जब से ब्लॉगजगत में शामिल हुई हूँ, अपनी सहेली द्वारा वर्णित इस घटना के विषय में लिखने की सोच रही थी. और आज महिला दिवस के अवसर पर इसका जिक्र सबसे उपयुक्त लगा.
पहले अपनी सहेली का संक्षिप्त परिचय दे दूँ. (परिचय क्यूँ जरूरी है,आपको आगे पता चल जायेगा) . अंग्रेजी में बी.ए.(ऑनर्स) करने के बाद वह, इकॉनोमिक टाईम्स, आइलैंड, सोसाईटी जैसी पत्रिकाओं से पत्रकार के तौर पर जुड़ी रही. शादी के बाद भी काम करती रही, पर बच्चों के जन्म के बाद नियमित पत्रकारिता, छोड़,फ्रीलांसिंग अपना ली.पहले भी वर्क असाईमेंट पर अकेली,सिंगापुर,मॉरिशस वगैरह जाती थी, पर तब हफ़्तों के लिए जाती थी,अब हैदराबाद,दिल्ली वगैरह,सुबह जाकर शाम को चली आती है,वजह वही बच्चों की देखभाल.
जब मैंने कहा, 'तुम्हारा नाम लिख दूँ,ना?' तो बोली.."रहने दो, नाम से ज्यादा कथ्य महत्वपूर्ण है." इस आलेख में उसे मुदिता नाम से संबोधित करती हूँ, क्यूंकि उसे यह नाम बहुत ज्यादा पसंद है. जब मैंने पूछा, "इतना पसंद है,तो अपनी बेटी का क्यूँ नहीं रखा?."..बोली,"पति को 'अनघा' नाम ज्यादा पसंद था".(वे पुरुष,जो समझते हैं, आधुनिक स्त्रियाँ सिर्फ अपने मन का चलाती है , वे आश्वस्त हो जाएँ कि यह बस उनका भ्रम है. अगर वे स्त्रियों को इज्जत देते हैं तो दुगुनी इज्ज़त,उनसे पायेंगे.)
मुदिता के पिता ,काफी बीमार थे और ICU में एडमिट थे. जिनके भी प्रियजन, ICU में हों,उनके एक परिवारजन को चौबीस घंटे उनकी निगरानी के लिए रहना होता है. मुम्बई में ज्यादातर ये जिम्मेवारी औरतें ही निभाती हैं. एक बड़े से हाल में कुछ पतली बेंचें और आराम कुर्सियां पड़ी होती हैं.पूरा समय उन्हें उसी पर गुजारना पड़ता है,रात में भी उसी पर सोना पड़ता है,अधिकतर रात में भी औरतें ही,वहाँ सोती हैं क्यूंकि पति को दिन में ऑफिस जाना होता है,और उन्हें रात में पुरसुकून नींद की जरूरत होती है. मुदिता भी रोज रात वहीँ सोती थी. एक रात वह सोने की कोशिश कर रही थी कि उसे कुछ आभास हुआ.मध्यम रोशनी में उसने देखा, कोने में रखी 'ईसा मसीह' की मूर्ति के पास एक नारी आकृति घुटनों पर झुकी प्रार्थना में लीन है. पर उसके कंधे बार बार काँप रहें थे जिससे पता चल रहा था कि वह निशब्द रो रही है.
मुदिता ,उठ कर उसके पास गयी और उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह बेआवाज़ ही फफक पड़ी. मुदिता उसके पास ही फर्श पर बैठ गयी.पूछने पर पता चला,वह सिर्फ मराठी ही बोल पाती है.मुदिता, दक्षिण भारतीय है और उसकी संपर्क भाषा ,अंग्रेजी है.पर मुंबई में पले ,बढे होने के कारण उसने दसवीं तक 'मराठी' भाषा पढ़ी थी.जो आज काम आ गयी.
मुदिता के स्नेह पगे स्वर और आत्मीय स्पर्श ने उसे अपना दिल खोल कर रखने पर मजबूर कर दिया.उसने बताया कि वह 'कोली' जाति की है (यह मछुआरों की जाति होती है ).उसके पूर्वजों ने क्रिश्चन धर्म अपना लिया था जिससे उसे ग्लोरिया जैसा सुन्दर नाम मिल गया.ग्लोरिया ने प्रेम विवाह किया था.उसका पति मुहँ अँधेरे उठ कर मछली पकड़ने जाता और दिन में ग्लोरिया वही मछली बाज़ारों में बेचने जाती.उनके दिन आराम से कट रहें थे. जीसस ने उन्हें दो बेटों से नवाज़ा और दंपत्ति अब तीसरी संतान के आगमन की प्रतीक्षा कर रहें थे. तभी ग्लोरिया का पति मलेरिया से ग्रसित हुआ और ईश्वर ने उसे अपने पास बुला लिया.वह बेटी का मुहँ भी नहीं देख पाया.
