सोमवार, 23 मई 2011

रश्मि से रविजा तक

संस्मरण की श्रृंखला लिखने की कोई योजना नहीं थी...पर टिप्पणियों में कई  लोगो ने लिखा, संस्मरण- श्रृंखला अच्छी चल रही है...आपके संस्मरण के रेल में सवार हैं....तो हमने सोचा अब रेल में कुछ डब्बे और जोड़ ही दें. यूँ भी जब यादों की पोटली खुलती है तो कोने-कतरे में दबी यादें झाँक- झाँक  कर अपने अस्तित्व का अहसास कराने लगती हैं. ऐसा ही एक भूला  हुआ वाकया याद आ गया जो यदा-कदा दिल दुखा जाता है.
 

पत्रिकाओं में  प्रकाशित आलेखों को पढ़कर जो पत्र आते थे, उनमे से अधिकांशतः लड़कों के ही पत्र होते थे. कभी -कभार भूले-भटके एकाध ख़त लड़कियों के होते. ऐसा ही एक पत्र , औरंगाबाद से आया था. एक लड़की का था और उसने पत्र-मित्रता की इच्छा ज़ाहिर की थी. यूँ तो सहेलियों की कमी नहीं थी...पर पत्र मित्रता मैने नहीं आजमाई थी, अब तक.

एक अलग सा रोमांच हो आया...हमलोगों ने  एक दूसरे को देखा नहीं...जानते नहीं...सिर्फ पत्रों के सहारे जानेंगे .और मैने उसके पत्र का उत्तर दे दिया. नियमित पत्र व्यवहार होने लगा. एक दूसरे को अपनी -अपनी तस्वीर भी भेजी गयी. घर में  भी सबको मालूम था. निशा,( नाम  बदला  हुआ है ) बी.एड . कर चुकी थी और एक स्कूल में टीचर थी. हम किताबों..फिल्मों..अपने परिवार और दोस्तों के बारे में एक-दूसरे को लिखते.  वो  अक्सर जिक्र करती...उसे बिहार आने की बहुत इच्छा है. मैं भी रस्मी तौर पर उसे आमंत्रित कर देती. मुझे भी वो औरंगाबाद आने के लिए कहती, पर मुझे लगता ,ये सब रस्म अदायगी है...ना मैं अकेले औरंगाबाद जा सकती हूँ,ना वो कभी बिहार आएगी.


पर एक दिन मैं उसका पत्र पाकर चौंक गयी. उसने गर्मी की छुट्टियों में मेरे घर पर आने की इच्छा जताई थी. पत्र व्यवहार तक तो ठीक था पर पता नहीं...एक अकेली लड़की का इतनी दूर से अकेले आना , मम्मी-पापा को अच्छा लगेगा या नहीं...ये भी डर था.


फिर अगले पत्र में उसने अपने आने का करण बताया...जिसने  मुझे घोर असमंजस  में डाल दिया. निशा बी.एड. कर रही थी...उसका एक सहपाठी बिहार का था. जिस से दोस्ती  हुई और फिर दोस्ती प्यार में बदली. खूब कसमे वादे किए गए .  ट्रेनिंग पूरी होने के बाद, सात जन्मो तक  साथ निभाने की कसमे खा कर और वापस लौटने का वादा कर  वो लड़का...बिहार, वापस आ गया.


उसके बाद, उस लड़के ने , निशा के एकाध पत्र का जबाब दिया, फिर चुप्पी साध ली. अब निशा बिहार आकर उसे ढूंढ निकालना चाहती थी. मेरी उस समय इतनी परिपक्व सोच नहीं थी...फिर भी इतना तो मुझे भी लग रहा था...कि जब लड़का बेरुखी दिखा रहा है...तो इसे क्या  पड़ी है, उसकी खोज-खबर लेने की. आज का दिन होता तो मैं उसे समझा कर उसे उस लड़के को हमेशा के लिए भूल जाने पर बाध्य कर देती { मानो , कितनी बार समझाया हो किसी को....और प्यार में पड़े लोग...समझ जायेंगे जैसे :)}


उसके आने की योजना सुन मैं बहुत परेशान हो गयी. ममी-पापा के सामने 'प्यार' जैसे शब्द की चर्चा भी नहीं करते थे हमलोग...और यहाँ उस लड़की के बॉयफ्रेंड को ढूंढ निकालने की बात थी. इसका तो मैं जिक्र भी नहीं कर सकती थी,अपने पैरेंट्स से. और मैने भी  चुप्पी साध ली. बुरा तो बहुत लगा...एकाध पत्र आए उसके पर मैने जबाब नहीं दिया..मेरे पास और कोई चारा ही  नहीं था.


