा यह।
मैं एक बहुत ही नालायक किस्म का आदमी हूँ... जो वादा तो करता है... लेकिन निभा नहीं पाता... सॉरी... मैं अपना वीऊ नहीं रख पाया...
जवाब देंहटाएं@ शुभागता ,
जवाब देंहटाएंएक 'लेबल' सामान्यतः एक ही तरह के 'कंटेंट' में लगता है ! मसलन संगीत और नृत्य में 'घराने' का 'लेबल' जोनर रिवील करता है !
रिल्के की प्रेमिका के तम्बू तले डिकेंस ,वेल्स ,मनरो ,चेखव और दास्तोवस्की की कथा :)
क्या इनमें से कोई एक व्यक्तित्व किसी दूसरे से कमतर है :)
@ टिप्पणी ,
फिर से कहता हूं , स्पैम में ही जा रही होंगी ! मेरी जानकारी के मुताबिक़ कहीं और भेजने की प्रताड़ना गूगल ने निर्धारित नहीं की है :)
@ चित्र ,
नेहरु जी सह शर्मा जी वाला चित्र पोस्ट से सुसंगति नहीं रखता ! पर लता जी वाला ठीक है क्योंकि उसमें टिप्पणीकार खुद भी हैं !
@ आकाशवाणी ,
मित्रों की अनुपस्थिति पर आशंका की अनुभूति जन्य कुशलक्षेम पूछने का चलन दुनिया से उठ ही गया लगता है ! पूछे बगैर तो कोई बन्दा अपनी कुशल कहता नहीं था :)
मुझे अगर पता रहता की ये सब बातें ब्लॉग पे भी आने वाली हैं तब मैं भी एक दो ज्ञान की बातें वहाँ चिपका देता ;) ;)
जवाब देंहटाएंजोक्स अपार्ट,
कसम से आपने ये चर्चा शुरू कर बहुत अच्छा काम किया...बेहतरीन सी एक पोस्ट बन गई है...
और मुझे ये भी याद है की मैंने ये भी पूछा था की आपने क्यूँ शुरू की ये चर्चा जबकि सभी लगभग एक ही मत के थे..
सबकी अच्छी अच्छी बातें पढ़ अब पता चल रहा है की आपने क्यों शुरू की चर्चा..
नेक्स्ट टाइम से प्लीज इग्नोर माई सिली कमेंट्स :)
अभी तक तो कोई ख़ासा विरोध या विरोध का कारन निकल के नहीं आया .. हाँ अंशुमाला जी की बात में कुछ दान नजर अत है जिसको आपने तार्किक आधार पर दुरुस्त कर दिया है ...
जवाब देंहटाएंजो भी हो ये बहस कई नए आयाम खोल रही है देश के सामाजिक वातावरण ... गूगल के उपयोग ओर संस्कृतियों के बदलाव पे ... ये भी हो सकता है की जिनको हम हाज देवी मानते हैं कालान्तर में उनका नाम ही फलाना फलाना देवी हो ... या देवी कोई प्रतीक रहा हो ...
यक़ीनन देवी शब्द का उल्लेख किस संबोधन का उद्देश्य लेकर किया गया है यह महत्वपूर्ण है...... यहाँ शायद आपने विषय को उसी तरह लिखा है जैसे आमतौर पर मगज़ीन या अख़बारों की हेडलाइन में भी होता है.....यहाँ देवी का अर्थ मुनरो को पूजनीय बताने के लिए नहीं है.....
जवाब देंहटाएंदेवी शब्द पर इतनी चर्चा. मैं तो विस्मित हूँ लोगो के ज्ञान पर.
जवाब देंहटाएंरश्मि देवी जी, मुझे तो कोई आपत्ति नहीं है मर्लिन को देवी कहने में।
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अरविंद कुमार जी के समांतर कोश में देवी शब्द कहां कहां उपयोग होता है उसकी एक सूची दी गई है।
जवाब देंहटाएंउसके अनुसार कुलीन स्त्री,दुर्गा,देव कन्या,देवता पत्नी,देवता पुत्री, नामांत स्त्री उपाधि, मातृसत्ता प्रमुख,राजा की प्रधान पत्नी, विवाहित स्त्री की उपाधि,वीर स्त्री,शक्ति,स्त्री उपाधि आदि आदि।
देवी की तुलना मर्लिन सेकिसी भी हाल में नहीं की जा सकती है .. पर यहाँ एक संबोधन मात्र है जहां देवी शब्द का अर्थ स्त्रीत्व को जाहिर करता है .. हमारे पहाड की गाँवों में हर शादीशुदा महिला के नाम के पीछे देवी शब्द जोड़ा जाता है ... गीता देवी, संजना देवी आदि ... इसका मतलब ये महिलायें देवी हैं ऐसा नहीं .. हां ये स्त्री हैं .. और इतनी बड़ी चर्चा .. वाकई में यह शोध के लिए उपयोगी है...