तीन बच्चों के लालन पालन की जिम्मेवारी,ग्लोरिया पर आ पड़ी.अब उसे कोई मछली पकड़ कर लाकर देनेवाला भी नहीं था.लिहाज़ा उसने सूखी,मछली बेचना शुरू किया.(मुंबई में सूखी मछली, मछली का अचार, मछली की चटनी बहुत प्रचलित है,उसपर एक पोस्ट फिर कभी ) ग्लोरिया के बच्चे अब स्कूल जाने लगे. यहाँ कई अच्छे स्कूल हैं,जिनकी फीस ७,८ रुपये है.उन स्कूलों में 'जेनेरल मैनेजर', डॉक्टर, इंजीनियरों के बच्चों से लेकर ऑटोवाले,कामवालियों के बच्चे भी पढ़ते हैं. लेकिन फीस के अलावा भी बच्चों की सौ जरूरतें होती हैं. ग्लोरिया ने घरों में बर्तन मांजने का काम भी शुरू कर दिया. अब वह दिन में घरों में काम करती और शाम को एक घंटे का सफ़र तय कर शाम ६ बजे से ९ बजे तक बड़े बाज़ार में मछली बेचने जाती. घर लौटने में रात के दस बज जाते.
ऐसे ही संघर्ष करते दिन बीत रहें थे.इस बीच, उसका १४ वर्षीय बेटा बीमार पड़ गया. एक दिन रात दस बजे लौटी तो देखा,बेटा बेहोश पड़ा है. पास के डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने बड़े अस्पताल में ले जाने को कहा. इस अस्पताल में उसे 'मेनिन्जाईटिस' रोग बता कर ICU में भर्ती कर लिया गया. इस अस्पताल में गरीबों के लिए खर्च में ५०% की कटौती की सुविधा है.फिर भी ग्लोरिया को २५ हज़ार रुपये का इंतज़ाम करना था.बेटा ICU में और वह पैसे के लिए दर दर भटकने लगी. दो-तीन चर्च में जाकर गुहार लगाई. चर्च में गरीबों के लिए एक कोष होता है, जिससे उसे काफी मदद मिली. कुछ पैसे महाजनों से भी लेने पड़े.
इन सब चक्करों में वह तीन दिनों तक घर नहीं जा पायी. घर पर दो छोटे बच्चे थे. पास में रहने वाली बहन ने उनकी देख रेख की. बहन की स्थिति भी 'रोज कुआं खोदो और रोज पानी पियो' जैसी ही थी. वह इस से ज्यादा ग्लोरिया की कोई और मदद नहीं कर सकती थी. ग्लोरिया के दिन भी कभी दो बिस्किट ,कभी एक बड़ा पाव पर कट रहें थे.
बेटे की स्थिति अब कुछ संभल गयी थी.पर इन परेशानियों ने ग्लोरिया की आँखों से नींद जुदा कर दी थी. वह आँखें बंद करती और सर दर्द से कराहते बेटे का चेहरा सामने आ जाता और नींद खुल जाती. मुदिता ने उसे बहुत समझाया कि उसका समय पर खाना खाना,पूरी नींद लेना, अपना ख़याल रखना कितना जरूरी है.तभी वह अपने तीनों बच्चों का ख़याल रख पायेगी.उन्हें एक अच्छा भविष्य दे पाएगी.उसे समझा बुझा कर सोने भेजने में रात के ३ बज गए.