आज तक वो अपराध बोध मन को सालता है...क्या छवि होगी, उसके मन में बिहार वासियों की..एक ने प्यार में धोखा दिया...दूसरे ने दोस्ती में....


अब थोड़ा अपने नाम का कन्फ्यूज़न दूर कर दूँ. मेरे उपनाम 'रविजा' से कोई मुझे मुस्लिम समझते हैं...तो कोई पंजाबी....कोई सिन्धी तो कोई गुजराती . कुछ समय पहले किसी ने मंगलोरियन भी पूछ लिया ।जयपुर यात्रा में तो एक दुकानवाले ने पूछा, आर यू फ्रॉम साउथ अफ्रीका ' । पता चला साउथ अफ्रीका से बहित टूरिस्ट आते हैं। 

ज्यादातर लोग सोचते हैं ,'रविजा' मेरा सरनेम है. जब शोभना चौरे जी ने टिप्पणी में मेरे पतिदेव को 'मिस्टर रविजा' कहकर संबोधित किया तो बहुत ही मजा आया.सिर्फ महिलाएँ ही मिसेज..फलां...फलां क्यूँ कहलाती रहें :)

ये 'रविजा' उपनाम मैने स्कूल के दिनों में ही रखा था. लिखना शुरू करने से भी पहले. शायद पत्रिकाओं में लेखकों/ कवियों के नाम देख शौक चढ़ा हो. पर रविजा के पहले रखा था, '
रश्मि विधु'. मालती जोशी की कहानी में एक लड़की का नाम 'विधु' था जो बहुत पसंद आया था. और सिर्फ मुझे ही नहीं...वंदना अवस्थी दुबे ने भी वो कहानी पढ़ी थी और इतनी प्रभावित हुई थी कि ज़ेहन  में वो नाम छुपा कर रखा और अपनी बिटिया का नाम 'विधु' रखा है.

पर कुछ दिनों बाद मुझे कहीं
'रविजा' शब्द दिखाई दिया और ये मुझे ज्यादा उपयुक्त लगा. रवि + जा = रविजा. यानि सूर्य से निकली हुई . रश्मि का अर्थ तो किरण है ही. यानि सूर्य से निकली हुई किरण.
तो मेरा नाम  'चन्द्र किरण' से 'सूर्य किरण' में बदल गया. जो शायद ज्यादा उपयुक्त है.:)


अब शायद रश्मि को रविजा के साथ ने अपना पक्ष रखने की हिम्मत दे दी है.  अगर आज इस तरह का कोई वाकया सामने आता और किसी निशा ने मदद या सलाह मांगी होती तो मैं चुप्पी नहीं साध लेती. उसे चीज़ों को सही रूप में दिखाने का प्रयत्न जरूर करती. और अगर तब भी वो नहीं समझती तो जरूर किनारा कर लेती

56 टिप्‍पणियां:

  1. संस्मारों का सुन्दर सिलसिला... रविजा की उत्त्पत्ति अच्छी लगी.... बहुत सुन्दर !

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  2. कम उम्र में जो घबराहट हुई वह स्वाभाविक है .... नाम के अनुरूप लेखनी होती है . सबसे बड़ी बात कि सत्य को परखने की विलक्षण क्षमता है.... 'मिस्टर रविजा ' सुकून दे गया - हाहाहा

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  3. रश्मि रविजा जी , रश्मि नाम ही इतना प्यारा है कि इसके बाद किसी नाम की ज़रुरत ही नहीं थी ।
    लेकिन अब असली नाम भी बता दीजिये ।
    सच उन दिनों में प्यार शब्द बड़ा कठिन लगता था । आपने कुछ गलत नहीं किया ।