जवाब देंहटाएंआपका बहुत - बहुत आभार ... देवी शब्द के प्रयोग पर इन सार्थक विचारों को प्रकाशित करने का .. ।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,पोस्ट पुरानी है फिर भी टिप्पणी किए बिना नही रह पाउँगा।उनकी आपत्ति की वजह कोई और रही होगी।भारतीय महिलाओ के लिए हम ऐसे संबोधन के आदि हो चुके है चाहे वह कैसी भी महिला के लिए प्रयोग किया जाए पर पश्चिम की महिलाओं को लेकर आम भारतीयों की सोच हॉलीवुड की फिल्मों से बनी है और उनकी वैसी पवित्र टाइप की छवि नहीं है बल्कि उन्हे अनैतिक माना जाता है इसलिए उनके बारे में कुछ लोगों को ऐसा संबोधन हजम नहीं होता।इसके अलावा एक कारण ये भी हो सकता है की ज्यादात भारतीयों खासकर पुरुषों का सौन्दर्य बोध पश्चिमी पुरुषों से अलग होता है उनके लिए मर्लिन मुनरो सुंदर है पर इतनी नहीं कि उसे सौंदर्य की देवी कहा जा सके।उन्हें भारतीय महिलाएँ ही इस लायक लगती है जबकि पश्चिमी लोगों का क्या है जब उन्हें पामेला एंडरसन जैसे बेहद साधारण शक्ल सूरत वाली महिला ही खूबसूरत लग सकती है तो मुनरो तो उनके लिए सौन्दर्य का विस्फोय होगी।
जवाब देंहटाएंराजन,आपकी बात सही है...पर फिर दस्यु सुंदरी फूलनदेवी के नाम के आगे 'देवी' लगाने पर भी आपत्ति होनी चाहिए और सुन्दरता के विषय में तो सबकी अपनी अपनी राय है...
हटाएंइतनी पुरानी पोस्ट पढ़ी आपने और टिप्पणी भी की...बहुत बहुत शुक्रिया आपका.
मर्लिन मुनरो के बारे में ऐसा लगता है जैसे एक बार किसीने बढ़ा चढ़ा कर कुछ कह दिया तो लोग उसे दोहराएं जा रहे है हो सकता है वो वास्तव में इतनी सुंदर रही हो लेकिन तस्वीरें देखकर तो ये तारीफ कुछ ज्यादा ही लगती है।जैसे आज तक लोग मोनालिसा की पोंटिंग के बारे में लोग कितना कुछ कहते रहते है लेकिन मुझे तो ये ही नही समझ आया कि उसमे ऐसा क्या खास है बल्कि हमें तो उसकी तुलना में एक राजस्थानी पोंटिंग 'बनी ठनी' ज्यादा अच्छी लगती है और ऐसा सोचने वाला केवल मै नही हूँ।भारत में मधुबाला वहीदा रहमान से लेकर माधुरी या अमृता राव तक जितनी भी महिलाएँ सुंदर मानी जाती है मर्लिन की खूबसूरती की तुलना उनसे एक आम भारतीय नहीं कर पाता है।बल्कि हमारे यहाँ पश्चिम की भी उन्हीं प्रसिद्ध महिलाओं को ज्यादा खूबसूरत माना जाता है जिनका चेहरा मोहरा कुछ कुछ भारतीय होता है जैसे पेनेलॉप क्रूज सलमा हयाक आदि।
जवाब देंहटाएंफिर वही आपनी अपनी नज़र..किसे कौन सुन्दर लग जाए.
हटाएंहाँ मैंने देखा ये फूलन देवी वाला उदाहरण ऊपर भी।पर फूलन देवी के नाम के साथ देवी शब्द उनके नाम का एक हिस्सा भर माना जाता है वही तो मैने ऊपर कहा कि भायतीय महिलाओं के नाम के साथ इसे प्रयोग करने के हम आदी हो चुके हैं। आप फूलन देवी की तारीफ करते हुए उन्हे देवी की उपमा देंगी तो करने वाले वहाँ भी आपत्ति करेंगे।इसलिए इमेज यहाँ भी मैटर करती है अब आप हेमा मालिनी या श्रीदेवी को कहें सौन्दर्य की देवी,किसीको फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन जरा बिपाशा या सेलिना के लिए ऐसा कोई संबोधन देकर देखें,कुछ लोग तब भी चिढ जाएँगे क्योंकि उनकी इमेज ही यह हॉट या सेक्सी वाली हो चुकी है(अब ये मानसिकता कैसी है ये एक अलग विषय है) वर्ना सुंदर तो वो दोनों भी हैं ही ।पर हाँ ये मानता हूँ कि किसी अंग्रेज महिला को ऐसा संबोधन या उपमा देने पर इमेज की तरफ कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया जाता है और उनके नाम के हिस्से के रूप में भी ये नहीं जमता वैसे ही जैसे कोई महिला कोट पैन्ट पहन ले तो इसके साथ चूडी बिन्दी आदि नहीं जमती।
जवाब देंहटाएंचलिए मान लिया..सही है, आपकी बात :)
हटाएंजितना मेरे लिए ऐसा लिखना अपनी जगह सही है...उतना ही किसी का आपत्ति जताना भी अपनी जगह सही है.
आपको पहले आना चाहिए था इस पोस्ट पर...और लोग भी आपकी प्रतिक्रया पर अपने विचार रखते और बात और स्पष्ट होती.
अब मेरे दिए उदाहरणों से शायद किसीको ये लग सकता है कि बिपासा या सेलिना इतनी भी सुंदर नहीं है कि उन्हें हेमा या श्रीदेवी के समान सौंदर्य की देवी ही कहा जाए लेकिन फिर यही बात किसी दूसरे को मर्लिन मुनरो के बारे में क्यों नहीं लग सकती?
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