सुबह ग्लोरिया ने बताया कि अरसे बाद उसे इतनी अच्छी नींद आई है और वह बहुत हल्का महसूस कर रही है.अब मुदिता ने ग्लोरिया का अलग ही रूप देखा.वह बहुत ही चुलबुली और बातूनी थी.सबके पास जाकर बैठती,उनके हालचाल पूछती.किसी की भी मदद को झट तैयार हो जाती. एक रात, करीब एक बजे एक सत्तर वर्षीया वृद्धा आयीं,जिनकी बेटी को दमे का अटैक पड़ा था और उसे ICU में भर्ती कर लिया गया था. वृद्धा बहुत ही परेशान दिख रही थीं. ग्लोरिया ने जब पास जाकर पूछा,तब उन्होंने बताया कि उनके साथ कोई नहीं है और उनका बेटे से कोई कॉन्टैक्ट नहीं हो पा रहा है जो काफी दूर रहता है,जाने में करीब २ घंटे लगते हैं.ग्लोरिया ने सबको जगा दिया.सबलोग मदद के लिए आगे आ गए. पर उन वृद्धा की मोबाईल की बैटरी ख़त्म हो गयी थी और बेटे का नंबर उन्हें याद नहीं था.एक सज्जन आगे आए (महिला दिवस है,पर हम किसी पुरुष द्वारा किया गया,सत्कार्य भी क्यूँ ना याद करें) जिनके पिता खुद ICU में थे और सीरियस थे.उन सज्जन के पास अपनी गाड़ी भी नहीं थी.फिर भी रात के दो बजे वे उन माता जी को साथ ले ऑटो से उनके बेटे के घर की खोज में चल पड़े. घबराहट में वे बार बार कॉलोनी का नाम ,बिल्डिंग,लोकेशन सब भूल जातीं.पर उन सज्जन ने धैर्य बनाए रखा और दो तीन ऑटो बदल कर भी माता जी के बेटे का घर ढूंढ निकाला.
मुदिता के पिता और ग्लोरिया का बेटा स्वस्थ होकर घर लौट आए. दोनों ने मोबाईल नंबर एक्सचेंज किया और संपर्क बनाए रखा. संयोग से मुदिता और ग्लोरिया का जन्मदिन भी एक ही दिन है. जब मुदिता ने उसे विश करने को फोन किया तो बेटे ने फोन उठाया और बोला, "आज तुमचा पण बाढ़दिवस(जन्मदिन) आहे,ना? माँ सुबह बता रही थी कि आपको फोन करेगी . अभी तो काम पर गयी है."
तो ये हैं, आज की आधुनिक और सम्पूर्ण नारियाँ, जिनेक दम पर भारतीय संस्कृति फल-फूल रही है और ये उस पर एक खरोंच भी नहीं आने देंगी.एक, दिन भर घर घर में बर्तन मांजती है, शाम को मच्छी बेचती है पर चेहरे पर मुस्कान सजाये हमेशा सबकी सेवा को तत्पर रहती है. और दूसरी, फाइव स्टार में पार्टी अटेंड करती है, जींस-स्कर्ट पहनती है, अक्सर प्लेन से ही सफ़र करती है पर जरूरत पड़ने पर नंगे फर्श पर बैठ एक मछुआरिन के दुःख दर्द में शामिल होने से गुरेज़ नहीं करती.
(और यह सब उस शहर में घटित होता है ,जिसे संवेदनाविहीन कंक्रीट जंगल कहा जाता है )
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आंखें नम कर देना वाला लेख. स्त्री या पुरुष होने से ज्यादा ये इंसान होने से वास्ता रखने वाला प्रसंग है. अच्छे लेखन के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआंखें भीग जाती हैं सबकी
जवाब देंहटाएंबस में है मदद इंसान के
पत्थर कहीं नहीं होते हैं
जो होते हैं इंसान के ही बनाए हैं
इंसान जो होता है पत्थर दिल
वो भी पिघल पिघल जाता है
कंक्रीट हमने बिछाए हैं, बनाए हैं
उसके अंदर हम भी नम हैं
जीवन के जज्बे को नमन है।
शुक्रिया..चंडीदत्त जी...सच कहा...स्त्री, पुरुष, लेखक,कवि या कलाकार ...कुछ भी होने से पहले एक अच्छा इंसान होना ही अधिक मायने रखता है..
जवाब देंहटाएं"ऐसी है, आज की नारी"
जवाब देंहटाएंओर ऎसी नारी के आगे मर्द भी झुकता है, उसे प्रणाम करता है,इस नारी मै मां, बहिन,बेटी, सखी ओर बीबी का रुप दिखता है, धन्य है यह नारी, बहुत सुंदर लिखा आप ने , तभी तो हम नारी को पहले पुजते है.
ऐसी सच्ची घटनाये हमारे इर्द गिर्द होती रहती है पर हमार ध्यान अकसर नकारात्मक बातो पर ही जाता है.