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  4. रविजा………सूर्य से फैलती रश्मि…………वास्तव में यह रविकिरण चहुं और प्रसरी है। सार्थक चयन का प्रारब्ध भी।

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  5. आप डिब्बे जोडते जाओ, हम हरेक को छान मारेंगे,

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  6. उस वक्त जो उपयुक्त था, वो किया अतः अपराध बोध तो न ही पालें...वैसे रविज़ा सरनेम नहीं है -यह आज जाना. :)

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  7. वास्‍तव में धर्म संकट में डालने वाला पत्र था। ऐसे समय ही हमें पता लगता है कि व्‍यक्ति स्‍वतंत्र नहीं है, वह परिवार की ईच्‍छा-अनिच्‍छा से बंधा रहता है। इस समस्‍या के दो ही तरीके थे या तो उसे पत्र द्वारा सूचित कर दिया जाता कि पत्र मित्रता को पत्र मित्रता ही रहने दो। या फिर मौन। कई बार आते हैं जीवन में ऐसे संकट, जब मित्र सामाजिकता नहीं समझ पाते।

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  8. इस संस्मरण को पढ़ने के बाद हमें अपना जमाना याद आ गया। जैसे ..
    १. एक अकेली लड़की का इतनी दूर से अकेले आना , मम्मी-पापा को अच्छा लगेगा या नहीं.
    २. ममी-पापा के सामने 'प्यार' जैसे शब्द की चर्चा भी नहीं करते थे हमलोग.
    बड़े बेशक़ीमती दिन थे वे।
    आपके नाम का अर्थ जानना अच्छा लगा।

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  9. एक जमाना था पत्र मित्रता का.
    मनोयोग से ख़त लिखे जाते थे.
    और उनका जवाब दिया जाता था.

    अपने जीवन से जुड़े संस्मरण से अवगत करने के लिए आभार

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  10. एक बार मैंने भी गलती की थी और जब आपने समझाया तो मुझे समझ में आ गया अर्थ.. आज नामकी गाथा भी बहुत मनोरंजक लगी!!
    आपके शब्दों में गाड़ी का ये एक्स्ट्रा कोच भी बड़ा सुन्दर था!!

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  11. अच्छा हुआ ग़लतफहमी दूर कर दी वरना हम भी शोभना जी वाली गलती कर देते ...
    सच में उस समय हालत ख़राब हो गई होगी माँ पिता जी से क्या कहें और तो और ....मित्र से क्या ????

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  12. ऐसे कई अपराधबोध सालते रहते है उमड़ घुमड़ कर

    उस समय जो किया वह समय की मांग थी

    संस्मरणों के डब्बे जोड़ते जाईए, हम सैर के लिए तैयार हैं

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  13. यथा ’गुण’ तथा ’उपनाम’ :)
    आपकी प्रस्तुति तो शानदार होती ही है.

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  14. एक बात तो है.... कि आपकी बात ही कुछ अलग है.... हाँ! थोड़ी सी तो अलग है... और यही आपको ब्लॉग जगत के तमाम कचरे से अलग करता है... आपकी पोस्ट एकदम आर.ओ. मशीन जैसी होती है... तमाम इम्प्युरीटीज़ फ़िल्टर कर देती है...एकदम नई और अनूठी पोस्ट...

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  15. एक बात तो है.... कि आपकी बात ही कुछ अलग है.... हाँ! थोड़ी सी तो अलग है... और यही आपको ब्लॉग जगत के तमाम कचरे से अलग करता है... आपकी पोस्ट एकदम आर.ओ. मशीन जैसी होती है... तमाम इम्प्युरीटीज़ फ़िल्टर कर देती है...एकदम नई और अनूठी पोस्ट...

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  16. जारी रहें कड़ियाँ..... आपको जानना अच्छा लग रहा है...... वैसे मैं भी ' रविज़ा 'आपका सरनेम ही समझ रही थी :)

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  17. दुबारा फिर से लौटा हूँ:
    मेरे दो दोस्त हैं ब्लॉग जगत में
    संजय अनेजा (मो सम कौन)
    दीपक टुटेजा (दीपक बाबा की बकबक)
    मेरी एक सहकर्मी हैं कांता तनेजा.
    इसी कारण मैं भी आपको अपनी पोस्ट पर "रवीजा" लिखा करता था. आपने एक बार टोका,तब समझ गया कि यह तनेजा, अनेजा या टुटेजा वाला "रवीजा" नहीं है .. यह तो नीरजा, वनजा, जलजा वाला रविजा है!!
    दोबारा कभी गलती नहीं हुई मुझसे!!