जवाब देंहटाएंनाम मुदिता हो या कोई और कोई फ़र्क नही पडता.
नेकी और प्रेम का अपन नाम होता है.
Hi..
जवाब देंहटाएंMahila Divas par aapne do vibhinn parivesh ki mahilaon ke vratant ke madhyam se jo bhav rakhe hain wo prashansneeya hain..
Har vyakti ka yah kartavya hai ki wo apne aas pass ke har doosre vyakti ke dukh takleef main yatha sambhav madad kare..
Aaj ek haath wo badhayega to kal hazar hath uski taraf bhi badhenge.. Aakhir Diye se hi diya jalta hai..
Pyaar, maan, vishwas aur shradha..
Jo deta wo paata hai..
Dooje ke dukh main jo sahara..
De..Isaan kahlata hai..
DEEPAK..
विपत्ति कभी भी किसी के समक्ष आ सकती है .. हमें एक दूसरे की मदद करनी ही चाहिए .. आज यह भावना कम हो रही है .. इसलिए इस प्रकार के पोस्टों की अधिक आवश्यकता है .. सचमुच आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में कम नहीं !!
जवाब देंहटाएंनारी शक्ति तुझे सलाम...
जवाब देंहटाएंआज ही मुंशी प्रेमचंद का एक कथन पढ़ा है...
जिस पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं वो खुद ही महान हो जाता है...
जय हिंद...
chandidutt jee se asehmat hone ka koi sawal hi nahi uth ta yaha par to.....
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर वर्णन। आपने इस प्रसंग से मुझे अच्छा याद दिलाया। हमारे पड़ोस में भी ऐसी महिलाएं हैं, जो दूसरों की तकलीफ देखकर अपनी तकलीफ भूल जाती हैं। ये तो हर जगह ही हैं ना।
जवाब देंहटाएंआज सभी को थैंक्स कहें और हां, मां के भी चरण स्पर्श करना ना भूलें।
"और यह सब उस शहर में घटित होता है ,जिसे संवेदनाविहीन कंक्रीट जंगल कहा जाता है ।"
जवाब देंहटाएंअब मुम्बई के बारे में ऐसा नहीं कहा जाता ।
मुम्बई ने समय समय पर अपने संवेदंशील होने का परिचय दिया है ।
और मनुष्य का जन्म लेने का लाभ ही क्या यदि इतनी संवेदना व्याप्त न हो ।
काश इस संवेदना का विस्तार हर शहर में हो , हर गाँव में हो
और आप अपनी संवेदनशीलता से ऐसी घटनाओं को शब्द देती रहें ....।
आमीन......।
हाँ, सच में. इसी नारी के सहारे हमारा देश फल-फूल रहा है. मैंने जिस संगठन के साथ काम किया है, उसमें फल बेचने वाली से लेकर एन.आर.आई. अंग्रेजी की पत्रकार, डॉक्टर, वकील सभी हैं. पर कभी भी यह महसूस नहीं हुआ कि कोई किसी से कम है. यह बहनापा एक-दूसरे के दुःख-सुख बाँटने से लेकर आर्थिक मदद करने तक हर स्तर पर होता है. हम के साथ खाते-पीते, उठते-बैठते थे और एक साथ मार्च निकालते थे अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस को.
जवाब देंहटाएंइस जुझारू आज की नारी को हम सभी को सलाम करना चाहिये, जो अपने सुख-दुःख की परवाह न करते हुये, अपने परिवार, आस-पड़ोस, नाते-रिश्तेदार और समाज के किसी भी ज़रूरतमंद की मदद करने को तैयार रहती है.
आज के दिन मैंने तय किया है कि जितनी भी पोस्ट महिलाओं से सम्बन्धित होंगी, उन्हें पढ़कर टिप्पणी करूँगी. कई आयोजन हैं जहाँ जाना था, पर तबीयत खराब होने के कारण नहीं जा पा रही हूँ, तो ऐसे ही मनाऊँगी अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस. इस सिलसिले में पहली पोस्ट स्त्री विमर्श की पढ़ी और दूसरी आपकी. मुझे बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआज के युग की आपाधापी में भी हमारे अन्दर मानवता शेष है. आज की नारी उस संवेदनशीलता को निरंतर बनाये हुये है. यह भी सही है कि सबसे बड़ी बात है---मानवता.
बिलकुल महान और विद्वान् स्त्री या पुरुष होने की बजाय एक अच्छा इंसान (अपनी खूबियों और कमजोरियों सहित) होना बहुत बेहतर है ...
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस को सार्थक करती तुम्हारी ये कथा अच्छी लगी ...
हमेशा मेरे साथ रहने के लिए बहुत आभार ....
सुन्दर संस्मरण! महिला दिवस सभी को बधाई!
जवाब देंहटाएंमहिला हो या पुरुष मानवीय संवेदनाएँ होना बहुत जरुरी है।
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास और भाषा बहुत ही अच्छी है, इससे सभी को प्रेरणा भी लेना चाहिये।
महिला दिवस की बधाई।
ये स्त्री-पुरुष के भेद हमारे ही बनाए हुए हैं वास्तव में हम एक परिवार हैं जो एक-दूसरे का हाथ थामकर ही आगे बढ़ते हैं। हम सभी में मानवीय संवेदनाएं हैं लेकिन कभी व्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता और कभी व्यक्त ही नहीं कर पाते। बहुत अच्छी पोस्ट, बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह!! सही है सबसे पहले एक अच्छा इन्सान होना जरुरी है..बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंनारी के इस रूप को किसने देखा है? यही है नारी का वास्तविक चेहरा. लेकिन दुनियाँ को कुछ ही दिखाई देता है . उन्हें नारी सिर्फ विज्ञापन और फिल्मों में जोदिखता है वही उसका सच और सम्पूर्ण नारी जाति का सच मान बैठे हैं. ये लेख उनकी ही नजर हैं.
जवाब देंहटाएंwoman need liberation mentally and good post on this day
जवाब देंहटाएंये मानवीय संवेदनाएँ ही तो लोगों के कष्टों पर मलहम लगाती हैं। बहुत सुन्दर घटना के बारे में बताया है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बस इतनी सी ही बात तो समझानी है इस समाज को …………………नारी मे अदम्य शक्ति है उसका सदुपयोग होना चाहिये ………………उसके अधिकारों से उसे नवाज़ा जाना चाहिये फिर देखिये आसमान भी छोटा हो जायेगा उसके आगे……………बहुत सुन्दर लेख्।
जवाब देंहटाएंरश्मि दीदी
जवाब देंहटाएंबात कितनी भी छोटी क्यों न हो नज़रंदाज़ करके निकला नहीं जा सकता ...हर छोटी से छोटी घटनाएं भी संवेदनाओ को अन्दर तक झंझोड़ देती है ...इन्सान का प्यार इन्सान से उमड़ हीं जाता अगर हम अपने दुःख से बहार झांक कर औरों को सुने और सहानुभूति दें तो.
कहानी के सभी पात्र ,पर्स्तुत्कर्ता और हम सभी पाठक अलग अलग क्षेत्र भाषा प्रान्त के होने के बावजूद भी सर्वप्रथम इन्सान है और ये तो इंसानियत का तकाजा है की बांध देती है हम सब को एक आभासी रिश्तेदारी में ....पोस्ट मन को छू गया..इतनी सहजता से लिखना वास्तव में प्रेरणादायक है.
धन्यवाद
आखिर आपने इस कहानी को लिख ही दिया...बहुत अच्छा किया वाकई यही है आज की नारी .....इंसानियत की पहचान ,जिम्मेदारियों की पालन करता...और हर कार्य में सक्षम ...बहुत सुंदर ,मर्म्सपर्शी और प्रेरणादायक संस्मरण...शुभकामनाये..
जवाब देंहटाएंसंवेदना सबसे बड़ी चीज है ! स्त्री का सर्वांगीण निर्मित होता है इससे !
जवाब देंहटाएंअपने शील के चरम क्षणों में ऐसी स्त्रियाँ सभी संज्ञाओं, विशेषणों, सर्वनामों से अव्याख्येय स्वतंत्र नारी-प्राण हैं !
सब नातों के बीच और सब नातों के पार भी, एक ही चीज महत्वपूर्ण है..मानवता !
इस सुन्दर प्रविष्टि का आभार ।
कभी कभी इन्सानियत सबसे ऊपर आ जती है और यकीन मानिये, वो सबसे अद्भुत घड़ी होती है...