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  18. रश्मि से रविजा तक सफ़र जानना बहुत अच्छा लगा...लेखन की दुनिया में आपके नाम से मि.रविजा कभी कभी कहा जा सकता है :)

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  19. समीर जी की बात सही लगी , इसलिए उन्ही के शब्द दोहरा रहा हूँ ...(मैं भी यही सोच रहा था) की .....

    "उस वक्त जो उपयुक्त था, वो किया अतः अपराध बोध तो न ही पालें"

    नाम में रविजा शब्द पर इतना ध्यान नहीं दिया था लेकिन इस बारे में जानना सुखद लगा :)

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  20. उस वक्त जो सही था...वाही किया आपने...
    मैं तो 'रविजा'को आपका सरनेम समझता था...

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  21. उस आयु में कोई भी बात जो परिवार के लोगो को पसंद नहीं है का सामना होते ही घबराहट हो जाती थी भले उसे कोई और कर रहा हो फिर इस तरह की परिस्थितियों को संभालने के लायक हम समझदार नहीं हुए होते है अब भले वो छोटी सी बात लगे | रविजा का अर्थ मुझे लगा सूर्य की पुत्री है, "जा" का अर्थ मुझे पुत्री पता था, जैसे इंद्रजा का अर्थ इंद्र की पुत्री है ये मेरी बहन का नाम है और रश्मि मेरी स्कुल के दिनों की सबसे अच्छी मित्र का नाम था पर वो मित्रता स्कुल तक ही सिमित रह गई |

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  22. @सलिल जी,
    कोई 'रवीजा' लिखे तो हमेशा खटकता है...अक्सर मैं नहीं टोकती और कभी-कभी अपनेअपन से टोक भी देती हूँ. आप भी fellow Bihari हैं...इसलिए शायद टोक दिया होगा. ...पर इसे सरनेम समझ कर आपने तो मुझे बिहार का नहीं समझा होगा...:)

    अक्सर लोग नहीं समझते...बिहार की कन्याओं की बड़ी सधी-साधी प्यारी सी छवि है...जो मुझसे मेल नहीं खाती.

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  23. @अंशु जी,
    रश्मि मेरी स्कुल के दिनों की सबसे अच्छी मित्र का नाम था पर वो मित्रता स्कुल तक ही सिमित रह गई .

    लीजिये एक दूसरी रश्मि रूप बदल कर आ गयी....बस दुआ है...इस मित्रता की कोई समय-सीमा ना हो...life-time ki ho..:)
    {आमीन :)}

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  24. आप सब लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया.
    अच्छा हुआ..वो वाकया मैने यहाँ शेयर किया...आपलोगों की प्रतिक्रिया देख तो मेरे मन का अपराध-बोध, कम ही नहीं...धीरे-धीर गायब ही होता जा रहा है.

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  25. रविजा नाम रखने का कारण जानना अच्छा लगा।
    निशा के साथ जो हुआ अच्छा ही हुआ। वह भविष्य के दुखों से बच गई। यदि उस व्यक्ति के साथ कोई दुर्घटना न घटी हो तो वह व्यक्ति खोजने लायक था ही नहीं। ऐसे लोग प्रेम अपने मन से करते हैं व विवाह परिवार के मन से दहेज लेकर करते हैं। चित भी मेरी पट भी मेरी वाले ये लोग किसी निशा के योग्य नहीं होते।
    किशोरावस्था तो और भी अधिक साहस की उम्र होती है क्योंकि तब समाज, परिवार या उनकी किसी भी गलत बात, मूल्य, नीति का विरोध करने का दमखम होता है। व्यक्ति आदर्शवादी होता है और परिवर्तन की चाहत भी रखता है और उसे लाने की राह साफ करने की मेहनत व कीमत चुकाने को तैयार भी रहता है। बदलाव व विद्रोह कीमत माँगते हैं। यदि यह आया है तो केवल इसलिए कि किन्हीं ने इसकी कीमत चुकाई होगी।
    वैसे सतत्तर का जो बिहार मैंने देखा उसमें ऐसी संभावनाएँ कम ही थीं।
    घुघूती बासूती