जवाब देंहटाएं@(और यह सब उस शहर में घटित होता है ,जिसे संवेदनाविहीन कंक्रीट जंगल कहा जाता है )
और मुम्बई तो अच्छा खासा शहर है जी...
बहुर मार्मिक और भावपूरण प्रसंग है। आज भी बहुत से अच्छे लोग हैं मगर उनके बारे मे सुना लिखा पढा कम जाता है। ये दुनिया ऐसे ही नही चल रही। अरे हाँ मुदिता तो मेरी बेटी का नाम है और वो भी इतनी ही संवेदनशील है। बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट भी। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावुक संस्मरण हैं। ऐसे लोग कम ही मिलते हैं।
जवाब देंहटाएंमैंने कहीं पढा था कि सायन अस्पताल के ICU के पास भी एक दो लोग केवल इसलिये हफ्ते में एकाध बार जाते हैं ताकि किसी को इसी तरह की एकाध नींद की मदद, थोडा ढाँढस और थोडा आशीर्वाद आदि दे-ले सकें।
''आज की आधुनिक और सम्पूर्ण नारियाँ, जिनेक दम पर भारतीय संस्कृति फल-फूल रही है और ये उस पर एक खरोंच भी नहीं आने देंगी.एक, दिन भर घर घर में बर्तन मांजती है, शाम को मच्छी बेचती है पर चेहरे पर मुस्कान सजाये हमेशा सबकी सेवा को तत्पर रहती है. और दूसरी, फाइव स्टार में पार्टी अटेंड करती है, जींस-स्कर्ट पहनती है, अक्सर प्लेन से ही सफ़र करती है पर जरूरत पड़ने पर नंगे फर्श पर बैठ एक मछुआरिन के दुःख दर्द में शामिल होने से गुरेज़ नहीं करती.''
जवाब देंहटाएंनिसंदेह!! इस में कोई अतिरंजना नहीं.
महिला दिवस पर एक प्रेरणात्मक सच्ची घटना का वर्णन करके आपने इस दिवस को सार्थक बना दिया है।
जवाब देंहटाएंवैसे अस्पताल जगह ही ऐसी है की , छोटे बड़े सभी एक दुसरे की मदद करने को तैयार हो जाते हैं।
शायद मानवता का जन्म ही वहां होता है न ।
excellent post!A gripping tale of two women!Worth making a tele-serial kind of a thing!
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक कहानी.....कहानी नहीं घटना ...संवेदनशीलता के कारण इसे पढ़ आज मस्तक गर्व से ऊँचा हो गया....
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस की शुभकामनायें
सबसे पहले देर से आने के लिये माफ़ी दी जाये.
जवाब देंहटाएंइन्सानियत से लबरेज़ प्रसंग. प्रेरक भी. मार्मिक प्रसंगों को पढते हुए, एक अलग ही आनन्दानुभूति हुई.बधाई.
आप द्वारा कहें संस्मरण से मै आत्मसात हुआ! यह बात सही है सबसे पहले इंसान कों नेक बनना चाहिए . आप द्वारा बताई बाते कही ना कही मानवीय संवेदनाओ के शिखर पर आरोहण करती प्रतीत हुई है. यही बात जीवन पद्धिति सांस्क्रति , सामाजिक और नैतिक मूल्यों का समवाय है.
जवाब देंहटाएंआभार
महावीर बी सेमलानी "भारती "
हे प्रभु यह तेरापथ
नारी का अस्तित्व सम्पूर्ण परिवार, समाज, राष्ट्र का व्यक्तित्व है उसके व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए. वह स्वय व्यक्तित्व शून्य रहकर अपनी भावी पीढ़ी का निर्माण कैसे करेगी ? महिलाओं कों आगे लाने में किसी तरह का भेदवाव नही होना चाहिए.
जवाब देंहटाएं"वुमन डे" पर रश्मिजी आपको शुभकामनाए एवं सभी महिला शक्ति कों मेरा प्रणाम!"
महावीर बी सेमलानी "भारती "
हे प्रभु यह तेरापथ
Didi, is dharti ko agar stree mana gaya hai to aise hi nahin.. ye kai udaharanon se siddh hota raha hai aur aaj fir hua..
जवाब देंहटाएंsach hi kaha gaya hai-
"ek nahin do-do matrayen, nar se bhari nari"
Jai Hind...
bhaut sundar likha hai...rashmi....sachchai hai yah...
जवाब देंहटाएंइस प्रेरणाप्रद सुन्दर आलेख के लिए बस इतना ही कहूँगी....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत ही आभार !!!!
ऐसी घटनाएं व्यक्ति को हौसला देती हैं, कुछ करने के लिए प्रेरित करती हैं। मुदिता का असली नाम क्या है, वो पूछने की जरूरत नहीं, बस मुदिता से सीखने की जरूरत है। जब जब इस कथा को कोई पढ़े, वो इसको पढ़े ही नहीं ग्रहन भी करें, दिली इच्छा है।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी बहुत ही सार्थक लेख लिखा महिला दिवस पर आपने .....आपकी लेखनी और कल्पित नाम वाली मुदिता जी को भी सलाम ......!!
जवाब देंहटाएंनारी शक्ति को अगर ये पुरुष समाज जरा सा भी समझ ले तो घर स्वर्ग न बन जाये ......पर कही तो स्त्री को इतना भी हक नहीं की वह अपनी मर्जी से किसी की मदद भी कर सके ......!!
मन को छू गया लेख.एक नारी होने के नाते खुद पर भी गर्व हो आया. मातृ शक्ति को नमन.
जवाब देंहटाएंऊंची ऊंची बातें नहीं करूँगा.. बस इतना ही कहूँगा कि पढकर और हैप्पी इन्डिंग देखकर बहुत अच्छा लगा.. :)
जवाब देंहटाएंmahila diwas par insaaniyat se labrez aalekh ..aankhen nam ho gayi lekin ..kuch bata bhi gayi hain...
जवाब देंहटाएंhamesha ki tarah lajwaab bemisaal...der se aayi hun...aur karan tumhein bata bhi diya hai...maafi nahi maangungi...mujhe jhelna tumhara kartavy aur aur mera adhikaar...
is vani ko kya hua hai ghoom ghoom kar
हमेशा मेरे साथ रहने के लिए बहुत आभार .... yahi bole jaa rahi hai
dono bhai bahan ko ek hi bieemari lagi hai...
ek dard ki dukaan doosri aabhar ka mall...mile to dono ka gala daba dun sachhhii...
haan nahi to...!!
बाप रे.. अदा दीदी, आप तो चंडी का रूप ले रही हैं.. महिला दिवश वाले पोस्ट पर एक महिला द्वारा दूसरी महिला का क़त्ल.. ही ही ही.. :P
जवाब देंहटाएं@प्रशांत...और महिला दिवस की पोस्ट पर एक महिला के ब्लॉग पर एक महिला द्वारा दूसरी महिला का क़त्ल....हा हा हा ...बात तो सोचने की है....:)
जवाब देंहटाएं@अदा..माफ़ी कैसी,बाबा....हाँ अच्छा लगा देख...उस मूड से निकल आई ...ब्लॉग्गिंग ज़िन्दगी नहीं है,अदा....इतना सीरियसली मत लिया करो (ये सन्देश महफूज़ के लिए भी है)
जवाब देंहटाएंऔर वाणी का ये कहना...मुझे अच्छा लगा...हम भारतीय पता नहीं क्यूँ अपने ज़ज्बात ज़ाहिर करने में इतना संकोच करते हैं......शुरुआत करनी चाहिए यार...ना कर पायें तो appreciate तो कर ही सकते हैं
ओये मोटी...घूम घूम कर कहाँ कहा है ...बस तुझे और रश्मि को ही तो कहा है ....:):)
जवाब देंहटाएंहाँ नहीं तो ....
hardy bhar aaya manvata ab bhi jinda hai
जवाब देंहटाएंab fark nahi padta ki vo stri roop me hai ya purush roop me
saadar
praveen pathik
9971969084
aapki rachna ko padhne ke baad kahne ko to bahut hai magar padhte huye ek ek shabd dil me utar gaye aur aankhe bhiga gaye aur main ek stri hone ke karan bhavuk ho gayi ,bas itna hi kahoongi jindagi yahi basti hai yaa jeena ise hi kahte hai .parhit saras dharam nahi bhai .aapki rachna aesi hai jahan waqt saath nahi bhi deta magar chalne ko hum aap hi majboor ho jaate hai .phir chahe aur kaam ruk jaaye .mahila divas ki badhai aapko .
जवाब देंहटाएंऔर लोग कहते हैं कि औरत औरत की दुश्मन होती है! तीनों औरतों को सलाम!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।
जवाब देंहटाएंआपका लेख अच्छा लगा।
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