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  26. पिछली पोस्ट पर टिपण्णी करने का सोचता ही रह गया. उस पोस्ट को पढ़ कर भी अनरेड मार्क कर रखा था और आज ये पोस्ट दिखी. अच्छा लग रहा है आपके बारे में जानना. [मैं टिपण्णी नहीं करता इसका मतलब या तो पोस्ट 'बहुत अच्छी' लगी या... बिलकुल भी नहीं. वैसे इसका मतलब ये नहीं है कि ये पोस्ट अच्छी नहीं लगी ;) इसका मतलब ये है कि पिछली ज्यादा अच्छी लगी थी.]
    मुझे लगता है कि उस जमाने में आपकी जगह शायद कोई और भी यही करता.

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  27. शुरू की कहानी तो आपने अधूरी छोड़ दी -अच्छा आज आपने स्पष्ट कर दिया कि आप मुसलमान नहीं हैं -फिर तब क्या हैं (मैं उम्र नहीं पूछ रहा -इसलिए यह कोई गुस्ताखी नहीं

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  28. रीना के रश्मि और फिर रविज़ा बनने की कहनी भी कम दिलचस्प नहीं ...
    हालाँकि वह समय मुश्किल था इतनी हिम्मत दिखने का , तुमने ठीक ही किया ...शायद मैं भी यही करती ....मगर उस समय में भी मेरी एक फ्रेंड ने अपनी अज़ीज़ दोस्त को भगाने में मदद की थी , आज वह लड़की एक सफल मैर्रिड लाईफ जी रही है ...क्या करूँ मुझे ऐसी दुस्साहसी फ्रेंड्स मिल जाती है :)

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  29. aapki ye yadon ki rail ka safar to sahi me bahut majedar hai...kitni sari baate pata chal rhi hai

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  30. तुम संस्मरण जोडे जाओ और हम पढे जायेंगे।

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  31. राहुल सिंह जी की इमेल से प्राप्त टिप्पणी.

    ''तमसो मा ज्‍यातिर्गमय. कई बार हमारी अनुपस्थिति में ('में' के बदले 'से' भी कह सकते हैं) भी चीजें बे‍हतर होती हैं''.

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  32. बिहार की कन्याओं की बड़ी सधी-साधी प्यारी सी छवि है

    मेरी इस प्रतिटिप्पणी सुधार कर सधी-साधी = सीधी-सादी पढ़ा जाए. लोग क्या क्या कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार की लडकियाँ बड़ी सधी हुई होती हैं.:)

    पर मेरा ये मानना है कि...हर जगह, हर तरह के स्वभाव के लोग मिल जाएंगे.

    हाँ ,परिवेश का फर्क जरूर पड़ता है...छोटे शहरों- कस्बों में आज भी लड़कियों के जीवन के सारे निर्णय दूसरों द्वारा लिए जाते हैं जबकि महानगरों की लडकियाँ ज्यादा मुखर हैं, अपनी पसंद-नापसंद बताने में.

    इसलिए मुंबई-दिल्ली की लडकियाँ...स्मार्ट और बोल्ड कहलाती हैं...और दूर दराज गाँवों-कस्बों की सीधी-सादी {इस बार सही लिखा :)}

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  33. @घुघूती जी,
    बिलकुल सही कहा आपने....निशा हर हाल में उस धोखेबाज़ के बगैर ज्यादा सुखी होगी.

    अफ़सोस है कि बिहार-झारखंड के चंद बड़े शहरों की बात छोड़ दें तो बाकी जगहों में लड़कियों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. आज भी वे आत्मनिर्भर नहीं हैं...और उनके जीवन के निर्णय दूसरों द्वारा ही लिए जाते हैं.

    लेकिन बिहार सिर्फ बड़े शहरों से ही तो नहीं बना...जैसे हमारा देश..सिर्फ मुंबई-दिल्ली-कोलकाता-बैंगलोर तक ही सीमित नहीं है...जब तक पूरे देश की स्थिति नहीं बदलेगी...कैसे देश की प्रगति पर गर्व कर सकते हैं.

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  34. @ अभिषेक

    चलिए फिर मान लेते हैं...कि जिन पोस्ट पर आपने टिप्पणी नहीं की वो आपको बहुत अच्छी लगी...:):)

    पर किसी पोस्ट में कोई कमी लगे तो बता दिया करें, बाबा...मेल में ही सही ...आप सुधार का मौका...छीन रहे हैं...ये अच्छी बात नहीं (अटल जी स्टाइल )

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  35. @अरविन्द जी,
    शुरू की कहानी तो आपने अधूरी छोड़ दी
    अब उसके बाद निशा के जीवन में क्या हुआ...मुझे भी पता नहीं...तो कहानी कैसे पूरी हो??

    और जहाँ तक मेरी जाति का सवाल है....उसे बताने से रत्ती भर भी फर्क पड़ता, तो मैं जरूर बता देती. छुपाने जैसा कुछ नहीं..पर बताने जैसा भी क्या है....आप मुझे फौरवर्ड- बैकवर्ड-शेड्यूल कास्ट-शेड्यूल ट्राइब ...कुछ भी समझने को स्वतंत्र हैं..:)

    वैसे ब्लॉग पोस्ट्स में तो सबकुछ unfold होता ही जाता है..जैसे गणपति पूजा की तस्वीरों से पता चल गया ,मैं हिन्दू हूँ....'उन्नीस साल' के बेटे की माँ के उम्र का अंदाजा लगाना भी मुश्किल नहीं :)
    शायद जाति भी पता चल जाए कभी...अनायास ही..:)

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  36. रश्मि से रविजा तक का सफ़र बहुत सुहाना लगा। मेरी मौसी का नाम 'विधु' है जो कानपुर में रहती हैं। आजतक उनके सिवा ये नाम नहीं सुना था कहीं , आज पहली बार इस नाम का जिक्र आपके लेख में सुना। बहुत अच्छा लगा.

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  37. रश्मि और फिर रविज़ा बनने की कहनी दिलचस्प अपने जीवन से जुड़े संस्मरण से अवगत करने के लिए आभार

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  38. बहुत अच्छा संस्मरण है आपका
    उम्दा प्रस्तुती!

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  39. आपके नाम के साथ लगे रविजा के तात्पर्य की ओर आज तक कभी मेरा ध्यान गया ही नहीं था....चलिए आज जान लिया...

    लेकिन आपने जो वाकया बताया , मन भारी हो गया...

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  40. आपके संस्मरणों का यह सफर बहुत अच्छा लग रहा है ! आप जिस विषय पर भी लिख देती हैं वह स्वत: ही विशिष्ट बन जाता है ! आपके उपनाम को लेकर पता नहीं क्यों मुझे कोई भ्रम कभी नहीं हुआ ! आपके नाम के साथ ही एक प्रखर, तेजस्विनी 'सूर्यपुत्री' की छवि मस्तिष्क में उभर आती है ! यथानाम तथा गुण ! आपने अपने लिये सही नाम का चयन किया है ! निशा के प्रसंग ने आहत किया ! निशा जैसी लड़कियाँ स्वार्थी एवं आत्मकेंद्रित कायर पुरुषों की मानसिकता का शिकार बन जाती हैं और जीवन भर के लिये दर्द पाल लेती हैं ! आपका यह सफर अनवरत चलता रहे और हम सब इससे लाभान्वित होते रहें यही शुभेच्छा है !

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  41. उस लड़की के मामले में कोई अपराध बोध नहीं रखें ! ठीक किया था वह नादाँ थी और अगर उसका साथ देती तो मुसीबत में पड़ सकती थी !

    रविजा के बारे में रहस्योद्घाटन कर अच्छी और आवश्यक सूचना दी है बेहतर है अपने परिचय में प्रकाशित कर रखें जिससे आने वाले समय में दुबारा स्पष्टीकरण नहीं देना पड़े !

    शुभकामनायें !

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  42. आपका यह संस्मरण एक सस्पेंस कहानी की तरह प्रारम्भ हुआ और दुष्यंत शकुंतला की स्थिति तक पहुंच गया लेकिन फिर बीच में ही समाप्त हो गया । मुझे लगता है यह एक तरह से ठीक ही हुआ ।
    बहरहाल आपके नाम के अर्थ का अन्दाज़ तो हमने लगा लिया था , पूछने की हिम्मत नही कर पाये । हाँ यह प्रेरणा अवश्य मिली कि अब हम भी लोगों को अपने उपनाम का अर्थ बतायें ... लेकिन क्या करें हमसे कोई पूछता ही नहीं !!!

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  43. संस्मरण का सिलसिला बहुत सुंदर चल रहा है. इसमें दो चार क्या काफी सरे डब्बे जोड़े जा सकते है. और आज तो नाम का रहस्योदघाटन भी हो गया.

    काफी मज़ा आया.

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  44. roz man ka pakhi me chakkar lagate-lagate aaj yahan aapko padhne ka mauka mil hi gaya...dhanywaad..

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  45. @शरद जी,
    बहरहाल आपके नाम के अर्थ का अन्दाज़ तो हमने लगा लिया था , पूछने की हिम्मत नही कर पाये ।

    इतनी खूंखार दिखती हूँ मैं.....कि पूछने की हिम्मत नहीं कर पाए :(:(

    और आप अपना उपनाम( 'तखल्लुस) बताएं तो पहले...फिर उसका अर्थ पूछा जायेगा ना....:)
    लीजिये हमने उपनाम और अर्थ दोनों पूछ लिए. :)

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  46. @सॉरी नेहा .
    काफी लोग कहानी नहीं पोस्ट करने की शिकायत कर चुके हैं....जल्दी ही कोशिश करती हूँ....आजकल कहीं और व्यस्त हूँ थोड़ी.

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  47. आपने समय अनुसार जो किया ठीक किया ... अब शायद कुछ करें क्योंकि परिस्थिति अलग है ....
    रवीजा का इतिहास ... उसकी उत्पत्ति जान कर अच्छा लगा ... वैसे मैं भी अभी तक ये आपका सर नें ही समझ रहा था ....
    मिस्टर रवीजा ... सुनने में कभी कभी आपके पातिदेव जी को ज़रूर अच्छा लगता होगा ...

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  48. रश्मिजी
    बहुत बढ़िया चल रही है आपकी संस्मरण यात्रा |
    देर से आने का फायदा ये है की अच्छी अच्छी टिप्निया पढने को मिली |और हम तो बिलकुल जलेबी की तरह सीधे साधे म.प्र की कन्या रहे इसीलिए आपके उपनाम को सरनेम बना दिया |हहहः
    अभी कुछ दिनों के लिए इंदौर में हूँ थोड़ी व्यस्तता है |
    शुभकामनाये

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  49. रवि + जा = रविजा. यानि सूर्य से निकली हुई...
    यह तो मेरे लिए नई जानकारी रही :)

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  50. आज भांजी का लैपटॉप मिला तो सबसे पहले तुम्हारी पोस्ट पर आई. शानदार इतिओहास है रश्मि से रविजा तक का. (वैसे मुझे ये इतिहास मालूम था :)विधु का ज़िक्र हो गया, उसे पढाया मैने. प्रसन्न हो गई वो. तुम्हारी नयी [पोस्ट भी दिख रही है, आती हूं जल्दी ही उसे पढने.

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  51. अच्छा तो ऐसा है।मुझे भी रविजा आपका सरनेम ही लगता था।पर कुछ भी हो ये आपके नाम के साथ जमता तो है।

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  52. प्रिय सूर्यपुत्री,
    आयुष्मति भाव: ! :)
    उस वक्त जो भी सही था वही तुमने किया।
    इतना फारवर्ड ज़माना नहीं था कि तुम दोनों सहेलियाँ निकल पड़तीं प्रेमी की तलास में, बोलीवूड का फिलिम था का :)

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  53. .....अर्थात मैं पहला नहीं हूँ , रवीजा साहब कहने वाला ।

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